Friday, May 31, 2019

जन्मकुंडली के ये 10 घातक योग, तुरंत करें उपाय





जन्मकुंडली के ये 10 घातक योग, तुरंत करें उपाय 


जन्म कुंडली में 2 या उससे ज्यादा ग्रहों की युति, दृष्टि, भाव आदि के मेल से योग का निर्माण होता है। ग्रहों के योगों को ज्योतिष फलादेश का आधार माना गया है। अशुभ योग के कारण व्यक्ति को जिंदगीभर दु:ख झेलना पड़ता है। आओ जानते हैं कि कौन-कौन से अशुभ योग होते हैं और क्या है उनका निवारण?

1. चांडाल योग

* कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु या केतु का होना या दृष्टि आदि होना चांडाल योग बनाता है।

* इस योग का बुरा असर शिक्षा, धन और चरित्र पर होता है। जातक बड़े-बुजुर्गों का निरादर करता है और उसे पेट एवं श्वास के रोग हो सकते हैं।

* इस योग के निवारण हेतु उत्तम चरित्र रखकर पीली वस्तुओं का दान करें। माथे पर केसर, हल्दी या चंदन का तिलक लगाएं।

* संभव हो तो एक समय ही भोजन करें और भोजन में बेसन का उपयोग करें। अन्यथश प्रति गुरुवार को कठिन व्रत रखें।


2. अल्पायु योग

* जब जातक की कुंडली में चन्द्र ग्रह पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। 

* अल्पायु योग में जातक के जीवन पर हमेशा हमेशा संकट मंडराता रहता है, ऐसे में खानपान और व्यवहार में सावधानी रखनी चाहिए।

* अल्पायु योग के निदान के लिए प्रतिदिन हनुमान चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र पढ़ना चाहिए और जातक को हर तरह के बुरे कार्यों से दूर रहना चाहिए।


3. ग्रहण योग

* ग्रहण योग मुख्यत: 2 प्रकार के होते हैं- सूर्य और चन्द्र ग्रहण। यदि चन्द्रमा पाप ग्रह राहु या केतु के साथ बैठे हों तो चन्द्रग्रहण और सूर्य के साथ राहु हो तो सुर्यग्रहण होता है।

* चन्द्रग्रहण से मानसिक पीड़ा और माता को हानि पहुंचती है। सूर्यग्रहण से व्यक्ति कभी भी जीवन में स्टेबल नहीं हो पाता है, हड्डियां कमजोर हो जाती है, पिता से सुख भी नहीं मिलता।

* ऐसी स्थिति में 6 नारियल अपने सिर पर से वार कर जल में प्रवाहित करें। आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। सूर्य को जल चढ़ाएं। एकादशी और रविवार का व्रत रखें। दाढ़ी और चोटी न रखें।

4. वैधव्य योग

*वैधव्य योग बनने की कई स्थितियां हैं। वैधव्य योग का अर्थ है विधवा हो जाना। सप्तम भाव का स्वामी मंगल होने व शनि की तृतीय, सप्तम या दशम दृष्टि पड़ने से भी वैधव्य योग बनता है। सप्तमेश का संबंध शनि, मंगल से बनता हो व सप्तमेश निर्बल हो तो वैधव्य का योग बनता है।

*जातिका को विवाह के 5 साल तक मंगला गौरी का पूजन करना चाहिए, विवाह पूर्व कुंभ विवाह करना चाहिए और यदि विवाह होने के बाद इस योग का पता चलता है तो दोनों को मंगल और शनि के उपाय करना चाहिए।


5. दारिद्रय योग

*यदि किसी जन्म कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दारिद्रय योग बन जाता है।

*दारिद्रय योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवनभर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।

6. षड्यंत्र योग

*यदि लग्नेश 8वें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है।

*जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग होता है वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है। इससे उसे धन-संपत्ति व मान-सम्मान आदि का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

*इस दोष को शांत करने के लिए प्रत्येक सोमवार भगवान शिव और शिव परिवार की पूजा करनी चाहिए। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करते रहना चाहिए।


7. कुज योग

*यदि किसी कुंडली में मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं।

*जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो, उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधू की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।

*विवाह होने के बाद इस योग का पता चला है तो पीपल और वटवृक्ष में नियमित जल अर्पित करें। मंगल के जाप या पूजा करवाएं। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।

8. केमद्रुम योग

*यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा के अगले और पिछले दोनों ही घरों में कोई ग्रह न हो तो या कुंडली में जब चन्द्रमा द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चन्द्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है।

*इस योग के चलते जातक जीवनभर धन की कमी, रोग, संकट, वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाई आदि समस्याओं से जूझता रहता है।

*इस योग के निदान हेतु प्रति शुक्रवार को लाल गुलाब के पुष्प से गणेश और महालक्ष्मी का पूजन करें। मिश्री का भोग लगाएं। चन्द्र से संबंधित वस्तुओं का दान करें।


9. अंगारक योग

*यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु या केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो अंगारक योग का निर्माण हो जाता है।

*इस योग के कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा ऐसा जातक अपने भाई, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ कभी भी अच्छे संबंध नहीं रखता। उसका कोई कार्य शांतिपूर्वक नहीं निपटता।

*इसके निदान हेतु प्रतिदिन हनुमानजी की उपासना करें। मंगलवार के दिन लाल गाय को गुड़ और प्रतिदिन पक्षियों को गेहूं या दाना आदि डालें। अंगारक दोष निवारण यंत्री भी स्थापित कर सकते हैं।


10.विष योग :

*शनि और चंद्र की युति या शनि की चंद्र पर दृष्टि से विष योग बनता है। कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चंद्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र में हो अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दूसरे को देख रहे हों तो तब भी विष योग बनता है। यदि 8वें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक लग्न में हो तो भी यह योग बनता है।

*इस योग से जातक को जिंदगीभर कई प्रकार की विष के समान कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पूर्ण विष योग माता को भी पीड़ित करता है।

*इस योग के निदान हेतु संकटमोचक हनुमानजी की उपासना करें और प्रति शनिवार को छाया दान करते रहें। सोमवार को शिव की आराधना करें या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

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सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

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प्राचीन तंत्र साधनाये






प्राचीन तंत्र साधनाये


*नवदुर्गा साधना:*

*माता दुर्गा की यह सात्विक साधना होती है जिसे नवरात्रि में किया जाता है। ये नौ दुर्गा है- 1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा, 4.कुष्मांडा, 5.स्कंदमाता, 6.कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी और 9.सिद्धिदात्री। लेकिन हम यहां आपको बताना चाहते हैं

 10 महाविद्या के बारे में।*

*दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम।*
*त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्न्मस्तिके च।।*

*10 महाविद्या की साधनाएं: 

माता दुर्गा की एक सात्विक साधना होती है जिसे नवरात्रि में किया जाता है। नवरात्रि समाप्त होने के बाद गुप्त नवरात्रि शुरू होती है तब 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है। 

आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है।*

                    क्रमसः  ---

                                 ।।       आगे जारी हैं  ।।

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सुर सुन्दरी यक्षिणी :-






सुर सुन्दरी यक्षिणी  :-


शास्त्रों मे  सुर सुन्दरी यक्षिणी को सुबसे सुंदर यक्षिणी कहा गया है |  सुर सुन्दरी यक्षिणी  सभी कार्यों को  पुरा करने वाली है  इस साधना में सिद्ध प्राप्त होने पर साधक धन-सम्पत्ति और एश्वर्य को प्राप्त करता है | 

इस यक्षिणी साधना में साधक जिस भाव से और जिस रूप में यक्षिणी की आराधना करता है वह उसे उसी रूप में स्वप्न में आकार दर्शन देती है |

 जैसे : माँ के रूप में, प्रेमिका के रूप में , पुत्री के रूप में , इनमें से जिस भी रूप में आराधना की जाये, उसी रूप में साधक को यक्षिणी के दर्शन प्राप्त होते है | इस साधना के लिए साधक को इस मंत्र द्वारा साधना करनी चाहिए : 

ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ||

  समय रात्रि मे 10 से 12 के बीच  दिशा पुर्व या उत्तर
माला स्फटिक की   स्नान कर के सुन्दर गुलाबी या लाल वस्त्र पहने अपने उपर गुलाव का इत्र लगाये लाल रंग कै आसन पर वैठे अपने सामने एक काट की चौकी विछाये उस पर लाल या गुलाबी कपडा विछाये और उसके ऊपर सुर सुन्दरी देवी का फोटो रखे दिपक चमेली के तेल का जलाये भोग मे दुध से वनी मिठाई और  ड्राई फ्रूट रखे एक प्याले मे शराब रखे  सुगन्धित धुप जलाये और चारो तरफ ईत्र छिड़के  फिर एक माला  गणेशजी के मन्त्र की करे  

ॐ गं गणपतये नमः

  फिर एक माला भैरव जी की करे 

 ॐ  श्री भैरवाय नमः 

 फिर एक माला अपने गुरू मन्त्र की करे गुरु मन्त्र ना हो तो

ॐ नमः शिवाय 

 मन्त्र की करे  फिर  108 माला सुर सुन्दरी मन्त्र की करे ये विधि रोज 21 दिन करनी है 22 वे दिन हवन करे  1008 आहुतियां दे  हवन शुद्ध घी  मे चमेली का इत्र और गुलाब की  पत्ती मिला कर करना है

यक्षिणी देवी प्रसन्न हो कर स्वप्न मे दर्शन देगी   और सभी कार्य पुरा करेगी 

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Thursday, May 30, 2019

प्राचीन तंत्र साधनाये






प्राचीन तंत्र साधनाये


बहुत-सी ऐसी साधनाएं है जिनका धर्म से कोई नाता नहीं और कुछ का है। तांत्रिक साधनाओं को नकारात्मक या वाम साधनाओं की श्रेणी में रखा जाता है। गायत्री और योगसम्मत दक्षिणमार्गी साधनाएं होती है वैसे ही उनसे अलग तंत्रोक्त साधनाएं भी होती है। 

हालांकि तांत्रिक साधनाओं के अलावा ऐसी भी साधनाएं हैं जिनको धर्म में निषेध माना गया है। शैव, शाक्त और नाथ संप्रदाय में सभी तरह की साधनाओं का प्रचलन है।*

*तंत्र साधना में शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण नामक छ: तांत्रिक षट् कर्म होते हैं। इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:- 

मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं।*

*उक्त सभी को करने के लिए अन्य कई तरह के देवी-देवताओं की साधना की जाती है। अघोरी लोग इसके लिए शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना करते हैं। बहुत से लोग भैरव साधना, नाग साधना, पैशाचिनी साधना, यक्षिणी साधा या रुद्र साधना करते हैं।*

*हमने खोजी है ऐसी 10 तरह की साधनाएं जिनके बारे में कहा जाता है कि जिनको करने से आपका जीवन सफल भी हो सकता है या बर्बाद भी। इन साधनाओं को करने में बहुत सावधानी और हिम्मत की जरूरत होती है। हालांकि कोई ऐसी साधना क्यूं करता है यह एक सवाल हो सकता है। आओ जानते हैं 10 तरह की खतरनाक साधनाओं के बारे में।

  (  क्रमसः। )

          ------------------              आगे जारी हैं 

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स्वप्नेस्वरी साधना






स्वप्नेस्वरी  साधना 


मनुष्य के शरीर की आतंरिक रचना बहोत ही पेचीदा है और आधुनिक विज्ञान भी इसे अभी तक पूर्ण रूप से समजने के लिए प्रयासरत है. 

वस्तुतः हमारे पुरातन महापुरुषों ने साधनाओ के माध्यम से ब्रम्हांड की इस जटिल संरचना को समजा था और इसके ऊपर शोधकार्य लगातार किया था जिससे की मानव जीवन पूर्ण सुखो की प्राप्ति कर सके.

 कालक्रम में उनकी शोध की अवलेहना कर हमने उनके निष्कर्षों को आत्मसार करने की वजाय उसे भुला दिया और इसे कई सूत्र लुप्त हो गए जो की सही अर्थो में मनुष्य जीवन की निधि कही जा सकती है. मनुष्य के अंदर का ऐसा ही एक भाग है मन. 

मन ऐसा भाग है जो मनुष्य को अपने आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड को जोड़ सकता है. क्यों की ब्रम्हांड और मन दोनों ही अनंत है. आतंरिक ब्रम्हांड की पृष्ठभूमि मन ही है क्यों की शरीर के अंदर ही सही लेकिन मन अनंत है. और आतंरिक ब्रम्हांड भी बाह्य ब्रम्हांड की तरह अनंत भूमि पर स्थित होना चाहिए इस लिए इसका पूर्ण आधार मन है. 

मन के भी कई प्रकार के भेद हमारे ऋषियोने कहे है उसमे से प्रमुख है, जागृत, अर्धजागृत और सुषुप्त मन. यहाँ पर एक तथ्य ध्यान देने योग्य है की आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड की गति समान और नितांत है.

 इस लिए जो भी घटना बाह्य ब्रम्हांड में होती है वही घटना आतंरिक ब्रम्हांड में भी होती है. साधको की कोशिश यही रहती है की वह किसी युक्ति से इन दोनों ब्रम्हांड को जोड़ दे तो वह प्रकृति पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता है.

 वह ब्रम्हांड में घटित कोई भी घटना को देख सकता है तथा उसमे हस्तक्षेप भी कर सकता है. लेकिन यह सफर बहोत ही लंबा है और साधक में धैर्य अनिवार्य होना चाहिए. लेकिन इसके अलावा इन्ही क्रमो से सबंधित कई लघु प्रयोग भी तंत्र में निहित है. 

स्वप्न एक एसी ही क्रिया है जो मन के माध्यम से सम्प्पन होती है. निंद्रा समय में अर्धजागृत मन क्रियावान हो कर व्यक्ति को अपनी चेतना के माध्यम से जो द्रश्य दिखता तथा अनुभव करता है वही स्वप्न है. 

चेतना ही वो पूल है जो आतंरिक और बाह्य ब्रम्हांड को जोडता है, मनुष्य की चेतना से सबंधित होने के कारण स्वप्न भी एक धागा है जो की इस कार्य में अपना योगदान करता है. 

यु इसी तथ्य को ध्यान में रख कर हमारे ऋषिमुनि तथा साधको ने इस दिशा में शोध कार्य कर ये निष्कर्ष निकला था की हर एक स्वप्न का अपना ही महत्त्व है तथा ये मात्र द्रश्य न हो कर मनुष्य के लिए संकेत होते है लेकिन इसका कई बार अर्थ स्पष्ट तो कई बार गुढ़ होता है. 

इसी के आधार पर स्वप्नविज्ञान, स्वप्न ज्योतिष, स्वप्न तंत्र आदि स्वतंत्र शाखाओ का निर्माण हुआ. स्वप्न तंत्र के अंतर्गत कई प्रकार की साधना है जिनमे स्वप्नों के माध्यम से कार्यसिद्ध किये जाते है. 

इस तंत्र में मुख्य देव स्वप्नेश्वर है तथा देवी स्वप्नेश्वरी. देवी स्वप्नेश्वरी से सबंधित कई इसे प्रयोग है जिससे व्यक्ति स्वप्न में अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त कर सकता है. व्यक्ति के लिए यह एक नितांत आवश्यक प्रयोग है क्यों की जीवन में आने वाले कई प्रश्न ऐसे होते है जो की बहोत ही महत्वपूर्ण होते है लेकिन उसका जवाब नहीं मिलने पर जीवन कष्टमय हो जाता है. 

लेकिन तंत्र में ऐसे विधान है जिससे की स्वप्न के माध्यम से अपने किसी भी प्रकार के प्रश्नों का समाधान प्राप्त हो सकता है. ऐसा ही एक सरल और गोपनीय विधान है देवी स्वप्नेश्वरी के सबंध में. अन्य प्रयोगों की अपेक्षा यह प्रयोग सरल और तीव्र है.

इस साधना को साधक किसी भी सोमवार की रात्रिकाल में ११ बजे के बाद शुरू करे.

साधक के वस्त्र आसान वगेरा सफ़ेद रहे. दिशा उत्तर.
साधक को अपने सामने सफ़ेदवस्त्रों को धारण किये हुए देवी स्वप्नेश्वरी का चित्र या यन्त्र स्थापित करना चाहिए.

 अगर ये उपलब्ध ना हो तो सफ़ेद वस्त्र माला को धारण किये हुए अंत्यंत ही सुन्दर और प्रकाश तथा दिव्य आभा से युक्त चतुर्भुजा शक्ति का ध्यान कर केअपने प्रश्न का उतर देने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. उसके बाद साधक अपने प्रश्न को साफ़ साफ़ अपने मन ही मन ३ बार दोहराए. उसके बाद मंत्र जाप प्रारंभ करे. 

इस साधना में ११ दिन रोज ११ माला मंत्र जाप करना चाहिए. यह मंत्रजाप सफ़ेदहकीक, स्फटिक या रुद्राक्ष की माला से किया जाना चाहिए.

ॐ स्वप्नेश्वरी स्वप्ने सर्व सत्यं कथय कथय ह्रीं श्रीं ॐ नमः

मन्त्र जाप के बाद साधक फिर से प्रश्न का तिन बार मन ही मन उच्चारण कर जितना जल्द संभव हो सो जाए.

 निश्चित रूप से साधक को साधना के आखरी दिन या उससे पूर्व भी स्वप्न में अपना उत्तर मिल जाता है और समाधान प्राप्त होता है.

 जिस दिन उत्तर मिल जाए साधक चाहे तो साधना उसी दिन समाप्त कर सकता है. साधक को माला को सुरक्षित रख ले. भविष्य में इस प्रयोग को वापस करने के लिए इसी माला का प्रयोग किया जा सकता है.

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मंगल दोष का निवारण ओर ज्योतिष शास्त्र





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1.

चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि में हो और उसपर क्रूर ग्रहों की दृष्टि नहीं हो तो निवारण होता है। 

2.

मंगल राहु की युति होने से मंगल दोष का निवारण हो जाता है। 

3.

लग्न स्थान में बुध व शुक्र की युति होने से इस दोष का परिहार हो जाता है! 

4.

कर्क और सिंह लग्न में लगनस्थ मंगल अगर केन्द्र व त्रिकोण का स्वामी हो तो यह राजयोग बनाता है जिससे मंगल का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है! 

5.

वर की कुण्डली में मंगल जिस भाव में बैठकर मंगली दोष बनाता हो कन्या की कुण्डली में उसी भाव में सूर्य, शनि अथवा राहु हो तो मंगल दोष का शमन हो जाता है!

 6.

जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वें भाव में स्थित मंगल यदि स्व, उच्च मित्र आदि राशि नवांश का, वर्गोत्तम, षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा..इत्यादि!

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“मैथुन योग में जो अभ्यास किया जाता है





“मैथुन योग में जो अभ्यास किया जाता है


वीर और नारी द्वारा

 ऊपर की ओर वे सांस के कोच को उठाते हैं
क्षेत्रों / पारंपरिक दाएं और बाएं में इसके पहिए हैं;

वहाँ वे स्वर्ग का पानी इकट्ठा करते हैं
और कभी नहीं थकने वाले अंगों को कठोरता के बारे में पता है।

 .                                .........               .........

सिद्धों के शब्द भैरवी क्रिया की इस प्राचीन शक्तिशाली तांत्रिक तकनीक को सभी को आरंभ करते हैं। 

भैरवी क्रिया एक सुंदर और सटीक साँस लेने का अभ्यास है जिसमें तांत्रिक व्यवसायी सांस और दृश्य का उपयोग मानसिक रूप से सिर के मुकुट के ऊपर केंद्र की ओर यौन ऊर्जा के सार का निर्देशन करने के लिए करता है | 

जिसमें दिव्य उपस्थिति रहती है। तकनीक प्रकाश-ऊर्जा का संरक्षण करती है ताकि यह शरीर के बाहर खो न जाए। भैरवी की कौल मार्ग तंत्र की मुख्य तकनीक है। तकनीक का अभ्यास प्रतिदिन किया जाता है। 

इसे पूरा करने के लिए सुबह और शाम दोनों समय लगभग 24 मिनट का समय लगता है। 

वीर और योगिनी मुद्रा का कौलागामा संदर्भ साहस की एक स्वीकारोक्ति है जो विराट साधक कामुकता को प्रचलित सामाजिक दृष्टिकोण के बजाय कामुकता को एक दिव्य घटना के रूप में देखने के लिए चेतना को पुन: उत्पन्न करने में प्रदर्शित करता है। वीरा साधक शब्द का प्रयोग तांत्रिक ग्रंथों में अक्सर किया जाता है।

भैरवी क्रिया (ब्रेस्ट ऑफ एक्स्टसी) की विशिष्ट तकनीक का नाम भैरवी ब्राह्मणी के नाम पर रखा गया था, जो गौड़ीय परंपरा से प्रसिद्ध महिला बंगाली तांत्रिक थी। वह वास्तव में एक उच्च आत्मा थी! 

वह और कोई नहीं, बल्कि माताजी का अवतार था, और उसने महान रामकृष्ण को 64 तांत्रिक क्रियाओं की पूरी श्रृंखला सिखाई, जिसमें भैरवी की अस्थियां भी शामिल थीं।

उमानंदनाथ
[कौलाचार्य, कामाख्या गुरुकुलम]

|| उद्देश्य || 

हम आम जनमानस को धर्म, आध्यात्म के विषय में सैद्धान्तिक जानकारियां उपलब्ध करा सकें, तथा धर्म, आध्यात्म के नाम पर समाज में फैली भ्रांतियों का निराकरण कर आम जनमानस को सही दिशा प्रदान कर सकें ||

और ज्यादा जानकारी समाधान और उपाय या रत्न या किसी भी प्रकार की विधि या मंत्र प्राप्ति के लिए संपर्क करें और समाधान प्राप्त करें 

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

 बिना गुरू साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है बिना गुरु आज्ञा साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

विशेष -

किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें

महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

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Wednesday, May 29, 2019

बहुत कम लोग जानते हैं गायत्री मंत्र की खास बातें और चमत्कारी उपाय…







बहुत कम लोग जानते हैं गायत्री मंत्र की खास बातें और चमत्कारी उपाय…

मंत्र जप ऐसा उपाय है जिससे किसी भी प्रकार की समस्या को दूर किया जा सकता है। मंत्रों की शक्ति से सभी भलीभांति परिचित हैं। 

मनचाही वस्तु प्राप्ति और इच्छा पूर्ति के लिए मंत्र जप से अधिक अच्छा साधन कोई और नहीं है। सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र सबसे दिव्य और चमत्कारी है। इस जप से बहुत जल्द परिणाम प्राप्त हो जाते हैं।

यहां जानिए मंत्र से जुड़ी खास बातें और चमत्कारी उपाय…

गायत्री मंत्र विद्या का प्रयोग भगवान की भक्ति, ब्रह्मज्ञान प्राप्ति, दैवीय कृपा प्राप्त करने के साथ ही सांसारिक एवं भौतिक सुख-सुविधाओं, धन प्राप्त करने की इच्छा के लिए भी किया जा सकता है।

ये है गायत्री मंत्र:-  

ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों को सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इस मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता हैं। 

गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए।

मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। 

इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए। 

गायत्री मंत्र का अर्थ: सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते है, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें। 
शास्त्रों में इसके जाप की विधि विस्तृत रूप से दी गई हैं। इस मंत्र को जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है।

इस मंत्र के जप से हमें यह लाभ प्राप्त होते हैं…

उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है।

विद्यार्थीयों के लिए-

गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु विद्यार्थियों के लिए तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है।

 विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात मिल जाती है।

दरिद्रता के नाश के लिए-

यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है।

 शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है।

संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए… 

किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान से दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर यौं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है।

शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए…

यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे क्लीं बीज 

मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।

विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो…

यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए ह्रीं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं। 

यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो…

यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। 

जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग का नाश होता हैं।

जो भी व्यक्ति जीवन की समस्याओं से बहुत त्रस्त है यदि वह यह उपाय करें तो उसकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। उपाय इस प्रकार है पीपल, शमी, वट, गूलर, पाकर की समिधाएं लेकर एक पात्र में कच्चा दूध भरकर रख लें एवं उस दूध के सामने एक हजार गायत्री मंत्र का जाप करें। 

इसके बाद एक-एक समिधा को दूध में छुआकर गायत्री मंत्र का जप करते हुए अग्रि में होम करने से समस्त परेशानियों एवं दरिद्रता से मुक्ति मिल जाती है।

किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध, दही, घी एवं शहद को मिलाकर एक हजार गायत्री मंत्रों के साथ हवन करने से चेचक, आंखों के रोग एवं पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं। इसमें समिधाएं पीपल की होना चाहिए। 

गायत्री मंत्रों के साथ नारियल का बुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है। नारियल के बुरे मे यदि शहद का प्रयोग किया जाए तो सौभाग्य में वृद्धि होती हैं। 

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श्रीविचित्र-वीर-हनुमन्-माला-






श्रीविचित्र-वीर-हनुमन्-माला-मन्त्र


श्री हनुमान जी का माला मंत्र सभी प्रकार की आसुरी शक्तियों का नाश करने वाला है और शत्रु समूह को नष्ट करने वाला है । 

सभी प्रकार  की पैशाचिक बाधाओं को दूर करने वाला है और आप हमारा अनुभूत प्रयोग है आप भी इस प्रयोग को करके अनुभव करें.

प्रस्तुत 'विचित्र-वीर-हनुमन्-माला-मन्त्र' दिव्य प्रभाव से परिपूर्ण है। इससे सभी प्रकार की बाधा, पीड़ा, दुःख का निवारण हो जाता है। शत्रु-विजय हेतु यह अनुपम अमोघ शस्त्र है। 

पहले प्रतिदिन इस माला मन्त्र के ११०० पाठ १० दिनों तक कर, दशांश गुग्गुल से 'हवन' करके सिद्ध कर ले।

 फिर आवश्यकतानुसार एक बार पाठ करने पर 'श्रीहनुमानजी' रक्षा करते हैं। सामान्य लोग प्रतिदिन केवल ११ बार पाठ करके ही अपनी कामना की पूर्ति कर सकते हैं।

 विनियोग, ऋष्यादि-न्यास, षडंग-न्यास, ध्यान का पाठ पहली और अन्तिम आवृत्ति में करे।

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीविचित्र-वीर-हनुमन्माला-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्रो भगवान् ऋषिः। अनुष्टुप छन्दः। श्रीविचित्र-वीर-हनुमान्-देवता। ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे माला-मन्त्र-जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः-

श्रीरामचन्द्रो भगवान् ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। श्रीविचित्र-वीर-हनुमान्-देवतायै नमः हृदि। ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे माला-मन्त्र-जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

षडङ्ग-न्यासः-

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः (हृदयाय नमः)। ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः (शिरसे स्वाहा)। ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः (शिखायै वषट्)। ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः (कवचाय हुं)। ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः (नेत्र-त्रयाय वौषट्)। ॐ ह्रः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः (अस्त्राय फट्)।
ध्यानः-
वामे करे वैर-वहं वहन्तम्, शैलं परे श्रृखला-मालयाढ्यम्।
दधानमाध्मातमु्ग्र-वर्णम्, भजे ज्वलत्-कुण्डलमाञ्नेयम्।।

माला-मन्त्रः-

"ॐ नमो भगवते, विचित्र-वीर-हनुमते, प्रलय-कालानल-प्रभा-ज्वलत्-प्रताप-वज्र-देहाय, अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, प्रकट-विक्रम-वीर-दैत्य-दानव-यक्ष-राक्षस-ग्रह-बन्धनाय, भूत-ग्रह, प्रेत-ग्रह, पिशाच-ग्रह, शाकिनी-ग्रह, डाकिनी-ग्रह ,काकिनी-ग्रह ,कामिनी-ग्रह ,ब्रह्म-ग्रह, ब्रह्मराक्षस-ग्रह, चोर-ग्रह बन्धनाय, एहि एहि, आगच्छागच्छ, आवेशयावेशय, मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय, स्फुट स्फुट, प्रस्फुट प्रस्फुट, सत्यं कथय कथय, व्याघ्र-मुखं बन्धय बन्धय, सर्प-मुखं बन्धय बन्धय, राज-मुखं बन्धय बन्धय, सभा-मुखं बन्धय बन्धय, शत्रु-मुखं बन्धय बन्धय, सर्व-मुखं बन्धय बन्धय, लंका-प्रासाद-भञ्जक। सर्व-जनं मे वशमानय, श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षयाकर्षय, शत्रून् मर्दय मर्दय, मारय मारय, चूर्णय चूर्णय, खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया प्रज्ञया मम कार्य-सिद्धिं कुरु कुरु, मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्र-वीर-हनुमते। मम सर्व-शत्रून् भस्मी-कुरु कुरु, हन हन, हुं फट् स्वाहा।।"
ओं रां रामाय नम:.

आप अपनी जन्म कुंडली के दोष निवारण हेतू सटीक उपाय और
 एवं मंत्र साधनाएं संबंधित जानकारी के लिए सम्पर्क करे।

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Tuesday, May 28, 2019

आदिशक्ति कामाख्या की साधना





आदिशक्ति कामाख्या की साधना


मित्रों आज माता आदिशक्ति कामाख्या की साधना बता रहा हु ये साधना हर क्षेत्र मे कार्य पुर्ण करने वाली  और  प्रेम प्रसंगो मे बहुत  लाभ देने वाली है  इस साधना को स्त्री पुरुष दोनो कर सकते है .

 जिसके  प्रेम विवाह मे अड़चन आ रही हो  पति या पत्नी किसी और के प्रेम मे हो  या वैवाहिक जीवन उदासीन हो ऐसे स्त्री पुरुषों के लिए ये साधना बहुत लाभकारी है    

  
ये साधना  अति तीव्र फल देने वाली है इस साधना मै कोई बंधन नहीं है ना कोई दिनो का बंधन है। बस अपने कार्य का संकल्प करे और माता कामाख्या से प्रार्थना करे कार्य सफलता के लिये  .

इस मे जाप करते समय अपने सामने केवल शुद्ध घी का दीपक जलाएं और उसमे थोडी शराब मिला ले 

जाप रात्रि में करना है 10 बजे के बाद या सुबह 4 बजे से  या दुपहेर को 1बजे  माला  मोती की या स्फाटिक की ले  दिशा का कोई  बंधन नही  है ना वस्त्र और ना ही आसन का     
एक माला मंत्र जप रोज करना है जव तक कार्य मे सफलता ना मिले

मंत्र

l त्रीं त्रीं त्रीं हूँ हूँ  स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये प्रसीद  स्त्रीं स्त्रीं हूँ हूँ त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा ll

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

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एक प्रश्न की ग्रेहों के यंत्र कब और कियूं पहनने चाहिए





एक प्रश्न की ग्रेहों के यंत्र कब और कियूं पहनने चाहिए ।


जब में ज्योतिष सीख रहा था ( वेसे तो मैं आज भी सीख रहा हुँ ये वो समुन्दर है जिसका कोई अंत नही ) तब मेरी मुलाकात एक बहुत जाने माने ज्योतिषी से हुई वो ज्योतिष सामग्री के बहुत से प्रोडक्ट्स निकलते थे उनकी एक ज्योतिष पर पत्रिका भी निकलती थी तब मैं ज्योतिष की पत्रिकाओं में लिखा भी करता था अब बहुत समय होगया इस बात को।

उनका एक प्रोडक्ट था  जिस में  राहु  चन्दर और बुध के रत्न लगे थे । इन तीनो ग्रेहों का आपस मे कोई मेल नही और वो लॉकेट  विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए था ।

तब में उन से पूछा ये किआ है आपने ऐसे कुयँ बना दिया इनका आपस मे कोई मेल नही गलत है ये ..

वो सिर्फ मुस्कुरा दिए कोई जवाब नही दिया तब मेरी समझ मे आया की मुझ में कमी है ज्ञान की ...
बहुत विचार किया मन मे इस बात पर और आखिर में वो बात समझ मे आगई ।

यही बात ग्रेहों के यंत्रों पर भी लागू होती है कि यन्त्र कब पहना जाए जब ग्रह बुरा फल दे रहा हो या अच्छा फल 

दोनों परस्थितियों में यन्त्र धारण किया जा सकता है बस पूजा के समय किआ गया संकल्प ही काम करता है कि हम ग्रह के बुरा प्रभाव शांत करने का संकल्प करते है या अच्छा प्रभाव बढ़ाने का 

जैसा संकल्प होगा वेसे यन्त्र या रत्न काम करते है 

हर पूजा से पहले संकल्प लिया जाता है कि पूजा किस लिए की जा रही है ताकि हमें उस पूजा का वही फल मिले

किसी भी काम से पहले संकल्प बहुत जरूरी है बेशक यन्त्र पहनना हो या रत्न बेशक कोई उपाए करना हो ।
बिना संकल्प कुछ भी फल नही मिलता ।।

और ज्यादा जानकारी है समाधान और उपाय कुंडली विश्लेषण रत्न विश्लेषण की जानकारी प्राप्ति के लिए संपर्क करें..

जादा जानकारी और समाधान और उपाय या रत्न विश्लेषण समाधान प्राप्त के लिए सम्पर्क करे।

 जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 

दक्षिणा  -  201  मात्र .

paytm number - 9958417249 .

विशेष

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...