कृत्या साधना साधना .......
तंत्र साधना में यैसे यो सभी साधनायें अपने अपने स्थान पर विशेष महत्व रखते है । पर कुछ साधनाये यैसे भी है जो बहुत ही अहम और उच्चकोटी की है । यैसी साधनाये बहूत ही कम साधक करते है या कर पाते है । यैसी ही एक अति उच्चकोटी की साधना है कृत्या साधना ।
कृत्या साधना कीस ने और कब अस्तित्व में लाया ये कह पाना बहुत मुस्कील है । लेकीन इस का अस्तित्ब में आने का प्रमाण बहूत ही पुराना है । इस का अस्तित्व हमे हमारी प्राचिन गंन्थ्र शिव पुराण और महाभारत में मिलता है ।
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार जब भस्मासुर ने भगवान् शिव को ही भस्म करने का मन बनाया तब मोहिनी अवतार लेकर श्री हरि ने उनका बचाव किया था । ये मोहिनी और कुछ नहीं मानस रचना ही थी ।
श्री हरि ने कृत्या साधना से मोहिनीका कृत्या बनाया था । इसके अलावा जब देवो और दानवो में अमृत को लेकर बहस हुई तब मोहिनी अवतार लेकर भगवान् विष्णु ने उनको अमृत पान से रोका था । भगवान शिव और श्री हरि दोनों कृत्या सिद्धिया में माहिर थे । नारद मुनि खुद ब्रह्मा की मानस रचना अर्थात कृत्या ही थे।
दूसरी कहानी केे अनुसार दैत्यों का कृत्या द्वारा दुर्योधन को रसातल में बुलाना भी कृत्या साधना अस्तित्व में होने का एक प्रमाण ही है ।
दुर्योधन के इस निश्चय को जानकर पातालवासी भयंकर दैत्यों और दानवों ने ( जो पूर्वकाल में देवताओं से पराजित हो चुके थे ) मन-ही-मन विचार किया कि इस प्रकार दुर्योधन का प्रणान्त होने से तो हमारा पक्ष ही नष्ट हो जायगा ।
अत: उसे अपने पास बुलाने के लिये मन्त्रविद्या में निपुण दैत्यों ने उस समय बृहस्पति और शुक्राचार्य के द्वारा वर्णित तथा अथर्ववेद में प्रतिपादित मन्त्रों द्वारा अग्रिविस्तारसाध्य यज्ञ- कर्म का अनुष्ठान आरम्भ किया और उपनिषद् ( आरण्यंक ) में जो मन्त्र जप से युक्त हवनादि क्रियाएं बतायी गयी हैं । उनका भी सम्पादन किया । तब दृढ़तापूर्वक व्रत का पालन करने वाले, वेद-वेदागों के पारंगत विद्वान ब्राह्मण एकाग्रचित्त हो मन्त्रोच्चारणपूर्वक प्रज्वलित अग्रि में घृत और खीर की आहुति देने लगे ।
राजन कर्म की सिद्धि होने पर वहाँ यज्ञकुण्ड से उस समय एक अत्यन्त अद्भुत कृत्या जंभाई लेती हुई प्रकट हुई और बोली- ‘मैं क्या करूं ?’ तब दैत्यों ने प्रसन्नचित्त होकर उस कृत्या से कहा- ‘तू प्रायोप वेशन करते हुए धृतराष्ट्र पुत्र राजा दुर्योधन को यहाँ ले आ’।
जो आज्ञा ।" कहकर वह कृत्या तत्काल वहाँ से प्रस्थित हुई और पलक मारते-मारते जहाँ राजा दुर्योधन था, वहाँ पहुँच गयी । फिर राजा को साथ ले दो ही घड़ी में रसातल आ पहुँची और दानवों को उसके लाये जाने की सूचना दे दी । राजा दुर्योधन को लाया देख सब दानव रात में एकत्र हुए उनके मन में प्रसन्नता भरी थी और नेत्र हर्ष तिरेक से कुछ खिल उठे थे। उन्होंने दुर्योधन से अभिमानपूर्वक यह बात कही ।
कृत्या साधना शत्रु नाशक, हर आपद नाशक और जो भी आपद बिपद सब का नाश ये साधना से कीया जा सकता है । कारोबार और किसी भी चिज पर वाधा आ रही हो तो कृत्या का उपासना से हर वाधा दुर कीया जा सकता है ।
कृत्या सिद्धि होने पर धन की कमी नही रहता है । देवी साधक का रक्षा के साथ उसके परिवार का भी रक्षा करती है । जीसको कृत्या का कृपा प्राप्त जाता है उसका अल्पमूत्यु नही होती है ।
कृत्या साधना सिद्धि होने पर शत्रुओँ पर विजय प्राप्त करने वाला और मन से तान से अतिवलसाली हो जाता है । देवी को जो काम के लिये आग्रह करे वह खुशि खुशि उस काम को कर देती है । चाहे वह नकारात्मक काम हो या सकारात्मक काम हो ।
साधक जीस तरह की नौकरी हो या वस्तू की चाहत करता है । देवी उस की मनोकामना को मिनटो मेँ पुर्ण कर देती है । देवी के कृपा प्राप्ति के बाद यदि साधक भोगविलास का जीवन जीने लग जाये तो ही कृत्या देवी शरीर मेँ विलिन हो जाता है ।
यह साधना अत्यंत गोपनीय, दुर्लभ और प्राचीन है । यह कृत्या शरीर से उत्पन्न होती है । यह वशीकरण, सम्मोहन, मारण, उच्चाटन का प्रबल अस्त्र है । जब भगवान् शिव को क्रोध आया और उनके सैनिक परास्त होकर आ गए थे । तब उन्होंने अपने शरीर से कृत्या का निर्माण किया था और यज्ञ का नाश किया था ।
बड़े बड़े ऋषि मुनियो के तंत्र मन्त्र भी कृत्या शक्ति के आगे काम नही कर पाये अर्थात उन के तंत्रमंत्र विफल हो गये थे । कृत्या मानव शरीर से उत्पन्न एक देवी शक्ति है । जिस तरह मनुष्य अपने शरीर से मन्त्र साधना से अपने तीन हमजाद सिद्धि करता है उसी तरह कृत्या सिद्ध हो जाती है । मन्त्र की शक्ति से कृत्या तंत्र की कृत्या सौ गुना ज्यादा तीव्र कार्य करती है ।
प्राचीन काल में शिव की कृपा से महा कृत्या गुरुदेव शुक्राचार्य जी ने सिद्ध की थी । यह कृत्या तीनो लोको के कार्य संपन्न करती है । अगर साधक अपने दोनों हाथ ऊपर की तरफ आकाश में करके कृत्या का मन्त्र जप कर कार्य कहे तो स्वर्ग में हा हा कार हो जाती है । पृथ्वी के तरफ करके करे तो मानव में हलचल पैदा कर देती है ।
भूमि की तरफ देखकर करे तो पाताल लोक काप्ने लग जाता है । अर्थात कृत्या साधक किसी भी देव देवी, अप्सरा आदि को वशीभूत कर सकता है । घर बैठे उनको दण्डित कर सकता है । इतर योनि को मारण कर सकता है ।
इसी शक्ति मन्त्र के बल पर रावण ने लंका में बैठे हुए ही स्वर्गलोक में नृत्य करने वाली अप्सरा का शक्ति उच्चाटन किया था । जिससे वह बेहोश होकर गिर गयी थी ।
जब कृत्या देवी सिद्ध हो जाती है । तब मारण के लिये तो भूतप्रेत, ब्रह्म राक्षस, पिशाच, जिन, कर्णपिशाचिनी आदि शक्तियाँ भाग जाती है । नही तो यैसी शक्ती को कृत्या आपना कालग्रास बना देती है । सबको एक बबूले अर्थात बवंडर में लपेटकर अंतरिक्ष में विलीन हो जाती हैं ।
कृत्या सिद्ध होने पर साधक मन्त्र से जल पड़कर रोगी को पिलाय तो रोगी रोगमुक्त हो जाता है । इसे सिद्ध करने के बाद कोई भी तंत्र साधक हानि नही पहुंचा सकता है ।
साधक मन में असीम बल धारण कर लेता है । चार कर्म सिध्द हो जाते हैं । कृत्या एक सात्विक साधना है ।मांस मदिरा का सेवन वर्जित है । कृत्या साधना गुरुकृपा, शिवकृपा से ही प्राप्त होती है ।
कृत्या सिद्धि किसी भी मंगलवार या अमावस्या से शुरू कीया जा सकता है । इस साधना के लीए साधक को कला वस्त्र का उपयोग करना चाहीये और दक्षिण दिशा के और मुँह कर के बैठना चाहिये । आसन भी काले कपडा का ही होना चाहिये ।
कडवे तेल का एक दीपक जालाकर अपने आगे रखना चाहिये ।साधना पुर्ण होने तक बह्मचर्य का पालन करनी की जरूरत होती है । ये साधना 21 दिन का होता है । जब साधना पुर्ण होती है तब कृत्या देवी दर्शन देती है । कृपया कृत्या साधना विना गूरू के ना करे ।
कृत्या साधना मन्त्र
।। मंत्र-
ॐ कृत्या सर्व शत्रुणाँ मारय मारय हन हन ज्वालय ज्वालय जय जय साधक प्रिये ॐ स्वाहा॥
साधना काल के दौरान आपको कुछ आश्चर्य जनक अनुभव हो सकते हैं, पर इनसे न परेशान या बिचलित न हो , ये तो साधना सफलता के लक्षण हैं .
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ । बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है
विशेष -
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राजगुरु जी
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