यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है तो परिश्रम तो करना ही होगा। किसी को दो दिन में तारा चाहिए,तो किसी को ९ दिन में छिन्नमस्ता,किसी को ५ दिन में मातंगी सिद्ध करना है तो,किसी को ११ दिन में भुवनेश्वरी। कितनी बचकानी बात है. मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को पीड़ित करना नहीं है.अगर किसी को दुःख हुआ हो तो हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी हु.परन्तु कभी कभी व्यर्थ का रोग मिटाने के लिए कड़वे वचनो कि औषधि आवश्यक हो जाती है.
Wednesday, May 30, 2018
स्वप्नेस्वरी साधना
स्वप्नेस्वरी साधना
मनुष्य के शरीर की आतंरिक रचना बहोत ही पेचीदा है और आधुनिक विज्ञान भी इसे अभी तक पूर्ण रूप से समजने के लिए प्रयासरत है.
वस्तुतः हमारे पुरातन महापुरुषों ने साधनाओ के माध्यम से ब्रम्हांड की इस जटिल संरचना को समजा था और इसके ऊपर शोधकार्य लगातार किया था जिससे की मानव जीवन पूर्ण सुखो की प्राप्ति कर सके.
कालक्रम में उनकी शोध की अवलेहना कर हमने उनके निष्कर्षों को आत्मसार करने की वजाय उसे भुला दिया और इसे कई सूत्र लुप्त हो गए जो की सही अर्थो में मनुष्य जीवन की निधि कही जा सकती है. मनुष्य के अंदर का ऐसा ही एक भाग है मन.
मन ऐसा भाग है जो मनुष्य को अपने आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड को जोड़ सकता है. क्यों की ब्रम्हांड और मन दोनों ही अनंत है. आतंरिक ब्रम्हांड की पृष्ठभूमि मन ही है क्यों की शरीर के अंदर ही सही लेकिन मन अनंत है. और आतंरिक ब्रम्हांड भी बाह्य ब्रम्हांड की तरह अनंत भूमि पर स्थित होना चाहिए इस लिए इसका पूर्ण आधार मन है.
मन के भी कई प्रकार के भेद हमारे ऋषियोने कहे है उसमे से प्रमुख है, जागृत, अर्धजागृत और सुषुप्त मन. यहाँ पर एक तथ्य ध्यान देने योग्य है की आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड की गति समान और नितांत है.
इस लिए जो भी घटना बाह्य ब्रम्हांड में होती है वही घटना आतंरिक ब्रम्हांड में भी होती है. साधको की कोशिश यही रहती है की वह किसी युक्ति से इन दोनों ब्रम्हांड को जोड़ दे तो वह प्रकृति पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता है.
वह ब्रम्हांड में घटित कोई भी घटना को देख सकता है तथा उसमे हस्तक्षेप भी कर सकता है. लेकिन यह सफर बहोत ही लंबा है और साधक में धैर्य अनिवार्य होना चाहिए. लेकिन इसके अलावा इन्ही क्रमो से सबंधित कई लघु प्रयोग भी तंत्र में निहित है.
स्वप्न एक एसी ही क्रिया है जो मन के माध्यम से सम्प्पन होती है. निंद्रा समय में अर्धजागृत मन क्रियावान हो कर व्यक्ति को अपनी चेतना के माध्यम से जो द्रश्य दिखता तथा अनुभव करता है वही स्वप्न है.
चेतना ही वो पूल है जो आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड को जोडता है, मनुष्य की चेतना से सबंधित होने के कारण स्वप्न भी एक धागा है जो की इस कार्य में अपना योगदान करता है.
यु इसी तथ्य को ध्यान में रख कर हमारे ऋषिमुनि तथा साधको ने इस दिशा में शोध कार्य कर ये निष्कर्ष निकला था की हर एक स्वप्न का अपना ही महत्त्व है तथा ये मात्र द्रश्य न हो कर मनुष्य के लिए संकेत होते है लेकिन इसका कई बार अर्थ स्पष्ट तो कई बार गुढ़ होता है.
इसी के आधार पर स्वप्नविज्ञान, स्वप्न ज्योतिष, स्वप्न तंत्र आदि स्वतंत्र शाखाओ का निर्माण हुआ. स्वप्न तंत्र के अंतर्गत कई प्रकार की साधना है जिनमे स्वप्नों के माध्यम से कार्यसिद्ध किये जाते है.
इस तंत्र में मुख्य देव स्वप्नेश्वर है तथा देवी स्वप्नेश्वरी. देवी स्वप्नेश्वरी से सबंधित कई इसे प्रयोग है जिससे व्यक्ति स्वप्न में अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त कर सकता है. व्यक्ति के लिए यह एक नितांत आवश्यक प्रयोग है क्यों की जीवन में आने वाले कई प्रश्न ऐसे होते है जो की बहोत ही महत्वपूर्ण होते है लेकिन उसका जवाब नहीं मिलने पर जीवन कष्टमय हो जाता है.
लेकिन तंत्र में ऐसे विधान है जिससे की स्वप्न के माध्यम से अपने किसी भी प्रकार के प्रश्नों का समाधान प्राप्त हो सकता है. ऐसा ही एक सरल और गोपनीय विधान है देवी स्वप्नेश्वरी के सबंध में. अन्य प्रयोगों की अपेक्षा यह प्रयोग सरल और तीव्र है.
इस साधना को साधक किसी भी सोमवार की रात्रिकाल में ११ बजे के बाद शुरू करे.
साधक के वस्त्र आसान वगेरा सफ़ेद रहे. दिशा उत्तर.
साधक को अपने सामने सफ़ेदवस्त्रों को धारण किये हुए देवी स्वप्नेश्वरी का चित्र या यन्त्र स्थापित करना चाहिए.
अगर ये उपलब्ध ना हो तो सफ़ेद वस्त्र माला को धारण किये हुए अंत्यंत ही सुन्दर और प्रकाश तथा दिव्य आभा से युक्त चतुर्भुजा शक्ति का ध्यान कर केअपने प्रश्न का उतर देने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. उसके बाद साधक अपने प्रश्न को साफ़ साफ़ अपने मन ही मन ३ बार दोहराए. उसके बाद मंत्र जाप प्रारंभ करे.
इस साधना में ११ दिन रोज ११ माला मंत्र जाप करना चाहिए. यह मंत्रजाप सफ़ेदहकीक, स्फटिक या रुद्राक्ष की माला से किया जाना चाहिए.
ॐ स्वप्नेश्वरी स्वप्ने सर्व सत्यं कथय कथय ह्रीं श्रीं ॐ नमः
मन्त्र जाप के बाद साधक फिर से प्रश्न का तिन बार मन ही मन उच्चारण कर जितना जल्द संभव हो सो जाए.
निश्चित रूप से साधक को साधना के आखरी दिन या उससे पूर्व भी स्वप्न में अपना उत्तर मिल जाता है और समाधान प्राप्त होता है.
जिस दिन उत्तर मिल जाए साधक चाहे तो साधना उसी दिन समाप्त कर सकता है. साधक को माला को सुरक्षित रख ले. भविष्य में इस प्रयोग को वापस करने के लिए इसी माला का प्रयोग किया जा सकता है.
राजगुरु जी
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महाविद्या आश्रम का उद्देश्य
महाविद्या आश्रम का उद्देश्य
आपको जीवन में रुकना नहीं हैं , तुम्हे अपने जीवन में एक बार भी एक क्षण भी बिचार नहीं करना हैं .
कि तुम्हारा जीवन बहुत थोड़ा सा बच गया हैं ,और पगडण्डी बहुत लम्बी हैं .
हिमालय से पूरी समुद्र तक कि यात्रा , जीवन में धीरे - धीरे चलने से समुद्र नहीं मिल सकेगा ,क्योकि नदी धीरे - धीरे चलेगी तो बीच में सुख जाएगी , तुम्हारे मेरे बीच फासला बहुत ही कम रह गया हैं , और मेरे पास समय बहुत ही कम रह गया हैं .
इसलिए हम उस फासले को kitna जल्दी पार कर ले यह तुम पर निर्भर हैं , मेरा उपस्थित होना तुम्हारे मध्य ; यही कारन हैं तुम्हारा निर्माण , तुम को गढ़ना हैं
राजगुरु जी
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Tuesday, May 29, 2018
कर्ण पिशाचिनी भविष्य नहीं देख सकती
कर्ण पिशाचिनी भविष्य नहीं देख सकती
आज के वैज्ञानिक युग में भूत-प्रेत और पारलौकिक शक्तियों से जुड़ी घटनाओं पर कोई विश्वास नहीं करता.
ऐसी घटनाओं के पीछे विज्ञान और तर्क ज्ञान को आधार बताकर भले ही ऊपरी तौर पर इनके पीछे छिपी काली सच्चाई से पल्ला झाड़ लिया जाता हो लेकिन हकीकत टालना या उसे नजरअंदाज करना उतना ही फिजूल है, जितना देखी हुई को अनदेखा कर देना.
क्या आपका सामना किसी ऐसे इंसान से हुआ है जिसने पहली ही मुलाकात में आपको वो सब बता दिया हो जिसे आप या आपके करीबी लोग जानते हैं?
आपके घर में कितने लोग हैं, कौन क्या-क्या करता है, आपकी किससे बनती है और कौन आपका दुश्मन है, यह सब आपको उस व्यक्ति ने सिर्फ आपका चेहरा देखकर ही बता दिया हो?
अगर वास्तव में आपका ऐसे किसी भी व्यक्ति से सामना हुआ है तो उसकी इस जानकारी के चलते आपको लगा होगा या तो वो कोई धोखेबाज है या फिर वह कोई महान सिद्ध पुरुष है.
अगर उस व्यक्ति के लिए आपके भीतर ऐसी धारणा आई है तो हम आपको बता दें कि उस व्यक्ति के पास वो शक्ति है जो उसे दुनिया की कोई भी जानकारी एक क्षण में प्रदान कर सकती है. यह तंत्र साधना का वो कमाल है जिसे कड़ी सिद्धि द्वारा प्राप्त किया जा सकता है.
कर्ण पिशाचिनी सिद्धि, यह वो तंत्र विद्या है जिसमें आपके हर सवाल का जवाब एक अलौकिक ताकत आपके कान में आकर दे जाती है, वह जवाब सिर्फ आपको ही सुनाई देता है.
इस विद्या को कर्ण पिशाचिनी विद्या के अलावा पिशाच विद्या या नेक्रेमेंसी भी कहा जाता है. इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद आप अलौकिक ताकतों से जब चाहे संपर्क साध सकते हैं.
यह साधना बेहद कठिन है लेकिन अगर एक बार इस सिद्धि को प्राप्त कर लिया जाए तो आप अपने मरे हुए परिजनों, जिनकी आत्माएं भटक रही हैं, से जब चाहे बात कर सकते हैं.
इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद साधक वशीकरण एवं पाश मंत्र के जरिए एक प्रेतनी का स्वामी बन जाता है और वह प्रेतनी से हर जानकारी पल भर में उगलवा सकता है. वह प्रेतनी उस साधक के कान में ही वास करती है इसीलिए उसे कर्ण पिशाचिनी कहा जाता है.
यह प्रेतनी उस साधक को आपके बारे में हर उस घटना से रूबरू करवा सकती है, जो या तो आपके साथ हो चुकी है या तो वर्तमान में हो रही है क्योंकि कर्ण पिशाचिनी भविष्य नहीं बता सकती. उसकी पहुंच सिर्फ अतीत और वर्तमान तक ही होती है.
राजगुरु जी
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Sunday, May 27, 2018
महापुरूषों के बत्तीस लक्षण
महापुरूषों के बत्तीस लक्षण
जिस किसी में इन बत्तीस लक्षणों को देखो, उन्हें महान पुरूष, कपालेश्वर जानो l अपना इष्ट एवं पूज्य जानो l इस लक्षण-पराकाष्ठा में जिसका चित्त निरोध होकर स्थिर हो जाता है, वह बत्तीस लक्षणों से आच्छादित हो जाता है l
कौन से बत्तीस लक्षण ?
1 वह महापुरूष जिसका पैर जमीन पर बराबर चलने पर भी, जमीन नहीं छूता, उठा रहता हो l
2 महापुरूष के पैर के तलवे में सर्वाकार परिपूर्ण नाभि-नेमि-सहस्त्र आरों वाला चक्र उदय होता हो l
3 महापुरूष चौड़ी घुट्ठी वाले हों l
4 लम्बी अँगुलीवाले हों l
5 कोमल हस्त-पाद वाले हों l
6 अँगुलियों के बीच बत्तक के पंजे की भाँति चौड़ा चमड़ा हो l
7 जिसके पाद में घुट्ठी ऊपर अवस्थित हो l
8 मृग की तरह जिसकी फीली हो l
9 खड़े, बिना झुके, वे महापुरूष अपने दोनों घुटनों को अपने हाथ की अँगुलियों से छूते हों l
10 पुरूष इन्द्रिय l
11 गेहुँमनिया रंग के त्वचावाले हों l
12 त्वचा जिसकी मुलायम हो, जिस पर मैल-धूल नहीं चिपटती l
13 एक एक रोम कूप में उनके एक एक रोम हों l
14 उनके अंजन समान नीले तथा प्रदक्षिणा से कुण्डलित लोमों के सिरे ऊपर को उठे हों l
15 ऊँचे कंधे वाले अकुटिल शरीर वाले l
16 सातो अंगों में पूर्ण आकार वाले l
17 छाती आदि शरीर का ऊपरी भाग सिह की भांति जिसका हो l
18 दोनों कंधो का बिचला भाग जिसका चित्तपूर्ण हो l
19 जितनी काया, उसके अनुसार चौड़ाई, चितनी चौड़ाई उतनी काया l
20 समान परिणाम के कंधे वाले l
21 सुन्दर सिर वाले l
22 सिंह-समान पूर्ण ठोढ़ी वाले l
23 चव्वालिस दन्त l
24 समदन्त l
25 अछेददन्त l
26 खुब सफेद दाढ़ वाले l
27 लम्बी जीभ वाले l
28 ब्रह्रा स्वर वाले l
29 अलसी के पुष्पप सरीखे आँखों वाले l
30 गौ जैसी पलक वाले l
31 भृकुटि के मध्य में सफेद कोमल कपास सी रोवां वाले l 32 पगड़ी जैसे समानाकार वृत सिर वाले हों l
ये महापुरूषों के लक्षण है l
वे महापुरूष चलते वक्त पहले दाहिना ही पैर उठाते हैं l वे न बहुत दूर से पैर उठाते हैं, न बहुत समीप रखते हैं l वे न अतिशीघ्र चलते हैं न अति धीरे-धीरे चलते हैं l न जानु से जानु को रगड़ते हुए चलते हैं l
चलते वक्त न वे उसको ऊपर उठाते हैं न उसको नचाते हैं, न उसको घुमाते हैं, न हिलाते हैं l चलते वक्त महापुरूष का निचला शरीर ही हिलता है l काय बल से नहीं चलते l
बिना अवलोकन करते, वे महापुरूष सारी काया से अवलोकन जैसा करते हैं l वे न ऊपर की ओर अवलोकन करते हैं, न नीचे की ओर अवलोकन करते हैं, न चारों ओर देखते चलते हैं l चार हाथ सामने देखते हैं l उससे आगे उनकी खुली ज्ञान-दृष्टि होती है l
महापुरूष न आसन से दूर, न अति समीप को पलटते हैं l न हाथ का अवलम्बन लेकर आसन पर बैठते हैं, न आसन पर काया को फेंकते हैं, न हाथ को ठुड्ढी पर रखकर बैठते हैं l
वे पात्र में जल ग्रहण करते वक्त न पात्र को ऊपर उठाते हैं, न पात्र को नीचे गिराते हैं, न पात्र की उपेक्षा करते हैं l वे पात्र को समान रखते हैं l
वे भात रोटी न बहुत अधिक न बहुत कम ग्रहण करते हैं, महापुरूष ग्रास में अधिक मात्रा में तरकारी नहीं ग्रहण करते हैं l
दो तीन बार करके, मुख में ग्रास को चबाकर खाते है l भात रोटी का जूठन अलग होकर उनके शरीर पर नहीं गिरता l
भात-रोटी का जूठन, जब तक मुख में बचा रहता है तब तक दूसरा ग्रास मुख में नहीं डालते l भोजनोपरान्त वे थोड़ी देर चुपचाप बैठते हैं और अनुमोदन के काल को त्याज्य करते है l
शरीर को सीधा रख, स्मृति को सामने रखकर बैठना चाहिये l इतने लक्षण जिस पुरूष में देखो, उन्हें महापुरूष जानो l संत और महात्मा जानो l
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Saturday, May 26, 2018
तंत्र और प्रेट सिद्धी
तंत्र और प्रेट सिद्धी
हमारे चारों ओर फैला ब्रह्मांड हवा और धुएं का केन्द्र मात्र नहीं है, अपितु इसमें निहित है ऐसे रहस्य और ऐसा ज्ञान जिसका अगर एक अंश मात्र भी यदि किसी की भी समझ में आ जाये तो उसकी जीवन धारा ही बदल जाती है!!!!
क्योंकि ब्रह्मांडीय ज्ञान कोई कोरी कपोल कल्पना ना हो के इस समस्त चराचर विश्व की उत्पत्ति और विध्वंस का करोडों बार साक्षी बन चुका है और जब तक सृजन और संहार का क्रम चलता रहेगा इस ब्रह्मांडीय ज्ञान में इजाफा होता जायेगा.......पर यह ज्ञान हम किताबों से या बड़े बड़े ग्रंथो को पढ़ कर प्राप्त नहीं कर सकते...किन्तु यह ग्रंथ उस ज्ञान को कुछ हद तक समझने में हमारी संभव सहायता जरूर करते हैं.
परमसत्ता अपना ज्ञान देने में कभी कोई कोताहि नहीं करती पर उसके लिए मात्र एक ही शर्त है की आप में पात्रता होनी चाहिए. ब्रह्मांडीय ज्ञान को हम दो तरह से अर्जित कर सकते हैं –
१) आगम स्तर २) निगम स्तर !!!! आगम ६४ तरह के तांत्रिक ज्ञान पर आधारित है और निगम वेदों पर निर्भर करता है.....
खैर निगम ज्ञान या वेद शास्त्र यहाँ हमारा विषय नहीं है तो हम बात करते हैं तंत्र ज्ञान की जिसे गुहा ज्ञान या रहस्यमय ज्ञान भी कहते हैं. क्योंकि तंत्र कोई चिंतन-मनन करने वाली विचार प्रणाली नहीं है या यूँ कहें की तंत्र कोई दर्शन शास्त्र नहीं है यह शत प्रतिशत अनुभूतियों पर आधारित है.
अब जब अनुभूतियों की बात करते हैं तो एक साधक साधना करते समय तीन तरह की अनुभूतियों का अनुभव करता है –
१) साधना के प्रथम स्तर पर उसे अपनी इन्द्रियों का बोध होता है जिसे हम ऐसे समझते हैं की हाथ पैर दुःख रहे हैं.....आसन पर बैठा नहीं जाता.
२) दूसरे स्तर पर हमें उस दूसरे की अनुभूति होती है जिसे हम सिद्ध कर रहे होते हैं या जिसका आवाहन किया जा रहा होता है.
३) अंतिम अनुभूति होती है उस अलौकिक, अखंड परम सत्ता की जिसे हम समाधि की अवस्था कहते हैं.
पर यहाँ हम बात कर रहे हैं प्रेत सिद्धि की तो वो दूसरे स्तर की अनुभूति है.
यदि आप सब को याद होगा तो पिछले लेख में हमने पढ़ा था की प्रेत जिस लोक में रहते हैं उसे वासना लोक कहते हैं और वासना जितनी गहन होगी उतना ही अधिक समय लगेगा आत्मा को प्रेत योनि से मुक्त हो के सूक्ष्म योनि प्राप्त करने में और साथ ही साथ हमने यह भी समझा था की इन प्रेतों और पिशाचों का भू लोक पर आने वाला मार्ग महावासना पथ कहलाता है किसका महादिव्योध मार्ग से एकीकरण पृथ्वी के केन्द्र में होता है.......
पर हमने तब यह तथ्य नहीं समझा था की पृथ्वी के केन्द्र में ही यह दोनों मार्ग क्यों मिलते हैं कहीं और क्यों नहीं तो इसका एक सीधा सरल उत्तर यह है की भू के गर्भ में अर्थात उसके केन्द्र में ऊर्जा का घ्न्तत्व सबसे अधिक मात्रा में होता है या यूँ कहें की केन्द्र में कहीं ओर की तुलना में गुरुत्वाकर्षण की क्रिया सबसे ज्यादा होती है और इसी गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण ही प्रेत योनियाँ भू लोक की तरफ खींची चली आती हैं.
इस प्रयोग के विधान को समझने से पहले या ये प्रयोग करने से पहले आपको दो अति महत्वपूर्ण बातों को अपने ज़हन में रखना होगा –
१) यह साधना प्रेत प्रत्यक्षीकरण साधना है तो हम ये भी जानते हैं की यदि आपने उसे प्रत्यक्ष करके सिद्ध कर लिया तो वो आपके द्वारा दिए गए हर निर्देश का पालन करेगा किन्तु उससे यह सब करवाने के लिए आपको अपने संकल्प के प्रति दृढ़ता रखनी पड़ेगी अर्थात आपको पूरे मन, वचन और क्रम से ये साधना करनी पड़ेगी, क्योंकि जहाँ आप कमजोर पड़े आपकी साधना उसी एक क्षण विशेष पर खत्म हो जायेगी......
और हाँ एक बात और अब चूंकी ये योनियाँ मंत्राकर्षण की वजह से आपकी तरफ आकर्षित होती है तो यथा संभव कोशिश करें की यदि आपने आसन सिद्ध किया हुआ है तो आप उसी आसन पर बैठ कर इस प्रयोग को करें... क्योंकि वो आसन भू के गुरुत्व बल से आपका सम्पर्क तोड़ देता है.
२) हम में से बहुत कम लोग यह बात जानते है की दिन के २४ घंटों में एक क्षण ऐसा भी होता है जब हमारी देह मृत्यु का आभास करती है अर्थात यह क्षण ऐसा होता है जब हमारी सारी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती है और ह्रदय की गति रुक जाती है....
रोज मरा की दिनचर्या में यह पल कौन सा होता है और कब आता है यह तो बहुत आगे का विधान है पर इस प्रयोग को करते समय यह पल तब आएगा जब आप साधना सम्पूर्णता की कगार पर होंगे तो आपको उस समय खुद के डर पर नियंत्रण करते हुए उस मूक संकेत को समझना है......वो जिसका कोई अस्तित्व नहीं है उसके अस्तित्व को पहचानते हुए उसकी मूल पद ध्वनि को सुनना है.
समाग्री ---
डामर यंत्र . भूत केशी जड़ . गुतीका . कड़ा . काले हकीक़ माला . यंत्र और गुतीका का निर्माण भोजपत्र पर किया जय तथा सभी समाग्री मंत्र सिद्दि चैतन्य तथा प्राण प्रतिष्टित होना जरूरी है .
विधान –
मूलतः ये साधना मिश्रडामर तंत्र से सम्बंधित है.
अमावस्या की मध्य रात्रि का प्रयोग इसमें होता है,अर्थात रात्रि के ११.३० से ३ बजे के मध्य इस साधना को किया जाना उचित होगा.
वस्त्र व आसन का रंग काला होगा.
दिशा दक्षिण होगी.
वीरासन का प्रयोग कही ज्यादा सफलतादायक है.
नैवेद्य में काले तिलों को भूनकर शहद में मिला कर लड्डू जैसा बना लें,साथ ही उडद के पकौड़े या बड़े की भी व्यवस्था रखें और एक पत्तल के दोनें या मिटटी के दोने में रख दें..
दीपक सरसों के तेल का होगा.
बाजोट पर काला ही वस्त्र बिछेगा,और उस पर मिटटी का पात्र स्थापित करना है जिसमें यन्त्र का निर्माण होगा.
रात्रि में स्नान कर साधना कक्ष में आसन पर बैठ जाएँ.
गुरु पूजन,गणपति पूजन,और भैरव पूजन संपन्न कर लें.
रक्षा विधान हेतु काली के कवच का ११ पाठ अनिवार्य रूप से कर लें.
अब उपरोक्त यन्त्र का निर्माण अनामिका ऊँगली या लोहे की कील से उस मिटटी के पात्र में कर दें और उसके चारों और जल का एक घेरा मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए कर बना दें,अर्थात छिड़क दें.
और उस यन्त्र के मध्य में मिटटी या लोहे का तेल भरा दीपक स्थापित कर प्रज्वलित कर दें.
और भोग का पात्र जो दोना इत्यादि हो सकता है या मिटटी का पात्र हो सकता है.उस प्लेट के सामने रख दें.
अब काले हकीक या माला से 3 माला मंत्र जप निम्न मंत्र की संपन्न करें.मंत्र जप में लगभग 2 घंटे लग सकते हैं.
मंत्र जप के मध्य कमरे में सरसराहट हो सकती है,उबकाई भरा वातावरण हो जाता है,एक उदासी सी चा सकती है.
कई बार तीव्र पेट दर्द या सर दर्द हो जाता है और तीव्र दीर्घ या लघु शंका का अहसास होता है.दरवाजे या खिडकी पर तीव्र पत्रों के गिरने का स्वर सुनाई दे सकता है,इनटू विचलित ना हों.
किन्तु साधना में बैठने के बाद जप पूर्ण करके ही उठें. क्यूंकि एक बार उठ जाने पर ये साधना सदैव सदैव के लिए खंडित मानी जाती है और भविष्य में भी ये मंत्र दुबारा सिद्ध नहीं होगा.
जप के मध्य में ही धुएं की आकृति आपके आस पास दिखने लगती है.जो जप पूर्ण होते ही साक्षात् हो जाती है,और तब उसे वो भोग का पात्र देकर उससे वचन लें लें की वो आपके श्रेष्ट कार्यों में आपका सहयोग ३ सालों तक करेगा,और तब वो अपना कडा या वस्त्र का टुकड़ा आपको देकर अदृश्य हो जाता है,और जब भी भाविओश्य में आपको उसे बुलाना हो तो आप मूल मंत्र का उच्चारण ७ बार उस वस्त्र या कड़े को स्पर्श कर एकांत में करें,वो आपका कार्य पूर्ण कर देगा.
ध्यान रखिये अहितकर कार्यों में इसका प्रयोग आप पर विपत्ति ला देगा.जप के बाद पुनः गुरुपूजन,इत्यादि संपन्न कर उठ जाएँ और दुसरे दिन अपने वस्त्र व आसन छोड़कर,वो दीपक,पात्र और बाजोट के वस्त्र को विसर्जित कर दें.
कमरे को पुनः स्वच्छ जल से धो दें और काली कवच का उच्चारण करते हुए गंगाजल छिड़क कर गूगल धुप दिखा दें.
मंत्र:-
इरिया रे चिरिया,काला प्रेत रे चिरिया.पितर की शक्ति,काली को गण,कारज करे सरल,धुंआ सो बनकर आ,हवा के संग संग आ,साधन को साकार कर,दिखा अपना रूप,शत्रु डरें कापें थर थर,कारज मोरो कर रे काली को गण,जो कारज ना करें शत्रु ना कांपे तो दुहाई माता कालका की.काली की आन.
मुझे आशा है की आप इस अहानिकर प्रयोग के द्वारा लाभ और हितकर कारों को सफलता देंगे. भय को त्याग कर तीव्रता को आश्रय दें,यही मैं गुरु जी से हम सभी के लिए प्राथना करत हूँ.
राजगुरु जी
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दिव्य अष्टलक्ष्मी मंत्र साधना.
दिव्य अष्टलक्ष्मी मंत्र साधना.
हिंदू देवी-देवताओं में श्री लक्ष्मीजी को धन की देवी माना जाता हैं.इस लिये जिन लोगो पर देवी लक्ष्मी की कृपा हो जाती हैं, उन्हें जीवन में कभी किसी तरह के अभावो या
कमीयों का सामना नहीं करना पड़ता.
व्यक्ति का जीवन सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य से भरा होता हैं. विद्वानो के मतानुशार शास्त्रों में लक्ष्मीजी के आठ रूपो का उल्लेख मिलता हैं.इस लिये जिन लोगो पर
अष्ट लक्ष्मी की कृपा हो जाती है. उनका जीवन सभी प्रकार के सुख-समृद्धि-ऎश्चर्य एवं संपन्नता से युक्त रहता हैं.ऎसा शास्त्रोक्त विधान हैं, इस में लेस मात्र संशय नहीं हैं.
यदि मनुष्य को जीवन में लक्ष्मी को प्राप्त करना है तो अष्टलक्ष्मी रहस्य जानना
आवश्यक है और इनकी उपासना करना आवश्यक है.इसका शास्त्रों में वर्णन एवं मंत्र निम्नलिखित रूप में प्राप्त होते हैं:
1. धन लक्ष्मी:
लक्ष्मी के इस स्वरूप की आराधना करने से रूपये पैसे के रूप में
लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा स्थिति ऐसी बनती है कि रूपये पैसे का आगमन होता है तथा इस रूपये पैसे में बरकत होती है
व्यर्थ में व्यय नहीं होता है.
2. यश लक्ष्मी:
लक्ष्मी के इस स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति को समाज में सम्मान, यश, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, इनकी आराधना करने से व्यक्ति में विद्वत्ता, विनम्रता आती है,अन्य लोग जो शत्रुता
रखते हो उनका भी व्यवहार प्रेममय हो जाता है.
3. आयु लक्ष्मी:
लक्ष्मी के इस स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति दीर्घायु को प्राप्त करता है और रोगो से बचाव होता है.यदि व्यक्ति सदैव रोगग्रस्त या मानसिक रूप से परेशान हो तो उसे इस लक्ष्मी की आराधना अवश्य करनी चाहिये.
4. वाहन लक्ष्मी: लक्ष्मी के इस रूप की पूजा करने से व्यक्ति के घर में वाहन इत्यादि रखने की इच्छा पूर्ण होती है.
इसी के साथ-साथ इन वाहनों का समुचित प्रयोग भी होता है क्योंकि कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि घर में वाहन तो है पर उनका प्रयोग नहीं हो पाता है.
5. स्थिर लक्ष्मी:
लक्ष्मी के इस स्वरूप
की पूजा करने से घर धन-धान्य से भरा रहता है. वास्तव में यह अन्नपूर्णा देवी की घर में स्थाई निवास की पद्धति है.
6. सत्य लक्ष्मी :
लक्ष्मी के इस स्वरूप की पूजा करने से मनोनुकूल पत्नी की प्राप्ति होती है या यदि पत्नी पूर्व से हो तो वह व्यक्ति के मनोनुकूल हो जाती है और वह मित्र, सलाहकार बनकर जीवन में पूर्ण सहयोग देती है.
7. संतान लक्ष्मी:
इस लक्ष्मी की पूजा करने से संतानहीन दंपत्ति को संतान की प्राप्ति
होती है.इसी के साथ-साथ यदि पूर्व से
संतान हो पर वह दुष्ट, अशिक्षित, परेशान करने वाली हो तो सुधर जाती है.
8. गृह लक्ष्मी:
इस लक्ष्मी की पूजा करने से जिनके पास अपने स्वयं के घर न हो
उनको घर की प्राप्ति होती है या घर हो
पर उसमे रह न पा रहे हों या उनके निर्माण में कठिनाई हो रही हो इससे मुक्ति मिलती है.
शुक्रवार के दिन इन आठों लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते हुये प्रत्येक लक्ष्मी मंत्र के 108 पाठ कमलगट्टे की माला से करें.अष्टलक्ष्मी की कृपा वर्ष भर बनी रहेगी.
ॐ धनलक्ष्म्यै नम:
ॐ यशलक्ष्म्यै नम:
ॐ आयुलक्ष्म्यै नम:
ॐ वाहनलक्ष्म्यै नम:
ॐ स्थिरक्ष्म्यै नम:
ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम:
ॐ संतानक्ष्म्यै नम:
ॐ गृहक्ष्म्यै नम:
साधना सामग्री:-
1.सिद्ध श्रीयंत्र ,पाट,पीला वस्त्र ,ताम्बे की थाली, गाय के घी के ९(नौ) दीपक, गुलाब
अगरबत्ती, लाल/पीले फूलो की माला, पीली बर्फी,शुद्ध अष्टगंध.
2.माला:-स्फटिक/कमलगट्टा.
जप संख्या रोज 11 माला जाप 21 दिन करे.
3.आसन:-पीला,वस्त्र पीले,समय शुक्रवार रात नौ बजे के बाद कभी भी.
4.दिशा:-उत्तराभिमुख होकर बैठे.
दिव्य अष्टमंत्र मंत्र:-
ll ॐ ह्रीं स्थिर अष्टलक्ष्मै स्वाहा ll
5.विधान :-
बाजोट पर पिला वस्त्र बिछा कर उस पर सिद्ध श्री यन्त्र स्थापित करे,पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर बैठे श्री यन्त्र पर अष्टगंध का छीट्काव कर खुद अस्ट्गंध का तिलक करे उसके बाद ताम्बे की थाली में गाय के घी से नौ दीपक जलाये,गुलाब अगरबत्ती लगाये,प्रस्साद में पीली बर्फी रखे श्री यन्त्र पर फूल माला चढ़ाये उसके बाद मन्त्र जप करे.और माँ की कृपा को प्राप्त करे ...
माँ भगवती आप सभी को सुख समृद्धि
से पूर्ण करे..और मंत्र का नित्य जीवन मे 1,3,5,7,9 या 11 बार रोज जाप करते रहे.
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम ( राजयोग पीठ ) ट्रस्ट
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Friday, May 25, 2018
गृह दोष बाधा निवारण साधना
गृह दोष बाधा निवारण साधना
मेरा अनुभूत प्रयोग है वो ये है---
मनुष्य का जीवन निरंतर कम ही होता जा रहा है, इसी में उसे अनेक या बड़े लक्ष्य को प्राप्त करना है और यदि इस लक्ष्य की प्राप्ति में निरंतर बाधाएं, अडचने, कठिनाइयाँ आती रहें तो वह पूर्ण रूप से परगति नहीं कर पाता और जीवन नीरस सा लगने लगता है |
पूरी मेहनत और ईमानदारी और लगन से भी कार्य करने पर भी निरंतर असफलता और कभी निराशा का सामना करना पड़े तो जीवन निरर्थक लगने लगता है, प्रत्येक कार्य बनते बनते बिगड़ जाना या घर में रोग, आर्थिक संकट, कोर्ट कचहरी, या अपमान कर्ज आदि समस्याएं जब बढती ही जाए तो समझ लीजिये कि गृह दोष बाधा है, और यदि गृह बाधा है तो तांत्रिक बाधा बड़ी सहजता से संपन्न हो जाती है, क्योंकि ग्रहों का चक्र देखते हुए हि तंत्र क्रियाएं भी संपन्न की जाती हैं |
हमरे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के सभी देशों में प्राचीनकाल से हि ग्रहों की स्तिथि, गति और प्रभावों की गणना और अध्ययन होता चला आया है और सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि मानव जीवन पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता ही है |
कुछ ग्रहों का प्रभाव तो स्पष्ट देखा जा सकता है, जो प्रकृति पर दृष्टिगोचर है, उदाहरन स्वरुप चंद्रमा जल का प्रतिनिधित्व करता है और समुद्र में ज्वारभाटा आना इसका प्रत्यक्ष उदहारण है, और चूँकि मनुष्य के शरीर में अस्सी प्रतिशत जल की मात्रा होती है अतः चन्द्रमा के प्रभाव से उसका उद्वेलन होना भी निश्चित ही है, मानसिक रोगियों पर पूर्णिमा के दिन ज्यादा प्रभाव अनुभव होना, और कई तरह की घटनाओं का घटना चन्द्रम के प्रभाव को स्पष्ट करता है | इसी तरह बाकी ग्रहों का भी प्रभाव मानव जीवन पर किसी न किसी तरह दृष्टिगोचर होता ही है |
गृह अशुभ और शुभ प्रभाव देने में समर्थ हैं | जीवन में संकटों का आना या अचानक प्रगति का होना इन्ही ग्रहों के प्रभाव का होना है | इन ग्रहों के कुप्रभावों से बचने के लिए शास्त्रानुसार दो प्रयोग दिये गए हैं, एक तो सम्बंधित गृह का मन्त्र जप या दूसरा सम्बंधित गृह का रत्न या धारण करने का विधान |
मेरा अनुभूत प्रयोग है वो ये है---
विधान-
ये विधान नौ ग्रहों है इसे किसी भी अमावश्या से कर सकते हैं,अमावश्य के दिन यंत्रो का पूजन कर लें और फिर किसी भी रविवार से प्रारम्भ का सकते हैं या शुक्ल पक्ष के रविवार से प्रारम्भ किया जा सकता है, इस साधना में प्रत्येक गृह के अनुसार मन्त्र जप करने हैं, और वैसे ही वस्त्र धारण करने हैं तथा दिशा, आसन भी तथानुसार होंगे इसलिए इसकी तैयारी भी दो चार दिन पहले ही कर लेना चाहिए |
उपयुक्त सामग्री-
एक नवग्रह यंत्र, नव रत्न माला/ या नवरत्न अंगूठी/ या नवरत्न लाकेट, साथ ही प्रत्येक जप के लिए तदनुसार माला, वैसे दो या तीन माला तो जरुरी हैं ही साथ ही वस्त्र और आसन भी अलग होते हैं अतः उतने रंग के कपड़े खरीद लेने चाहिए, जो आसन पर बिछाकर काम चल सकता है |
१- सूर्य के लिए गुलाबी वस्त्र, आसन और स्फटिक माला | ११ माला
२- चन्द्र के लिए सफ़ेद वस्त्र, आसन और मोती माला | ११ माला
३- मंगल के लिए लाल वस्त्र, आसन और मूंगा माला | ११ माला
४- बुध के लिए हरा वस्त्र, आसन और हरे हक़ीक माला | ११ माला
५- गुरु के लिए पीले वस्त्र, आसन और पीली हक़ीक या हल्दी माला | ११ माला
६- शुक्र के लिए सफ़ेद वस्त्र, आसन और स्फटिक माला , (पहले वाली माला और वस्त्र उपयोग कर सकते हैं) | ११ माला
७- शनि हेतु काले वस्त्र, आसन और काली हक़ीक माला | १८ माला
८- राहू के लिए ------------------------------------------------ | १९ माला
९- केतु के लिए ----------------------------------------------- | १९ माला
जप कालीन समय --
सूर्य जप साधना प्रातः ६ से ७ के बीच प्रारम्भ करना है और दिशा पूर्व |
चन्द्र साधना हेतु रात में ९ से १० बजे के बीच, दिशा पूर्व
मंगल बुध गुरु और शुक्र की प्रातः ९ से ११ के बीच
मंगल के दक्षिण, बुध के लिए नैरित्य, गुरु के लिए उत्तर शुक्र के लिए पश्चिम दिशा निर्धारित है |
शनि राहू केतु भी ११ बजे के पूर्व साधना हो जनि चाहिए | शनि के लिए भी पश्चिम राहू केतु के लिए दक्षिण दिशा होगी |
ये साधना मूलतः अमावश्या से प्रारम्भ करनी है अमावश्या के दिन दो पाटे पर एक सफ़ेद वस्त्र और दुसरे पर पीला वस्त्र बिछाकर अपने सामने स्थापित करें, अब एक बड़ी स्टील, ताम्बे या कांसे की थाली लें अब नौ मिटटी के दिए जिसमे आठ दीयों में तेल जो कोई भी हो सकता है, तथा एक में घी का दीपक लगावें |
थाली में कुमकुम से स्वास्तिक बनावें, और उस पर चावल की ढेरी बनाकर उस पर नवग्रह यंत्र को पहले पंचामृत से धोकर फिर गंगा जल से धो कर स्थापित करें, ऐसे हि जो भी माला लाकेट या अंगूठी है उसे भी साफ कर यंत्र के ऊपर स्थापित करें | तथा चारो तरफ आठ दिए तेल के और अपने सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें तथा सफ़ेद वस्त्र वाले पट्टे पर थाली स्थापित करें |
अब दुसरे पाटे पर चावल से स्वास्तिक बनावें और उस पर नवग्रहों की स्थापना करें | ये प्रतीक मात्र होंगे | सामने भूमि पर कलश स्थापन करें और उसका पूजन कर गुरु, गणेश पूजन सम्पन्न करें | तथा संकल्प लेकर नवग्रह का और यंत्र का पंचोपचार पूजन करें |
‘ब्रह्ममुरारिस्त्रिपुरान्त्कारी भानु शशि भूमौ सुतबुधश्च गुरु शुक्र,
शनि राहू-केतवे मुन्था सहिताय सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ||’
इस मन्त्र का रुद्राक्ष माला से एक माला मन्त्र करें ---
स्नेही स्वजन ! J है ना अद्भुत प्रयोग........ इस तरह पूजन सम्पन्न करने से आपका यंत्र और सारी मालायें नवग्रह मन्त्र से चैतन्य हो जाएँगी और आप भी इस साधना हेतु तैयार हो जायेंगे--------
यदि पूर्ण विधि विधान और श्रद्धा पूर्वक इस साधना को कोई भी संपन्न कर लेता है तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसे समस्त बाधाओं से मुक्ति न मिले------
अब इसके बाद आप रविवार से इस साधन को प्रारम्भ कर सकते हैं अपनी सुविधा नुसार-----
कुछ महत्वपूर्ण सावधानी---- जो कि प्रत्येक साधना में बरतनी चाहिए , जैसे-
ब्रह्मचारी व्रत का दृढ़ता से पालन, भूमि शयन पूर्ण शुद्ध और शाकाहारी भोजन व्यवस्था, और गुरु और मन्त्र के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए साधना सम्पन्न करें और देखें चमत्कारी परिणाम--------
नव ग्रह एवं उनसे सम्बन्धित मन्त्र
१. सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं सः |
२. चन्द्रमा : ॐ घौं सौं औं सः |
३. मंगल : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां सः |
४. बुध : ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रां सः |
५. गुरु : ॐ औं औं औं सः |
६. शुक्र : ॐ ह्रौं ह्रीं सः |
७. शनि : ॐ शौं शौं सः |
८. रहू : ॐ छौं छां छौं सः |
९. केतु : ॐ फौं फां फौं सः |
प्रत्येक दिन प्रत्येक गृह के मन्त्र जप के बाद निम्न स्त्रोत के पांच पाठ अति आवश्यक हैं |
विनियोग :
ॐ अस्य जगन्मंगल्कारक ग्रह कवचस्य श्री भैरव ऋषि: अनुष्टुप् छन्द : |
श्री सूर्यादि ग्रहाः देवता | सर्व कामार्थ संसिद्धिये पाठे विनियोगः |
पार्वत्युवाच :
श्री शान ! सर्व शास्त्रज्ञ देव्ताधीश्वर प्रभो |
अक्षयं कवचं दिव्यं ग्रहादि-दैवतं विभो ||
पुरा संसुचितम गुह्यां सुभ्त्ताक्षय-कारकम् |
कृपा मयि त्वास्ते चेत् कथय् श्री महेश्वर ||
शिव उवाच :
श्रृणु देवि प्रियतमे ! कवचं देव दुर्लभम् |
यद्धृत्वा देवता : सर्वे अमरा: स्युर्वरानेन |
तव प्रीति वशाद् वच्मि न देयं यस्य कस्यंचित् |
ग्रह कवच स्तोत्र :
ॐ ह्रां ह्रीं सः मे शिरः पातु श्री सूर्य ग्रह पति : |
ॐ घौं सौं औं में मुखं पातु श्री चन्द्रो ग्रह राजकः |
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां सः करो पातु ग्रह सेनापतिः कुज: |
पायादंशं ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रां सः पादौ ज्ञो नृपबालक: |
ॐ औं औं औं सः कटिं पातु पायादमरपूजित: |
ॐ ह्रौं ह्रीं सः दैत्य पूज्यो हृदयं परिरक्षतु |
ॐ शौं शौं सः पातु नाभिं मे ग्रह प्रेष्य: शनैश्चर: |
ॐ छौं छां छौं सः कंठ देशम श्री राहुर्देवमर्दकः |
ॐ फौं फां फौं सः शिखी पातु सर्वांगमभीतोऽवतु |
ग्रहाश्चैते भोग देहा नित्यास्तु स्फुटित ग्रहाः |
एतदशांश संभूताः पान्तु नित्यं तु दुर्जनात् |
अक्षयं कवचं पुण्यं सुर्यादी गृह दैवतं |
पठेद् वा पाठयेद् वापी धारयेद् यो जनः शुचिः |
सा सिद्धिं प्राप्नुयादिष्टां दुर्लभां त्रिदशस्तुयाम् |
तव स्नेह वशादुक्तं जगन्मंगल कारकम् गृह
यंत्रान्वितं कृत्वाभिष्टमक्षयमाप्नुयात् |
तो हो जाइये तैयार एक महत्वपूर्ण साधना हेतु------
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम ( राजयोग पीठ ) फॉउन्डेशन ट्रस्ट
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Thursday, May 24, 2018
चंद्रज्योत्सना अप्सरा साधना प्रयोग
चंद्रज्योत्सना अप्सरा साधना प्रयोग
उच्चकोटि कि अप्सराओं कि श्रेणी में चंद्रज्योत्सना ;का प्रथम स्थान है, जो शिष्ट और मर्यादित मणि जाती है, सौंदर्य कि दृष्टि से अनुपमेय कही जा सकती है |
शारीरिक सौंदर्य वाणी कि मधुरता नृत्य, संगीत, काव्य तथा हास्य और विनोद यौवन कि मस्ती, ताजगी, उल्लास और उमंग ही तो चंद्रज्योत्सना है | जिसकी साधना से वृद्ध व्यक्ति भी यौवनवान होकर सौभाग्यशाली बन जाता है |
जिसकी साधना से योगी भी अपनी साधनाओं में पूर्णता प्राप्त करता है | अभीप्सित पौरुष एवं सौंदर्य प्राप्ति के लिए प्रतेक पुरुष एवं नारी को इस साधना में अवश्य रूचि लेनी चाहिए | सम्पूर्ण प्रकृति सौंदर्य को समेत कर यदि साकार रूप दिया तो उसका नाम चंद्रज्योत्सना होगा |
सुन्दर मांसल शारीर, उन्नत एवं सुडौल वक्ष: स्थल, काले घने और लंबे बाल, सजीव एवं माधुर्य पूर्ण आँखों का जादू मन को मुग्ध कर देने वाली मुस्कान दिल को गुदगुदा देने वाला अंदाज यौवन भर से लदी हुई चंद्रज्योत्सना बड़े से बड़े योगियों के मन को भी विचिलित कर देती है |
जिसकी देह यष्टि से प्रवाहित दिव्य गंध से आकर्षित देवता भी जिसके सानिध्य के लिए लालायित देखे जाते हैं |
सुन्दरतम वर्स्त्रलान्कारों से सुसज्जित, चिरयौवन, जो प्रेमिका या प्रिय को रूप में साधक के समक्ष उपस्थित रहती है | साधक को सम्पूर्ण भौतिक सुख के साथ मानसिक उर्जा, शारीरिक बल एवं वासन्ती सौंदर्य से परिपूर्ण कर देती है
इस साधना के सिद्ध होने पर वह साधक के साध छाया के तरह जीवन भर सुन्दर और सौम्य रूप में रहती है तथा उसके सभी मनोरथों को पूर्ण करने में सहायक होती है |
चंद्रज्योत्सना साधना सिद्ध होने पर सामने वाला व्यक्ति स्वंय खिंचा चला आये यही तो चुम्बकीय व्यक्तिव है|
साधना से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं वृद्धता समाप्त हो जाती है |
यह जीवन कि सर्वश्रेष्ठ साधना है | जिसे देवताओं ने सिद्ध किया इसके साथ ही ऋषि मुनि, योगी संन्यासी आदि ने भी सिद्ध किया इस सौम्य साधना को .
इस साधना से प्रेम और समर्पण के कला व्यक्ति में स्वतः प्रस्फुरित होती है | क्योंकि जीवन में यदि प्रेम नहीं होगा तो व्यक्ति तनावों में बिमारियों से ग्रस्त होकर समाप्त हो जायेगा |
प्रेम को अभिव्यक्त करने का सौभाग्य और सशक्त माध्यम है चंद्रज्योत्सना साधना | जिन्होंने चंद्रज्योत्सना साधना नहीं कि है, उनके जीवन में प्रेम नहीं है, तन्मयता नहीं है, प्रस्फुल्लता भी नहीं है |
साधना विधि:
सामग्री –
प्राण प्रतिष्ठित चंद्रज्योत्सनात्कीलन यंत्र, चंद्रज्योत्सना माला .सौंदर्य गुटिका.
यह रात्रिकालीन २७ दिन कि साधना है | इस साधना को किसी भी पूर्णिमा को, शुक्रवार को अथवा किसी भी विशेष दिन प्रारम्भ करें |
साधना प्रारम्भ करने से पूर्व साधक को चाहिए कि स्नान आदि से निवृत होकर अपने सामने चौकी पर गुलाबी वस्त्र बिछा लें, पीला या सफ़ेद किसी भी आसान पर बैठे, आकर्षक और सुन्दर वस्त्र पहनें |
पूर्व दिशा कि ओर मुख करके बैठें | घी का दीपक जला लें | सामने चौकी पर एक थाली या पलते रख लें, दोनों हाथों में गुलाब कि पंखुडियां लेकर रम्भा का आवाहन करें |
|| ओम ! चंद्रज्योत्सने अगच्छ पूर्ण यौवन संस्तुते |।
यह आवश्यक है कि यह आवाहन कम से कम १०१ बार अवश्य हो प्रत्येक आवाहन मन्त्र के साथ एक गुलाब के पंखुड़ी थाली में रखें | इस प्रकार आवाहन से पूरी थाली पंखुड़ियों से भर दें |
अब अप्सरा माला को पंखुड़ियों के ऊपर रख दें इसके बाद अपने बैठने के आसान पर ओर अपने ऊपर इत्र छिडके |
चंद्रज्योत्सनात्कीलन यन्त्र को माला के ऊपर आसान पर स्थापित करें | गुटिका को यन्त्र के दाँयी ओर तथा यन्त्र के बांयी ओर स्थापित करें | सुगन्धित अगरबती एवं घी का दीपक साधनाकाल तक जलते रहना चाहिए |
सबसे पहले गुरु पूजन ओर गुरु मन्त्र जप कर लें | फिर यंत्र तथा अन्य साधना सामग्री का पंचोपचार से पूजन सम्पन्न करें |स्नान, तिलक, धुप, दीपक एवं पुष्प चढावें .
इसके बाद बाएं हाथ में गुलाबी रंग से रंग हुआ चावल रखें, ओर निम्न मन्त्रों को बोलकर यन्त्र पर चढावें
|| ॐ दिव्यायै नमः ||
|| ॐ प्राणप्रियायै नमः |
|| ॐ वागीश्वये नमः ||
|| ॐ ऊर्जस्वलायै नमः ||
|| ॐ सौंदर्य प्रियायै नमः ||
|| ॐ यौवनप्रियायै नमः ||
|| ॐ ऐश्वर्यप्रदायै नमः .
|| ॐ सौभाग्यदायै नमः ||
|| ॐ धनदायै चंद्रज्योत्सने नमः ||
|| ॐआरोग्य प्रदायै नमः ||
इसके बाद उपरोक्त चंद्रज्योत्सना माला से निम्न मंत्र का ११ माला प्रतिदिन जप करें .
मंत्र :
||ॐ हृीं चंद्रज्योत्सने ! आगच्छ आज्ञां पालय मनोवांछितं देहि ऐं ॐ नमः ||
प्रत्येक दिन अप्सरा आवाहन करें, ओर हर शुक्रवार को दो गुलाब कि माला रखें, एक माला स्वंय पहन लें, दूसरी माला को रखें, जब भी ऐसा आभास हो कि किसी का आगमन हो रहा है अथवा सुगन्ध एक दम बढने लगे अप्सरा का बिम्ब नेत्र बंद होने पर भी स्पष्ट होने लगे तो दूसरी माला सामने यन्त्र पर पहना दें |
२७ दिन कि साधना प्रत्येक दिन नये-नये अनुभव होते हैं, चित्त में सौंदर्य भव भाव बढने लगता है, कई बार तो रूप में अभिवृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है | स्त्रियों द्वारा इस साधना को सम्पन्न करने पर चेहरे पर झाइयाँ इत्यादि दूर होने लगती हैं |
साधना पूर्णता के पश्चात मुद्रिका को अनामिका उंगली में पहन लें, शेष सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें | यह सुपरिक्षित साधना है | पूर्ण मनोयोग से साधना करने पर अवश्य मनोकामना पूर्ण होती ही है |
राजगुरु जी
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Monday, May 21, 2018
साबर भैरवी साधना
साबर भैरवी साधना
बहोत से लोगो ने यह पहली बार सुना होगा ,क्यू के यह साधना लुप्त हो रही है परन्तु मेरे पास यह साधना हो और आपको ना मिले ऐसा संभव नही।
इस साधना से भाग्योदय होता है ,शत्रुबंधा सम्पात समाप्त होती है,रोग खत्म होते है,आकर्षण शक्ति निर्मित होती है, चहरे पर सम्मोहन आ जाता है,शरीर मे विशेष ताकत आती है जीवन मे होने वाले नुकसान की खबर देवी पाहिले ही स्वप्न मे बता देती है मनोकामनाए भी पूर्ण होती है ,अभिचार कर्म समाप्त होते है, जहा जाओगे वाहा सिर्फ तारीफ सुनाने मिलेगी।
तो अब आप समज गऐ होगे साधना कितना महत्वपूर्ण है ,करिये यह साधना क्यू के यह साधना करने के बाद साबर शिव मंत्र शीघ्र सफलता मिलता है, मंत्र तो बहोत मील जायेगा लेकिन साबर शिव मंत्र बहोत मुश्किल से प्राप्त होता है।
साधना ७ दिन का है, रोज दक्षिण दिशा मे मुख करके १०८ बार मंत्र का जाप करना है तो मंत्र सिद्ध होता है,घी का दीपक जलाये और धुप जलाये माला रुद्राक्ष का हो रात्रि मे ९ स्नान बजे करके साधना मे बैठे तो उचित है।
साधना समाग्री ----__
साबर भैरवी यंत्र . गुटिका .माला रुद्राक्ष की या विद्दुत माला . अगर विद्दुत माला ना मिले तभी रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें .
सभी समान प्राण - प्रतिष्ठा युक्त मंत्र सिद्धि चैतन्य होना चाहिये .
जिन्हे मंत्र चाहिए उन्हे ही मंत्र देगे क्यू के मेरे लिए मंत्र का गोपनीयता सर्वप्रथम है। मंत्र प्रभावशाली है। इसलिए आप भी गोपनीयता रखे और हो सके तो गुरु आज्ञा से मंत्र का जाप करे श्रेष्ठ है
राजगुरु जी
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Thursday, May 17, 2018
पारद गुटिका के दिव्य प्रयोग
पारद गुटिका के दिव्य प्रयोग
आज हम पारद गुटिका के कुछ प्रयोग के विषय में बात करेंगे.पारद के बंधन को ही सिद्धों और सभी दिव्या योनियों ने धन्य कहा है. बस जरूरत इतनी है की इसके महत्व को हम समझे और अपने जीवन को सफल बनायें.
आख़िर हम क्यूँ नही समझते हैं की कोई तो वजह होगी जो पारद तंत्र को तंत्र की अन्तिम और गोपनीय विद्या मन जाता है.
क्यूंकि इस विद्या के द्वारा सर्जन किया जा सकता है और सर्जन वही कर सकता है जो की इस ब्रह्मंडा के गोपनीय रहस्य को या तो जान चुका हो या फिर जानने की और पूर्ण रूप से अग्रसर हो .
अभी पिछले दिनों मैं मेरे एक अतिप्रिय आत्मीय मित्र से मिलने के लिए पहाड़ी प्रदेश गया था .पिछले जीवन के सूत्र इतनी मजबूती से जुड़े हुए हैं की मुझे जाना ही पड़ा .
मेरे वो आत्मीय पेट के रोग से ग्रस्त हैं और यही वजह उनकी साधनात्मक प्रक्रिया के विकास में बाधक भी है.
जब मैंने उनकी जन्मपत्रिका का अध्धयन किया तो मुझे वो बात समझ भी आ गयी की क्यूँ वो अभी तक वह नही पहुच पाए जहा उन्हें पहुच जन था.
उच्च संस्कृत परिवार में जन्म लेने के बाद और आत्मीय स्वाभाव के होने बाद भी वे अत्यन्त संकोची हैं और मैंने कई बार उनसे कहा भी की आप मुझे बताएं.
पर ..... खैर. मैं उनके लिए अत्यन्त दुर्लभ पारद कल्प भी ले गया था पर उनको इस कल्प का फल भी तभी मिल पाटा (क्यूंकि यह कल्प आध्यात्मिक और शारीरिक प्रगति के लिए अत्यन्त आवश्यक है).
पहले मुझे उन्हें पेट के विकार का निवारण भी करना था बस इसी कारण मैं आज वे रहस्य आप लोगो के सामने प्रकट कर रहा हूँ जो की सरल लेकिन अत्यन्त चमत्कारी हैं.आप इन प्रयोगों को संपन्न करें और ख़ुद इनके प्रभाव को देखें.
ये प्रयोग स्वयं ही तंत्र हैं इनमे किसी मंत्र का कोई प्रयोग नही है.
सुद्ध और संस्कृत पारद से बद्ध गुटिका के दुर्लभ प्रयोग इस प्रकार हैं:-
१.
कुंडलिनी जागरण और ध्यान व संकल्प शक्ति के द्वारा अपने मनोरथ पूरे करने के लिए इस गुटिका को यदि अपनी जीभ के ऊपर रख कर अपना संकल्प लें और उसकी पूर्णता के लिए प्रे करें.
एक इम्प बात यह है की पारद इस उनिवेर्स का सर्वाधिक चैतन्य जीव है जो शिव वीर्य होने के कारण आपके कार्यों को तीव्र गति देता है.
गुटिका को मुख में रख कर योग करने से सफलता शीघ्र मिलती है.इस अभ्यास को कम से कम ५ मिनट करना चाहिए और गुटिका को निगलना नही है अन्यथा नुक्सान होगा ही.
पारद उष्ण प्रकृति का है इसीलिए समय धीरे-२ बाधाएं.और ध्यान का अभ्यास हो जाने पर लंबे समय तक ध्यान किया जा सकता है.
२.बल प्राप्ति और रोग मुक्ति हेतु-सोते समय रात मे२०० मिली दूध को गुनगुन आकार के पारद गुटिका को उसमे ४ बार दुबयें और निकल लें और उसे पी लें.
कम से कम ४० दिन तक प्रयोग करे रोगों से मुक्ति होती है.
३.गले में धारण करने से यदि गुटिका का स्पर्श हार्ट पर होता है तो हार्ट के रोगों का निवारण होता है.
४.शरीर के किसी भी भाग में दर्द हो तो गुटिका को प्लास्टर से उस स्थान पर चिपका लें.गुटिका दर्द को खीच लेती है.
५.सम्भोग के समय मुह में रखने से स्तम्भन का समय बढ़ते जाता है .ध्यान रखिये गुटिका को निगलना नही है.वीर्य स्तम्भन और नापुन्शाकता के लिए भी ये बेहद उपयोगी है.
६.पेट के विकार,लगातार डकार,अजीर्ण,गैस आदि के लिए इस गुटिका को रात में अपनी नाभि के ऊपर २० मिनुत तक रखने से कैसी भी बीमारी जड़ से समाप्त होती ही है.
७.आँखों में यदि कोई बीमारी हो और देखने में परेशानी हो रही हो तोरात में सोते समय इस गुटिका को आँखों को बंद करके २० मिनट तक बंधने से बीमारी ठीक होती है.
८.यदि पैदल चलने से थकान होती हो तो आप पारद गुटिका को कमर पर बाँध कर देखे थकान बहुत कम हो जाती है चलने पर.
अति उच् वनस्पतियों के द्वारा संस्कृत की गयी ऐसी गुटिका भूचरी गुटिका कहलाती है जिसके प्रयोग द्वारा व्यक्ति एक दिन में १०० मील भी चल लेता है और थकान नही होती है.
९.यदि आपको यह पहचानना है तो आपके शरीर पर पंचभूतों के किस तत्त्व का प्रभाव ज्यादा है तो गुटिका को गले में धारण करें से जब आपको पसीना आता है तो गुटिका भी उसी रंग में बदल जाती है जिस रंग का स्वामी तत्त्व है.
blue-sky
violot(jamuni)-air
red-fire
green-earth
white-water
१०.तंत्र बढ़ा और भूत प्रेत के निवारण के लिए काले धागे में बाँध कर के गुटिका पहनने से शमन होता है.
११.गुटिका के धारण करने से अत्रक्शन पॉवर बढ़ता ही है.
मुझे आप सभी के विचारों का इन्तजार है
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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,
नवार्ण मंत्र
" नवार्ण मंत्र "
माँ दुर्गा की साधना / उपासना क्रम मे, नवार्ण मंत्र एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों के इस मंत्र मे ,नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और
भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
यह महामंत्र शक्ति साधना मे सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों स्तोत्रों मे से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है।
यह माँ आदिशक्ति के तीनों स्वरूपों - माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही माता दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है।
इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है।
नवार्ण मंत्र-
!! ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे !!
नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है, जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है।
ऐं - सरस्वती का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं - महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं - महाकाली का बीज मन्त्र है ।
* इसके साथ नवार्ण मंत्र के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिसमे सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
* नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज ” ह्रीं “ से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है, जिसमे चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समाहित है।
* नवार्ण मंत्र के तृतीय बीज ” क्लीं “ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिसमे मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समाहित है।
* नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज ” चा “ से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित किया जाता है।
* नवार्ण मंत्र के पंचम बीज ” मुं “ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिसमे बृहस्पति ग्रह का नियंत्रण होता है।
* नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज ” डा “ से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिसमे शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।
* नवार्ण मंत्र के सप्तम बीज ” यै “ से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, जिसमे शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति है।
* नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज ” वि “ से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिसमे राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समाहित है।
* नवार्ण मंत्र के नवम बीज ” चै “ से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति होती है।
इस मंत्र के 9 लाख जप करने व उसी अनुसार हवन, तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोज , हवन से माँ जगदम्बा के साक्षात दर्शन संभव हैं।
अधिकांश व्यक्ति नवरात्र मे 108 माला प्रति दिन करते है और प्रभाव दृष्टि गोचर होता है, पूर्ण सिद्धि के लिए 108 माला 90 दिन करना उचित माना गया है।
कई साधकों / आचार्यों का मत है कि किसी भी मन्त्र के प्रारम्भ मे प्रणव (ॐ) या नमः लगाने से मन्त्र में नपुंसक प्रभाव आ जाता है,
बीजाक्षर प्रधान है ... तांत्रिक प्रणव “ ह्रीं ” है , अतः माला के जप के प्रारम्भ मे “ ॐ ” लगायें तथा जब माला पूरी हो जाये तो माला के अंत मे “ ॐ ” लगाये,
यही मंत्र जाग्रति है ।
नवार्ण मंत्र साधना विधि -
“ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ”
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्दांसि, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताः, रक्त-दन्तिका-दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि, नन्दा शाकम्भरी भीमाः शक्त्यः, अग्नि-वायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्-यजुः-सामानि स्वरुपाणि, ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकं, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरुपा त्रिगुणात्मिका श्री महादुर्गा देव्या प्रीत्यर्थे (यदि श्रीदुर्गा का पाठ कर रहे हो तो आगे लिखा हुआ भी उच्चारित करें) श्री दुर्गासप्तशती पाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः-
ब्रह्म-विष्णु-रुद्रा ऋषिभ्यो नमः शिरसि
गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् छन्देभ्यो नमः मुखे
श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतयो देवताभ्यो नमः हृदिः
ऐं बीज सहिताया रक्त-दन्तिका-दुर्गायै भ्रामरी देवताभ्यो नमः लिङ्गे (मनसा)
ह्रीं शक्ति सहितायै नन्दा-शाकम्भरी-भीमा देवताभ्यो नमः नाभौ
क्लीं कीलक सहितायै अग्नि-वायु-सूर्य तत्त्वेभ्यो नमः गुह्ये
ऋग्-यजुः-साम स्वरुपिणी श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती देवताभ्यो नमः पादौ
श्री महादुर्गा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” –
नवार्ण मन्त्र पढ़कर शुद्धि करें ।
षडङ्ग-न्यास
कर-न्यास
ॐ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुम्
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्
अंग-न्यास :-
ॐ ऐं हृदयाय नमः
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा
ॐ क्लीं शिखायै वषट्
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम्
ॐ विच्चे नेत्र-त्रयाय वौषट्
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट्
अक्षर-न्यासः-
ॐ ऐं नमः शिखायां, ॐ ह्रीं नमः दक्षिण-नेत्रे, ॐ क्लीं नमः वाम-नेत्रे, ॐ चां नमः दक्षिण-कर्णे, ॐ मुं नमः वाम-कर्णे, ॐ डां नमः दक्षिण-नासा-पुटे, ॐ यैं नमः वाम-नासा-पुटे, ॐ विं नमः मुखे, ॐ च्चें नमः गुह्ये ।
व्यापक-न्यासः-
मूल मंत्र से चार बार सम्मुख दो-दो बार दोनों कुक्षि की ओर कुल आठ बार (दोनों हाथों से सिर से पैर तक) न्यास करें ।
दिङ्ग-न्यासः-
ॐ ऐं प्राच्यै नमः, ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः, ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः, ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः, ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः, ॐ क्लीं वायव्यै नमः, ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः, ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ।
! ध्यानम् !
ॐ खड्गं चक्रगदेषुचाप परिधाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः,
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।
नीलाश्मद्युतिमास्य पाददशकां सेवे महाकालिकाम्,
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ।। १।।
ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां,
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ।। २।।
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दशतीं घनान्तविलसच्छितांशुतुल्य प्रभाम् ।।
गौरीदेहसमुद्भुवां त्रिजगतामाधारभूतां महापूर्वामत्र
सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ।। ३।।
माला-पूजन -
माला स्फटिक की हो ,लाल मुंगे की या रुद्राक्ष की
माला के गन्धाक्षत करें
तथा “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मंत्र से पूजा करके प्रार्थना करें -
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्ति स्वरुपिणि ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तः तस्मान्मे सिद्धिदाभव ।।
ॐ अविघ्नं कुरुमाले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।
जपकाले च सिद्धयर्थं प्रसीद मम सिद्धये ।।
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।
इसके बाद
“ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”
इस मंत्र का 1,25.000 बार जप करें ।
जप दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राहमण भोज करावें।
! पाठ-समर्पण !
ॐ गुह्याति-गुह्य-गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत्-कृतं जपम् ।
सिद्धिर्मे भवतु देवि ! त्वत्-प्रसादान्महेश्वरि !
उक्त श्लोक पढ़कर देवी के वाम हस्त में जप समर्पित करें।
नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जप से होती है,
परंतु कोई साधक न कर पाये तो नित्य 1, 3, 5, 7, 11 या 21 माला मंत्र जप करना उत्तम होगा ,
इस विधि से सम्पूर्ण इच्छायें पूर्ण होती है,समस्त दुख समाप्त होते है और धन का आगमन भी सहज रूप से होता है।
यदि मंत्र सिद्ध नहीं हो रहा हो तो “ ऐं ”, “ ह्रीं ”, “ क्लीं ” तथा “ चामुण्डायै विच्चे ” के पृथक पृथक सवा लाख जप करें फिर नवार्ण का पुनश्चरण करें।
! ॐ नमश्चंडिकाये !
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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सर्व दोष नासक भगवती दुर्गा साधना
सर्व दोष नासक भगवती दुर्गा साधना
भगवती दुर्गा का रूप अपने आप मे साधको के मध्य हमेशा से ही अत्याधिक प्रचलित रहा है। बुराई पर अच्छाई की जित का प्रतीक है देवी। दुर्गा के कई रूपों की साधना तन्त्र ग्रंथो मे निहित है।
देवी नित्य कल्याणमई है तथा अपने साधको पर अपनी अमी द्रष्टि सदैव रखती है। भगवती की साधना करना जीवन का एक अत्यधिक उच्च सोपान है। व्यक्ति अपने कर्म दोषों से जब तक मुक्त नहीं होता तब तक उन्नति की गति मंद रूप से ही चलती है चाहे वह भौतिक क्षेत्र हो या आध्यात्मिक क्षेत्र हो।
भौतिक रूप मे चाहे हम कर्मफलो को प्राप्त कर दोषों का निवारण एक बार कर भी ले लेकिन मानसिक दोषों तथा मन मे जो उन दोषों का अंश रह गया है उसका शमन भी उतना ही ज़रुरी है जितना भौतिक दोषों का निवारण।
कई बार व्यक्ति अपने अत्यधिक परिश्रमो के बाद भी सफलता को प्राप्त नहीं कर सकता है। या फिर कोई न कोई बाधा व्यक्ति के सामने आ जाती है, या फिर परिवारजनो से अचानक ही अनबन होती रहती है। इन सब के पीछे कही न कही व्यक्ति के वे दोष शामिल होते है जो की पाप कर्मो के आचरण से उन पर हावी हो जाते है।
चाहे वह इस जन्म से सबंधित हो या पूर्व जन्म के संदर्भ मे। कर्म की गति न्यारी है लेकिन साधना का भी अपने आप मे एक विशेष महत्व है, साधना के माध्यम से हम अपने दोषों की समाप्ति कर सकते है, निवृति कर सकते है। इस प्रकार की साधनाओ मे भगवती की साधनाए आधार रूप रही है।
भगवती की साधना मात्रु स्वरुप मे ही ज्यादातर की जाती है। इस महत्वपूर्ण साधना को सम्प्पन करने पर साधक की भौतिक तथा आध्यात्मिक गति मंद से तीव्र हो जाती है, समस्त बाधाओ का निराकारण होता है तथा व्यक्ति अपने दोषों से मुक्त हो कर निर्मल चित युक्त बन जाता है।
आगे के सभी कार्यों मे देवी साधक की सहायता करती है तथा साधक का सतत कल्याण होता रहता है।
इस साधना को करने के लिए साधक के पास शुद्ध पारद दुर्गा विग्रह हो तो ज्यादा अच्छा है, लेकिन यह संभव नहीं हो तो साधक को देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को अपने सामने स्थापित करना चाहिए।
साधक इस साधना को रविवार से शुरू करे। रात्री काल मे 11 बजे के बाद इस साधना को शुरू करना चाहिए।
साधक लाल वस्त्र पहन कर लाल आसान पर बैठ कर देवी का पूजन करे तथा उसके बाद निम्न मंत्र की मूंगामाला से 21 माला जाप करे। साधक चाहे तो 51 माला भी जाप कर सकता है। दिशा उत्तर रहे।
ओम दुं सर्वदोष शमनाय सिंहवासिनि नमः
यह क्रम 11 दिनों तक रहे। 11 वे दिन साधक को मंत्रजाप के बाद शुद्ध घी की 108 आहुति यही मन्त्र से अग्नि मे प्रदान करे तो संभव हो।
साधना काल मे कमल की सुगंध आने लगती है तथा सौभाग्यशाली साधको को देवी बिम्बात्मक रूप से दर्शन भी देती है।
साधना के दिनों मे ही उत्तरोत्तर साधक का चित निर्मलता की और अग्रसर होता रहता है जिसे साधक स्पष्ट रूप से अनुभव कर पाएगा।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम साधना पीठ फॉउन्डेशन
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चमत्कारी यक्षिणी साधना
।। चमत्कारी यक्षिणी साधना ।।
यक्षिणी साधना की शुरुआत भगवान शिव जी की साधना से की जाती हैं. यक्षिणी साधना को करने से साधक की मनोकामनाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती हैं तथा इस साधना को करने से साधक को दुसरे के मन की बातों को जानने की शक्ति भी प्राप्त होती हैं, साधक की बुद्धि तेज होती हैं.
यक्षिणी साधना को करने से कठिन से कठिन कार्यों की सिद्धि जल्द ही हो जाती हैं.
बहुत से लोग यक्षिणी का नाम सुनते ही डर जाते हैं कि ये बहुत भयानक होती हैं, किसी चुडैल कि तरह, किसी प्रेतानी कि तरह, मगर ये सब मन के वहम हैं। यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर स्वयं भी यक्ष जाती के ही हैं।
यक्षिणी साधना का साधना के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ है। यक्षिणी प्रेमिका मात्र ही होती है, भोग्या नहीं, और यूं भी कोई स्त्री भोग कि भावभूमि तो हो ही नहीं सकती, वह तो सही अर्थों में सौन्दर्य बोध, प्रेम को जाग्रत करने कि भावभूमि होती है।
यद्यपि मन का प्रस्फुटन भी दैहिक सौन्दर्य से होता है किन्तु आगे चलकर वह भी भावनात्मक रूप में परिवर्तित होता है या हो जाना चाहिए और भावना का सबसे श्रेष्ठ प्रस्फुटन तो स्त्री के रूप में सहगामिनी बना कर एक लौकिक स्त्री के सन्दर्भ में सत्य है तो क्यों नहीं यक्षिणी के संदर्भ में सत्य होगी? वह तो प्रायः कई अर्थों में एक सामान्य स्त्री से श्रेष्ठ स्त्री होती है।
यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है 'जादू की शक्ति'। आदिकाल में प्रमुख रूप से ये रहस्यमय जातियां थीं:- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, भल्ल, किरात, नाग आदि। ये सभी मानवों से कुछ अलग थे।
इन सभी के पास रहस्यमय ताकत होती थी और ये सभी मानवों की किसी न किसी रूप में मदद करते थे।
देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नंबर आता है। कहते हैं कि यक्षिणियां सकारात्मक शक्तियां हैं तो पिशाचिनियां नकारात्मक। बहुत से लोग यक्षिणियों को भी किसी भूत-प्रेतनी की तरह मानते हैं, लेकिन यह सच नहीं है।
रावण के सौतेला भाई कुबेर एक यक्ष थे, जबकि रावण एक राक्षस। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं- इलविला और कैकसी। इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ।
इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस। जिस तरह प्रमुख 33 देवता होते हैं, उसी तरह प्रमुख 8 यक्ष और यक्षिणियां भी होते हैं।
गंधर्व और यक्ष जातियां देवताओं की ओर थीं तो राक्षस, दानव आदि जातियां दैत्यों की ओर। यदि आप देवताओं की साधना करने की तरह किसी यक्ष या यक्षिणियों की साधना करते हैं तो यह भी देवताओं की तरह प्रसन्न होकर आपको उचित मार्गदर्शन या फल देते हैं।
उत्लेखनीय है कि जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात 'यक्ष प्रश्न' किए थे।
उपनिषद की एक कथा अनुसार एक यक्ष ने ही अग्नि, इंद्र, वरुण और वायु का घमंड चूर-चूर कर दिया था।यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है।
किसी योग्य गुरु या जानकार से पूछकर ही यक्षिणी साधना करनी चाहिए। यहां प्रस्तुत है यक्षिणियों की चमत्कारिक जानकारी। यह जानकारी मात्र है साधक अपने विवेक से काम लें।
शास्त्रों में 'अष्ट यक्षिणी साधना' के नाम से वर्णित यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों की है।
ये प्रमुख यक्षिणियां है -
1. सुर सुन्दरी यक्षिणी, 2. मनोहारिणी यक्षिणी, 3. कनकावती यक्षिणी, 4. कामेश्वरी यक्षिणी, 5. रतिप्रिया यक्षिणी, 6. पद्मिनी यक्षिणी, 7. नटी यक्षिणी और 8. अनुरागिणी यक्षिणी।
प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होकर सहायता करती है, अतः साधक को चाहिए कि वह आठों यक्षिणियों को ही सिद्ध करने के लिए किसी योग्य गुरु या जानकार से इसके बारे में जानें।
मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र :
॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः॥
सुर सुन्दरी यक्षिणी :
इस यक्षिणी की विशेषता है कि साधक उन्हें जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होती ही है- चाहे वह मां का स्वरूप हो, चाहे वह बहन या प्रेमिका का। जैसी रही भावना जिसकी वैसे ही रूप में वह उपस्थित होती है या स्वप्न में आकर बताती है।
यदि साधना नियमपूर्वक अच्छे उद्देश्य के लिए की गई है तो वह दिखाई भी देती है। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है। देव योनी के समान सुन्दर सुडौल होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है।
सुर सुन्दरी मंत्र :
॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥
मनोहारिणी यक्षिणी :
मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के बाद यह यक्षिणी साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है कि वह दुनिया को अपने सम्मोहन पाश में बांधने की क्षमता हासिल कर लेता है। वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट करती है।
मनोहारिणी यक्षिणी का चेहरा अण्डाकार, नेत्र हरिण के समान और रंग गौरा है। उनके शरीर से निरंतर चंदन की सुगंध निकलती रहती है।
मनोहारिणी मंत्र :
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥
कनकावती यक्षिणी :
कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
यह यक्षिणी साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है। माना जाता है कि यह यक्षिणी यह लाल रंग के वस्त्र धारण करने वाली षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा है।
कनकावती मंत्र :
ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥
कामेश्वरी यक्षिणी :
यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख की कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में उपस्थित होकर साधक की इच्छापूर्ण करती है। साधक को जब भी किसी चीज की आवश्यकता होती है तो वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है।
यह यक्षिणी सदैव चंचल रहने वाली मानी गई है। इसकी यौवन युक्त देह मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है।
कामेश्वरी मंत्र :
ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥
रति प्रिया यक्षिणी :
इस यक्षि़णी को प्रफुल्लता प्रदान करने वाली माना गया है। रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है।
साधक-साधिका को यह कामदेव और रति के समान सौन्दर्य की उपलब्धि कराती है। इस यक्षिणी की देह स्वर्ण के समान है जो सभी तरह के मंगल आभूषणों से सुसज्जित है।
रति प्रिया मंत्र :
ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥
पदमिनी यक्षिणी :
पद्मिनी यक्षिणी अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति की ओर अग्रसर करती है।
यह हमेशा साधक के साथ रहकर हर कदम पर उसका हौसला बढ़ाती है। श्यामवर्णा, सुंदर नेत्र और सदा प्रसन्नचित्र करने वाली यह यक्षिणी अत्यक्षिक सुंदर देह वाली मानी गई है।
पद्मिनी मंत्र :
ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥
नटी यक्षिणी :
यह यक्षिणी अपने साधक की पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है।
यह सभी तरह की घटना-दुर्घटना से भी साधक को सुरक्षित बचा ले आती है। उल्लेखनीय है कि नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था।
नटी मंत्र :
ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥
अनुरागिणी यक्षिणी :
यह यक्षिणी यदि साधक पर प्रसंन्न हो जाए तो वह उसे नित्य धन, मान, यश आदि से परिपूर्ण तृप्त कर देती है। अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है और यह साधक की इच्छा होने पर उसके साथ रास-उल्लास भी करती है।
अनुरागिणी मंत्र :
ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥
तंत्र विज्ञान के रहस्य को यदि साधक पूर्ण रूप से आत्मसात कर लेता है, तो फिर उसके सामाजिक या भौतिक समस्या या बाधा जैसी कोई वस्तु स्थिर नहीं रह पाती।
तंत्र विज्ञान का आधार ही है, कि पूर्ण रूप से अपने साधक के जीवन से सम्बन्धित बाधाओं को समाप्त कर एकाग्रता पूर्वक उसे तंत्र के क्षेत्र में बढ़ने के लिए अग्रसर करे।
साधक सरलतापूर्वक तंत्र कि व्याख्या को समझ सके, इस हेतु तंत्र में अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं, जिनमे अत्यन्त गुह्य और दुर्लभ साधानाएं वर्णित है।
साधक यदि गुरु कृपा प्राप्त कर किसी एक तंत्र का भी पूर्ण रूप से अध्ययन कर लेता है, तो उसके लिए पहाड़ जैसी समस्या से भी टकराना अत्यन्त लघु क्रिया जैसा प्रतीत होने लगता है।
साधक में यदि गुरु के प्रति विश्वास न हो, यदि उसमे जोश न हो, उत्साह न हो, तो फिर वह साधनाओं में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। साधक तो समस्त सांसारिक क्रियायें करता हुआ भी निर्लिप्त भाव से अपने इष्ट चिन्तन में प्रवृत्त रहता है।
ऐसे ही साधकों के लिए 'उड़ामरेश्वर तंत्र' मे एक अत्यन्त उच्चकोटि कि साधना वर्णित है, जिसे संपन्न करके वह अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है तथा अपने जीवन में पूर्ण भौतिक सुख-सम्पदा का पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकता है।
।।यक्षिणी साधना को करने का शुभ दिन ।।
ज्योतिषों के अनुसार यदि आषाढ़ माह में शुक्रवार के दिन पूर्णिमा हैं तो यक्षिणी साधना को करने का सबसे शुभ दिन अगले सप्ताह में आने वाला गुरुवार हैं.
इसके अलावा यक्षिणी साधना को करने की शुभ तिथि श्रावण मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा हैं.
यह यक्षिणी साधना को करने का शुभ दिन इसलिए माना जाता हैं. क्योंकि इस दिन चंद्रमा में शक्ति अधिक होती हैं. जिससे साधक को उत्तम फल की प्राप्ति होती हैं.
यक्षिणी साधना की विधि –
यक्षिणी साधना की शुरुआत भगवान शिव जी की साधना से की जाती हैं
शिवजी का मन्त्र –
ऊँ रुद्राय नम: स्वाहा-ऊँ त्रयम्बकाय नम: स्वाहा
ऊँ यक्षराजाय स्वाहा-ऊँ त्रयलोचनाय स्वाहा
1. यक्षिणी साधना को करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और पूजा की सारी सामग्री को इकट्ठा कर लें.
2. यक्षिणी साधना का आरम्भ करने के लिए सबसे पहले शिव जी की पूजा सामान्य विधि से करें.
3. इसके बाद एक केले के पेड़ या बेलगिरी के पेड़ के नीचे यक्षिणी की साधना करें.
4. यक्षिणी साधना को करने से आपका मन स्थिर और एकाग्र हो जायेगा. इसके बाद निम्नलिखित मन्त्रों का जाप पांच हजार बार करें.
5. जाप करने के बाद घर पहुंच कर कुंवारी कन्याओं को खीर का भोजन करायें.
।।यक्षिणी साधना की दूसरी विधि ।।
यक्षिणी साधना को करने का एक और तरीका हैं. इस विधि के अनुसार यक्षिणी साधना करने के लिए वट के या पीपल के पेड़ नीचे शिवजी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना कर लें.
अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण पांच हजार बार करते हुए पेड़ की जड में जल चढाए।
।।यक्षिणी साधना के नियम ।।
1.यक्षिणी साधना को करने लिए ब्रहमचारी रहना बहुत ही जरूरी हैं.
2. इस साधना को प्राम्भ करने के बाद साधक को अपने सभी कार्य भूमि पर करने चाहिए.
3.यक्षिणी साधना की सिद्धि हेतु साधक को नशीले पदार्थों का एवं मांसाहारी भोजन का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए.
4.यक्षिणी साधना को करते समय सफेद या पीले रंग के वस्त्रों को ही केवल धारण करना चाहिए.
5.इस साधना को करने वाले साधक को साबुन, इत्र या किसी प्रकार के सुगन्धित तेल का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए तथा उसे अपने क्रोध पर काबू करना चाहिए।
चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है।
किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।
साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे।
अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।बिना गुरु के साधना करने पर अहित होने से हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Wednesday, May 16, 2018
हनुमान मंत्र (जंजीरा)
हनुमान मंत्र (जंजीरा)
हनुमान मंत्र में है हर मर्ज का इलाज
मनुष्य शारीरिक, मानसिक और बाहरी (भूत-प्रेत) नजर इत्यादि बीमारियों से परेशान रहता है। शारीरिक बीमारी के लिए डॉक्टर या वैद्य के पास जाकर मनुष्य ठीक हो जाता है। मानसिक बीमारी का सरलतम उपाय हो जाता है। परंतु मनुष्य जब भूत-प्रेत अथवा नजर, हाय या किसी दुष्ट आत्मा के जाल में फंस जाता है तब वह परेशान हो जाता है।
इसके इलाज के लिए स्वयं एवं परिवार वाले हर जगह जाते हैं- जैसे तांत्रिक, मांत्रिक, जानकार के पास। परंतु मरीज ठीक नहीं होता है। मरीज की हालत बिगड़ने लगती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मरीज शारीरिक एवं मानसिक दोनों बीमारी से ग्रस्त है।
ऐसे में पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना करें। मरीज अवश्य ही ठीक हो जाएगा। यहां हम आपको श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा) दे रहे हैं। जो इक्कीस दिन में सिद्ध हो जाता है। इसे सिद्ध करके दूसरों की सहायता करें और उनकी प्रेत-डाकिनी, नजर आदि सब ठीक करें।
श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा)
ॐ हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान,
हाथ में लड्डू मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान,
अंजनी का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ
नौ खंड का भूत, जाग जाग हड़मान (हनुमान)
हुंकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, ई घट
पिंड की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुंवर हड़मान (हनुमान) करें।
इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। हनुमान मंदिर में जाकर साधक अगरबत्ती जलाएं। इक्कीसवें दिन उसी मंदिर में एक नारियल व लाल कपड़े की एक ध्वजा चढ़ाएं। जप के बीच होने वाले अलौकिक चमत्कारों का अनुभव करके घबराना नहीं चाहिए। यह मंत्र भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, नजर, टपकार व शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत सफल है।
चेतावनी :
हनुमान जी की कोई भी साधना अत्यंत सावधानी और सतर्कता से करना चाहिए। यह साधना अगर पलट कर आ जाए तो साधक पर ही भारी पड़ सकती है। अत: शुद्धता, पवित्रता और एकाग्रता का विशेष ध्यान रखा जाए।
राजगुरु जी
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दत्तात्रेय आहूत साधना
दत्तात्रेय आहूत साधना
भगवान श्री दत्तात्रेय तंत्रजगत और पूर्ण साधना जगत की एक एसी महानतम विभूति तथा पूर्ण शक्ति सम्प्पन देव है जिनकी कृपा प्राप्ति साधको के मध्य एक उच्चकोटि का भाग्य ही माना जाता है.
नाथ सम्प्रदाय के महासिद्ध जिनकी साधना ज्ञान की थाह पाना संभव ही नहीं है, ऐसे ब्रह्मांडीय पुरुष भी जो ज्ञानपुंज के सामने अपना सर हमेशा जुका कर उनकी अभ्यर्थना करते हो वो दिव्य देव श्री भगवान दत्तात्रेय के क्या कोई लेखनी लिख सकती है?
त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा विष्णु और महेश की सम्मिलित शक्ति से सम्प्पन भगवान दत्तात्रय योगविद्या तथा तंत्र विद्या के पूर्णतम ज्ञाता है.
इन्ही की प्रेरणा के फलस्वरुप नाथयोगियों ने लोकभाषा में करोडो शाबर मंत्रो की रचना की तथा उनको जनसाधारण के मध्य पहोचाया. ना सिर्फ इतना ही, बल्कि इन मंत्रो के माध्यम से व्यक्ति महासिद्धो के शक्तियों के साथ साथ देव शक्ति तथा इतरयोनी की शक्तियों के सहयोग से अपनी सामान्य से सामान्य बाधाओं के साथ साथ उच्चतम से उच्चतम आध्यात्मिक धरातल का स्पर्श कर सके ऐसे प्रयोगों का आविष्कार इस महान ऋषि ने किया.
अघोर साधनाओ के आदि साधक तथा मुख्य प्रचारक कई हज़ारो वर्षों से शशरीर इस पृथ्वी पर विद्यमान है जिनका स्थान दत्तपहाड़ी गिरनार श्रंखला में है तथा कई साधकोने उनके शशरीर दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त किया है. सेकडो वर्षों से समय समय पर कई सिद्ध गुरु अपने शिष्यों के मध्य ऐसे प्रयोग प्रदान करते थे जिसके माध्यम से भगवान दत्तात्रेय का आशीर्वचन उनको प्राप्त हो तथा अपने भौतिक तथा आध्यात्मिक जीवन में वे सक्षमता को प्राप्त कर सके.
लेकिन ऐसे प्रयोग दुर्लभ और गुरुगम्य ही रहे जो की जनसामन्य तक नहीं पहोच पाए. यूँ तो भगवान दत्तात्रय से सबंधित कई गुप्त विधान है जिसके माध्यम से साधक उनके प्रत्यक्ष दर्शन कर सकते है लेकिन वे विधान अति असहज, श्रमसाध्य तथा कठिन है जिसमे साधक को एक निश्चित जीवन क्रम कई दिनों या महीनो तक अपनाना पड़ता है जो की आज के युग में साधारणतः संभव नहीं है.
लेकिन इन प्रयोगों में एक प्रयोग दत्तात्रेय आहूत प्रयोग भी है, जो की सिर्फ एक रात्री में ही सम्प्पन हो जाता है जिसके माध्यम से साधक उसी रात्री में स्वप्न में भगवान दत्तात्रेय के दर्शन प्राप्त कर प्रत्यक्ष कृपाद्रष्टि का साक्षी बन जाता है.
अगर साधक की कोई समस्या है तो उसका निराकरण भी उसे इस प्रयोग के माध्यम से प्राप्त हो सकता है जिसमे स्वयं भगवान दत्तात्रेय उनको मार्गदर्शन प्रदान करते है. यह विशेष प्रयोग को पारदशिवलिंग के माध्यम से पूर्ण सम्प्पन किया जाता है.
जब बात पारद की की जाती है तो इसका अर्थ किसी भी प्रकार के विग्रह का विज्ञापन नहीं होता है,अपितु पारद से ही पूर्णता प्राप्ति संभव है,अरे जब अंतिम तंत्र अर्थात पारद तंत्र का प्रयोग ही स्वयं की साधना उन्नती के लिए किया जाये तो असफलता भला कैसे मिलेगी... प्रयोग की विधि इस प्रकार है.
यह प्रयोग साधक किसी भी शुभ दिन शुरू कर सकता है.
साधक रात्री में ही इस प्रयोग को कर सकता है. साधक स्नान आदि से निवृत हो कर, लाल वस्त्र को धारण करे तथा लाल आसन पर बैठ जाए. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए.
साधक को गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप करना चाहिए.
साधक को अपने सामने एक बाजोट पर विशुद्ध पारद से निर्मित प्राण प्रतिष्ठित तथा चैतन्य पारदशिवलिंग को स्थापित करना चाहिए तथा पारदशिवलिंग के पास ही भगवान दत्तात्रेय का चित्र या यंत्र रखे.
साधक भगवान दत्तात्रेय के यंत्र या चित्र का पूजन करे उसके बाद साधक पारद शिवलिंग का पूजन सम्प्पन करे.
साधक को पूजन में गुग्गल का धुप प्रज्वलित करना चाहिए. दीपक तेल का हो. साधक भोग के लिए किसी भी वस्तु का प्रयोग कर सकता है.
पारदशिवलिंग का पूजन करने के बाद साधक रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र का जाप करे.
ॐ द्रां द्रिं द्रुं दत्तात्रेयाय स्वप्ने प्रकट प्रकट अवतर अवतर नमः
(om draam drim drum dattatreyaay swapne prakat prakat avatar avatar namah)
मन्त्रजाप पूर्ण होने पर साधक भगवान दत्तात्रेय को वंदन करे तथा स्वप्न में प्रकट होने के लिए प्रार्थना करे तथा माला को अपने तकिये के निचे रख कर सो जाए.
इस प्रकार करने से भगवान दत्तात्रेय साधक को रात्री में स्वप्न में दर्शन देते है तथा उसकी जिज्ञासा को शांत करते है. साधक माला को कई बार उपयोग में ला सकता है
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम साधना पीठ फॉउन्डेशन
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Tuesday, May 15, 2018
क्या आप भी साधना करना चाहते हैं?
क्या आप भी साधना करना चाहते हैं? तो आज ही अपने गुरु से सम्पर्क कर किसी साधना की शुरुवात करें। तारा महाविद्या - करोडपति बनना है आसान.
This Sadhana is mainly designed to get wealth from goddess Tara. She is capable to give gold coin. Tara Sadhana is accomplished for gain of knowledge, intelligence, victory and totality in life. Also this Sadhana is done to avert untimely death, accidents, financial progress and giving a boost to the business. In fact in every condition this is suitable and best but it should be done in guide of Guru. This is whole process.
यह विद्या साधकों को बुद्धि, ज्ञान, शक्ति, जय एवं श्री देने वाली तथा भय, मोह एवं अपमृत्यु का निवारण करने वाली मानी गयी हैं।
First take water in to left hand palm and chant this mantra. Left hand should be covered with right hand palm.
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्ववस्थां गतोऽपि वा | य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि: ||
इस पानी को अपने उपर छिड्क ले
अचमन, स्थान शुद्धि, आदि करने के बाद गणपति और गुरु की पुजा शुरु करे।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः ॥
First take a piece of wood and place it. The direction of seeker should be toward east side. Means face of sadhak should be toward east or north. Place Tara Yantra and picture of Devi Tara in front of you. Picture and Yantra should be place on Rose flower. Rose is favorite one of devi Tara. Start this process
Take few Rose in palm and do Dhyan of Devi by given Mantra.
प्रत्यालीढ पदार्पितांगघ्रिशवहृद घोराट्टहासा परा,खडगेन्दीवरकर्तृं खर्परभुजा हूंकार-बीजोद-भवा खर्वानील विशालपिंगल जटा जूटैकनागैर्युता,जाड्य न्यस्य कपालिके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारास्वयम
सीधे हाथ मे जल लेकर कहे -
‘ॐ अस्य श्रीतारांमन्त्रस्य अक्षोभ्यऋषिः बृहतीछन्दः तारादेवता ह्रीं बीजं हुं शक्तिः आत्मनोऽभीष्टसिद्धयर्थ तारामन्त्रजपे विनियोगः । जल छोड दे
फिर करन्यास और अन्य न्यास को करने के बाद मे नीचे लिखा प्रक्रिया करे।
ऋष्यादिन्यास -
‘ॐ अक्षोभ्यऋषये नमः शिरसि
ॐ बृहतीछन्दसे नमः मुखे,
ॐ तारादेवतायै नमः हृदि,
ॐ ह्रीं (हूँ) बीजाय नमः गुह्ये,
ॐ हूँ (फट्) शक्तये नमः पादयोः
ॐ स्त्रीं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे
कराङ्गन्यास -
ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः,
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्या नमः,
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः,
ॐ ह्रैं अनकामिकाभ्यां नमः,
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः,
मुल मंत्र
“ॐ ह्रीं स्त्री हुं फट”
की 39 माला रोज करें। घी के दीपक से आरती करें जो भी कर सकते हैं चाहे अम्बे की करें फिर नमस्कार करें और कहे।
ॐ गुह्यातिगुह्या गोप्ती त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम,सिद्धिर्भवतु मे महादेवी त्वत प्रसादान्देवी
मंत्र जप समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में ही सोयें।
सभी सामन को पुजा वाले कपडे मे लपेट कर कलवा से बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें। । कुछ सिक्के भी पानी मे डाल दे। हाथ जोडकर घर आये किसी से बात ना करें और पीछे मुडकर ना देखे तो ज्यादा अच्छा हैं।
वरना प्रभाव कम हो जाता हैं। घर पहुँचते ही साधना सिद्धि हो चुकी होगी। धन पाने के नये मार्ग स्वयं माँ खोलती जायेगी इसके अलावा आपके स्वास्थ, बुद्धि, वाणी का ध्यान रखेगी
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Monday, May 14, 2018
धूमावती
दारिद्र्य नाशक धूमावती साधना जीवन में कई बार ऐसे पल आ जाते है की हम निराश हो जाते है,अपनी गरीबी से अपनी तकलीफों से,और इस बात को नहीं नाकारा जा सकता की हर इन्सान को धन की आवश्यकता होती है.
जीवन के ९९ % काम धन के आभाव में अधूरे है यहाँ तक की साधना करने के लिए भी धन लगता है,तो क्यों और कब तक बैठे रहोगे इस गरीबी का रोना लेकर क्यों ना इसे उठा कर फेक दिया जाये जीवन से.
मेरे सभी प्यारे भाइयो और बहनों के लिए एक विशेष साधना दे रहा हु जिससे उनके आर्थिक कष्ट माँ की कृपा से समाप्त हो जायेंगे.
ये मेरी अनुभूत साधना है आप संपन्न करे और माँ की कृपा के पात्र बने.
साधना सामग्री.
एक सूपड़ा,.
स्फटिक या तुलसी माला.
धूमावती यंत्र
विधि:
यह साधना धूमावती जयंती से आरम्भ करे,समय रात्रि १० बजे का होगा,आप सफ़ेद वस्त्र धारण कर सफ़ेद आसन पर पूर्व मुख कर बैठ जाये.
सामने बजोट पर सूपड़ा रख कर उसमे सफ़ेद वस्त्र बिछा दे फिर उसमे धूमावती यन्त्र स्थापित करे,इसके बाद गाय के कंडे से बनी भस्म यन्त्र पर अर्पण करे घी का दीपक जलाये,पेठे का भोग अर्पण करे,
माँ से प्रार्थना करे की में यह साधना अपनी दरिद्रता से मुक्ति के लिए कर रहा हु आप मेरी साधना को सफलता प्रदान करे तथा मेरे सभी कष्टों को दूर कर दे.
इसके बाद निम्न मंत्र की एक माला करे .
ॐ धूम्र शिवाय नमः
इसके बाद
धूं धूं धूमावती ठह ठह
की २१ माला करे.फिर पुनः एक माला पहले वाले मंत्र की करे.
जप के बाद दिल से माँ से प्रार्थना करे और इस साधना को २१ दिन तक करे.
साधना पूरी होने के बाद सुपडे को यन्त्र सहित उठाकर माँ से प्रार्थना करे की माँ आप हमारी सभी पापो को क्षमा करे और आज आप हमारे जीवन के सारे दुःख सारी दरिद्रता को आपके इस पवित्र सुपडे में भर के ले जाये है.
माँ हमारे जीवन में कभी दरिद्रता ना लोटे ऐसी दया करे.इसके बाद.
सुपडे और यन्त्र को जल में प्रवाहित कर दे या किसी निर्जन स्थान में रख दे.
निश्चित माँ की आप पर कृपा बरसेगी और जीवन की दरिद्रता कोसो दूर चली जाएगी.साधना के पहले गुरु पूजन तथा गणपति पूजन करे ये हर बार बताना आवश्यक नहीं है.
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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तंत्र निवारण प्रयोग
तंत्र निवारण प्रयोग
यह प्रयोग बहुत ही तीक्ष्ण और प्रभावसालि है।। इसके करने से दूकान मकान या किसी भी व्यक्ति पे किया अभिचार ख़त्म हो जाता है।।
रात शमशान गया तो किसी और काम से मगर इस मंत्र को सिद्ध कर डाला।। एक बुराई करने गया था वहा एक अच्छा मंत्र मिल गया।।
किसी भी दिन लाल वस्त्र धारण करे उत्तर दिशा में मुँह करके रात्री 10 बजे के बाद ये प्रयोग करे।।रुद्राक्ष की माला और इसमें 108 रक्त गूंजा की जरुरत पड़ती है।।
21 माला का प्राबधान है ।।पहले गुरु पूजन करे गणेश पूजन कर 21 माला मंत्र जाप करे।।जब जाप खत्म हो जाए तो अग्नि जलाकर 108 आहुति रक्त गूंजा की आहुति दे।।
और अगले सारी सामग्री किसी बहते पानी में या कुए नदी तालाब में बहा दे ।।
इस मंत्र को करने में बहुत बेचैनी हो सकती घबराहट हो सकती है लेकिन घबराये ना बस गुरु का नाम लेकर करे सबका कल्याण होगा
मंत्र---
ॐ क्रीं धू फट ।।
ॐ kreeng dhoom fat।।
मात्र यही मंत्र है
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम ( साधना पीठ )
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Friday, May 11, 2018
श्रीयंत्र
श्रीयंत्र
यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्राचीन यन्त्र है,इसकी अधिष्टात्री देवी स्वयं श्रीविद्या अर्थात त्रिपुर सुन्दरी हैं,और उनके ही रूप में इस यन्त्र की मान्यता है।
यह बेहद शक्तिशाली ललितादेवी का पूजा चक्र है,इसको त्रैलोक्य मोहन अर्थात तीनों लोकों का मोहन यन्त्र भी कहते है।
यह सर्व रक्षाकर सर्वव्याधिनिवारक सर्वकष्टनाशक होने के कारण यह सर्वसिद्धिप्रद सर्वार्थ साधक सर्वसौभाग्यदायक माना जाता है। इसे गंगाजल और दूध से स्वच्छ करने के बाद पूजा स्थान या व्यापारिक स्थान तथा अन्य शुद्ध स्थान पर रखा जाता है।
इसकी पूजा पूरब की तरफ़ मुंह करके की जाती है,श्रीयंत्र का सीधा मतलब है,लक्ष्मी यंत्र जो धनागम के लिये जरूरी है।
श्रीयंत्र अलौकिक शक्ति व चमत्कारों से परिपूर्ण गुप्त शक्तियों का प्रजनन केन्द्र बिद्नु कहा गया है। जिस प्रकार से सब कवचों से चन्डी कवच सर्वश्रेष्ठ कहा गया है,उसी प्रकार से सभी देवी देवताओं के यंत्रों में श्रीदेवी का यंत्र सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।
इसी कारण से इसे यंत्रराज की उपाधि दी गयी है। इसे यन्त्रशिरोमणि भी कहा जाता है। दीपावली धनतेरस बसन्त पंचमी अथवा पौष मास की संक्रान्ति के दिन यदि रविवार हो तो इस यंत्र का निर्माण व पूजन विशेष फ़लदायी माना गया है
श्रीयंत्र का मूल मंत्र:-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः
सिद्ध श्री यंत्र ही देता है फल आज बाजार में रत्नों के बने श्री यंत्र आसानी से प्राप्त हो जाते हैं किंतु वे सिद्ध नहीं होते। सिद्ध श्री यंत्र में विधिपूर्वक हवन-पूजन करके देवी-देवताओं को प्रतिष्ठित किया जाता है तब श्री यंत्र समृद्धि देने वाला बनता है।
यह आवश्यक नहीं कि श्री यंत्र रत्नों का बना हो। श्री यंत्र तांबे पर बना हो अथवा भोज पत्र पर जब तक उसमें मंत्र शक्ति विधिपूर्वक प्रवाहित नहीं की गई हो तब तक वह श्री प्रदाता अर्थात धन प्रदान करने वाला नहीं होता।
पौराणिक कथा
श्री यंत्र के संदर्भ में एक कथा का वर्णन मिलता है। उसके अनुसार एक बार आदि शंकराचार्यजी ने कैलाश मान सरोवर पर भगवान शंकर को कठिन तपस्या कर प्रसन्न कर दिया। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने के लिए कहा।
आदि शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा। भगवान शंकर ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरूप श्री यंत्र की महिमा बताई और कहा- यह श्री यंत्र मनुष्यों का सर्वथा कल्याण करेगा।
श्री यंत्र परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महा त्रिपुर सुदंरी का आराधना स्थल है क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास और रथ है। श्री यंत्र में देवी स्वयं मूर्तिवान होकर विराजती हैं इसीलिए श्री यंत्र विश्व का कल्याण करने वाला है।
आज के यांत्रिक युग में जबकि मनुष्य अनेक प्रकार की समस्याओं से आक्रान्त है, अगर वह श्रीयंत्र की स्थापना करें तो यह यंत्र उसके लिए रामबाण सिद्व हो सकता है।
इस यंत्र को पूर्ण श्रद्वा, विश्वास से अपने व्यवसाय, दुकान, ऑफिस , फैक्टरी आदि में स्थापित करना चाहिए। इसकी प्रतिदन पूजा से श्रीलक्ष्मी प्रसन्न होती है।
तथा साथक धनाढय बनता है आज जबकि वास्तु का युग है, प्रत्येक व्यक्ति वास्तु के द्वारा सुख भी प्राप्ति करना चाहता है। ऐसे में श्रीयंत्र की स्थापना और भी आवश्यक हो जाती है।
आदिकालीन विद्या का द्योतक हैं वास्तव में प्राचीनकाल में भी वास्तुकला अत्यन्त समृद्व थी। श्रीयंत्र में सर्वप्रथम धुरी में एक बिन्दु और चारो तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते है जो शक्ति का प्रदर्शन करते हैं और चार ऊपर की तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते हैं जो शक्ति का प्रदर्शन करते है और चार ऊपर की तरफ शिव ती तरफ दर्शाते है।
अन्दर की तरफ झुके पांच-पांच तत्व, पांच संवेदनाएँ, पांच अवयव, तंत्र और पांच जन्म बताते है। ऊपर की ओर उठे चार जीवन, आत्मा, मेरूमज्जा व वंशानुगतता का प्रतिनिधत्व करते है।
चार ऊपर और पांच बाहारी ओर के त्रिकोण का मौलिक मानवी संवदनाओं का प्रतीक है। यह एक मूल संचित कमल है। आठ अन्दर की ओर व सोलह बाहर की ओर झुकी पंखुड़ियाँ है। ऊपर की ओर उठी अग्नि, गोलाकर, पवन,समतल पृथ्वी व नीचे मुडी जल को दर्शाती है।
ईश्वरानुभव, आत्मसाक्षात्कार है। यही सम्पूर्ण जीवन का द्योतक है। यदि मनुष्य वास्तव में सुखी और सृमद्व होना चाहता है तो उसे श्रीयंत्र स्थापना अवश्य करनी चाहिये।
अनन्त ऐश्वर्य एवं लक्ष्मी प्राप्ति के मुमक्ष को चाहिए कि श्री यंत्र के सम्मुख श्री सूक्त का पाठ करो पंचमेवा देवी को भोग लगायें तो शीघ्र ही इसका चमत्कार होता है।
यंत्र का उपयोगइस यंत्र को व्यापार वृद्धि के लिए तिजोरी में रखा जाता है धान्य वृद्धि के लिए धान्य में रखा जाता है
इस यंत्र को वेलवृक्ष की छाया में उपासना करने से लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है और अचल सम्पत्ति प्रदान करती हैं।
इस यंत्र को सम्मुख रखकर सूखे वेलपत्र घी में डुबोकर वेल की समिधा में आहूति डालने से मां भगवती शीघ्र ही प्रसन्न होती है एवं धन ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा जीवन भर लक्ष्मी के लिए दुखी नहीं होना पड़ता।
मान्यता है कि भोजपत्र की अपेक्षा तांबे पर बने श्रीयंत्र का फल सौ गुना, चांदी में लाख गुना और सोने पर निर्मित श्रीयंत्र का फल करोड़ गुना होता है। 'रत्नसागर' में रत्नों पर भी श्रीयंत्र बनाने की बात लिखी गई है।
इनमें स्फटिक पर बने श्रीयंत्र को सबसे अच्छा बताया गया है। विद्वानों की ऐसी धारणा है कि भोजपत्र पर 6 वर्ष तक, तांबे पर 12 वर्ष तक, चांदी में 20 वर्ष तक और सोना धातु में श्रीयंत्र आजीवन प्रभावी रहता है।
केसर की स्याही से अनार की कलम द्वारा भोजपत्र पर श्रीयंत्र बनाया जाना चाहिए। धातु पर निर्मित श्रीयंत्र की रेखाएं यदि खोदकर बनाई गई हों और गहरी हों, तो उनमें चंदन, कुमकुम आदि भरकर पूजन करना चाहिए।
दीपावली की रात गृहस्थ के लिए श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है।
इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः
की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
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श्रीयंत्र
श्रीयंत्र
यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्राचीन यन्त्र है,इसकी अधिष्टात्री देवी स्वयं श्रीविद्या अर्थात त्रिपुर सुन्दरी हैं,और उनके ही रूप में इस यन्त्र की मान्यता है।
यह बेहद शक्तिशाली ललितादेवी का पूजा चक्र है,इसको त्रैलोक्य मोहन अर्थात तीनों लोकों का मोहन यन्त्र भी कहते है।
यह सर्व रक्षाकर सर्वव्याधिनिवारक सर्वकष्टनाशक होने के कारण यह सर्वसिद्धिप्रद सर्वार्थ साधक सर्वसौभाग्यदायक माना जाता है। इसे गंगाजल और दूध से स्वच्छ करने के बाद पूजा स्थान या व्यापारिक स्थान तथा अन्य शुद्ध स्थान पर रखा जाता है।
इसकी पूजा पूरब की तरफ़ मुंह करके की जाती है,श्रीयंत्र का सीधा मतलब है,लक्ष्मी यंत्र जो धनागम के लिये जरूरी है।
श्रीयंत्र अलौकिक शक्ति व चमत्कारों से परिपूर्ण गुप्त शक्तियों का प्रजनन केन्द्र बिद्नु कहा गया है। जिस प्रकार से सब कवचों से चन्डी कवच सर्वश्रेष्ठ कहा गया है,उसी प्रकार से सभी देवी देवताओं के यंत्रों में श्रीदेवी का यंत्र सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।
इसी कारण से इसे यंत्रराज की उपाधि दी गयी है। इसे यन्त्रशिरोमणि भी कहा जाता है। दीपावली धनतेरस बसन्त पंचमी अथवा पौष मास की संक्रान्ति के दिन यदि रविवार हो तो इस यंत्र का निर्माण व पूजन विशेष फ़लदायी माना गया है
श्रीयंत्र का मूल मंत्र:-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः
सिद्ध श्री यंत्र ही देता है फल आज बाजार में रत्नों के बने श्री यंत्र आसानी से प्राप्त हो जाते हैं किंतु वे सिद्ध नहीं होते। सिद्ध श्री यंत्र में विधिपूर्वक हवन-पूजन करके देवी-देवताओं को प्रतिष्ठित किया जाता है तब श्री यंत्र समृद्धि देने वाला बनता है।
यह आवश्यक नहीं कि श्री यंत्र रत्नों का बना हो। श्री यंत्र तांबे पर बना हो अथवा भोज पत्र पर जब तक उसमें मंत्र शक्ति विधिपूर्वक प्रवाहित नहीं की गई हो तब तक वह श्री प्रदाता अर्थात धन प्रदान करने वाला नहीं होता।
पौराणिक कथा
श्री यंत्र के संदर्भ में एक कथा का वर्णन मिलता है। उसके अनुसार एक बार आदि शंकराचार्यजी ने कैलाश मान सरोवर पर भगवान शंकर को कठिन तपस्या कर प्रसन्न कर दिया। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने के लिए कहा।
आदि शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा। भगवान शंकर ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरूप श्री यंत्र की महिमा बताई और कहा- यह श्री यंत्र मनुष्यों का सर्वथा कल्याण करेगा।
श्री यंत्र परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महा त्रिपुर सुदंरी का आराधना स्थल है क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास और रथ है। श्री यंत्र में देवी स्वयं मूर्तिवान होकर विराजती हैं इसीलिए श्री यंत्र विश्व का कल्याण करने वाला है।
आज के यांत्रिक युग में जबकि मनुष्य अनेक प्रकार की समस्याओं से आक्रान्त है, अगर वह श्रीयंत्र की स्थापना करें तो यह यंत्र उसके लिए रामबाण सिद्व हो सकता है।
इस यंत्र को पूर्ण श्रद्वा, विश्वास से अपने व्यवसाय, दुकान, ऑफिस , फैक्टरी आदि में स्थापित करना चाहिए। इसकी प्रतिदन पूजा से श्रीलक्ष्मी प्रसन्न होती है।
तथा साथक धनाढय बनता है आज जबकि वास्तु का युग है, प्रत्येक व्यक्ति वास्तु के द्वारा सुख भी प्राप्ति करना चाहता है। ऐसे में श्रीयंत्र की स्थापना और भी आवश्यक हो जाती है।
आदिकालीन विद्या का द्योतक हैं वास्तव में प्राचीनकाल में भी वास्तुकला अत्यन्त समृद्व थी। श्रीयंत्र में सर्वप्रथम धुरी में एक बिन्दु और चारो तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते है जो शक्ति का प्रदर्शन करते हैं और चार ऊपर की तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते हैं जो शक्ति का प्रदर्शन करते है और चार ऊपर की तरफ शिव ती तरफ दर्शाते है।
अन्दर की तरफ झुके पांच-पांच तत्व, पांच संवेदनाएँ, पांच अवयव, तंत्र और पांच जन्म बताते है। ऊपर की ओर उठे चार जीवन, आत्मा, मेरूमज्जा व वंशानुगतता का प्रतिनिधत्व करते है।
चार ऊपर और पांच बाहारी ओर के त्रिकोण का मौलिक मानवी संवदनाओं का प्रतीक है। यह एक मूल संचित कमल है। आठ अन्दर की ओर व सोलह बाहर की ओर झुकी पंखुड़ियाँ है। ऊपर की ओर उठी अग्नि, गोलाकर, पवन,समतल पृथ्वी व नीचे मुडी जल को दर्शाती है।
ईश्वरानुभव, आत्मसाक्षात्कार है। यही सम्पूर्ण जीवन का द्योतक है। यदि मनुष्य वास्तव में सुखी और सृमद्व होना चाहता है तो उसे श्रीयंत्र स्थापना अवश्य करनी चाहिये।
अनन्त ऐश्वर्य एवं लक्ष्मी प्राप्ति के मुमक्ष को चाहिए कि श्री यंत्र के सम्मुख श्री सूक्त का पाठ करो पंचमेवा देवी को भोग लगायें तो शीघ्र ही इसका चमत्कार होता है।
यंत्र का उपयोगइस यंत्र को व्यापार वृद्धि के लिए तिजोरी में रखा जाता है धान्य वृद्धि के लिए धान्य में रखा जाता है
इस यंत्र को वेलवृक्ष की छाया में उपासना करने से लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है और अचल सम्पत्ति प्रदान करती हैं।
इस यंत्र को सम्मुख रखकर सूखे वेलपत्र घी में डुबोकर वेल की समिधा में आहूति डालने से मां भगवती शीघ्र ही प्रसन्न होती है एवं धन ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा जीवन भर लक्ष्मी के लिए दुखी नहीं होना पड़ता।
मान्यता है कि भोजपत्र की अपेक्षा तांबे पर बने श्रीयंत्र का फल सौ गुना, चांदी में लाख गुना और सोने पर निर्मित श्रीयंत्र का फल करोड़ गुना होता है। 'रत्नसागर' में रत्नों पर भी श्रीयंत्र बनाने की बात लिखी गई है।
इनमें स्फटिक पर बने श्रीयंत्र को सबसे अच्छा बताया गया है। विद्वानों की ऐसी धारणा है कि भोजपत्र पर 6 वर्ष तक, तांबे पर 12 वर्ष तक, चांदी में 20 वर्ष तक और सोना धातु में श्रीयंत्र आजीवन प्रभावी रहता है।
केसर की स्याही से अनार की कलम द्वारा भोजपत्र पर श्रीयंत्र बनाया जाना चाहिए। धातु पर निर्मित श्रीयंत्र की रेखाएं यदि खोदकर बनाई गई हों और गहरी हों, तो उनमें चंदन, कुमकुम आदि भरकर पूजन करना चाहिए।
दीपावली की रात गृहस्थ के लिए श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है।
इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः
की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Thursday, May 10, 2018
धनाभाव व भगवती पीताम्बरा
धनाभाव व भगवती पीताम्बरा
मेरे यजमान की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, वह हर समय पैसों के अभाव में परेशान रहता था। उसके लिए अनुष्ठान करने का मन बना लिया, अब कोई ऐसा अनुष्ठान कंरू, जिससे उसे तुरन्त राहत मिलने लगे, बिना भगवती के प्रसन्न हुए यह सम्भव नहीं था, अतः भगवती बगला की प्रसन्नता एवं धन लाभ हेतु बगला शतनाम के पाठ व हवन का संकल्प लिया।
बगला शतनाम के एक सौ आठ माला पाठ कर, हवन कर दिया। परिणाम तुरन्त सामने आया यजमान की आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधान प्रारम्भ हो गया।
क्रिया इस प्रकार की गई - विष्णुयामल से उद्धत है-
विनियोग -
ऊँ अस्य श्री पीताम्वर्य अण्ठोन्तर शतनाम स्त्रोतस्य सदा शिव ऋषि, अनुष्टुप छन्दः श्री पीताम्बरी देवता श्री पीताम्बरी जपे हवन विनियोगः। (जल पृथवी पर डाल दें)
1. ऊँ बगलाये नमः स्वाहा।
2. ऊँ विष्णु विनिताये नमः स्वाहा।
3. ऊँ विष्णु शंकर भामनी नमः स्वाहा।
4. ऊँ बहुला नमः स्वाहा।
5. ऊँ वेदमाता नमः स्वाहा।
6. ऊँ महा विष्णु प्रसूरपि नमः स्वाहा।
7. ऊँ महा-मत्स्या नमः स्वाहा।
8. ऊँ महा-कूर्मा नमः स्वाहा।
9. ऊँ महा-वाराह-रूपिणी नमः स्वाहा।
10. ऊँ नरसिंह-प्रिया रम्या नमः स्वाहा।
11. ऊँ वामना वटु-रूपिणी नमः स्वाहा।
12. ऊँ जामदग्न्य-स्वरूपा नमः स्वाहा।
13. ऊँ रामा राम-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
14. ऊँ कृष्णा नमः स्वाहा।
15. ऊँ कपर्दिनी नमः स्वाहा।
16. ऊँ कृत्या नमः स्वाहा।
17. ऊँ कलहा नमः स्वाहा।
18. ऊँ कलविकारिणी नमः स्वाहा।
19. ऊँ बुद्धिरूपा नमः स्वाहा।
20. ऊँ बुद्धि-भार्या नमः स्वाहा।
21. ऊँ बौद्ध-पाखण्ड- खण्डिनी नमः स्वाहा।
22. ऊँ कल्कि-रूपा नमः स्वाहा।
23. ऊँ कलि-हरा नमः स्वाहा।
24. ऊँ कलि-दुर्गति-नाशिनी नमः स्वाहा।
25. ऊँ कोटि-सूर्य-प्रतीकाशा नमः स्वाहा।
26. ऊँ कोटि-कन्दर्प-मोहिनी नमः स्वाहा।
27. ऊँ केवला नमः स्वाहा।
28. ऊँ कठिना नमः स्वाहा।
29. ऊँ काली नमः स्वाहा।
30. ऊँ कला कैवल्य-दायिनी नमः स्वाहा।
31. ऊँ केश्वी नमः स्वाहा।
32. ऊँ केश्वाराध्या नमः स्वाहा।
33. ऊँ किशोरी नमः स्वाहा।
34. ऊँ केशव-स्तुता नमः स्वाहा।
35. ऊँ रूद्र-रूपा नमः स्वाहा।
36. ऊँ रूद्र-मूर्ति नमः स्वाहा।
37. ऊँ रूद्राणी नमः स्वाहा।
38. ऊँ रूद्र-देवता नमः स्वाहा।
39. ऊँ नक्षत्र-रूपा नमः स्वाहा।
40. ऊँ नक्षत्रा नमः स्वाहा।
41. ऊँ नक्षत्रेश-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
42. ऊँ नक्षत्रेश-प्रिया नमः स्वाहा।
43. ऊँ नित्या नमः स्वाहा।
44. ऊँ नक्षत्र-पति-वन्दिता नमः स्वाहा।
45. ऊँ नागिनी नमः स्वाहा।
46. ऊँ नाग-जननी नमः स्वाहा।
47. ऊँ नाग-राज-प्रवन्दिता नमः स्वाहा।
48. ऊँ नागेश्वरी नमः स्वाहा।
49. ऊँ नाग-कन्या नमः स्वाहा।
50. ऊँ नागरी नमः स्वाहा।
51. ऊँ नगात्मजा नमः स्वाहा।
52. ऊँ नगाधिराज-तनया नमः स्वाहा।
53. ऊँ नाग-राज-प्रपूजिता नमः स्वाहा।
54. ऊँ नवीना नमः स्वाहा।
55. ऊँ नीरदा नमः स्वाहा।
56. ऊँ पीता नमः स्वाहा।
57. ऊँ श्यामा नमः स्वाहा।
58. ऊँ सौन्दर्य-करिणी नमः स्वाहा।
59. ऊँ रक्ता नमः स्वाहा।
60. ऊँ नीला नमः स्वाहा।
61. ऊँ घना नमः स्वाहा।
62. ऊँ शुभ्रा नमः स्वाहा।
63. ऊँ श्वेता नमः स्वाहा।
64. ऊँ सौभाग्या नमः स्वाहा।
65. ऊँ सुन्दरी नमः स्वाहा।
66. ऊँ सौभगा नमः स्वाहा।
67. ऊँ सौम्या नमः स्वाहा।
68. ऊँ स्वर्णभा नमः स्वाहा।
69. ऊँ स्वर्गति-प्रदा नमः स्वाहा।
70. ऊँ रिपु-त्रास-करी नमः स्वाहा।
71. ऊँ रेखा नमः स्वाहा।
72. ऊँ शत्रु-संहार-कारिणी नमः स्वाहा।
73. ऊँ भामिनी नमः स्वाहा।
74. ऊँ तथा माया नमः स्वाहा।
75. ऊँ स्तम्भिनी नमः स्वाहा।
76. ऊँ मोहिनी नमः स्वाहा।
77. ऊँ राग-ध्वंस-करी नमः स्वाहा।
78. ऊँ रात्री नमः स्वाहा।
79. ऊँ शैख-ध्वंस-कारिणी नमः स्वाहा।
80. ऊँ यक्षिणी नमः स्वाहा।
81. ऊँ सिद्ध-निवहा नमः स्वाहा।
82. ऊँ सिद्धेशा नमः स्वाहा।
83. ऊँ सिद्धि-रूपिणी नमः स्वाहा।
84. ऊँ लकां-पति-ध्ंवस-करी नमः स्वाहा।
85. ऊँ लंकेश-रिपु-वन्दिता नमः स्वाहा।
86. ऊँ लंका-नाथ-कुल-हरा नमः स्वाहा।
87. ऊँ महा-रावण-हारिणी नमः स्वाहा।
88. ऊँ देव-दानव-सिद्धौध-पूजिता नमः स्वाहा।
89. ऊँ परमेश्वरी नमः स्वाहा।
90. ऊँ पराणु-रूपा नमः स्वाहा।
91. ऊँ परमा नमः स्वाहा।
92. ऊँ पर-तन्त्र-विनाशनी नमः स्वाहा।
93. ऊँ वरदा नमः स्वाहा।
94. ऊँ वदराऽऽराध्या नमः स्वाहा।
95. ऊँ वर-दान-परायणा नमः स्वाहा।
96. ऊँ वर-देश-प्रिया-वीरा नमः स्वाहा।
97. ऊँ वीर-भूषण-भूषिता नमः स्वाहा।
98. ऊँ वसुदा नमः स्वाहा।
99. ऊँ वहुदा नमः स्वाहा।
100. ऊँ वाणी नमः स्वाहा।
101. ऊँ ब्रह्म-रूपा नमः स्वाहा।
102. ऊँ वरानना नमः स्वाहा।
103. ऊँ वलदा नमः स्वाहा।
104. ऊँ पीत-वसना नमः स्वाहा।
105. ऊँ पीत-भूषण-भूषिता नमः स्वाहा।
106. ऊँ पीत-पुष्प-प्रिया नमः स्वाहा।
107. ऊँ पीत-हारा नमः स्वाहा।
108. ऊँ पीत-स्वरूपिणी नमः स्वाहा।
हवन सामग्री:-
शक्कर का बूरा - 2 किलो0
काला तिल - 2 किलो
कमल बीज - 200 ग्राम
शहद - 100 ग्राम
देशी घी - 200 ग्राम
नमक - 10 ग्राम
-निर्देश -----
1. पहले 10 माला का हवन यानी दस हजार आहुतियाँ देकर प्रतिदिन छत्तीस दिनों तक एक माला हवन यानी एक सौ आहुतियाँ देते रहने से आर्थिक स्थिति में जबर्दस्त सुधार हो जाता है।
2. इस शतनाम हवन के प्रयोग से भगवती की प्रसन्नता साधक के प्रति बढ़ जाती है, जिससे साधक के प्रत्येक कार्य सुगमता-पूर्वक होने लगते हैं व विपक्षियों की उल्टी गिनती प्रारम्भ हो जाती है।
3. हवन कर अग्नि विसर्जन कर दें - हे अग्नि देव अब आप अपने लोक में प्रस्थान करें व हमारे द्वारा दी गई आहुतियाँ सम्बन्धित देवी/देवताओं को पहुँचा दें, कह कर हवन की अग्नि पर तीन बार जल डाल दें।
उपरोक्त पोस्ट ऐक अनुभवी साधक का स्वंय का अनुभवहै।
वशीकरण कर्म
षट् कर्मो मे दूसरे नम्बर पर आता है वशीकरण
यानि किसी को भी अपने वश मे करना
आज मे वशीकरण के नियम बता रहा हू जिनके पालन करने से वशीकरण के प्रयोग सफल होते है और ना करने पर असफल
वशीकरण की देवी सरस्वती है
वशीकरण पूर्व या उत्तर मुख होकर किया जाता है
वशीकरण के लिये वसन्त रितु उत्तम मानी जाती है
वशीकरण दशमी एकादशी , प्रतिपदा ,अमावस्या को शुभ होता है
वशीकरण शुक्रवार शनिवार को किया जाता है
ज्येष्ठा , उत्ताषाढ ,अनुराधा , रोहिणी ये माहेन्द्र मण्डल के नक्षत्र है इनमे वशीकरण करना चाहिये
मीन मेष कन्या धनु लग्न मे वशीकरण करना चाहिये
वशीकरण अग्नि तत्व के उदय मे करने चाहिये
वशीकरण आकर्षण के लिये देवता को लोहित वर्ण मे ध्यान करना चाहिये
वशीकरण भद्रासन मे करना चाहिये
मेढा के आसन पर बैठकर वशीकरण करे या लाल कम्बल पर
वशीकरण मे पाश मुद्रा का प्रयोग किया जाता है
वशीकरण मे देवता को सुन्दर रूप का ध्यान किया जाता है
वशीकरण मे पीतल का कलश रखा जाता है
वशीकरण रूद्राक्ष या स्फटिक माला प्रयोग करनी चाहिये
आकर्षण मे घोडे के पूछ के बालो से माला तैयार करनी चाहिये
वशीकरण के लिये योनि जैसी आकृति वाले कुण्ड मे वायव्य कोण की तरफ मुह करके हवन करना चाहिये
चमेली के फूलो से , वशीकरण कर्म मे हवन करना चाहिये
आकर्षण कर्म मे ईशान कोण मे स्थित अग्नि की स्वर्ण वर्णा हिरण्या नामक जिह्वा की जरूरत होती है
वशीकरण मे पूर्ण आहुति के समय अग्नि के कामद नाम का उच्चारण करना चाहिये
वशीकरण मे मंत्र के अंत मे स्वाहा लगाकर होम किया जाता है
अगली पोस्ट विद्वेषण पर होगी
इनमे दी गयी सारी जानकारी प्रयोग करते समय पालन करने से प्रयोग निष्फल नही होता
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Tuesday, May 8, 2018
तारा तन्त्रम
'तारा तन्त्रम'
महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में भगवती-तारा को महाविधायों में सर्वश्रेष्ठ एवं अद्धुतिया सफलता प्रदान करने वाली बताया गया है..
महर्षि विश्वामित्र ने स्वयं कहा है की यदि तारा मंत्र के साथ "तारा-सपर्या" शिद्ध कर ले तो उस साधक में आकर्षण शक्ति विशेष रूप से आजाती है और वह रम्भा , मेनका , उर्वशी जैसी अप्सराओं को अपने वश में कर सकता है, युद या मुकदमे बाजी में निश्चित ही उसे सफलता प्राप्त होती है है ,
यदि इस सपर्या का आदि रत को मंतर जप करे , तो उसकीवाणी में विशेष प्रभाव व्याव्त होता है और वह धरा प्रवाह बोलता हुआ हजारोंलाखों लोगो को एक साथ सम्मोहन कर सकता है
"तारा तूर्ण " साधना से वह साधक 'परकाय प्रवेश' सिद्धि में सफलता प्राप्त कर सकता हैं और विविध यक्षिणी किन्नरी को अपने वश में करसकता है , एक प्रकार से देखा जाय तो वह नवीन स्रष्टि रचना में समर्थ हो सकता है ...!!
भगवती तारा को "वक् शक्ति " "नील सरस्वती " "तारा" तथा उग्र तारा के नाम से भी संबोधन करते है , क्युकी तांत्रिक मान्त्रिक दोनों ही तरीकों से इसकी श्रेष्ठम साधना संपन्न की जा सकती है !
... जय माँ तारा...
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम साधना पीठ
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Sunday, May 6, 2018
श्री कामदेव का मन्त्र
श्री कामदेव का मन्त्र
(मोहन करने का अमोघ शस्त्र)
“ॐ नमो भगवते काम-देवाय श्रीं सर्व-जन-प्रियाय सर्व-जन-सम्मोहनाय ज्वल-ज्वल, प्रज्वल-प्रज्वल, हन-हन, वद-वद, तप-तप, सम्मोहय-सम्मोहय, सर्व-जनं मे वशं कुरु-कुरु स्वाहा।”
विधीः-
उक्त मन्त्र का २१,००० जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है। तद्दशांश हवन-तर्पण-मार्जन-ब्रह्मभोज करे। बाद में नित्य कम-से-कम एक माला जप करे। इससे मन्त्र में चैतन्यता होगी और शुभ परिणाम मिलेंगे।
प्रयोग हेतु फल, फूल, पान कोई भी खाने-पीने की चीज उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर साध्य को दे।
उक्त मन्त्र द्वारा साधक का बैरी भी मोहित होता है। यदि साधक शत्रु को लक्ष्य में रखकर नित्य ७ दिनों तक ३००० बार जप करे, तो उसका मोहन अवश्य होता है।
समाग्री -
कामदेव यंत्र . गुटिका . रुद्राक्ष की माला . वशीकरण
काजल . सभी समान प्राण - प्रतिष्ठा युक्त मंत्र सिद्धि चैतन्य होना जरूरी हैं.
जरूरत होने पर ही साधना के बारे में बात करें
नोट ----
जिन्हे पूरा, , प्रयोग विधि चाहिए उन्हे ही , , पूरा, , प्रयोग विधि देगे क्यू के मेरे लिए मंत्र का गोपनीयता सर्वप्रथम है। मंत्र प्रभावशाली है। इसलिए आप भी गोपनीयता रखे और हो सके तो गुरु आज्ञा से मंत्र का जाप करे श्रेष्ठ है
राजगुरु जी
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Saturday, May 5, 2018
अक्षय पात्र साधना
अक्षय पात्र साधना
जीवनदायनी कुदरत ने सब को एक समान जीवन दिया है|एक समान इसलिए कह रही हूँ क्योकि शायद सांस लेने को ही हम लोगो ने जीवन मान लिया है क्योकि सांस रुक जाने की प्रक्रिया को तो हम लोग मृत्यु मानते है ना,
....और यदि ऐसा ही है तो क्या पड़ी थी ईश्वर को हमे मानव देह देने कि क्योकि सांस लेना,पेट भरना,बच्चे पैदा करना और फिर अन्त में मर जाना ये सब क्रिया कलाप तो जानवर भी करते ही है.
...और यदि हम में कोई विलक्षणता नहीं तो हम में और जानवरों में फर्क भी क्या है....
बस इतना कि हमें बोलने के लिए भगवान ने जुबां दी है, हम एक दूसरे की भावनाएं समझ सकते है तो जानवर भी एक दूसरे कि भाषा समझते है, एक दूसरे के भाव समझ लेते है तो उनमें और हम में मात्र एक ही आधारित भेद ये है कि हम विवेक से काम ले सकते है तो यदि हम में सोचने समझने कि क्षमता है तो क्या ये उचित है कि हम सब कुछ जानते बूझते हुए भी दरिद्रता वाला जीवन जियें
...क्या ये हमारी गलती नहीं है कि कल-कल करती बहती नदी हमारे सामने बह रही है और फिर भी हम चीख-पुकार मचा रहे है कि हमे प्यास लगी है.....
ठीक इसी तरह होते हुए भी यदि हम अपूर्णता, दरिद्रता और आभावों से युक्त जीवन जीते हैं तो हमसे बड़ा बदनसीब कोई नहीं हो सकता और दूसरी बात कहते है कि ," जीवन में पैसा सब कुछ नहीं होता मगर बहुत कुछ जरूर होता है" .
यदि सम्पन्नता चाहिए तो दरिद्रता का नाश करना ही पड़ेगा....पर ऐसे धन का क्या लाभ जिसमें लक्ष्मी हमारा वरन तो कर ले पर उसे सम्भालने का सामर्थ्य हममें नहीं है??मतलब यदि देह रोग मुक्त नहीं है तो धन का क्या अभिप्राय रह जाता है|
ऐसा धन किसी काम का नहीं जो हमें सांसरिक सुखो को भोगने के काम ना आ सके क्योकि अक्सर ऐसा होता है कि अगर किसी धनवान को कोई रोग हो जाए तो डाक्टर उसे सिर्फ दाल रोटी खाने को बोल देंगे जब कि वो कुछ भी और कितना भी महंगा भोजन खा सकता है और एक गरीब जिसको दो वक्त को रोटी के वभी वांदे होते है
उसको कोई रोग होने पर ऐसी ऐसी चीज़े खाने को बता देंगे जो उस बेचारे की कल्पना के भी बाहर हो.....कहने का अभिप्राय ये है कि यदि आप हर तरह से सुपात्र हैं तो ही जीवन सपूर्ण हो पायेगा.
सदगुरुदेव हमेशा कहते है कि पात्र का अर्थ मात्र बर्तन से नहीं है इसका गूढ़ अर्थ हमारे जीवन से जुड़ा है| अगर हम में सुपात्रता नहीं है तो हम अपने गुरु से कुछ भी नहीं ले पायेंगे क्योकि यदि हमारी ही अंजुरी छोटी है तो दाने तो बाहर गिरेंगे ही...इसीलिए अच्छे सुपात्र बनने के लिए जीवन को अक्षय बनाना अति आवश्यक है क्योकि जो अजय है वही तो अमर होंने कि कला सीख पायेगा ना|
किसी भी साधना को सिद्ध करने का मूल मंत्र ये है कि खुद को ही शिव और शक्ति मान के आपने आप को मंत्र बनाना सीख लिया जाए अर्थात मंत्र और आप में कोई भेद ना रहे
...जैसे लक्ष्य भेदन के लिए इकाग्र्ता जरूरी है ठीक वैसे ही आपनी अन्तश्चेतना को इतना गहरा कर लो कि गुरु कि उपस्थिति महसूस कर सको...महसूस कर सको उनके शरीर की दिव्य गंध जो आपने आप में अद्वितीय है...क्योकि जिस दिन ये हो जाएगा उसी दिन आपका जीवन भी अक्षय पात्र बन जाएगा ...
हर साधना के अपने कुछ निर्धारित नियम होते हैं जिनसे उस साधना को सिद्ध किया जा सकता है...वैसे ही अक्षय पात्र साधना के लिए...
१- आपके पास एक तांबे का पात्र (बर्तन) होना चाहिए जिसमें कम से कम 250ml पानी आ सके.
२- चावल जिसे आप आपनी क्षमता के हिसाब से रोज मंत्र जाप करने के बाद उस पात्र में दाल सको.
३- पीली धोती या साड़ी
४- आपकी दिशा पूरब या उत्तर होगी
५- ये रात कालीन साधना है
५- एक लाल कपड़ा
ये ११ दिनों की साधना है और पहले दिन इसकी २१ माला करनी होती है उसके बाद अगले ११ दिनों तक १-१ माला और यदि २१ माला हर दिन कर सको तो और अच्छा.
गुरु चित्र के सामने पात्र को रख लो और साधना शुरू करने से पहले गुरु मंत्र करो क्योकि गुरु मंत्र हमारे और गुरु के बीच सेटेलाइट का काम करता है.
साधना में बैठने से पहले अच्छे से नहा लो क्योकि देह का शुद्ध होना बहुत जरूरी है और जितने दिन साधना चलेगी उतने दिन बिलकुल शुद्ध भोजन खाये.
रोज रात को साधना के बाद थोड़े से चावल हाथ में लेकर उस पात्र में डाल दे और अंतिम दिन साधना सम्पन्न करने के बाद उस पात्र को चावल समेत लाल कपड़े में बाँध कर अपनी तिजोरी में या मंदिर में रख दें.
मंत्र
ओम ह्रीं श्रीं ह्रीं अक्षय पात्र सिद्धिम ह्रीं श्रीं ह्रीं ओम ||
OM HREENG SHREEM HREENG AKSHAY PATRA SIDDHIM HREENG SHREEM HREENG OM…
वस्तुतः किसी भी साधना की महत्ता तभी समझी जा सकती है,जब उसे स्वयं प्रयोग का देखा जाये,मात्र शब्दों का महिमामंडन करने से तो प्रयोग को नहीं समझा जा सकता, अब मर्जी आपकी है|
राजगुरु जी
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रक्तचामुंडे
ॐ ह्रीं क्लीं रक्तचामुंडे स्वप्ने कथ्य कथ्य शुभाशुभम ॐ फट स्वाहा !
।। विधि ।।
इस साधना को आप किसी भी दिन से शुरू कर सकते हैं ! रात्रि को सोते समय अपने बिस्तर पर बैठ कर इस मंत्र का 1100 बार जप करें !
माला कोई भी इस्तेमाल कर सकते हैं और यदि माला न हो तो हाथो पर भी कर सकते हैं !
यह क्रिया 21 दिन करनी हैं और यह साधना पूर्णत: गुप्त रहनी चाहिए !
माता से प्रार्थना करे कि स्वप्न में मुझे दर्शन दे और सिद्धि प्रदान करें ! अंतिम दिन ( 22वे दिन ) किसी कंवारी कन्या को भोजन कराएं और दक्षिणा दें ,मन्त्र सिद्ध हो जाएगा ! कन्या की उम्र 10 साल से कम होनी चाहिए !
।। प्रयोग ।।
जब भी इस मंत्र का प्रयोग करना हो तो 1100 मंत्र जप अपने बिस्तर पर बैठ कर करें और देवी से प्रार्थना करें , आपको स्वप्न में उत्तर मिल जाएगा !
माँ स्वप्नेश्वरी आप सब पर कृपा करे और आप सब को सिद्धि प्रदान करे ! इसी आशा के साथ …………………………………!
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Thursday, May 3, 2018
भुतिनि साधना
भुतिनि साधना
मनुष्य की कल्पना का एक निश्चित दायरा होता है जिसके आगे वह सोच भी नहीं सकता है और तर्क बुद्धि उनको स्व ज्ञान से आगे कुछ स्वीकार करने के लिए हमेशा रोक लगा देती है,
लेकिन आज के आधुनिक युग में वैज्ञानिक परिक्षण में भी ऐसे कई तथ्य सामने आये है जिसके माध्यम से यह सिद्ध होता है की मनुष्य की गति सिर्फ जन्म से ले कर मृत्यु तक की यात्रा मात्र नहीं है वरन मृत्यु तो एक पड़ाव मात्र ही है.
मनुष्य मृत्यु के समय शरीर त्याग के बाद कोई विविध योनी को धारण करता है विविध नाम और उपनाम दिए जाते है.
भले ही आज का विज्ञान उसके अस्तित्व पर अभी भी शोध कर रहा हो लेकिन हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने इस विषय पर सेकडो हज़ारो सालो पहले ही अत्यंत ही प्रगाढ़ अन्वेषण कर के अत्यधिक विस्मय युक्त जानकारी जनमानस को प्रदान की थी.
मनुष्य के मृत्यु के बाद उसकी निश्चय ही कार्मिक गति होती है तथा इसी क्रम में विविध प्रकार की योनी उसे प्राप्त होती है या उसका पुनर्जन्म होता है. इसके भी कई कई भेद है, लेकिन जो प्रचलित है वह योनी है भुत, प्रेत, पिशाच, राक्षस या ब्रह्मराक्षस आदि है जो की कर्मजन्य होते है. यह विषय अत्यंत ही वृहद है. यहाँ पर हम चर्चा करेंगे तंत्र में इन से जुडी हुई प्रक्रिया की.
विविध योनियो से सबंधित विविध प्रकार के प्रयोग तंत्र में प्राप्त होते है. जिसमे साधनाओ के माध्यम से विविध प्रकार के कार्य इन इतरयोनियो से करवाए जाते है.
लेकिन यह साधनाए दिखने में जितनी सहज लगती है उतनी सहज होती नहीं है इस लिए साधक के लिए उत्तम यह भी रहता है की वह इन इतरयोनियों के सबंध में लघु प्रयोग को सम्प्पन करे.
जिस प्रकार भुत एक पुरुषवाचक संज्ञा है उसी प्रकार भुतिनी एक स्त्रीवाचक संज्ञा है. वस्तुतः यह भ्रम ही है की भुतिनियाँ डरावनी होती है तथा कुरुप होती है, वरन सत्य तो यह है की भुतिनि का स्वरुप भी उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार से एक सामान्य लौकिक स्त्री का. उसमे भी सुंदरता तथा माधुर्य होता है.
वस्तुतः यह साधना तथा साध्य के स्वरुप के चिंतन पर उनका रूप हमारे सामने प्रकट होता है, तामसिक साधना में भयंकर रूप प्रकट होना एक अलग बात है लेकिन सभी साधना में ऐसा ही हो यह ज़रुरी नहीं है.
प्रस्तुत प्रयोग इक्कीश दिन अचरज पूर्ण प्रयोग है, जिसे सम्प्पन करने पर साधक को भुतिनी को स्वप्न के माध्यम से प्रत्यक्ष कर उसे देख सकता है तथा उसके साथ वार्तालाप भी कर सकता है.
साधको के लिए यह प्रयोग एक प्रकार से इस लिए भी महत्वपूर्ण है की इसके माध्यम से व्यक्ति अपने स्वप्न में भुतिनी से कोई भी प्रश्न का जवाब प्राप्त कर सकता है. यह प्रयोग भुतिनी के तामस भाव के साधन का प्रयोग नहीं है, अतः व्यक्ति को भुतिनी सौम्य स्वरुप में ही द्रश्यमान होगी.
यह प्रयोग साधक किसी भी अमावस्या को करे तो उत्तम है, वैसे यह प्रयोग किसी भी बुधवार को किया जा सकता है.
साधक को यह प्रयोग रात्री काल में १० बजे के बाद करे. सर्व प्रथम साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर लाल वस्त्र पहेन कर लाल आसान पर बैठ जाए. गुरु पूजन तथा गुरु मंत्र का जाप करने के बाद दिए गए यन्त्र को सफ़ेद कागज़ पर बनाना चाहिए.
इसके लिए साधक को केले के छिलके को पिस कर उसका घोल बना कर उसमे कुमकुम मिला कर उस स्याही का प्रयोग करना चाहिए.
साधक वट वृक्ष के लकड़ी की कलम का प्रयोग करे. यन्त्र बन जाने पर साधक को उस यन्त्र को अपने सामने किसी पात्र में रख देना है तथा तेल का दीपक लगा कर मंत्र जाप शुरू करना चाहिए.
साधक को निम्न मंत्र की ११ माला मंत्र जाप करनी है इसके लिए साधक को रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए.
भ्रं भ्रं भ्रं भुतेश्वरी भ्रं भ्रं भ्रं फट्
(bhram bhram bhram bhuteshwari bhram bhram bhram phat)
मंत्र जाप पूर्ण होने पर जल रहे दीपक से उस यन्त्र को जला देना है. यन्त्र की जो भष्म बनेगी उस भष्म से ललाट पर तिलक करना है तथा तिन बार उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करना है. इसके बाद साधक अपने मन में जो भी प्रश्न है उसके मन ही मन ३ बार उच्चारण करे तथा सो जाए.
साधक को रात्री काल में भुतिनी स्वप्न में दर्शन देती है तथा उसके प्रश्न का जवाब देती है. जवाब मिलने पर साधक की नींद खुल जाती है, उस समय प्राप्त जवाब को लिख लेना चाहिए अन्यथा भूल जाने की संभावना रहती है.
साधक दीपक को तथा माला को किसी और साधना में प्रयोग न करे लेकिन इसी साधना को दुबारा करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है. जिस पात्र में यन्त्र रखा गया है उसको धो लेना चाहिए. उसका उपयोग किया जा सकता है.
अगर यन्त्र की राख बची हुई है तो उस राख को तथा जिस लकड़ी से यन्त्र का अंकन किया गया है उस लकड़ी को भी साधक प्रवाहित कर दे.
साधक दूसरे दिन सुबह उठ कर उस तिलक को चेहरा धो कर हटा सकता है लेकिन तिलक को सुबह तक रखना ही ज़रुरी है.
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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Tuesday, May 1, 2018
मनोकामना पूर्ति साधना
मनोकामना पूर्ति साधना
मित्रो ! आप सभी के बहुत आग्रह पर मैं आज यह प्रयोग यहाँ बता रहा हूँ। यह प्रयोग आज तक मैंने कभी असफल होते न देखा न सुना। यह धूमावति माता का एक बहुत ही तीक्ष्ण और अचूक प्रयोग है।
धूमावति माता की उत्पत्ति के बारे मे अलग अलग मत है जिनके विवाद मे न पङते हुये यदि हम सम्पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करते है तो सफलता हमे अवश्य मिलती है , ऐसा मेरा अनुभव है।
मां धूमावती रोग, शोक और दुख की नियंत्रक महाविद्या मानी जाती हैं। उनकी शरण में आने वाले भक्तों की समस्त विपत्तियों का नाश हो कर मुहमाँगा वरदान मिलता है। बस ज़रुरत है तो पूर्ण विश्वास और श्रद्धा की।
सामिग्री -
गाय के गोबर के कुछ सूखे उपले , गुग्गल।
विधि -
रात्रि में स्नान करके पूर्ण शुद्ध मन एवं विश्वास के साथ बारह बजे पूजा ( माँ मंत्र ) आरम्भ कर दे। पूजा में अग्नि जलाकर उसमे उपले और गुग्गुल डाल कर पूजा समय तक लगातार धुँआ करते रहना चाहिए।
ध्यान रहे कि धुँआ इतना अधिक न हो जाये जिससे तुम्हे परेशानी हो या पडोसी समझे आग लग गयी।
कुल मिलाकर विघ्न नहीं आना चाहिए। जाप काले या लाल वस्त्र पहन कर दक्षिण या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके रुद्राक्ष की माला से करना है। आधुनिक अंग वस्त्र अगर पूजा के समय न पहिने तो उत्तम है।
पूजा के आरम्भ में सभी गलतियों की क्षमा माँग कर सभी परिस्थितियां अनुकूल करते हुए जो भी कामना हो उसको पूरा करने की माँ से प्रार्थना करे उसके बाद गुरु व इष्ट का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र की एक माला करे :-
ऊं परम गुरुभ्यो नम:
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उसके बाद 11 माला माता का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र की करे :-
आई आई धूमावती माई ..सुहाग छेड़े कोण कुले जाई ..धुआं होय धू धू कोरे .
आमार काज ना कोरले .शिबर जोटा खोसे भुमिते पोड़े
दूसरे दिन यदि आपका कार्य पूरा न हो तो इस प्रयोग को 8 दिन और अर्थात कुल 9 दिन तक करे। माता आपकी मनोकामना अवश्य ही पूरा करेंगी। यह विश्वास मन में सदा बनायें रखे।
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