Wednesday, December 23, 2015

दुर्लभ बगला-प्रत्यंगिरा कवच





मन्त्राभ्यासेन योगेन ज्ञानं ज्ञानाय कल्पते।
न योगेन बिना मंत्रो न मन्त्रेण बिना ही सः।।
द्वायोर्भ्यास संयोगो ब्रह्मसंसिद्धि कारणं ।।
अर्थात मंत्र और उसके अभ्यासरूपी योग से ज्ञान की प्राप्ति होती है। मंत्र के बिना योग के बिना मंत्र नहीं सधते। दोनों के अभ्यास में निपुर्णता से ही सभी सिद्धि मिलती है।
खैर अब बगलामुखी साधना से पूर्व की जाने वाली दिग्बन्धन सब को ज्ञात हो इसके लिए वो विधि दे रहा हूँ
सभी और अक्षत फेकते हुवे और निम्न देवियों की कल्पना अपनी चारो और करे की यह रक्षा कर रहे हैं
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं श्यामा माम् पूर्वतः पातु,
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं आग्नेयां पातु तारिणी।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं महाविद्या दक्षिणे पातु,
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं नैऋत्यां षोडशी तथा।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं भुवनेशी पश्चिमायाम,
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं वायव्यां बगलामुखी।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं उत्तरे छिन्नमस्ता च,
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं ऐश्यान्याम धूमावती तथा।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं उर्ध्व तु, कमला पातु
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं अन्तरिक्षं सर्वदेवताः।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं अधस्ताच्चैव मातंगी,
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं सर्वदिङ्गबगलामुखी।।
।।इति दिग बंधन।।
दुर्लभ बगला-प्रत्यंगिरा कवच
कई भाइयो के मनमे इश दुर्लभ प्रयोग को सिद्ध करने की लालशा भी जागृत हुवी होगी....यहाँ पर छिन्नमस्ता की उस प्रत्यंगिरा कवच तो नही दे रहा हूँ (अत्यंत ही विनाशक होने के कारण और इसका Misuse होने की chances बहुत हैं ) पर वैसा ही प्रयोग बगला-प्रत्यंगिरा दे रहा हूँ जिससे की हर व्यक्ति इस दुर्लभ की अगर कही व्यापार हो तो पूर्ण प्रतिकार कर सके...पर यह प्रयोग भी अत्यंत ही उग्र है...तसर्थ सभी साधकों को निवेदन करता हूँ की अपनी सूझ-बूझ और विवेक से इस प्रयोग को संपन्न करें
इस प्रयोग को करने से पूर्व भगवान् शिव की इस वाणी को अपने मनमे अवश्य गाढ़लें ...
“मूर्खेण तु कृते तंत्रे स्वस्मिन्नेव समापतेत् ।
तस्माद्रक्ष्यः सदात्मा वै प्रत्यङ्गिरा नक्वचिच्चरेत ।।
न देयं तस्य मुर्खाणां यः संपूर्ण कुल विनाश कारणं
कथनम् मम नान्यथा ।।“
अर्थात मूर्खो द्वारा प्रत्यंगिरा का प्रयोग करने से उस पर ही उलटा प्रभाव होता है और यह पूर्णतः निश्चित होता है। अतः स्वार्थ और लोभादी से ग्रसित मुर्ख को कभी भी इन प्रयोगों से मजाक नही करना चाहिए। इससे ना केवल अपना
बल्कि पुरे कुल का समूल विनाश होता है और मेरे इस कथन में संसय न करो।
1) विनियोग
अस्य श्री बगलाप्रत्यंगिरामन्त्रस्य नारद ऋषिस्त्रिष्टुप छन्दः प्रत्यंगिरा देवता ह्लीं बीजं, हूं शक्तिः ह्रीं कीलकम् ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा मम शत्रुविनाशे विनियोगः ।
2) ||ॐ प्रत्यंगिरायै नमः प्रत्यांगिरे सकलकामान् साधय मम रक्षा कुरू कुरू सर्वान् शत्रुन् खादय खादय मारय मारय घातय घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा ||
ॐ भ्रामरी स्तंभिनि देवी क्षोभिणि मोहिनी तथा ।
संहारिणी द्राविणि च जृम्भिणी रौद्ररूपिणि ।।
इत्यष्टौ शक्तयो देवी शत्रु पक्षे नियोजिताः ।
धारयेत् कण्ठदेशे च सर्वशत्रु विनाशिनीः ।।
ॐ ह्लीं भ्रामरी मम शत्रुन् भ्रामय भ्रामय ॐ ह्लीं स्वाहा।।
ॐ ह्लीं स्तंभिनि मम शत्रुन् स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं स्वाहा।।
ॐ ह्लीं क्षोभिणि मम शत्रुन् क्षोभय क्षोभय ॐ ह्लीं स्वाहा।।
ॐ ह्लीं मोहिनी मम शत्रुन् मोहय मोहय ॐ ह्लीं स्वाहा।।
ॐ ह्लीं संहारिणी मम शत्रुन् संहारय संहारय ॐ ह्लीं स्वाहा।।
ॐ ह्लीं द्राविणि मम शत्रुन् द्रावय द्रावय ॐ ह्लीं स्वाहा।।
ॐ ह्लीं जृम्भिणी मम शत्रुन् जृम्भय जृम्भय ॐ ह्लीं स्वाहा।।
ॐ ह्लीं रौद्रि मम शत्रुन् संतापय संतापय ॐ ह्लीं स्वाहा।।
इयं विद्या महाविद्या सर्वशत्रु निवारिणी ।
धारिता साधकेन्द्रस्य सर्वान दुष्टान् विनाशयेत् ।।
त्रिसन्ध्यामेकसंध्यं वा यः पठेत्स्थिर मानसः ।
न तस्य दुर्लभं लोके कल्पवृक्ष इव स्थितः ।।
यं यं स्पृशति हस्तेन यं यं पश्यति चक्षुषाः ।
स एव दासतां याति सारात्सारमिमं मनुं ।।
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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