इच्छित व्यक्ति स्तम्भनं प्रयोग
घात प्रतिघात तो जीवन का खासकर आज के , तो एक अंग वह भी आवश्यक बन गयी हैं वह समय कहीं कोसों दूर चला गया जब लोग सामने चुनौती दे कर लड़ना पसंद करते थे .
अब तो गुप्त रूप से आपको नुक्सान पहुचना ही एक मात्र मकसद रह गया हैं, यूँ तो शास्त्रों मे लोगों की अनेक प्रकार की श्रेणियाँ उल्लेखित हैं . उनमे से कुछ ये भी हैं की अकारण ही दूसरे को परेशां करने वाले ...
किसी की जमीन पर या किसी को सिर्फ कुछ धन के लिए नुक्सान पहुचने वाले . या आपकी उन्नति से जल कर आपके लिए तरह तरह के षड्यंत्र का निर्माण करने वाले .
तंत्र क्षेत्र का साधक इन सभी समस्यायों को कैसे निपटा जाये यह भली भांति जानता हैं पर जानने और करने मे कोसो की दुरी होती हैं ,षट्कर्म मे से एक कर्म स्तम्भंन्न भी हैं और स्तम्भनं की प्रमुख देवी भगवती बल्गामुखी के स्वरुप से कौन नही परिचित होगा , जिसे कोई भी उपाय ना सूझे तो विधिवत ज्ञान ले कर इस विद्या का प्रयोग अपने रक्षार्थ करें निश्चय ही उसे लाभ होगा .
पर न तो इस विद्या का ज्ञान देने वाले और न ही उचित प्रकार से प्रयोग करने वाले आज प्राप्त हैं .और् सबसे बड़ी समस्या यह हैं की इन प्रयोगों को करने के लिए कैसे समय निकाला जाए .आज समय की कितनी कमी हैं यह तो हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं ही .
साधना क्षेत्र मे दोनों तरह के विधान हैं लंबे समय वाले और कम समय वाले भी ..साधारणतः यह कहा जाता हैं की सबसे पहले कम समय वाले विधानों की तरफ गंभीरता से देखा जाना चाहिये और जब परिणाम उतने अनुकूल ना हो जितनी आवशयकता हैं तब बृहद साधना पर ध्यान दे यह उचित भी है क्योंकि जहाँ सुई का काम हो वहां तलवार की क्या उपयोगिता ..
और तंत्र मंत्र के आधारमे एक महत्वपूर्ण अंग या विज्ञानं हैं यन्त्र विज्ञानं ..अभी भी इसका एक अंश मात्र भी सामने नही आया हैं . एक से एक अद्भुत गोपनीय और दाँतों तले अंगुली दवा लेने वाले रहस्यों से ओत प्रोत रहा हैं यह विज्ञानं.
हमारे द्वारा अनेक प्रयोग जो दिए जाते रहे हैं वह अनेको मनिशियों ,तंत्र आचार्यों और उच्च तांत्रिक ग्रंथो मे बहुत प्रशंषित रहे हैं और सैकडो ने उनके प्रयोग किये हैं और लाभ भी उठाया हैं , आवश्यकता बस इस बात की हैं की यदि समय हो तो क्यों न इन प्रयोगों की करके भी देखा जाये जो अनुभूत और सटीक रहे हैं .
इन सरलतम विधानों का अपना एक महत्त्व हैं.इस यन्त्र का निर्माण करें .
· किसी भी शुभ दिन प्रातः काल मे कर सकते हैं .
· यन्त्र निर्माण के लिए अनार या जो भी उचित लकड़ी प्राप्त हो उसका उपयोग कर सकते हैं .
· यन्त्र लेखन मे स्याही सिर्फ कुकुम और गोरोचन को मिलाकर बना ना हैं .
· वस्त्र पीले और आसन का रंग पीला हो तो कहीं जयादा उचित होगा .
· प्रयोग के शुरुआत मे संकल्प ले .
· यह ध्यान रखे की यन्त्र के बीच मे उस व्यक्ति का नाम लिखे जिसने आपको परेशां कर् रखा हो
· यन्त्र निर्माण मतलब उस व्यक्ति का नाम लिखने के बाद पुरे एक दिन इस यंत्र को एक मिटटी के वर्तन मे रखना हैं और धूप दीप और नैवेद्य अर्पित करना हैं .
· बाद मे मतलब दूसरे दिन इसके ऊपर (मिटटी के वर्तन) जिसमे यह यन्त्र निर्माण के बाद रखा हैं किसी अन्य मिटटी की प्लेट उसके ऊपर रख दे और अच्छी तरह से इस पात्र कोकिसी कपडे से बाँध कर .किसी दूर निर्जन स्थान पर रख दे .
ऐसा करने से वह व्यक्ति फिर आपके लिए कोई हानि का रक योजना नही बना पाता हैं .
इसके बाद गुरुजी का पूजन और गुरू मंत्र का जप यथाशक्ति करे औरसफलता के लिए प्रार्थना करें ...
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें
महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान अनुसंधान संस्थान
महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट
(रजि.)
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