यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है तो परिश्रम तो करना ही होगा। किसी को दो दिन में तारा चाहिए,तो किसी को ९ दिन में छिन्नमस्ता,किसी को ५ दिन में मातंगी सिद्ध करना है तो,किसी को ११ दिन में भुवनेश्वरी। कितनी बचकानी बात है. मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को पीड़ित करना नहीं है.अगर किसी को दुःख हुआ हो तो हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी हु.परन्तु कभी कभी व्यर्थ का रोग मिटाने के लिए कड़वे वचनो कि औषधि आवश्यक हो जाती है.
Sunday, May 27, 2018
महापुरूषों के बत्तीस लक्षण
महापुरूषों के बत्तीस लक्षण
जिस किसी में इन बत्तीस लक्षणों को देखो, उन्हें महान पुरूष, कपालेश्वर जानो l अपना इष्ट एवं पूज्य जानो l इस लक्षण-पराकाष्ठा में जिसका चित्त निरोध होकर स्थिर हो जाता है, वह बत्तीस लक्षणों से आच्छादित हो जाता है l
कौन से बत्तीस लक्षण ?
1 वह महापुरूष जिसका पैर जमीन पर बराबर चलने पर भी, जमीन नहीं छूता, उठा रहता हो l
2 महापुरूष के पैर के तलवे में सर्वाकार परिपूर्ण नाभि-नेमि-सहस्त्र आरों वाला चक्र उदय होता हो l
3 महापुरूष चौड़ी घुट्ठी वाले हों l
4 लम्बी अँगुलीवाले हों l
5 कोमल हस्त-पाद वाले हों l
6 अँगुलियों के बीच बत्तक के पंजे की भाँति चौड़ा चमड़ा हो l
7 जिसके पाद में घुट्ठी ऊपर अवस्थित हो l
8 मृग की तरह जिसकी फीली हो l
9 खड़े, बिना झुके, वे महापुरूष अपने दोनों घुटनों को अपने हाथ की अँगुलियों से छूते हों l
10 पुरूष इन्द्रिय l
11 गेहुँमनिया रंग के त्वचावाले हों l
12 त्वचा जिसकी मुलायम हो, जिस पर मैल-धूल नहीं चिपटती l
13 एक एक रोम कूप में उनके एक एक रोम हों l
14 उनके अंजन समान नीले तथा प्रदक्षिणा से कुण्डलित लोमों के सिरे ऊपर को उठे हों l
15 ऊँचे कंधे वाले अकुटिल शरीर वाले l
16 सातो अंगों में पूर्ण आकार वाले l
17 छाती आदि शरीर का ऊपरी भाग सिह की भांति जिसका हो l
18 दोनों कंधो का बिचला भाग जिसका चित्तपूर्ण हो l
19 जितनी काया, उसके अनुसार चौड़ाई, चितनी चौड़ाई उतनी काया l
20 समान परिणाम के कंधे वाले l
21 सुन्दर सिर वाले l
22 सिंह-समान पूर्ण ठोढ़ी वाले l
23 चव्वालिस दन्त l
24 समदन्त l
25 अछेददन्त l
26 खुब सफेद दाढ़ वाले l
27 लम्बी जीभ वाले l
28 ब्रह्रा स्वर वाले l
29 अलसी के पुष्पप सरीखे आँखों वाले l
30 गौ जैसी पलक वाले l
31 भृकुटि के मध्य में सफेद कोमल कपास सी रोवां वाले l 32 पगड़ी जैसे समानाकार वृत सिर वाले हों l
ये महापुरूषों के लक्षण है l
वे महापुरूष चलते वक्त पहले दाहिना ही पैर उठाते हैं l वे न बहुत दूर से पैर उठाते हैं, न बहुत समीप रखते हैं l वे न अतिशीघ्र चलते हैं न अति धीरे-धीरे चलते हैं l न जानु से जानु को रगड़ते हुए चलते हैं l
चलते वक्त न वे उसको ऊपर उठाते हैं न उसको नचाते हैं, न उसको घुमाते हैं, न हिलाते हैं l चलते वक्त महापुरूष का निचला शरीर ही हिलता है l काय बल से नहीं चलते l
बिना अवलोकन करते, वे महापुरूष सारी काया से अवलोकन जैसा करते हैं l वे न ऊपर की ओर अवलोकन करते हैं, न नीचे की ओर अवलोकन करते हैं, न चारों ओर देखते चलते हैं l चार हाथ सामने देखते हैं l उससे आगे उनकी खुली ज्ञान-दृष्टि होती है l
महापुरूष न आसन से दूर, न अति समीप को पलटते हैं l न हाथ का अवलम्बन लेकर आसन पर बैठते हैं, न आसन पर काया को फेंकते हैं, न हाथ को ठुड्ढी पर रखकर बैठते हैं l
वे पात्र में जल ग्रहण करते वक्त न पात्र को ऊपर उठाते हैं, न पात्र को नीचे गिराते हैं, न पात्र की उपेक्षा करते हैं l वे पात्र को समान रखते हैं l
वे भात रोटी न बहुत अधिक न बहुत कम ग्रहण करते हैं, महापुरूष ग्रास में अधिक मात्रा में तरकारी नहीं ग्रहण करते हैं l
दो तीन बार करके, मुख में ग्रास को चबाकर खाते है l भात रोटी का जूठन अलग होकर उनके शरीर पर नहीं गिरता l
भात-रोटी का जूठन, जब तक मुख में बचा रहता है तब तक दूसरा ग्रास मुख में नहीं डालते l भोजनोपरान्त वे थोड़ी देर चुपचाप बैठते हैं और अनुमोदन के काल को त्याज्य करते है l
शरीर को सीधा रख, स्मृति को सामने रखकर बैठना चाहिये l इतने लक्षण जिस पुरूष में देखो, उन्हें महापुरूष जानो l संत और महात्मा जानो l
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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