निच्छित श्री अप्सरा सिद्धी
सुंदर और बेहद आकर्षक.... सही मायनों में शायद यही है अप्सराओं की परिभाषा। हिन्दू पौराणिक ग्रंथों एवं कुछ बौद्ध शास्त्रों द्वारा भी अप्सराओं का ज़िक्र किया गया है। जिसके अनुसार ये काल्पनिक, परंतु नितांत रूपवती स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं। यूनानी ग्रंथों मे अप्सराओं को सामान्यत: 'निफ' नाम दिया गया है।
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इन अप्सराओं का कार्य स्वर्ग लोक में रहनी वाली आत्माओं एवं देवों का मनोरंजन करना था। वे उनके लिए नृत्य करती थीं, अपनी खूबसूरती से उन्हें प्रसन्न रखती थीं और जरूरत पड़ने पर वासना की पूर्ति भी करती थीं।
लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता, क्योंकि इनका उल्लेख अमूमन ऐतिहासिक दस्तावेजों में ही प्राप्त हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अलावा अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी अप्सराओं का उल्लेख पाया गया है। लेकिन इनके नाम काफी भिन्न हैं। चीनी धार्मिक दस्तावेजों में भी अप्सराओं का ज़िक्र किया गया है, लेकिन शुरुआत हम हिन्दू इतिहास से करेंगे।
हिन्दू इतिहास की बात करें ऋग्वेद के साथ-साथ महाभारत ग्रंथ में भी कई अप्सराओं का उल्लेख पाया गया है।
अप्सराएँ निच्छित सिद्ध हो सकती है परंतु इसके लिये साधक को सय्यम रखना आवश्यक है। जो साधक सय्यम खो देते है,उनको तो कई जन्मो तक अप्सराएँ सिद्ध नही हो सकती है। यहा आजकल कुछ लोग अप्सरा को प्रत्यक्ष करने का दावा करते,जिसे हम एक अफवा मानतें हैं।
क्योंकि आजकल के दुनिया में चाहे कोई कितना भी प्रेम करता हो या सुंदर लड़का हो,उसको किसी गलि की लड़की को अपनी ओर आकर्षित करनें मे 3-4 महिने लग जाते है और यहा लोग बात करते है एक देवकन्या जो अत्यंत सुंदर है उस अप्सरा को प्रत्यक्ष करने की ।
सोचो ऎसे में सुंदर अप्सरा को प्रत्यक्ष करने मे कितना समय लगेगा ? तंत्र शास्त्र मे 108 अप्सराओं का वर्णन मिलता है,जिनका आज के समय मे किसीको नाम तक पता नही चला और एक प्राचीन किताब मे लिखा हुआ है "जब तक 108 अप्सराओं की रजामंदी ना मिल जाए तब कोई भी एक विशेष अप्सरा किसी भी साधक के सामने प्रत्यक्ष नही हो सकती है" और इस बात का प्रमाण भी हमे देखने को मिलता है।
आप सभी जानते है,श्री हनुमानजी जी के माताजी का नाम "अंजनी" था,माता अंजना देवी स्वयं एक अप्सरा थी ।
देवताओ के कार्यपुर्ति हेतु उन्होंने धरती पर जन्म लिया था। उनका उद्देश्य सिर्फ हनुमानजी को जन्म देना ही नही बल्कि उनका पालन-पोषण करने के साथ साथ उन्हे अच्छे सन्स्कार से पुर्ण करना था। उनको धरती पर जन्म लेना .
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
विशेष -
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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