Tuesday, February 16, 2016


धन प्राप्ति साधना








जीवन में धन की आवश्यकता को कौन नकार सकता है, आज के युग में किसी भी क्षेत्र की सफलता का आधार धन ही तो है. एक व्यक्ति के जीवन में वह आध्यात्मिक तथा भौतिक उन्नति के लिए ही तो हमेशा कार्य करता रहता है. पढ़ाई तथा विविध कार्यमें निपूर्ण बनने में व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक श्रम कर जीवन के बहुमूल्य दिन और बहुमूल्य समय को व्यय करता है, या फिर विविध कार्यों से अनुभव एकत्रित करता है. और यह सब वह करता है एक सुखी भविष्य के लिए जिसमे उसे पूर्ण सुख की प्राप्ति हो सके, पूर्ण भोग की प्राप्ति हो सके तथा समाज में एक आदर्श व्यक्ति बन पूर्ण मान सन्मान को अर्जित कर सके. लेकिन इन सब के मूल में क्या धन नहीं है? धन की अनिवार्यता को निर्विवादित रूप से आज के युग में स्वीकार करना ही पड़ता है. चाहे वह समृद्धि हो, विविध वास्तुओ का उपभोग हो या फिर उच्चतम शिक्षा को अर्जित करना हो. इन सब का आधार धन ही तो है. लेकिन कई बार भाग्य से वंचित व्यक्ति के ऊपर कुदरत अपनी महेरबानी नहीं दिखाती. और एसी स्थिति में व्यक्तिको अपने कई कई स्वप्नों का त्याग करना पड़ता है तथा कई प्रकार के सुख भोग से वंचित रहना पड़ता है. जीवन के इन्ही बोजिल क्षणों में उसका आत्मबल धीरे धीरे क्षीण होने लगता है तथा भविष्य में भी वह अपनी स्थिति को स्वीकार कर जीवन को इसी प्रकार बोज पूर्ण रूप से आगे बढाने लगता है. यह किसी भी प्रकार से श्रेयकर स्थिति तो नहीं है. खास कर जब हमारे पास साधनाओ का बल हो, हमारे पूर्वजो का आशीर्वाद उनके ज्ञान के रूप में हमारे चारों तरफ साधना विज्ञान बन कर बिखरा हुआ हो.
तंत्र साधनाओ में एक से एक विलक्षण प्रयोग धन की प्राप्ति में साधक को सहायता प्रदान करने के लिए है जिसके माध्यम से साधक के सामने नए नए धन के स्त्रोत खुलने लगते है, रुके हुवे धन को प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है तथा नाना प्रकार से उसको धन की प्राप्ति हो सकती है, और फिर अगर यह सब अचानक या आकस्मिक रूप से हो तो उसकी तो बात ही क्या. ऐसे ही दुर्लभ आकस्मिक धन प्राप्ति के प्रयोग में से एक प्रयोग है स्वर्णमाला प्रयोग. जिसमे पारद के संयोग से तीव्र आकर्षण के वशीभूत हो कर इस देव योनी को साधक की सहायता करने के लिए बाध्य होना पड़ता है, लेकिन विवशता पूर्ण नहीं, प्रशन्नता पूर्वक ही तो. क्यों की जहां तांत्रिक प्रक्रिया के साथ साथ विशुद्ध पारद के चैतन्यता का संयोग होता है, वहाँ तो साधक की तरफ देव योनी का भी आकर्षित होना स्वाभाविक ही है. प्रस्तुत प्रयोग ऐसा ही एक गुढ़ विधान है, जिसे पूर्ण मनोयोग के साथ सम्प्पन करने पर साधक को उपरोक्त लाभों की प्राप्ति होती है तथा शीघ्र ही धन सबंधी समस्याओ का निराकरण प्राप्त होता है.
यह प्रयोग साधक किसी भी पूर्णिमा की रात्री में कर सकता है.
साधक यह प्रयोग किसी वटवृक्ष के निचे करे
साधक रात्री में १० बजे के बाद स्नान आदि से निवृत हो कर किसी भी सुसज्जित वस्त्रों को धारण करे तथा वटवृक्ष के निचे पीले आसन पर बैठ जाए. साधक को उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए.
साधक को इस प्रयोग में सुगन्धित अगरबत्ती लगानी चाहिए, अपने वस्त्रों पर भी इत्र लगाना चाहिए. साधक को कोई मिठाई का भोग अपने पास रख सकता है. इसके अलावा साधक को खाने वाला पान जिसमे कत्था सुपारी तथा इलाइची डाली हुई हो उसको भी समर्पित कर सकता है.
सर्व प्रथम साधक गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप करे. उसके बाद साधक विशुद्ध पारद से निर्मित यक्षिणी गुटिका को अपने सामने किसी पात्र में स्थापित करे तथा उसका पूजन करे. यक्षिणी गुटिका की अनुपलब्धि में साधक सौंदर्य कंकण पर भी यह प्रयोग कर सकता है. पूजन के बाद साधक देवी स्वर्णमाला को वंदन करे तथा आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए सहाय करने के लिए विनंती करे. इसके बाद साधक यथा संभव मृत्युंजय मन्त्र का जाप करे.
इसके बाद साधक स्फटिकमाला से या रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप करे.
ॐ श्रीं श्रीं स्वर्णमाले द्रव्यसिद्धिं हूं हूं ठः ठः
(om shreem shreem swarnamaale dravyasiddhim hoom hoom thah thah)
मन्त्र जाप पूर्ण होने पर साधक स्वर्णमाला यक्षिणी को वंदन करे तथा मिठाई/पान स्वयं ग्रहण करे. माला का विसर्जन साधक को नहीं करना है साधक इस माला का भविष्य में भी इस प्रयोग हेतु उपयोग कर सकता है.
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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