Thursday, August 22, 2019

सिद्ध योगिनी साधना







सिद्ध योगिनी साधना


तंत्र में सदा से योगिनीयो का अत्यंत महत्व रहा है.तंत्र अनुसार योगिनी आद्य शक्ति के सबसे निकट होती है.माँ योगिनियो को आदेश देती है और यही योगिनी शक्ति साधको के कार्य सिद्ध करती है.मात्र लोक में यही योगिनिया है जो माँ कि नित्य सेवा करती है.

योगिनी साधना से कई प्रकार कि सिद्धियाँ साधक को प्राप्त होती है.प्राचीन काल में जब तंत्र अपने चरम पर था तब योगिनी साधना अधिक कि जाती थी.परन्तु धीरे धीरे इनके साधको कि कमी होती गयी और आज ये साधनाये बहुत कम हो गयी है.

इसका मुख्य कारण है समाज में योगिनी साधना के प्रति अरुचि होना,तंत्र के नाम से ही भयभीत होना,तथा इसके जानकारो का अंतर्मुखी होना।इन्ही कारणो से योगिनी साधना लुप्त सी होती गयी.

परन्तु आज भी इनकी साधनाओ के जानकारो कि कमी नहीं है.आवश्यकता है कि हम उन्हें खोजे और इस अद्भूत ज्ञान कि रक्षा करे.मित्रो आज हम जिस योगिनी कि चर्चा कर रहे है वो है " सिद्ध योगिनी " कई स्थानो पर इन्हे सिद्धा योगिनी या सिद्धिदात्री योगिनी भी कहा गया है.ये सिद्दी देने वाली योगिनी है.

जिन साधको कि साधनाये सफल न होती हो,या पूर्ण सफलता न मिल रही हो.तो साधक को सिद्ध योगिनी कि साधना करनी चाहिए।इसके अलावा सिद्ध योगी कि साधना से साधक में सतत प्राण ऊर्जा बढ़ती जाती है.और साधना में सफलता के लिए प्राण ऊर्जा का अधिक महत्व होता है.

विशेषकर माँ शक्ति कि उपासना करने वाले साधको को तो सिद्ध योगिनी कि साधना करनी ही चाहिए,क्युकी योगिनी साधना के बाद भगवती कि कोई भी साधना कि जाये उसमे सफलता के अवसर बड़ जाते है.साथ ही इन योगिनी कि कृपा से साधक का गृहस्थ जीवन सुखमय हो जाता है.

जिन साधको के जीवन में अकारण निरंतर कष्ट आते रहते हो वे स्वतः इस साधना के करने से पलायन कर जाते है.आइये  जानते है इस साधना कि विधि।

आप ये साधना किसी भी कृष्ण पक्ष कि अष्टमी से आरम्भ कर सकते है.इसके अलावा किसी भी नवमी या शुक्रवार कि रात्रि भी उत्तम है इस साधना के लिए.

साधना का समय होगा रात्रि ११ के बाद का.आपके आसन तथा वस्त्र लाल होना आवश्यक है.इस साधना में सभी वस्तु लाल होना आवश्यक है.अब आप उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये और भूमि पर ही एक लाल वस्त्र बिछा दे.

वस्त्र पर कुमकुम से रंजीत अक्षत से एक मैथुन चक्र का निर्माण करे.इस चक्र के मध्य सिंदूर से रंजीत कर " दिव्याकर्षण गोलक " स्थापित करे  .

इसके बाद सर्व प्रथम गणपति तथा अपने गुरु  का पूजन करे.इसके बाद गोलक या सुपारी को योगिनी स्वरुप मानकर उसका पूजन करे,कुमकुम,हल्दी,कुमकुम मिश्रित अक्षत अर्पित करे,लाल पुष्प अर्पित करे.भोग में गुड का भोग अर्पित करे,साथ ही एक पात्र में अनार का रस अर्पित करे.

तील के तेल का दीपक प्रज्वलित करे.इसके बाद एक माला नवार्ण मंत्र कि करे.जाप में मूंगा माला का ही प्रयोग करना है या रुद्राक्ष माला ले.नवार्ण मंत्र कि एक माला सम्पन करने के बाद,एक माला निम्न मंत्र कि करे,

ॐ रं रुद्राय सिद्धेश्वराय नमः 

इसके बाद कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न लिखित मंत्र को एक एक करके पड़ते जाये और थोड़े थोड़े अक्षत गोलक पर अर्पित करते जाये।

ॐ ह्रीं सिद्धेश्वरी नमः 

ॐ ऐं ज्ञानेश्वरी नमः 

ॐ क्रीं योनि रूपाययै नमः 

ॐ ह्रीं क्रीं भ्रं भैरव रूपिणी नमः 

ॐ सिद्ध योगिनी शक्ति रूपाययै नमः 

इस क्रिया के पूर्ण हो जाने  के बाद आप निम्न मंत्र कि २१ माला जाप करे.

ॐ ह्रीं क्रीं सिद्धाययै सकल सिद्धि दात्री ह्रीं क्रीं नमः 

जब आपका २१ माला जाप पूर्ण हो जाये तब घी में अनार के दाने मिलाकर  १०८ आहुति अग्नि में प्रदान करे.ये सम्पूर्ण क्रिया आपको नित्य करनी होगी नो दिनों तक.

आहुति के समय मंत्र के अंत में स्वाहा  अवश्य लगाये।अंतिम दिवस आहुति पूर्ण होने के बाद एक पूरा अनार जमीन पर जोर से  पटक कर फोड़ दे और उसका रस अग्नि कुंड में निचोड़ कर अनार उसी कुंड में डाल दे.अनार फोड़ने से निचोड़ने तक सतत जोर जोर से बोलते रहे,

सिद्ध योगिनी प्रसन्न हो। 

साधना समाप्ति के बाद अगले दिन गोलक को धोकर साफ कपडे से पोछ ले और सुरक्षित रख ले.कपडे का विसर्जन कर दे.नित्य अर्पित किया गया अनार का रस और गुड साधक स्वयं ग्रहण करे.

सम्भव हो तो एक कन्या को भोजन करवाकर दक्षिणा दे,ये सम्भव न हो तो देवी मंदिर में दक्षिणा के साथ मिठाई का दान कर दे.इस प्रकार ये दिव्य साधना पूर्ण होती है.

निश्चय ही अगर साधना पूर्ण मनोभाव और समर्पण के साथ कि जाये तो साधक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगते है.और जीवन को एक नविन दिशा मिलती ही है.तो अब देर कैसी आज ही संकल्प ले और साधना के लिए आगे बड़े.

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

दक्षिणा शुल्क 1500 रू +डाक व्यय

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

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