Friday, June 30, 2023

जन्मकुंडली के ये 10 घातक योग, तुरंत करें ये उपाय


 



जन्मकुंडली के ये 10 घातक योग, तुरंत करें ये उपाय

 


जन्म कुंडली में 2 या उससे ज्यादा ग्रहों की युति, दृष्टि, भाव आदि के मेल से योग का निर्माण होता है। ग्रहों के योगों को ज्योतिष फलादेश का आधार माना गया है।


 अशुभ योग के कारण व्यक्ति को जिंदगीभर दु:ख झेलना पड़ता है। आओ जानते हैं कि कौन-कौन से अशुभ योग होते हैं और क्या है उनका निवारण?


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1. चांडाल योग


* कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु या केतु का होना या दृष्टि आदि होना चांडाल योग बनाता है।


* इस योग का बुरा असर शिक्षा, धन और चरित्र पर होता है। जातक बड़े-बुजुर्गों का निरादर करता है और उसे पेट एवं श्वास के रोग हो सकते हैं।


* इस योग के निवारण हेतु उत्तम चरित्र रखकर पीली वस्तुओं का दान करें। माथे पर केसर, हल्दी या चंदन का तिलक लगाएं।


* संभव हो तो एक समय ही भोजन करें और भोजन में बेसन का उपयोग करें। अन्यथश प्रति गुरुवार को कठिन व्रत रखें।

 

 

2. अल्पायु योग


* जब जातक की कुंडली में चन्द्र ग्रह पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। 


* अल्पायु योग में जातक के जीवन पर हमेशा हमेशा संकट मंडराता रहता है, ऐसे में खानपान और व्यवहार में सावधानी रखनी चाहिए।


* अल्पायु योग के निदान के लिए प्रतिदिन हनुमान चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र पढ़ना चाहिए और जातक को हर तरह के बुरे कार्यों से दूर रहना चाहिए।

 

 

3. ग्रहण योग


* ग्रहण योग मुख्यत: 2 प्रकार के होते हैं- सूर्य और चन्द्र ग्रहण। यदि चन्द्रमा पाप ग्रह राहु या केतु के साथ बैठे हों तो चन्द्रग्रहण और सूर्य के साथ राहु हो तो सुर्यग्रहण होता है।


* चन्द्रग्रहण से मानसिक पीड़ा और माता को हानि पहुंचती है। सूर्यग्रहण से व्यक्ति कभी भी जीवन में स्टेबल नहीं हो पाता है, हड्डियां कमजोर हो जाती है, पिता से सुख भी नहीं मिलता।


* ऐसी स्थिति में 6 नारियल अपने सिर पर से वार कर जल में प्रवाहित करें। आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। सूर्य को जल चढ़ाएं। एकादशी और रविवार का व्रत रखें। दाढ़ी और चोटी न रखें।


4. वैधव्य योग


*वैधव्य योग बनने की कई स्थितियां हैं। वैधव्य योग का अर्थ है विधवा हो जाना। सप्तम भाव का स्वामी मंगल होने व शनि की तृतीय, सप्तम या दशम दृष्टि पड़ने से भी वैधव्य योग बनता है। सप्तमेश का संबंध शनि, मंगल से बनता हो व सप्तमेश निर्बल हो तो वैधव्य का योग बनता है।


*जातिका को विवाह के 5 साल तक मंगला गौरी का पूजन करना चाहिए, विवाह पूर्व कुंभ विवाह करना चाहिए और यदि विवाह होने के बाद इस योग का पता चलता है तो दोनों को मंगल और शनि के उपाय करना चाहिए।


5. दारिद्रय योग


*यदि किसी जन्म कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दारिद्रय योग बन जाता है।


*दारिद्रय योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवनभर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।

 

6. षड्यंत्र योग


*यदि लग्नेश 8वें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है।


*जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग होता है वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है। इससे उसे धन-संपत्ति व मान-सम्मान आदि का नुकसान उठाना पड़ सकता है।


*इस दोष को शांत करने के लिए प्रत्येक सोमवार भगवान शिव और शिव परिवार की पूजा करनी चाहिए। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करते रहना चाहिए।

 


 

7. कुज योग


*यदि किसी कुंडली में मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं।


*जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो, उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधू की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।


*विवाह होने के बाद इस योग का पता चला है तो पीपल और वटवृक्ष में नियमित जल अर्पित करें। मंगल के जाप या पूजा करवाएं। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।


8. केमद्रुम योग


*यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा के अगले और पिछले दोनों ही घरों में कोई ग्रह न हो तो या कुंडली में जब चन्द्रमा द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चन्द्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है।


*इस योग के चलते जातक जीवनभर धन की कमी, रोग, संकट, वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाई आदि समस्याओं से जूझता रहता है।


*इस योग के निदान हेतु प्रति शुक्रवार को लाल गुलाब के पुष्प से गणेश और महालक्ष्मी का पूजन करें। मिश्री का भोग लगाएं। चन्द्र से संबंधित वस्तुओं का दान करें।

 

 

9. अंगारक योग


*यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु या केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो अंगारक योग का निर्माण हो जाता है।


*इस योग के कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा ऐसा जातक अपने भाई, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ कभी भी अच्छे संबंध नहीं रखता। उसका कोई कार्य शांतिपूर्वक नहीं निपटता।


*इसके निदान हेतु प्रतिदिन हनुमानजी की उपासना करें। मंगलवार के दिन लाल गाय को गुड़ और प्रतिदिन पक्षियों को गेहूं या दाना आदि डालें। अंगारक दोष निवारण यंत्री भी स्थापित कर सकते हैं।

 

 

10.विष योग :


*शनि और चंद्र की युति या शनि की चंद्र पर दृष्टि से विष योग बनता है। कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चंद्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र में हो अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दूसरे को देख रहे हों तो तब भी विष योग बनता है।


 यदि 8वें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक लग्न में हो तो भी यह योग बनता है।


*इस योग से जातक को जिंदगीभर कई प्रकार की विष के समान कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पूर्ण विष योग माता को भी पीड़ित करता है।


*इस योग के निदान हेतु संकटमोचक हनुमानजी की उपासना करें और प्रति शनिवार को छाया दान करते रहें। सोमवार को शिव की आराधना करें या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।


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जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 


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"माँ तारा":-(ममतामयी माँ सबको तारने वाली)


 


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क्या आप भी साधना करना चाहते हैं? तो आज ही अपने गुरु से सम्पर्क कर किसी साधना की शुरुवात करें। Tara MahaVidya - करोडपति बनना है आसान 


यह विद्या साधकों को बुद्धि, ज्ञान, शक्ति, जय एवं श्री देने वाली तथा भय, मोह एवं अपमृत्यु का निवारण करने वाली मानी गयी हैं।  


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ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्ववस्थां गतोऽपि वा | य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि: || 

इस पानी को अपने उपर छिड्क ले


अचमन, स्थान शुद्धि, आदि करने के बाद गणपति और गुरु की पुजा शुरु करे। 


गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः । गुरु साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥ 


प्रत्यालीढ पदार्पितांगघ्रिशवहृद घोराट्टहासा परा,खडगेन्दीवरकर्तृं खर्परभुजा हूंकार-बीजोद-भवा खर्वानील विशालपिंगल जटा जूटैकनागैर्युता,जाड्य न्यस्य कपालिके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारास्वयम


सीधे हाथ मे जल लेकर कहे  - ‘ॐ अस्य श्रीतारांमन्त्रस्य अक्षोभ्यऋषिः बृहतीछन्दः तारादेवता ह्रीं बीजं हुं शक्तिः आत्मनोऽभीष्टसिद्धयर्थ तारामन्त्रजपे विनियोगः । जल छोड दे 


फिर करन्यास और अन्य न्यास को करने के बाद मे नीचे लिखा प्रक्रिया करे।


ऋष्यादिन्यास - 


‘ॐ अक्षोभ्यऋषये नमः शिरसि        

ॐ बृहतीछन्दसे नमः मुखे,

ॐ तारादेवतायै नमः हृदि,        

ॐ ह्रीं (हूँ) बीजाय नमः गुह्ये,

ॐ हूँ (फट्) शक्तये नमः पादयोः    

ॐ स्त्रीं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे


कराङ्गन्यास -    


ॐ ह्रां अङ्‌गुष्ठाभ्यां नमः,        

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्या नमः,

ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः,        

ॐ ह्रैं अनकामिकाभ्यां नमः,

ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः        

ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः, 


मुल मंत्र 


“ॐ ह्रीं स्त्री हुं फट” 


की 39 माला रोज करें।  घी के दीपक से आरती करें जो भी कर सकते हैं चाहे अम्बे की करें फिर नमस्कार करें और कहे। 


ॐ गुह्यातिगुह्या गोप्ती त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम,सिद्धिर्भवतु मे महादेवी त्वत प्रसादान्देवी 

मंत्र जप समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में ही सोयें।  


सभी सामन को पुजा वाले कपडे मे लपेट कर कलवा से बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें। । कुछ सिक्के भी पानी मे डाल दे। हाथ जोडकर घर आये किसी से बात ना करें और पीछे मुडकर ना देखे तो ज्यादा अच्छा हैं। वरना प्रभाव कम हो जाता हैं। घर पहुँचते ही साधना सिद्धि हो चुकी होगी। धन पाने के नये मार्ग स्वयं माँ खोलती जायेगी इसके अलावा आपके स्वास्थ, बुद्धि, वाणी का ध्यान रखेगी


साधना समाग्री दक्षिणा === 1500


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Wednesday, June 28, 2023

चारों तरफ से नाम मान सम्मान और पद प्रतिष्ठा प्राप्त होते हैं यदि आपके हाथों में मछली का निशान हो तो जाने अपने हाथों से क्या आप भी हैं भाग्यशाली ....


 


चारों तरफ से नाम मान सम्मान और पद प्रतिष्ठा प्राप्त होते हैं यदि आपके हाथों में मछली का निशान हो तो जाने अपने हाथों से क्या आप भी हैं भाग्यशाली ....


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हथेली में कई तरह की रेखाएं होती हैं। इनमें मुख्य रूप से जीवन, भाग्य, स्वास्थ्य, हृदय और धन संबंधी रेखाएं है। हथेली पर मौजूद धन रेखा से आपकी आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी। 


क्या आप अपनी कमाई से धनवान बनेंगे या कहीं से आपको अचानक धन की प्राप्ति होगी। आइए जानते हैं आपकी हथेली में धन की रेखा क्या कहती है।


हस्तरेखा


हथेली में धन रेखा जीवन रेखा की तरह हर व्यक्ति की हथेली में एक स्थान से शुरू नहीं होती है। हर व्यक्ति की हथेली में धन की रेखा अलग-अलग स्थानों से और अलग-अलग रेखाओं और पर्वतों से मिलकर बनी होती है। 


आपकी हथेली में सूर्य पर्वत, शुक्र पर्वत और गुरु पर्वत उठा हुआ है तो यह संकेत है कि आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी होगी और आप सुखी जीवन का आनंद लेंगे।


 हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार शुक्र पर्वत भौतिक सुख को दर्शाता है, गुरु पर्वत नेतृत्व क्षमता और सूर्य पर्वत मान-सम्मान और प्रसिद्धि को दर्शाता है।


हस्तरेखा: हथेली पर बना शुक्र पर्वत क्या-क्या देता है संकेत

हथेली के इस हिस्से में बना तिल दिलाता है विदेश यात्रा का योग


अगर हथेली में जीवन रेखा, भाग्य रेखा और मस्तिष्क रेखा से मिलकर Mआकृति बन रही है तो यह संकेत है कि आप 35 से 55 साल के बीच खूब धन कमाएंगे।


कुछ लोगों की हथेली में उनकी भाग्य रेखा ही धन की रेखा का काम करती है यानी यह धन का हाल बताती है। जिनकी हथेली में मणिबंध से निकलकर सीधी रेखा शनि पर्वत पर पहुंचती है उन्हें धन का लाभ अपने आप अचानक ही मिलता रहता है। 


हस्तरेखा


अगर आपकी हथेली में त्रिकोण का चिन्ह बन रहा है तो यह धन रेखा होती है। ऐसी रेखा होने का मतलब है कि आप एक नहीं कई स्रोतों से धन कमाएंगे।


अंगूठे के पास से निकलकर कोई रेखा बुध पर्वत यानी छोटी उंगली की जड़ तक पहुंचे तो इसका मतलब है कि आप अपने परिवार के सदस्यों से पैतृक संपत्ति से या किसी स्त्री के सहयोग से धन प्राप्त कर सकते हैं।


आपकी हथेली में भाग्य रेखा से निकलकर एक रेखा सूर्य पर्वत पर पहुंच रही है तो आप आर्थिक मामलों में भाग्यशाली होंगे। ऐसे लोग सामाजिक क्षेत्र में प्रतिष्ठित होते हैं।


अंगूठे से नीचे से रेखा निकलकर शनि पर्वत तक पहुंच रही है तो आपको व्यवसाय के बारे में सोचना चाहिए। ऐसे व्यक्ति व्यवसाय में खूब सफल होते हैं और इनकी हथेली में यह रेखा धन रेखा का काम करती है।


 और भी बहुत कुछ कहती है आपकी हस्तरेखा आप भी अपने जीवन से जुड़ा हुआ किसी भी प्रकार की जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या हस्तरेखा का पूर्ण विश्लेषण प्राप्त करना चाहते हैं तो संपर्क करें 


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भविष्य को एक ही ग्रह बदल सकता है,नवग्रह नही.


 



भविष्य को एक ही ग्रह बदल सकता है,नवग्रह नही.


आज बात ज्योतिष के विषय पर करते है और वैसे भी हमारे देश मे यह विषय प्राचीन है,यह एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही नये नये शोध होते रहते है । ज्योतिष शास्त्र एक अपूर्ण शास्त्र है और यह शास्त्र पूर्ण तरह से कभी भी लिखा नही जा सकता है ।


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मैं आज आपको यह लेख ग्रहों के नाम पर डराने हेतु नही लिख रहा हु,यह लेख आपको जीवन मे सहाय्यक है । हमेशा से मेरा एक लक्ष्य रहा है,मुझे अपने क्षेत्र में हमेशा नई नई खोज करने का अवसर प्राप्त हुआ और यह अवसर प्राप्त करने हेतु बहोत से विद्वानों की मुझे मदत मिली है । 


कोई भी ज्योतिषी आपको प्रैक्टिकल करके यह नही बता सकता के आपका कौनसा ग्रह आपको शुभ फल दे रहा है और कौनसा ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है? परंतु माँ भगवती की असीम कृपा से मैं आपको प्रैक्टिकली बता नही बल्कि दिखा सकता हु के आपका कौनसा ग्रह कुंडली मे शुभ और अशुभ फल दे रहा है । यह क्रिया तो आपको आमने-सामने बिठाकर दिखाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नही है और जो भी यह प्रैक्टिकल देखना चाहे वह व्यक्ति आकर मुझसे मिल सकते है ।


सभी लोग जानते है मैं सीधी बात करना पसंद करता हु,मुझे घुमा फिराकर बात करना अच्छा नही लगता । प्रैक्टिकल क्रिया से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति के जन्म विवरण की आवश्यकता नही होती है परंतु कुंडली के अध्ययन हेतु जन्म विवरण आवश्यक है ।


हमारा मुख्य धेय इस लेख का यही है के "ऐसा कौनसा ग्रह हमारे कुंडली मे है जिसका उपासना और उपाय हमारे जीवन को पूर्णतः बदल दे?" । कुंडली मे नव ग्रह होते है जो व्यक्ति के जीवन का आधार है अपितु उन्ही से हमारे भूत भविष्य वर्तमान को हम जान सकते है और उन्ही नवग्रहों में एक ग्रह ऐसा भी होता है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को शुभता में बदल सकता है ।


ज्योतिषविदों के अनुसार लगभग 144 प्रकार की कुंडलिया बनती है,लेकिन ज्यादातर ज्योतिषी चन्द्र और लग्न कुंडली को ज्यादा महत्व देते है और सर्वोत्तम सटीक फलादेश हेतु यही कुंडलिया महत्वपूर्ण होती है । नवग्रहों में उस एक ग्रह का अध्ययन करना जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को बदलकर हमे खुशिया प्रदान करे इसके लिए चन्द्र-सूर्य कुंडली से ज्यादा अन्य कुंडलियों का अध्ययन करना आवश्यक होता है । 


चंद्र और सूर्य कुंडली के साथ-साथ नवमांश कुंडली, वर्ग कुंडली, गोचर कुंडली के अध्ययन से हमे समझ मे आता है कि ऐसा कौनसा ग्रह कुंडली मे है जिसके मंत्र जाप करने के माध्यम से हमे जीवन मे उच्चता प्राप्त हो सकती है ।


जो व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए नवग्रहों में से उस एक ग्रह को अपने जीवन मे समर्पित होकर उनकी उपासना करना चाहते है उनको यह जानना अत्यधिक महत्वपूर्ण है के किसी एक ही ग्रह के उपाय और उपासना से जीवन को बेहतर बनाया जाए । 


आप किसी भी ज्योतिषी के पास जाओ तो वो लोग 2-3 ग्रह का उपाय बता देंगे और उससे भी कुछ फायदा नही हुआ तो कुछ नये उपाय किसी अन्य ग्रहों के बता देंगे परंतु मैं आपको आपकी कुण्डली को पाँच प्रकार से बनाकर सिर्फ एक ही ग्रह का उपाय,मंत्र और उपासना बताऊंगा जिससे जीवन मे फायदा ही होगा नुकसान नही ।


मुझसे किसी भी प्रकार का फलादेश जानने की इच्छा ना रखे क्योके मैं आपको 501/-रुपये दक्षिणा लेकर पाँच कुण्डलीयो का अध्ययन करके बता दूँगा के कौनसे ग्रह का जाप करने से आप जीवन के सभी कष्ट,बाधा,दोष को दूर करके सफलता प्राप्त कर सकते हो और मैं फलित ज्योतिष हेतु अन्य ज्योतिषविदों से ज्यादा दक्षिणा लेता हु इसलिए मुझसे कुंडली का फलित ना पूछे । मुझसे सिर्फ इतना ही जाने के कौनसे ग्रह का जाप-उपाय आपके लिए लाभदायक है ।


जिन्हें एक ग्रह के संबंध में जानना है जिस ग्रह के जाप-उपाय से कल्याण होगा वह व्यक्ति मेरे व्हाट्सएप पर अपना जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान के बारे में लिखकर भेजे और साथ मे 501/-रुपये धनराशि देने का बैंक स्लिप या paytm का स्क्रीनशॉट भेजिए ।


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 है और बैंक एकाउंट डिटेल्स आपको व्हाट्सएप पर दिया जाएगा । आपको ग्रह का मंत्र और उपाय भी दिया जाएगा,साथ में यह भी बताया जाएगा के जीवन मे यह उपाय कब तक करना है ।


बिना दक्षिणा लिए और दिए ज्योतिष के संबंध में जानना शुभ नही होता है,इसलिए मैं दक्षिणा लेने हेतु बाध्य हु इसलिए जो लोग दक्षिणा देने में असमर्थ हो वह लोग मुझे माफ़ कर दे परंतु ज्योतिषीय कार्य बिना दक्षिणा के संभव नही है इसलिए बहोत कम धनराशि रखी है ।


निशुल्क में कुछ भी बता भी दु तो आपको उसका कोई महत्व नही रहेगा,यह मैं भली भाति जानता हूं ।


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Tuesday, June 27, 2023

सुलामानी हकीक


 


सुलामानी हकीक 


वशिकरण और हर प्रकार के इलाज मे उपयोग होते है कुछ अदभुत रत्न


जन्मपत्री मे गृह दशा व हाथो की रेखा अच्छी होने पर भी कुछ व्यक्ति असहाय होकर कुछ कर नहीं पाते है व दिन प्रतिदिन आर्थिक, मानसिक, शारीरिक, घरेलू परेशानी बढ़ती जाती है. 


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ऐसा व्यक्ति का किसी भी कारण से नजर दोष तंत्र मंत्र ऊपरी हवा के प्रभाव मे आने से होता है. जब व्यक्ति तांत्रिक प्रभाव मे होता है तो उसे कुछ शारीरिक परेशानी होती है. जैसे.....


शरीर पर बिना चोट के नीले निशान होना 

सिर के पीछे वाले भाग मे दर्द रहना 

रात्रि मे बुरे / गंदे सपने दिखाई देना

व्यक्ति को गन्दा रहना अच्छा लगना 

बिना किसी कारण के घबराहट रहना

अपने आपसे खुद बात करना 


ज्योतिष उपाय...


ऐसे व्यक्तिओ को रामचरितमानस की चौपाई " मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक।।" का रोज जाप व एक सुलमानी हकीक रत्न धारण करना चाहिए.    


नोट : 


कुछ व्यक्ति तंत्र मंत्र प्रभाव को ढोंग समझते है, ऐसे व्यक्ति पीपल के पेड़ की छाँव मे रात्रि के समय पेशाब या लघु शंका करे, उन्हे तंत्र मंत्र का प्रभाव महसूस हो जाएगा.    


जन्मपत्री - 


हस्तरेखा सलाह व नजर दोष रत्न सुलेमानी हकीक कीमत  550/ -  वजन 11 रत्ती अपने घर पर डाक से मंगवाने के लिए, हमे फ़ोन करे. .


और ज्यादा जानकारी समाधान और उपाय या रत्न या किसी भी प्रकार की विधि या मंत्र प्राप्ति के लिए संपर्क करें और समाधान प्राप्त करें

 


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Monday, June 26, 2023

खोये प्यार को वापस पाने के टोटके


 



खोये प्यार को वापस पाने के टोटके ....


अगर आप पुरुष हैं और आप अपनी बिछड़ी हुई प्रेमिका को वापस पाना चाहते हैं तो इसके लिए मोहिनी सिद्धि काफी प्रभावकारी उपाय है। इसमें आपको कुछ विशेष क्रियाएं करनी होती हैं ।


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जब भी आप अपनी प्रेमिका से मिलने जाएं तो अपनी कमर में लाल धागे से सफेद आक की जड़ को बाँध लें जाएं, ध्यान रहे इसे कपड़ों के नीचे इस तरह बांधें कि आपकी प्रेमिका को दिखाई ना दे।


सफेद अपराजिता की जड़ को लेकर पीसें और इसमें गोरोचन मिला कर तिलक लगाएं, जब भी अपनी प्रेमिका से मिलें इस तिलक को लगा कर मिलें, इससे प्रेमिका के हृदय में दबा हुआ प्रेम जागृत हो उठता है।


प्रेमिका से मिलते समय कमर के निचले हिस्से में सहदेई की जड़ बाँध कर जाने से भी कम होता प्रेम बढ़ने लगता है।


यदि कभी मथुरा जाएं तो गोवर्धन परिक्रमा के दौरान रास्ते में पड़ने वाली मूँज की घास में अपने प्रियतम के नाम से एक गाँठ लगा दें, बिछड़ा प्रेम शीघ्र ही वापस मिल जाएगा।


शनिवार के दिन एक सुंदर पुतली बनाएं तथा अपने प्रियतम का नाम उसपर लिखकर उसे दिखाएं, ऐसा करने से उसके हृदय में आपके प्रति प्रेम का उद्भव होगा।


और भी बहुत सारे प्रयोग विधि है हमारे ज्योतिष शास्त्र में यदि आप भी अपने जीवन में कुछ करना चाहते हैं कुछ पाना चाहते हैं तो संपर्क करें और खास विधि प्रयोग करके अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त करें 


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महायोगी  राजगुरु जी  《  महायोगी अघोराचार्य   》


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उर्वशी साधना -


 



उर्वशी साधना - 


सौन्दर्य, सुख प्रेम की पूर्णता हेतु


रम्भा, उर्वशी और मेनका तो देवताओं की अप्सराएं रही हैं, और प्रत्येक देवता इन्हे प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहा है। यदि इन अप्सराओं को देवता प्राप्त करने के लिए इच्छुक रहे हैं, तो मनुष्य भी इन्हे प्रेमिका रूप में प्राप्त कर सकते हैं।


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 इस साधना को सिद्ध करने में कोई दोष या हानि नहीं है तथा जब अप्सराओं में श्रेष्ठ उर्वशी सिद्ध होकर वश में आ जाती है, तो वह प्रेमिका की तरह मनोरंजन करती है, तथा संसार की दुर्लभ वस्तुएं और पदार्थ भेट स्वरुप लाकर देती है।


 जीवन भर यह अप्सरा साधक के अनुकूल बनी रहती है, वास्तव में ही यह साधना जीवन की श्रेष्ठ एवं मधुर साधना है तथा प्रत्येक साधक को इस सिद्धि के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।


साधना विधान 


इस साधना को २१ अप्रैल के पश्चात करना विशेष अनुकूल है। इसके अलावा इसे अक्षय तृतीया या किसी भी शुक्रवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। 


यह रात्रिकालीं साधना है। स्नान आदि कर पीले आसन पर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जाएं। सामने पीले वस्त्र पर 'उर्वशी यंत्र' (ताबीज) स्थापित कर दें तथा सामने पांच गुलाब के पुष्प रख दें। 


फिर पांच घी के दीपक लगा दें और अगरबत्ती प्रज्वलित कर दें। फिर उसके सामने 'सोनवल्ली' रख दें और उस पर केसर से तीन बिंदियाँ लगा लें और मध्य में निम्न शब्द अंकित करें -


॥ ॐ उर्वशी प्रिय वशं करी हुं ॥


इस मंत्र के नीचे केसर से अपना नाम अंकित करें। फिर उर्वशी माला से निम्न मंत्र की १०१ माला जप करें -

मंत्र

॥ ॐ ह्रीं उर्वशी मम प्रिय मम चित्तानुरंजन करि करि फट ॥


यह मात्र सात दिन की साधना है और सातवें दिन अत्यधिक सुंदर वस्त्र पहिन यौवन भार से दबी हुई उर्वशी प्रत्यक्ष उपस्थित होकर साधक के कानों में गुंजरित करती है कि जीवन भर आप जो भी आज्ञा देंगे, मैं उसका पालन करूंगी।


तब पहले से ही लाया हुआ गुलाब के पुष्पों वाला हार अपने सामने मानसिक रूप से प्रेम भाव उर्वशी के सम्मुख रख देना चाहिए। इस प्रकार यह साधना सिद्ध हो जाती है और बाद में जब कभी उपरोक्त मंत्र का तीन बार उच्चारण किया जाता है तो वह प्रत्यक्ष उपस्थित होती है तथा साधक जैसे आज्ञा देता है वह पूरा करती है।


साधना समाप्त होने पर 'उर्वशी यंत्र (ताबीज)' को धागे में पिरोकर अपने गलें में धारण कर लेना चाहिए। सोनवल्ली को पीले कपड़े में लपेट कर घर में किसी स्थान पर रख देना चाहिए, इससे उर्वशी जीवन भर वश में बनी रहती है।


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तंत्र की एक गुप्त विधा पुतली विधा.........


 


तंत्र की एक गुप्त विधा पुतली विधा.........


             वर्तमान में तंत्र विधा में बहूत से रहस्य मिलते है । जीसका अनुमान लगाना हर मनुष्य के बस में नही है । कही चौरास्ते पर हडी पडी रहती है, तो कही पर श्रृंगार, दक्षिणा और मिठाई पडी मिलती है ।


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 कही घर के आगे सिंदूर और तेल मिलते है, तो कही पर लौंग और पतासा मिलता है । कही कही पर घर के आस पास व जगलों मै कपडे से बने पुतले भी प्राय मिलते है । वो पुतला प्राय काला कपडा से बना होता है । और उस पुतले मै बहूत सारी सुई चूभी होती है । आखिर ये क्या है और यैसा करने का अभिप्राय क्या है ? यैसी गुडीया पर कौन सी तंत्र साधनायें होती है ?


            जो ज्ञात ना हो, वह रहस्य होता है । पर घर व जगलों मै आसपास यैसा पुलते साधारण व्यक्ति देखले तो वो डर से मर जाता है । सूत्रों एवं नियमों का ज्ञान न होने के कारण आधुनिक वैज्ञानिक जगत इसे अंधी आस्था कहता है । और सामान्य आदमी यिने तन्त्रविधा समझता है । 


सामान्य तांत्रिकों और तंत्र साधकों को इस विद्या की रहस्यमयी बातों का ज्ञात नहीं होता है । इसलिए तामझाम दिखाकर सिधेसाधे मनुष्यको भयादोहन करते है । उनको ठगते है । लुटते है । 


यह विद्या इतनी सरल नहीं है । सभी कुछ जानने के बाद भी इसे करने के लिए जिस साहस और विश्वास की जरूरत होती है । वह सामान्य साधकों के वश की बात नहीं है । तांत्रिक क्षेत्र के विस्तृत ज्ञान की बहूत आवश्यकता होती है । 


यह एक अविगुप्त विद्या है और ये भूतेश्वर साधु, महाकाल, देवी एवं अघोरपंथ के गुप्त साधकों के पास पाई जाती है । 


             इस विधा को पुतली विद्या कहते है । इसी प्रकार की एक विद्या अफ्रीका में भी ‘वुडु विद्या’ के नाम से अति चर्चा में रही है । पर उसकी प्रकिया से ये पुतली विधि बहूत मिलती जूलती है । यह विधी अघोरपंथ की एक विधा है । जो इस प्रक्रिया को सिद्ध करती है । यह एक गुप्त और रहस्यमय विद्या है । 


इससे दूर बैठकर किसी भी स्त्री-पुरुष के गंभीर लाइलाज रोगों की भी चिकित्सा की जा सकती है । और इसका उपयोग वशीकरण, मोहन, स्तम्भन से लेकर मारण कार्यों तक किया जा सकता है ।


           पहला चरण – 


शत्रु के नक्षत्र का ज्ञान करना । दूसरा चरण – साध्य के नक्षत्र वृक्ष, उसके बाल या अधोवस्त्र, काली मिट्टी का सात बार जल में घोलकर कपड़े से छने पानी में बैठी मिट्टी, चिता या साध्य के प्रयोग की वस्तु को जलाकर की गयी राख, नमक (सेंधा), सोंठ, पीपल, काली मिर्च, रसोई की कालिख, लहसुन, हिंग, गेरू, पीली सरसों, काली सरसों, ईख का रस या गुड़, नीम की छाल का पिष्ठ आदि वस्तुओं का कर्म के अनुसार चयन किया जाता है । इसके बाद उड़द के आटे से पुतली का निर्माण होता है। बालों से बाल एवं रोमों की स्थापना की स्थापना की जाती है ।


            तीसरा चरण –


 यह पुतली नक्षत्रों के चारों चरणों के अनुसार अलग अलग होती है यानी 27×4 = 108 प्रकार की। इन सबकीलम्बाई अलग – अलग होती है । ये जानकारी (गुप्त) रखिगयी है । 


            चौथा चरण –


 पुतली की जो भी लम्बाई हो, उसके सिर से गर्दन का हिस्सा भाग, कमर से कंधों अक हिस्सा – 4 भाग एवं कमर से नीचे का हिस्सा उभाग होता है ।


         सबसे कठिन इसकी विधि प्रकिया है । राध्य की लग्न या चन्द्र राशि, से अशुभ कर्मों के लिए अष्टम और शुभ कर्मों के लिए पंचम भाव की स्थिति का प्रयोग किया जाता है । अशुभ कर्मों में जब अष्टम भाव (लग्न राशि में) दुर्बल और पंचम भाव बली होता है । इसके अतिरक्ति समयकाल की राशि को भी इसी के अनुरूप चुना जाता है ।

           प्रत्येक स्त्री/पुरुष के शरीर में अमृत स्थान एवं विष- स्थान होते हैं । इनकी गति और व्याप्ति भी महीने के 30 दिन में चन्द्र तिथि के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है । पुरुष एवं नारी में यह स्थिति विपरीत क्रम में होती है । कर्म के अनुसार इसका भी चयन करना होता है ।


           इसके बाद इस पुतली की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है । इसकी एक अलग प्रकिया है ।


       इसके बाद क्रियात्मक और हवन आदि प्राण प्रतिष्ठा के बाद वशीकरण , आकर्षण, विद्वेषण, स्तम्भन, उच्चाटन और मारण की क्रियाएं शुभाशुभ भेद से तिथि, आकल, राशि-साध्य का शुभाशुभ काल आदि देखकर किया जाता है । ज्योतिष के अनुसार विषयोग , मृत्यु योग, शूल योग, कंटक योग आदि अशुभ और इसी प्रकार शुभ योगों का चयन करके क्रिया की जाती है ।


          यह एक जटिल तंत्र क्रिया है । इन सारी क्रियाओं को करने में महीनों का वक्त लगता है ।


         किसी भी व्यक्ति के बाल, दांत आदि शरीर से अलग होकर तुरंत निष्क्रिय नहीं होते । ये 90 दिनों तक तो अपने आप ऊर्जा का उत्पादन करते रहते है और यह ऊर्जा उस व्यक्ति के शरीर की ऊर्जा के पॉजिटिव होती है । इसका रिसीवर केवल उस व्यक्ति का शरीर होता है । पुतली को छेदने, काटने , तपाने , द्रव्य में डालने आदि का प्रभाव उस स्त्री/ पुरुष पर होता है शक्तिशाली होता है । वह पृथ्वी पर कहीं भी हो, उसको प्रभावित करती है ।


               यदि कोई व्यक्ति स्त्री या पुरुष इससे पीड़ित है । कहीं कोई ऐसी तन्त्र क्रिया किया करता है, तो उसे ढूंढना और पुतली को नष्ट करना असम्भव है । इसके द्वारा तेज दर्द, सुई चुभने या भाला मारने जैसी पीड़ा, काटने – चीरने जैसी पीड़ा, ज्वर, उन्माद आदि भयानक रूप ले लेता है । जब तक पुतली पर अत्याचार होता रहेगा, पीड़ित भी पीड़ित रहेगा । 


कोई उपचार कारगर नहीं होगा । जो लोग इस विद्या को जानते मिले, उनका निदान एक मात्र था, पुतली ढूंढ कर नष्ट करो । इसका और कोई उपाय नही है ।


        इस मै बहुत सी बात गुप्त रही गयी है । इस बात को ध्यान में रखकर गुप्त रखी गयी है कि कोही कीसी पर गलत ना करे ।


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Sunday, June 25, 2023

त्राटक


 

त्राटक  


मन की एकाग्रता को पाने के लिये त्राटक एक सरल व प्रभावी प्रयोग है । इसका प्रयोग कोई भी कर सकता है और इसके लाभ अनेक है । त्राटक का अर्थ है किसी एक स्थान पर बिना पलक झपकाये लगातार देखना । 


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विधि : किसी एक काले बिंदु पर त्राटक आरंभ करे । जब आप त्राटक करे तो कमरे मे पुरा प्रकाश होना चाहिये ताकी आप बिंदु को स्पष्ट देख सके और आपकी आँखो पर जोर ना पड़े और प्रकाश आपके पीछे से आना चाहिये । 


बिंदु का आकार व्यक्ति व्यक्ति की नज़र के अनुसार अलग अलग हो सकता है । आप उचित आकार का बिंदु उचित दूरी पर इस प्रकार लगा कर बैठे की आपको अपने बैठने के स्थान से बिंदु स्पष्ट नज़र आये । 


फिर तीन मिनट तक लगातार बिंदु को टकटकी लगाकर देखे या जितनी देर भी आपको सुविधा हो उतनी देर देखे, जैसे ही आपकी नजरें बिंदु पर टिकेगी आपको बिंदु के चारो ओर एक सफेद प्रकाश का पुंज घूमता हुआ दिखाई देगा । यह प्रकाश का पुंज बिंदु के कभी ऊपर कभी नीचे, कभी बाये कभी दायें, चलता दिखाई देगा । 

वस्तुतः यह प्रकाश का पुंज आपकी ही आँखो का नूर है जो बिंदु पर प्रकट हो रहा है । त्राटक करते करते जितना आपका मन चंचल होगा उतना यह बिंदु इधर उधर घूमता रहेगा और जितना आपका मन शांत होगा उतना यह प्रकाश भी एक जगह पर टिकना शुरु हो जाएगा ।


जब बिना पलक झपकाये देखते देखते आपकी आँखे थक जाये और आँखो से आँसू निकलने लगे तो अपनी आँखो को बंद कर ले, अब आप इस बिंदु का छाया चित्र अपने अंदर बंद आंखो से भी देख पायेगे । अब आप भीतर इस बिंदु पर भी त्राटक करे, आपको अब यह बिंदु रंग बदलता नज़र आ सकता है, यह काला, मटमैला, नीला या किसी अन्य रंग मे दिख सकता है । आपको यह दिखाई देगा और फिर गायब हो जायेगा, फिर दिखाई देगा और फिर गायब हो जायेगा, और जब यह बिल्कुल गायब हो जाये तो पुनः अपनी आँखे खोले और बाहर के बिंदु पर त्राटक आरंभ कर दे । 


इस प्रकार आप इस अभ्यास को जारी रखे । आप इसे नित्य 3 मिनट से 30 मिनट तक अपनी श्रमता अनुसार धीरे धीरे बढ़ाकर कर सकते है । 


अगर आपको आँखो से संबंधित कोई दोष है तो प्रयोग शुरु करने से पहले नेत्र चिकित्सक से परामर्श कर ले । 


त्राटक के नियमित प्रयोग से हमारी आँखो मे एक नई शक्ती का आगमन होता है, आँखो मे रहस्मय चमक आती है । एकाग्रता विकसित होती है । आज्ञा चक्र जागृत होकर सोई शक्तिया उठ खड़ी होती है । 


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Saturday, June 24, 2023

शनिवार को तांत्रिक क्रियाओं को करें बेअसर


 



शनिवार को तांत्रिक क्रियाओं को करें बेअसर


1  घर में हमेशा लक्ष्मी का वास रहे तो गेंहू हमेशा शनिवार को ही पीसवाए और उसमें थोड़े से काले चने जरूर मिला लें। उस आटे की सबसे पहली रोटी गाय को खिलाएं और अन्तिम रोटी पर सरसों तेल लगा कर कुत्ते को खिलाएं।


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2 सात शनिवार तक एक नारियल किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करें और इस मंत्र का जाप करें ऊँ रामदूताय नम: लगातार सात शनिवार इस प्रकार करने से समस्याओं का प्रभाव कम हो जाएगा और हनुमान जी के साथ ही शनिदेव की कृपा भी प्राप्त होगी।


3 मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी के भक्तों पर शनिदेव का कुप्रभाव नहीं होता।


4 अगर ऐसा लगे की कोई शत्रु आपकी दूकान या ऑफिस में तांत्रिक क्रिया करके आपको हानि पंहुचाने का प्रयास कर रहा है तो शनिवार प्रातः पांच पीपल के पत्ते और आठ पान के साबुत डंडीदार पत्ते लेकर लाल धागे में पिरोकर दूकान में पूर्व की तरफ बांध दें और ऐसा अगर आप हर शनिवार करें तो तांत्रिक क्रिया बेअसर हो जाएगी तथा आपका लाभ बढ़ जाएगा।


5 शनिवार के दिन गरीब व्यक्ति को एक जोड़ी जूते दान करें।


6  सुबह उठकर अपनी हथेलियों को तीन बार चुंबन करें। यह उपाय शनिवार से शुरू करें।


7 कमाई अच्छी है मगर आप संचय नहीं कर पा रहें है तो प्रत्येक शनिवार को काले कुत्ते को तेल के साथ चुपड़ कर चपाती दें।


8 बुरी नजर से बचाने के लिए शनिवार को थोड़ा कच्चा दूध लें और प्रभावित व्यक्ति के सिर के चारों ओर इसको 7 बार घुमाएं और उस के बाद काले कुत्ते को पिलाएं।


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Friday, June 23, 2023

मातङ्गी साधना विधि


 



मातङ्गी साधना विधि :----------


          यह साधना मातंगी जयन्ती, मातंगी सिद्धि दिवस अथवा किसी भी सोमवार के दिन से शुरू की जा सकती है। यह साधना रात्रिकालीन है और इसे रात्रि में ९ बजे के बाद शुरु करना चाहिए।


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          सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहिनकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठ जाए। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा ले। इस साधना में माँ मातंगी का चित्र, यन्त्र और लाल मूँगा माला का महत्व बताया गया है, परन्तु सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताँबे की प्लेट में स्वास्तिक बनाए और उस पर एक सुपारी स्थापित कर दे और उसे ही यन्त्र मानकर स्थापित कर दे। आपके पास मातंगी का चित्र ना हो तो आप ''माताजी'' का ही मातंगी स्वरुप में पूजन करे, माताजी तो स्वयं ही ''जगदम्बा'' है और माला के विषय में स्फटिक माला, लाल हकीक माला, मूँगा माला,  रुद्राक्ष माला में से किसी भी माला का उपयोग हो सकता है।


          सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप कर ले। फिर सद्गुरुदेवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।


          इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हूं" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।


          फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और  "ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान  मतंग भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।


         इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।  साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि  “मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्री मातंगी  साधना  का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।”


                   इसके बाद  साधक भगवती मातंगी का सामान्य पूजन करे। कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजा करके कोई भी मिष्ठान्न भोग में अर्पित करे।


         फिर साधक निम्न विनियोग का उच्चारण कर एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दे ---


विनियोग :-----


       ॐ अस्य मन्त्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिः विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः।


ऋष्यादिन्यास :-----


ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि।      (सिर को स्पर्श करें)

विराट् छन्दसे नमः मुखे।              (मुख को स्पर्श करें)

मातंगी देवतायै नमः हृदि।            (हृदय को स्पर्श करें)

ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।                (गुह्य स्थान को स्पर्श करें)

हूं शक्तये नमः पादयोः।              (पैरों को स्पर्श करें)

क्लीं कीलकाय नमः नाभौ।            (नाभि को स्पर्श करें)

विनियोगाय नमः सर्वांगे।             (सभी अंगों को स्पर्श करें)


करन्यास :-----


ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।         (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।        (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।     (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)


हृदयादिन्यास :-----


ॐ ह्रां हृदयाय नमः।      (हृदय को स्पर्श करें)

ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।      (सिर को स्पर्श करें)

ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।      (शिखा को स्पर्श करें)

ॐ ह्रैं कवचाय हूं।         (भुजाओं को स्पर्श करें)

ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।      (नेत्रों को स्पर्श करें)

ॐ ह्रः अस्त्राय फट्।       (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)


ध्यान :-----


       फिर हाथ जोड़कर माँ भगवती मातंगी का ध्यान  करें -----


ॐ श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्बिभ्रतीं,                                                        पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम्।                      रत्नालंकरणप्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां,                                                       मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धिप्रदाम्।।


       इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक निम्न मन्त्र का ५१ माला जाप करे -----


मन्त्र :-----------


।। ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।।


OM HREEM KLEEM HOOM MAATANGYEI PHAT SWAAHAA.


      यह साधना दिखने में ही साधारण हो सकती है, परन्तु यह मन्त्र साधना अत्यन्त तीव्र है। मातंगी महाविद्या साधना विश्व की सर्वश्रेष्ठ साधना है, जो साधक के दुर्भाग्य को भी बदलकर उसे भाग्यवान बना देती है। आज तक इस साधना में किसी को असफलता नहीं मिली है। मन्त्र जाप के पश्चात मातंगी कवच का एक पाठ अवश्य ही करे।


मातंगी कवच


श्रीदेव्युवाच


साधु-साधु महादेव! कथयस्व सुरेश्वर!                                                                        मातंगी कवचं दिव्यं सर्वसिद्धिकरं नृणाम्।।१।।


श्री ईश्वर उवाच


श्रृणु देवि! प्रवक्ष्यामि मातंगीकवचं शुभम्।                                                           गोपनीयम् महादेवि! मौनी जापं समाचरेत्।।२।।


विनियोगः-----


             ॐ अस्य श्रीमातंगीकवचस्य श्री दक्षिणामूर्तिः ऋषिः विराट् छन्दो मातंगी देवता चतुर्वर्ग सिद्धये जपे विनियोगः।


मूल कवच


ॐ शिरो मातंगिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी।                                                                      तोडला कर्ण युगलं त्रिपुरा वदनं मम।।३।।


पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा।                                                                त्रिपुष्पा पार्श्वयोः पातु गुदे कामेश्वरी मम।।४।।


ऊरुद्वये तथा चण्डी जंघयोश्च हरप्रिया।                                                                महामाया पादयुग्मे सर्वांगेषु कुलेश्वरी।।५।।


अंगं प्रत्यंगकं चैव सदा रक्षतु वैष्णवी।                                                                  ब्रह्मरन्ध्रे सदा रक्षेन्मातंगीनामसंस्थिता।।६।।


रक्षेन्नित्यं ललाटे सा महापिशाचिनीति च।                                                                नेत्रयोः सुमुखी रक्षेद्देवी रक्षतु नासिकाम्।।७।।


महापिशाचिनीं पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा।                                                                      लज्जा रक्षतु मां दन्ताञ्चोष्ठौ सम्मार्जनीकरा।।८।।


चिबुके कण्ठदेशे च ठकारत्रितयं पुनः।                                                                             स-विसर्गं महादेवि! हृदयं पातु सर्वदा।।९।।


नाभिं रक्षतु मां लोला कालिकावतु लोचने।                                                                    उदरे पातु चामुण्डा लिंगे कात्यायनी तथा।।१०।।


उग्रतारा गुदे पातु पादौ रक्षतु चाम्बिका।                                                                      भुजौ रक्षतु शर्वाणीं हृदयं चण्डभूषणा।।११।।


जिह्वायां मातृका रक्षेत्पूर्वे रक्षतु पुष्टिका।                                                                 विजया दक्षिणे पातु मेधा रक्षतु वारुणे।।१२।।


नैर्ऋत्यां सुदया रक्षेद्वायव्यां पातु लक्ष्मणा।                                                            ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी मातंगी शुभकारिणी।।१३।।


रक्षेत्सुरेशी चाग्नेये बगला पातु चोत्तरे।                                                                       ऊर्घ्वं पातु महादेवि देवानां हितकारिणी।।१४।।


पाताले पातु मां नित्यं वशिनी विश्वरूपिणी।                                                                प्रणवं च ततो माया कामबीजं च कूर्चकं।।१५।।


मातंगिनी ङेयुतास्त्रं वह्निजाया वधिर्मनुः।                                                     सार्द्धैकादशवर्णा सा सर्वत्र पातु मां सदा।।१६।।


फलश्रुति


इति ते कथितं देवि! गुह्याद्गुह्यतरं परम्।                                                     त्रैलोक्यमंगलं नाम कवचं देवदुर्लभम्।।१७।।


यः इदं प्रपठेन्नित्यं जायते सम्पदालयम्।                                                     परमैश्वर्यमतुलं प्राप्नुयान् नात्र संशयः।।१८।।


गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं प्रपठेद् यदि।                                                                       ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च वाक्सिद्धिं लभते ध्रुवम्।।१९।।


नित्यं तस्यं तु मातंगी महिला मंगलं चरेत्।                                                               ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ये देवाः सुरसत्तमाः।।२०।।


ब्रह्मराक्षसवेतालाः ग्रहाद्यां भूतजातयः।                                                                            तं दृष्टवा साधकं देवि! लज्जायुक्ता भवन्ति ते।।२१।।


कवचं धारयेद्यस्तु सर्वासिद्धिं लभेदध्रुवम्।                                                           राजानोऽपि च दासत्वं षट्कर्माणि च साधयेत्।।२२।।


सिद्धो भवति सर्वत्र किमन्यैर्बहुभाषितैः।                                                                           इदं कवचमज्ञात्वा मातंगीं यो भजेन्नरः।।२३।।


अल्पायुर्निर्धनो मूर्खो भवत्येव न संशयः।                                                                       गुरौ भक्तिः सदा कार्या कवचे च दृढा मतिः।।२४।।


तस्मै मातंगिनी देवी सर्वसिद्धिं प्रयच्छति।।२५।।


           मन्त्र जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर माँ भगवती मातंगी को ही समर्पित कर दें।


      साधक को यह साधना क्रम नित्य २१ दिनों तक करना चाहिए।


          २१ वें दिन कम से कम घी की १०८ आहुति अग्नि में अर्पित करे। इस तरह से यह साधना पूर्ण होती है।


           इस तरह यह साधना सम्पन्न होती है। कुछ दिनों में ही आप साधना का प्रभाव स्वयं अनुभव करने लग जाएंगे। तो देर किस बात की, साधना करे तथा जीवन को पूर्णता प्रदान करे।


 

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Wednesday, June 21, 2023

कामाख्या देवी विशेष साधना अंबुबाची मेला पर्व (जून 23 शुक्रवार - जून 26 सोमवार )


 


कामाख्या देवी विशेष साधना अंबुबाची मेला पर्व (जून 23  शुक्रवार - जून 26 सोमवार )


इस साल इस मेले का समय शुरु होता है 23 जून  से इस दौरान कामाख्या साधना कर सकते हैं


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कामाख्या देवी तंत्र में एक विशेष देवी है और छठ कर्म करने वाले हर एक तांत्रिक की सबसे प्रिय देवी है क्योंकि व्यक्ति की कामनाओं का कोई अंत नहीं होता है और उसका कोई सीमा नहीं होता है कुछ भी कामना हो सकती है तो कामनाओं की प्रधान देवी माता कामाख्या की मंत्र जाप से कोई भी कार्य या कामनाओं को पूर्ण किया जा सकता है इसीलिए कोई भी तांत्रिक कामाख्या मंत्र सिद्धि करके उनके पास आने वाली कोई भी व्यक्ति का काम बड़े आसानी से कर के दे सकता है


कामाख्या देवी को सर्वेश्वरी सिद्धेश्वरी एवं कामेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह देवी सब कुछ प्रदान करने में समर्थ है इसीलिए उन्हें सर्वेश्वरी कहा जाता है देवी कामाख्या कोई भी सिद्धि प्रदान करने में समर्थ है इसीलिए उन्हें सिद्धेश्वरी कहा जाता है और जैसे मैंने ऊपर में कहा कि कोई भी कामनाओं की पूर्ति यह करने में समर्थ है इसीलिए इन्हें कामेश्वरी भी कहा जाता है अंबुबाची मेला के बारे में मैंने अभी काफी सारा जानकारी दिया है तो फिर वह सारा दोहराने का कोई मतलब नहीं है आप सब यह जान लीजिए यह समय मां कामाख्या साधना करने का सर्वश्रेष्ठ समय है चाहे आप आम ग्रस्त व्यक्ति हो या आप तंत्र की गोपनीय सिद्धियों को प्राप्त करना चाहते हो या अगर आप योगी हो और योगिक सिद्धियों को प्राप्त करना चाहते हो आप इनकी साधना कर सकते हैं बस इतना ही ध्यान रखें कि किसी भी स्त्री के प्रति गलत भावना मन में ना रहे साधना के दौरान या फिर आप किसी भी स्त्री के ऊपर अत्याचार ना कर रहे हो इसके अलावा कामाख्या साधना में कोई भी सावधानी पालन करने की जरूरत नहीं पड़ती है


कामाख्या साधना आप प्रचलित विधान के अनुसार कर सकते हैं जैसे मैंने ऊपर पोस्ट में कहा है या फिर अब कहे गए नियमों के अनुसार भी कर सकते हैं, ऊपर वाले पोस्ट में हम सिर्फ उनके बीज मंत्र का ही साधना कर रहे थे इस बार हम उनके तीनों स्वरूपों का साधना करेंगे,


साधना इस प्रकार करें


सबसे पहले आपको एक स्टील का प्लेट लेना है और सरसों का तेल और कुमकुम से मिश्रित एक पेस्ट बनाकर प्लेट में त्रिकोण का चित्र बनाना है


त्रिकोण का निचला हिस्सा आपके और होनी चाहिए और आपका मुंह अगर सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए हो रहा है यह साधना तो उत्तर की दिशा होनी चाहिए वशीकरण व सम्मोहन के लिए किया जा रहा हो तो पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए शत्रु नाश या तंत्र नाश के लिए किया जा रहा हो तो दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए


त्रिकोण के अंदर आपको कामाख्या बीज मंत्र त्रीं लिखना है और तीन कोनों में तीन दीपक जलाना है जो सरसों का तेल का भी हो सकता है या फिर आप ही का भी जला सकते हैं अगर घी का दीपक जला रहे हो तो उसमें थोड़ी सी कुमकुम डाल दे


ध्यान रखिए कामाख्या में हर चीज तीन संख्या का होता है इसीलिए आपको अगरबत्ती भी 3 लगाना होगा और प्रसाद भी 3 देना है,वस्त्रों और आसन दोनों ही लाल होंगे,कामाख्या का मूल माला होता है लाल मूंगे का माला लेकिन उसे इस कम समय में प्राप्त करना या फिर असली लाल मूंगे का माला प्राप्त करना संभव नहीं है इसके लिए आप कोई भी रुद्राक्ष माला करो सबसे पहले पानी से अच्छी तरीके से बिगो ले फिर उसको कुमकुम से भर दे और अच्छे तरीके से उस माला को लाल कुमकुम से रंग दे इस प्रकार यह माला कामाख्या साधना में उपयोगी बन जाता है


साधना विधान इस प्रकार है- 


हाथ में जल लेकर यह संकल्प करें- मैं सर्वेश्वरी सिद्धेश्वरी और कामेश्वरी देवियों का संयुक्त मंत्र जाप अनुष्ठान कर रहा हूं मेरे अमुक (यहां पर आप अपना कामनाओं को कहें) कामनाओं की पूर्ति हेतु मुझे इसमें सिद्धि प्राप्त हो और ऐसा कह कर जल नीचे छोड़ दे


एक माला गं मंत्र का जाप करें


एक माला अपने गुरु मंत्र का जाप करें हमसे दीक्षित व्यक्ति यहां पर नवार्ण मंत्र का जाप करें


एक माला ऊं भ्रं उमानंद भैरवाय  नमः का जाप करें (यह मां कामाख्या के भैरव है)


तीन माला त्रीं बीज मंत्र का जाप करें


तीन माला ऊं ह्रीं सर्वेश्वरी दिव्यै नमः का जाप करें


तीन माला ऊं ह्रीं सिद्धेश्वरी दिव्यै नमः का जाप करें


तीन माला ऊं ह्रीं कामेश्वरी दिव्यै नमः का जाप करें


तीन माला त्रीं बीज मंत्र का जाप करें


जाप समर्पण और क्षमा प्रार्थना- हाथ जोड़कर प्रार्थना करें मैं मेरा समस्त मंत्र जाप सर्वेश्वरी सिद्धेश्वरी और कामेश्वरी देवी को देता हूं जो भी मनोकामना या संकल्प लेकर मैंने यह मंत्र जाप अनुष्ठान किया मुझे उस में सिद्धि प्राप्त हो ज्ञात अज्ञात में मेरे से अगर कोई भूल या त्रुटि हुआ हो तो मुझे क्षमा करें


चेतावनी- किसी को हानि पहुंचाने के लिए या बुरा करने के लिए इस साधना को कदापि ना करें आपका विनाश निश्चित है इससे आपको कोई नहीं बचा सकता


 


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बुध और आपका जीवन


 



बुध और आपका जीवन


सूर्य के सबसे निकटतम बुध ग्रह है जिसके कारण से बुध की सारी चुंबकत्व शक्ति सूर्य के द्वारा ले ली जाती है, इसी कारण से बुध को ज्योतिष शास्त्र में एक नपुंसक ग्रह की उपाधि दी गई है


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या यूं कहिए बुध कुंडली में जिस ग्रह के साथ बैठा हो उसका गुण लेकर उसका ही जैसा परिणाम देने लगता है


बुध एक जल के समान है, जिस प्रकार आप जल को जिस पात्र में रखें जल उसकी आकृति ले लेती है, गिलास में रखे तो गिलास के आकृति, और बाल्टी में रखे तो बाल्टी की आकृति।।


वही जल का अपना कोई रंग नहीं होता,  जो भी Additional Color आप डालें जल उस color में convert हो जाता है बुध का भी परिचय आप इसी रूप में ले सकते हैं ।।।


पूरे के पूरे व्यापार जगत, commercial/ Financial Sector के ऊपर बुध का प्रभाव है


विषय में गणित के ऊपर बुध का प्रभाव है


रिश्ते में आपका ननिहाल मामा मौसी के ऊपर बुध का प्रभाव है


बैंकिंग सेक्टर बुध है


चार्टर्ड अकाउंटेंट बुध है


छोटे और बड़े सभी उद्योगपति बुध हैं


पूरा का पूरा व्यापार का concept ही बहुत है


आपकी हथेली में Little Finger के नीचे उभरा हुआ भाग बुध है


यद्यपि बुध, सूर्य के समान तेज चलता है पर इस की महादशा काफी लंबी यानी 17 वर्षों के होती है


बुद्ध आपकी बुद्धि है, आपका दिमाग है, आपका मानसिक श्रम है ।।।


हरे रंग, पन्ना रत्न, और सभी प्रकार की हरी सब्जियां के ऊपर बुध का प्रभाव है ।।


कुंडली में यह बुध सूर्य के साथ बैठकर या फिर शुक्र के साथ बैठकर सबसे अच्छा परिणाम देता है ।।


बुध युवा ग्रह है, इसीलिए जितने भी टीनएजर्स हैं उनके ऊपर बुध का प्रभाव है ।।।


मनुष्य के वाणी के ऊपर भी बंद का प्रभाव है, कुशल वक्ता के साथ-साथ कुशल श्रोता भी बुध है ।।


कुंडली के पंचम भाव, दशम भाव पर यह बेहतरीन परिणाम देता है ।।।


बुध ग्रह को बुद्धि, संचार और निर्णय क्षमता का कारक माना जाता है. वैसे तो यह एक शुभ ग्रह है, लेकिन किसी  क्रूर ग्रह के साथ आ जाने पर यह अशुभ फल देता है ।।।


 कुंडली में बुध की स्थिति खराब हो तो त्वचा संबंधी विकार, शिक्षा में एकाग्रता की कमी और लेखन कार्य में समस्या आती है ।।।


वहीं बुध के शुभ प्रभाव से बुद्धि तेज होती है, साथ ही व्यापार, संचार और शिक्षा में उन्नति मिलती है ।।।


एक मिसाल के द्वारा बुध के उदाहरण को समझते हैं...


कभी-कभी आप कुछ ऐसे रिश्तेदार को देखते होंगे, वह जिनके समक्ष में बैठे हो उनके ही हो जाते हैं ..यानी आपके सामने आपके जैसे, और उनके सामने उनके जैसे...


बुध की भी यही प्रवृत्ति है इसीलिए बुध और रिश्तेदारों का गहरा नाता है ...


जैसा कि हमने कहा बुध जल है, वह जिस पात्र में डाला जाए  वैसा ही हो जाता है ।।


शनि खुद एक ठंडा ग्रह है, और बुध भी ठंडा.. इसलिए बुध और शनि की युति को ज्योतिष में नपुंसक योग की उपाधि दी गई है ।।। (यहां बुध, शनि के साथ मिलकर शनि जैसा बन गया)


बुध बुद्धि भी है, और गुरु भी बुद्धि... इसलिए गुरु बुध की युति को बेहतरीन शिक्षा और व्यापार,  धन हेतु अच्छी योग मानी जाती है ।।।


(यहां बुध गुरु के साथ मिलकर गुरु जैसा बन गया)


चुकी शुक्र धन का कारक है, इसीलिए बुध और शुक्र की युति बेहतरीन धन योग कहा जाता है ।।


बाकी ग्रहों के साथ भी ऐसा ही परिणाम को समझें ।।


किन्नरों के ऊपर बुध का प्रभाव है ।।


इसलिए बुध अगर अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो बुधवार के दिन किन्नरों को दान करना शुभ माना जाता है ।।


कुंडली में कहीं भी बुध अकेला बैठे तो अशुभ परिणाम देता है


अगर वह योगकारक हो, उदाहरण के तौर पर कन्या लग्न मिथुन लग्न और तुला लग्न में बेहतरीन परिणाम देता है ।।।


कन्या राशि पर उच्च, और मिथुन राशि में स्वराशि का होता है ।।


आयु के 32 वर्ष पर भाग्योदय कराता है ।।


मेष लग्न और कर्क लग्न को छोड़ दिया जाए तो बाकी के सभी लग्न पर यह शुभ प्रभाव ही देता है।।


बुध मोटापा का कारक नहीं है, दुबली पतली Fit & Slim Personality देता है..


अष्टमेश के साथ अगर बुध बैठे तो जातक कहीं ना कहीं खोजी प्रवृत्ति का अवश्य होता है, रिसर्च के क्षेत्र में रुचि रखता है ।।


ज्योतिष बनने के लिए भी बुध का आशीर्वाद परम आवश्यक है ।।


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


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Tuesday, June 20, 2023

भगवान वीरभद्र का "साधना मंत्र" .


 



भगवान वीरभद्र का "साधना मंत्र" .


वीरभद्र जो कि शिव शम्भू के अवतार हैं, उनकी पूजा-उपासना करने से बड़े-बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं, वीरभद्र, भगवान शिव के परम आज्ञाकारी हैं, उनका रूप भयंकर है, देखने में वे प्रलयाग्नि के समान प्रतीत होते हैं। उनका शरीर महान ऊंचा है,। 


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वे एक हजार भुजाओं से युक्त हैं। वे मेघ के समान श्यामवर्ण हैं! उनके सूर्य के समान जलते हुए तीन नेत्र हैं। एवं विकराल दाढ़ें हैं और अग्नि की ज्वालाओं की तरह लाल-लाल जटाएं हैं। गले में नरमुंडों की माला तो हाथों में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र हैं!


परन्तु वे भी भगवान शिव की तरह परम कल्याणकारी तथा जल्दी प्रसन्न होने वाले है! उनकी निम्नलिखित साधना पद्धति से तत्काल फल मिलता है,


"वीरभद्र सर्वेश्वरी साधना मंत्र" जो उनके "वीरभद्र उपासना तंत्र" से लिया गया है, एक स्वयं सिद्ध चमत्कारिक तथा तत्काल फल देने वाला मंत्र है, स्वयंसिद्ध मंत्र से तात्पर्य उन मंत्रो से होता है जिन्हे सिद्ध करने की जरुरत नहीं पड़ती, वे अपने आप में सिद्ध होते हैं,


इस मंत्र के जाप से अकस्मात् आयी दुर्घटना, कष्ट, समस्या आदि से क्षण भर में निपटा जा सकता है, (उदाहरण- कार्यबाधा, हिंसक पशु कष्ट, डर! इत्यादि)


ये तत्काल फल देने वाला मंत्र है, और साथ ही साथ ये बेहद तीव्र तेज वाला मंत्र है, इसे मजाक अथवा हंसी ठिठोली में कदापि नहीं लेना चाहिए,


इसके द्वारा प्राप्त किये जा सकने वाले लाभ -


(१). इस मंत्र के स्मरण मात्र से डर भाग जाता है, और अकस्मात् आयी बाधाओ का निवारण होता है. जब भी किसी प्रकार के कोई पशुजन्य या दूसरे तरह से प्राणहानि आशंका हो तब इस मंत्र का ७ बार जाप करना चाहिए.


 इस प्रयोग के लिए मात्र मंत्र याद होना ज़रुरी है. मंत्र कंठस्थ करने के बाद केवल ७ बार शुद्ध जाप करें व चमत्कार देंखे!


(२). अगर इस मंत्र का एक हज़ार बार बिना रुके लगातार जाप कर लिया जाए तो व्यक्ति की स्मरण शक्ति विश्व के उच्चतम स्तर तक हो जाती है तथा वह व्यक्ति परम मेधावी बन जाता है!


(३). अगर इस मंत्र का बिना रुके लगातार १०,००० बार जप कर लिया जाए तो उसे त्रिकाल दृष्टि (भूत, वर्त्तमान, भविष्य का ज्ञान) की प्राप्ति हो जाती है!


(४). अगर इस मंत्र का बिना रुके लगातार एक लाख बार, रुद्राक्ष की माला के साथ, लाल वस्त्र धारण करके तथा लाल आसान पर बैठकर, उत्तर दिशा की और मुख करके शुद्ध जाप कर लिया जाये, तो उस व्यक्ति को "खेचरत्व" एवं "भूचरत्व" की प्राप्ति हो जायेगी!


मंत्र इस प्रकार है -


ॐ हं ठ ठ ठ सैं चां ठं ठ ठ ठ ह्र: ह्रौं ह्रौं ह्रैं क्षैं क्षों क्षैं क्षं ह्रौं ह्रौं क्षैं ह्रीं स्मां ध्मां स्त्रीं सर्वेश्वरी हुं फट् स्वाहा


(Om Ham th th th seim chaam tham th th th hrah hraum hraum hreim ksheim kshom ksheim ksham hraum hraum ksheim hreeng smaam dhmaam streem sarveshwari hum phat swaahaa) 


चेतावनी -


१. इस साधना को हंसी खेल ना समझे, और ना ही मजाक में करने आजमाने का प्रयास करें, इसका प्रयोग स्वयं तथा दूसरों के कल्याण हेतु करें!


२. महिलाएं इस साधना को ना करें, अन्यथा भयंकर परिणाम होंगे!


और ज्यादा जानकारी समाधान और उपाय या रत्न या किसी भी प्रकार की विधि या मंत्र प्राप्ति के लिए संपर्क करें और समाधान प्राप्त करें 


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 चेतावनी -


सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।


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मंगल और जीवन


 


मंगल और जीवन


बिल्कुल सूर्य के ही समान दिखने वाला..सूर्य के ही समान गर्म..सूर्य के ही समान लाल चेहरा..सूर्य के ही समान पराक्रमी..अपने आप को सूर्य के समान ही तेज मानने वाला मंगल....


https://youtube.com/channel/UCWF8VKQJ_vL4K0-WKrGk-BA


सूर्य का परम मित्र मंगल..


और कुंडली में जब यही सूर्य और मंगल मिल जाए तो क्या ही कहना....


मंगल तेज है,मंगल ऊर्जा है, मंगल पराक्रम है, सूर्य अगर बड़ा भाई तो मंगल छोटा भाई है....


सूर्य अगर राजा तो मंगल सेनापति है...


तो चर्चा होगी आज इसी महा पराक्रमी मंगल के बारे में..


अगर पराक्रम की चर्चा हो और बात मंगल की ना हो या तो हो ही नहीं सकता..


मंगल तेज है, मंगल ऊर्जा है, कभी न थकने वाला यंत्र है मंगल..


जब अन्य ग्रह चलती है तो वही मंगल दौड़ लगाती हैं..


इसलिए किसी भी खिलाड़ी, एथलीट,धावक, सैनिक, पुलिस विभाग सभी के कुंडली में मंगल का बलवान होना परम आवश्यक है ...


मंगल जातक को Fit & Slim बनाता है, मंगल युक्त जातक दुबला पतला चपल और तेज होगा...


मंगल में आलस नाम मात्र भी नहीं..


मंगल में क्रोध है, स्वाभिमान है, या यूं कहें गर्दन कट जाए पर गर्दन झुके नही..


चुकी मंगल पराक्रम है और कुंडली का तीसरा भाव भी पराक्रम का है इसलिए कुंडली के तीसरे भाव पर इसका पूर्ण अधिकार है..


शत्रु का कुचलकर उसको नष्ट कर देना पराक्रम पुरुषार्थ सहित या मंगल का कार्य है.. क्योंकि छठा भाव शत्रु का है इसलिए यहां बैठा मंगल अच्छा परिणाम देता है ।।


मंगल स्वाभिमान है मंगल को कहीं झुकना पसंद नहीं ..


सुबह का सैर (Morning Walk) मंगल है...


खाने में मिष्ठान भोजन मंगल है..


शरीर में आपका रक्त मंगल है..


इसलिए जिसका मंगल बलवान हो उसके शरीर की हिमोग्लोबिन हमेशा अच्छी रहती है..


सभी भी प्रकार के विद्युत सामग्री Electrical Works मंगल है


दशम भाव चुकी कर्म का है, और मंगल कभी न थकने वाला कर्मचारी.. इसलिए कुंडली के दशम भाव में जाकर ये कुलदीपक योग बनाता है...


मंगल अगर बलि हो तो पहाड़ से भी पानी निकाल दे..


मंगल सूर्य के समान ही गर्म ग्रह है, जबकि दांपत्य जीवन में सौम्यता और मिठास जरूरी है


यही कारण है कि मंगल सातवें घर में बैठकर जीवन साथी के साथ क्लेश और मतभेद कराता है


इसका मिसाल ऐसा समझें अगर कोई युवक हथियार से लैस है तो वह अपने हथियार का रौब दिखाएगा खासकर उस व्यक्ति को जिसके हाथ में एक लाठी भी ना हो


(यहां हथियार वाले युवक से तात्पर्य एक मांगलिक जातक से है और जिसके पास लाठी भी ना हो इसका तात्पर्य जातक जिसके कुंडली में मांगलिक दोष ना हो उससे है)


पर वही सामने वाला व्यक्ति के पास भी आधुनिक ऑटोमेटिक हथियार हो, तो दोनों एक दूसरे से डरेंगे क्योंकि अगर इधर से हमला हुआ तो उधर से भी हमला होगा...


यही कारण है कि सातवें घर में बैठा मंगल अकेला दंगल मचाता है, अगर सामने बैठा नॉन मांगलिक हो, पर वही दोनों मांगलिक हो तो चुकी दोनों के हाथ में आधुनिक हथियार है इसलिए दोनों चुप बैठे रहते हैं और यह मांगलिक दोष का परिहार माना जाता है....


सभी प्रकार के हथियार, तलवार, अत्याधुनिक ऑटोमेटिक उपकरण, बम परमाणु मिसाइल सभी का कारक मंगल है..


अवैध रूप से रखा गया हथियार अगर राहु है, तो वह हथियार जिसका लाइसेंस है वह मंगल है..


कानूनी रूप से स्वीकृत किया गया हथियार जो आपके पास है उदाहरण स्वरूप पुलिस विभाग के पास तो या मंगल है..


अगर एक सामान्य व्यक्ति हथियार चलाएं तो यह कानूनी रूप से अपराध होगा, पर वही अगर एक पुलिस विभाग के उच्च पद पदाधिकारी एनकाउंटर के रूप में हथियार का इस्तेमाल करते हैं तो कानून उसको स्वीकृति देता है..


हथियार दोनों के पास है पर एक की स्वीकृति है, दूसरा अवैध।।


अस्वीकृत हथियार राहु है.. जबकि स्वीकृत हथियार मंगल है ।।


सभी प्रकार के खनन, माइनिंग, जमीन से जुड़े कार्य मंगल हैं ..


मंगल चुकी रक्त है इसलिए देश के प्रति सच्ची भक्ति भी मंगल है..


दिन में मंगलवार और सुबह 11:00 बजे मंगल बली होता है


क्योंकि सूर्य के बाद सबसे तेज चलने वाला ग्रह मंगल है, इसलिए चुकी सूर्य की महादशा 6 वर्ष की तो मंगल की महादशा छोटी यानी 7 वर्ष की होती है ।।।


आपके घर का रसोई मंगल है,


सभी प्रकार के चिमनी, अग्नि संबंधित कार्य, ईट भट्ठा सभी मंगल है..


जब मंगल खराब हो तो यही मंगल, दंगल मचाता है और दांपत्य को कष्ट देता है..


यही मंगल जब अच्छा हो तो जीवन में आनंद देता है


और लोग कहते हैं कि आपका दिन और जीवन मंगलमय हो...


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Sunday, June 18, 2023

सिद्धकाली इतरयोनि वशीकरण प्रयोग


 


सिद्धकाली इतरयोनि वशीकरण प्रयोग


हम कई बार इतर योनि साधना करते है।कई बार सफल तो कई बार असफल होते है।उसके कई कारण हो सकते है। जैसे उर्जा की कमी ,एकाग्रता की कमी,किन्तु उसका एक कारण ये भी है की हमारे अन्दर आकर्षण नहीं है।किसी को अपने वशीभूत करने की क्षमता का विकास हुआ ही नहीं।


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प्रस्तुत साधना प्रयोग इसी विषय पर है।देखने में भले ही यह अत्यंत छोटा प्रयोग लगता हो।किन्तु अपने अन्दर ये कई प्रकार की शक्तियां लिये हुए है।प्रस्तुत प्रयोग माँ सिद्धकाली से सम्बंधित है जो की सिद्धियों की दात्री है।


इस प्रयोग को यदि किसी भी इतर योनि साधना के पहले कर लिया जाये तो,सफलता के अवसर बड जाते है।क्युकी इस प्रयोग के माध्यम से आपके अन्दर उस इतर योनि को वशीभूत करने की क्षमता उतपन्न हो जाती है।यह प्रयोग मात्र एक दिवसीय है।


इसे आप किसी भी अमावस्या,रविवार,कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर सकते है,या आप जिस इतरयोनि की साधना करने जा रहे है,उस साधना के आरम्भ करने के ठीक एक दिन पहले भी इस प्रयोग को किया जा सकता है।


समय रात्रि ११ बजे के बाद का हो।आसन वस्त्र लाल। उत्तर दिशा की और मुख कर बैठ जाये।सामने बजोट पर लाल वस्त्र बिछा दे।अब नारियल का सुखा गोला ले,जो की पूरा हो।अब इसे ऊपर से थोडा सा काट ले और इसके अन्दर एक मावे का पेड़ा,थोडा सा गुड और थोड़े से काले तील भर दे।


इसके बाद पुनः कटे हुए हिस्से को गिले आटे की सहायता से बंद कर दे।इसके बाद तील के तेल में सिंदूर मिलाकर,गोले पर बीज मंत्र " क्रीं " का अंकन करे।और उसे बजोट पर स्थापित कर दे।इस प्रयोग में माँ के चित्र या विग्रह आदि की आवश्यकता नहीं है।


आपको इसी गोले को माँ सिद्धकाली मानकर पूजना है।सामान्य पूजन करे,कुमकुम ,हल्दी,सिंदूर,अक्षत तथा लाल पुष्पों से पूजन करे।तील के तेल का दीपक जलाये।तथा भोग में गुड अर्पण करे।समस्त सामग्री अर्पण करते समय सतत निम्न मंत्र का जाप करते रहे।


क्रीं क्रीं सिद्ध कालिके क्रीं क्रीं फट 

kreeng kreeng siddh kalike kreeng kreeng phat


इसके बाद आप किस इतरयोनि की साधना में सफलता के लिये यह प्रयोग कर रहे है इसका संकल्प ले।माँ सिद्ध कलि से प्रार्थना करे।इसके बाद मूंगा माला,रुद्राक्ष माला या काले हकिक की माला से निम्न मंत्र का २१ माला जाप करे।


ॐ क्रीं क्रीं सिद्धि दात्री सिद्धकाली अमुकं इतरयोनि वश्यं कुरु कुरु क्रीं क्रीं फट 


om kreeng kreeng siddhi datri siddhkaali amukam itaryoni vashyam kuru kuru kreeng kreeng phat


अमुकं की जगह उस इतर योनि का नाम ले जिसकी आप साधना करने वाले है।जाप के बाद घी में काले तील मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे,इस प्रकार यह एक दिवसीय प्रयोग संपन्न होता है।साधना के बाद या अगले दिन।


नारियल के गोले को उसी लाल वस्त्र में लपेट कर ले जाये।और किसी पीपल के पेड़ के निचे गाड़ दे।और एक तेल का दीपक प्रज्वलित कर माँ सिद्ध कलि से प्रार्थना कर लौट आये।


पीछे मुड़कर न देखे।अगर ये संभव न हो तो आप ये क्रिया किसी अन्य निर्जन स्थान में भी करके आ सकते है।तो विलम्ब कैसा अब समय आ गया है की माँ की कृपा प्राप्त की जाये,क्युकी अभी नहीं तो कभी नहीं।


साधना समाग्री दक्षिणा === 2100


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Saturday, June 17, 2023

शक्ति और आरोग्य के देवता हैं सूर्य देव, जानें पूजन विधि एवं चमत्कारी उपाय


 



शक्ति और आरोग्य के देवता हैं सूर्य देव, जानें पूजन विधि एवं चमत्कारी उपाय 


वैदिक काल से भगवान सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा और ईश्वर का नेत्र बताया गया है। सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य एवं शक्ति के देवता के रूप में मान्यता हैं।


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 सूर्यदेव की कृपा से ही पृथ्वी पर जीवन बरकरार है। ऋषि-मुनियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूपी ईश्वर बताते हुए सूर्य की साधना-आराधना को अत्यंत कल्याणकारी बताया है। 


प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। जिनकी साधना स्वयं प्रभु श्री राम ने भी की थी। विदित हो कि प्रभु श्रीराम के पूर्वज भी सूर्यवंशी थे। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके ही कुष्ठ रोग दूर कर पाए थे। 


सूर्य की साधना का महत्व 


भगवान भास्कर यानी सूर्यदेव की साधना-आराधना का अक्षय फल मिलता है। सच्चे मन से की गई साधना से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि एवं अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। ज्योतिष के अनुसार सूर्य को नवग्रहों में प्रथम ग्रह और पिता के भाव कर्म का स्वामी माना गया है।


 जीवन से जुड़े तमाम दुखों और रोग आदि को दूर करने के साथ-साथ जिन्हें संतान नहीं होती उन्हें सूर्य साधना से लाभ होता हैं। पिता-पुत्र के संबंधों में विशेष लाभ के लिए सूर्य साधना पुत्र को करनी चाहिए। 


सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं भगवान सूर्य


हमारी सृष्टि के प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य के रथ में सात घोड़े होते हैं, जिन्हे शक्ति एवं स्फूर्ति का प्रतीक माना जाता है। भगवान सूर्य का रथ यह प्रेरणा देता है कि हमें अच्छे कार्य करते हुए सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए, तभी जीवन में सफलता मिलती है। 


मंत्र से मूर्ति तक कुछ ऐसे प्रारंभ हुई सूर्य साधना


वैदिक काल से ही भारत में सूर्य की पूजा का प्रचलन रहा है। पहले यह साधना मंत्रों के माध्यम से हुआ करती थी लेकिन बाद में उनकी मूर्ति पूजा भी प्रारंभ हो गई। जिसके बाद तमाम जगह पर उनके भव्य मंदिर बनवाए गए। प्राचीन काल में बने भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर आज भी भारत में हैं। सूर्य की साधना-अराधना से जुड़े प्रमुख प्राचीन मंदिरों में कोणार्क, मार्तंड और मोढ़ेरा आदि हैं। 


सूर्य की साधना को समर्पित है रविवार का दिन 


रविवार का दिन भगवान सूर्य को समर्पित है। इस दिन भगवान सूर्य की साधना-आराधना करने पर शीघ्र ही उनकी कृपा प्राप्त होती है। रविवार के दिन भक्ति भाव से किए गए पूजन से प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष देवता सूर्यदेव अपने भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। 


इस विधि से करें सूर्य की साधना


सनातन परंपरा में प्रत्यक्ष देवता सूर्य की साधना-उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें 


ॐ घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें।


 सूर्य को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल दें। सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात्प लाल आसन में बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके सूर्य के मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। 

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उगते ही नहीं डूबते सूर्य को भी देते हैं अर्घ्य 


सूर्यदेव की न सिर्फ उदय होते हुए बल्कि अस्त होते समय भी की जाती है। भगवान भास्कर की डूबते हुए साधना सूर्य षष्ठी के पर्व पर की जाती है। जिसे हम छठ पूजा के रूप में जानते हैं। इस दिन सूर्य देवता को अघ्र्य देने से इस जन्म के साथ-साथ, किसी भी जन्म में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। अस्त हो रहे सूर्य को पूजन करने के पीछे ध्येय यह भी होता है कि —


 ‘हे सूर्य देव, आज शाम हम आपको आमंत्रित करते हैं कि कल प्रातःकाल का पूजन आप स्वीकार करें और हमारी मनोकामनाएं पूरी करें। 


क्यों करते हैं सूर्य के तीन प्रहर की साधना 


सूर्य की दिन के तीन प्रहर की साधना विशेष रूप से फलदायी होती है। 

1. प्रातःकाल के समय सूर्य की साधना से आरोग्य की प्राप्ति होती है। 

2. दोपहर के समय की साधना साधक को मान-सम्मान में वृद्धि कराती है। 

3. संध्या के समय की विशेष रूप से की जाने वाली सूर्य की साधना सौभाग्य को जगाती है और संपन्नता लाती है। 


सूर्य के इस मंत्र से पूरी होगी मनोकामना 


सूर्य की साधना में मंत्रों का जप करने पर मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती है। सुख-समृद्धि और अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्राप्त होता है। तमाम तरह की बीमारी और जीवन से जुड़े अपयश दूर हो जाते हैं। सूर्य के आशीर्वाद से आपके भीतर एक नई ऊर्जा का संचार होता है। जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता दिलाने वाले सूर्य मंत्र इस प्रकार हैं - 


एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणाध्र्य दिवाकर।।


ॐ घृणि सूर्याय नमः।।


ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पतेए अनुकंपयेमां भक्त्याए गृहाणार्घय दिवाकररू।।


ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।।


समृद्धि ही नहीं सेहत से भी जुड़े हैं सूर्य देव


सूर्यदेव की साधना से न सिर्फ सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, बल्कि आरोग्य भी प्राप्त होता है। सूर्य को किए जाने वाले नमस्कार को सर्वांग व्यायाम कहा जाता है। इसे करने से अच्छी सेहत के साथ-साथ मानसिक शांति भी मिलती है। पढ़े सूर्य नमस्कार के मंत्र -  


ॐ सूर्याय नमः।

ॐ भास्कराय नमः।

ॐ रवये नमः।

ॐ मित्राय नमः।

ॐ भानवे नमः।

ॐ खगय नमः।

ॐ पुष्णे नमः।

ॐ मारिचाये नमः।

ॐ आदित्याय नमः।

ॐ सावित्रे नमः।

ॐ आर्काय नमः।

ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।


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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...