।।परासक्त सहोदरी।।
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भाग्येशे मिथुनांशस्थे नवमे राहु संस्थिते
निशाकरेशसंदृष्टे परासक्ता तु सोदरी।।
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अर्थात मकर लग्न में नवम भाव का स्वामी बुध मिथुन नवांश हो और राहु नवम भाव में तथा चंद्र तृतीय में तो छोटी बहिन व्यभिचारिणी होती है।
छोटी बहिन को व्यभिचारिणी बनाने वाली तीन बातें निम्न हैं।
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1-नवमेश की मिथुन नवांश मे स्थिति। मिथुन शब्द का अर्थ ही बताता है कि इस राशि का मैथुन क्रिया से घनिष्ठ संबंध है।
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2-राहु म्लेच्छ है ही।यह ग्रह इसलिए अन्यों से , परों से मेल करवाता है।यहां चूंकि यह ग्रह तृतीय ( छोटी बहिन) से सप्तम भाव में स्थित है, यह छोटी बहिन की गुप्त इन्द्रिय का संसर्ग अन्यों से करवाता है।
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3-चन्द्र की तृतीय स्थान में स्थिति का यह अर्थ होगा कि जो कुछ भी फलादेश हम तृतीय भाव संबंधी कहेंगे वह छोटी बहिन की लग्न से भी संबंधित होगा और उस बहिन की चंद्र लग्न से भी।अतः इस फलादेश में एक निश्चय और दृढ़ता होगी।
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राजगुरु जी
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