बृहस्पति देव देवताओं के गुरु हैं, उन्हें देवताओं के गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। भगवान शंकर ने उनके तप से प्रसन्न होकर देव गुरु बनाया था। जब-जब देवता संकट में घिरते हैं तो देवगुरु उनकी सहायता करते है। उनकी कृपा से वे संकटों से उभर पाते हैं। ऐसे देवगुरु की महिमा बखान तमाम धर्म शास्त्रों में विविध रूपों मंे किया गया है। बृहस्पति देव धनु व मीन राशि के स्वामी है। इनकी महादशा 16 वर्ष की होती है।
देव गुरु बृहस्पति को पीत रंग बेहद पंसद है। वे पीत वर्ण के हैं। उनके सिर पर स्वर्ण मुकुट व गले में सुंदर माला सुशोभित है। वे पीले वस्त्र धारण करते है और कमल के आसन पर विराजमान रहते हैं। उनके हाथों में क्रमश: दंड, रुद्राक्ष की माला, पात्र व वरमुद्रा सुशोभित रहती है।
बृहस्पति देव देखने में अत्यन्त सुंदर हैं। इनका आवास स्वर्ण निर्मित है। यह विश्व के लिए वरणीय है। वे जिस भक्त पर प्रसन्न होते है, उसे बुद्धि-बल और धन-धान्य से सम्पन्न कर देते हैं। उसे सन्मार्ग पर चलाते हैं और विपत्ति आने पर उसकी रक्षा भी करते हैं।
शरणागतवत्सलता इनमें कूट-कूट कर भरी है। इनका वाहन रथ है, जो सोने का बना है और अत्यन्त सुख साधनों से युक्त और सूर्य के समान ही भास्वर है। इसमें वायु के समान वेग वाले आठ घोड़े जुते हुए हैं। इनका सुवर्ण निर्मित दंड भी है। जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
देवगुरु की पहली पत्नी का नाम शुभा और दूसरी पत्नी का नाम तारा है। शुभा से सात कन्याएं उत्पन्न हुई हैं, जो भानुमति, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती हैं। उनकी पत्नी तारा के सात पुत्र और एक कन्या है। उनकी तीसरी पत्नी ममता से भरद्बाज औश्र कचन नाम के दो पुत्र हुए हैं। बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं।
बृहस्पति देव महर्षि अंगरा के पुत्र और देवताओं के पुरोहित हैं। वे अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनके भाग का यज्ञ भाग प्राप्त करा देते हैं। जब असुर यज्ञ में बाधा डाल कर देवताओं को भूखा मार देना चााहते हैं तो देवगुरु रक्षोन्घ मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं की रक्षा करते हैं। उनके प्रभाव से दैत्य भाग खड़े होते हैं।
ये देवताओं के आचार्य कैसे बने? और इन्हें ग्रहत्व कैसे प्राप्त हुआ?, इसका विस्तृत वर्णन स्कन्दपुराण में मिलता है। एक समय की बात है कि बृहस्पति देव ने प्रभास तीर्थ में जाकर भगवान शंकर का कठोर तप किया था। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें देव गुरु का पद व ग्रहत्व प्रदान किया था। बृहस्पति देव एक-एक राशि में एक-एक वर्ष रहते हैं। वक्र गति होने पर इनमें अंतर हो जाता है।
बृहस्पति देव की शांति व प्रसन्नता के लिए क्या करें
बृहस्पति देव की प्रसन्नता व शांति के लिए हर अमावस्या और बृहस्पति का व्रत करना चाहिए। पीला पुखराज धारण करने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मणों को दान देने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते है, इनकी प्रसन्नता के लिए ब्राह्मणों को दान में पीला वस्त्र, सोना, हल्दी, घी, पीला अन्न, पुखराज,अश्व, पुस्तक, मधु, लवण, शर्करा, भूमि और छत्र देना चाहिये।
बृहस्पति की शांति के लिए वैदिक मंत्र
ऊॅँ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्बिभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं ध्ोहि चित्रम्।।
बृहस्पति की शांति के लिए पौराणिक मंत्र
देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसंनिभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकशं तं नमामि बहस्पतिम्।।
बीज मंत्र
ऊॅॅँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
सामान्य मंत्र
ऊॅॅँ बृं बृहस्पये नम:
इनमें से किसी भी एक मंत्र का श्रद्धानुसार प्रतिदिन जप निश्चित संख्या में करना चाहिए। जप की संख्या 19००० और समय संध्याकाल है।
राजगुरु जी
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