वीर बेताल साधना
यह साधना रात्रि कालीन है स्थान एकांत होना चाहिए ! मंगलबार को यह साधना संपन की जा सकती है ! घर के अतिरिक्त इसे किसी प्राचीन एवं एकांत शिव मंदिर मे या तलब के किनारे निर्जन तट पर की जा सकती है ! पहनने के बस्त्र आसन और सामने विछाने के आसन सभी गहरे काले रंग के होने चाहिए !
साधना के बीच मे उठना माना है !
इसके लिए वीर बेताल यन्त्र और वीर बेताल माला का होना जरूरी है !
यन्त्र को साधक अपने सामने बिछे काले बस्त्र पर किसी ताम्र पात्र मे रख कर स्नान कराये और फिर पोछ कर पुनः उसी पात्र मे स्थापित कर दे !
सिन्दूर और चावल से पूजन करे और निम्न ध्यान उच्चारित करें
!! फुं फुं फुल्लार शब्दो वसति फणिर्जायते यस्य कण्ठे
डिम डिम डिन्नाति डिन्नम डमरू यस्य पाणों प्रकम्पम!
तक तक तन्दाती तन्दात धीर्गति धीर्गति व्योमवार्मि
सकल भय हरो भैरवो सः न पायात !!
इसके बाद माला से १५ माला मंत्र जप करें यह ५ दिन की साधना है !
!! ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं वीर सिद्धिम दर्शय दर्शय फट !!
साधना के बाद सामग्री नदी मे या शिव मंदिर मे विसर्जित कर दें ! साधना का काल और स्थान बदलना नहीं चाहिए !
वीर साधना :-
मंत्र :-
सौह चक्र की बावड़ी डाल मोतियाँ का हार पदम् नियानी निकरी लंका करे निहार लंका सी कोट समुन्द्र सी खाई चले चौकी हनुमंत वीर की दुहाई कौन कौन वीर चले मरदाना वीर चले सवा हाथ जमीं को सोखंत करनाजल का सोखंत करना पय का सोखंत करना पवन का सोखंत करना लाग को सोखंत करना चूड़ी को सोखंत करना पलना को भुत को पलट को अपने बैरी को सोखंत करना मेवात उपट बहकी चन्द्र कले नहीं चलती पवन मदन सुतल करे माता का दूध हरम करे शब्द सांचा फुरे मंत्र इश्वरो वाचा
इस मंत्र को गुरुवार से शुरू करे ४४ दिन तक १००८ जाप करे , ४० वे दिन वीर दर्शन दे सकता है और आप बिना किसी डर के उस से जो मांगना है मांग ले याद रहे की किसी का भी बुरा नहीं मांगना है सुदध घी का दीपक जलाना है और लोबान की धुनी लगातार देनी है चमेली के पुष्प और कुछ फल इनको अपिँत करे तो प्रसन्न होकर वर देते है
फकीरों की सेवा करे और उनको सौहा वीर के नाम से भोजन और एक मीठा जरुर दे तो शीघ्र प्रसन्न हो जाते है साधक इस साधन मई मॉस और मदिरा से दूर रहे और इस मंत्र को करने से पहले अपने चारो तरफ रक्षा रेखा खींच ले गोलाकार जब तक १००८ जाप पूरा नहीं हो तब तक इस गोले सबहिर नै निकलना है और डेली पुष्प के सुगन्धित पानी से स्नान करना है झूठ नहीं बोलना है .
ओम गुरूजी को आदेश गुरूजी को प्रणाम,धरती माता धरती पिता धरती धरे ना धीरबाजे श्रींगी बाजे तुरतुरि आया गोरखनाथमीन का पुत् मुंज का छडा लोहे का कड़ा हमारी पीठ पीछेयति हनुमंत खड़ा शब्द सांचा पिंड काचास्फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा
विधान :
जिस साधना के विधान में शरीर किलन की आवश्यकता हो उस साधना में इस मन्त्र को सात बार पढ पढ करा चाकु से अपने चारो तरफ रक्षा रेखा खींच ले गोलाकार , स्वयं हनुमानजी साधक की रक्षा करते हैं,
( ये शोहा वीर का मंत्र है…
इनकी साधना में जूही चमेली के फूलो की विशेष महत्ता होती है, गुलाब और मोगरे की गंध इनको जल्दी आकर्षित करती है.शुद्ध इत्तर का धुप उपयोग करना उत्तम है, बहते पानी के पास सिद्धि जल्दी होगी , साफ़ सफाई ज़रूरी नियम है…
इनकी सिद्धि हो जाने पर साधक को विशेष ध्यान रखना चाहिए की उसके दोनों पावो के बीच से कभी पानी की धार बह के ना पार हो…अगर वो पानी की धर फिर किसी पानी तक पहुची तो सिद्धि तत्काल समाप्त हो जाएगी )
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
विशेष -
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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(रजि.)
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