Sunday, May 27, 2018

महापुरूषों के बत्तीस लक्षण

महापुरूषों के बत्तीस लक्षण जिस किसी में इन बत्तीस लक्षणों को देखो, उन्हें महान पुरूष, कपालेश्वर जानो l अपना इष्ट एवं पूज्य जानो l इस लक्षण-पराकाष्ठा में जिसका चित्त निरोध होकर स्थिर हो जाता है, वह बत्तीस लक्षणों से आच्छादित हो जाता है l कौन से बत्तीस लक्षण ? 1 वह महापुरूष जिसका पैर जमीन पर बराबर चलने पर भी, जमीन नहीं छूता, उठा रहता हो l 2 महापुरूष के पैर के तलवे में सर्वाकार परिपूर्ण नाभि-नेमि-सहस्त्र आरों वाला चक्र उदय होता हो l 3 महापुरूष चौड़ी घुट्ठी वाले हों l 4 लम्बी अँगुलीवाले हों l 5 कोमल हस्त-पाद वाले हों l 6 अँगुलियों के बीच बत्तक के पंजे की भाँति चौड़ा चमड़ा हो l 7 जिसके पाद में घुट्ठी ऊपर अवस्थित हो l 8 मृग की तरह जिसकी फीली हो l 9 खड़े, बिना झुके, वे महापुरूष अपने दोनों घुटनों को अपने हाथ की अँगुलियों से छूते हों l 10 पुरूष इन्द्रिय l 11 गेहुँमनिया रंग के त्वचावाले हों l 12 त्वचा जिसकी मुलायम हो, जिस पर मैल-धूल नहीं चिपटती l 13 एक एक रोम कूप में उनके एक एक रोम हों l 14 उनके अंजन समान नीले तथा प्रदक्षिणा से कुण्डलित लोमों के सिरे ऊपर को उठे हों l 15 ऊँचे कंधे वाले अकुटिल शरीर वाले l 16 सातो अंगों में पूर्ण आकार वाले l 17 छाती आदि शरीर का ऊपरी भाग सिह की भांति जिसका हो l 18 दोनों कंधो का बिचला भाग जिसका चित्तपूर्ण हो l 19 जितनी काया, उसके अनुसार चौड़ाई, चितनी चौड़ाई उतनी काया l 20 समान परिणाम के कंधे वाले l 21 सुन्दर सिर वाले l 22 सिंह-समान पूर्ण ठोढ़ी वाले l 23 चव्वालिस दन्त l 24 समदन्त l 25 अछेददन्त l 26 खुब सफेद दाढ़ वाले l 27 लम्बी जीभ वाले l 28 ब्रह्रा स्वर वाले l 29 अलसी के पुष्पप सरीखे आँखों वाले l 30 गौ जैसी पलक वाले l 31 भृकुटि के मध्य में सफेद कोमल कपास सी रोवां वाले l 32 पगड़ी जैसे समानाकार वृत सिर वाले हों l ये महापुरूषों के लक्षण है l वे महापुरूष चलते वक्त पहले दाहिना ही पैर उठाते हैं l वे न बहुत दूर से पैर उठाते हैं, न बहुत समीप रखते हैं l वे न अतिशीघ्र चलते हैं न अति धीरे-धीरे चलते हैं l न जानु से जानु को रगड़ते हुए चलते हैं l चलते वक्त न वे उसको ऊपर उठाते हैं न उसको नचाते हैं, न उसको घुमाते हैं, न हिलाते हैं l चलते वक्त महापुरूष का निचला शरीर ही हिलता है l काय बल से नहीं चलते l बिना अवलोकन करते, वे महापुरूष सारी काया से अवलोकन जैसा करते हैं l वे न ऊपर की ओर अवलोकन करते हैं, न नीचे की ओर अवलोकन करते हैं, न चारों ओर देखते चलते हैं l चार हाथ सामने देखते हैं l उससे आगे उनकी खुली ज्ञान-दृष्टि होती है l महापुरूष न आसन से दूर, न अति समीप को पलटते हैं l न हाथ का अवलम्बन लेकर आसन पर बैठते हैं, न आसन पर काया को फेंकते हैं, न हाथ को ठुड्ढी पर रखकर बैठते हैं l वे पात्र में जल ग्रहण करते वक्त न पात्र को ऊपर उठाते हैं, न पात्र को नीचे गिराते हैं, न पात्र की उपेक्षा करते हैं l वे पात्र को समान रखते हैं l वे भात रोटी न बहुत अधिक न बहुत कम ग्रहण करते हैं, महापुरूष ग्रास में अधिक मात्रा में तरकारी नहीं ग्रहण करते हैं l दो तीन बार करके, मुख में ग्रास को चबाकर खाते है l भात रोटी का जूठन अलग होकर उनके शरीर पर नहीं गिरता l भात-रोटी का जूठन, जब तक मुख में बचा रहता है तब तक दूसरा ग्रास मुख में नहीं डालते l भोजनोपरान्त वे थोड़ी देर चुपचाप बैठते हैं और अनुमोदन के काल को त्याज्य करते है l शरीर को सीधा रख, स्मृति को सामने रखकर बैठना चाहिये l इतने लक्षण जिस पुरूष में देखो, उन्हें महापुरूष जानो l संत और महात्मा जानो l राजगुरु जी महाविद्या आश्रम किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें : मोबाइल नं. : - 09958417249 08601454449 व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

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