पितृ मुक्ति रसेश्वर प्रयोग
रसतन्त्र सदा से मनुष्य के लिए आकर्षण का विषय रहा है.क्युकी ये एक ऐसा विषय है जो साधक को सब कुछ दे देने में समर्थ है.किन्तु जितनी इस क्षेत्र में दिव्यता है,उतना ही परिश्रम भी है.
रस तंत्र के साधको ने समय समय पर समाज के समक्ष कई साधनाये रखी जो कि अपने आप में अद्भूत है.आज भी हम पारद से जुडी कई कई साधनाये संपन्न करते है तथा उसके लाभ को अपने जीवन में अनुभूत करते है.
ऐसी कोई साधना नहीं है जो पारद विज्ञानं से दूर रही हो,चाहे महालक्ष्मी हो या कुबेर प्रयोग हो,या स्वर्णाकर्षण साधना ही क्यों न हो सभी पारद के माध्यम से कई कई बार संपन्न कि गयी है.
जहा हम पारद विग्रह के माध्यम से देवी देवता इतर योनि आदि को आकर्षित कर प्रसन्न कर सकते है,वही इन दिव्य विग्रह पर साधना कर आप पितृ दोष से मुक्त हो पित्रो कि कृपा के पात्र भी बन सकते है.
प्रश्न उठता है कि क्या ये सम्भव है कि हम पारद शिवलिंग के माध्यम से पितृ शांति कर सके ? क्या पारद शिवलिंग के माध्यम से पित्रो कि कृपा प्राप्त कि जा सकती है ?
जी हाँ
पारद में अद्भूत आकर्षण है.जो शेषनाग को भी अपनी और खीच ले.नागकन्याओ का सम्मोहन कर उन्हें अपने समक्ष आने पर विवश कर दे.तो फिर पितृ क्यों आकर्षित नहीं होंगे भला.
सामान्य रूप से हम पित्रो कि तृप्ति के लिए तर्पण आदि का सहारा लेते है.और ये अत्यंत प्राचीन विधान भी है.जिसके अंतर्गत पिंड दान,तर पिंडी आदि भी आती है.उसी प्रकार रस तंत्र के ज्ञानी हमें पारद के क्षेत्र में भी पित्रो के कई कई विधान प्रदान करते है.उनमे से ही एक साधना है जिसे रस क्षेत्र में " पितृ मुक्ति रसेश्वर प्रयोग " के नाम से जाना जाता है.
नाम से ही ज्ञात होता है कि प्रस्तुत विधान पित्रो कि मुक्ति से सम्बन्ध रखता है.
मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार गति पाता है.उसी अनुसार उसे पुनः गर्भ में भेज दिया जाता है ताकि वो अपने कर्मो का भोग कर मुक्ति प्राप्त कर सके.परन्तु कभी कभी कर्म अधिक दूषित होने पर मनुष्य को गर्भ कि भी प्राप्ति नहीं होती है.
और उसे अन्य योनियों में भटकना पड़ता है, जिन्हे हम भूत,प्रेत या पिशाच आदि के नामो से जानते है.इसके अतिरिक्त यदि मनुष्य इन सबसे बच भी जाये तो उसकी आत्मा ब्रह्माण्ड में अतृप्त हो मुक्ति कि चाह में विचरण करती रहती है.और अपने वंशजो को कष्ट पहुचाती रहती है.
ताकि वो इन कष्टो से व्यथित हो उनकी मुक्ति का उपाय करे.प्रस्तुत साधना आज इसी विषय पर है,जिसके करने मात्र से पितृ मुक्त हो जाते है.यदि परिवार का कोई सदस्य किसी अन्य योनि में कष्ट भोग रहा हो तो उसे मुक्ति मिलती है,तथा वो सद्गति पाता है.
और जब पितृ सद्गति को प्राप्त कर लेते है तो वंशजो कि प्रगति निश्चित है.क्युकी अब पितरो कि और से दी जा रही बाधा सदा सदा के लिए समाप्त हो जाती है.
ये प्रयोग पारद शिवलिंग पर किया जाता है क्युकी साधना के मध्य पारद पित्रो का आकर्षण करता है और उन्हें खीचकर साधक के कक्ष तक लाता है.और साधना के अंत में यही पितृ साधना का समस्त पुण्य लेकर पितृ लोक कि और विदा लेते है तथा मुक्ति के मार्ग कि और बढ़ जाते है.
इसके साथ ही साधक को आशीर्वाद देते है, जिससे साधक अध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही सुख प्राप्त करता है.तो मित्रो साधना को कर आप अपने पितरो के ऋण से मुक्त होने का प्रयत्न करे.
जिन्होंने आपको जन्म दिया जिनके कारण आपका अस्तित्व है उन्हें समस्त कष्टो से मुक्त कर उन्हें सद्गति प्रदान करवाये।इससे बड़ा उपहार और कोई नहीं होगा जो आप अपने पितरो को दे सके.सभी साधको के लिए प्रस्तुत है. पितृ मुक्ति रसेश्वर प्रयोग।
ये प्रयोग आप किसी भी पूर्णिमा से या सोमवार प्रातः ४ से ९ के मध्य कर सकते है.स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण कर श्वेत आसन पर दक्षिण कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर ताम्र या स्टील कि थाली रखे.अब इस थाली में काले तील और सफ़ेद तील मिलाकर एक ढेरी बना दे.
अब पारद शिवलिंग को दूध तथा जल से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र से पोछकर इस ढेरी पर स्थापित कर दे। इसके बाद गुरु तथा गणपति का सामान्य पूजन कर गुरु मंत्र तथा गणपति मंत्र कि एक माला करे.इसके बाद पारदेश्वर का सामान्य पूजन करे.तथा शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे.भोग में केसर मिश्रित खीर पारदेश्वर को अर्पित करे.
इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि में ये पितृ मुक्ति रसेश्वर प्रयोग अपने पितरो कि शांति तथा मुक्ति हेतु कर रहा हु,तथा पितृ दोष से मुक्ति हेतु एवं पितृ शांति हेतु कर रहा हु,भगवान पारदेश्वर मेरी मनोकामना को पूर्ण करे तथा मुझे साधना में सफलता प्रदान करे.
जल जमीन पर छोड़ दे.अब कुछ मंत्र दिए जा रहे है, सभी का आपको १०८ बार पाठ करना है और जिस मंत्र के आगे जो सामग्री लिखी गयी है वो पारदेश्वर पर अर्पित करना है.एक बार मंत्र पड़ना और सामग्री अर्पित करना इसी प्रकार हर मंत्र को १०८ बार पड़कर अर्पण करते जाना है.
ॐ भूत मुक्तेश्वराय नमः ( काले तील )
ॐ प्रेत मुक्तेश्वराय नमः ( सफ़ेद तील )
ॐ पिशाच मुक्तेश्वराय नमः ( जौ )
ॐ श्मशानेश्वराय नमः ( गाय के कंडे या लकड़ी से बनी भस्म )
ॐ सर्व मुक्तेश्वराय नमः ( सफ़ेद तथा काले तील मिश्रित )
ॐ पितृ मुक्तेश्वराय नमः ( सफ़ेद,काले तील तथा जौ मिश्रित )
ॐ रसेश्वराय नमः ( दूध मिश्रित जल को पुष्प से छीटे )
इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र कि ७ माला जाप करे.
ॐ हरीहर पितृमुक्तेश्वर पारदेश्वराय नमः
प्रत्येक माला कि समाप्ति के बाद थोड़े अक्षत पारदेश्वर पर अर्पण करे.जब जाप पूर्ण हो जाये तब सम्पूर्ण पूजन भगवान् शिव को अर्पित कर दे.तथा उनसे पितृ शांति,पितृ मुक्ति तथा पितृ दोष निवारण कि प्रार्थना करे.भोग कि खीर नित्य गाय को खिला दे.तथा साधना के बाद पुनः स्नान करे.
इसी प्रकार साधना को 7 दिन करे.साधना समाप्ति के बाद पारदेश्वर को स्नान कराकर पूजा घर में ही स्थापित कर दे.तथा समस्त समग्री जो पात्र में एकत्रित हुई है उन्हें बाजोट पर बिछे वस्त्र में बांधकर किसी पीपल वृक्ष के निचे गाड़ दे ये सम्भव न हो तो वृक्ष के निचे रख आये.परन्तु प्रयत्न यही करे कि सारी सामग्री गाड़ी जाये।इस प्रकार ये दिव्य विधान पूर्ण होता है.
निसंदेह साधक के सभी पितृ इस प्रयोग से तृप्त हो साधक को आशीर्वाद प्रदान करते है.पितृ दोष का नाश होता है.पितृ शांति हो जाती है.तथा पितरो को सद्गति प्राप्त होती है.कुपित हुए पितृ शांत हो साधक को आर्थिक,देहिक तथा मानसिक बल प्रदान कर सुखी करते है.साधको प्रयोग को स्वयं कर अनुभव करे.
तथा अपने पितरो के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करे.आपको साधना में सफलता प्राप्त हो तथा पारदेश्वर आपके पितरो को शांति प्रदान करे इसी कामना के साथ ,प्राथना करें
राजगुरु जी
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(रजि.)
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