रोग निवारक सिंहमुखी प्रत्यंगिरा शक्ति प्रयोग
मनुष्य ब्रम्हांड की एक अद्भुत रचना है, जिसे जितना भी समजा जाए उतना ही कम लगता है. आधुनिक विज्ञान तो मनुष्य के कुछ ही हिस्सों तक पहोचा है और इस क्षेत्र में पूर्ण रूप से अपनी शोध को गतिशील बनाये हुवे है.
हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने भी इसी दिशा में शोध कार्य किया था और शरीर से सबंधित कई प्रकार के गोपनीय तथ्यों के बारे में अपनी तपस्या से पता लगाया था. मनुष्य शरीर एक अत्यधिक जटिल रचना है,
यह ठीक एक यंत्र की तरह है जिसमे कई प्रकार के पुर्जे होते है और कोई भी एक पुर्जा खराब होने पर पूरा यंत्र खराब हो जाता है.
हमारा शरीर स्वस्थ हो तब हमारा जीवन स्वस्थ है और हमारा शरीर अपनी गितिशिलता के अनुरूप कार्यशील रहेगा. लेकिन जब यह कार्य में रुकावट आती है तो कई प्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ता है.
ये रुकावट को या फिर यह गतिशीलता में शरीर को जो बाधा प्राप्त हो रही है उसे ही रोग कहते है. रोग मनुष्य को मात्र बाह्य या शारीरिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी तोड़ देता है तथा जीवन के क्रियाकलाप में विक्षेप का प्रसार करने लगता है.
आज के युग की चिकित्सा पध्धति मात्र बाह्य लक्षणों की तरफ ध्यान देती है लेकिन मानसिक रूप से जो क्षति पहोचाती है तथा जो सूक्ष्म भाग और शरीर के अंदर के अन्य शरीर तथा तत्वों पर जो क्षति होती है उस की क्षति पूर्ती करना अत्यधिक कठिन कार्य होता है और इसी लिए कई बार कई प्रकार के रोग उत्तम चिकित्सा लेने पर भी पूरी तरह मिटते नहीं और कई बार होते है.
तंत्र क्षेत्र के कई अद्भूत विधान है जिसके माध्यम से रोगों से मुक्ति पा कर एक सम्पूर्ण जीवन को जिया जा सकता है.
ऐसे दुर्लभ विधानों के माध्यम से जहा एक और रोग और रोगजन्य कष्ट और पीड़ा से मुक्ति मिलती है वहीँ दूसरी और जो क्षति हुई है उसकी भी पूर्ति होती है जिससे भविष्य में वह रोग के लक्षण नहीं होते है.
ऐसा ही एक दुर्लभ विधान देवी प्रत्यंगिरा से सबंधित है. यह प्रयोग श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाए तो रोग के कष्ट से निश्चित रूप से व्यक्ति को मुक्ति दिला सकती है.
यह प्रयोग रविवार रात्री काल में ११ बजे के बाद शुरू किया जा सकता है.
साधक के वस्त्र और आसान लाल रंग के हो. साधक को उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए.
साधक अपने सामने देवी प्रत्यंगिरा का चित्र या यन्त्र स्थापित करता है तो उत्तम है लेकिन यह संभव ना हो तो भी साधक मंत्र का जाप कर सकता है.
साधक सर्व प्रथम हाथ में जल ले कर संकल्प करे की मेरे सभी रोग शोक दूर हो इस लिए में यह प्रयोग सम्प्पन कर रहा हू. देवी मुझे आशीष और सहायता प्रदान करे.
अगर साधक किसी और व्यक्ति के लिए मंत्र जाप कर रहे हो तो संकल्प में उस व्यक्ति का नाम उच्चारित करे. इसके बाद साधक मानसिक रूप से पूजन सम्प्पन करे तथा मूंगा माला से निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे.
ॐ सिंहमुखी सर्व रोग स्तंभय नाशय प्रत्यंगिरा सिद्धिं देहि नमः
मंत्र जाप के बाद साधक देवी को नमस्कार करे और कल्याण करने की प्रार्थना कर सो जाए.
साधक को यह क्रम ११ दिनों तक करना चाहिए.
साधना समाप्ति पर साधक यन्त्र चित्र आदि को पूजा स्थान में स्थापित कर दे और माला को किसी को देवी मंदिर में दक्षिणा के साथ अर्पित कर दे तो रोग शांत होते है तथा पीड़ा से मुक्ति मिलती है.
अगर साधक कोई चिकित्सा ले रहा हो या औषधि ले रहा हो तो यह प्रयोग करते वक्त उसे बंद करने की ज़रूरत नहीं है.
साधक अपनी चिकित्सा के साथ ही साथ यह प्रयोग को कर सकता है इसमें किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं है.
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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