यक्षिणी साधना
यक्षिणी के कई रूप हैं। इनकी साधना अलग-अलग रूपों में भी की जाती है और एक ही महा यक्षिणी के रूप में भी। प्राचीन विवरणों के अनुसार यक्षों के अधिपति कुबेर ने इनकी साधना करके ही ऐश्वर्य और भोग की प्राप्ति की थी।
पात्रता – कोई भी स्वस्थ स्त्री-पुरुष महाकाल रात्रि में इनकी साधना कर सकता है। यह तामसी भाव की देवी है; इसलिए इनकी साधना में उपवास और आचरण सम्बन्धी अन्य कोई नियम नहीं है।
समयकाल – महाकाल रात्रि (9 से 1) दोनों पक्ष के पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी या अमावस्या या पूर्णिमा को इनके यंत्र का पूजन करके उसे स्थापित किया जाता है। फिर प्रतिदिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार ध्यान करके के से पांच माला यानी 108 से 540 मन्त्रों का जप किया जाता है।
वस्त्र एवं आसाम आदि – सूती लाल रंग के बिना सिले एक वस्त्र और सूती लाल आसन पर इनकी साधना करनी चाहिए। असली रुद्राक्ष, कमलगट्टे, लाल पत्थर, हल्दी, मूंगे आदि माला प्रशस्त है। बिना माला के भी यह सम्पन्न होती है।
ध्यान रूप – एक अतिसुन्दर दिव्य प्रभा से युक्त चांदी के रंग की युवती राजारनी, जो लाल वस्त्र पर सुनहले काशिदाकारी से युक्त राजसी वेश में मुस्कुराती वरद और अभय की मुद्रा में है। इनके सिर पर लाल मणियों से युक्त मुकुट है और सोने के रत्न जडित राजरानी के योग्य सभी आभूषणों से युक्त है। ये स्वर्ण के लाल मखमल और रत्नों के जडित सिंघासन पर हैं। इनका दाहिना पैर स्वर्ण कमल पर है और इनके सामने सोने के फर्श पर वायु से सोने एवं रत्नों की बारिश हो रही है।
भाव – इस देवी को भाव बदलकर तरह-तरह के भाव में साधना की जाती है। प्रेमिका, पत्नी, बहन, माता , सहेली, मालकिन आदि के रूप में । इन भावों के अनुरूप केवल इनके चेहरे और आखों का भाव बदलता है। रूप ध्यान यद्यपि कई है, पर गृहस्थों को उपर्युक्त रूप का ही ध्यान करना चाहिए।
मंत्र – ॐ हं हं हं ह्रीं ह्रों हैं फट स्वाहा
(यह यक्षिणी यंत्र का गुप्त और शक्तिशाली मंत्र है)
यंत्र – कागज़ पर अष्टदल कमल के मध्य भैरवी चक्र और उसके मध्य बिंदु कमल की कर्णिका में दो वृता कर्णिका में हल्दी-केसर, वृत्त में कुमकुम, अष्टदल में कुमकुम सिन्दूर, भैरवी चक्र हरित, बिंदु में हल्दी से यन्त्र बनाया जाता है। इसे हल्दी कुमकुम , केसर, घृत, मधु, से अभिमंत्रित करके 1100 मन्त्रों से महाकाल रात्रि में सिद्ध किया जाता है। इस यंत्र के चारों ओर सामने से प्रारंभ करके क्लॉक वाईज मूल मंत्र को हल्दी या केशर से लिखा जाता है।
(जो स्वयं नहीं कर सके, वे सिद्ध यन्त्र को हमारे यहाँ से मंगवा सकते है)
पूजन एवं साधना – गृहस्थ स्त्री-पुरुष को प्रतिदिन फूल-दीप से पूजा करके एक सौ आठ मंत्र या एक घंटे जप करना चाहिए। जो सिद्ध हेतु जप करना चाहे उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार जप संख्या निर्धारित करके जप करना चाहिए। इस देवी की सिद्धि शास्त्रीय वर्णन के अनुसार 60,000 मंत्र जप करने से होती है; पर एक लाख जप करना चाहिए। सिद्धि का ज्ञान देवी के प्रकट प्रत्यक्ष होने पर होता है। जिस रूप में देवी को सिद्ध किया हो, उस रूप में सदा कृपा बनाये रखने का वर मांगना चहिये।
सिद्धि के बाद दसवां अंश चमेली, कमल, घृत, जौ, कुमुद, कामिनी आदि फूलों से गूलर या आम की लकड़ी की समिधा में हवन करना चाहिए।
लाभ- इनके मंत्र का ध्यान करके प्रतिदिन मंत्र जपने से स्वयं के और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है; सभी प्रकार के इच्छित भोगों की प्राप्ति होती है।
इनकी सिद्धि प्राप्त होने पर देवी अदृश्य रूप में साधक की सहायता करती है। मानसिक भाव एकाग्र करके बुलाने पर आती है और मार्ग-दर्शन करती हैं। इनको जिस रूप में सिद्ध किया हो, अपने भौतिक जीवन में उस पात्रता को उसी रूप में श्रद्धा पूर्वक समझने का प्राबधान है। अर्थात पत्नी रूप में सिद्ध किया है, तो पत्नी को उस देवी का रूप ही मानना होगा। यही भाव प्रेमिका, नायिका , बहन, माता, मालकिन अदि में भी रखना होगा, यदि इन्हें उस रूप में सिद्ध किया है। यदि पत्नी या प्रेमिका नहीं है और उस रूप में इन्हें सिद्ध किया है , तो सिद्धि प्राप्त होने के तीन महीने के अंदर देवी की कृपा से वह प्राप्त हो जाती है।
शास्त्रीय तौर पर कहा गया है कि वह सदा साधक को धन-स्वर्ण-भोगों की सामग्री – वस्त्र आदि देती है; पर इसे भाव रूप ही समझना चाहिए यानी यह सब प्राप्त होगा, पर माध्यम से।
सत्यासत्य का मूल्यांकन और वैज्ञानिक सूत्र
भाव फलित होता है।जिस भाव में हम मानसिक केंद्रीय करण करते अहि; वह हमारे अंदर नेगेटिव ऊर्जा का संघनन करता है और प्रतिक्रिया में वातावरण में उसका पॉजिटिव संघनित होकर हमारे शरीर को प्राप्त होने लगता है। यह क्रिया प्रकृति प्रद्दत गुण के रूप में प्रत्येक जीव में चलती है। इसी के अनुसार हमारी दैनिक जीवन क्रियाएं चलती है। सामान्य रूप और साधना रूप में पोटेंशि का अंतर होता है।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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