Tuesday, October 30, 2018

64 योगिनी महा यंत्र





64 योगिनी महा यंत्र

इस यंत्र का महत्त्व नाथ सम्प्रदाय में अन्यतम है। कहा जाता है की यह साबर और महाविद्याओं की साधना में अनिवार्य है। इस यंत्र को योगिनी हृदयँ में महायंत्र की संज्ञा दी गई है।

यह यंत्र सदा ही गोपनीय रहा है क्योकि यह 64 योगिनियों को समर्पित है जो समस्त नाथ ,साबर ,अघोर आदि साधनाओ की सिद्धिदात्री है। बिना 64 योगिनी की सहायता से इन सभी साधनाओ में सफलता संदिग्ध ही रहती है। 

बहुत दिनों से इस यंत्र की खोज में थे। आखिरकार हमे एक सिद्ध योगी से इसकी पूर्ण विधि प्राप्त हो गयी और साथ ही उसने सात्विक और तामसिक दोनों ही विधियों हमे बतादी जो इसे सिद्ध करने के लिए जरूरी है।

 सात्विक विधि में जहां नारियल, आदि सात्विक वस्तुए एक एक 64 योगिनी को समर्पित की जाती है वाही तामसिक विधि में मीट एवं मद्ध का इस्तमाल होता है।

 इस यंत्र को सर्वप्रथम भोजपत्र या ताँबे में बनाया जाता है फिर एक-एक योगिनी की पूजा अर्चना एवं मन्त्र जपना परता है।इसके बाद मूल योगिनी मन्त्र का पाठ कर हवंन कर इस यंत्र को सिद्ध करा जाता है। हमने जो लाभ इस यंत्र से अनुभव करे है -

# हर प्रकार की साधना में विचित्र अनुभव क्योकि 64 योगिनीय हमारी हर साधना में सफलता प्रदान करती है ।

#आध्यात्मिक रहस्यों एवं ज्ञान की प्राप्ति स्वप्न, शुषुप्ति अवस्था में। # कुण्डलिनी जागरण में तीव्रता से सफल होना

#साबर मंत्रो की सिद्धि

# पूर्ण सुरक्षा

# हमारे अनुभव में यह भी आया है की इस यंत्र के धारण से व्यक्ति की इच्छाओ की पूर्ती जल्द होती है। 64 योगिनियां महाविद्या साधना में विशेष सफलता प्रदान करती है।

 वास्तव में यह यंत्र धारणीय एवं पूजनीय है। और हमारा खुद का अनुभव है की साधक को इसे सिद्ध करना ही चाइये। 

यह यंत्र एक अखाड़े के योगी से मुझे प्राप्त है और उनके वचन से बंधे होने के कारण मैं इसकी पूर्ण विधि कही प्रकाशित नहीं करूँगा।

 इसलिए जो भी इस महायंत्र की पूर्ण विधि जानना चाहते है कृपया मुझे personally फ़ोन करके ले ले क्योकि मैं भी वचनबद्ध हूँ। 

राज गुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

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मोबाइल नं. : - 09958417249

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एक मंत्र जो पलट देगा टोने-टोटके का वार






एक मंत्र जो पलट देगा टोने-टोटके का वार

दोस्तों की भीड़ में दुश्मनों को पहचानना मुश्किल हो जाता है. आप नहीं समझ सकते कि कब कौन आपके पीठ पीछे वार कर आपको धोखा देकर चला जाए. दोस्ती और प्यार के नाम पर दगा देने वाले भी बहुत लोग होते हैं. 

आपकी कोई बात किसी को कितनी बुरी लग गई और इसका बदला लेने के लिए वो किस हद तक पहुंच जाएगा आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकते.

बगलामुखी, एक ऐसी तंत्र साधना है जिसके जरिए लोग वशीकरण, मारण, उच्चाटन आदि जैसी क्रियाओं को अंजाम देते हैं. अपने दुश्मन को हर तरह की हानि पहुंचाने के लिए लोग इस तंत्र साधना का प्रयोग करते हैं और तंत्र-मंत्र पर विश्वास करने वाले लोगों की मानें तो इससे बेहतर और कोई विकल्प हो भी नहीं सकता.

तांत्रिक साधना करने वाले लोगों का कहना है कि मुकद्दमा जीतना हो या फिर किए गए टोने के असर को शिथिल करना हो तो बगलामुखी इसका रामबाण इलाज है. जानकारों की मानें तो बाहरी शत्रु इतना नुकसान नहीं पहुंचा सकते जितना आपके अपने साथी और संबंधी पहुंचा सकते हैं. अगर परिवार का कोई सदस्य अपने ही परिवार के सदस्य के साथ कुछ गलत कर रहा है तो भी बगलामुखी के द्वारा उस टोने के असर को पलटा जा सकता है.

बगलामुखी साधना के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां:

1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्याधिक आवश्यक है.

2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है. अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है.

3. किसी डरपोक व्यक्ति या बच्चे के साथ यह साधना नहीं करनी चाहिए. बगलामुखी साधना के दौरान साधक को डराती भी है. साधना के समय विचित्र आवाजें और खौफनाक आभास भी हो सकते हैं इसीलिए जिन्हें काले अंधेरों और पारलौकिक ताकतों से डर लगता है, उन्हें यह साधना नहीं करनी चाहिए.

4. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए.

5. मंत्रों का जाप शुक्ल पक्ष में ही करें. बगलामुखी साधना के लिए नवरात्रि सबसे उपयुक्त है.

6. उत्तर की ओर देखते हुए ही साधना आरंभ करें.

7. मंत्र जाप करते समय अगर आपकी आवाज अपने आप तेज हो जाए तो चिंता ना करें.

8. जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें.

9. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं.

10. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए.

राज गुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

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Monday, October 29, 2018

मंगल के प्रत्येक भाव पर दृष्टि फल





ज्योतिष चर्चा

मंगल के प्रत्येक भाव पर दृष्टि फल

प्रत्येक ग्रह अपने घर से सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है। इसके साथ ही साथ कुछ ग्रह जैसे गुरु, मंगल, शनि व मतांतर से राहु व केतु की कुछ अन्य दृष्टि भी होती है। इसके अतिरिक्त मंगल की अन्य दृष्टि भी होती है। जिसे एक पाद, द्विपाद कहते हैं परंतु फल पूर्ण दृष्टि का होता है इसलिए हम यहां मंगल की पूर्ण दृष्टि के फल की चर्चा करेंगे मंगल अपनी सातवीं दृष्टि के अतिरिक्त चतुर्थ, अष्टम भाव को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।

प्रथम भाव👉  अर्थात लग्न पर यदि मंगल की दृष्टि हो तो ऐसा जातक उग्र प्रवृत्ति का, प्रथम जीवन साथी का 22 वर्ष अथवा 28 वर्ष की आयु में भी वियोग तथा भूमि के माध्यम से आर्थिक लाभ प्राप्त करने वाला होता है।

द्वितीय भाव👉 पर मंगल की यदि पूर्ण दृष्टि हो तो जातक गुदा रोगी, परिवार से अलग रहने वाला होता है। स्वयं के श्रम से धन अवश्य आता है परंतु उसकी मात्रा कम होती है। ऐसा व्यक्ति परिश्रमी भी बहुत होता है लेकिन श्रम का पूर्ण फल ना मिलने से उसका चित्त सदैव उच्चाट व खिन्न रहता है।

तृतीय भाव👉 इस घर पर मंगल की दृष्टि होने से व्यक्ति भाई के प्रेम के सुख से हीन होता है। व्यक्ति पराक्रमी तथा भाग्यवान होता है एक बहन विधवा अवश्य होती है।

चतुर्थ भाव👉 इस भाव पर मंगल की दृष्टि होने से भी जातक माता पिता के सुख से विहीन, श्रम के कार्यों से दूर रहने वाला, 28 वर्ष आयु तक दुखी फिर सुख प्राप्त करने वाला, चतुर्थ भाव तथा भावेश की स्थिति भी शुभ अथवा अनुकूल हो तो वाहन सुख प्राप्त करता है। परंतु शारीरिक कष्ट कुछ ना कुछ बना रहता है।

पंचम भाव👉 इस भाव को मंगल के देखने से व्यक्ति की पहली संतान की मृत्यु अथवा गर्भपात हो सकता है। जातक अनेक भाषा का ज्ञानी, विद्वान परंतु व्यभिचारी तथा संतान से कष्ट पाने वाला तथा उपदंश रोग होता है।

षष्ठ भाव👉 इस घर को मंगल के देखने से व्यक्ति मातृ पक्ष के लिए कष्टकारी होता है अर्थात मामा मौसी को कष्ट होता है। शत्रु को भय देने वाला, रक्त विकार से पीड़ित तथा यश व कीर्ति प्राप्त करने वाला होता है।

सप्तम भाव👉  इस भाव को यदि मंगल पूर्ण दृष्टि से देखें तो व्यक्ति कामी स्वभाव वाला, जीवनसाथी के अतिरिक्त दूसरे से संबंध बनाने वाला, मद्यपान प्रेमी तथा 21 अथवा 28 वर्ष आयु में प्रथम जीवन साथी का वियोग सहने वाला होता है।

अष्टम भाव👉 इस भाव पर मंगल के देखने से जातक की अग्नि अथवा विस्फोट से मृत्यु का भय होता है। ऐसा व्यक्ति अपने पिता के द्वारा संचित धन व कुटुंब का नाश करता है। सदैव ऋण ग्रस्त रहने वाला परिश्रमी परंतु दुखी व भाग्य हीन होता है।

नवम भाव👉  इस भाव पर मंगल की दृष्टि के शुभ फल अधिक मिलते हैं। जातक धनवान, बुद्धिमान व पराक्रमी किंतु नास्तिक भी हो सकता है। 

दशम भाव👉 इस घर पर मंगल की दृष्टि से व्यक्ति सरकारी सेवाओं में नौकरी करने वाला तथा सुखी जीवन व्यतीत करने वाला होता है। भाग्यवान भी होता है परंतु माता पिता के लिए कष्टकारी होता है।

एकादश भाव👉 इस घर पर भी मंगल की दृष्टि से ऐसा व्यक्ति धनवान अवश्य होता है परंतु उसे संतान से कलेश व कष्ट मिलते हैं। परिवार कुटुंब के दुख में स्वयं भी बहुत दुखी होता है।

द्वादश भाव👉  इस भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि से व्यक्ति गलत मार्ग पर चलने वाला, मातृ पक्ष के लिए कष्टकारी, उग्र क्रोधी स्वभाव का शत्रु वर्ग का नाश करने वाला तथा गुदा रोग से पीड़ित व शल्यक्रिया करवाने वाला होता है।

 क्रमशः

अगले लेख में हम मंगल द्वारा होने वाले रोगों के विषय मे चर्चा करेंगे।

राज गुरु जी

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प्रत्यंगिरा साधना






प्रत्यंगिरा साधना 

मनुष्य का जीवन लगातार विविध संघर्षों के बीच बीतता है संघर्ष कई प्रकार के होते हैं और समस्याएं भी कई प्रकार की होती हैं । कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं जब व्यक्ति समस्याओं और बाधाओं के बीच बुरी तरह से घिर जाता है और उसे आगे बढ़ने के लिए कोई मार्ग दिखाई नहीं देता है ।

साधना के क्षेत्र में वह सर्वश्रेष्ठ साधना जो  ऐसी विपरीत परिस्थिति में साधक को चक्रव्यू से निकालकर विजई बनाती है वह साधना है प्रत्यंगिरा साधना ।

प्रत्यंगिरा साधना बेहद उग्र साधना होती है और इस साधना की काट केवल वही व्यक्ति कर सकता है जिसने स्वयं प्रत्यंगिरा साधना कर रखी हो ।

प्रत्यंगिरा साधना करने की अनुमति साधक को अपने गुरु से लेनी चाहिए क्योंकि इस साधना में साधक को कई परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है जिस में सफलता प्राप्त करने के लिए सतत गुरु का मार्गदर्शन वह भी सक्षम गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य होता है ।

प्रत्यंगिरा अनेक प्रकार की होती है जिसमें से सबसे प्रमुख है महा विपरीत प्रत्यंगिरा महा विपरीत प्रत्यंगिरा एक ऐसी साधना है जो हर प्रकार के तंत्र प्रयोग को वापस लौटाने में सक्षम है और विपरीत प्रत्यंगिरा के द्वारा लौटाई गई तांत्रिक शक्तियां गलत कर्म करने वाले साधक को उचित दंड अवश्य देती है

शिव प्रत्यंगिरा

काली प्रत्यंगिरा

विष्णु प्रत्यंगिरा
गणेश प्रत्यंगिरा 

नरसिंह प्रत्यंगिरा सहित विभिन्न दैवीय शक्तियों की प्रत्यंगिरा विद्याएं हैं  जो आप सक्षम गुरु से प्राप्त करके साधना को संपन्न कर सकते हैं  ।

यहां विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य बात यह है की प्रत्यंगिरा साधना बेहद उग्र साधना में गिनी जाती है, इसलिए छोटे बच्चे , बालिकाएं , महिलाएं और कमजोर मानसिक स्थिति वाले पुरुष तथा साधक साधना को गुरु के सानिध्य में उनकी अनुमति से ही संपन्न  करें ।

राज गुरु जी

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बिना सोचे -समझे तांत्रिक उपाय खुद न करें



बिना सोचे -समझे तांत्रिक उपाय खुद न करें

    तंत्र में सभी प्रकार की जीवन से जुडी समस्याओं का समाधान है ,किन्तु अधिकतर विद्वान् अपनी पुस्तकों में एवं फेसबुक जैसे माध्यमो पर सम्पूर्ण प्रक्रिया नहीं देते हैं ,हम भी ऐसा ही करते हैं ,जबकि इनके पीछे के सिद्धांत -कार्यप्रणाली -वस्तुएं-स्थान-समय आदि अलग-अलग दे दी जाती हैं ,ऐसा करने के अपने कारण होते हैं ,सिद्धांत -कार्यप्रणाली देने का कारण होता है की लोग इसे समझ सकें ,जान सकें ,वैज्ञानिकता को देख सकें ,भ्रांतियां दूर हों जबकि सम्पूर्ण प्रक्रिया ,मंत्र आदि न देने का मूल कारण होता है की इनका दुरुपयोग न होने पाए अथवा इनसे हानि न होने पाए ,

            तंत्र दोधारी तलवार होता है जो चूक होने पर खुद का भी नुक्सान कर सकता है ,इसीतरह हर प्रक्रिया के सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों होते हैं ,जैसे वशीकरण से किसी बिगड़े को वश में कर अपने अनुकूल कर पारिवारिक शांति भी लाइ जा सकती है और किसी दुसरे को वश में कर गलत कार्य भी किया जा सकता है ,,

इसीतरह उच्चाटन से किसी को किसी से दूर कर घर में शांति भी लाइ जा सकती है ,गलत होने से रोका भी जा सकता है ,ग्रह बाधा -रोग-वायव्य बाधा दूर भी किया जा सकता है और किसी का घर भी तोड़ा जा सकता है ,कहीं से हटाया भी जा सकता है ,,विद्वेषण से दुश्मनों में फूट भी डाली जा सकती है और किन्ही एक ही परिवार में दुश्मनी भी करवाई जा सकती है ,,

इस प्रकार तंत्र के दुरुपयोग भी हो सकते है, इस लिए भी जब तक साधक या जानकार संपर्क करने वाले व्यक्ति को जान समझ नहीं लेता सही प्रक्रिया ,मंत्र आदि नहीं बताता ,न खुद करता है ,यद्यपि यहाँ अपवाद भी कुछ तांत्रिक होते हैं जो कुछ पैसों के लालच में किसी का बिना सोचे समझे अहित भी कर देते हैं ,,

,कभी कभी ऐसी भी स्थितियां आती हैं की कोई आकर झूठ बोलता है की किसी के द्वारा उसे परेशानी है और जानकार उसे सही मान प्रक्रिया बता देता है और वह व्यक्ति उसका दुरुपयोग कर देता है ,,,

पर सामान्यतया जानकार सोच समझकर ही निर्णय करता है और बिना जाने पूर्ण प्रक्रिया से अवगत नहीं कराता किसी को ,,

           किसी को कोई समस्या अगर हो तो उसे कहीं से देखकर कोई उपाय करने की बजाय किसी योग्य जानकार से संपर्क करना चाहिए और व्यक्तिगत रूप से अपनी समस्या व्यक्त कर उपाय पूछना चाहिए या करवाना चाहिए ,क्योकि अक्सर यहाँ वहां लिखे उपाय अधूरे हो सकते हैं ,मंत्र गलत हो सकते हैं ,सामग्री अशुद्ध हो सकती है ,प्रक्रिया ऊपर नीचे हो सकती है ,अधूरी अथवा अशुद्ध लिखी किसी पुस्तक का अंश लिखा हो सकता है ,जिससे लाभ की बजाय हानि भी हो सकती है ,,, 

यही हाल साधना का हो सकता है ,आई हुई ऊर्जा न सँभलने के कारण अनियंत्रित हो नुकसान भी पंहुचा सकती है ,फेसबुक जैसे माध्यमों पर तंत्र-ज्योतिष-गुप्त विद्याओं-अध्यात्म-योग आदि के पोस्टों की बाढ़ आई हुई है जिनमे से अधिकतर पुस्तकों से लेकर लिखी गयी होती हैं ,इनमे कितने अनुभूत है नहीं कहा जा सकता ,कितनी प्रक्रिया ,मंत्र आदि सही हैं नहीं कहा जा सकता है ,अतः हर स्तर पर सावधानी आवश्यक होती है ,,,

                सामान्यतया समझदार और योग्य साधक जिसने खुद क्रियाएं की हों वह सम्पूर्ण प्रक्रिया नहीं देता वह उनके सिद्धांत -कार्यप्रणाली -वैज्ञानिकता आदि व्यक्त कर देता है पर मूल क्रिया व्यक्त नहीं करता ,क्योकि वह उनके महत्व को समझता है ,

अतः जब भी समस्या हो तो खूब सोच समझकर ,विचार विमर्श करके ,जानकार व्यक्ति के परामर्श से ही कोई क्रिया करनी अथवा करवानी चाहिए ,,तंत्र में सभी समस्याओं के समाधान हैं ,इसकी शक्ति अद्वितीय -अलौकिक है क्योकि इसकी शक्तिया ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्तियां हैं ,पर यह हर कदम पर सावधानी भी मांगता है ,अधिक लाभदायक का उल्टा अधिक नुकसानदायक भी होता है

 ,,,यह ऊर्जा उत्पन्न कर उसे नियंत्रित कर लाभ हेतु उपयोग करने का मार्ग है ,नियंत्रित करना नहीं आया और उर्जा उत्पन्न कर लिया तो क्षति भी संभव है ,नियंत्रित करके दिशा दे दी तो निर्माण भी संभव है ,हर क्रिया की प्रतिक्रया भी होती है अतः क्रिया के पहले प्रतिक्रया पर भी ध्यान होना चाहिए ,,,

किसी द्वारा कोई क्रिया करवाई या खुद की जाए तो यह भी हमेशा ध्यान होना चाहिए की यदि यह क्रिया वापस लौट आई तो क्या हम उसे संभाल पायेंगे ,,कभी ऐसा भी होता है की कोई क्रिया आपने की या करवाई किसी तांत्रिक से वह क्रिया वहां से वापस लौटा दी गयी जहाँ के लिए क्रिया की गयी थी ,

उस समय वापस आई क्रिया की शक्ति दोगुनी होती है ,ऐसे में अगर क्रिया करने वाले तांत्रिक के पास शक्ति है तो वह तो नुक्सान नहीं उठाएगा ,किन्तु आपका नुक्सान हो सकता है ,अतः जब भी कुछ करें बनाने के लिए, शांति -संमृद्धि के लिए करें ,किसी को परेशां करने के लिए नहीं ,और खुद कुछ करने की अपेक्षा योग्य जानकार की मदद ले ,यदि आप तंत्र को ठीक से नहीं जानते हैं तो ......................................................हर-हर महादेव  

राज गुरु जी

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तंत्र-मंत्र और विद्या





तंत्र-मंत्र और विद्या

आज के युग में तंत्र-मंत्र पर विद्यार्थीगण कम विश्वास करते हैं तथा सरस्वती साधना भी आसान नहीं होती, जिसे प्रत्येक कर सके। जनसाधारण तथा कमजोर विद्यार्थियों हेतु एक आसान विधि का वर्णन किया जा रहा है, जिससे साधक को निश्चित लाभ होगा।

गणेश भगवान एवं विद्या दात्री माँ सरस्वती का एक चित्र लें। पूजन सामग्री सम्मुख रखें (गाय के घी का दीपक, धूप, कपूर, पीले चावल, सफेद या पीला मिष्ठान्न, गंगा जल, भोज पत्र, गोरोचन, कुंकुम, केसर, लाल चंदन, अनार या तुलसी की कलम इत्यादि)। सर्वप्रथम गुरु का ध्यान करें। 

मंत्र- 

गुरु सठ गुरु हठ गुरु हैं वीर, गुरु साहब सुमिरों बड़ी भांत सिंगी ढोरों बन कहो, मन नाउं करतार। सकल गुरु की हर भजे, छटटा पकर उठ जाग चैत संभार श्री परमहंस। 

गणेश ध्यान : 

ॐ वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा। 

गणेश मंत्र : 

ॐ वक्रतुंडाय हूं॥
दिशाबंध : 

ॐ वज्रक्रोधाय महादंताय। दशा दिशों बंध बंध हूं फट् स्वाहा। 

तत्पश्चात गोरोचन, केसर, कुंकुम और लाल चंदन को गंगा जल में घिसकर स्याही बना लें और भोज पत्र पर निम्न मंत्र लिखकर, माँ सरस्वती के चित्र के साथ रखकर एक माला रोज मंत्र का जाप करें। 


सरस्वती गायत्री मंत्र : 

ॐ वागदैव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्‌। 

प्रथम दिन 5 माला का जाप करने से साक्षात माँ सरस्वती प्रसन्न हो जाती हैं तथा साधक को ज्ञान-विद्या का लाभ प्राप्त होना शुरू हो जाता है। नित्य कर्म करने पर साधक ज्ञान-विद्या प्राप्त करने के क्षेत्र में निरंतर बढ़ता जाता है।

 इसके अलावा विद्यार्थियों को ध्यान करने के लिए त्राटक अवश्य करना चाहिए। 10 मिनट रोज त्राटक करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा साधक को एक बार पढ़ने पर कंठस्थ हो जाता है।

विद्या प्राप्ति का मंत्र - 

घंटाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दघतीं धनान्तविलसच्छीतांशु तुल्यप्रभाम्‌।  गौरीदेहसमुद्भवा त्रिनयनामांधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वती मनुमजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम्‌॥ 

स्वहस्त कमल में घंटा, त्रिशूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण को धारण करने वाली, गोरी देह से उत्पन्ना, त्रिनेत्रा, मेघास्थित चंद्रमा के समान कांति वाली, संसार की आधारभूता, शुंभादि दैत्यमर्दिनी महासरस्वती को हम नमस्कार करते हैं। माँ सरस्वती प्रधानतः जगत की उत्पत्ति और ज्ञान का संचार करती है। 

एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र : ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।

राज गुरु जी

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Sunday, October 28, 2018

कर्ण - पिशाचनी साधना प्रयोग






कर्ण - पिशाचनी साधना प्रयोग 

     इस मंत्र को गुप्त त्रिकालदर्शी मंत्र भी कहा जाता हैं .इस मंत्र के साधक को किसी भी  व्यक्ति को देखते ही उसके जीवन की सूक्ष्म से सुक्ष्म घटना का ज्ञान हो जाता हैं . उसके विषय में विचार करते ही उसकी समस्त गतिविधियों एवं क्रिया कलापो का ज्ञान हो जाता हैं .

        कर्ण - पिशाचनी - साधना वैदिक विधि से भी सम्पन्न की  जताई हैं , और तांत्रिक विधि से भी अनुष्ठानित  की जाती हैं . यंहा वैदिक विधि द्वारा सम्पन्न की जाने वाली साधना का  प्रयोग दिया जा रहा हैं .

                                                                                   मंत्र 

      """"     ॐ  लिंग सर्वनाम शक्ति भगवती  कर्ण - पिशाचनी    रुपी सच चण्ड  सच  मम  वचन  दे स्वाहा   """"""

विधि  :-    
            किसी भी नवरात्री में या शुभ नक्षत्र योग तिथि में   भूति - शुद्धि ,  स्थान  - शुद्धि  , गुरु स्मरण  , गणेश - पूजन , नवग्रह पूजन , से पूर्व एक चौकी पर लाल कपडा बिछाये . उस पर तांबे का एक लोटा या कलश - स्थापना करें . कलश पर  पानी वाला नारियल रखे . कलश के चारो ओर  पान , सुपारी , सिंदूर  , व २ लड्डू रखे . कलश - पूजन करके साष्टांग प्रणाम करें . 

                          इसके बाद कंधे पर लाल कपडा रखकर उपरोक्त मंत्र का जाप करें . जाप पूर्ण होने पर पहले सामग्री से , फिर खीर से  , और अंत में त्रिमधु से होम करें . इसके उपरांत क्षमा - याचना  कर साक्षात देवी के रुपी कलश  को भूमि पर लेटकर दंडवत प्रणाम करें . अनुष्ठान  के दिनों में ब्रम्हचर्य का पालन एवं एकांत वास करें . सदाचरण करते हुए  सभी नियमो का  पालन करें . झूठ  - फरेब - अत्याचार  , बेईमानी  से दूर रहें . 

   समय    :- 
                     नवरात्र यदि  ग्रहण काल में आरम्भ करे तो स्पर्श  काल से , १५ मिनट पूर्व , आरम्भ  करके मोक्ष के १५ मिनट बाद तक करें . ग्रहण काल में नदी के किनारे अथवा शमशान में जाप करें . आवश्यक समस्त सामग्री अपने पास रखे . 

सामग्री  :- एक यन्त्र  और एक माला  जो  प्राण - प्रतिष्ठा  युक्त  , मंत्र सिद्धि चैतन्य  हो ,   पान , सुपारी , लौंग , सिंदूर , नारियल , अगर - ज्योति  , लाल वस्त्र , जल का लोटा , लाल चन्दन की माला , जाप करने के लिए और दो लड्डू  . 

          जाप  - संख्या  : - एक लाख 

    हवन - सामग्री  : - 
                              सफ़ेद चन्दन का चुरा , लाल चन्दन का चुरा , लोबान , गुग्गल , प्रत्येक  ३०० ग्राम , कपूर लगभग १०० ग्राम , बादाम गिरी ५० ग्राम ,काजू ५० ग्राम , अखरोट गिरी ५० ग्राम , गोल ५० ग्राम , छुहारे  ५० ग्राम , मिश्री का कुजा १ , . इन सभी को बारीक़ कर के मिला ले . इसमे घी भी मिलाए . फिर खीर बनाये , चावल काम दूध जड़ा रखें . खीर में ५ मेवे डाले , देशी घी , शहद  , व चीनी  भी डाले . 

 विशेष   :- 

             जाप करने के उपरांत १०००० मंत्रो से हवन करें . हवन के दशांश का तर्पण , उसके दशांश का यानि एक माला  से मार्जन  , और उसके बाद  १० कन्याओ एवं एक बटुक को भोजन करा कर अपने गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त करें . 

नोट  : - 

          उपरोक्त साधना के लिए गुरु - दीक्षा आवश्यक हैं . अन्यथा प्रयास असफल  रहता हैं . 

राज गुरु जी

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वशीकरण सर्वजन प्रयोग





सर्वजन वशीकरण प्रयोग

लोहट मंत्र :-

"" नमो भगवते कामदेवाय सर्वजन प्रियाय सर्वजन सम्मोहनाय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हन हन वद वद तप तप सम्मोहाय सम्मोहाय सर्वजन मे वशं कुरु कुरु स्वाहा ""

मंत्र जाप संख्या : - इक्कीश हजार

दिशा :- उत्तर

स्थान :- घर का एकांत कक्ष

समय :- मध्य रात्रि

दिन ;- शुक्रवार / या मोहनी एकादशी

आसन :- सफ़ेद

वस्त्र :- सफ़ेद धोती

हवन :- ( दशांश ) देशी घी , पंचमेवा ( काजू , बादाम , किशमिश , पिश्ता , मखाना )

विधि :-

मोहनी एकादशी या किसी भी शुक्रवार को स्नान आदि से निवित्र होकर कांशे की थाली में समस्त तांत्रिक पूजन सामग्री स्थापित करके पंचोपचार पूजन करना चाहिए व्यक्ति विशेष को वश में करने का अथवा सिद्धि का संकल्प लेते हुए , 

विधि - 

विधान पूर्वक गुरु - गणेश वंदना करके , मूल मंत्र का जाप करे , . जाप की पूर्णता पर दशांश हवन करके ब्राह्मण , एवं पांच कुवारी कन्यायो को भोजन सहित उपयुक्त दान - दक्षिणा देकर साधना को पूरा करे .

इस महत्व पूर्ण सम्मोहनी साधना से साधक का व्यक्तित्व अत्यंत सम्मोहक और आकर्षक हो जाता हैं .उसके संपर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता . 

यदि कोई साधना करने में असमर्थ हो , तो योग्य विद्द्वान द्वारा या साधना सम्पन्न करा के करवाकर सम्मोहनी कवच धारण करके उक्त लाभ प्राप्त कर सकता हैं .

राज गुरु जी

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

 (रजि.)

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Saturday, October 27, 2018

कन्नौज (युपी) के महान वीर सैनिक "तक्षक" के बारे में पढ़िए




कन्नौज (युपी) के महान वीर सैनिक "तक्षक" के बारे में पढ़िए

मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से एक चौथाई सदी बीत चुकी थी। तोड़े गए मन्दिरों, मठों और चैत्यों के ध्वंसावशेष अब टीले का रूप ले चुके थे, और उनमे उपजे वन में विषैले जीवोँ का आवास था। कासिम ने अपने अभियान में युवा आयु वाले एक भी व्यक्ति को जीवित नही छोड़ा था, अस्तु अब इस क्षेत्र में हिन्दू प्रजा अत्यल्प ही थी। एक बालक जो कासिम के अभियान के समय मात्र "आठ वर्ष" का था, वह इस कथा का मुख्य पात्र है। उसका नाम था "तक्षक"।

तक्षक के पिता सिंधु नरेश दाहिर के सैनिक थे जो इसी कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति पा चुके थे। लूटती अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से "खींच खींच" कर उनकी देह लूटी जाने लगी। 

भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें "भय" से कांप उठी थीं। तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का "सर" काट डाला। 

उसके बाद बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली और तलवार को अपनी "छाती" में उतार लिया। आठ वर्ष का बालक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भागा। पचीस वर्ष बीत गए, तब का अष्टवर्षीय तक्षक अब बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। 

वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी, उसकी आँखे सदैव अंगारे की तरह लाल रहती थीं।

उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम, विशाल सैन्यशक्ति और अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे "अरब" कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे, पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते।

युद्ध के "सनातन नियमों" का पालन करते नागभट्ट कभी उनका "पीछा" नहीं करते, जिसके कारण बार बार वे मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे, ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।

आज महाराज की सभा लगी थी, कुछ ही समय पुर्व गुप्तचर ने सुचना दी थी, कि अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की "सीमा" पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी।

नागभट्ट का सबसे बड़ा गुण यह था, कि वे अपने सभी "सेनानायकों" का विचार लेकर ही कोई निर्णय करते थे। आज भी इस सभा में सभी सेनानायक अपना विचार रख रहे थे।

 *अंत में तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला -"महाराज, हमे इस बार वैरी को उसी की शैली में उत्तर देना होगा"*

 महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।

*तक्षक: महाराज, अरब सैनिक महा बर्बर हैं, उनके सतक्षकाथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ "घात" ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।*

महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले- "किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक"।

*तक्षक ने कहा "मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों, ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज, इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है। पर यह हमारा धर्म नही हैं, राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा।*

देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना "अत्याचार" किया था।

*ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह महाराज जानते हैं।"*

महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए। अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।

आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी।

*अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते, सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए। इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था। वह अपनी तलवार चलाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी।

 उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।*

विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था। सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा- लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया।

युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा-

*"आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक.... भारत ने अब तक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।"*

*इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों नें भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।*

राज गुरु जी

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चामुंडा स्वप्न सिद्धि मंत्र साधना :-





चामुंडा  स्वप्न सिद्धि मंत्र साधना :-

 ॐ ह्रीम आगच्छा गच्छ चामुंडे श्रीं स्वाहा ।।

सामग्री   :  -   स्वप्न सुंदरी यंत्र . चामुंडा गुटिका . विद्दुत माला . सभी सामग्री प्राण प्रतिष्ठा युक्त मंत्र सिद्धि चैतन्य होना ज़रूरी हैं . 

 विधि :-

 सबसे पहले मिट्टी ओर गोबर से जमीन को लीप ले ओर वो जगह पर कोई बिछोना बिछाले । फिर पंचोपचार से मटा का पूजन करके देवी मटा को नेवेध्य अर्पण करे । 

 उसके बाद विद्दुत माला की माला से उपरोक्त मंत्र का जाप 10,000 बार करे ओर देवी का द्यान करे इस तरह मंत्र सिद्धि कारले फिर उसके बाद जब कभी भी कोई प्रश्न मन मे हो तो मंत्र का 1 माला यानि 108 बार मंत्र का जाप करके सो जाए तो देवी अर्धरात्रि को स्वप्न मे आकार प्रश्न का उत्तर प्रदान करती हे …

राज गुरु जी

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Friday, October 26, 2018

दीपावली से पूर्व अधिकाशतः गुरु पुष्य या फिर रवि पुष्य नक्षत्र आता है।





दीपावली से पूर्व अधिकाशतः गुरु पुष्य या फिर रवि पुष्य नक्षत्र आता है। 

    इस    दिन महाजनी पद्धति से आपने कारोबार को करनेवालो को कारोबार की उन्नति हेतु नया
पाना,बही-खाता ,कालम दावत ,आदि क्रय करना चाहिए। दीपावली के दिन इसका पूजन
करना चाहए।

यह सभी सामग्री लाभ के चौघाडिया में खरीदना चाहिए एवं दीपावली के
दिन स्थिर लग्न में पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से व्यापार में बरक्कत होती है।

आमजनों को इसदिन चांदी व् उससे बने आभूषण या रत्नादि खरीदना चाहिए।

देवमुर्तियाँ जो धातुओं से बानी होती है खरीदना चाहिए एवं दीपावली के दिन इनका
पूजन करना चाहिए। यंत्र आदि खरीदने और उसके सिद्ध करने के लिए ये   उत्तम दिन होता  हैं  .

राजगुरु जी

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मारन तंत्र प्रयोग





मारन तंत्र प्रयोग 

यह एक   मारन प्रयोग मंत्र हैं जो की अचूक हैं . इसकी पूरी साधना विधि गोपनीय हैं जिस को भी इस प्रयोग को 

करना हैं या कहे की कोई भी मानव अगर अपने दुश्मन  या शत्रु से बहूत ही परेशान हैं और स्थित ऐसी बन गई हैं की मौत निशिचित हैं . 

तो वह मानव इस मारन तंत्र साधना का प्रयोग कर सकता हैं .

नोट   :  - 

  इस प्रयोग को करने से पहले  किसी योग्य गुरु या साधक के मार्ग दर्शन मॆ ही करें  इस साधना को कई वार परीक्षित किया गया हैं जो की अनुभूत हैं 

सामग्री   :  -

   काल मारन यंत्र . भूत केशी जड़ . काली हकीक माला . श्मशान की मिट्टी . सभी समान  तँत्रोक्त रूप से प्राण प्रतिष्ठा युक्त मंत्र सिद्धि चैतन्य होना चहिये  

साधना प्रयोग की पूरी जानकारी के लिये फोन पर बात करे यहा साधना पूरी इस लिये नही दिया जा रहा हैं की कोई इसका दुरपयोग ना करें .

मंत्र   :  - 

औम हूं हूं हूं फट फट वजरकराेध दीप्त महाकराेध जवल जवल मारय मारय हूँ हूँ हूँ फट फट फट स्वाहा.

राजगुरु जी

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Thursday, October 25, 2018

बात शुक्र ग़ह और बहुत खूबसूरत दिखने वाली स्फटिक की माला की





बात शुक्र ग़ह और बहुत खूबसूरत दिखने वाली स्फटिक की माला की 

मित्रो शुक्र ग़ह जिस इंसान का अछा होता है उसे जीवन में धन,वैभव,सुख साधन की अनेक वस्तुओ का सुख , प्रेमी प्रेमिका पति पत्नी का सुख , चेहरे पर बहुत खूबसूरत चमक ये सब सुख उसको प्राप्त होते है 

जो इंसान शुक्र ग़ह को मजबूत करले उसे ऊपर लिखे सब सुख प्राप्त होते है शुक्र को मजबूत करने के लिए सबसे सरल उपाय है हाथ में शुक्र वार को ब्रेसलेट की तरहा जहा कंगन पहने जाते है वहा स्फटिक की माला पहन ले आपको जीवन बहुत जल्दी ऊपर लिखे सुख प्राप्त होंगे 
स्फटिक की माला धारण करने के लाभ 

(1) शुक्र ग़ह मजबूत होता है 

(2) जीवन में धन ,वैभव ,समृद्धि प्राप्त होती है 

(3) प्रेमी प्रेमिका पति पत्नी को वश में करके प्यार को बहुत तेज़ गति से बढ़ाता है

(4) वीर्य को बढ़के चेहरे पर खूबसूरती , आकर्षण पैदा करके वशीकरण करता है

(5) सुब्हे से रात तक काम करके न थकने वाली चुस्ती फुर्ती देता है 

ईसी कैसे प्राप्त करे इसकी कीमत 650 रुपये है जोकि आप हमारे  बैंक अकाउंट में जमा करके हमे घर की aadres बताय ये माला 5 दिन के अन्दर आपके घर भेज दी जायगी.

राज गुरु जी

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Wednesday, October 24, 2018

श्वेतार्क गणेश साधना , पूजन एवं महत्व






श्वेतार्क गणेश साधना , पूजन एवं महत्व

शास्त्रों में श्वेतार्क के बारे में कहा गया है - ‘‘ जहां कहीं भी यह पौधा अपने आप उग आता है, उसके आस-पास पुराना धन गड़ा होता है । जिस घर में श्वेतार्क की जड़ रहेगी, वहां से दरिद्रता स्वयं पलायन कर जाएगी । इस प्रकार मदार का यह पौधा मनुष्य के लिए देव कृपा, रक्षक एवं समृद्धिदाता है ।

 सफेद मदार की जड़ में गणेशजी का वास होता है, कभी-कभी इसकी जड़ गणेशजी की आकृति ले लेती है । इसलिए सफेद मदार की जड़ कहीं से भी प्राप्त करें और उसकी श्रीगणेश की प्रतिमा बनवा लें । उस पर लाल सिंदूर का लेप करके उसे लाल वस्त्र पर स्.थापित करें । यदि जड़ गणेशाकार नहीं है, तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई जा सकती है । शास्त्रों में मदार की स्तुति इस मंत्र से करने का विघान है ।

चतुर्भुज रक्ततनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो ।
करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधिनाभंराशि चू यडमीडे ।।

गणेशोपासना में साधक लाल वस्त्र, लाल आसन, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करें । नेवैद्य में गुड़ व मूंग के लडडू अर्पित करें । ‘‘ ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ’’ मंत्र का जप करें । श्रद्धा और भावना से की गई श्वेतार्क की पूजा का प्रभाव थोड़े बहुत समय बाद आप स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने लगेंगे । 

तंत्र शास्त्र में श्वेतार्क गणपति की पूजा का विधान है । यह आम लक्ष्मी व गणपति की प्रतिमाओं से भिन्न होती है । यह प्रतिमा किसी धातु अथवा पत्थर की नहीं बल्कि जंगल में पाये जाने वाले एक पौधे  का श्वेत आक के नाम से जाना जाता है । इसकी जड़ कम से कम 27 वर्ष से ज्यादा पुरानी हो उसमें स्वतः ही गणेशजी की प्रतिमा बन जाती है ।

 यह प्रकृति का एक आश्चर्य ही है । श्वेतक आक की जड़ (मूल) यदि खोदकर निकल दी जाये तो नीचे की जड़ में गणपति जी की प्रतिमा प्राप्त होगी । इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से साधक को धन-धान्य की प्राप्ति होती है । यह प्रतिमा स्वतः सिद्ध होती है । तन्त्र शास्त्रों के अनुसार ऐसे घर में जहां यह प्रतिमा स्ािापित हो, वहां रिद्धी-सिद्ध तथा अन्नपूर्णा देवी वास् करती है ।

            श्वेतार्क की प्रतिमा रिद्धी-सिद्ध की मालिक होती है । जिस व्यक्ति के घर में यह गणपति की प्रतिमा स्ािापित होगी उस घर में लक्ष्मी जी का निवास होता है तथा जहां यह प्रतिमा होगी उस स्थान में कोई भी शत्रु हानि नहीं पहुंचा सकता ।

 इस प्रतिमा के सामने नित्य बैठकर गणपति जी का मूल मंत्र जपने से गणपति जी के दर्शन होते हैं तथा उनकी कृपा प्राप्त होती है । श्वेतक आक की गणपति की  प्रतिमा अपने पूजा स्थान में पूर्व दिशा की तरफ ही शता\शता स्थापित   करें ।

 ‘‘ ओम गं गणपतये नमः ’’ 

मंत्र का प्रतिदिन जप करने । जप के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह जप करें तो जप कल में ही साधक की हर मनोकामना गणपति जी पूरी करते हैं ।

स्वास्थ्य और धन के लिए श्वेत आर्क गणपति: श्वेतार्क वृक्ष से सभी परिचित हैं । इसे सफेद आक, मदार, श्वेत आक, राजार्क आदि नामों से जाना जाता है । सफेद फूलों वाले इस वृक्ष को गणपति का स्वरूप माना जाता है । इसलिए प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जहां भी यह पौधा रहता है, वहां इसकी पूजा की जाती है । इससे वहां किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती । वैसे इसकी पूजा करने से साधक को काफी लाभ होता है । अगर रविवार या गुरूवार के दिन पुष्प नक्षत्र में विधिपूर्वक इसकी जड़ को खोदकर ले आएं और पूजा करें तो कोई भी विपत्ति जातकों को छू भी नहीं सकती ।

 ऐसी मान्यता है कि इस जड़ के दर्शन मात्र से भूत-प्रेत जैसी बाधाएं पास नहीं फटकती । अगर इस पौधे की टहनी तोड़कर सुखा लें और उसकी कलम बनाकर उसे यंत्र का निर्माण करें , तो यह यंत्र तत्काल प्रभावशाली हो जाएगा । इसकी कलम में देवी सरस्वती का निवास माना जाता है । वैसे तो इसे जड़ के प्रभाव से सारी विपत्तियां समाप्त हो जाती हैं । इसकी जड़ में दस से बारह वर्ष की आयु में भगवान गणेश की आकृति का निर्माण होता है ।

 यदि इतनी पुरानी जड़ न मिले तो वैदिक विधि पूर्वक इसकी जड़ निकाल कर इस जड़ की लकड़ी में गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर बनाएं । यह आपके अंगूठे से बड़ी नहीं होनी चाहिए । इसकी विधिवत पूजा करें । पूजन में लाल कनेर के पुष्प अवश्य इस्तेमाल में लांए । इस मंत्र ‘‘ ऊँ पंचाकतम् ऊँ अंतरिक्षाय स्वााहा ’’ से पूजन करें और इसके पश्चात इस मंतर

‘‘ ऊँ ह्रीं पूर्वदयां ऊँ ही्रं फट् स्वाहा ’’

 से 108 आहुति दें । लाल कनेर के पुष्प शहद तथा शुद्ध गाय के घी से आहुति देने का विधान है । इसके बाद 11 माला जप नीचे लिखे मंत्र का करंे और प्रतिदिन कम से कम 1 माला करें । 

‘‘ ऊँ गँ गणपतये नमः ’’

 का जप करें । अब

 ’’ ऊँ ह्रीं श्रीं मानसे सिद्धि करि ह्रीं नमः ’’  

मंत्र बोलते हुए लाल कनेर के पुष्पों को नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें । धार्मिक दृष्टि से श्वेत आक को कल्प वृक्ष की तरह वरदायक वृक्ष माना गया है । श्रद्धा पूर्वक नतमस् तक होकर इस पौधे से कुछ माँगन पर यह अपनी जान देकर भी माँगने वाले की इच्छा पूरी करता है ।

 यह भी कहा गया है कि इस प्रकार की  इच्छा शुद्ध होनी चाहिए । ऐसी आस्था भी है कि इसकी जड़ को पुष्प नक्षत्र में विशेष विधिविधान के साथ जिस घर में स्ािापित किया जाता है वहाँ स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास बना रहता है और धन धान्य की कमी नहीं रहती ।

 श्वेतार्क के ताँत्रिक, लक्ष्मी प्राप्ति, ऋण नाशक, जादू टोना नाशक, नजर सुरक्षा के इतने प्रयोग हैं कि पूरी किताब लिखी जा सकती है । थोड़ी सी मेहनत कर आप भी अपने घर के आसपास या किसी पार्क आदि में श्वेतार्क का पौधा प्राप्त कर सकते हैं । 

श्वेतार्क गणपति घर में स्ािापित करने से सिर्फ गणेश जी ही नहीं बल्कि माता लक्ष्मी और भगवान शिव की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है । सिद्धी की  इच्छा रखने वालों को 3 मास तक इसकी साधन करने से सिद्धी प्राप्त होती है । जिनके पास धन न रूकता हो या कमाया हुआ पैसा उल्टे सीधे कामों में जाता हो उन्हें अपने घर में श्वेतार्क गणपति की स्.थापना करनी चाहिए । जो लोग कर्ज में डूबे हैं उनके लिए कर्ज मुक्ति का इससे सरल अन्य कोई उपाय नहीं है । 

जो लोग ऊपरी बाधाओं और रोग विशेष से ग्रसित हैं इसकी पूजा से वायव्य बाधाओं से तुरंत मुक्ति और स्वास्थ्य में अप्रत्याशित लाभ पा सकते हैं । जिनके बच्चों का पढ़ने में मन न लगता हो वे इसकी स्.थापना कर बच्चों की एकाग्रता और संयम बढ़ा सकते है । पुत्रकाँक्षी यानि पुत्र कामना करने वालों को गणपति पुत्रदा स्त्रोत का पाठ करना चाहिए ।

 श्वेतार्क गणेश साधना:

  हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को अनेक रूप में पूजा जाता है इनमें से ही एक श्वेतार्क गणपति भी है । धार्मिक लोक मान्ताओं में धन, सुख-सौभाग्य समृद्धि ऐश्वर्य और प्रसन्नता के लिए श्वेतार्क के गणेश की मूर्ति शुभ फल देने वाली मानी जाती है ।

 श्वेतार्क के गणेश आक के पौधे की जड़ में बनी प्राकृतिक बनावट रूप में प्राप्त होते हैं । इसे पौधे की एक दुर्लभ जाति सफेद श्वेतार्क होती है जिसमें सफेद पत्ते और फूल पाए जाते हैं इसी सफेद श्वेतार्क की जड़ की बाहरी परत को कुछ दिनों तक पानी में भिगोने के बाद निकाला जाता है तब इस जड़ में भगवान गणेश की मूरत दिखाई देती है । 

इसकी जड़ में सूंड जैसा आकार तो अक्सर देखा जा सकता है । भगवान श्री गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि के दाता माना जाता है । इसी प्रकार श्वेतार्क नामक जड़ श्री गणेश जी का रूप मानी जाती है श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है । 

श्वेतार्क की जड़ श्री गणेशजी का रूप मानी जाती है। श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क की जड़ को तंत्र प्रयोग एवं सुख-समृद्धि हेतु बहुत उपयोगी मानी जाती है । गुरू पुष्प नक्षत्र में इस जड़ का उपयोग बहुत ही शुभ होता है । यह पौधा भगवान गणेश के स्वरूप होने के कारण धार्मिक आस्था को और गहरा करता है ।

श्वेतार्क गणेश पूजन: श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा को पूर्व दिशा की तरफ ही स्.थापित करना चाहिए तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह गणेश मंत्रों का जप करने से सर्वकामना सिद्ध होती है । श्वेतार्क गणेश पूजन में लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करनी चाहिए । नेवैद्य में लडडू अर्पित करने चाहिए

 ‘‘ ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ’’ 

मंत्र का जप करते हुए श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के प्रभावस्वरूप् प्रत्यक्ष रूप से इसके शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है । 

तन्त्र शास्त्र में भी श्वेतार्क गणपति की पूजा का विशेष बताया गया है । तंत्र शास्त्र अनुसार घर में इस प्रतिमा को स्ािापित करने से ऋद्धि-सिद्धि कि प्राप्ति होती है । इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से भक्त को धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा लक्ष्मी जी का निवास होता है । इसके पूजन द्वारा शत्रु भय समाप्त हो जाता है । श्वेतार्क प्रतिमा के सामने नित्य गणपति जी का मंत्र जाप करने से गणेशजी का आर्शिवाद प्राप्त होता है तथा उनकी कृपा बनी रहती है ।

श्वेतार्क गणेश महत्व:

 दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ ही श्वेतार्क गणेश जी का पूजन व अथर्वशिर्ष का पाठ करने से बंधन दूर होते हैं और कार्यों में आई रूकावटें स्वत: ही दूर हो जाती है । धन की प्राप्ति हेतु श्वेतार्क की प्रतिमा को दीपावली की रात्रि में षडोषोपचार पूजन करना चाहिए । 

श्वेतार्क गणेश साधना अनेकों प्रकार की जटिलतम साधनाओं में सर्वाधिक सरल एवं सुरक्षित साधना है । श्वेतार्क गणपति समस्त प्रकार के विघनों के नाश के लिए सर्वपूजनीय है । श्वेतार्क गणपति की विधिवत स्ािापन और पूजन से समस्त कार्य साधानाएं आदि शीघ्र निर्विघं संपन्न होते है। ।

 श्वेतार्क गणेश के सम्मुख मंत्र का प्रतिदिन 10 माला जप करना चाहिए तथा ‘‘ ऊँ नमो हस्ति - मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट - महात्मने आं क्रों हीं क्लीं ह्रीं हूं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ’’ साधना से सभी इष्ट कार्य सिद्ध होते हैं 

राज गुरु जी

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...