तंत्र की एक गुप्त विधा पुतली विधा.........
वर्तमान में तंत्र विधा में बहूत से रहस्य मिलते है । जीसका अनुमान लगाना हर मनुष्य के बस में नही है । कही चौरास्ते पर हडी पडी रहती है, तो कही पर श्रृंगार, दक्षिणा और मिठाई पडी मिलती है ।
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कही घर के आगे सिंदूर और तेल मिलते है, तो कही पर लौंग और पतासा मिलता है । कही कही पर घर के आस पास व जगलों मै कपडे से बने पुतले भी प्राय मिलते है । वो पुतला प्राय काला कपडा से बना होता है । और उस पुतले मै बहूत सारी सुई चूभी होती है । आखिर ये क्या है और यैसा करने का अभिप्राय क्या है ? यैसी गुडीया पर कौन सी तंत्र साधनायें होती है ?
जो ज्ञात ना हो, वह रहस्य होता है । पर घर व जगलों मै आसपास यैसा पुलते साधारण व्यक्ति देखले तो वो डर से मर जाता है । सूत्रों एवं नियमों का ज्ञान न होने के कारण आधुनिक वैज्ञानिक जगत इसे अंधी आस्था कहता है । और सामान्य आदमी यिने तन्त्रविधा समझता है ।
सामान्य तांत्रिकों और तंत्र साधकों को इस विद्या की रहस्यमयी बातों का ज्ञात नहीं होता है । इसलिए तामझाम दिखाकर सिधेसाधे मनुष्यको भयादोहन करते है । उनको ठगते है । लुटते है ।
यह विद्या इतनी सरल नहीं है । सभी कुछ जानने के बाद भी इसे करने के लिए जिस साहस और विश्वास की जरूरत होती है । वह सामान्य साधकों के वश की बात नहीं है । तांत्रिक क्षेत्र के विस्तृत ज्ञान की बहूत आवश्यकता होती है ।
यह एक अविगुप्त विद्या है और ये भूतेश्वर साधु, महाकाल, देवी एवं अघोरपंथ के गुप्त साधकों के पास पाई जाती है ।
इस विधा को पुतली विद्या कहते है । इसी प्रकार की एक विद्या अफ्रीका में भी ‘वुडु विद्या’ के नाम से अति चर्चा में रही है । पर उसकी प्रकिया से ये पुतली विधि बहूत मिलती जूलती है । यह विधी अघोरपंथ की एक विधा है । जो इस प्रक्रिया को सिद्ध करती है । यह एक गुप्त और रहस्यमय विद्या है ।
इससे दूर बैठकर किसी भी स्त्री-पुरुष के गंभीर लाइलाज रोगों की भी चिकित्सा की जा सकती है । और इसका उपयोग वशीकरण, मोहन, स्तम्भन से लेकर मारण कार्यों तक किया जा सकता है ।
पहला चरण –
शत्रु के नक्षत्र का ज्ञान करना । दूसरा चरण – साध्य के नक्षत्र वृक्ष, उसके बाल या अधोवस्त्र, काली मिट्टी का सात बार जल में घोलकर कपड़े से छने पानी में बैठी मिट्टी, चिता या साध्य के प्रयोग की वस्तु को जलाकर की गयी राख, नमक (सेंधा), सोंठ, पीपल, काली मिर्च, रसोई की कालिख, लहसुन, हिंग, गेरू, पीली सरसों, काली सरसों, ईख का रस या गुड़, नीम की छाल का पिष्ठ आदि वस्तुओं का कर्म के अनुसार चयन किया जाता है । इसके बाद उड़द के आटे से पुतली का निर्माण होता है। बालों से बाल एवं रोमों की स्थापना की स्थापना की जाती है ।
तीसरा चरण –
यह पुतली नक्षत्रों के चारों चरणों के अनुसार अलग अलग होती है यानी 27×4 = 108 प्रकार की। इन सबकीलम्बाई अलग – अलग होती है । ये जानकारी (गुप्त) रखिगयी है ।
चौथा चरण –
पुतली की जो भी लम्बाई हो, उसके सिर से गर्दन का हिस्सा भाग, कमर से कंधों अक हिस्सा – 4 भाग एवं कमर से नीचे का हिस्सा उभाग होता है ।
सबसे कठिन इसकी विधि प्रकिया है । राध्य की लग्न या चन्द्र राशि, से अशुभ कर्मों के लिए अष्टम और शुभ कर्मों के लिए पंचम भाव की स्थिति का प्रयोग किया जाता है । अशुभ कर्मों में जब अष्टम भाव (लग्न राशि में) दुर्बल और पंचम भाव बली होता है । इसके अतिरक्ति समयकाल की राशि को भी इसी के अनुरूप चुना जाता है ।
प्रत्येक स्त्री/पुरुष के शरीर में अमृत स्थान एवं विष- स्थान होते हैं । इनकी गति और व्याप्ति भी महीने के 30 दिन में चन्द्र तिथि के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है । पुरुष एवं नारी में यह स्थिति विपरीत क्रम में होती है । कर्म के अनुसार इसका भी चयन करना होता है ।
इसके बाद इस पुतली की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है । इसकी एक अलग प्रकिया है ।
इसके बाद क्रियात्मक और हवन आदि प्राण प्रतिष्ठा के बाद वशीकरण , आकर्षण, विद्वेषण, स्तम्भन, उच्चाटन और मारण की क्रियाएं शुभाशुभ भेद से तिथि, आकल, राशि-साध्य का शुभाशुभ काल आदि देखकर किया जाता है । ज्योतिष के अनुसार विषयोग , मृत्यु योग, शूल योग, कंटक योग आदि अशुभ और इसी प्रकार शुभ योगों का चयन करके क्रिया की जाती है ।
यह एक जटिल तंत्र क्रिया है । इन सारी क्रियाओं को करने में महीनों का वक्त लगता है ।
किसी भी व्यक्ति के बाल, दांत आदि शरीर से अलग होकर तुरंत निष्क्रिय नहीं होते । ये 90 दिनों तक तो अपने आप ऊर्जा का उत्पादन करते रहते है और यह ऊर्जा उस व्यक्ति के शरीर की ऊर्जा के पॉजिटिव होती है । इसका रिसीवर केवल उस व्यक्ति का शरीर होता है । पुतली को छेदने, काटने , तपाने , द्रव्य में डालने आदि का प्रभाव उस स्त्री/ पुरुष पर होता है शक्तिशाली होता है । वह पृथ्वी पर कहीं भी हो, उसको प्रभावित करती है ।
यदि कोई व्यक्ति स्त्री या पुरुष इससे पीड़ित है । कहीं कोई ऐसी तन्त्र क्रिया किया करता है, तो उसे ढूंढना और पुतली को नष्ट करना असम्भव है । इसके द्वारा तेज दर्द, सुई चुभने या भाला मारने जैसी पीड़ा, काटने – चीरने जैसी पीड़ा, ज्वर, उन्माद आदि भयानक रूप ले लेता है । जब तक पुतली पर अत्याचार होता रहेगा, पीड़ित भी पीड़ित रहेगा ।
कोई उपचार कारगर नहीं होगा । जो लोग इस विद्या को जानते मिले, उनका निदान एक मात्र था, पुतली ढूंढ कर नष्ट करो । इसका और कोई उपाय नही है ।
इस मै बहुत सी बात गुप्त रही गयी है । इस बात को ध्यान में रखकर गुप्त रखी गयी है कि कोही कीसी पर गलत ना करे ।
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