Friday, March 13, 2020

विघ्नहर्ता भैरव :




विघ्नहर्ता भैरव :


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शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को भगवान भैरव प्रकट हुए थे, जिसे श्रीकाल भैरवाष्टमी के रूप में जाना जाता है। रूद्राष्टाध्यायी तथा भैरव तंत्र के अनुसार भैरव को शिवजी का अंशावतार माना गया है।

 भैरव का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं। इनका वाहन श्वान (कुत्ता) है। इनकी वेश-भूषा लगभग शिवजी के समान है। भैरव श्मशानवासी हैं। ये भूत-प्रेत, योगिनियों के अधिपति हैं। 

भक्तों पर स्नेहवान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं। भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति भैरव जयंती को अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है।

रविवार एवं मंगलवार को भैरव की उपासना का दिन माना गया है। कुत्ते को इस दिन मिष्ठान खिलाकर दूध पिलाना चाहिए।

ब्रह्माजी के वरदान स्वरूप भैरव जी में सम्पूर्ण विश्व के भरण-पोषण की सामथ्र्य है, अत: इन्हें "भैरव" नाम से जाना जाता है। इनसे काल भी भयभीत रहता है अत: "काल भैरव" के नाम से विख्यात हैं। 

दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें "आमर्दक" कहा गया है। शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। 

शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार या मंगलवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

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