Saturday, March 28, 2020

सम्भोग से समाधि - कैसे सम्भव होता है ?







सम्भोग से समाधि - कैसे सम्भव होता है ?


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भारतीय कुंडलिनी साधना के दो मार्गों में से एक मार्ग तंत्र का और दूसरा योग का रहा है |योग शरीर को अनुकूल बना कुंडलिनी जागरण करता है जिसमे नियम -संयम -आहार -प्राणायाम और ध्यान मुख्य तत्व होते हैं तो तंत्र में शरीर की ऊर्जा ,भाव और कठोर नियंत्रण मुख्य तत्व हैं |योग सम्भोग से विरक्ति पर कुंडलिनी जागरण की बात करता है तो तंत्र सम्भोग से ही कुंडलिनी जागरण की बात करता है |

सम्भोग से समाधि तो बहुत छोटी अवस्था है ,तंत्र तो सम्भोग से कुंडलिनी जागरण कर मोक्ष की बात करता है |सम्भोग से समाधि ,नाम का प्रचलन इसलिए अधिक हुआ की ओशो ने इस नाम से एक पुस्तक लिख दी |

ओशो ने भी भारतीय तंत्र सूत्रों पर ही यह पुस्तक लिखी किन्तु तंत्र सूत्र इससे भी कई कदम आगे मोक्ष और शिव -शक्ति के सायुज्य की बात करते हैं |सम्भोग से समाधि ही नहीं शिव -शक्ति सायुज्य और मोक्ष भी मिलता है यह वास्तविक तथ्य है भले इसे न जानने वाले , न समझने वाले इसकी कितनी भी आलोचना करें |

यह विज्ञान भी उन्ही सूत्रों पर आधारित है जो विज्ञान ब्रह्मचर्य से ऊर्जा संरक्षण कर इश्वर प्राप्ति की बात करता है |भोग से मोक्ष प्राप्ति का तंत्र मार्ग हजारों -हजार वर्ष पुराना है जिसे अब कौल मार्ग कहा जाता है तथा इसके अब कई प्रकार विकसित हो चुके हैं |भारतीय तंत्र से ही यह ज्ञान बौद्ध में और क्रमशः पूरी दुनियां में फैला |

भारत में यह गोपनीय साधना रहा और सामान्य सामाजिक संस्कार में इसे बताये जाने से परहेज रहा क्योंकि ऋषियों का मानना था की इससे सामाजिक उश्रीन्खलता बढ़ सकती है |यह गृहस्थ ऋषियों का गृहस्थ रहते हुए कुंडलिनी साधना का मार्ग रहा है जिससे वह आध्यात्मिक उन्नति भी करते रहें और गृहस्थ धर्म का भी पालन करते हुए सामाजिक विकास भी करते रहें |यह साधना मार्ग पूर्णतया वैज्ञानिक सूत्रों के अनुसार ही चलता है जिसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा विगान कहते हैं ,भले आज का विज्ञानं वहां पहुंचा हो या नहीं |

तंत्र के एक मुख्य मार्ग कुंडलिनी जागरण में सम्भोग से समाधि की बात कही गयी है ,यद्यपि अन्य रास्ते भी होते हैं ,किन्तु इस मार्ग की विशेषता यह है की यह वही कार्य कुछ ही समय में संपन्न कर सकता है जिसे अन्य मार्ग वषों में शायद कर पायें |

इसकी पद्धति पूर्ण वैज्ञानिक है और शारीरिक ऊर्जा को इसका माध्यम बनाया जाता है |धनात्मक और ऋणात्मक की आपसी शार्ट सर्किट से उत्पन्न अत्यंत तीब्र ऊर्जा को पतित होने से रोककर उसे उर्ध्वमुखी करके इस लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है ,यद्यपि यह अत्यंत कठिन और खतरनाक मार्ग भी है जिसमे ऊर्जा न सँभालने पर पूरी सर्किट के ही भ्रष्ट होने का खतरा होता है ,पर यह मार्ग वह उपलब्धियां कुछ ही समय में दे सकता है ,जिसे पाने में अन्य मार्गों से वर्षों समय लगता है और निश्चितता भी नहीं होती की मिलेगा ही |

यह मार्ग यद्यपि अत्यंत विवादास्पद रहा है किन्तु इसकी वैज्ञानिकता संदेह से परे है और सिद्धांत पूरी तरह प्रकृति के नियमो के अनुकूल है |तभी तो प्रकृति पर नियंत्रण का यह सबसे उत्कृष्ट माध्यम है ,और किसी न किसी रूप में अन्य माध्यमो में भी अपनाया जाता है |

सामान्य पूजा-अनुष्ठानो में भी ब्रह्मचर्य के पालन की हिदायत दी जाती है ,उसका भी वही उद्देश्य होता है की ऊर्जा संरक्षित करके उसे उर्ध्वमुखी किया जाए |तंत्र में अंतर बस इतना ही आता है की इस ऊर्जा को तीब्र से तीब्रतर करके रोका और उर्ध्वमुखी किया जाता है ,इस हेतु प्रकृति की ऋणात्मक शक्ति को सहायक बनाया जाता है तीब्र ऊर्जा उत्पादन में |

सम्भोग और समाधि एक ही ऊर्जा के भिन्न तल हैं|. निम्न तल यानी मूलाधार चक्र पर जब जीवन ऊर्जा की अभिव्यक्ति होती है तो यह सेक्स बन जाता है ,सम्भोग बन जाता है |. उच्च तल पर समान उर्जा भगवत्ता बन जाती है जिसे समाधि कहा गया है|.यौन ऊर्जा का अर्थ वीर्य से नही है.| 

वीर्य मात्र यौन ऊर्जा का भौतिक तल है.| यौन ऊर्जा का वाहक है वीर्य.| यौन ऊर्जा ऊपर गति करती है| इसका यह अर्थ नही है वीर्य ऊपर चढ़ जाता है|. वीर्य के ऊपर चढने का कोई उपाय नही है|. यह मनस ऊर्जा है ,ओज है और अदृश्य है|.

 इसका केवल अनुभव होता है. जैसे हवा अदृश्य है और उसका केवल अनुभव होता है.| हमारी रीढ़ की हड्डी में ३ सूक्ष्म नाड़िया हैं - इडा- पिंगला- सुषुम्ना. यह मनस उर्जा सुषुम्ना के द्वारा ऊपर का अभियान करती है. इसका सामना सात स्टेशनों से पड़ता है जिसे चक्र कहते हैं. और इस पूरी ऊर्जा की यात्रा को 'कुण्डलिनी जागरण' कहते हैं.|

ध्यान और तंत्र की विधियों द्वारा इस ऊर्जा को ऊपर ले जाया जा सकता है.| यह विधिया आज से हजारों वर्ष पूर्व विश्व के प्रथम गुरु और मूल शक्ति भगवान शिव ने पार्वती को कहीं थी जिसे तन्त्र' में संस्कृत में संकलित किया गया है |एक ही भौतिक शरीर के प्रत्येक चक्र से एक अलग आध्यात्मिक शरीर जुडा हुआ है. और हर दूसरा शरीर विपरीत है. अर्थात पुरुष का दुसरा शरीर स्त्री का है और स्त्री का दुसरा शरीर पुरुष का. इसी लिए स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक धैर्यवान होती हैं क्यूँ की उनका दूसरा शरीर पुरुष का है जो अपेक्षाकृत मजबूत है.| अर्धनारीश्वर की प्रतिमा यही सन्देश देती है|

.इस प्रकार प्रत्येक शरीर में ७ चक्रों से जुड़े ७ शरीर होते हैं. एक -एक चक्र के जागरण के साथ एक एक शरीर सक्रीय होने लगता है. |शरीर परस्पर मिल जाते हैं. कुंडलीनी जागरण की यह प्रक्रिया ' अंतर सम्भोग' कही जाती है क्यूँ की एक स्त्री शरीर अपने ही पुरुष शरीर से संयुक्त हो जाती है, इसमें ऊर्जा नष्ट नही होती बल्कि ऊर्जा का एक अनन्य वर्तुल बन जाता है जो आध्यात्मिक जागरण और आंतरिक आनंद के रूप में परिलक्षित होता है. संतो के चेहरे पर खुमारी, तेज, दिव्यता का यही कारण है.|

 इस अंतर सम्भोग के अनेक दिव्य परिणाम होते हैं| बाहर के सेक्स से अनंत गुना आनंद और तृप्ति उपलब्ध होती है.| प्रत्येक चक्र के जागरण और शरीरो के मिलन से आनंद का खजाना मिलने लगता है|. बाहर सेक्स की इच्छा समाप्त हो जाती है. इसी को ब्रह्मचर्य कहते हैं.| व्यक्ति ब्रह्म जैसा हो जाता है. |उसकी चर्या ब्रह्म जैसी हो जाती है. शिव लिंग का प्रतीक इसी अंतर सम्भोग को परिलक्षित करता है.| 

चक्रों के जगने के साथ उसके सम्बंधित सिद्धियाँ मिल जाती हैं- जैसे ह्रदय चक्र के जगने के साथ विराट करुना व प्रेम के आनंद का भान होने लगता है|. आज्ञा चक्र के जगने के साथ व्यक्ति तीनो कालो को जानने वाला हो जाता है.| विशुद्ध चक्र के जागने के साथ व्यक्ति जो बोले वह सत्य होने लगता है.| 

प्राचीन आशीर्वाद की कथाये उन्ही ऋषियों की क्षमताये हैं जिनका विशुद्ध चक्र सक्रीय हो गया था.| सहस्रार चक्र आखिरी चक्र है जिसके सक्रीय होते ही व्यक्ति परम धन्यता को उपलब्ध हो जाता है| जब वह ब्रह्म ही हो जाता है- 'अहम् ब्रह्मास्मि' का उद्घोष| . उसके शक्ति के अंतर्गत समस्त सृष्टि की शक्तियां उसके पास आ जाती हैं लेकिन वह इनका उपयोग नही करता क्यूँ की उसे यह भी बोध हो जाता है की सृष्टि व इसके नियम उसी के द्वारा बनाये गये हैं.| 

परम ज्ञान की अवस्था को समाधि कहा गया है|. समाधि का अर्थ है समाधान.| इसकी अनुभूति चौथे शरीर से ही होने लगती है. चौथे शरीर से ही परमात्मा का ओमकार स्वरूप पकड़ में आने लगता है.|

अब हम आपको बताते हैं की वास्तव में सम्भोग से चक्र जागरण कैसे होता है और समाधि की अवस्था कैसे आती है ,कैसे व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है |कुछ सुनने वाले बिना समझे ,बिना जाने कमेन्ट में लिखेंगे की यह सम्भव ही नहीं है ,यह गलत है ,यह भोग मात्र है ,छद्म संस्कारियों को बात तक गलत लगेगी ,किन्तु यह सत्य है की ऐसा होता है और यह पूरी तरह सम्भव है |हम सामान्य सम्भोग की बात नहीं कर रहे ,हम लक्ष्य विशेष की ओर केन्द्रित सम्भोग की बात कर रहे और सम्भोग का अर्थ होता है सम अर्थात बराबर भोग का अर्थ है लिप्तता |जहाँ दो लोग बराबर संलिप्त हो भावावेग के साथ सम्बद्ध हो वही सम्भोग है |बिना भावना जुड़े सम्भोग सम्भव नहीं और तब वह मात्र भोग होता है |

तंत्र में शरीर के सम्पर्क से अधिक मन और भावना का सम्पर्क महत्व रखता है ,यहाँ मनुष्य रति कम ब्रह्म रति और आत्मिक रति महत्व रखती है |सामान्य सम्भोग से भी अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है किन्तु जब आत्मिक या ब्रह्म रति की स्थिति में युगल आते हैं तो ऊर्जा की मात्रा इतनी अधिक बढती है की शरीर कम्पायमान होने लगता है और सुध बुध खोने लगता है |

जब एक युगल संभोगरत होते हुए भी पतित नहीं होता तो उसकी ऊर्जा ओज में बदलकर उर्ध्वमुखी होने लगती है |यहाँ वीर्य अथवा राज उर्ध्वमुखी नहीं होते ,इनके तो उपर जाने का मार्ग ही नहीं है |

संभोगरत अवस्था में वीर्य और रज का उत्पादन होता है सामान्य अवस्था से कई गुना अधिक किन्तु इस उत्पादित वीर्य -रज को पतित नहीं होने दिया जाता |एक निश्चित अवस्था पर सम्भोग रोककर इन्हें पतन तक आने नहीं दिया जाता |रोकने की निश्चित अवस्था का ज्ञान और आवश्यक तकनीकियाँ गुरु बताता है |यदि गलत स्थान पर गलत समय इन्हें रोका जाय तो यह गंभीर रोग अथवा शारीरिक समस्या उत्पन्न कर सकते हैं किन्तु तंत्र साधक ६ महीने तक भी साधना करते हुए भी रोकते हैं और उनमे कोई विकृति नहीं आती ,उनकी सामर्थ्य और क्षमता बढ़ जाती है |यह सब तकनीक पर आधारित होता है जो मात्र गुरु बताता है 

|हम यहाँ तकनीक पर कोई चर्चा नहीं कर सकते क्योंकि यह गोपनीय होते हैं और बताना तंत्र नियमो का उल्लंघन होता है |हम मात्र यह बता रहे की कैसे सम्भोग से समाधि और मोक्ष सम्भव है |२ मिनट में पतित होने वाले शायद दो घंटे का बिना पतन का सम्भोग न समझ पायें ,सम्भोग को मात्र भोग समझने वाले शायद इसकी शक्ति को न समझ पायें किन्तु यह वह शक्ति है जो व्यक्ति को श्रृष्टि की उसकी ही क्षमता से उसे श्रृष्टिकर्ता तक से मिला सकती है |

संभोगरत युगल जब पतित होने से खुद रोकते हुए साधनारत रहता है तो ऊर्जा तो पतित नहीं होती किन्तु ऊर्जा उत्पादन होते रहने से ऊर्जा बढती और संघनित होती जाती है ,यह ऊर्जा तीव्र क्रिया के साथ एकत्र हो ओज में बदलती है और भौतिक अस्तित्व से उपर उठते हुए सूक्ष्म शरीर के चक्र मूलाधार को और उद्वेलित करती जाती है जिससे वहां तरंगो का उत्पादन बढ़ता जाता है ,वहां की शक्तियाँ क्रियाशील होने लगती हैं |

कुछ समय बाद यह उद्वेलन इतना बढ़ता है की मूलाधार में सुप्त पड़ी कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होने लगती है ,समय क्रम में ऊर्जा प्रवाह बढने पर कुंडलिनी जागकर तीव्रता से क्रिया करती है और उपर की ओर उठती है |यहाँ मूलाधार का जागरण होता है और सभी सुप्त शक्तियाँ जाग्रत होने से यहाँ से सिद्धियों का क्रम शुरू होता है |जब ऊर्जा उत्पादन सतत बना रहता है और साधक युगल नियंत्रित हो साधनारत रहते हैं तो कुंडलिनी स्वाधिष्ठान और क्रमशः अन्य चक्रों का जागरण करते हुए सहस्त्रार तक पहुँचती है और यहाँ शिव -शक्ति सायुज्य होता है |

समाधि की अवस्था तो बीच में ही आ जाती है ,सहस्त्रार से निर्बिक्ल्प समाधि और ब्रह्माण्ड यात्रा शुरू हो जाती है अंततः व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है |समाधि तो मुक्ति अवस्था पाते ही लग जाती है और मुक्ति तथा मोक्ष में बड़ा अंतर है |यह सब सुनने में तो आसान लग रहा किन्तु यह दुनियां का सबसे कठिन काम है क्योंकि मनुष्य की प्रकृति ही पतित होने की होती है और वह पूरा जीवन अपनी ऊर्जा फेंकता ही रहता है |खुद की प्रवृत्ति बदल ऊर्जा संरक्षित कर उर्ध्वमुखी करना संसार का सबसे कठिन काम है ,वह भी तब जब की वह ऊर्जा सामान्य से लाखों गुना बढ़ जाए रोकते हुए |इसी कारण से तंत्र से कुंडलिनी साधना सबसे कठिन है क्योंकि यह उस शक्ति को उपर उठाता है जो हमेशा नीचे की ओर ही जाना चाहती है |

यह सब तकनिकी और गुरु गम्य मार्ग है जहाँ बिना गुरु के एक कदम नहीं चला जा सकता |ऊर्जा न सम्भली तो भी पतन है और तकनीकी गलती हुई तो भी पतन है |हमारा उद्देश्य मात्र इतना है यहाँ बताने का की वास्तव में कैसे सम्भोग से समाधि और मोक्ष या मुक्ति की स्थिति आती है |हम चक्रीय विस्तार में नहीं गए हैं क्योंकि विषय इतना बड़ा है की कई पुस्तक कम पड़ जायेंगे |

सम्भोग से समाधि सम्भव है और यह पद्धति हमेशा से भारतीय तंत्र की अमूल्य धरोहर रहा है जिसके द्वारा गृहस्थ भी कुंडलिनी साधना करते हुए वह सभी लक्ष्य पा सकते हैं जो एक योगी और सन्यासी पाता है |चूंकि यह मार्ग भोग में रहते हुए भोग द्वारा हो मोक्ष देने का मार्ग है अतः कठिन भी कई गुना अधिक है और खतरे भी अधिक होते हैं .

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

       राजगुरु जी 

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


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