Tuesday, February 16, 2016


धन प्राप्ति साधना








जीवन में धन की आवश्यकता को कौन नकार सकता है, आज के युग में किसी भी क्षेत्र की सफलता का आधार धन ही तो है. एक व्यक्ति के जीवन में वह आध्यात्मिक तथा भौतिक उन्नति के लिए ही तो हमेशा कार्य करता रहता है. पढ़ाई तथा विविध कार्यमें निपूर्ण बनने में व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक श्रम कर जीवन के बहुमूल्य दिन और बहुमूल्य समय को व्यय करता है, या फिर विविध कार्यों से अनुभव एकत्रित करता है. और यह सब वह करता है एक सुखी भविष्य के लिए जिसमे उसे पूर्ण सुख की प्राप्ति हो सके, पूर्ण भोग की प्राप्ति हो सके तथा समाज में एक आदर्श व्यक्ति बन पूर्ण मान सन्मान को अर्जित कर सके. लेकिन इन सब के मूल में क्या धन नहीं है? धन की अनिवार्यता को निर्विवादित रूप से आज के युग में स्वीकार करना ही पड़ता है. चाहे वह समृद्धि हो, विविध वास्तुओ का उपभोग हो या फिर उच्चतम शिक्षा को अर्जित करना हो. इन सब का आधार धन ही तो है. लेकिन कई बार भाग्य से वंचित व्यक्ति के ऊपर कुदरत अपनी महेरबानी नहीं दिखाती. और एसी स्थिति में व्यक्तिको अपने कई कई स्वप्नों का त्याग करना पड़ता है तथा कई प्रकार के सुख भोग से वंचित रहना पड़ता है. जीवन के इन्ही बोजिल क्षणों में उसका आत्मबल धीरे धीरे क्षीण होने लगता है तथा भविष्य में भी वह अपनी स्थिति को स्वीकार कर जीवन को इसी प्रकार बोज पूर्ण रूप से आगे बढाने लगता है. यह किसी भी प्रकार से श्रेयकर स्थिति तो नहीं है. खास कर जब हमारे पास साधनाओ का बल हो, हमारे पूर्वजो का आशीर्वाद उनके ज्ञान के रूप में हमारे चारों तरफ साधना विज्ञान बन कर बिखरा हुआ हो.
तंत्र साधनाओ में एक से एक विलक्षण प्रयोग धन की प्राप्ति में साधक को सहायता प्रदान करने के लिए है जिसके माध्यम से साधक के सामने नए नए धन के स्त्रोत खुलने लगते है, रुके हुवे धन को प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है तथा नाना प्रकार से उसको धन की प्राप्ति हो सकती है, और फिर अगर यह सब अचानक या आकस्मिक रूप से हो तो उसकी तो बात ही क्या. ऐसे ही दुर्लभ आकस्मिक धन प्राप्ति के प्रयोग में से एक प्रयोग है स्वर्णमाला प्रयोग. जिसमे पारद के संयोग से तीव्र आकर्षण के वशीभूत हो कर इस देव योनी को साधक की सहायता करने के लिए बाध्य होना पड़ता है, लेकिन विवशता पूर्ण नहीं, प्रशन्नता पूर्वक ही तो. क्यों की जहां तांत्रिक प्रक्रिया के साथ साथ विशुद्ध पारद के चैतन्यता का संयोग होता है, वहाँ तो साधक की तरफ देव योनी का भी आकर्षित होना स्वाभाविक ही है. प्रस्तुत प्रयोग ऐसा ही एक गुढ़ विधान है, जिसे पूर्ण मनोयोग के साथ सम्प्पन करने पर साधक को उपरोक्त लाभों की प्राप्ति होती है तथा शीघ्र ही धन सबंधी समस्याओ का निराकरण प्राप्त होता है.
यह प्रयोग साधक किसी भी पूर्णिमा की रात्री में कर सकता है.
साधक यह प्रयोग किसी वटवृक्ष के निचे करे
साधक रात्री में १० बजे के बाद स्नान आदि से निवृत हो कर किसी भी सुसज्जित वस्त्रों को धारण करे तथा वटवृक्ष के निचे पीले आसन पर बैठ जाए. साधक को उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए.
साधक को इस प्रयोग में सुगन्धित अगरबत्ती लगानी चाहिए, अपने वस्त्रों पर भी इत्र लगाना चाहिए. साधक को कोई मिठाई का भोग अपने पास रख सकता है. इसके अलावा साधक को खाने वाला पान जिसमे कत्था सुपारी तथा इलाइची डाली हुई हो उसको भी समर्पित कर सकता है.
सर्व प्रथम साधक गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप करे. उसके बाद साधक विशुद्ध पारद से निर्मित यक्षिणी गुटिका को अपने सामने किसी पात्र में स्थापित करे तथा उसका पूजन करे. यक्षिणी गुटिका की अनुपलब्धि में साधक सौंदर्य कंकण पर भी यह प्रयोग कर सकता है. पूजन के बाद साधक देवी स्वर्णमाला को वंदन करे तथा आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए सहाय करने के लिए विनंती करे. इसके बाद साधक यथा संभव मृत्युंजय मन्त्र का जाप करे.
इसके बाद साधक स्फटिकमाला से या रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप करे.
ॐ श्रीं श्रीं स्वर्णमाले द्रव्यसिद्धिं हूं हूं ठः ठः
(om shreem shreem swarnamaale dravyasiddhim hoom hoom thah thah)
मन्त्र जाप पूर्ण होने पर साधक स्वर्णमाला यक्षिणी को वंदन करे तथा मिठाई/पान स्वयं ग्रहण करे. माला का विसर्जन साधक को नहीं करना है साधक इस माला का भविष्य में भी इस प्रयोग हेतु उपयोग कर सकता है.
राजगुरु जी
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अग्नि सूर्य साधना
(पारिवारिक सुख समृद्धि के लिए )
भगवान आदित्य सूर्य का महत्त्व समस्त जीव के लिए कितना और क्या है यह बात तो हर कोई व्यक्ति जानता ही है. समस्त जिव को प्राण उर्जा प्रदान करने वाले तथा पृथ्वी की सुनिश्चित गति के लिए भगवान सूर्य देव हमेशा ही कार्यरत रहते है.
भगवान सूर्य को आदि देव कहा गया है, वेदोक्त तथा तंत्रोक्त दोनों द्रष्टि से इनका उच्चतम महत्त्व विविध साधना पद्धति तथा आदि ग्रंथो के आधार पर प्राप्त होता है. सूर्य विज्ञान तथा सूर्य विज्ञान तंत्र जेसी गुढ़ और अत्यंत ही रहस्यमय विद्या भी तो इन्ही देव की कृपा द्रष्टि से सम्प्पन हो पाती है. समस्त जिव को आधार शक्ति, प्रकाश, प्राण ऊर्जा आदि प्रदान करते हुवे जिव मात्र को सहज रूप से अपना वर प्रदान करते ही रहते है. ज्योतिष के क्षेत्र में भी भगवान सूर्य का अमूल्य स्थान है, वहीँ दूसरी तरफ पारद विज्ञान में भी इनका सहयोग प्राप्त होना आवश्यक ही है.

भगवान सूर्य की तंत्रोक्त एवं वेदोक्त दोनों ही रूप से उपासना होती आई है. आदि देव सूर्य के कई स्वरुप साधको के मध्य प्रचलित है तथा उनके विशेष रूप तथा शक्तियों के आधार पर उनसे सबंधित कई कई साधना पद्धतियाँ प्रचलन में है. अग्नि तत्व की पूर्ण प्रधानता को अपने अंदर समेटे हुवे भगवान सूर्य का प्रतिक अग्नि को भी माना गया है. सम्पूर्ण सृष्टि को अग्नि अर्थात ऊष्मा और प्राण उर्जा प्रदान करने वाले भगवान सूर्य के इस स्वरुप को अग्नि सूर्य कहा जाता है. भगवान सूर्य के इस स्वरुप की उपासना करने पर साधक के पाप कर्मो का नाश होता है, तथा कई कार्मिक दोषों की निवृति होती है. सूर्य ग्रह से सबंधित समस्याओ में राहत मिलती है. तथा घर परिवार में उन्नति प्राप्त होती है. आज हर एक व्यक्ति का स्वप्न होता है की उनके घर में परिवार में खुशहाली का वातावरण रहे तथा सभी सदस्य मिल जुल कर शान्ति पूर्वक तो रहे ही, इसके साथ ही साथ सभी अपने अपने कार्यों में उन्नति को प्राप्त करे, घर तथा परिवार का नाम रोशन करे. सभी को अपने जीवन में सफलता की प्राप्ति हो. प्रस्तुत प्रयोग भी भगवान श्री सूर्य देव से सबंधित एक ऐसा ही प्रयोग है जिसे सम्प्पन करने पर साधक के जीवन में तथा परिवारजनो के जीवन में उपरोक्त वर्णित लाभों की प्राप्ति होती है, वैसे तो यह प्रयोग एक दिवसीय प्रयोग है लेकिन साधक के लिए उत्तम रहता है की वो इस प्रयोग को समय तथा सुभीता के अनुसार करते रहे.
यह प्रयोग साधक किसी भी रविवार या कोई भी शुभदिन कर सकता है.
समय दिन का रहे. साधक सूर्योदय से ले कर दोपहर तक के समय के मध्य यह प्रयोग सम्प्पन करे तो उत्तम है.
साधक सर्व स्नान आदि से निवृत सफ़ेद वस्त्र धारण करे.
साधक सूर्य को अर्ध्य प्रदान करे तथा उसके बाद सफ़ेद आसन पर बैठ जाए. साधक का मुख पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए.
इसके बाद साधक गुरुपूजन तथा गुरु मन्त्र का जाप करे. इसके बाद साधक गायत्री मन्त्र का भी यथा संभव जाप करे.
इसके बाद साधक निम्न मन्त्र की ११ माला मन्त्र जाप करे. यह जाप स्फटिक माला से होना चाहिए.
इसके बाद साधक अपने सामने अग्नि को प्रज्वलित करे तथा शुद्ध घी से इस मन्त्र की १०८ आहुति अग्नि में समर्पित करे.
मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये जातवेद ईहावह सर्वकर्माणि साधय स्वाहा
राजगुरु जी
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Monday, February 15, 2016



धन-संमृद्धि ,ऐश्वर्य प्रदायक कमला [[लक्ष्मी]] साधना








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जीवन में समस्त प्रकार के सुखों की प्राप्ति तथा भौतिक उन्नति के इच्छुक व्यक्तियों को सर्व सुख प्रदायक चमत्कारी कमला [लक्ष्मी] साधना प्रयोग एक बार अवश्य ही संपन्न कर लेना चाहिए |इस प्रयोग को विधि पूर्वक संपन्न कर लेने से साधक को अपने जीवन में धन-धान्य ,सुख -संमृद्धि ,यश -कीर्ति ,पराक्रम ,भवन ,वाहन सुख तथा संतान सुख आदि भौतिक सुखों की निरंतर प्राप्ति रहती है |
सामग्री
----------- मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त महालक्ष्मी या कमला यन्त्र ,पारद लक्ष्मी ,घी का दीपक ,अगरबत्ती ,जल पात्र ,कमलगट्टे की माला [मंत्र सिद्ध चैतन्य],पीले रंग का आसन ,पीले रंग की धोती ,
मंत्र
------- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं हसौ: जगतप्रसुत्यै नमः |
साधना विधि
---------------- शुभ मुहूर्त अथवा गुरूवार के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त हो पवित्र हो पीली धोती धारण कर ,पीले आसन पर स्थान ग्रहण करें |पवित्री करण आदि करके उत्तर दिशा की और मुह रखके सामने बाजोट या चौकी पर पीला कपडा बिछा कर उस पर अष्टदल बनाकर पारद लक्ष्मी और यन्त्र स्थापित करें |संकल्प करें निश्चित संख्या जप की निश्चित दिनों में ,कम से कम साधना २१ दिन चलेगी और मंत्र जप सवालाख होने चाहिए ,इस तरह अधिकतम एक दिन में ६००० से अधिक अर्थात ६० माला से अधिक जप नहीं होने चाहिए ,कम जप हों और अधिक दिनों में हों तो और अच्छा ,पर जप अनुष्ठान पूर्वक सारे नियम पालन करते हुए ही होने चाहिए |तांत्रिक साधना है अतः त्रुटी न हो इस बात का ध्यान रखें |इसके बाद पारद लक्ष्मी की प्राण प्रतिष्ठा करें ,तत्पश्चात यन्त्र और मूर्ती की विधिवत पूजन करें |केसर का उनपर और खुद भी तिलक करें |इसके बाद पूजन समाप्त करें अब जप रोज रात्री में ही होंगे |रात्री में शुद्ध हो मंत्र सिद्ध कमलगट्टे की माला से धीमे वारों में और शुद्ध उच्चारण के साथ मंत्र जप आरम्भ करें |मंत्र जप समाप्त होने पर जप को भगवती के बाएं हाथ में समर्पित करें |क्षमा मांगे गलतियों हेतु और आरती करें |यह क्रम प्रतिदिन अनुष्ठान समाप्ति तक चलेगा |अंतिम दिन के जप के अगले दिन हवन करें |और यंत्र तथा मूर्ती का तर्पण करें |
प्रयोग समाप्त होने पर किसी कुँवारी कन्या को भोजन वस्त्रादि देकर संतुष्ट कर उससे आशीर्वाद लें |अब इस यन्त्र और मूर्ती को घर अथवा दूकान के पूजा स्थल में स्थापित करें और नित्य प्रति पूजा देते रहें |आपकी उन्नति और संमृद्धि वृद्धि होती रहेगी |क्योकि इतने दिन में मूर्ती और यन्त्र इतना चैतन्य हो जाता है की वह आपकी उन्नति में सहायक रहता है जब तक की उसकी पूजा होती रहे |पारद और यंत्र एक तांत्रिक वस्तु हैं और तीब्र प्रभावी होते हैं ,तंत्र के अंतर्गत आते हैं अतः शीघ्र लाभ होता है |
विशेष
--------- प्रयोग से पूर्व किसी योग्य से मार्गदर्शन और सहायता उत्तम रहता है और त्रुटियों की संभावना नहीं रहती |मंत्र सिद्ध चैतन्य माला अथवा प्राण प्रतिष्ठित यंत्र रखने का तात्पर्य यह होता है की यह तांत्रिक क्रियाओं द्वारा संपन्न की जाती हैं और सामान्य लोगों के लिए मुश्किल है इनकी जानकारी होना |यदि समस्त क्रिया खुद न कर सकें तो किसी योग्य इक अथवा जानकार से सम्पूर्ण अनुष्ठान कराकर उनसे प्राण प्रतिष्ठित पारद लक्ष्मी और यन्त्र तथा माला प्राप्त कर उसे अपने पूजा स्थान में स्थापित कर रोज पूजा दें ,प्रभाव और लाभ मिलेंगे
राजगुरु जी
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Sunday, February 14, 2016

महाकाली सबंधित पूर्ण काल ज्ञान के लिए






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निकटत्तम भविष्य को जानने के लिए एक सामान्य विधान इस रूप से है जो की व्यक्ति को भविष्य के ज़रोखे मे जांक कर देखने के लिए शक्ति प्रदान करता है
किसीभी शुभदिन से यह साधना शुरू की जा सकती है । इसमें महाकाली का विग्रह या चित्र अपने सामने स्थापित करे और रात्री काल मे उसका सामान्य पूजन कर के निम्न मंत्र की २१ माला २१ दिन तक करे । यानि रोज 21 माला प्रतिदिन जाप करना हे ।
मंत्र :-
काली कंकाली प्रत्यक्ष क्रीं क्रीं क्रीं हूं
साधना काल मे लोहबान का धुप व् घी का दीपक जलते रहना चाहिए ।
यह जाप रुद्राक्ष या काली हकीक माला से किया जा सकता है ।
साधना के कुछ दिनों मे साधको को कई मधुर अनुभव हो सकते है.
राजगुरु जी
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तांत्रिक अभिकर्म से प्रतिरक्षण हेतु उपाय








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१. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें । ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें । इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं ।
२. जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा ।
३. गऊ, लोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में पूजा स्थान में रख दें । शिव कृपा से तमाम टोने-टोटके का असर समाप्त हो जाएगा ।
४. घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें ।
५. कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें । तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा ।
६. यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के निकट बैठकर पपीते के बीज अपने सामने रखें । अपना नाम, गौत्र उच्चारित करके भगवान् शिव से अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें ।
७. शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो नींबू को ४ भागों में काटकर चौराहे पर खड़े होकर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए चारों दिशाओं में एक-एक भाग को फेंक दें व घर आकर अपने हाथ-पांव धो लें । तांत्रिक अभिकर्म से छुटकारा मिलेगा ।
८. शुक्ल पक्ष के बुधवार को ४ गोमती चक्र अपने सिर से घुमाकर चारों दिशाओं में फेंक दें तो व्यक्ति पर किए गए तांत्रिक अभिकर्म का प्रभाव खत्म हो जाता है।
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इस मंत्र से आप हो जाएंगे धनवान











हर इंसान की कई अभिलाषाएं होती हैं लेकिन सभी अभिलाषाएं पूरी नहीं हो पाती। इसका एक प्रमुख कारण धन का अभाव भी है। धन की कमी हो तो इंसान की हर ख्वाहिश अधूरी ही रह जाती है। इसलिए धन का होना बहुत आवश्यक है। अगर आप भी धन की इच्छा रखते हैं तो नीचे लिखे मंत्र का विधि-विधान से जप करें। इस मंत्र से देवी लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती है।
मंत्र
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्यं प्रसीद प्रसीद प्रसीद ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मैय नम:
जप विधि
- रोज सुबह स्नान आदि के बाद माता लक्ष्मी की तस्वीर को सामने रखें।
- मां लक्ष्मी को कमल पुष्प अर्पित करें।
- गाय के घी का दीपक लगाएं और मंत्र का जप पूर्ण श्रृद्धा व विश्वास के साथ करें।
- प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।
- आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।
- एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र शीघ्र ही प्रभावशाली हो जाता है।
इस मंत्र का जप करने वाले व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की कृपा होगी और जीवन में कभी पैसों के अभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।
मंत्रों में अनेक समस्याओं का समाधान छिपा है। यह मंत्र जल्दी ही शुभ परिणाम देते हैं। यदि आपकी कोई समस्या हो या मंत्रों के संबंध में कोई जिज्ञासा हो तो आप हमें पुछ सकते हैं। आप अपनी जिज्ञासा हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर पोस्ट करें। हम आपके प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयत्न करेंगे।
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मनचाही नौकरी चाहिए, ये उपाय करें






वर्तमान समय में बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या है। नौकरी न होने के कारण न तो समाज में मान-सम्मान मिलता है और न ही घर-परिवार में। यदि आप भी बेरोजगार हैं और बहुत प्रयत्न करने पर भी रोजगार नहीं मिल रहा है तो निराश होने की कोई जरुरत नहीं है। कुछ साधारण तांत्रिक उपाय कर आप रोजगार पा सकते हैं।
- शनिवार को हनुमानजी के मंदिर में जाकर सवा किलो मोतीचूर के लड्डुओं का भोग लगाएं। घी का दीपक जलाएं और मंदिर में ही बैठकर लाल चंदन की या मूंगा की माला से 108 बार नीचे लिखे मंत्र का जप करें-
कवन सो काज कठिन जग माही।
जो नहीं होय तात तुम पाहिं।।
इसके बाद 40 दिनों तक रोज अपने घर के मंदिर में इस मंत्र का जप 108 बार करें। 40 दिनों के अंदर ही आपको रोजगार मिलेगा।
- शनैश्चरी अमावस्या के दिन एक कागजी नींबू लें और शाम के समय उसके चार टुकड़े करके किसी चौराहे पर चारों दिशाओं में फेंक दें। इसके प्रभाव से भी जल्दी ने बेरोजगारी की समस्या दूर हो जाएगी।
- मंगलवार से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक रोज सुबह के समय नंगे पैर हनुमानजी के मंदिर में जाएं और उन्हें लाल गुलाब के फूल चढ़ाएं। ऐसा करने से भी शीघ्र ही रोजगार मिलता है।
- इंटरव्यू में जाने से पहले लाल चंदन की माला से नीचे लिखे मंत्र का 11 बार जप करें-
ऊँ वक्रतुण्डाय हुं
जप से पूर्व भगवान गणेश की पूजा करें और गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते हुए दूध से अभिषेक करें।
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जो चाहोगे वह मिलेगा इस शंख से









हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है। शंख को बहुत ही पवित्र माना गया है। शंख कई प्रकार के होते हैं। साधारणत: मंदिर में रखे जाने वाले शंख उल्टे हाथ के तरफ खुलते हैं और बाजार में आसानी से मिल जाते हैं जबकि दक्षिणावर्ती शंख बहुत चमत्कारी होते हैं और बहुत ही मुश्किल से मिल पाते हैं। यह शंख कई तंत्र क्रियाओं में भी काम में आते हैं। इस शंख को लक्ष्मी का स्वरूप मानते हैं। तंत्र शास्त्र के अनुसार इस शंख को पूर्ण विधि-विधान के साथ लाल कपड़े में लपेटकर अपने घर में अलग- अलग स्थान पर रखने से विभिन्न परेशानियों का हल संभव है। इसके कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
- दक्षिणावर्ती शंख को तिजोरी में रखा जाए तो घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
- इसको बेडरुम में किसी अलमारी में रखा जाए तो पति-पत्नी के सम्बन्ध में मधुरता आती है। घर में क्लेश नहीं होता है और शांति बनी रहती है।
- जिस घर में इसे रखा जाता है वहां लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है और कभी कपड़ों और पैसों की कमी नहीं आती।
- यदि इस शंख में दूध भरकर किसी नि:संतान महिला को पिलाया जाए तो उसे जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।
तंत्र शास्त्र के अंतर्गत अनेक समस्याओं का समाधान निहित है। यह साधारण तंत्र उपाय जल्दी ही परिणाम देते हैं। यदि इस संबंध आपकी कोई जिज्ञासा हो तो आप हमें पुछ सकते हैं। आप अपनी जिज्ञासा हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर पोस्ट करें। हम आपके प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयत्न करेंगे।
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आसाम का काला जादू और तंत्र सिद्ध महिलाएं.....






आसाम को ही पुराने समय में कामरूप प्रदेश के रूप में जाना जाता था। कामरुप प्रदेश को तन्त्र साधना के गढ़ के रुप में दुनियाभर में बहुत नाम रहा है। पुराने समय में इस प्रदेश में मातृ सत्तात्मक समाज व्यवस्था प्रचलित थी, यानि कि यंहा बसने वाले परिवारों में महिला ही घर की मुखिया होती थी। कामरुप की स्त्रियाँ तन्त्र साधना में बड़ी ही प्रवीण होती थीं। बाबा आदिनाथ, जिन्हें कुछ विद्वान भगवान शंकर मानते हैं, के शिष्य बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी भ्रमण करते हुए कामरुप गये थे। बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी कामरुप की रानी के अतिथि के रुप में महल में ठहरे थे। बाबा मत्स्येन्द्रनाथ, रानी जो स्वयं भी तंत्रसिद्ध थीं, के साथ लता साधना में इतना तल्लीन हो गये थे कि वापस लौटने की बात ही भूल बैठे थे। बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी को वापस लौटा ले जाने के लिये उनके शिष्य बाबा गोरखनाथ जी को कामरुप की यात्रा करनी पड़ी थी। 'जाग मछेन्दर गोरख आया' उक्ति इसी घटना के विषय में बाबा गोरखनाथ जी द्वारा कही गई थी।
कामरुप में श्मशान साधना व्यापक रुप से प्रचलित रहा है। इस प्रदेश के विषय में अनेक आश्चर्यजनक कथाएँ प्रचलित हैं। पुरानी पुस्तकों में यहां के काले जादू के विषय में बड़ी ही अद्भुत बातें पढऩे को मिलती हैं। कहा जाता है कि बाहर से आये युवाओं को यहाँ की महिलाओं द्वारा भेड़, बकरी बनाकर रख लिया जाता था।
आसाम यानि कि कामरूप प्रदेश की तरह ही बंगाल राज्य को भी तांत्रिक साधनाओं और चमत्कारों का गढ़ माना जाता रहा है। बंगाल में आज भी शक्ति की साधना और वाममार्गी तांत्रिक साधनाओं का प्रचलन है। बंगाल में श्मशान साधना का प्रसिद्ध स्थल क्षेपा बाबा की साधना स्थली तारापीठ का महाश्मशान रहा है। आज भी अनेक साधक श्मशान साधना के लिये कुछ निश्चित तिथियों में तारापीठ के महाश्मशान में जाया करते हैं। महर्षि वशिष्ठ से लेकर बामाक्षेपा तक अघोराचार्यों की एक लम्बी धारा यहाँ तारापीठ में बहती आ रही है
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Friday, February 12, 2016

.गृह कलह निवारण एवं शुद्धि हेतु









यदि निरंतर घर में कलह का वातावरण बना रहता हो,अशांति बनी रहती हो.व्यर्थ का तनाव बना रहता हो तो.थोड़ी सी गूगल लेकर
" ॐ ह्रीं मंगला दुर्गा ह्रीं ॐ "
मंत्र का १०८ बार जाप कर गूगल को अभी मंत्रित कर दे और उसे कंडे पर जलाकर पुरे घर में घुमा दे.ये सम्भव न हो तो गूगल ५ अगरबत्ती पर भी ये प्रयोग किया जा सकता है.घर में शांति का वातावरण बनने लगेगा।
राजगुरु जी
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कर्ण मातंगी साधना






जिज्ञासु पाठक श्री विनोद शर्मा जी के अनुरोध पर कर्ण मातंगी के बारे में संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूं। यह मूलतः जल्दी फल देने वाली साधना से ज्यादा एक प्रयोग विधि है। इसके साधक को माता भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी स्वप्न में दे देती हैं। निष्कम भाव से साधना करने वालों पर माता अपनी विशेष कृपा बरसाती हैं लेकिन चूंकि फल आसानी से मिल जाता है, अतः साधक का निष्काम रह पाना बेहद कठिन होता है। फल आधारित साधना होने के कारण इसका असर भी जल्दी खत्म होने लगता है। अतः साधक को प्रयोग की अधिकता/कमी के आधार पर हर तीन या छह माह पर इसका पुनः जप कर लेना चाहिए। इनके कई मंत्र हैं लेकिन यहां अनुभव किए हुए सिर्फ दो मंत्रों का ही उल्लेख कर रहा हूं।
कर्ण मातंगी मंत्र
ऐं नमः श्री मातंगि अमोघे सत्यवादिनि मककर्णे अवतर अवतर सत्यं कथय एह्येहि श्री मातंग्यै नमः।
या
ऊं नमः कर्ण पिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनी मम कर्णे अवतर अवतर अतीत अनागत वर्तमानानि दर्शय दर्शय मम भविष्यं कथय कथय ह्रीं कर्ण पिशाचिनी स्वाहा।
ऐं बीज से षडंगन्यास करें। पुरश्चरण के लिए आठ हजार की संख्या में जप करें। कई बार प्रतिकूल ग्रह स्थिति रहने पर जप संख्या थोड़ी बढ़ानी भी पड़ती है। जप के दौरान शारीरिक पवित्रता की जरूरत नहीं है लेकिन मानसिक रूप से पवित्र होना आवश्यक है। इसमें हवन भी आवश्यक नहीं है। हालांकि उच्छिष्ट वस्तु (खीर के प्रसाद से) या मांस-मछली को प्रसाद के रूप में माता को ही चढ़ाकर उससे हवन करना अतिरिक्त ताकत देता है। इसके साधक को माता कर्ण मातंगी भविष्य में घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं की जानकारी स्वप्न में देती हैं। इच्छुक साधक को माता से प्रश्न का जवाब भी मिल जाता है। भक्तिपूर्वक एवं निष्काम साधना करने पर माता साधक का पथप्रदर्शन करती हैं।
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Thursday, February 11, 2016

एकाक्षी नारियल








तंत्र में अतिप्रचलित कुछ वस्तुएं
वैसे इसके बारे में कुछ अधिक कहने की जरुरत नहीं है आप लोग स्वयं ही जानते हैं । एकाक्षी नारियल माता महालक्ष्मी का साक्षात् स्वरुप और अष्टलक्ष्मी का फल देने वाला माना जाता है। इसे पुराने ज़माने का एटीएम कहना गलत नहीं होगा।
विधिवत सिद्ध किया गया एकाक्षी नारियल घर या दुकान की तिजोरी, मंदिर या रसोई घर में रखने से अन्न धन के भंडार भरे रहते हैं।
भूत प्रेत वायव्य बाधाओं से पीड़ित घर या भवन में एकक्षि नारियल से अभिमंत्रित जल का छिडकाव करने से इनसे मुक्ति मिलती है।
संतानहीन स्त्री को पिलाने से संतान प्राप्ति होती है और गर्भवती को पिलाने से सुचारू प्रसव होता है।
नियमित पूजन से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
मित्र साधको को एकाक्षी नारियल की अवशक्त हो तो उन्हें सिद्ध करके डाक के जरिये भेज दिया जायेगा
एक एकाक्षी नारियल का न्यौछावर राशि ( मूल्य ) मात्र - 500 , रूपये . प्राण प्रतिष्ठा , मंत्र सिद्धि चैतन्य युक्त
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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हकिक माला




हकिक की मालाये
लाल हकिक की माला
सफ़ेद हकिक की माला
स्फटिक की माला
मित्र साधको को इनमे से कोई भी माला की अवशक्त हो तो उन्हें सिद्ध करके डाक के जरिये भेज दिया जायेगा
प्रत्येक एक पीस माला का न्यौछावर राशि ( मूल्य ) मात्र - 600 , रूपये . प्राण प्रतिष्ठा , मंत्र सिद्धि चैतन्य युक्त
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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तिलोत्तमा अप्सरा







तिलोत्तमा अप्सरा की गिनती भी श्रेष्ठ अप्सराओं मे होती हैं। यह अप्सरा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनो ही रुप मे साधक की सहायता करती रहती हैं। यह साधना अनुभुत हैं। इस साधना को करने से सभी सुखो की प्राप्ति होती हैं। इस साधना को शुरु करते ही एक – दो दिन में धीमी धीमी खुशबू का प्रवाह होने लगता हैं। यह खुशबू तिलोत्तमा के सामने होने की पूर्व सुचना हैं। अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण एक श्रमसाध्य कार्य हैं। मेहनत बहुत ही जरुरी हैं। एक बार अप्सरा के प्रत्यक्षीकरण के बाद कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता, इसमे कोई दोराय नहीं हैं। यह प्रक्रिया आपकी सेवा में प्रस्तुत करने की कोशिश करता हूँ। सामान्यतः अप्सरा साधना भी गोपनीयता की श्रेष्णी में आती हैं। सभी को इस प्रकार की साधना जीवन मे एक बार सिद्ध करने की पुरी कोशिश करनी चाहिए क्योंकि कलियुग में जो भी कुछ चाहिए वो सब इस प्रकार की साधना से सहज ही प्राप्त किया जा सकता हैं। इन साधनाओं की अच्छी बात यह हैं कि इन साधनाओं को साधारण व्यक्ति भी कर सकता हैं मतलब उसको को पंडित तांत्रिक बनाने की कोई अवश्यकता नहीं हैं।
साधक स्नान कर ले अगर नही भी कर सको तो हाथ-मुहँ अच्छी तरह धौकर, धुले वस्त्र पहनकर, रात मे ठीक 10 बजे के बाद साधना शुरु करें। रोज़ दिन मे एक बार स्नान करना जरुरी है। मंत्र जाप मे कम्बल का आसन रखे और अप्सरा और स्त्री के प्रति सम्मान आदर होना चाहिए। अप्सरा , गुरु, धार्मिक ग्रंथो और विधि मे पुर्ण विश्वास होना चाहिए, नहीं तो सफलत होना मुश्किल हैं। अविश्वास का साधना मे कोई स्थान नही है। साधना का समय एक ही रखने की कोशिश करनी चाहिए।
एक स्टील की प्लेट मे सारी सामग्री रख ले। साधना करते समय और मंत्र जप करते समय जमीन को स्पर्श नही करते। माला को लाल या किसी अन्य रंग के कपडे से ढककर ही मंत्र जप करे या गौमुखी खरीदे ले। मंत्र जप को अगुँठा और माध्यमा से ही करे । मंत्र जपते समय माला मे जो अलग से एक दान लगा होता हैं उसको लांघना नहीं है मतलब जम्प नहीं करना हैं। जब दुसरी माला शुरु हो तो माला के आखिए दाने/मनके को पहला दान मानकर जप करें, इसके लिए आपको माला को अंत मे पलटना होगा। इस क्रिया का बैठकर पहले से अभ्यास कर लें।
पूजा सामग्री:- सिन्दुर, चावल, गुलाब पुष्प, चौकी, नैवैध, पीला आसन, धोती या कुर्ता पेजामा, इत्र, जल पात्र मे जल, चम्मच, एक स्टील की थाली, मोली/कलावा, अगरबत्ती,एक साफ कपडा बीच बीच मे हाथ पोछने के लिए, देशी घी का दीपक, (चन्दन, केशर, कुम्कुम, अष्टगन्ध यह सभी तिलक के लिए))
विधि :
पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री अपने पास रख लें।
बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने को जल से छिडके।
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
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(निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा/चोटी को गांठ लगाये / स्पर्श करे)
ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते। तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
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(अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें)
ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥
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(अपने सीधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल दे) और कहे
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
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संकल्प:- दाहिने हाथ मे जल ले।
मैं ........अमुक......... गोत्र मे जन्मा,................... यहाँ आपके पिता का नाम.......... ......... का पुत्र .............................यहाँ आपका नाम....................., निवासी.......................आपका पता............................ आज सभी देवी-देव्ताओं को साक्षी मानते हुए देवी तिलोत्त्मा अप्सरा की पुजा, गण्पति और गुरु जी की पुजा देवी तिलोत्त्मा अप्सरा के साक्षात दर्शन की अभिलाषा और प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जिससे देवी तिलोत्त्मा अप्सरा प्रसन्न होकर दर्शन दे और मेरी आज्ञा का पालन करती रहें साथ ही साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें।
जल और सामग्री को छोड़ दे।
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गणपति का पूजन करें।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
गुरु पुजन कर लें कम से कम गुरु मंत्र की चार माला करें या जैसा आपके गुरु का आदेश हो।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः। ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ भ्रं भैरवाय नमः का 21 बार जप कर ले।
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अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं।
दोनो हाथो को मिलाकर और फैलाकर कुछ नमाज पढने की तरफ बना लो। साथ ही साथ “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तिलोत्त्मा अप्सरा आगच्छ आगच्छ स्वाहा” मंत्र का 21 बार उचारण करते हुए एक एक गुलाब थाली मे चढाते जाये। अब सोचो कि अप्सरा आ चुकी हैं।

हे सुन्दरी तुम तीनो लोकों को मोहने वाली हो तुम्हारी देह गोरे गोरे रंग के कारण अतयंत चमकती हुई हैं। तुम नें अनेको अनोखे अनोखे गहने पहने हुये और बहुत ही सुन्दर और अनोखे वस्त्र को पहना हुआ हैं। आप जैसी सुन्दरी अपने साधक की समस्त मनोकामना को पुरी करने मे जरा सी भी देरी नही करती। ऐसी विचित्र सुन्दरी तिलोत्तमा अप्सरा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
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इन गुलाबो के सभी गन्ध से तिलक करे। और स्वयँ को भी तिलक कर लें।
ॐ अपूर्व सौन्दयायै, अप्सरायै सिद्धये नमः।
मोली/कलवा चढाये : वस्त्रम् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर चावल (बिना टुटे) : अक्षतान् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
पुष्प : पुष्पाणि समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
अगरबत्ती : धूपम् आघ्रापयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
दीपक (देशी घी का) : दीपकं दर्शयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
मिठाई से पुजा करें।: नैवेद्यं निवेदयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर पुजा सामप्त होने पर सभी मिठाई को स्वयँ ही ग्रहण कर लें।
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पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का) अप्सरा को अर्प्ति करे और स्वयँ खाये। इस मंत्र की स्फाटिक की माला से 21 माला जपे और ऐसा 11 दिन करनी हैं।
ॐ क्लीं तिलोत्त्मा अप्सरायै मम वश्मनाय क्लीं फट
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यहाँ देवी को मंत्र जप समर्पित कर दें। क्षमा याचना कर सकते हैं। जप के बाद मे यह माला को पुजा स्थान पर ही रख दें। मंत्र जाप के बाद आसन पर ही पाँच मिनट आराम करें।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः।
यदि कर सके तो पहले की भांति पुजन करें और अंत मे पुजन गुरु को समर्पित कर दे।
अंतिम दिन जब अप्सरा दर्शन दे तो फिर मिठाई इत्र आदि अर्पित करे और प्रसन्न होने पर अपने मन के अनुसार वचन लेने की कोशिश कर सकते हैं।
पुजा के अंत मे एक चम्मच जल आसन के नीचे जरुर डाल दें और आसन को प्रणाम कर ही उठें।
॥ हरि ॐ तत्सत ॥
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नियम जिनका पालन अधिक से अधिक इस साधना मे करना चाहिए वो सब नीचे लिखे हैं।
ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्‍ट का या ॐ नमः शिवाय या अप्सरा का ध्यान करें, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अप्सरा आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं। ऐसी अवस्था मे क्या शोभनीय हैं आप स्वयँ अन्दाजा लगा सकते हैं।
भोजन: मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, तामसिक भोजन आदि सभी से ज्यादा से ज्यादा दुर रहना हैं। इनका प्रयोग मना ही हैं। केवल सात्विक भोजन ही करें क्योंकि यह काम भावना को भडकाने का काम करते हैं। मंत्र जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् ही ज्यादा तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना (पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना यह सब कार्य मना हैं। मेरा मतलब हैं कि बहुत ही गम्भीरता से मंत्र जप करना हैं। यदि आपको पैर बदलने की जरुरत हो तो माला पुरी होने के बाद ही पैरों को बदल सकते हैं या थोडा सा आराम कर सकते हैं लेकिन मंत्र जप बन्द ना करें।
यदि आपको सिद्धि चाहिए तो भगवन श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि "जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन खाना) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं"।
यदि उसे एक बार भी प्रेमिका की तरह प्रेम/पुजा किया तो आने मे कभी देरी नही करती है। साधना के समय वो एक देवी मात्र ही हैं और आप साधक हैं। इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए। समस्त अप्सराएँ वाक सिद्ध होती हैं।
किसी भी साधना को सीधे ही करने नही बैठना चाहिए। उससे पहले आपको अपना कुछ अभ्यास करना चाहिए। मंत्रो का उचारण कैसे करना है यह भी जान लेना चाहिए और बार बार बोलकर अभ्यास कर लेना चाहिए।
ऐसा करने पर अप्सरा जरुर सिंद्ध होती हैं बाकी जो देवी कालिका की इच्छा क्योंकि होता वही हैं जो देवी जगत जननी चाहती हैं। साधना से किसी को नुकसान पहुँचाने पर साधना शक्ति स्वयँ ही समाप्त होने लगती हैं। इसलिए अपनी साधना की रक्षा करनी चाहिए। किसी को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की जरुरत नहीं हैं। यहाँ कोई किसी के काम नहीं आता हैं लेकिन फिर भी कभी कभार किसी ना किसी जो बहुत ही जरुरत मन्द हो की सहायता करी जा सकती हैं। वैसे यह साधना साधक का ही ज्यादा भला करने वाले हैं।
मैं तो इतना ही कहुगाँ कि इस साधना को नए साधक और ऐसे आदमी को जरुर करना चाहिए जो देवी देवता मे यकीन ना रखता हो। यदि ऐसे लोगों थोडा सा विश्वास करके भी इस साधना को करते हैं तो उन्हें कुछ ना कुछ अच्छे परिणाम जरुर मिलने चाहिए। यदि किसी को साधना करने मे कोई दिक्कत हो रही हैं तो हमसे भी सम्पर्क (ईमेल का पता सबसे उपर दिया गया हैं) किया जा सकता हैं। यदि पहली बार में साधना मे सिद्धि प्राप्त नहीं हो रही है तो आप सहायता के लिए ईमेल कर सकते हैं। देवी माँ आपको सभी सिद्धि प्रदान करें इस कामना के साथ इस लेख को विराम देता हूँ।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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६४ योगिनी - चौसठ योगिनी




मातृका शक्ति :- सीधा सा सम्बन्ध है इस शब्द का जिसमे प्रकृति या ऐसी शक्ति का बोध होता जो उत्पन्न करने और पालन करने का दायित्व निभाती है --- जिसने भी इस शक्ति की शरण में खुद को समर्पित कर दिया उसे फिर किसी प्रकार कि चिंता करने कि कोई आवश्यकता नहीं वह परमानन्द हो जाता है ---- चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता आदिशक्ति कि सहायक शक्तियों के रूप में चिन्हित कि जाती हैं जिनकी मदद से माता आद्या इस संसार का राज काज चलाती हैं एवं श्रष्टि के अंत काल में ये मातृका शक्तियां वापस माँ आद्या में पुनः विलीन हो जाती हैं और सिर्फ माँ आदिशक्ति ही बचती हैं फिर से पुनर्निर्माण के लिए !
बहुत बार देखने में आता है कि लोग वर्गीकरण करने लग जाते हैं और उसी वर्गीकरण के आधार पर साधकगण अन्य साधकों को हीन / हेय दृष्टि से देखने लग जाते हैं क्योंकि उनकी नजर में उनके द्वारा पूजित रूप को वे मूल या प्रधान समझते हैं और अन्य को द्वितीय भाव से देखते हैं --- जबकि ऐसा उचित नहीं है --- हर साधक का दुसरे साधक के लिए सम भाव होना चाहिए -- मैं भ्रात भाव तो नहीं कहूंगा यहाँ पर क्योंकि अगर कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो आज के युग में सबसे ज्यादा वैमनस्य कि भावना भाइयों के मध्य ही विद्यमान है !
किन्तु नैतिक दृष्टिकोण और अध्यात्मिकता के आधार पर यदि देखा जाये तो न तो कोई उच्च है न कोई हीन --- हम आराधना करते हैं तो कोई अहसान नहीं करते यह सिर्फ अपनी मानसिक शांति और संतुष्टि के लिए और अगर कोई दूसरा करता है तो वह भी इसी उद्देश्य कि पूर्ती के लिए !
अब अगर हम अपने विषय पर आ जाएँ तो इस मृत्यु लोक में मातृ शक्ति के जितने भी रूप विदयमान हैं सब एक ही विराट महामाया आद्यशक्ति के अंग / भाग / रूप हैं --- साधकों को वे जिस रूप की साधना करते हैं उस रूप के लिए निर्धारित व्यवहार और गुणों के अनुरूप फल प्राप्त होता है।
चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता दुर्गा कि सहायक शक्तियां है जो समय समय पर माता दुर्गा कि सहायक शक्तियों के रूप में काम करती हैं
एवं दुसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह मातृका शक्तियां तंत्र भाव एवं शक्तियों से परिपूरित हैं और मुख्यतः तंत्र ज्ञानियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं !
प्रमुख मंदिर :- मंदिरों के हिसाब से देखा जाये तो चौसठ योगिनियों के २ प्रमुख मंदिर उड़ीसा राज्य में और २ प्रमुख मंदिर मध्य प्रदेश में अवस्थित हैं !
उड़ीसा :-
१. एक प्रमुख मंदिर उड़ीसा में नवीं शताब्दी में निर्मित हुआ था जो खुर्दा डिस्ट्रिक्ट हीरापुर में भुवनेश्वर से १५ किलोमीटर कि दूरी पर स्थित है !
२. दूसरा चौंसठ योगिनी मंदिर ( रानीपुर झरिअल ) टिटिलागढ़ बलांगीर डिस्ट्रिक्ट में स्थित है लेकिन इस मंदिर में ६४ के बजाय अब ६२ मूर्तियां ही उपलब्ध हैं !
मध्य प्रदेश :-
१. नविन शताब्दी में ही निर्मित एक मंदिर मध्य प्रदेश के खजुराहो नामक स्थान पर है जो छतरपुर डिस्ट्रिक्ट में पड़ता है और यहाँ पहुँचने के लिए झाँसी से इलाहबाद वाली रेलवे लाइन से जाकर महोबा स्टेशन पर उतरने के बाद लगभग ६० किलोमीटर का सफ़र तय करने के बाद खजुराहो पहुंचा जा सकता है
२. दूसरा मंदिर मध्य प्रदेश में ही भेड़ाघाट नमक स्थल पर है जो कि मध्य प्रदेश के जबलपुर डिस्ट्रिक्ट में पड़ता है
अन्य :- स्थान स्थान पर इनके रूप और स्थित में भेद दृष्टिगत हो सकता है जैसे कि :-
१. हीरापुर में सभी योगिनियां अपने -२ वाहनों पर सवार हैं और खड़ी मुद्रा में हैं
२. रानीपुर झरिअल में सभी योगिनियां नृत्य मुद्रा में हैं
३. जबकि भेड़ाघाट में सभी मूर्तियां ललितासन में बैठी हुयी हैं
A. हीरापुर में जिन नामों या रूपों का अस्तित्व मिलता है वे इस प्रकार हैं :-
१. बहुरूपा
२. तारा
३. नर्मदा
४. यमुना
५. शांति
६. वारुणी
७. क्षेमकरी
८. ऐन्द्री
९. वाराही
१०. रणवीरा
११. वानरमुखी
१२. वैष्णवी
१३. कालरात्रि
१४. वैद्यरूपा
१५. चर्चिका
१६. बेताली
१७. छिनमास्तिका
१८. वृषभानना
१९. ज्वाला कामिनी
२०. घटवारा
२१. करकाली
२२. सरस्वती
२३. बिरूपा
२४. कौबेरी
२५. भालुका
२६. नारसिंही
२७. बिराजा
२८. विकटानन
२९. महालक्ष्मी
३०. कौमारी
३१. महामाया
३२. रति
३३. करकरी
३४. सर्पश्या
३५. यक्षिणी
३६. विनायकी
३७. विन्द्यावालिनी
३८. वीरकुमारी
३९. माहेश्वरी
४०. अम्बिका
४१. कामायनी
४२. घटाबारी
४३. स्तुति
४४. काली
४५. उमा
४६. नारायणी
४७. समुद्रा
४८. ब्राह्मी
४९. ज्वालामुखी
५०. आग्नेयी
५१. अदिति
५२. चन्द्रकांति
५३. वायुबेगा
५४. चामुंडा
५५. मूर्ति
५६. गंगा
५७. धूमावती
५८. गांधारी
५९. सर्व मंगला
६०. अजिता
६१. सूर्य पुत्री
६२. वायु वीणा
६३. अघोरा
६४. भद्रकाली
अब इसके बाद कहीं - कहीं पर एक भ्रम और पैदा होता है यदि प्राचीन ग्रंथों का अध्यन और आकलन किया जाये वो ये कि :- क्या योगिनियों कि संख्या चौसठ है या फिर इक्यासी किन्तु हम यहाँ पर सिर्फ सर्वमान्य संख्या चौंसठ को ही मानकर चल रहे हैं !
वैसे इसका एक सिद्धान्त ये है कि यदि हम ८ मातृका शक्तिया मानकर चलते हैं तो ये ८ सहायक सहकतियों के साथ मिश्रित होती हैं जिससे इनकी संख्या ८ गुना ८ = ६४ होती है किन्तु जब हम ९ मातृका शक्तियों के आधार पर गणना करते हैं तो इनकी संख्या ८१ हो जाती है - प्रत्येक मातृका शक्ति एक योगिनी के रूप में गणित होती है और अन्य ८ मातृका शक्तियों के साथ गुणित कि जाती है !
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चौंसठ योगिनी मंत्र :-







१. ॐ काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा
२. ॐ कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा
३. ॐ कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा 
४. ॐ कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा
५. ॐ विरोधिनी विलासिनी स्वाहा
६. ॐ विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा
७. ॐ उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा
८. ॐ उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा
९. ॐ दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा
१०. ॐ नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा
११. ॐ घना महा जगदम्बा स्वाहा
१२. ॐ बलाका काम सेविता स्वाहा
१३. ॐ मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा
१४. ॐ मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा
१५. ॐ मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा
१६. ॐ महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा
१७. ॐ कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा
१८. ॐ भगमालिनी तारिणी स्वाहा
१९. ॐ नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा
२०. ॐ भेरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा
२१. ॐ वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा
२२. ॐ महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा
२३. ॐ शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा
२४. ॐ त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा
२५. ॐ कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा
२६. ॐ नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा
२७. ॐ नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा
२८. ॐ विजया देवी वसुदा स्वाहा
२९. ॐ सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा
३०. ॐ ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा
३१. ॐ चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा
३२. ॐ ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा
३३. ॐ डाकिनी मदसालिनी स्वाहा
३४. ॐ राकिनी पापराशिनी स्वाहा
३५. ॐ लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा
३६. ॐ काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा
३७. ॐ शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा
३८. ॐ हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा
३९. ॐ तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा
४०. ॐ षोडशी लतिका देवी स्वाहा
४१. ॐ भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा
४२. ॐ छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा
४३. ॐ भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा
४४. ॐ धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा
४५. ॐ बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा
४६. ॐ मातंगी कांटा युवती स्वाहा
४७. ॐ कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा
४८. ॐ प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा
४९. ॐ गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा
५०. ॐ मोहिनी माता योगिनी स्वाहा
५१. ॐ सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा
५२. ॐ अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा
५३. ॐ नारसिंही वामदेवी स्वाहा
५४. ॐ गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा
५५. ॐ अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा
५६. ॐ चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा
५७. ॐ वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा
५८. ॐ कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा
५९. ॐ इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा
६०. ॐ ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा
६१. ॐ वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा
६२. ॐ माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा
६३. ॐ लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा
६४. ॐ दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा
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Wednesday, February 10, 2016

फोटो सम्मोहन गोपनीय विधि








(प्रामाणिक लेख)

वशीकरण का तात्पर्य सम्मोहन क्रिया से है। प्राचीन ग्रंथों में सम्मोहन को ही वशीकरण कहा गया है जो कभी भी, किसी के लिए भी किया जा सकता है। पशु-पक्षी, जीव-जंतु, मनुष्य या देवी- देवता, सभी पर सम्मोहन क्रिया संपन्न किया जा सकता है। इसमें कोई भेद या अनुचित नहीं है। किसी को सम्मोहित या वशीकरण करना किसी प्रकार से गुनाह अथवा पाप नहीं है।
यह तो एक आवश्यकता है जिसे हर किसी को करना ही चाहिए। अतः ऐसे ज्ञान का उपयोग स्वस्थ मस्तिष्क से प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए और इस विज्ञान की क्षमता को परखनी चाहिए। किसी को भी अपने वशीभूत करने के लिए प्राचीन ग्रंथों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रयोग है परन्तु फोटो के माध्यम से सम्मोहन या वशीकरण हेतु एक गोपनीय और सरल विधि प्रस्तुत किया जा रहा है। जिस पुरुष या स्त्री, अधिकारी, नौकर, मालिक, प्रेमी या प्रेमिका या किसी को भी वश में करना हो तो उसकी एक तस्वीर अपने पास रखें तथा सिद्ध किया हुआ वशीकरण यन्त्र प्राप्त कर लें।
शुक्रवार की प्रातः 6 बजे या रात्रि को 12 बजे शांत-एकांत कमरे में सफ़ेद वस्त्र के आसन पर एकाग्रचित होकर बैठ जाय। सामने स्वच्छ वस्त्र पर फोटो और वशीकरण यन्त्र पास-पास रखें। कोई सुगन्धित अगरबती जला लें। अब यन्त्र को पूरी आत्मियता से देखते हुए मन में ऐसी धारणा बनाएं कि, आपकी आतंरिक उर्जा को यन्त्र के माध्यम से कोई आकर्षण शक्ति प्राप्त हो रही है जो किसी को भी सम्मोहित कर देने में क्षमतावान है। अब उस फोटो की दोनों आँखों के मध्य, जहाँ बिंदी या तिलक किया जाता है, वहां दृष्टि जमाते हुए निम्न मंत्र का 21 बार शुद्ध स्फटिक माला अथवा लाल चन्दन की माला से शुद्ध उच्चारण करें।
मंत्र- ॐ रं श्रृं अमुकं वश्यमानाय हुं।
(अमुकं के स्थान पर व्यक्ति का नाम लें)
उच्चारण पूर्ण होने के बाद यन्त्र को स्वच्छ वस्त्र में ही बांधकर किसी बहती नदी तालाब में विसर्जित करके बिना पीछे देखे वापिस आ जायं। अगले 36 घंटे के मध्य में आप अनुभव करेंगे कि, आपकी सफलता आपके निकट आने को लालायित है। यही नहीं, अनुभव में यह भी आयेगा कि, आपके सम्मोहन में वशीभूत अधिक से अधिक लोग आपके निकट आने को वेताब हैं। बातचीत करने को उतावले हैं। और जब वार्ता होती है तब आपकी हर बात वो मानने को विवश से हैं।
(नोट- गलत मानसिकता से इसका प्रयोग उलटा या अनुचित परिणाम भी दे सकता है)
यह एक प्रामाणिक प्रयोग है। इसका लाभ कई लोगों ने उठाया है। क्योंकि वशीकरण यंत्र स्वयं सिद्ध यन्त्र होता है, जिसके सम्मुख वशीकरण मंत्र का शुद्ध उच्चारण किया जाता है तो फोटो वाले व्यक्ति की मानसिक तरंगें प्रयोगकर्ता के इच्छा का पालन करने लगती है तथा शुद्ध विचार से किया गया प्रयोग यथा शीघ्र परिणाम प्रकट कर देता है। एक बार एक चाय के दुकानदार ने बार-बार भाग जाने वाले अपने नौकर को टिकाऊ बनाने के लिए यह प्रयोग किया तो नौकर अपने मालिक की हर बात प्यार से मानने लगा। बाद में वह नौकर इतना अच्छा सेवक निकला कि, मालिक ने ही उसका व्याह कराकर अपना पुत्र मान लिया।
यह वशीकरण यन्त्र के प्रभाव का ही कमाल था। वैसे भी सम्मोहन शरीर का ही विज्ञान है। यह तो दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है कि, मानव तन के अन्दर कोई ऐसी उर्जा तरंग है जो हर क्षण बाहर नकलती रहती है और वातावरण को प्रभावित करती रहती है। यदि उस तरंग को भारतीय पद्धति से और विकसित कर लिया जाय तो पूरी दुनिया में तहलका मचाया जा सकता है, इसमें कोई दो राय नहीं। अतः इस प्रकार के प्रयोग निःसंकोच करके हर किसी को सकारात्मक लाभ उठाना चाहिए। आपको इस प्रयोग में पूरी सफलता मिले, हमारी मंगल कामना है। (आवश्यक जानकारी हेतु फोन कर लें)
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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