क्यों मांस, मदिरा और मैथुन के बिना अधूरी है अघोरी साधना?
समस्त देवी-देवताओं में से मां काली को एक ऐसी देवी के नाम से जाना जाता है, जिनके क्रोध को शांत करना बेहद मुश्किल है।
खौफनाक स्वरूप
खुले बाल, काला देह, रक्तरंजित आंखें, मां काली के स्वरूप को बेहद खौफनाक बना देती हैं।
विकराल स्वरूप
मां काली के विकराल रूप को देखकर कोई भी इंसान भयभीत हो सकता है लेकिन क्या कभी आपने सोचा है तंत्र साधना में लिप्त अघोरी मां काली को प्रसन्न करने की कोशिश क्यों करते हैं?
शिव का रौद्र रूप दुनिया को दहशत से भर देता है लेकिन मां काली के क्रोध को शांत करने के लिए स्वयं विनाश के देवता शिव को उनके पैरों के नीचे लेटना पड़ा।
अघोरी, जो तंत्र साधना को अपना धर्म मानते हैं वह भगवान शिव के साथ-साथ काली को प्रसन्न करने उनसे शक्तियां हासिल करने को ही अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य मानते हैं
काली की पूजा साधारण या परंपरागत पूजा से बिल्कुल भिन्न होती है। यहां काली एक साधारण देवी नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड को आच्छादित करती हैं।
अघोरी यह मानते हैं कि इस दुनिया में जो कुछ भी है वह शिव और काली का ही अंग है और अंत में उन्हीं में जाकर मिल जाएगा। इसलिए इस ब्रह्माण्ड की कोई भी चीज अशुद्ध नहीं है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओं को कमजोर समझा जाता है लेकिन मां काली का स्वरूप यह स्पष्ट करता है कि स्त्री अगर चाहे तो वह ताकतवर से ताकतवर व्यक्ति को भयभीत कर सकती है।
काल या समय को मात देने वाली ‘काली’ एक दैवीय योद्धा हैं, जिन्होंने युद्ध में अपने सामने आने वाले हर शत्रु का मजबूती से सामना किया है।
अघोरी शिव या महाकाल की पूजा के साथ-साथ उनके स्त्री स्वरूप काली या मृत्यु की देवी की आराधना करते हैं।
अन्य साधुओं के लिए मांस, मदिरा या शारीरिक संबंध जैसी चीजें पूरी तरह निषेध होती हैं लेकिन अघोरी या तंत्र साधकों द्वारा की जाने वाली अराधना की यह मुख्य शर्ते होती हैं।
अघोरियों के दृष्टिकोण से मांस का सेवन यह साबित करता है कि सीमा शब्द उनके लिए मायने नहीं रखता और सब कुछ एक ही धागे से बंधा हुआ है। इसलिए वे इंसान के मांस के साथ-साथ उसके रक्त का भी सेवन करते हैं।
बहुत से अघोरी अपनी साधना पूरी करने के लिए मृत शरीर के साथ संभोग भी करते हैं और साथ ही स्वयं मदिरा का सेवन कर अपने आराध्य को भी वह अर्पण करते हैं।
हिन्दू धर्म के अंतर्गत 10 ऐसी देवी-देवता हैं जो अघोरियों को पारलौकिक ताकतें प्रदान करती हैं, काली उन्हीं में से एक देवी हैं।
अघोरी, अपनी आराध्या मां काली की पूजा तीन स्वरूपों में करते हैं, भैरवी, बगलामुखी और धूमवती। इसके अलावा भगवान शिव को वे भैरव, महाकाल और वीरभद्र के रूप में पूजते हैं।
हिंगलाज माता अघोरियों की संरक्षक मानी जाती हैं।
पौराणिक दस्तावेजों और मान्यताओं के अनुसार शक्ति के रूप में काली ही ब्रह्माण्ड को सुचारु रूप से चलाती हैं।
अघोरी साधु काली की पूजा इसलिए भी करते हैं क्योंकि काली को मोक्ष प्रदान करने वाली भी कहा जाता ह
काली शब्द का उद्भव संस्कृत के काल अर्थात समय से हुआ है, जिसका अर्थ है मां काली समय को अपने नियंत्रण में रख सकती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
कुंडलिनी जागरण
मानव शरीर में कुंडलिनी जाग्रत करने के लिए, सभी चक्रों को अपने नियंत्रण में करने में भी काली पूजा महत्वपूर्ण मानी जाती है।
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चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
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महायोगी राजगुरु जी 《 अघोरी रामजी 》
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महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट
(रजि.)
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