Tuesday, March 31, 2020

भुताकर्षण गोलक निर्माण विधि







भुताकर्षण गोलक निर्माण विधि


सामग्री: पीपल के निचे की मिट्टी,लाल चन्दन,सिंदूर,काले तील,गुलाबजल और सादा जल।

विधि:

 निर्माण आपको अमावस्या की रात्रि में करना है. समय रात्रि दस बजे के बाद हो,दिशा दक्षिण हो ,आसन वस्त्र लाल या काले हो. अपने सामने एक पात्र में मिटटी रखे और और उसमे लाल चन्दन मिलाये,याद रखे मिटटी में कंकर न हो इसलिये उसे पहले ही सुखाकर छान कर रखे.

 अब गुलाब जल और सादा जल मिलाये।यह सब प्रक्रिया करते वक़्त" भ्रं भ्रं भूतेश्वराय " का जाप करते रहे.जब सारी सामग्री मिल जाए ,तब उसका एक गोला बना ले लड्डू की तरह।और उसे सुखा ले.जब वो सुख जाये तो उस पर सिंदूर का लेप कर दे. 

अब किसी भी शनिवार की रात्रि में सामने लाल वस्त्र बिछा कर,उसपर ताम्र पात्र स्थापित करे. और उसमे सिंदूर या शमशान भस्म से बीज मंत्र ' हूं ' लिखे. और उस पर गोलक को स्थापित करे. और उसका सामान्य पूजन करे.

 भोग में गुड रखे. अब निरंतर बिना किसी माला के, मंत्र जाप करते जाये और काले तील गोलक पर अर्पण करते जाये।याद रखे इसमें तील के तेल का दीपक जलता रहे जब तक क्रिया पूर्ण न हो जाये .

अगर कोई अनुभव हो तो डरे नहि. सदगुरुदेव रक्षक है तो कैसा डर ?अगले दिन गोलक को संभाल कर रख ले.

 जब भी आप भूत साधना करे इसे सामने रखे और इसका पूजन कर मंत्र का एक सौ आठ बार जाप करे और साधना शुरू करे. लाल कपडा ,तील, भोग का गुड सभी को शमशान में फेक दे. 

ताम्र पात्र को धो ले उसे उपयोग किया जा सकता है.एक बात और याद रखे आपको जिस दिन भी भूत साधना में सफलता मिल जाएगी,ये गोलक उसी वक़्त तेज हिन हो जायेगा,तब इसे अपने पास न रखे इसे भी शमशान में फेक दे कुछ दक्षिणा के साथ।जब तक सफलता न मिले इसका उपयोग किया जा सकता है. उसके बाद नहीं।जय माँ

मंत्र:

 ॐ हूं भ्रं भ्रं भ्रं भूतेश्वराय भूताकर्षण कुरु कुरु भ्रं भ्रं भ्रं हूं फट

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

           

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

Sunday, March 29, 2020

नारायण महालक्ष्मी साधना




नारायण महालक्ष्मी साधना 


महालक्ष्मी साधना से क्या लाभ है ये तो सभी जानते है,परन्तु साधना करने के बाद भी वे कुछ समय जीवन में आती है और फिर चली जाती जाती है।

क्युकी जब हम अकेले महालक्ष्मी की साधना करते है तो वे अपने वाहन उल्लू पर आती है और कुछ दिन रूककर हमें उल्लू बनाकर चली जाती है।

पर जब महालक्ष्मी की साधना भगवन नारायण के साथ की जाती है,तो महालक्ष्मी प्रभु के साथ गरुड़ पर बैठ कर आती है।और प्रभु अपने भक्तो का घर कभी छोड़कर नहीं जाते है 

अतः जहा नारायण होते है वह महालक्ष्मी को स्थिर होना ही पड़ता है।प्रस्तुत साधना इसी विषय पर है ताकि महालक्ष्मी आपके जीवन में नारायण के साथ आये और स्थिर हो जाये।आप इस साधना को कर महालक्ष्मी नारायण की कृपा प्राप्त करे।

साधना विधि:

 साधना किसी भी शुक्रवार रात्रि 11 बजे से शुरू कर,आपके आसन वस्त्र पीले हो,तथा मुख उत्तर या पूर्व की और हो।सामने बजोट पर पिला वस्त्र बिछाकर उस पर लक्ष्मी नारायण की कोई प्रतिमा या चित्र स्थापित करे,अगर चित्र स्थापित कर रहे है तो गरुड़ पर बैठे लक्ष्मी नारायण का चित्र स्थापित करे,

ये न मिले तो कोई भी कर सकते है।सामान्य पूजन करे केसर मिश्रित खीर का भोग लगाये,संकल्प ले की महालक्ष्मी तथा नारायण मेरे जीवन में पधारे इसलिये में ये साधना कर रहा हु सदगुरुदेव तथा नारायण मुझे सफलता प्रदान करे।

दीपक घी या तील के तेल का हो,एक नारियल बजोट पर ही चावल की ढेरी पर स्थापित करे।अब तुलसी माला या स्फटिक माला से निम्न मंत्र की 21 माला करे।

ये क्रम 7 दिन तक जारी रहे सातवे दिन जप के बाद पञ्च मेवे को घी में मिलाकर कम से कम 108 आहुति दे या इससे ज्यादा भी दी जा सकती है।प्रसाद नित्य ग्रहण कर लिया करे।

साधना समाप्ति के बाद वो नारियल और चावल उसी पीले कपडे में लपेट कर किसी लक्ष्मी नारायण मंदिर में कुछ दक्षिणा के साथ अर्पण कर दे।

मंत्र: ॐ श्रीं श्रीं नारायणाय महालक्ष्मी सह मम गृहे आगच्छ आगच्छ श्रीं श्रीं नमः।

आपकी साधना सफल हो,नमो नारायण नमो लक्ष्मी

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


Saturday, March 28, 2020

पंचांगुली साधना...





पंचांगुली साधना...


पंचांगुली साधना....यह साधना किसी भी समय से प्रारम्भ की जा सकती है, परन्तु साधकको चाहिए कि वह पूर्ण विधि विधान के साथ इस साधना को सम्पन्नकरेँ, मन्त्र जप तीर्थ भूमि, गंगा-यमुना संगम, नदी-तीर, पर्वत,गुफा, या किसी मन्दिर मे की जा सकती है, साधक चाहे तो साधना केलिए घर के एकांत कमरे का उपयोग भी कर सकते हैँ ।

इस साधना मेँ यन्त्र आवश्यक है, शुभ दिन शुद्ध , समय मेसाधना स्थान को स्वच्छ पानी से धो ले, कच्चा आंगन हो तो लीप लेँ ,तत्पश्चात लकडी के एक समचौरस पट्टे पर श्वेत वस्त्र धो करबिछा देँ, और उस पर चावलोँ से यन्त्र का निर्माण करेँचावलोँ को अलग-अलग 5 रंगो मे रंग देँ , यन्त्र को सुघडता से सही रुपमेँ बनावे यन्त्र की बनावट मे जरा सी भी गलती सारे परिश्रम को व्यर्थकर देती है ।

तत्पश्चात यन्त्र के मध्य ताम्र कलश स्थापित करेँ और उस पर लालवस्त्र आच्छादित कर ऊपर नारियल रखेँ और फिर उस परपंचागुली देवी की मूर्ति स्थापित करे इसके बाद पूर्ण षोडसोपचार से 9दिन तक पूजन करेँ और नित्य पंचागुली मन्त्र का जप तरेँ ।

सर्व प्रथम मुख शोधन कर पंचागुली मन्त्र चैतन्य करेँ ,पंचांगुली की साधना मेँ मन्त्र चैतन्य ' ई ' है अतः मन्त्र के प्रारम्भऔर अन्त मे ' ई ' सम्पुट देने से मंत्र चैतन्य हो जाता है ।

मन्त्र चैतन्य के बाद योनि-मुद्रा का अनुष्ठान किया जाय यदि योनि-मुद्रा अनुष्ठान का ज्ञान न हो तो भूत लिपि - विधान करना चाहिए ।इसके बाद यन्त्र पूजा कर पंचांगुली ध्यान करेँ ।

पंचांगुली ध्यान-

पंचांगुली महादेवीँ श्री सोमन्धर शासने ।अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशोशितुः ।।

पंचांगुली देवी के सामने यह ध्यान करके पंचांगुली मन्त्र का जपकरना चाहिए -

पंचांगुली मन्त्र -

ॐ नमो पंचागुली पंचांगुली परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमयदडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्येदीपानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिगमध्ये डाकिनिमध्येशाखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषणिमध्ये गुणिमध्ये गारुडीमध्येविनारिमध्ये दोषमध्ये दोषशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरबुरो जो कोई करे करावे जडे जडावे चिन्ते चिन्तावे तस माथेश्री माता पंचांगुली देवी ताणो वज्र निर्घार पडे ॐ ठं ठं ठं स्वाहा

।वस्तुतः यह साधना लम्बी और श्रम साध्य है, प्रारम्भ मेगणपति पूजन, संकल्प, न्यास , यन्त्र-पूजा , प्रथम वरण पूजा ,द्वतिया, तृतिया , चतुर्थ, पंचम, षष्ठम् सप्तम, अष्टम औरनवमावरण के बाद भूतीपसंहार करके यन्त्र से प्राण-प्रतिष्ठाकरनी चाहिए ।

इसके बाद पंचागुली देवी को संजीवनी बनाने के लिए ध्यान ,अन्तर्मातृका न्यास , कर न्यास, बहिर्मातृका न्यास करनी चाहिए ,यद्यपि इन सारी विधि को लिखा जाय तो लगभग 40-50 पृष्ठो मेआयेगी , यहां मेरा उद्देश्य आप सब को मात्र इस साधना से
परिचितकराना है ।

देश के श्रेष्ठ साधको का मत है कि यदि साधक ये सारे क्रियाकलाप नकरके केवल घर मे मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त पंचांगुली यन्त्रतथा चित्र स्थापित कर उसके सामने नित्य पंचांगुली मंत्र 21 बार जपकरें तो कुछ समय बाद स्वतः पंचांगुली साधना सिद्ध हो जाती है ।

सामान्य साधक को लम्बे चौडे जटिल विधि विधान मे न पड कर अपनेघर मे पंचांगुली देवी का चित्र स्थापना चाहिए और प्रातः स्नान कर गुरुमंत्र जप कर पंचांगुली मन्त्र का 21 बार उच्चारण करना चाहिए ।कुछ समय बाद मन्त्र सिद्ध हो जाता है और यह साधना सिद्ध करसाधक सफल भविष्यदृष्टा बन जाता है ,

 साधक मेजितनि उज्जवला और पवित्रता होती है उसी के अनुसार उसे फलमिलता है ।वर्तमान समय मे यह श्रैष्ठतम और प्रभावपूर्ण मानी जाती हैतथा प्रत्येक मन्त्र मर्मज्ञ और तांत्रिक साधक इस बात को स्वीकारकरते है कि वर्तमान समय मे यह साधना अचूक फलदायक है ।

इस साधना में कार्तिक माह के हस्त नक्षत्र का ज्यादा महत्व है क्योंकि ये हस्तरेखा और भविष्य दर्शन से जुडी है। ज्यादा उचित ये रहेगा की गुरु के सानिंध्य में साधना करें ये।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)
.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

खुद से खुद के मिलन हेतु – काल भैरव साधना)






खुद से खुद के मिलन हेतु – काल भैरव साधना)


आपने यह तथ्य मन से संबंधित लेख में पढ़ा है किन्तु यह तथ्य मात्र पढ़ने के लिए नहीं लिखा गया था, अपितु इसके बहुत गहन अर्थ हैं. मैंने अपने हर लेख में मेरे मास्टर द्वारा समझाई गयी एक बात को हमेशा और बार – बार दोहराया है कि शून्य या ब्रह्मांड एक ऐसे साम्राज्य का नाम है जिसमें असंभव जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं है.....वहाँ हर वो चीज सम्भव है जो सामान्य बातों में सोच के भी परे हो.

“ संभव “ शब्द के संभवतः हाजारों करोड़ों अर्थ हो सकते हैं क्योंकि कौन कैसी मानसिकता के साथ इस शब्द की व्याख्या करता है यह निर्भर करता है इस बात पर कि हर एक से दूसरे इंसान के बीच विचारों का मतभेद कितना गहरा है. किन्तु तंत्र में इस शब्द का एक ही अर्थ है......” सक्षम बनो तांकि काल का पहिया भी तुम्हारे हिसाब से चले “..... और यही बात मुझे मेरे मास्टर हमेशा समझाते हैं कि तंत्र मूर्खों की अपेक्षाओं पर नहीं चलता और जिसने काल का वरण कर लिया उसके लिए करने को कुछ और शेष नहीं रह जाता. हम सब जानते हैं कि दशानन रावण कालजयी थे क्योंकि उन्होंने अपने काल को अपने पलंग के खूंटे से बाँध रखा था....पर हमने कभी यह जानने की चेष्टा नहीं की कि उन्होंने ऐसा किया कैसे था....वो यह सब इसलिए संभव कर पाए थे क्योंकि वो एक श्रेष्ठ तांत्रिक थे....और उन्होंने अपने अंदर के काल पुरुष पर विजय प्राप्त कर ली थी.

हम सब के अंदर एक काल पुरुष होता है जिससे हम शिव के प्रतिरूप काल भैरव के रूप में परिचित हैं. भैरव कुल ५२ होते हैं पर इनमें से सबसे श्रेष्ठ काल भैरव हैं. इसमें कोई दो-राय नहीं है कि हर भैरव एक विशेष शक्ति के अधिपति हैं पर काल भैरव को इन सब भैरवों के स्वामित्व का सम्मान प्राप्त है और ज़ाहिर है यदि यह स्वामी है तो हर परिस्थिति में अपने साधक को अधिक से अधिकतम सुख और फल प्रदान करने वाले होंगे, इसीलिए इनकी साधना को जीवन की श्रेष्टतम साधना कहा गया है. वैसे तो हर साधना का हमारे जीवन में विशेष स्थान है पर कुबेर साधना, दुर्गा साधना और काल भैरव साधना को जीवन की धरोहर माना गया है.

अब सबसे बड़ी बात यह है कि भैरव नाम सुनते ही मन में एक अजीब से भय का संचार होने लगता है, भयंकर से भयंकर आकृति आँखों के सामने उभरने लगती है, गुस्से से भरी लाल सुर्ख आँखें, सियाह काला रंग, लंबा – चौड़ा डील डोल और ना-जाने क्या, क्या??? इसके विपरीत एक सच यह भी है जहाँ भय हो वहाँ साधना नहीं हो सकती और साक्षत्कार तो दूर की बात है.
किन्तु जहाँ समस्या वहाँ समाधान....तो काल भैरव की साधना से सम्बंधित डर से मुक्ति पाने के लिए हमें इनको समझना पड़ेगा. जैसे सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही काल और भैरव एक सिक्के के दो पक्ष हैं. काल का अर्थ है समय और भैरव का अर्थ है वो पुरुष जिसमें काल पर विजय प्राप्त करने की क्षमता हो. अब यहाँ काल का अर्थ सिर्फ मृत्यु नहीं है अपितु हर उस वस्तु से है जो हमारे मानसिक सुखों को क्षीण करने में सक्षम हो. अब यह समस्या शारीरिक, आंतरिक, मानसिक, और रुपये पैसे से संबंधित कैसी भी हो सकती है.
अब जो काल पुरुष होगा उसे इनमें से किसी समस्या का भय नहीं होगा क्योंकि समस्या उसके सामने ठहर ही नहीं सकती. देवता और मनुष्यों में सबसे बड़ा अंतर यही है कि देवताओं की सीमाएं होती है जैसे अग्नि देव मात्र अग्नि से संबंधित कार्य कर सकते हैं उनका वरुण देव से कोई लेना देना नहीं, इसी प्रकार काम देव का इन दोने और अन्य देवताओं से कोई सरोकार नहीं, जबकि इसके विपरीत केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी हैं जिसके अंदर पूरा ब्रह्मांड समाहित है, जिसकी किसी भी कार्य को करने की कोई सीमा नहीं बस जरूरत है तो उसे अपने अंदर के पुरुष को जगाने की और यह तभी संभव है जब हमने हमारे ही अंदर के ब्रह्मांड को अर्थात काल को जीत लिया हो.

ऐसा ही एक साधना विधान यहाँ दे रह हूँ जो करने में बेहद सरल तो है ही पर इस विधान को करने के बाद के नतीजे आपको आश्चर्यचकित कर देंगे. इस साधना को करने के बाद ना केवल आपमें आत्म विश्वास बढ़ेगा बल्कि जटिल से जटिल साधनाएं भी आप बिना किसी भय और समस्या के कर पायेंगे. इस साधना को करने के पश्चात काल साधना करना सहज हो जाता है जो आपको काल ज्ञाता बनाने में सक्षम है अर्थात आप भूत, भविष्य, वर्तमान सब देखने में सामर्थ्यवान हो जाते हैं. आँखों में एक ऐसी तीव्रता आ जाती है कि हठी से हठी मनुष्य भी आपके समक्ष घुटने टेक देता है.

इसके लिए आपको बस यह एक छोटा सा विधान करना है. किसी भी रविवार मध्यरात्रि काल में नहा धोकर अपने पूजा के स्थान में पीले वस्त्र पहन कर पीले आसान पर बैठ कर आपको निम्न मंत्र का मात्र ११ माला मंत्र जाप करना है.

विनियोगः

अस्य महाकाल कालभैरवाय मंत्रस्य कालाग्नि रूद्र ऋषिः अनुष्टुप छंद कालभैरवाय देवता ह्रीं बीजं भैरवी वल्लभ शक्तिः दण्डपाणि कीलक सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगः
इसके बाद न्यास क्रम को संपन्न करें.

ऋष्यादिन्यास –

कालाग्नि रूद्र ऋषये नमः शिरसि
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवताये नमः हृदये
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयो
सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे

करन्यास -

ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ह्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

अङ्गन्यास-

ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्

अब हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न मंत्र का ११ बार उच्चारण करते हुए ध्यान करें और उन अक्षतों को दीप के समक्ष अर्पित कर दें.

नील जीमूत संकाशो जटिलो रक्त लोचनः
दंष्ट्रा कराल वदन: सर्प यज्ञोपवीतवान |
दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपाल स्रग विभूषितः
हस्त न्यस्त किरीटीको भस्म भूषित विग्रह: ||

मंत्र -

॥ ऊं भ्रं कालभैरवाय फ़ट ॥

|| ओम क्रीं भ्रं क्लीं भ्रं ऐं भ्रं भैरवाय भ्रं ऐं भ्रं क्लीं भ्रं क्रीं फट ||

OM KREEM BHRAM KLEEM BHRAM AING BHRAM BHAIRAVAAY BHRAM AING BHRAM KLEEM BHRAM KREEM PHAT

साधना को करते समय आपकी दिशा पश्चिम होगी और दीपक तिल के तेल का जलाना है. किसी भी साधना में सफलता हेतु गुरु का और विघ्नहर्ता भगवान गणपति का आशीर्वाद अति अनिवार्य है इसलिए भागवान गणपति की अर्चना करने के पश्चात ही साधना प्रारंभ करें और मूल मंत्र की माला शुरू करने से पहले कम से कम गुरुमंत्र की ११ माला का जाप जरूर कर लें. मास्टर द्वारा दिए गए विधान में यदि आपने कोई माला सिद्ध की हो तो आप उसका उपयोग करें अन्यथा गुरु माला जिससे आप अपनी नित्य साधना करते हैं उसी का उपयोग कर सकते हैं. साधना करते समय आपका वक्षस्थल अनावर्त होना चाहिए और यदि कोई गुरु बहन इस विधान को सम्पन्न कर रही है तो उन पर यह नियम लागू नहीं होता. साधना के पश्चात अपना पूरा मंत्र जाप गुरु को समर्पित कर दें और एक जरूरी बात हो सकता है की साधना के दौरान आपका शरीर बहुत जादा गर्म हो जाए या ऐसा लगे जैसे गर्मी के कारण मितली आ रही है तो घबरायें नहीं, जब आपके अंदर उर्जा का प्रस्फुटन होता है तो ऐसा होना स्वाभाविक है. अपनी साधना पर केंद्रित रहें थोड़ी देर बाद स्थिति अपने आप सामान्य हो जायेगी.

खुद इस अद्भुत विधान को करके देखें और अपने सामान्य जीवन में बदलाव का आनंद लें, पर एक बात का ध्यान जरूर रखें किसी भी साधना में ऐसा कभी नहीं होता है की आज साधना की और कल नतीजा आपके सामने आ जायेगा, इसके लिए आपको अपने दैनिक जीवन पर बड़ी बारीकी से नज़र रखनी पड़ती है क्योकि बड़े बदलाव की शुरुआत छोटे छोटे परिवर्तनों से होती है.

(नोट – कृपा साधना करने के पश्चात हर दिन या कुछ दिनों के अंतराल से की गयी साधना की न्यूनतम एक माला या अधिकतम अपनी क्षमता के अनुसार जितनी चाहें उतनी माला मंत्र जाप कर लें जिससे की यह मंत्र सदा सर्वदा आपको सिद्ध रहे.)

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

शनिवार के दिन करने वाला उपाय





शनिवार के दिन करने वाला उपाय


शनिवार के दिन एक पीपल का पत्ता लेकर ,पहले इसे आछे से धो ले अब इसे गंगाजल द्वारा पवित्र करे अब इस पीपल के पत्ते के उप्पर दही ओर हल्दी के घोल द्वारा अपने दाएं हाथ की अनामिका उंगली द्वारा  ह्री शब्द लिखे, 

अब इस पत्ते को धूप दीप दिखाकर  अपने पर्स में रख ले  प्रत्येक शनिवार को नया पत्ता प्रयोग करे। पुराने पत्ते को किसी बहते पानी मे प्रवाहित कर दे, इस प्रेयोग करने से पर्स सदा भरा रहेगा अनायास होने वाले खर्चे अपने आप कम हो जायेगें..

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

राजगुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

सम्भोग से समाधि - कैसे सम्भव होता है ?







सम्भोग से समाधि - कैसे सम्भव होता है ?


==============================

भारतीय कुंडलिनी साधना के दो मार्गों में से एक मार्ग तंत्र का और दूसरा योग का रहा है |योग शरीर को अनुकूल बना कुंडलिनी जागरण करता है जिसमे नियम -संयम -आहार -प्राणायाम और ध्यान मुख्य तत्व होते हैं तो तंत्र में शरीर की ऊर्जा ,भाव और कठोर नियंत्रण मुख्य तत्व हैं |योग सम्भोग से विरक्ति पर कुंडलिनी जागरण की बात करता है तो तंत्र सम्भोग से ही कुंडलिनी जागरण की बात करता है |

सम्भोग से समाधि तो बहुत छोटी अवस्था है ,तंत्र तो सम्भोग से कुंडलिनी जागरण कर मोक्ष की बात करता है |सम्भोग से समाधि ,नाम का प्रचलन इसलिए अधिक हुआ की ओशो ने इस नाम से एक पुस्तक लिख दी |

ओशो ने भी भारतीय तंत्र सूत्रों पर ही यह पुस्तक लिखी किन्तु तंत्र सूत्र इससे भी कई कदम आगे मोक्ष और शिव -शक्ति के सायुज्य की बात करते हैं |सम्भोग से समाधि ही नहीं शिव -शक्ति सायुज्य और मोक्ष भी मिलता है यह वास्तविक तथ्य है भले इसे न जानने वाले , न समझने वाले इसकी कितनी भी आलोचना करें |

यह विज्ञान भी उन्ही सूत्रों पर आधारित है जो विज्ञान ब्रह्मचर्य से ऊर्जा संरक्षण कर इश्वर प्राप्ति की बात करता है |भोग से मोक्ष प्राप्ति का तंत्र मार्ग हजारों -हजार वर्ष पुराना है जिसे अब कौल मार्ग कहा जाता है तथा इसके अब कई प्रकार विकसित हो चुके हैं |भारतीय तंत्र से ही यह ज्ञान बौद्ध में और क्रमशः पूरी दुनियां में फैला |

भारत में यह गोपनीय साधना रहा और सामान्य सामाजिक संस्कार में इसे बताये जाने से परहेज रहा क्योंकि ऋषियों का मानना था की इससे सामाजिक उश्रीन्खलता बढ़ सकती है |यह गृहस्थ ऋषियों का गृहस्थ रहते हुए कुंडलिनी साधना का मार्ग रहा है जिससे वह आध्यात्मिक उन्नति भी करते रहें और गृहस्थ धर्म का भी पालन करते हुए सामाजिक विकास भी करते रहें |यह साधना मार्ग पूर्णतया वैज्ञानिक सूत्रों के अनुसार ही चलता है जिसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा विगान कहते हैं ,भले आज का विज्ञानं वहां पहुंचा हो या नहीं |

तंत्र के एक मुख्य मार्ग कुंडलिनी जागरण में सम्भोग से समाधि की बात कही गयी है ,यद्यपि अन्य रास्ते भी होते हैं ,किन्तु इस मार्ग की विशेषता यह है की यह वही कार्य कुछ ही समय में संपन्न कर सकता है जिसे अन्य मार्ग वषों में शायद कर पायें |

इसकी पद्धति पूर्ण वैज्ञानिक है और शारीरिक ऊर्जा को इसका माध्यम बनाया जाता है |धनात्मक और ऋणात्मक की आपसी शार्ट सर्किट से उत्पन्न अत्यंत तीब्र ऊर्जा को पतित होने से रोककर उसे उर्ध्वमुखी करके इस लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है ,यद्यपि यह अत्यंत कठिन और खतरनाक मार्ग भी है जिसमे ऊर्जा न सँभालने पर पूरी सर्किट के ही भ्रष्ट होने का खतरा होता है ,पर यह मार्ग वह उपलब्धियां कुछ ही समय में दे सकता है ,जिसे पाने में अन्य मार्गों से वर्षों समय लगता है और निश्चितता भी नहीं होती की मिलेगा ही |

यह मार्ग यद्यपि अत्यंत विवादास्पद रहा है किन्तु इसकी वैज्ञानिकता संदेह से परे है और सिद्धांत पूरी तरह प्रकृति के नियमो के अनुकूल है |तभी तो प्रकृति पर नियंत्रण का यह सबसे उत्कृष्ट माध्यम है ,और किसी न किसी रूप में अन्य माध्यमो में भी अपनाया जाता है |

सामान्य पूजा-अनुष्ठानो में भी ब्रह्मचर्य के पालन की हिदायत दी जाती है ,उसका भी वही उद्देश्य होता है की ऊर्जा संरक्षित करके उसे उर्ध्वमुखी किया जाए |तंत्र में अंतर बस इतना ही आता है की इस ऊर्जा को तीब्र से तीब्रतर करके रोका और उर्ध्वमुखी किया जाता है ,इस हेतु प्रकृति की ऋणात्मक शक्ति को सहायक बनाया जाता है तीब्र ऊर्जा उत्पादन में |

सम्भोग और समाधि एक ही ऊर्जा के भिन्न तल हैं|. निम्न तल यानी मूलाधार चक्र पर जब जीवन ऊर्जा की अभिव्यक्ति होती है तो यह सेक्स बन जाता है ,सम्भोग बन जाता है |. उच्च तल पर समान उर्जा भगवत्ता बन जाती है जिसे समाधि कहा गया है|.यौन ऊर्जा का अर्थ वीर्य से नही है.| 

वीर्य मात्र यौन ऊर्जा का भौतिक तल है.| यौन ऊर्जा का वाहक है वीर्य.| यौन ऊर्जा ऊपर गति करती है| इसका यह अर्थ नही है वीर्य ऊपर चढ़ जाता है|. वीर्य के ऊपर चढने का कोई उपाय नही है|. यह मनस ऊर्जा है ,ओज है और अदृश्य है|.

 इसका केवल अनुभव होता है. जैसे हवा अदृश्य है और उसका केवल अनुभव होता है.| हमारी रीढ़ की हड्डी में ३ सूक्ष्म नाड़िया हैं - इडा- पिंगला- सुषुम्ना. यह मनस उर्जा सुषुम्ना के द्वारा ऊपर का अभियान करती है. इसका सामना सात स्टेशनों से पड़ता है जिसे चक्र कहते हैं. और इस पूरी ऊर्जा की यात्रा को 'कुण्डलिनी जागरण' कहते हैं.|

ध्यान और तंत्र की विधियों द्वारा इस ऊर्जा को ऊपर ले जाया जा सकता है.| यह विधिया आज से हजारों वर्ष पूर्व विश्व के प्रथम गुरु और मूल शक्ति भगवान शिव ने पार्वती को कहीं थी जिसे तन्त्र' में संस्कृत में संकलित किया गया है |एक ही भौतिक शरीर के प्रत्येक चक्र से एक अलग आध्यात्मिक शरीर जुडा हुआ है. और हर दूसरा शरीर विपरीत है. अर्थात पुरुष का दुसरा शरीर स्त्री का है और स्त्री का दुसरा शरीर पुरुष का. इसी लिए स्त्रियाँ पुरुषों से अधिक धैर्यवान होती हैं क्यूँ की उनका दूसरा शरीर पुरुष का है जो अपेक्षाकृत मजबूत है.| अर्धनारीश्वर की प्रतिमा यही सन्देश देती है|

.इस प्रकार प्रत्येक शरीर में ७ चक्रों से जुड़े ७ शरीर होते हैं. एक -एक चक्र के जागरण के साथ एक एक शरीर सक्रीय होने लगता है. |शरीर परस्पर मिल जाते हैं. कुंडलीनी जागरण की यह प्रक्रिया ' अंतर सम्भोग' कही जाती है क्यूँ की एक स्त्री शरीर अपने ही पुरुष शरीर से संयुक्त हो जाती है, इसमें ऊर्जा नष्ट नही होती बल्कि ऊर्जा का एक अनन्य वर्तुल बन जाता है जो आध्यात्मिक जागरण और आंतरिक आनंद के रूप में परिलक्षित होता है. संतो के चेहरे पर खुमारी, तेज, दिव्यता का यही कारण है.|

 इस अंतर सम्भोग के अनेक दिव्य परिणाम होते हैं| बाहर के सेक्स से अनंत गुना आनंद और तृप्ति उपलब्ध होती है.| प्रत्येक चक्र के जागरण और शरीरो के मिलन से आनंद का खजाना मिलने लगता है|. बाहर सेक्स की इच्छा समाप्त हो जाती है. इसी को ब्रह्मचर्य कहते हैं.| व्यक्ति ब्रह्म जैसा हो जाता है. |उसकी चर्या ब्रह्म जैसी हो जाती है. शिव लिंग का प्रतीक इसी अंतर सम्भोग को परिलक्षित करता है.| 

चक्रों के जगने के साथ उसके सम्बंधित सिद्धियाँ मिल जाती हैं- जैसे ह्रदय चक्र के जगने के साथ विराट करुना व प्रेम के आनंद का भान होने लगता है|. आज्ञा चक्र के जगने के साथ व्यक्ति तीनो कालो को जानने वाला हो जाता है.| विशुद्ध चक्र के जागने के साथ व्यक्ति जो बोले वह सत्य होने लगता है.| 

प्राचीन आशीर्वाद की कथाये उन्ही ऋषियों की क्षमताये हैं जिनका विशुद्ध चक्र सक्रीय हो गया था.| सहस्रार चक्र आखिरी चक्र है जिसके सक्रीय होते ही व्यक्ति परम धन्यता को उपलब्ध हो जाता है| जब वह ब्रह्म ही हो जाता है- 'अहम् ब्रह्मास्मि' का उद्घोष| . उसके शक्ति के अंतर्गत समस्त सृष्टि की शक्तियां उसके पास आ जाती हैं लेकिन वह इनका उपयोग नही करता क्यूँ की उसे यह भी बोध हो जाता है की सृष्टि व इसके नियम उसी के द्वारा बनाये गये हैं.| 

परम ज्ञान की अवस्था को समाधि कहा गया है|. समाधि का अर्थ है समाधान.| इसकी अनुभूति चौथे शरीर से ही होने लगती है. चौथे शरीर से ही परमात्मा का ओमकार स्वरूप पकड़ में आने लगता है.|

अब हम आपको बताते हैं की वास्तव में सम्भोग से चक्र जागरण कैसे होता है और समाधि की अवस्था कैसे आती है ,कैसे व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है |कुछ सुनने वाले बिना समझे ,बिना जाने कमेन्ट में लिखेंगे की यह सम्भव ही नहीं है ,यह गलत है ,यह भोग मात्र है ,छद्म संस्कारियों को बात तक गलत लगेगी ,किन्तु यह सत्य है की ऐसा होता है और यह पूरी तरह सम्भव है |हम सामान्य सम्भोग की बात नहीं कर रहे ,हम लक्ष्य विशेष की ओर केन्द्रित सम्भोग की बात कर रहे और सम्भोग का अर्थ होता है सम अर्थात बराबर भोग का अर्थ है लिप्तता |जहाँ दो लोग बराबर संलिप्त हो भावावेग के साथ सम्बद्ध हो वही सम्भोग है |बिना भावना जुड़े सम्भोग सम्भव नहीं और तब वह मात्र भोग होता है |

तंत्र में शरीर के सम्पर्क से अधिक मन और भावना का सम्पर्क महत्व रखता है ,यहाँ मनुष्य रति कम ब्रह्म रति और आत्मिक रति महत्व रखती है |सामान्य सम्भोग से भी अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है किन्तु जब आत्मिक या ब्रह्म रति की स्थिति में युगल आते हैं तो ऊर्जा की मात्रा इतनी अधिक बढती है की शरीर कम्पायमान होने लगता है और सुध बुध खोने लगता है |

जब एक युगल संभोगरत होते हुए भी पतित नहीं होता तो उसकी ऊर्जा ओज में बदलकर उर्ध्वमुखी होने लगती है |यहाँ वीर्य अथवा राज उर्ध्वमुखी नहीं होते ,इनके तो उपर जाने का मार्ग ही नहीं है |

संभोगरत अवस्था में वीर्य और रज का उत्पादन होता है सामान्य अवस्था से कई गुना अधिक किन्तु इस उत्पादित वीर्य -रज को पतित नहीं होने दिया जाता |एक निश्चित अवस्था पर सम्भोग रोककर इन्हें पतन तक आने नहीं दिया जाता |रोकने की निश्चित अवस्था का ज्ञान और आवश्यक तकनीकियाँ गुरु बताता है |यदि गलत स्थान पर गलत समय इन्हें रोका जाय तो यह गंभीर रोग अथवा शारीरिक समस्या उत्पन्न कर सकते हैं किन्तु तंत्र साधक ६ महीने तक भी साधना करते हुए भी रोकते हैं और उनमे कोई विकृति नहीं आती ,उनकी सामर्थ्य और क्षमता बढ़ जाती है |यह सब तकनीक पर आधारित होता है जो मात्र गुरु बताता है 

|हम यहाँ तकनीक पर कोई चर्चा नहीं कर सकते क्योंकि यह गोपनीय होते हैं और बताना तंत्र नियमो का उल्लंघन होता है |हम मात्र यह बता रहे की कैसे सम्भोग से समाधि और मोक्ष सम्भव है |२ मिनट में पतित होने वाले शायद दो घंटे का बिना पतन का सम्भोग न समझ पायें ,सम्भोग को मात्र भोग समझने वाले शायद इसकी शक्ति को न समझ पायें किन्तु यह वह शक्ति है जो व्यक्ति को श्रृष्टि की उसकी ही क्षमता से उसे श्रृष्टिकर्ता तक से मिला सकती है |

संभोगरत युगल जब पतित होने से खुद रोकते हुए साधनारत रहता है तो ऊर्जा तो पतित नहीं होती किन्तु ऊर्जा उत्पादन होते रहने से ऊर्जा बढती और संघनित होती जाती है ,यह ऊर्जा तीव्र क्रिया के साथ एकत्र हो ओज में बदलती है और भौतिक अस्तित्व से उपर उठते हुए सूक्ष्म शरीर के चक्र मूलाधार को और उद्वेलित करती जाती है जिससे वहां तरंगो का उत्पादन बढ़ता जाता है ,वहां की शक्तियाँ क्रियाशील होने लगती हैं |

कुछ समय बाद यह उद्वेलन इतना बढ़ता है की मूलाधार में सुप्त पड़ी कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होने लगती है ,समय क्रम में ऊर्जा प्रवाह बढने पर कुंडलिनी जागकर तीव्रता से क्रिया करती है और उपर की ओर उठती है |यहाँ मूलाधार का जागरण होता है और सभी सुप्त शक्तियाँ जाग्रत होने से यहाँ से सिद्धियों का क्रम शुरू होता है |जब ऊर्जा उत्पादन सतत बना रहता है और साधक युगल नियंत्रित हो साधनारत रहते हैं तो कुंडलिनी स्वाधिष्ठान और क्रमशः अन्य चक्रों का जागरण करते हुए सहस्त्रार तक पहुँचती है और यहाँ शिव -शक्ति सायुज्य होता है |

समाधि की अवस्था तो बीच में ही आ जाती है ,सहस्त्रार से निर्बिक्ल्प समाधि और ब्रह्माण्ड यात्रा शुरू हो जाती है अंततः व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है |समाधि तो मुक्ति अवस्था पाते ही लग जाती है और मुक्ति तथा मोक्ष में बड़ा अंतर है |यह सब सुनने में तो आसान लग रहा किन्तु यह दुनियां का सबसे कठिन काम है क्योंकि मनुष्य की प्रकृति ही पतित होने की होती है और वह पूरा जीवन अपनी ऊर्जा फेंकता ही रहता है |खुद की प्रवृत्ति बदल ऊर्जा संरक्षित कर उर्ध्वमुखी करना संसार का सबसे कठिन काम है ,वह भी तब जब की वह ऊर्जा सामान्य से लाखों गुना बढ़ जाए रोकते हुए |इसी कारण से तंत्र से कुंडलिनी साधना सबसे कठिन है क्योंकि यह उस शक्ति को उपर उठाता है जो हमेशा नीचे की ओर ही जाना चाहती है |

यह सब तकनिकी और गुरु गम्य मार्ग है जहाँ बिना गुरु के एक कदम नहीं चला जा सकता |ऊर्जा न सम्भली तो भी पतन है और तकनीकी गलती हुई तो भी पतन है |हमारा उद्देश्य मात्र इतना है यहाँ बताने का की वास्तव में कैसे सम्भोग से समाधि और मोक्ष या मुक्ति की स्थिति आती है |हम चक्रीय विस्तार में नहीं गए हैं क्योंकि विषय इतना बड़ा है की कई पुस्तक कम पड़ जायेंगे |

सम्भोग से समाधि सम्भव है और यह पद्धति हमेशा से भारतीय तंत्र की अमूल्य धरोहर रहा है जिसके द्वारा गृहस्थ भी कुंडलिनी साधना करते हुए वह सभी लक्ष्य पा सकते हैं जो एक योगी और सन्यासी पाता है |चूंकि यह मार्ग भोग में रहते हुए भोग द्वारा हो मोक्ष देने का मार्ग है अतः कठिन भी कई गुना अधिक है और खतरे भी अधिक होते हैं .

चेतावनी - 

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

       राजगुरु जी 

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


Friday, March 27, 2020

धूमावती साधना एवं कुछ गोपनीय सूत्र





धूमावती साधना एवं कुछ गोपनीय सूत्र


हम हमेशा कई प्रकार की साधनाए करते रहते है।परन्तु सफलता न मिल पाने के कारण हम निराश हो जाते है।और हो भी क्यों न,परिश्रम में सफलता न मिलने से निराशा तो स्वभाविक है।सफलता न मिलने के दो कारण होते है।

प्रथम :

 साधना में उर्जा की कमी होना तथा समर्पण न होना।

द्वितीय :

 साधना के गुप्त सूत्रों का ज्ञान न होना जिससे की सफलता की सम्भावना बढ जाती जाती है।

उर्जा पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे।आज हम माँ धूमावती की साधना में प्रयोग होने वाले कुछ गोपनीय सूत्रों पर चर्चा करेंगे।

कई साधक माँ धूमावती की साधनाए करते है,लाखो की संख्या में जाप करते है। किन्तु मंत्र की उर्जा का उन्हें अनुभव नहीं होता है। कार्य सिद्धि के लिये भी कई साधक धूमावती की साधना करते है लेकिन कार्य सिद्ध नहीं हो पाता है। किन्तु कुछ गुप्त प्रयोग है जिन्हें आप संपन्न करके सफलता के निकट पहुच सकते है।

१- साधना के पहले किसी भी दिन शमशान की मिट्टी में शमशान की भस्म मिलायी जाये,ये संभव न हो तो कोई भी भस्म ले और शिव मंदिर की मिट्टी ले।उसमे गुलाब जल और सामान्य जल मिलाकर एक लड्डू की तरह या अंडाकार पिंड का निर्माण कर ले।

और उस पर काजल से बीज मंत्र " धूं " लिखे ये सारी क्रिया आपको रात्रि में करनी है।और एकांत कक्ष में करनी है।हा भस्म और मिट्टी आप दिन में ला सकते है।

परन्तु उसे बाहर ही रखे,प्रयोग के समय कक्ष में लाये।अब दक्षिण मुख होकर बैठ जाये आसन वस्त्र सफ़ेद हो।सामने बजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर पिंड स्थापित करदे।अब पिंड पर अक्षत अर्पण करे निम्न मंत्र बोलते हुए।

ॐ धूम्र शिवाय नमः

अब कोई भी भस्म अर्पण करे निम्न मंत्र बोलते हुए

ॐ धूं धूं ॐ

अक्षत तथा भस्म २१ बार अर्पण करने है मंत्र बोलते हुए।
अब तील के तेल का दीपक प्रज्वलित करे,और किसी भी धुप बत्ती के द्वारा धुआ करे।अब आप धूमावती की जिस साधना में सफलता के लिये ये प्रयोग कर रहे है उसका संकल्प ले।और पिंड की और देखते हुए ३० मिनट तक निम्न मंत्र का जाप करे

ॐ धूं धूं धूमावती फट

इसके बाद उसी कपडे में पिंड को बांधकर शमशान में फेक आये या किसी निर्जन स्थान में रख दे पीछे मुड़कर न देखे।साधना के मध्य कोई अनुभव हो तो डरे नहीं।फिर आप जब चाहे कोई भी धूमावती साधना करे सफलता आपके समक्ष होगी।

२- शमशान से कोई सफ़ेद वस्त्र ले ले,जिसे शव पर ओढाया जाता है।उस पर वही की भस्म या कोयले के द्वारा निम्न मंत्र लिख कर उस कपडे को बहते जल में बहा दे या पीपल वृक्ष के निचे रख दे।

धूं धूं धूमावती ठः ठः

यदि आपको शमशान का कपडा न मिले तो कोई भी नया सफ़ेद वस्त्र लेकर शमशान भूमि से स्पर्श करा ले और उस पर काजल से मंत्र लिखकर ये क्रिया कर ले।

३- यदि आसन के निचे कोए का पंख रख लिया जाये,या सामने रख लिया जाये तो सफलता की सम्भावना बढ जाती है।

यु तो और भी कई गोपनीय सूत्र है परन्तु ये मेरे स्व अनुभूत है।

किसी और के अनुभव मुझसे अलग हो सकते है।द्वितीय प्रयोग आप तब भी कर सकते है जब कोई शत्रु तंग कर रहा हो,या कोई ऐसी इच्छा जो प्रयत्न करने पर भी पूर्ण न हो रही हो तब भी आप वस्त्र को कामना बोलते हुए बहा सकते है।

इन तीन गुप्त प्रयोगों को करने के बाद आप धूमावती साधना करे।माँ की कृपा से सफलता आपको अवश्य मिलेगी।

जय माँ

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249



माँ मातंगी ख्याति प्राप्ति साधना




माँ मातंगी ख्याति प्राप्ति साधना


हम  जीवन में सदा मेहनत  करते है।तथा सदा प्रयत्न करते रहते है की हमारा समाज  तथा परिवार हमसे प्रसन्न रहे।परन्तु ऐसा होता नहीं है।उसका सबसे बड़ा कारन  है की हमारे पास बहुतमत नहीं है।यहाँ बहुमत का अर्थ प्रसिद्धि से है।

क्युकी  जब तक हमें जीवन में प्रसिद्धि नहीं मिलती हमारा कोई सम्मान नहीं करता  है।क्युकी दुनिया सर झुकाएगी तो ही परिवार सम्मान देगा .

अन्यथा कहावत तो  सुनी ही होगी घर की मुर्गी दाल बराबर।और यदि आप प्रसिद्ध है तो लक्ष्मी भी  आपके जीवन में आने को आतुर हो उठती है।प्रस्तुत साधना इसीलिये है।कुछ लाभ  यहाँ लिख रहा हु जो इस साधना से आपको प्राप्त होंगे।

1. साधक अपने कार्य क्षेत्र में तथा समाज में ख्याति प्राप्त करता है।

2. साधना माँ मातंगी से सम्बंधित है अतः साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख प्राप्त होता है।तथा परिवार में सम्मान होता है।

3.माँ मातंगी में महा लक्ष्मी समाहित है अतः साधक का आर्थिक पक्ष मजबूत होता है।

यह केवल मैंने 3 लाभ लिखे है परन्तु एक साधक होने के नाते आप सभी ये बात बखूबी जानते है की कोई भी साधना मात्र लाभ ही नहीं देती है बल्कि साधक का चहुमुखी विकास करती है।साथ ही धैर्य तथा विश्वास परम आवश्यक है।

अतः साधना साधना कर लाभ उठाये तथा अपने जीवन को प्रगति प्रदान करे।

विधि:

साधना किसी भी शुक्रवार की रात्रि 10 के बाद करे,या ब्रह्मा मुहरत में भी की जा सकती है।आसन,वस्त्र सफ़ेद हो तथा आपका मुख उत्तर की और हो।सामने बजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाये और उस पर अक्षत से बीज मंत्र, "ह्रीं" लिखे फिर उस पर माँ मातंगी का कोई भी यन्त्र या चित्र स्थापित करे।

ये संभव न हो तो एक मिटटी के दीपक में तील का तेल डालकर कर जलाये और उसे स्थापित कर दे।अब दीपक को ही माँ का स्वरुप मानकर पूजन करे।

अगर अपने यन्त्र चित्र स्थापित किया है तो घी का दीपक पूजन में लगाये,सफ़ेद मिठाई अर्पित करे,कोई भी इतर अर्पित करे,यदि अपने तेल का दीपक स्थापित किया है तो घी का दीपक लगाने की कोई जरुरत नहीं है।

बाकि क्रम वैसा ही रहेगा।अब सद्गुरु तथा गणपति पूजन करे।जितना हो सके गुरुमंत्र का जाप करे।फिर मातंगी पूजन करे।तथा माँ से अपनी मनोकामना कहे एवं सफलता तथा आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना करे।

अब स्फटिक माला से निम्न मन्त्र की 21 माला करे।माला के बाद अग्नि प्रज्वलित कर घी,तील तथा अक्षत मिलकर 108 आहुति प्रदान करे।अगले दिन दीपक हो तो विसर्जन कर दे।

यन्त्र चित्र हो तो पूजा में रख दे।प्रसाद स्वयं ग्रहण कर ले।इतर संभल कर रख ले प्रति दिन इसे लगाने से आकर्षण पैदा होता है।इस तरह ये एक दिवसीय साधना सम्प्पन होगी।

मंत्र: 

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महा मातंगी प्रचिती दायिनी,लक्ष्मी दायिनी नमो नमः।

कुछ दिनों में आप साधना का प्रभाव स्वयं अनुभव करने लग जायेंगे।तो देर किस बात की साधना करे तथा जीवन को पूर्णता प्रदान करे।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

भुवनेश्वरी दरिद्रता नाशक साधना





भुवनेश्वरी दरिद्रता नाशक साधना


(  अचूक प्रयोग )

नाम से ही स्पष्ट है की ये साधना कितनी महत्वपूर्ण है,जिस पर माँ भुवनेश्वरी की कृपा हो जाये,वो कभी दरिद्र नहीं रह सकता,क्युकी माँ कभी अपनी संतान को दुखी नहीं देख सकती है।अतः ज्यादा न लिखते हुए विधान दे रहा हु।

***********

स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण करे,और उत्तर की और मुख कर सफ़ेद आसन पर बैठ जाये।सामने ज़मीन पर सफ़ेद वस्त्र बिछाये और उस पर,अक्षत से बीज मंत्र " ह्रीं " लिखे और उस पर एक कोई भी रुद्राक्ष स्थापित करे,गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे,

अब रुद्राक्ष का सामान्य पूजन करे,तथा निम्न मंत्र को २१ बार पड़े और अक्षत अर्पण करते जाये,अक्षत भी २१ बार अर्पण करने होंगे।

मंत्र :

||ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी इहागच्छ इहतिष्ठ इहस्थापय मम सकल दरिद्रय नाशय नाशय ह्रीं ॐ||

अब पुनः रुद्राक्ष का सामान्य पूजन कर मिठाई का भोग लगाये,तील के तेल का दीपक लगाये।और बिना किसी माला के निम्न मंत्र का लगातार २ घंटे तक जाप करे,जाप करते वक़्त लगातार अक्षत रुद्राक्ष पर अर्पण करते रहे।साधना के बाद भोग स्वयं खा ले,और रुद्राक्ष को स्नान कराकर लाल धागे में पिरो ले और गले में धारण कर ले।

और सारे अक्षत उसी वस्त्र में बांध कर कुछ दक्षिणा के साथ देवी मंदिर में रख आये और दरिद्रता नाश की प्रार्थना कर ले।

मंत्र :

||हूं हूं ह्रीं ह्रीं दारिद्रय नाशिनी भुवनेश्वरी ह्रीं ह्रीं हूं हूं फट||

यह साधना अद्भूत है,अतः स्वयं कर अनुभव प्राप्त करे।
सभी बीजाक्षरों मे मकार का उच्चारन होग।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

                     08601454449

Tuesday, March 24, 2020

तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है






तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है ।


यह महाविद्या साधक की उंगली पकडकर उसके लक्ष्य तक पहुंचा देती है।

गुरु कृपा से यह साधना मिलती है तथा जीवन को निखार देती है ।

यह प्रयोग साधक किसी भी शुभ दिन शुरू कर सकता है. साधक को यह प्रयोग रात्री काल में ही संपन्न करना चाहिए.

साधक को स्नान कर साधना को शुरू करना चाहिए. साधक लाल रंग के वस्त्र को धारण करे तथा लाल रंग के आसन पर बैठे. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए.

साधक प्रथम गुरुपूजन करे तथा गुरु मन्त्र का जाप करे. इसके बाद साधक गणपति एवं भैरव देव का पंचोपचार पूजन करे. अगर साधक पंचोपचार पूजन न कर पाए तो साधक को मानसिक पूजन करना चाहिए.

साधक अपने सामने ‘पारद तारा’ विग्रह को स्थापित करे तथा निम्न रूप से उसका पूजन करे.

ॐ श्रीं स्त्रीं गन्धं समर्पयामि |

ॐ श्रीं स्त्रीं पुष्पं समर्पयामि |

ॐ श्रीं स्त्रीं धूपं आध्रापयामि |

ॐ श्रीं स्त्रीं दीपं दर्शयामि |

ॐ श्रीं स्त्रीं नैवेद्यं निवेदयामि |

साधक को पूजन में तेल का दीपक लगाना चाहिए तथा भोग के रूपमें कोई भी फल या स्वयं के हाथ से बनी हुई मिठाई अर्पित करे. इसके बाद साधक निम्न रूप से न्यास करे. इसके अलावा इस प्रयोग के लिए साधक देवी विग्रह का अभिषेक शहद से करे.

करन्यास

ॐ श्रीं स्त्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः

ॐ महापद्मे तर्जनीभ्यां नमः

ॐ पद्मवासिनी मध्यमाभ्यां नमः

ॐ द्रव्यसिद्धिं अनामिकाभ्यां नमः

ॐ स्त्रीं श्रीं कनिष्टकाभ्यां नमः

ॐ हूं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

हृदयादिन्यास

ॐ श्रीं स्त्रीं हृदयाय नमः

ॐ महापद्मे शिरसे स्वाहा

ॐ पद्मवासिनी शिखायै वषट्

ॐ द्रव्यसिद्धिं कवचाय हूं

ॐ स्त्रीं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्

ॐ हूं फट अस्त्राय फट्

न्यास के बाद साधक को देवी तारा का ध्यान करना है.

ध्यायेत कोटि दिवाकरद्युति निभां बालेन्दु युक् शेखरां

रक्ताङ्गी रसनां सुरक्त वसनांपूर्णेन्दु बिम्बाननाम्

पाशं कर्त्रि महाकुशादि दधतीं दोर्भिश्चतुर्भिर्युतां

नाना भूषण भूषितां भगवतीं तारां जगत तारिणीं

इस प्रकार ध्यान के बाद साधक देवी के निम्न मन्त्र की 125  माला मन्त्र जाप करे. साधक यह जाप शक्ति माला, मूंगामाला से या तारा माल्य से करे तो उत्तम है. अगर यह कोई भी माला उपलब्ध न हो तो साधक को स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला से जाप करना चाहिए.

॥ ऐं ऊं ह्रीं स्त्रीं हुं फ़ट ॥

॥ ॐ तारा तूरी स्वाहा ॥

 

  ॥   ऐं   ॐ   ह्रीं  क्रीं    हुं   फ़ट   ॥

किसी भी एक मंत्र का जाप रात्रि काल में ९ से ३ बजे के बीच करना चाहिये.

साधना से पहले गुरु से तारा दीक्षा लेना लाभदायक होता है.

साधक यह क्रम 9 दिन तक करे. 9 दिन जाप पूर्ण होने पर साधक शहद से इसी मन्त्र की १०८ आहुति अग्नि में समर्पित करे. इस प्रकार यह प्रयोग 9 दिन में पूर्ण होता है.

साधक की धनअभिलाषा की पूर्ति होती है

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

               

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

Monday, March 23, 2020

भैरवी कल्पुद्धरित त्रैलोक्य विजय काली साधना






भैरवी कल्पुद्धरित त्रैलोक्य विजय काली साधना


गुप्त तंत्र ग्रंथो मे हमारे ऋषियो ने जो विधान दिये थे वह अपने आप मे रहस्यों से परिपूर्ण थे. तंत्र जगत का साहित्य कई रूप से गुढ़ रहा है तथा उसमे जो विधान दिये है वह भी अत्यधिक गुप्त रूप से लिखे गए थे ताकि अनाधिकारी व्यक्ति उसका दुरूपयोग ना कर सके. 

इस प्रकार जब यह साहित्य को समजने वाले लोग ही नहीं रहे तब तंत्र साधनाओ की अवलेहना हुई और इस प्रकार तंत्र साहित्य का एक बहोत ही बड़ा भाग लुप्त हो गया. और इन सब साहित्य को मिथ्या नाम दे दिया गया.

 ज़रा तटस्थ भाव से सोचे की जब नोट या कलम नहीं थि, उस समय ताड़पत्री, विविध पदार्थो के पर्ण, चर्म, धातु जेसे विविध पदार्थो पर अत्यधिक कष्ट और श्रमसाध्य लेखन कई प्रकार की स्याही बना कर हमारे ऋषियो ने लिखा. उसके पीछे उन लोगो का क्या व्यक्तिगत चिंतन हो सकता है?

 लेकिन पाश्चात्य संस्कृति से चकाचौंध हो कर हमने खुद का पतन करना शुरू कर दिया. खेर, लेकिन कई ग्रन्थ काल के थपेडो से भी सुरक्षित बचाए गए जो की कई तांत्रिक मठो और तंत्र ज्ञाताओ के पास सुरक्षित रहे.

 ऐसे अप्रकाशित ग्रंथो मे से एक है “भैरवी तंत्र” कई हज़ार श्लोको का यह ग्रन्थ अपने आप मे देवी साधनाओ के लिए बेजोड है. इसके कई पटल अपने आप मे पूर्ण तंत्र है जिसमे से एक पटल या भाग है “काली कल्प”. यह कल्प देवी काली की उपासना के लिए बेजोड है. 

जिसमे देवी सबंधित साधन एवं कवच दिया गया है. लेकिन यह कवच भी अपने आप मे अत्यधिक रहस्यों से परिपूर्ण है. यह कवच मात्र कवच नहीं लेकिन विविध ध्यान मंत्र तथा साधन मंत्रो का समूह है. जिसमे एक से एक बेजोड मंत्र है. 

उसी मे से एक मंत्र पद्धति है त्रैलोक्य विजय काली मंत्र. ग्रन्थ के अनुसार इस का उपयोग करने वाले व्यक्ति का देवता भी अहित करने की सोचते नहीं. फिर सामान्य शत्रु की तो बात ही क्या है. साधक शत्रुओ के ऊपर हावी हो जाता है तथा समस्त षड्यंत्रो से पार उतर कर सर्वत्र विजयी होता है.

 इस साधना को करने के बाद साधक मे एक अत्यधिक तीव्र मोहन शक्ति का भी विकास होता है जिससे सभी व्यक्ति उसके अनुकूल रहना ही योग्य समजते है. इस कल्याण प्रदाता गुढ़ साधना को साधक करे तो देवी काली का आशीर्वाद सदैव साधक पर बना रहता है.

साधक को चाहिए की वह यह साधना कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुरू करे. सुबह उठ कर देवी महाकाली की पूजा करे तथा देवी दक्षिण काली का ध्यान करे. 

अगर साधक अपने सामने काली यन्त्र तथा चित्र रखे तो उत्तम है. इसके पश्च्यात साधक निम्न मन्त्र की १० माला सुबह, १० माला दोपहर तथा १० माला शाम को (सूर्यास्त के बाद रात्री काल मे सोने से पहले) मंत्र जाप करे. यह २१ दिन की साधना है. रोज ३ समय मंत्र जाप होना चाहिए.

 इसमें दिशा पूर्व रहे. वस्त्र आसान सफ़ेद रहे तथा माला काले हकीक या रुद्राक्ष की हो. जाप से पहले विनियोग निम्न मंत्र से करे. हाथ मे जल ले कर विनियोग बोलने के बाद जल को भूमि पर छोड़ दे.

विनियोग :

अस्य श्री काली कल्पे जगमंगला कवच गुढ़ मन्त्रान त्रैलोक्य विजय मन्त्रस्य शिव ऋषि अनुष्टुप् छन्दः दक्षिण कालिका देवता मम त्रैलोक्य विजय त्रैलोक्य मोहन सर्व शत्रु बाधा निवारार्थाय जपे विनियोग

उसके बाद दक्षिण कालिका का ध्यान कर निम्न मंत्र का जाप करे.

हूं ह्रीं दक्षिण कालिके खड्गमुण्ड धारिणी नमः

साधक पूजा और विनियोग सुबह करे, दोपहर और शाम को विनियोग या पूजन की ज़रूरत नहीं है ध्यान के बाद सीधे मंत्र जाप शुरू कर सकते है.

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

.किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249'

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

आकस्मिक धन प्राप्ति केलिए ..(शेयर मार्केट या अन्य में लाभदायक )




आकस्मिक धन प्राप्ति केलिए ..(शेयर मार्केट या अन्य में लाभदायक )


धन प्राप्ति तो एक ऐसी क्रिया हैं जो सबके मन को भांति हैं जीवन मे धन के बिना किसी भी चीज का वैसा अस्तित्व नही हैं जैसा की होना ही चाहिए .आधिन्काश आवश्यकताए तो केबल धन के माध्यम से कहीं जायदा सुचारू रूप से पूरी हो जाती हैं ..

पर धन का आगमन भी तो एक अनिवार्य आवश्यकता हैं पर जो एक बंधी बंधाई धन राशि हर महीने मिलती हैं वह तो एक निश्चित रूप से खर्च होती हैं.. पर कहीं से यदि कोई आकस्मिक धन यदि हमें मिल जाता हैं तो वह बहुत ही प्रसन्नता दायक होता हैं .

पर यह आकस्मिक धन आये कहाँ से ..यह सबसे बड़ा प्रश्न अब हर किसी को तो गडा धन नही मिल सकता हैं . तो व्यक्ति नए नए माध्यम देखता हैं कि कैसे इसकी सम्भावनए बनायी जाए या हो पाए .

और सबसे ज्यादा हर व्यक्ति का रुझान हैं तो वह् हैं शेयर मार्केट की ओर ..रो ज जोभी सुचनाये आती हैं वह होती हैं शेयर मार्केट की.. की उसने इतना फायदा लिया या वह पूरी तरह से बर्बाद हो गया ..फिर भी लोग धनात्मक पक्ष कहीं जयादा देख्ते हैं .मतलब की फायदा होता ही हैं . अब जो लंबी अवधि के लिए अपना धन लगाते हैं वह कहीं ज्यादा लाभदायक होते हैं और जो कम अवधि के लिए उनके लिए क्या कहा जाए यह बहुत ही ज्यादा जोखिम भरा सौदा हैं .

पर एक साधना ऐसी भी हैं जिसके सफलता पूर्वक करने से व्यक्ति का जोखिम बहुत कम हो जाता हैं .. और व्यक्ति को लाभ की सम्भावनाये कहीं अधिक होती हैं

जप संख्या –

११ हज़ार हैं दिन् निर्धारित नही हैं जब जप समाप्त हो जाये तो १०८ आहुति इस मन्त्र से कर दे. और आप देखेंगे की स्वयं ही नए नए स्त्रोत से घनागम की अवश्यकताए पूरी होती जाएँगी.

वस्त्र पीले और आसन भी पीला रहेगा.
जप प्रातः काल कहीं जयादा उचित होगा .
दिशा पूर्व या उत्तर उचित रहेगी .

किसी भी माला से जप किया जा सकता हैं .
सदगुरुदेव पूजन , जप समर्पण और संकल्प कि क्यों कर रहे हैं यह साधना ..यह तो एक हमेशा से अनिवार्य अंग हैं ही .

मंत्र :

आकाश चारिणी यक्षिणी सुंदरी आओ धन लाओ मेरी झोलो भर जाओ |वर्षा करो धन की जैसे बादल वर सै जल की |कुबेर की रानी यक्षिणी महरानी कसम तेरे पति की लाज रख जन की | सच्चे गुरु का चेला बांटू प्रसाद मेवा करूँ तेरी जय सेवा जय यक्षिणी देवा ||

मन्त्र सिद्ध करने के बाद जो भी आप व्यापर या शेयर में अपन धन लगते हैं उसमे से जो आपको लगता हैं की आपका अधिक प्रोफिट हैं उस धन के कुछ हिस्से को ...मतलब जो धन पाए ..उसमे अपने गुरु का और देवीके नाम का कुछ भाग निकाल ले .... या उस धन के हिस्से को .... गुरु को दे कर यक्षिणी को मेवा आदि अर्पित कर दे .

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

.किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249'

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


Sunday, March 22, 2020

मकान_कीलन_विधि





मकान_कीलन_विधि


==========================

ऊं_हूँ_स्फारय_स्फारय_मारय_मारय_शत्रुवर्गान_नाशय नाशय_स्वाहा ।


उपरोक्त_मंत्र को दस हजार जप करके ।

घर के अंदर के चारों कोने की मिट्टी अपने अभिभावक के एक बलिस्त नीचे की मिट्टी की वेदी बना कर उस पर
बैर की लकडी में काला नमक,पीली सरसों , काली मिर्च , ताल मखाना , सरसो का तेल मिश्रित हवन करके ।

पुनः हवन की हुई भस्म के साथ एक बलिस्त ( बित्ता ) पलाश की लकडी चारो किनारो के गड्ढे में पुनः रख दें ।

इससे मकान का कीलन होता है मकान में मौजूद आत्माये भाग खडी होती हैं । तथा कीलन करने के पश्चात
कोई भी आत्मा घर में प्रवेश नहीं कर सकती
दक्षिण पश्चिम के कोने को 24 घंटे के बाद कीलें जिससे की घर में मौजूद आत्मायें बाहर निकल जायें

ये प्रत्यंगिरा का मकान कीलन विधि है।।

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :

मोबाइल नं. : - 09958417249

व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...