Sunday, June 7, 2020

तारां संसारसारां त्रिभुवनजननीं सर्वसिद्धिप्रदात्रीं |







तारां संसारसारां त्रिभुवनजननीं सर्वसिद्धिप्रदात्रीं |


भगवती श्री महाविद्या तारा देवी के संदर्भ में कुछ भी लिखना या कहेना सूर्य को दीप दिखाने के सामान ही है. आदि काल से ही अपने साधको के मध्य देवी के हर एक स्वरुप का प्रचनल उनके स्नेह एवं प्रेम के कारण तंत्र क्षेत्र में वृहद रूप से विद्यमान है.

 देवी की साधना आदि ऋषि वसिष्ठ विश्वामित्र गोरक्षनाथ तथा भगवान श्री तथागत ने भी की थी. क्यों की भगवती तारा ही तारण करने वाली अर्थात भोग से मोक्ष की तरफ ले जानी वाली है.

 उन्ही को ही तंत्र ग्रंथो में शक्ति के मूल रूप में मानकर अभ्यर्थना की है की हे भगवती तारा आप ब्रह्मांडीय संसार अर्थात सभी भोग एवं मोक्ष कारक तत्त्व का सार है, आप ही त्रिभुवन की स्वामिनी जन्मदात्री है तथा आपके माध्यम से ही सर्व सिद्धि की प्राप्ति होती है. 

और इसी लिए देवी की साधना सभी तंत्र मत्तो में सामान रूप से होती रही है. देवी से सबंधित कई प्रकार के प्रयोग एवं अनुष्ठान आदि प्रसिद्द है लेकिन गुप्त रूप से भी कई ऐसे विधान है जो की सिर्फ सिद्धो के मध्य प्रचलित रहते है. 

ऐसे ही कई विधान देवी के पारद विग्रह के माध्यम से संपन्न किये जाते है.

 आज हमारे कई भाई बहेनो के पास यह अति दुर्लभ ‘पारद तारा’ विग्रह विद्यमान है जो की आप सब ने जिस तीव्रता एवं उत्साह के साथ स्वीकार किया था. 

इसी विग्रह के सबंध में कई दिव्य प्रयोग आप सब के मध्य रखने के लिए बराबर प्रयास किया लेकिन कई प्रकार की योजना में व्यस्तता की वजह से यह प्रयोग आप से के मध्य प्रस्तुत करने में विलम्ब होता रहा है, कुछ दिन पूर्व ही इस विग्रह के माध्यम से संपन्न होने वाला एक अद्भुत तारा विधान प्रस्तुत किया गया था, अब इसी कड़ी में और दो विशेष प्रयोगों को आप सब के मध्य रखा जा रहा है जिनमे आकस्मिक धनप्राप्ति से सबंधित भगवती तारा प्रयोग एवं नीलतारा मेधा सरस्वती प्रयोग शामिल है.

 यह दोनों अद्भुत एवं तीव्र विधान है जो की साधक को शिघ्रातीशीघ्र फल प्रदान करने में समर्थ है. विधान सहज होने के कारण कोई भी साधक इसे संपन्न कर सकता है. आशा है की निश्चय ही साधकगण इन देव दुर्लभ प्रयोगों से लाभ की प्राप्ति करेंगे.

आकस्मिक धन प्राप्ति भगवती तारा प्रयोग –

प्रस्तूत प्रयोग आकस्मिक धन प्राप्ति से सबंधित भगवती तारा का विशेष प्रयोग है. इस प्रयोग को सम्प्पन करने पर साधक को विशेष धनलाभ की प्राप्ति होती है, वस्तुतः हमारे जीवन में हम कई प्रकार के दोषों के कारण एवं प्रारब्ध जन्य कारणों के कारण कई बार भोग लाभ की प्राप्ति से वंचित रहते है.

 एसी स्थिति में दीनता युक्त स्थिति से बाहर निकलने के लिए आदि काल से हमारे सिद्धो एवं ऋषियों ने भगवती तारा की साधना उपासना के सन्दर्भ में एक मत्त में स्वीकृति दी है.

 यूँ भगवती तारा को धनवर्षिणी, स्वर्णवर्षिणी आदि नामो से संबोधित किया गया है तो उसके पीछे यह तथ्य है की निश्चय ही देवी साधक की धन सबंधित सर्व अभिलाषा को पूर्ण करने में समर्थ है अगर प्राण प्रतिष्ठित पारद तारा विग्रह के सामने देवी के मूल मन्त्र को ही साधक पूर्ण समर्पण से युक्त हो कर जाप कर ले तो सभी समस्याओ से उसे मुक्ति मिलती है यह सिद्धो का कथन है.

 फिर भी कई बार विशेष प्रयोग आदि से भी लाभ प्राप्ति के लिए साधक प्रयत्न कर सकता है. देवी के पारद विग्रह से सबंध में सिद्धो के मध्य गुप्त रूप से प्रचलित जो प्रयोग है उनमे धन प्राप्ति के विशेष एवं उच्चकोटि के प्रयोग शामिल है. लेकिन इनमे से तीव्र एवं गृहस्थ साधको के लिए उपयुक्त विधान निम्न रूप से है.

 यह विधान सहज है एवं साधक अपने घर में यह विधान कर सकता है. साथ ही साथ यह प्रयोग अल्प मन्त्र जाप एवं साधना काल की अवधि में भी राहत है क्यों की आज के युग में सभी साधको के लिए मंत्रो के पूर्ण अनुष्ठान करना संभव नहीं है अतः इस प्रकार के दुर्लभ प्रयोग को प्रथम बार यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है. 

इस प्रयोग को पूर्ण करने पर साधक को अपनी समस्या में राहत मिलती है, साधक अपने जीवन में उन्नति को प्राप्त करता है, धन प्राप्ति के नूत नविन स्त्रोत उसके सामने आते रहते है या फिर देवी नाना प्रकार से उसकी सहायता करती रहती है.

यह प्रयोग साधक किसी भी शुभ दिन शुरू कर सकता है. साधक को यह प्रयोग रात्री काल में ही संपन्न करना चाहिए.

साधक को स्नान कर साधना को शुरू करना चाहिए. साधक लाल रंग के वस्त्र को धारण करे तथा लाल रंग के आसन पर बैठे. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए.

साधक प्रथम गुरुपूजन करे तथा गुरु मन्त्र का जाप करे. इसके बाद साधक गणपति एवं भैरव देव का पंचोपचार पूजन करे. अगर साधक पंचोपचार पूजन न कर पाए तो साधक को मानसिक पूजन करना चाहिए.

साधक अपने सामने ‘पारद तारा’ विग्रह को स्थापित करे तथा निम्न रूप से उसका पूजन करे.

ॐ श्रीं स्त्रीं गन्धं समर्पयामि |
ॐ श्रीं स्त्रीं पुष्पं समर्पयामि |
ॐ श्रीं स्त्रीं धूपं आध्रापयामि |
ॐ श्रीं स्त्रीं दीपं दर्शयामि |
ॐ श्रीं स्त्रीं नैवेद्यं निवेदयामि |

साधक को पूजन में तेल का दीपक लगाना चाहिए तथा भोग के रूपमें कोई भी फल या स्वयं के हाथ से बनी हुई मिठाई अर्पित करे. इसके बाद साधक निम्न रूप से न्यास करे. इसके अलावा इस प्रयोग के लिए साधक देवी विग्रह का अभिषेक शहद से करे.

करन्यास

ॐ श्रीं स्त्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ॐ महापद्मे तर्जनीभ्यां नमः
ॐ पद्मवासिनी मध्यमाभ्यां नमः
ॐ द्रव्यसिद्धिं अनामिकाभ्यां नमः
ॐ स्त्रीं श्रीं कनिष्टकाभ्यां नमः
ॐ हूं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

हृदयादिन्यास

ॐ श्रीं स्त्रीं हृदयाय नमः
ॐ महापद्मे शिरसे स्वाहा
ॐ पद्मवासिनी शिखायै वषट्
ॐ द्रव्यसिद्धिं कवचाय हूं
ॐ स्त्रीं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ हूं फट अस्त्राय फट्

न्यास के बाद साधक को देवी तारा का ध्यान करना है.
ध्यायेत कोटि दिवाकरद्युति निभां बालेन्दु युक् शेखरां
रक्ताङ्गी रसनां सुरक्त वसनांपूर्णेन्दु बिम्बाननाम्
पाशं कर्त्रि महाकुशादि दधतीं दोर्भिश्चतुर्भिर्युतां
नाना भूषण भूषितां भगवतीं तारां जगत तारिणीं 
     
इस प्रकार ध्यान के बाद साधक देवी के निम्न मन्त्र की 31 माला मन्त्र जाप करे. 

साधक यह जाप शक्ति माला, मूंगामाला से या तारा माल्य से करे तो उत्तम है.

 अगर यह कोई भी माला उपलब्ध न हो तो साधक को स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला से जाप करना चाहिए.

ॐ श्रीं स्त्रीं महापद्मे पद्मवासिनी द्रव्यसिद्धिं स्त्रीं श्रीं हूं फट

(OM SHREENG STREEM MAHAAPADME PADMAVAASINI DRAVYASIDDHIM STREEM SHREENG HOOM PHAT)

जाप पूर्ण होने पर साधक मन्त्र जाप को देवी के चरणों में योनीमुद्रा के साथ प्रणाम कर समर्पित कर दे.

ॐ गुह्याति गुह्यगोप्ता त्वं गृहाणाऽस्मत कृतं जपं सिद्धिर्भवतु मे देवि! तत् प्रसादाना महेश्वरी||

साधक यह क्रम 11 दिन तक करे.

 11 दिन   जाप पूर्ण होने पर साधक शहद से इसी मन्त्र की १०८ आहुति अग्नि में समर्पित करे.

 इस प्रकार यह प्रयोग 11 दिन में पूर्ण होता है. साधक की धनअभिलाषा की पूर्ति होती है.

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

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(रजि.)

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