क्या सुंदर स्त्रियां हमेशा पुरुषों की कमजोरी रही हैं, जानें स्वर्ग की अप्सराओं के बारें में अदभुत बातें
सुंदर स्त्रियां हमेशा पुरुषों की कमजोरी रही हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं में ऐसी अपूर्व सुंदरियों का उल्लेख मिलता है जो अपनी मोहक और कामुक अदाओं से किसी को भी अपना दीवाना बना देती थीं।
इन्हें अप्सरा कहा जाता है और माना जाता है कि ये स्वर्ग लोक में रहती हैं। देवताओं द्वारा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में इनका उपयोग किया जाता था। किसी को भी दीवाना बना देती थीं ये खूबसूरत युवतियां इनकी मोहक अदाओं में फंसकर अपना सब कुछ गवां बैठते थे महान और प्रभावशाली कहे जाने वाले लोग।
आकर्षक सुन्दरतम वस्त्र, अलंकार और सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त-सुसज्जित, चिरयौवना रंभा के बारे में कहा जाता है कि उनकी साधना करने से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं बुढ़ापा समाप्त हो जाते हैं।
चार अप्सराएं थीं सबसे खूबसूरत
ऋग्वेद और महाभारत में कई अप्सराओं का उल्लेख है। स्वर्ग की चार अत्यंत सुंदर जिन चार अप्सराओं का ज्यादातर उल्लेख किया जाता है उनके नाम हैं उर्वशी, मेनका, रंभा और तिलोत्तमा। कहा जाता है कि इन्होंने अपने रूप, सौंदर्य और कामुक अदाओं से कई ऋषि मुनियों की तपस्या भंग की और उन्हें पथभ्रष्ट कर दिया।
विश्वामित्र को रिझाया था अप्सरा ने
कहा जाता है कि अप्सराओं का सबसे ज्यादा उपयोग इंद्र ने किया। ऋषि विश्वामित्र की कठोर तपस्या से इंद्र को यह भय हुआ कि वे कहीं उनके सिंहासन पर कब्जा न कर लें। जिस पर उन्होंने विश्वामित्र की तपस्या भंग करने उस समय की नामी अप्सरा रंभा को पृथ्वी लोक पर भेजा।
रंभा ने अपनी मोहक अदाओं से विश्वामित्र को लुभाने का प्रयास किया पर विश्वामित्र ने उसे श्राप दे दिया और वह पाषाण मूर्ति बन गई। रंभा के असफल रहने पर इंद्र ने रंभा से भी ज्यादा खूबसूरत अप्सरा मेनका को भेजा जिसने पहले एक युवती का रूप धरा और फिर अपनी मोहक व कामुक अदाओं से विश्वामित्र को वश में कर उनका तप भंग कर दिया। दोनों के संसर्ग से एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम शकुंतला रखा गया जिसका पालन पोषण कण्व ऋषि ने किया।
अप्सरा के लिए मर मिटे ये राक्षस
एक बार पृथ्वी पर जब सुंद और उपसुंद नामक राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया तो उनके संहार के लिए तिलोत्तमा नामक अप्सरा का सहारा लिया गया। देवताओं ने उसे उन दोनों के पास भेजा। दोनों राक्षस उसके सौंदर्य पर रीझ गए और उसे पाने के लिए आपस में लड़ कर मर गए।
अर्जुन को श्राप
महाभारत के एक दृष्टांत के अनुसार एक बार इन्द्रदेव ने अपने पुत्र अर्जुन को स्वर्ग लोक में आमंत्रित किया। वहां उर्वशी ने उसके सामने नृत्य प्रस्तुत किया बाद में इंद्र ने उर्वशी से अर्जुन को प्रसन्न करने को कहा। जब उर्वशी अर्जुन के कक्ष में पहुंची और उसे आमंत्रित किया तो अर्जुन ने मना कर दिया जिस पर उर्वशी ने अर्जुन को शिखंडी होने का श्राप दे दिया। फलस्वरूप अर्जुन को एक साल तक वृहन्नलला के रूप में रहना पड़ा।
अप्सरा रंभा के विलक्षण मंत्र
आकर्षक सुन्दरतम वस्त्र, अलंकार और सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त-सुसज्जित, चिरयौवना रंभा के बारे में कहा जाता है कि उनकी साधना करने से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं बुढ़ापा समाप्त हो जाते हैं।
रंभा के मंत्र सिद्ध होने पर वह साधक के साथ छाया के तरह जीवन भर सुन्दर और सौम्य रूप में रहती है तथा उसके सभी मनोरथों को पूर्ण करने में सहायक होती है।
यह जीवन की सर्वश्रेष्ठ साधना है। जिसे देवताओं ने सिद्ध किया इसके साथ ही ऋषि मुनि, योगी, संन्यासी आदि ने भी सिद्ध किया इस सौम्य साधना को। इस साधना से प्रेम और समर्पण के गुण व्यक्ति में स्वतः प्रस्फुरित होते हैं क्योंकि जीवन में यदि प्रेम नहीं होगा तो व्यक्ति तनावों में बीमारियों से ग्रस्त होकर समाप्त हो जाएगा। प्रेम को अभिव्यक्त करने का सौभाग्य और सशक्त माध्यम है रंभा साधना।
साधना विधि
सामग्री - प्राण प्रतिष्ठित रंभोत्कीलन यंत्र, रंभा माला, सौंदर्य गुटिका तथा साफल्य मुद्रिका।
यह रात्रिकालीन 27 दिन की साधना है। इस साधना को किसी भी पूर्णिमा या शुक्रवार को अथवा किसी भी विशेष मुहूर्त में प्रारंभ करें। साधना प्रारंभ करने से पूर्व साधक को चाहिए कि स्नान आदि से निवृत होकर अपने सामने चौकी पर गुलाबी वस्त्र बिछा लें, पीला या सफ़ेद किसी भी आसान पर बैठे, आकर्षक और सुन्दर वस्त्र पहनें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। घी का दीपक जला लें। सामने चौकी पर एक थाली रख लें, दोनों हाथों में गुलाब की पंखुडियां लेकर रंभा का आह्वान करें।
|| ॐ ! रंभे अगच्छ पूर्ण यौवन संस्तुते ||
यह आवश्यक है कि यह आह्वान कम से कम 101 बार अवश्य हो प्रत्येक आह्वान मंत्र के साथ गुलाब की पांखुरी थाली में रखें। इस प्रकार आवाहन से पूरी थाली पांखुरियों से भर दें।
अब अप्सरा माला को पांखुरियों के ऊपर रख दें इसके बाद अपने बैठने के आसान पर ओर अपने ऊपर इत्र छिडकें। रंभोत्कीलन यंत्र को माला के ऊपर आसन पर स्थापित करें। गुटिका को यन्त्र के दाएं तरफ तथा साफल्य मुद्रिका को यंत्र के बाएं तरफ स्थापित करें। सुगन्धित अगरबती एवं घी का दीपक साधनाकाल तक जलते रहना चाहिए।
सबसे पहले गुरु पूजन ओर गुरु मंत्र जप कर लें। फिर यंत्र तथा अन्य साधना सामग्री का पंचोपचार से पूजन संपन्न करें। स्नान, तिलक, धूप, दीपक एवं पुष्प चढ़ाएं।
इसके बाद बाएं हाथ में गुलाबी रंग से रंग हुआ चावल रखें, ओर निम्न मंत्रों को बोलकर यंत्र पर चढ़ाएं।
|| ॐ दिव्यायै नमः ||
|| ॐ प्राणप्रियायै नमः ||
|| ॐ वागीश्वर्ये नमः ||
|| ॐ ऊर्जस्वलायै नमः ||
|| ॐ सौंदर्य प्रियायै नमः ||
|| ॐ यौवनप्रियायै नमः ||
|| ॐ ऐश्वर्यप्रदायै नमः ||
|| ॐ सौभाग्यदायै नमः ||
|| ॐ धनदायै रम्भायै नमः ||
|| ॐ आरोग्य प्रदायै नमः ||
इसके बाद प्रतिदिन निम्नलिखित मंत्र से 11 माला प्रतिदिन जप करें |
मंत्र : || ॐ हृीं रं रम्भे ! आगच्छ आज्ञां पालय मनोवांछितं देहि ऐं ॐ नमः ||
प्रत्येक दिन अप्सरा आह्वान करें। हर शुक्रवार को दो गुलाब की माला रखें, एक माला स्वंय पहन लें, दूसरी माला को रखें, जब भी ऐसा आभास हो कि किसी का आगमन हो रहा है अथवा सुगन्ध एकदम बढ़ने लगे अप्सरा का बिम्ब नेत्र बंद होने पर भी स्पष्ट होने लगे तो दूसरी माला सामने यन्त्र पर पहना दें।
27 दिन की साधना में प्रत्येक दिन नए-नए अनुभव होते हैं, चित्त में सौंदर्य भाव बढ़ने लगता है, कई बार तो रूप में अभिवृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है।
साधना पूर्णता के पश्चात मुद्रिका को अनामिका अंगुली में पहन लें, शेष सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। यह सुपरिक्षित साधना है। पूर्ण मनोयोग से साधना करने पर अवश्य मनोकामना पूर्ण होती ही है।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।
विशेष -
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