Saturday, September 1, 2018

भैरवी साधना में ‘लिंग’ और ‘योनि’ की पूजा




भैरवी साधना में ‘लिंग’ और ‘योनि’ की पूजा

भैरवी मार्ग के साधक ‘योनि’ को आद्याशक्ति मानते हैं क्योंकि सृष्टि का प्रथम बीजरूप उत्पत्ति यही है। ‘लिंग’ का अवतरण इसकी ही प्रतिक्रिया में होता है। 

इन दोनों के मिलने से सृष्टि का आदि परमाणु रूप उत्पन्न होता है। इन दोनों संरचनाओं के मिलने से ही इस ब्रह्माण्ड का या किसी भी इकाई का शरीर बनता है और इनकी क्रिया से ही उसमें जीवन और प्राणतत्व ऊर्जा का संरचना होता है।

 यह योनि  एवं लिंग का संगम प्रत्येक के शरीर में चल रहा है। इसी से चाँद से शिवसार (बिंदु/अमृत/सावित्री/सती) अंदर  जाता है और हमारा जीवन तत्व यही है ।

भैरवी मार्ग का आधार सूत्र है कि मूलाधार में छिपे ऊर्जा रूप योनी-लिंग का प्रत्यक्ष रूप नर-मादा  में योनि लिंग के रूप में प्रकट होता है। 

यह पृथ्वी नामक ग्रह के आकर्षण शक्ति का प्रभाव है कि ये उसकी ओर प्रकट होता है। इनकी प्रकृति ही उत्तेजनात्मक है। इनकी पूजा करके इन पर जपा गया मंत्र शीघ्र ही सिद्ध होता है।

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

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