Sunday, December 23, 2018

योनि तंत्र.....





योनि तंत्र.....


         सृष्टि का प्रथम बीज रूप उत्पत्ति योनि से ही होने के कारण तंत्र मार्ग के सभी साधक ‘योनि’ को आद्याशक्ति मानते हैं । लिंग का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है । लिंग और योनि के घर्षण से ही सृष्टि आदि का परमाणु रूप उत्पन्न होता है ।

 इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड और सम्पुर्ण इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है । यह योनि एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है ।       
         
         शक्तिमन्त्रमुपास्यैव यदि योनिं न पुजयेत् ।

    तेषा दीक्षाश्चय मन्त्रश्चय ठ नरकायोपेपधते ।। ७ ।।

        अहं मृत्युञ्जयो देवी तव योनि प्रसादतः ।
    तव योनिं महेशनि भाव यामि अहर्निशम् ।। ८ ।।

         योनी तंत्र के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों 
शक्तियों का निवास प्रत्येक नारी की योनी में है । क्योंकि 
हर स्त्री देवी भगवती का ही अंश है ।

 दश महाविद्या



अर्थात देवी के दस पूज्नीय रूप भी योनी में निहित है ।अतः पुरुष को अपना आध्यात्मिक उत्थान करने के लिए मन्त्र उच्चारण के साथ देवी के दस रूपों की अर्चना योनी 
पूजन द्वारा करनी चाहिए ।

 योनी तंत्र में भगवान् शिव ने 

स्पष्ट कहा है की श्रीकृष्ण, श्रीराम और स्वयं शिव भी 
योनी पूजा से ही शक्तिमानहुए हैं । भगवान् राम, शिव 
जैसे योगेश्वर भी योनी पूजा कर योनीतत्त्वको सादर मस्तक पर धारण करते थे । 

योनी तंत्र में कहा गया है क्यों कि बिना योनी की दिव्य उपासना के पुरुषकीआध्यात्मिक उन्नति संभव नहीं है । सभी स्त्रियाँ परमेश्वरी भगवती
का अंश होने के कारण इस सम्मान की अधिकारिणी हैं ।      
          अतः तंत्र साधक हो या फीर आम मनुष्य कभी 
भी स्त्रियों का तिरस्कार या अपमान नहीं करना चाहिए ।

नोटः-


शुद्ध उच्चारण के साथ किसी साधक के मार्गदर्शन में इन मंत्रों का प्रयोग करना ही लाभकर होगा।यदि किसी भी प्रकार की दिक्कते हो,तो मुझसे सम्पर्क कर सकते है।

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

साधको को सूचित किया जाता हैं की हर चीज की अपनी एक सीमा होती हैं , इसलिए किसी भी साधना का प्रयोग उसकी सीमा में ही रहकर करे , और मानव होकर मानवता की सेवा करे अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जाएँ ,.

.चेतावनी -


सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -


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राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

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