चमत्कारिक विद्याएं, चौंक जाएंगे आप
सम्मोहन विद्या
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किसी भी विद्या या ज्ञान को सिखने के लिए संकल्प और अभ्यास की जरूरत होती है। संकल्पशून्य मनुष्य मृत व्यक्ति के समान है। दुनिया रहस्य और रोमांच से भरी हुई है। यहां कई बातें सत्य है तो कई बातों के संबंध में कोई तथ्य नहीं मिलता। लोग अक्सर ऐसी ही रहस्य और रोमांच की बातों के पिछे भागते रहते हैं जिनके सत्य होने में संदेह होता है। हालांकि फिर भी लोग उन पर विश्वास करते हैं।
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सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता रहा है। सम्मोहन का अर्थ आमतौर पर वशीकरण से लगाया जाता है। वशीकरण अर्थात किसी को वश में करने की विद्या, जबकि यह सम्मोहन की प्रतिष्ठा को गिराने वाली बात है।
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मन के कई स्तर होते हैं। उनमें से एक है आदिम आत्म चेतन मन। आदिम आत्म चेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। यह मन हमें आने वाले खतरे या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है।
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यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन छह माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते है। उक्त मन को साधना ही सम्मोहन है।
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यह मन आपकी हर तरह की मदद करने के लिए तैयार है, बशर्ते आप इसके प्रति समर्पित हों। यह किसी के भी अतीत और भविष्य को जानने की क्षमता रखता है। आपके साथ घटने वाली घटनाओं के प्रति आपको सजग कर देगा, जिस कारण आप उक्त घटना को टालने के उपाय खोज लेंगे। आप स्वयं की ही नहीं दूसरों की बीमारी दूर करने की क्षमता भी हासिल कर सकते हैं।
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सम्मोहन द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण (टेलीपैथिक), दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना और दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है।
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शरीर से बाहर निकलना : शरीर से बाहर निकलर कर बाहर घुमना फिरना और पुन: शरीर में आ जाना यह सचमुच रोमांचकारी अनुभव हो सकता है लेकिन इसमें जान जाने के खतरें भी बने रहते हैं यदि इस विद्या की पूर्ण जानकारी न हो तो।
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भारत में बहुत से साधु संतों के किस्से पढ़ने को मिलते हैं जो अपने शरीर से बाहर निकलकर पल भर में कहीं भी उपस्थित होकर लोगों को चमत्कृत कर देते थे। हालांकि ऐसे वह किसी विशेष कार्य से ही करते थे।
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माना जाता है कि इस विद्या को सिखने के लिए यम, नियम, प्राणायम और ध्यान का पालन करने के बाद योगनिंद्रा काल में शरीर से बाहर निकला जाता है। जब ध्यान की अवस्था गहराने लगे तब योगनिंद्रा काल में शरी से बाहर निकला जा सकता है। इस दौरान यह अहसास होता रहेगा की आपका स्थूल शरीर सो रहा है। यह प्रारंभ में अर्धस्वप्न जैसी अवस्था होगी।*
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बाहर निकलने से पहले एक सुरक्षित स्थान पर सोया जाता है जहां शरीर की सुरक्षा हो सके। जहां शरीर को कोई छुए नहीं। आप चौकी भी बांध सकते हैं। इसके आलवा सोने की स्थिति भी निर्धारित होती है। जब व्यक्ति अपने शरीर से बाहर निकलता है तो वह सूक्ष्म शरीर से विचरण करता है। माना जाता है कि ऐसे में उसका सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर की नाभि से जुड़ा रहता है।*
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वेद अनुसार स्थूल शरीर की सत्ता को अन्नमय कोष कहते हैं और सूक्ष्म शरीर की सत्ता को प्राणमय और मनोमय कोष कहते हैं। जब ध्यान और योग से संपन्न चेतना अपनी चेष्टा से स्थूल शरीर से मनोमय कोष में प्रवेशकर करता है तब वह पूर्णरूप से सूक्ष्म शरीर से जुड़कर इस संसार में कहीं भी वायु मार्ग से विचरण कर है ।
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चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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