अघोरेश्वर प्रत्यक्षीकरण साबर प्रयोग -------
साबर साधनाओ के अद्बुध करिश्मो के बारे मे तो सब परिचित ही है. अघोर मार्ग का उद्धार करने वाले भगवान श्री दत्तात्रेय और साबर मंत्रो का सबंध अपने आप मे अटूट है. श्री दत्तभगवान की प्रेरणा तथा आशीर्वचन से नाथ योगियो द्वारा साबर मंत्रो का प्रचार प्रसार हुआ था.
इस प्रकार अघोर साधनाओ मे भी साबर मंत्रो का प्रयोग प्रचुरमात्रा मे होने लगा था. अघोरी के लिए भगवान अघोरेश्वर मुख्य देव है, जिनके मुख से समस्त तन्त्रो का सार निकलता रहता है. जो शिवतत्व को अपने अंदर स्थापित कर सदा शिव आनंद से युक्त हो कर अपने आप मे ही लिन रहता है वही अघोरी है.
सिद्ध अघोरी की यही पहचान है जो अघोरेश्वर की तरह ही निर्लिप्त रहता है समस्त विकारों भेदभाव तथा पाशो के बंदन से छूट गया है. ज़रुरी नहीं की वह स्मशान भष्म से युक्त हो, नग्न रहे या घृणा पर विजय होने का प्रदर्शन करे. जो इन सब से ऊपर उठ चूका हो, जिसके लिए ये भेद ही न हो, वही तो है अघोरी.
किसी समय मे इनका घर मे आना, स्वयं शिव के आने जितना सौभाग्यदायक माना जाता था लेकिन कुछ स्वार्थपरस्तो ने तो कुछ हमारी अवलेहना भ्रम और कुतर्क ने इस मार्ग का ग्रास कर उसे भय का रूप दे दिया. खेर, अघोरी के लिए यह ज़रुरी है की वह अघोरेश्वर के चिंतन मे लिन रहे.
भगवान अघोरेश्वर स्मशान मे बिराजमान है, सर्पो से लिप्त वह स्मशान भस्म को धारण किये हुए है. जिनके चेहरे पर आनंद ही है तथा और कोई भाव हे ही नहीं. ऐसे अघोरेश्वर के श्रेष्ठ रूप का ध्यान करना साधक के लिए उत्तम है.
प्रस्तुत साधना भगवान अघोरेश्वर के इसी रूप के दर्शन प्राप्त करने की साधना है. वस्तुतः यह अपने आप मे अत्यधिक महत्वपूर्ण साधना है जिसको करने के बाद साधक का चित हमेशा निर्मल रहता है, भेद से मुक्ति मिलती है
तथा सर्वसर्वात्मक भाव का उसमे उदय होता है. साथ ही साथ अघोरेश्वर के वरदान से साधक अष्टपाशो से मुक्त होने लगता है. इस प्रकार की भावभूमि प्राप्त होते साधक को विविध प्रकार की साधनाओ मे सफलता प्राप्त होने लगती है.
वैसे भी अघोरी के लिए यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण क्रम है की साधनामार्ग के इष्ट के दर्शन कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करना.
साधक को चाहिए की वह इस साधना को स्मशान मे ही सम्प्पन करे. रात्री मे ११:३० के बाद इस साधना को शुरू करना चाहिए. साधना को सोमवार से शुरू करे. साधक को स्नान कर अघोर गुरु पूजन सम्प्पन कर विशेष शाबर मन्त्र का ५१ माला जाप करना चाहिए.
मंत्र जाप के लिए साधक को रुद्राक्ष माला का प्रयोग करना चाहिए. आसान तथा वस्त्र काले हो. आसान के निचे चिता भष्म को बिछा देना चाहिए. इस क्रम को ११ दिन तक करने पर विविध अनुभूतिया होने लगती है, साधक जब इसे २१ दिन कर लेता है तब उसे भगवान अघोरेश्वर के दर्शन होते है.
ॐ अघोर अघोर प्रत्यक्ष वाचा गुरु की अघोरनाथ दर्शय दर्शय आण सिद्धनाथ की
साधक को भयभीत ना हो कर वीर भाव से यह साधना करनी चाहिए.
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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