Thursday, May 21, 2015

मेरे जीवन का अद्भुत पल - उर्वशी साधना







जीवन को आरोग्यवर्धक बनाने के लिए , पौरुसवान , शकितशाली बनाने के लिए तथा साधना मार्ग में निष्कंटक चलने के लिए , ये अपशरये ही साथ देती हैं . जो मात्र एक बार ही सीधी होकर प्रेमिका के रूप में जीवन भर सत्ता देती हैं . इस जीवन को ऐश्वर्य पूर्ण , भैभवशाली बनाने के लिए एक मात्र साधन है , और वह हैं अप्सरा साधना .
ये अप्सराये एक बार सिद्धि हो जाने पर जीवन भर हीरे - मोती , स्वर्णभूषण उपहार स्वरूप अपने प्रेमी को प्रदान करती रहती हैं . इसे मात्र प्रेमिका के रूप में और लड़कियाँ सहेली के रूप में सिद्धि कर सकती हैं . सिद्धि प्राप्त हो जाने पर जब भी उनको याद करो उपस्थित होकर मनोवांछित कार्य करती हैं .
अप्रैल का महीना था . गंगोत्री से हरिद्वार आने के लिए चार अप्रैल को रास्ता साफ होने वाला था . पूज्य गुरु जी से से कुछ दिन के लिए घर वापस लौटने का आदेश मिला था . मैं मार्ग साफ होने की प्रतीक्षा कर रहा था , बस चलने में चार दिन की देरी थी और इस चार दिन के अमूल्य समय को मैं ऐसे ही नहीं खोना चाहता था . मेरी रोज की दिनचर्या थी नित्यकर्म से निवृत होकर पहाड़ो मैं कुछ दूर तक विचरण करना . इकत्तीश मार्च की सुबह नौ बजे गुरुदेव से आज्ञा प्राप्त कर अकेले ही गंगोत्री होते हुए भैरव टीला तक जाने का विचार कर निकला . उस दिन मेरे साथ कुछ आलौकिक घटना घटी जिसे याद कर मैं रोमांचित हो जाता हूँ .
गंगोत्री से आगे सड़क पर कुछ दूर चलने पर मुझे सामने से एक साधु आता दिखाई दिया गेरुवा वस्त्र धारण किये , वह साधु मुझे बड़ा ही विचित्र लगा . इतने कड़ाके की ठंड थी कि चलने में मुश्किल हो रहा था , परन्तु वह साधु एक लंगोट में था . नंगे बदन उस साधु के निकट आने पर मैंने उसे प्रणाम किया . उसने मेरे प्रणाम का कोई उत्तर नहीं दिया और मुझे घूर - घूरकर देखने लगा . प्रणाम करने के पश्चात जब उधर से कोई उत्तर नहीं मिला तो मैंने नजर उठाकर देखा . धवल केश , गेहुँआ बदन , बलिष्ट भुजा , लाल - लाला लपलपाती आँखों को देख कर मैं डर गया . बाल सफ़ेद थे , परन्तु उसका पूरा शरीर मात्र २० वर्ष के नौजवान जैसा था . मुझे महान आश्चर्य लगा . अचानक उसकी आँख मैं मेरी नजर पड़ गई . मुझे अपने शरीर के अंदर सनसनाहट और जलन महसूस हुई . मैंने डरकर अपनी नजर हटानी चाही पर हटा नहीं सका . ऐसा लग रहा था जैसे कोई मुझे बांध कर धीरे - धीरे खीच रहा हैं . मैं अपने गुरुदेव को मन ही मन याद करने लगा .
मेरी भावना को जानकर वे मुस्कराये . उनकी मुस्कराहट भी बड़ी विचित्र थी . पूरे चेहरे से क्रोध टपक रहा था और क्रोधाग्नि में जलते हुए मुस्कराना बड़ी विचित्र बात थी . दस फ़ीट कि दुरी से भी उसके शरीर कि आभा मंडल से निकलने वाली गर्मी का मुझे अहसास हो रहा था . मेरी ठंड भी समाप्त हो चुकी थी . हल्का - हल्का पसीना आ रहा था . पांच मिनट तक यही स्थित रही , फिर वे पलटे और धीरे - धीरे चलने लगे . पता नहीं मैं किस बंधन मैं बंधा हुआ था कि दस फ़ीट कि दुरी बनाकर उनके पीछे - पीछे चलने लगा . शनैः - शनैः उनकी रफ़्तार बढ़ रही थी , साथ ही मैं भी न चाहते हुए उनके लपकता जा रहा था .
एक किलोमीटर चलने के पश्चात वे पहाड़ी पर चढ़ने लगे . बर्फ से भरे पहाड़ में वे ऐसे चढ़ रहे थे जैसे डामर कि सड़क हो , ऊपर पहुचने पर मुझे सामने एक स्फटिक शिला दिखाई दी , जिसकी लम्बाई - चौड़ाई लगभग दस - पंद्रह मीटर के आस - पास रही होगी . वे सन्यासी वही पर शिला के एक किनारे बैठ कर कुछ मुद्रा बनाने लगे . मैं बगल में खड़ा होकर इस कौतुहल का नजारा देख रहा था .वे मुद्रा बनाकर धीरे - धीरे कुछ मंत्र बुदबुदाने लगे . मुश्किल से दो तीन मिनट पश्चात आसमान में गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी , मैंने सिर उठाकर आसमान कि तरह देखा ऊपर बदली नाम कि कोई चीज ही नहीं थी . चारो तरफ नीला आकाश ही दिखाई दे रहा था , परन्तु गड़गड़ाहट धीरे - धीरे बढ़ती जा रही थी . मैं कौतुहल वश ऊपर को ही तकता रहा .
मात्र एक मिनट बाद आसमान में हंस के आकर कि धवल वस्तु उड़ती हुई दिखाई दी . वह धीरे - धीरे नीचे आ रही थी . कुछ नीचे आने पर साफ दृष्टि गोचर होने लगा , वह कोई स्त्री थी ,. श्वेत वस्त्र , श्वेत कंचुकी , धारण किये हुए सोलह श्रृंगार से सुसज्जित वह कन्या इतनी सुन्दर थी कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता ,
इतनी सुन्दर कन्या मैंने जीवन मैं पहले कभी नहीं देखी. काली घटा के सामान लम्बे लहराते हुए केश , कमल के सामान बड़ी - बड़ी आँखे , मोटे और गुलाबी होठ , बलखाती पतली कमर , षोडष वर्षीय शरीर यौवन से भरपूर मात्र एक कंचुकी और साड़ी मैं नहीं समां पा रहा था . वह धीरे से स्टफिक शिला के ऊपर आकर खड़ी हो गई , और धीरे - धीरे बलखाती हुई योगी के तरफ बढ़ने लगी . चलने पर उसके पैर के घुँघरू कि आवाज मानो बसंत बहार कि कलरव के सामान थी . नाभि और नितम्ब का धिरकन समुद्र के हिलोर के सामान था . वह बड़ी - बड़ी पलकों को झुकाये ऐसे चल रही थी , जैसे नववधु अपने प्रीतम के आने पर सुहाग शैया से उतारकर धीरे - धीरे उसकी ओऱ बढ़ रही हो .
वह चलती हुई योगी कि गोद में जाकर बैठ गई और उनकर गले में माला कि तरह अपनी बहे पिरोकर कहने लगी कि आपने मुझे क्यों बुलाया . कोयल कि आवाज भी उस आवाज के सामने फीकी थी . इतना सब देखने के बाद पता नहीं कैसे मेरी सुधबुध जाती रही / मैं कितने समय तक अपने होशोहवास खोये खड़ा रहा इसका कोई पता नहीं .
अचानक मेरे शरीर में पानी की बौछार पड़ी , तो मेरी चेतना लौटी , मैंने आखे फाड़ - फाड़ कर आस पास चारो तरफ देखा , उस साधु के आलावा नवयौवना कन्या का कही भी कोई पता तक नहीं था . मुझे अहसास हो चूका था कि वह अवश्य कोई अप्सरा थी . मैं उस साधना को प्राप्त करने के लिए तत्काल साधु के श्रीचरणों में गिर गया . आप लोगो के लाभार्थ मैं उसी अप्सरा कि अर्थात उर्वशी अप्सरा कि साधना बताने जा रहा हूँ ,
यह साधना मात्र २१ दिन कि हैं , साधक यदि पूर्ण विस्वाश के साथ एकाग्रचित होकर करे तो पहली बार में ही सफलता मिल जाती हैं .
इस साधना के लिए एकांत कमरे का चयन कीजिए . सामने सफ़ेद वस्त्र बिछाकर पीले चावल से निम्न यन्त्र का निर्माण करे , तत्पश्चात शुद्ध होकर सुगन्धित वस्त्र धारण कर गुलाब का इत्र लगाकर मखमल के आसन मैं उत्तर दिशा की ओऱ मुखकर सिंहासन पर बैठे . यन्त्र का पंचोपकर पूजन कर गुलाब के इत्र को पूरे कमरे में छिड़के . अपने चरोतरफ सुगंध का वातावरण बनाये रखे . गुरु , गणपति का ध्यान कर स्टफिक मणिमाला से निम्न मंत्र का ५१ माला जप करे . याद रहे यह साधना अर्धरात्रि मैं ही करनी हैं किसी भी माह के शुक्रवार को प्रारम्भ किया जाता हैं . वैसे चंद्रग्रहण इस साधना के लिए अभीष्ट फलदायी होता हैं . जप पूर्ण होने पर वही सो जाये . दूसरे दिन निर्धारित समय पर पुनः यही क्रिया को दोहराये . साधना काल तक घी का दीपक जलाकर रखे .कुछ दिन की साधना के पश्चात कुछ अनुभव होना शुरू हो जाता हैं . अचानक पूरे कमरे में गुलाब की खुशबु गुलाबी फ़ैल जाती हैं . साथ ही साथ घुँगरू की आवाज सुनाई देती हैं ,. माला पूर्ण किये बिना ध्यान विचलित नहीं करना हैं .
अंतिम दिन साधना शुरू करने से पहले गुलाब पुष्प की माला तैयार रखे . दस - ग्यारह माला फेरने के बाद अप्सरा गोद में आकर बैठ जाती हैं , साथ ही ध्यान विचलित करने के लिए शरारत करनी शुरू कर देती हैं , याद रहे साधक उसकी तरह बिलकुल ही ध्यान न दे . कठोरता से ब्रम्हचर्य का पालन करे .
माला पूर्ण होने के पश्चात गुलाब पुष्प की माला को उठाकर उसके गले में पहना दे . तब उर्वशी लता की भांति आप से लिपट जाएगी और अपने गले से मोती का माला उतारकर आप के गले में पहना देगी , और कहेगी - हे प्रियतम आज से मैं तुम्हारे वश में हूँ , . तुम मुझे जब भी जहा भी याद करोगे मैं उपस्थित होकर तुम्हारा मनोवांछित कार्य पूर्ण करुँगी . इतना कहकर वह अदृश्य हो जायेगी . और फिर आप जब भी निम्न मंत्र का मात्र सात बार मन ही मन उच्चारण करेंगे , तब तब उर्वशी अप्सरा उपस्थित होगी .
सामग्री – प्राण प्रतिष्ठित उर्वशीत्कीलन यंत्र, उर्वशी माला, सौंदर्य गुटिका तथा साफल्य मुद्रिका |
किसी भी शुक्रवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। यह रात्रिकालीं साधना है। स्नान आदि कर पीले आसन पर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जाएं। सामने पीले वस्त्र पर 'उर्वशी यंत्र' (ताबीज) स्थापित कर दें तथा सामने पांच गुलाब के पुष्प रख दें। फिर पांच घी के दीपक लगा दें और अगरबत्ती प्रज्वलित कर दें।
॥ ॐ उर्वशी प्रिय वशं करी हुं ॥
इस मंत्र के नीचे केसर से अपना नाम अंकित करें। फिर उर्वशी माला से निम्न मंत्र की 51 माला जप करें -
मंत्र
॥ ॐ ह्रीं उर्वशी अप्सराय आगच्छागच्छ स्वाहा ॥
यह मात्र 21 दिन की साधना है और प्रति दिन 51 माला जाप करना हैं . और 21 दिन अत्यधिक सुंदर वस्त्र पहिन यौवन भार से दबी हुई उर्वशी प्रत्यक्ष उपस्थित होकर साधक के कानों में गुंजरित करती है कि जीवन भर आप जो भी आज्ञा देंगे, मैं उसका पालन करूंगी।
तब पहले से ही लाया हुआ गुलाब के पुष्पों वाला हार अपने सामने मानसिक रूप से प्रेम भाव उर्वशी के सम्मुख रख देना चाहिए। इस प्रकार यह साधना सिद्ध हो जाती है और बाद में जब कभी उपरोक्त मंत्र का तीन बार उच्चारण किया जाता है तो वह प्रत्यक्ष उपस्थित होती है तथा साधक जैसे आज्ञा देता है वह पूरा करती है।
साधना समाप्त होने पर 'उर्वशी यंत्र (ताबीज)' को धागे में पिरोकर अपने गलें में धारण कर लेना चाहिए। सोनवल्ली को पीले कपड़े में लपेट कर घर में किसी स्थान पर रख देना चाहिए, इससे उर्वशी जीवन भर वश में बनी रहती है।

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
08467905069
E - mail-- aghoriramji@gmail.com


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