Friday, March 6, 2020

माता चामुंडा साधना





माता चामुंडा साधना


किसी भी साधना को प्रारम्भ करने के लिए सबसे पहले जो मुख्य चीजें आवश्यक होती हैं उनका क्रम इस प्रकार है :-

सर्वप्रथम जिस दिन भी साधना प्रारम्भ करने का विचार करें तो पहले अपने इष्ट का वार पता कर लें जैसे कि माँ चामुंडा कि साधना किसी भी सोमवार या शुक्रवार से प्रारम्भ कि जा सकती है किन्तु इसमें एक चीज और ध्यान देने लायक होती है कि सभी साधनाओं का प्रारम्भ शुक्ल पक्ष से करना चाहिए !

इसके बाद जिस दिन भी आप साधना प्रारम्भ करेंगे उस दिन आपको कुछ ज्यादा समय देना होगा क्योंकि वह दिन मुख्यतः अपने इष्ट को अपने घर और ह्रदय में स्थापित करने का दिन होता है -!

साधना के लिए जो मुख्य बातें ध्यान में रखनी चाहिए वे निम्न प्रकार होंगी :-

१- माँ का एक चित्र ( यदि मूर्ति स्थापित करते हैं जैसे कि पीतल (ब्रॉस) या फिर अन्य किसी धातु की तो एक बात का ध्याना रखना चाहिए कि मूर्ति कि ऊंचाई १२ इंच से अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे अधिक ऊंचाई कि मूर्ति घर में नहीं रखी जाती बल्कि मंदिर में स्थापित होती है ) लेकिन कागज या पेंटिंग के मामले में यह नियम लागु नहीं होता

२. आसन / चौकी / बाजोट :- बहुत बार देखने में आता है कि लोग किसी भी चौकी या किसी भी स्थान पर इष्ट कि स्थापना कर लेते हैं किन्तु यदि वैदिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो इष्ट कि मूर्ति कि अवस्था आप जब बैठें तो आपकी नाभि से ऊपर होनी चाहिए कहने का मतलब कि आसन इस प्रकार व्यवस्थित करें कि जब आप साधना के लिए अपने इष्ट के सामने बैठें तो उनका आसन जिस पर उन्हें स्थान दिया गया है उसकी ऊंचाई आपके ह्रदय क्षेत्र के सामने होनी चाहिए

३. स्थान चुनाव :- स्थान का चुनाव भी आपकी साधना में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है --- साधना के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिए जहाँ पर आम आना जाना न हो -- कहने का अभिप्राय ये है कि साधना कक्ष एकांत में होना चाहिए और वहाँ तक सबकी पहुँच नहीं होनी चाहिए

४. दिशा निर्धारण :- साधना के लिए हमेशा अपने इष्ट देव कि स्थापना इस प्रकार करनी चाहिए कि जब आप साधना के लिए उनके समक्ष बैठें तो आपका मुंह उत्तर - नॉर्थ / पूर्व - ईस्ट कि तरफ पड़े !

साधना चरण :-

प्रथम पूजन खंड

A . षोडशोपचार पूजन :-

१.आवाहन - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे आगच्छय आगच्छय

२. आसन - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे आसनं समर्पयामि

३. पाद्य ( चरण धोना ) - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे पाद्यं निवेदयामि

४. अर्घ्य - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे अर्घ्यं निवेदयामि

५, आचमन - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे आचमनं समर्पयामि

६. स्नान - ॐ सह त्रिवेणी सलिलाधारम लोक संस्मृति मात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम् - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे स्नानं निवेदयामि

७. वस्त्र - वस्त्र समर्पण में हमेशा दो वस्त्रों का समर्पण किया जाता है और उसका रंग लाल होना चाहिए - वस्त्र न होने कि स्थिति में मौली धागा ( जो प्रायः अनुष्ठान में रक्षा धागा के रूप में पुरोहितों द्वारा यजमान के हाथ में बंधा जाता है प्रयोग किया जा सकता है किन्तु उनमे से किसी भी धागे कि लम्बाई बारह अंगुल से कम नहीं होनी चाहिए )

अ. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे प्रथम वस्त्रं समर्पयामि

ब. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि

८. यज्ञोपवीत ( यज्ञोपवीत एक धागा होता है जो गृहस्थ लोगों द्वारा धारण किया जाता है ) - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे यज्ञोपवीतं समर्पयामि

९. चन्दन - ॐ मल्यांचल सम्भूतं नाना गंध समन्वितं - शीतलं बहुलामोदम गन्धं चन्दनं निवेदयामि

१०. अक्षत - ( अक्षत को हिंदी में चावल बोलते हैं अक्षत का पूजा एवं साधना में अभिप्राय होता है - आपके इष्ट के पसंदीदा रंग में रंगे हुए चावल जो टूटे-फूटे हुए न हों - माँ चामुंडा कि साधना में अक्षत लाल रंग में रंगे हुए प्रयोग किये जाते हैं )

-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे आचमनं समर्पयामि

११. पुष्प - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे पुष्पं समर्पयामि

१२. सिंदूर ( सिंदूर समर्पण करते समय एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब भी आप सिंदूर चढ़ाएंगे तो सिंदूर को माँ के मस्तक या ऊपर नहीं चढ़ाना है बल्कि उस सिन्दूर को उनके चरणों के पास समर्पित करना है ) - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे सिन्दूरं समर्पयामि

१३. पान -ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे ताम्बूलं समर्पयामि

१४. सुपारी - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे पुन्गीफलं समर्पयामि

१५. धूप - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे गुग्गल संयुतं नाना गंध समन्वितं एवं भक्ष्य पदार्थ समन्वितं धूपं समर्पयामि

१६ . दीप - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे घृत-कर्पूर-कपास एव स्वर्ण पात्र निर्मित दीपं समर्पयामि

१७ . नैवेद्य - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे नाना फल फूल एव खाद्य पदार्थ संयुक्त नैवेद्यम समर्पयामि-

मध्यम पूजन खंड

इन उपरोक्त १७ चरणों को प्राथमिक पूजन में शामिल किया जाता है इसके पश्चात् मध्यम पूजन का विधान है जिसमे हम शामिल करते हैं :-

स्तुति :-

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे। सर्वस्यातिहरे देवि नारायणी नमोस्तुते।।

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वेशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।।

रोगनशेषानपहंसि तुष्टा। रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां। त्वमाश्रिता हृयश्रयतां प्रयान्ति।।

सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।

सर्वाबाधा विर्निर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।।

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

कवच :-

॥ अथ देव्याः कवचम्‌ ॥

विनियोग
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप्‌ छन्दः, चामुण्डा देवता, अंगन्यासोक्तमातरो बीजम्‌, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्‌, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठांगत्वेन जपे विनियोगः।

॥ ॐ नमश्चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्‌।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥

ब्रह्मोवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्‌।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥2॥
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्‌॥3॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्‌॥4॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥
अग्निता दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥
न तेषा जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥7॥
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धि प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमानरूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥11॥
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥12॥
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शंख चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्‌॥13॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शांर्गमायुधमुत्तमम्‌॥14॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वस॥15॥
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महावले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिन।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥17॥
दक्षिणेऽवतु वाराहीनैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥18॥
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेद्धस्ताद् वैष्णवी तथा ॥19॥
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया में चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥20॥
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21॥
मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥22॥
शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले च शांकरी॥23॥
नासिकायां सुगन्दा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥24॥
दन्तान्‌ रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥25॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥26॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू में व्रजधारिणी॥27॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चांगुलीषु च।
नखांछूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥29॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥30॥
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जंघे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादांगुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥32॥
नखान्‌ दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥34॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥35॥
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्‌।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान्‌ रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥41॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥42॥
पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥43॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्‌।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्‌॥44॥
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्‌॥45॥
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्‌।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥47॥
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जंगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्‌॥48॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥50॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥51॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्‌॥52॥
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥53॥
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्‌।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥54॥
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्‌।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥56॥

॥ इति देव्याः कवचं संपूर्णम्‌ ॥

कवच पाठ के उपरांत मंत्र जाप सम्पन्न करें जिसमे लाल चन्दन की माला का प्रयोग होगा और जप संख्या १०८

मंत्र जप :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै स्वाहा

अंतिम पूजन खंड

१८ . दक्षिणा - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे कांचनं रजतोपेतं नाना रत्न समन्वितं दक्षिणाम समर्पयामि

१९. पुष्पांजलि - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे पुष्पांजलि समर्पयामि

२०. नीराजन - ( वस्तुतः इस चरण में पूजा समापन के स्टार पर आ जाती है और इस चरण में कर्पूर का दीपक जलाकर माँ कि प्राथमिक आरती कि जाती है ) - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डे नीराजनं निवेदयामि

२१. आरती :- इस चरण में माता कि आरती गाते हुए आरती समपन्न कि जाती है -

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ टेक ॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।

उज्जवल से दो‌उ नैना, चन्द्रबदन नीको ॥ जय 0

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।

रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥ जय0

केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी ।

सुर नर मुनिजन सेवक, तिनके दुखहारी ॥ जय 0

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।

कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ॥ जय 0

शुम्भ निशुम्भ विडारे, महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ जय 0

चण्ड मुण्ड संघारे, शोणित बीज हरे ।

मधुकैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे ॥ जय 0

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी ।

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ जय 0

चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरुं ।

बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु ॥ जय 0

तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता ।

भक्‍तन् की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता ॥ जय 0

भुजा चार अति शोभित, खड़ग खप्परधारी ।

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ जय 0

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।

श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ॥ जय 0

श्री अम्बे जी की आरती, जो को‌ई नर गावै ।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥ जय 0

२२ . प्रदक्षिणा - इस चरण में यदि आपके साधना स्थल में इतनी जगह है कि आप माता कि मूर्ति के चरों और घूमकर परिक्रमा कर सकें तो बहुत बेहतर है अन्यथा अपने स्थान पर खड़े होकर और यह कल्पना करते हुए कि आप माँ के चरों और परिक्रमा लगा रहें हैं अपने स्थान पर ही एक चक्कर लगा लेते है या फिर यदि आप इससे ज्यादा भी लगाना चाहें को कोई निषेध नहीं है !

- यानि कानि च पापानि - जन्मान्तर कृतांचा !
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणं पदे पदे !!

इस प्रकार आपने अपनी साधना का प्रथम सोपान पूरा किया इसके पश्चात् यदि आप चाहें तो इसमें और भी चीजें शामिल कर सकते जैसे कि ( अर्गला स्तोत्र , कीलक स्तोत्र , रात्रिसूक्त , वैकृतिक रहस्यम , चालीसा एवं अन्य बहुत कुछ )

सायंकाल पूजा खंड

इसके पश्चात् आपके लिए सायंकाल की प्रक्रिया भी करनी अति आवश्यक है क्योंकि यदि आपने माँ को अपने घर में , मंदिर में या ह्रदय में स्थान दिया है तो सायंकाल कि आरती अति आवश्यक है उसमे आप माँ कि स्तुति - चालीसा - चाहें तो कवच का पथ करके माँ कि आरती संपन्न करें !

जय माता महाकाली

जय माँ चामुण्डे

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

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(रजि.)

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