एक उग्र आलौकिक शक्ति डाकिनी....
डाकिनी, साकिनी, जल डंकिनी, थल डंकिनी के बारे में हम प्राय कभी ना कभी, कही ना कही सुनते रहते है । पर हमे इन शक्तियों के बारे में कुछ भी पता नही है । आखिर ये क्या है ? इनकी शक्ति क्या है ?
तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है । प्राय मनुष्य डाकिनी नाम से परिचित हैं । डाकिनी कहते ही मानसपटल में एक उग्र स्वरुप की कृति मष्तिष्क में उत्पन्न होने लगती है । वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है । डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं । एक ऐसी शक्ति जो "डाक ले जाए" ।
प्राचीनकाल से वर्तमान तक पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है । चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना ।
यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी मूलाधार है । तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है । यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है । यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं । और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है । यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है ।
यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं । इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है । जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं । तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से होती है । और यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि करना आसान हो जाता है ।
काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि । काली या डाकिनी सिद्धी से अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध किया जा सकता हैं । फीर उसके लीये कठीन साधना करने की जरूरत नही होती । कम प्रयासों में ही सिद्धी प्राप्त हो जाती है । इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है ।
डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है । हमारे अन्दर क्रूरता, क्रोध, अतिशय हिंसात्मक भाव, नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति के तरंगों से होती है । डाकिनी की सिद्धि या शक्ति से भूत- भविष्य- वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है ।
किसी को नियंत्रित करने की क्षमता, वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है । यह शक्ति साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी करती है । यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है । इसका स्वरुप अति उग्र हो जाता है । इस रूप में माधुर्य, कोमलताका अभाव होता है ।
सिद्धि के समय यह पहले साधक की ये बहुत परीक्षा लेती है ।साधक कि हर तरीके से आजमाती है । उसे डराती भी है । फिर तरह तरह के मोहक रूपों में साधकको भोग के लिए प्रेरित करती है । यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है । भ्रम उत्पन्न और लालच के लिए ऐसा कर सकती है । इसके भय और प्रलोभन से साधक बच गया तो सिद्ध का मार्ग आसान हो सकती है ।
मस्तिष्क को शून्य कर के या पूर्ण विवेकको त्यागकर निर्मल भाव में डूबकर ही साधना पुर्ण किया जा सकता है । डाकिनी और काली में व्यावहारिक अंतर है । जबकि यह शक्ति कालीके अंतर्गत ही आती है । इस शक्तिको जगाना अति आवश्यक है । जबकि काली एक जाग्रत देवी शक्ति हैं । डाकिनी की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्जना होती है ।
तंत्र में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है । यह डाकिनी प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है । और निश्चित आकृति में दिखाई देती है । इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है । यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है ।
इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है । यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है । और सिद्ध हो जाने पर साधक का मार्ग आसान हो जाता है । यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर वह शक्ति साधकको ख़त्म कर देती है ।
यह भूत-प्रेत- पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि उन्नत शक्ति होती है । यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है । और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो जाती है । इसके आसक्त होने पर सव काम रुक जाता है और उसका विनास होने लगता है ।
इसका स्वरुप एक सुन्दर, गौरवर्णीय, तीखे नाकनक्शे वाली युवती की जैसी होती है । जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है । काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना, विचरण और प्रभाव का विवरण ग्रंथो में मिलता है ।
इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है । इसको नष्ट नहीं किया जा सकता । यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है । जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी । इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता । अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है । सामान्यतया यह नदी-सरोवर के किनारों, घाटों, शमशानों, तंत्र पीठों, एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर हैं । जो अँधेरे में रहती है ।
इस डाकिनी और मूलाधार की डाकिनी में अंतर होता है । मूलाधार की डाकिनी व्यक्ति के मूलाधार से जुडी होती है । कुंडलिनी सुप्त तो वह भी सुप्त हो जाती है । तंत्र मार्ग से कुंडलिनी जगाने की कोसिस पर सबसे पहले इसका ही जागरण करना होता है । कुंडलिनी की डाकिनी शक्ति की साधना पर प्रकृति की डाकिनी का आकर्षण हो सकता है । और वह उपस्थित हो सकती है । जबकी प्रकृति में पाई जाने वाली डाकिनी प्रकृति की स्थायी शक्ति है । जिसकी साधना प्रकृति भिन्न होती है । किन्तु गुण-भाव एक समान ही होते हैं । इसमें अनेक मतान्तर हैं ।
डाकिनी की स्वतंत्र साधना पर काली से सम्बंधित डाकिनी का आगमन होता है । प्रकृति की डाकिनी प्रकृति के अंतर्गत ही आती है ।क्योकि प्रकृति भी तो काली के ही अंतर्गत की शक्ति है ।डाकिनी एक प्रबल शक्ति है और यह इतनी सक्षम है की सिद्ध होने पर व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकताएं पूर्ण कर सकती है । साधना मार्ग से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है ।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
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राजगुरु जी
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