Sunday, September 30, 2018

इस नवरात्रि करें मां पीतांबरा का महा अनुष्ठान और अपने जीवन में एक नई उमंग लेकर आए और आपका जीवन खुशियों से भर जाए मां के आशीर्वाद से मां का प्रत्यक्ष आशीर्वाद पाने के लिए और अपनी समस्त मनोकामना पूरी पूरी करने के लिए करें इस बार नवरात्रि में मां पीतांबरा का अनुष्ठान .






इस नवरात्रि करें मां पीतांबरा का महा अनुष्ठान और अपने जीवन में एक नई उमंग लेकर आए और आपका जीवन खुशियों से भर जाए  मां के आशीर्वाद से  मां का प्रत्यक्ष आशीर्वाद पाने के लिए  और अपनी समस्त मनोकामना पूरी पूरी करने के लिए  करें इस बार नवरात्रि में मां पीतांबरा का अनुष्ठान .

 शाबर मंत्र किसी भी जात धर्म का व्यक्ति कर सकता है स्त्री पुरुष कोई भी कर सकता है 

आज काल मां पीतांबरा का इस तरह प्रचार हो रहा है कि गली के तीसरे  नंबर पर पीतांबरा साधक अवश्य ही मिलेगा हाला की जानकारी जरा सी भी ना हो मां की साधना ऐसा लगता है जैसे बच्चों का खेल हो गया हो अरे मां की साधना वह है जो एक बार अगर कर लिया जाए तो जीवन में कोई भी ऐसा काम नहीं है जो हम कर ना सके 

हम आप सब के बीच में  मां की साधना उपस्थित करूंगा  जो लोग मां की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं मां की साधना में भाग लेना चाहते हैं तो वह हमारे नंबर पर संपर्क कर सकते हैं यह सब किताब से नहीं मैंने अपने गुरु से ग्रहण किया है जो मुझे गुरु मुख से प्राप्त हुआ है  

मंत्र तो हर व्यक्ति दे देता है हर व्यक्ति गुरु बनना चाहता है कोई किताब से उठाकर करता है मगर सफलता उसे नहीं मिल पाती है असल में जब मंत्र सिद्ध करने की सही विधान ही नहीं बताया जाता  है तो मंत्र कैसे सिद्ध होगा मंत्र कैसे जागृत होगा जब हम मंत्र को जागृत करने की सही विधान ही नहीं पाएंगे तो कैसे मंत्र जागृत करेंगे 

असल में साधना और मंत्र का अहमियत तभी पता चलेगी जब हम गुरु के चरणों में बैठकर ग्रहण करेंगे तरह-तरह जंगलों में ब्राह्मण करेंगे तब जाकर हमें मंत्रों की अहमियत और साधना का मूल मतलब समझ में आएगा 

व्हाट्सएप पर ऐसे कोई साधना नहीं दे देता है  जो व्यक्ति जंगलों खंडहरों तरह-तरह की जगह पर  दृश्य धोखा भटका हो वह मंत्र एम साधना ऐसे नहीं देता है 
  
मां बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात या अपने भक्तों को भय को दूर करके शत्रुओं और उनकी बुरी शक्तियों को नाश करती हैं मां बगलामुखी का एक नाम पितांबरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अतः साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए

 देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तंभन की देवी हैं संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश है माता 

बगलामुखी शत्रुनाश वाक् सिद्धि वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है इनकी उपासना से शत्रुओं को नाश होता है तथा भक्तों का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है 

मां बगलामुखी पूजन बगलामुखी साधना सरल अनुष्ठान विधि बगलामुखी साधना स्तंभन की सर्वश्रेष्ठ साधना मानी जाती है यह साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में अनुकूलता के लिए की जाती है

शत्रु बाधा बढ़ गई हो 

कोर्ट में केस चल रहा हो 

चुनाव लड़ रहे हो 

किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्ति के लिए  

आप साधना कर रहे हैं और सफलता नहीं पा रहे हैं तो

कैसी भी समस्या हो मां आपकी हर मनोकामना अवश्य पूरी करेंगी

सरल अनुष्ठान भी पीले रंग के वस्त्र पहनकर मंत्र जाप करें  एकांत कमरा हो जिसमें पूरी नवरात्रि आपके अलावा कोई नहीं जाए पीले रंग का   पर्दा  लगाएं ब्रह्मचारी का पालन अनिवार्य है साधना काल में प्रत्येक स्त्री को माता  ही  मान  कर सम्मान दें हल्दि या पीली हकीक की माला से  ही मंत्र का जाप होगा यह व्यवस्था ना हो पाए तो रुद्राक्ष की माला से जाप कर सकते हैं उत्तर दिशा की ओर देखते हुए जाप करें 


इस नवरात्रि में मां पीतांबरा की साधना में भाग लेना चाहते हैं  तो 
इस नंबर पर सम्पर्क  करें.

 दक्षिना राशी -  1100  /   रूपया मात्र 

समाग्री : -  

      बगलामुखी यंत्र . गुटिका    भोजपत्र पर निर्मित हल्दी की माला सभी प्राण - प्रतिष्ठा युक्त मन्त्र सिद्ध. संकल्पित .

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

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भैरवी कल्पुद्धरित त्रैलोक्य विजय काली साधना





भैरवी कल्पुद्धरित त्रैलोक्य विजय काली साधना

गुप्त तंत्र ग्रंथो मे हमारे ऋषियो ने जो विधान दिये थे वह अपने आप मे रहस्यों से परिपूर्ण थे. तंत्र जगत का साहित्य कई रूप से गुढ़ रहा है तथा उसमे जो विधान दिये है वह भी अत्यधिक गुप्त रूप से लिखे गए थे ताकि अनाधिकारी व्यक्ति उसका दुरूपयोग ना कर सके. 

इस प्रकार जब यह साहित्य को समजने वाले लोग ही नहीं रहे तब तंत्र साधनाओ की अवलेहना हुई और इस प्रकार तंत्र साहित्य का एक बहोत ही बड़ा भाग लुप्त हो गया. और इन सब साहित्य को मिथ्या नाम दे दिया गया. ज़रा तटस्थ भाव से सोचे की जब नोट या कलम नहीं थि, उस समय ताड़पत्री, विविध पदार्थो के पर्ण, चर्म, धातु जेसे विविध पदार्थो पर अत्यधिक कष्ट और श्रमसाध्य लेखन कई प्रकार की स्याही बना कर हमारे ऋषियो ने लिखा. 

उसके पीछे उन लोगो का क्या व्यक्तिगत चिंतन हो सकता है? लेकिन पाश्चात्य संस्कृति से चकाचौंध हो कर हमने खुद का पतन करना शुरू कर दिया. खेर, लेकिन कई ग्रन्थ काल के थपेडो से भी सुरक्षित बचाए गए जो की कई तांत्रिक मठो और तंत्र ज्ञाताओ के पास सुरक्षित रहे.

 ऐसे अप्रकाशित ग्रंथो मे से एक है “भैरवी तंत्र” कई हज़ार श्लोको का यह ग्रन्थ अपने आप मे देवी साधनाओ के लिए बेजोड है. इसके कई पटल अपने आप मे पूर्ण तंत्र है जिसमे से एक पटल या भाग है “काली कल्प”. यह कल्प देवी काली की उपासना के लिए बेजोड है. जिसमे देवी सबंधित साधन एवं कवच दिया गया है. 

लेकिन यह कवच भी अपने आप मे अत्यधिक रहस्यों से परिपूर्ण है. यह कवच मात्र कवच नहीं लेकिन विविध ध्यान मंत्र तथा साधन मंत्रो का समूह है. जिसमे एक से एक बेजोड मंत्र है. उसी मे से एक मंत्र पद्धति है त्रैलोक्य विजय काली मंत्र. ग्रन्थ के अनुसार इस का उपयोग करने वाले व्यक्ति का देवता भी अहित करने की सोचते नहीं. फिर सामान्य शत्रु की तो बात ही क्या है.

 साधक शत्रुओ के ऊपर हावी हो जाता है तथा समस्त षड्यंत्रो से पार उतर कर सर्वत्र विजयी होता है. इस साधना को करने के बाद साधक मे एक अत्यधिक तीव्र मोहन शक्ति का भी विकास होता है जिससे सभी व्यक्ति उसके अनुकूल रहना ही योग्य समजते है. इस कल्याण प्रदाता गुढ़ साधना को साधक करे तो देवी काली का आशीर्वाद सदैव साधक पर बना रहता है.

साधक को चाहिए की वह यह साधना कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुरू करे. सुबह उठ कर देवी महाकाली की पूजा करे तथा देवी दक्षिण काली का ध्यान करे. 

अगर साधक अपने सामने काली यन्त्र तथा चित्र रखे तो उत्तम है. इसके पश्च्यात साधक निम्न मन्त्र की १० माला सुबह, १० माला दोपहर तथा १० माला शाम को (सूर्यास्त के बाद रात्री काल मे सोने से पहले) मंत्र जाप करे. यह २१ दिन की साधना है. रोज ३ समय मंत्र जाप होना चाहिए. इसमें दिशा पूर्व रहे. वस्त्र आसान सफ़ेद रहे तथा माला काले हकीक या रुद्राक्ष की हो.

 जाप से पहले विनियोग निम्न मंत्र से करे. हाथ मे जल ले कर विनियोग बोलने के बाद जल को भूमि पर छोड़ दे.

विनियोग :

अस्य श्री काली कल्पे जगमंगला कवच गुढ़ मन्त्रान त्रैलोक्य विजय मन्त्रस्य शिव ऋषि अनुष्टुप् छन्दः दक्षिण कालिका देवता मम त्रैलोक्य विजय त्रैलोक्य मोहन सर्व शत्रु बाधा निवारार्थाय जपे विनियोग

उसके बाद दक्षिण कालिका का ध्यान कर निम्न मंत्र का जाप करे.

हूं ह्रीं दक्षिण कालिके खड्गमुण्ड धारिणी नमः

साधक पूजा और विनियोग सुबह करे, दोपहर और शाम को विनियोग या पूजन की ज़रूरत नहीं है ध्यान के बाद सीधे मंत्र जाप शुरू कर सकते है.

राजगुरु जी

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सिद्ध जप माला










सिद्ध जप माला

मित्रो आप सब जनते हे कोई भी मन्त्र करने के लिए एक जप माला की आवश्कता होती हे । परन्तु क्या आप ये जानते हे की यह माला शास्त्र के अनुसार सम्पूर्ण रूप से प्राण प्रतिष्टित और मंत्र से सिद्ध होनी आवश्यक हे.

 अन्यथा किये गए जप का फल साधक को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं होता और साधक की महेनत व्यर्थ जाती हे ।।

परन्तु आप चिंता मत करे हमने आपके लिए वैदिक ब्रह्मिनो के द्वारा प्राण प्रतिष्टित और सम्पूर्ण रूप से मन्त्र शक्ति से चैतन्य युक्त कर तैयार की हे और इस माला का मुल्य भी बहोत सामान्य रक्खा गया हे । कोई भी व्यक्ति यह माला को घर बैठे ही प्राप्त कर शकता हे ।।

विशेष नोध । आपके नाम से प्राण प्रतिष्टित माला का उपयोग आप स्वयं ही करे किसी और को मत करने दे अन्यथा जप का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा ।।

सिर्फ आपको अपना ऑर्डर निचे दिए नंबर पर sms कर या कोल कर बुक करका शकते हे । sms करने वाले अपना पूरा पता एवं पिन कोड अवश्य लिखे ।।

सिद्ध जप माला की तस्वीर यहाँ निचे दी गई हे ....

सिद्ध जप माला । प्रसादी मुल्य । Rs 550 /-
पोस्टल चार्जिस एक्स्ट्रा । Rs 50/-.

राजगुरु जी

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Friday, September 28, 2018

श्री शिवजी बोले -



श्री शिवजी बोले -

हे रावण ! अब मैं तुमसे यक्षिणी साधन का कथन करता हूं , जिसकी सिद्धि कर लेने से साधक के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं ।

सर्वासां यक्षिणीना तु ध्यानं कुर्यात् समाहितः ।
भविनो मातृ पुत्री स्त्री रुपन्तुल्यं यथेप्सितम् ॥

तन्त्र साधक को अपनी इच्छा के अनुसार बहिन , माता , पुत्री व स्त्री ( पत्नी ) के समान मानकर यक्षिणियों के स्वरुप का ध्यान अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । कार्य में तनिक – सी भी असावधानी हो जाने से सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती ।

भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ।
उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥

यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके मृगचर्म ( के आसन ) पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीच में किसी से बात करें ।
नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।
यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥

अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् निर्जन स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्ष न हो ।

 क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें । यह सब सिद्धकारक प्रयोग हैं ।

यह विधि सभी यक्षिणीयों के साधन में प्रयुक्त की जाती है ।

‘ ॐ क्लीं ह्रीं ऐं ओं श्रीं महा यक्षिण्ये सर्वैश्वर्यप्रदात्र्यै नमः ॥ ”

इमिमन्त्रस्य च जप सहस्त्रस्य च सम्मितम् ।
कुर्यात् बिल्वसमारुढो मासमात्रमतन्द्रितः ॥

उपर्युक्त मन्त्र को जितेन्द्रिय होकर बेल वृक्ष पर चढ़कर एक मास पर्यन्त प्रतिदिन एक हजार बार जपें ।

सत्वामिषबलिं तत्र कल्पयेत् संस्कृत पुरः ।
नानारुपधरा यक्षी क्वचित् तत्रागमिष्यति ॥

मांस तथा मदिरा का प्रतिदिन भोग रखें , क्योंकि भांति – भांति का रुप धारण करने वाली वह यक्षिणी न जाने कब आगमन कर जाए ।

तां दृष्ट्वा न भयं कुर्याज्जपेत् संसक्तमानसः ।
यस्मिन् दिने बलिंभुक्तवा वरं दातुं समर्थयेत् ॥

जब यक्षिणी आगमन करे तो उसे देखकर डरना नहीं चाहिए , क्योंकि वह कभी – कभी भयंकर रुप में आ जाती है । उसके आगमन करने पर दृढ़ता पूर्वक रहें , डरें नहीं । अपने मन में जप करते रहें ।

तदावरान्वे वृणुयात्तांस्तान्वेंमनसेप्सितान् ।
धन्मानयितुं ब्रूयादथना कर्णकार्णिकीम् ॥

जिस दिन बलि ग्रहण करके वह ( यक्षिणी ) वर देने को तैयार हो , उस दिन जिस वर की कामना हो , उससे मांग लेना चाहिए , धन लाने को कहें अथवा कान में बात करने को कहें ।

भोगार्थमथवा ब्रूयान्नृत्यं कर्तुमथापि वा ।
भूतानानयितुं वापि स्त्रियतायितुं तथा ॥

भोग के लिए उससे नाचने के लिए कहें , प्राणियों को लाने की , स्त्रियों को लाने की बात कहें ।

राजानं वा वशीकर्तुमायुर्विद्यां यशोबलम् ।
एतदन्यद्यदीत्सेत साधकस्तत्तु याचयेत् ॥

राजा को वश में करने के लिए , आयु , विद्या एवं यश के लिए साधक को तत्क्षण वर मांग लेना चाहिए ।

चेत्प्रसन्ना यक्षिणी स्यात् सर्व दद्यान्नसंशयः ।
आसक्तस्तुद्विजैः कुर्यात् प्रयोग सुरपूजितम् ॥

प्रसन्न होकर यक्षिणी सब कुछ प्रदान करती है , इसमें संदेह नहीं हैं । यदि प्रयोग को स्वयं न कर सकें तो किसी ब्राह्मण से कराएं । यह यक्षिणी साधन देवताओं द्वारा बी किया गया है ।

सहायानथवा गृह्य ब्राह्मणान्साध्यें व्रतम् ।
तिस्त्रः कुमारिका भौज्याः परमन्नेन नित्यशः ॥

फिर अपने सहायकों को रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और प्रतिदिन तीन कुमारी कन्याओं को भी भोजन कराते रहें ।

सिद्धैधनादिके चैव सदा सत्कर्म आचरेत् ।
कुकर्मणि व्ययश्चेत् स्यात् सिद्धिर्गच्छतिनान्यथा ॥

धन इत्यादि की सिद्धि होने पर धन को अच्छे कार्यों में व्यय करें , नहीं तो सिद्धि छिन्न हो जाती हैं ।

धनदा यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

” ॐ ऐं ह्रीं श्रीं धनं मम देहि देहि स्वाहा ॥ ”

अश्वत्थवृक्षमारुह्य जपेदेकाग्रमानसः ।
धनदाया यक्षिण्या च धनं प्राप्नोति मानवः ॥

धन देने वाली यक्षिणी का जप पीपल के वृक्ष पर बैठकर एकाग्रतापूर्वक करना चाहिए । इससे धनदादेवी प्रसन्न होकर धन प्रदान करती हैं ।

पुत्रदा यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

” ॐ ह्रीं ह्रीं हूं रं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ”

इस मन्त्र को दस हजार बार जपना चाहिए ।

चूतवृक्षं समारुह्य जपेदेकाग्र मानस ।
अपुत्रो लभते पुत्रं नान्यथा मम भाषितम् ॥

पुत्र की इच्छा करने वाले व्यक्ति को आम के वृक्ष के ऊपर चढ़कर जप् करना चाहिए तब पुत्रदा यक्षिणी प्रसन्न होकर पुत्र प्रदान करती है ।

महालक्ष्मी यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

” ॐ ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ॥ ”

वटवृक्षे समारुढो जपेदेकाग्रमानसः ।
सा लक्ष्मी यक्षिणी च स्थितालक्ष्मीश्च जायते ॥

वट वृक्ष ( बरगद के वृक्ष ) पर ऊपर ( किसी मोटी शाखा पर ) बैठकर एकाग्र मन से महालक्ष्मी यक्षिणी का दस हजार जप करें तो लक्ष्मी स्थिर होती है और साधक को सफलता मिलती है ।

जया यक्षिणी मन्त्र प्रयोग

” ॐ ऐं जया यक्षिणायै सर्वकार्य साधनं कुरु कुरु स्वाहा ॥ ”
अर्कमूले समारुढो जपेदेकाग्रमानसः ।
यक्षिणी च जया नाम सर्वकार्यकरी मता ॥

आक की मूल के ऊपर बैठकर उपरोक्त मन्त्र का जप करने से जया नामक यक्षिणी प्रसन्न होकर सब कार्यों को सिद्ध करती हैं ।

गुप्तेन विधिना कार्य प्रकाश नैव कारयेत् ।
प्रकाशे बहुविघ्नानि जायते नात्र संशयः ॥
प्रयोगाश्चानुभूतोऽयं तस्मद्यत्नं समाचरेत् ।
निर्विघ्नेन विधानेन भवेत् सिद्धिरनुत्तमा ॥

यक्षिणियों की साधना सदैव गुप्त रुप से ही करनी चाहिए , प्रकट रुप से करने में विघ्नों का भय रहता है तथा प्रयोग सिद्ध नहीं हो पाते , निर्विघ्न विधान से सिद्धि की प्राप्ति अवश्य होती हैं ।

सा भूतिनी कुण्डलधारिणी च सिन्दूरिणी चाप्यथ हारिणी च ।

नटी तथा चातिनटी च चैटी कामेश्वरी चापि कुमारिका च ॥

भूतिनी नाम की यक्षिणी बहुत से रुप धारण कर लेती है , जैसे कुण्डल धारण करन्जे वाली , सिन्दूर धारण करने वाली , हार पहनने वाली , नाचने वाली , अत्यन्त नृत्य करने वाली , चेटी , कामेश्वरी और कुमारी आदि रुपों में आती हैं ।

भूतिनी यक्षिणी का मंत्र निम्न है -

” ॐ ह्रां क्रूं क्रूं कटुकटु अमुकी देवी वरदा सिद्धिदा च भव ओं अः ॥ ”

चम्पावृक्षतले रात्रौ जपेदष्ट सहस्रकम् ।
पूजनं विधिना कृत्वा दद्यात् गुग्गुलपधूकम् ॥
सप्तमेऽहि निशीथे च सा चागच्छिति भूतिनी ।
दद्यात् गन्धोदकेनार्घ्यतुष्टामातादिका भयेत् ॥

भूतिनी यक्षिणी का जप चम्पा वृक्ष के नीचे प्रतिदिन आठ हजार बार करें । सर्वप्रथम भूतिनी का पूजन करें , फिर गुग्गुल की धूप दें । ऐसा करने से सातवीं रात में भूतिनी आती है । जब वह आगमन करे तो उसे चन्दन मिश्रित जल से अर्घ्य दें । वह प्रसन्न होकर उसी रुप में परिणत हो जाती है , जिस रुप की कामना की है ।

मातेत्यष्टादशानां चं वस्त्रालंकार भोजनम् ।
भगिनी चेत्तदा नारीं दूरादा कृष्यक मुन्दरीम् ॥
रसं रसांजनं दिव्यं विधानं च प्रयच्छति ।
भार्यचपृष्ठमारोप्य स्वर्ग नयति कामिता ।
भोजनं कामिकं नित्य साधमाय प्रयच्छति ॥

जब साधक यक्षिणी को माता के रुप में सिद्ध करता है तो वह अठ्ठारह व्यक्तियों के वस्त्र , आभूषण और भोजन प्रतिदिन देती है । एक बहन के रुप में सिद्ध होने पर सुंदर स्त्रियों को दूर – दूर से लाकर देती है तथा रसपूर्ण दिव्य भोजन प्रदान करती है । पत्नी के रुप में सिद्ध होने पर वह साधक को अपनी पीठ पर बैठाकर स्वर्ग आदि लोकों का भ्रमण कराती है एवं भोजनादि के पदार्थ भी उपलब्ध कराती है ।

रात्रौ पुष्पेण गत्वा शुभा शय्योपकल्पयेत् ।
जाति पुष्पेण वस्त्रेण चन्दनेन च पूजयेत् ॥
धूपं गुग्गुलं दत्त्वा जपेदष्ट सहस्त्रकम् ।
जपान्ते शीघ्रमायाति चुम्बत्यालिंगयत्यपि ॥
सर्वालंकारसंयुक्ता संभोगादि समन्विता ।
कुबेरस्य गृहादेव द्रव्यमाकृष्य यच्छति ॥

रात्रि हो जाने पर मंदिर में आसन बिछाकर सजाएं तथा चमेली के पुष्प एवं चंदन आदि से पूजब्न करें और गुग्गुल की धूप देकर मंत्र का आठ हजार जप करें । 

जप की समाप्ति पर संपूर्ण अलंकारों से युक्त होकर यक्षिणी आगमन करती है और साधक का आलिंगन – चुम्बनादि करके उससे संभोग करती है तथा कुबेर के खजाने से धन लाकर उसे देती है ।

2….यक्षिणी चौदह प्रकार की बताई गयीं हैं:-

1. महायक्षिणी

2. सुन्दरी
3. मनोहरी
4. कनक यक्षिणी
5. कामेश्वरी
6. रतिप्रिया
7. पद्मिनी
8. नटी
9. रागिनी
10. विशाला
11. चन्द्रिका
12. लक्ष्मी
13. शोभना
14. मर्दना

राजगुरु जी

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Thursday, September 27, 2018

अगर आपकी कुंडली में इन 10 में से एक भी योग बन रहा है तो आपको करोड़पति बनने से कोई नहीं रोक सकता







अगर आपकी कुंडली में इन 10 में से एक भी योग बन रहा है तो आपको करोड़पति बनने से कोई नहीं रोक सकता

करोड़पति

करोड़पति होने का सपना तो हर किसी को आता होगा लेकिन वो लोग चुनिंदा ही होते हैं जिनका ये सपना हकीकत बन जाता है। जनाब कोई करोड़पति यूं ही नहीं बना जाता, इसके लिए बहुत मेहनत भी करनी पड़ती है और जो लोग सफल होने की इस कूंजी को समझ जाते हैं अंत में उन्हीं के सपने साकार होते हैं।

धन-संपदा का मालिक

लेकिन एक बात और है... करोड़पति बनने का अकूत धन-संपदा का मालिक बनने के लिए आपकी किस्मत या आपकी लग्न कुंडली भी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है।

 हैरानी की बात तो ये है कि अगर आपकी कुंडली में धनवान बनने के योग मौजूद हैं तो करोड़पति बनने के अवसर आपके पास अपने आप ही चले जाएंगे। आपको इसके लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।

ज्योतिष विद्या के अनुसार कुछ ऐसे अद्भुत योग हमारी कुंडली में मौजूद होते हैं जो हमें करोड़पति बना सकते हैं। अब वो कौनसे योग हैं, चलिए जानते हैं।

कुंडली

जिस जातक की कुंडली में मंगल चौथे, सूर्य पांचवें और गुरु ग्यारहवें या पांचवें भाव में होता है तो उस व्यक्ति को पैतृक संपत्ति हाथ लगती है। उन्हें कृषि या संपत्ति से अकूत संपत्ति हाथ लगती है।

दूसरा योग

दूसरा योग तब बनता है जब ग्यारहवें या दसवें भाव में सूर्य, चौथे और पांचवें भाव में मंगल हो या ग्रह इसके विपरीत स्थिति में हों तो व्यक्ति प्रशासनिक सेवाओं के जरिए धन-संपदा का मालिक बनता है।

तीसरा योग

जब बृहस्पति कर्क, धनु या मीन राशि का हो तो और साथ की पांचवें भाव का स्वामी होकर दसवें भाव में बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति को अपनी पुत्री या पुत्र के जरिए अपार धन-संपदा मिलती है।

चौथा योग

जिस जातक की कुंडली में शनि, बुध और शुक्र एक साथ एक भाव में होते हैं उस व्यक्ति को व्यापार में उन्नति मिलती है और वह अपार संपत्ति बना लेता है।

पांचवा योग

कुंडली में दसवें भाव का स्वामी वृषभ या तुला राशि में मौजूद हों और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति विवाह के बाद अपने साथी की कमाई से धनवान बनता है।

छठा योग

कुंडली में अगर शनि जब तुला, मकर या कुंभ राशि में होता है, तब अकाउंटेंट बनकर धन अपार धन अर्जित करता है।

सातवां योग

कुंडली में बुध, शुक्र और बृहस्पति ग्रह अगर किसी एक भाव में साथ बैठे हों तो ऐसा व्यक्ति अपने धार्मिक कार्यों के जरिए धन अर्जित करता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, कथाकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।

आठवां योग

किसी जातक की कुंडली के त्रिकोण भावों या केन्द्र में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध ग्रह बैठे हों या फिर तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहु, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहु, शनि, शुक्र या बुध की दशा में असीमित धन-संपत्ति प्राप्त करता है।

नौवा योग

कुंडली के सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में केतु के अलावा कोई अन्य ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसाय के जरिए अतुलनीय धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।

दसवां योग

कुंडली के सातवें भाव में मंगल या शनि मौजूद हों और ग्यारहवें भाव में शनि, मंगल या राहु बैठा हो तो व्यक्ति शेयर मार्केट या जुए की सहायता से धन प्राप्त करता है.

राजगुरु जी

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Wednesday, September 26, 2018

अघोर तांत्रिक श्मशान साधना




अघोर तांत्रिक श्मशान साधना

हम सभी ने अघोर तांत्रिकों के बारे में जरुर सुना होगा।
अघोरी सांसारिक बंधनों को नहीं मानते और अधिकांश समय श्मशान में बिताते हैं।

अघोर का अर्थ है जो घोर या वीभत्स नहीं है।
अघोरी वो लोग होते हैं जो संसार की किसी भी वस्तु को घोर अर्थात वीभत्स नहीं मानते। इसलिए न तो वे किसी वस्तु से घृणा करते हैं और न ही प्रेम। उनके मन के भाव हर समय एक जैसे ही होते हैं।

अघोर तांत्रिक श्मशान में ही तंत्र क्रियांए करते हैं , इनके मतानुसार श्मशान में ही शिव का वास होता है।
अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्मशान साधना,

शिव साधना

और शव साधना।

ऐसा माना जाता है कि शव साधना के चरम पर मुर्दा बोल उठता है और इच्छाएं पूरी करता है। शव साधना के लिए एक खास काल में जलती चिता में शव के ऊपर बैठकर साधना की जाती है। 

यदि पुरूष साधक हो तो उसे स्त्री का शव और स्त्री साधक के लिए पुरूष का शव चाहिए होता है।शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है।

बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं।
शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है।

इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस मंदिरा की जगह मावा चढाया जाता हैं। अघोरी लोगो का मानना होता है कि वे लोग जो दुनियादारी और गलत कार्यों के लिए तंत्र साधना करते है अतं में उनका अहित होता है।

अघोरी की आत्मा को प्रसन्न करने एवं उससे सहायता प्राप्त करने हेतु साधना बता रहा हूँ , इस साधना को आप घर पर भी कर सकते है -

साधना समाग्री  : --

      अघोरी  यंत्र गुटिका . काले हकीक की माला . एक मिट्टी के कुलहड़ आदी  .

साबर मंत्र -

" आडू देश से चला अघोरी , हाथ लिये मुर्दे की झोली , खड़ा होए बुलाय लाव , सोता हो जागे लाव ,
तुझे अपने गुरु अपनों की दुहाई , बाबा मनसा राम की दुहाई ! "

विधान -

मंगलवार या शनिवार के दिन , कृष्णपक्ष से रात्रि के समय , लाल या काले आसन पर बैठ कर नित्य ही ११ माला का जप करे ।

अपने सम्मुख अघोरी आत्मा हेतु एक मिट्टी के कुलहड़ में देसी शराब , श्वेत फूलो की माला , मिठाई -नमकीन आदि रखे ।

गूगल की धुप और कडुवे तेल का गिरी हुए बत्ती का दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित रखे ।

जब जप पूर्ण हो जाये तो ये सभी सामग्री किसी चौराहे पर या किसी पीपल के पेड के नीचे चुपचाप से रख आये और हाथ-पैर धोकर सो जाये ।

7वें दिन नहीं जाना है ।

तब किसी अघोरी की आत्मा आएगी और सामग्री न देने का कारण अत्यंत उग्र स्वर में पूछेगी ...घबराए नहीं और उत्तर भी नहीं देना और जो पूर्व दिन की बची सामग्री है उसे रख दें ।

न ही किसी भी प्रकार का प्रश्न करें न ही किसी प्रश्न का उत्तर दें ।

अब जप के पश्चात् जो सामग्री वर्तमान दिन ...यानि 8वें दिन की है ...फिर से चौराहे पर या पीपल के पेड के नीचे रख आये ।

यह साधना 11 दिन की है एवं 11वें दिन अघोरी की आत्मा आएगी और सौम्य भाषा -शब्दों में वार्ता करगी ।
उससे अपनी बुद्धि के अनुसार वचन ले लीजिये ,ये आत्मा साधक के अभिष्टों को पूर्ण करेगी ।

जब भी किसी कुल्हड़ में देसी शराब और नमकीन -मिठाई अघोरी के नाम से अर्पित करोगे तो वो सम्मुख आकर साधक की समस्या का निवारण भी करेगी ।
इस साधना के प्रभाव से अघोरी की आत्मा साधक के आस-पास ही रहेगी तथा उसे सुरक्षा भी प्रदान करेगी ।

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

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हाथाजोडी साधना







हाथाजोडी साधना

हाथाजोडी की साधना में लौंग अवश्य चढाये . इसके साथ ही महाकाली जी के मंत्र की प्रतिदिन ७ या ११ माला जपें . धयान रहे कि हाथाजोडी में देवी चामुण्डा जी का वास रहता हैं .

जो देवी महाकाली का ही प्रतिरूप हैं . अतः महाकाली का मंत्र जपने से उनकी कृपा अवस्य प्राप्ति होती हैं . महाकाली का सब से सरल मंत्र इस प्रकार हैं .

मंत्र

"" ॐ किलि किलि स्वाहा """

इस मंत्र को नित्य ११ माला जापे . जप के पूरा होने पर हाथाजोडी कि लौंग , धूप , डीप से पूजा करे और कोई सिक्का भी चढ़ाये .

यह प्रयोग आपकी आर्थिक दशा अवस्य सुधर देगा.

राजगुरुजी

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तंत्र शास्त्र के अंतर्गत तांत्रिक क्रियाओं में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता है




तंत्र शास्त्र के अंतर्गत तांत्रिक क्रियाओं में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता है जो दिखने में बहुत ही साधारण होता है लेकिन इसका प्रभाव असाधारण होता है। इस पत्थर को गोमती चक्र कहते हैं। 

गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। गोमती चक्र के साधारण तंत्र उपयोग इस प्रकार हैं- - 

पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट संबंध के विभिन्न रोग दूर हो जाते हैं।

 - धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने श्री नम: का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी। 

- गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं।

 - होली, दीवाली तथा नवरात्र आदि प्रमुख त्योहारों पर गोमती चक्र की विशेष पूजा की जाती है। अन्य विभिन्न मुहूर्तों के अवसर पर भी इनकी पूजा लाभदायक मानी जाती है। 

सर्वसिद्धि योग तथा रविपुष्य योग पर इनकी पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।

राज गुरु जी

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Tuesday, September 25, 2018

आकर्षण साधना विज्ञान






आकर्षण साधना विज्ञान

वासंती नवरात्रि कहे जाने वाले चैत्र नवरात्रि का तंत्र-मंत्र में विशेष ही महत्व माना गया है। अक्सर तांत्रिक लोग किसी सिद्धपीठ में जाकर 9 दिनों तक तांत्रिक साधना करते हैं। इसमें किसी भी मंत्र का अनुष्ठान करने से यथाशीघ्र सफलता मिलती है।

शत्रु अधिक परेशान करते है तब मां बगुलामुखी की साधना कर उन्हें परास्त किया जा सकता है लेकिन यह साधना कठिन है।

साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पीले वस्त्रों का प्रयोग करना अनिवार्य होता है। साथ ही पीली हल्दी की माला, पीले पुष्प एवं पीला ही आसन का प्रयोग करना चाहिए। एक निश्चित समय पर ही मंत्रानुष्ठान करना चाहिए।

मंत्र इस प्रकार है :

ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।

इस प्रकार मंत्र जाप करने से घोर शत्रु भी अनुकूल हो जाता है।

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कामिया सिन्दूर-मोहन मंत्र

हथेली में हनुमंत बसै, भैरू बसे कपार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहंता वीर, सब वीरन में तेरा सिर।
सबकी नजर बांध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊं तुझे।
तेल-सिन्दूर कहां से आया? कैलास-पर्वत से आया।
कौन लाया, अंजनी का हनुमंत, गौरी का गणेश लाया।
काला, गोरा, तोतला- तीनों बसे कपार।
बिंदा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल।
दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल हो जाए।
सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर।

विधि : सिन्दूर पर लगातार 7 रविवार तक उक्त मंत्र का 108 बार जप करें। इससे मंत्र सिद्ध हो जाएगा। प्रयोग के समय सिन्दूर पर 7 बार उक्त मंत्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाएं। ‘टीका’ लगाकर जहां जाएंगे, सभी वशीभूत होंगे।

सर्वजग सम्मोहन तंत्र : -

तुलसी के चूर्ण में सहदेई के रस को मिलाकर माथे पर तिलक करें। यदि ऐसा तिलक करके आप किसी सभा अथवा पार्टी में जाते हैं तो सभी आपसे प्रभावित रहेंगे। यदि आप किसी एक व्यक्ति को ही आकर्षित करना चाहते हैं तो भी उसके सम्मुख यही टीका लगाकर जाएं, सफलता मिलेगी।

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आकर्षण एवं वशीकरण प्रबल सूर्य मंत्र

'ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्रकिरणाय ऐं अतुलबलपराक्रमाय नवग्रह दश दिक्पाल लक्ष्मीदेवताय, धर्मकर्मसहितायै ‘अमुक’ नामनी नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु कुरु, वश कुरु कुरु स्वाहा।'

विधि : - सूर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मंत्र का 1008 बार जप प्रतिदिन 9 दिन तक करने से ‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।

मंत्र भलाई के लिए होते हैं न कि किसी को क्षति पहुंचाने के लिए। यदि कोई किसी के नुकसान के लिए प्रयोग करता है तो सबसे पहले उसी का नुकसान होता है, क्योंकि मन की शक्ति सबसे बड़ी होती है।

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आकर्षण मंत्र : इसे पढ़ने से पत्थरदिल भी होगा आकर्षित

यूं तो मंत्र और तंत्र मन के विश्वास पर आजमाए जाते हैं लेकिन कुछ मंत्रों के बारे में तांत्रिकों का दावा है कि यह असर करते हैं और तत्काल असर करते हैं। जैसे यह मंत्र जो किसी व्यक्ति विशेष को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं।

तांत्रिक मान्यता है कि जिस व्यक्ति को आकर्षित करना हो उसका ध्यान कर 15 दिन तक नित्य इस मंत्र का जाप करें, तो कैसा भी पत्‍थरदिल प्राणी हो, अवश्य आ‍कर्षित होगा।*

आकर्षण मंत्र 1

- ॐ हुं ॐ हुं ह्रीं।

* आकर्षण मंत्र 2

- ॐ ह्रों ह्रीं ह्रां नम:।

इस मंत्र को नित्य 10 हजार बार 15 दिन तक जाप करें तो वांछित व्यक्ति अवश्य ही आकर्षित होगा

ॐ वश्य मुखी राज मुखी स्वाहा।।

इस मंत्र को 21 माला जाप करके सिद्ध कर ले कोई विधान नहीं है
बस किसी भी अमावश्या या पूर्णिमा को सिद्ध करके माला खत्म होने के बाद 3 फूंक पानी पे मारकर पि ले जिससे ये सिद्ध हो जायेगा।।
इसके बाद 21 बार पानी पे फूंक मार कर मुँह धोने से जग मोहन होता है

जय सिया राम उपरोक्त मंत्र को प्रातः पूजा में भी 11 बार पढ़ कर यदि अपने मुखमंडल पर दोनों हाथ फेर लिया जाए तो सभा में सम्मान भी प्राप्त होता है ।

राजगुरु जी

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शत्रु नाशक श्री बगलामुखी साधना






शत्रु नाशक श्री बगलामुखी साधना

देवी बगलामुखी दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं. इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश है. 

माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर  प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. 

बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.

देवी बगलामुखी भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. 

देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.

बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. 

देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है.

मां बगलामुखी पूजन | 

माँ बगलामुखी की पूजा हेतु इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करने चाहिए. साधना अकेले में, मंदिर में या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए. 

पूजा करने के लुए  पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए आसन पर बैठें चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें.

आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें. इस पूजा में  ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक होता है  मंत्र- सिद्ध करने की साधना में माँ बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है और यदि हो सके तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करें.

माँ बगलामुखी यंत्र - मंत्र साधना | 

श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।

त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।

ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।

ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ

सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।

ध्यान | 

सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्

हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्

हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै

व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

विनियोग | 

ॐ अस्य श्रीबगलामुखी ब्रह्मास्त्र-मन्त्र-कवचस्य भैरव ऋषिः

विराट् छन्दः, श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः

श्रीं कीलकं, मम (परस्य) च मनोभिलषितेष्टकार्य सिद्धये विनियोगः ।

न्यास | 

भैरव ऋषये नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे

श्रीबगलामुखी देवतायै नमः हृदि, क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, ऐं शक्तये नमः पादयोः

श्रीं कीलकाय नमः नाभौ मम (परस्य) च मनोभिलषितेष्टकार्य सिद्धये विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

मन्त्रोद्धार | 

ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय, ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं स्वाहा ।

मंत्र | 

ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां

वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय

बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।

बगलामुखी कवच-पाठ | 

शिरो मेंपातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातुललाटकम ।
सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने ।। १

श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।। २

देहिद्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।। ३

कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता तथा स्वाहा, हृदयं पातु सर्वदा ।। ४

अष्टाधिक चत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी ।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेरण्ये सदा मम ।। ५

ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।। ६

ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलावतु ।
मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम् ।। ७

जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।। ८

जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम ।। ९

जिह्वावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।
पादोर्ध्व सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।। १०

विनाशयपदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे ।
ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।। ११

सर्वांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेवतु ।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।। १२

माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।। १३

वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेवतु ।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदावतु ।। १४

इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।। १५

श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु ।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः ।। १६

योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।। १७

बगालामुखि - पूजन का यंत्र | 

पहले त्रिकोण बनाकर, उसके बाहर षटकोण अंकित करके वृत्त तथा अष्टदल पद्म को अंकित करे! उसके बहिर्भाग में भूपुर अंकित करके यंत्र को प्रस्तुत करना चाहिए! यंत्र को अष्टगंध से भोजपत्र के ऊपर लिखना चाहिए!

माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है. यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं. मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है. 

बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए. देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है.

पीत वस्त्र धारण कर. हल्दी की गाँठ से निर्मित अर्थात जिसमें हल्दी की गाँठ लगी हुई हों,  माला से प्रतिदिन 36  शो  की संख्या में मन्त्र का जप करना चाहिए.

राजगुरु जी

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...