कैसे प्राप्त होता है पितरो को श्राद्ध का भोजन या देवताओं को दान [अन्न या खाद्य ]
................कहा जाता है की आन केवल इस शरीर का पोषण करता है ,पितरो कए पास शरीर नहीं होता केवल आत्मा या वायवीय शरीर होता है तो यह जिज्ञासा स्वाभाविक है की आखिर उन्हें यहाँ दिया जाने वाला पिंड दान या श्राद्ध का भोजन कैसे प्राप्त होता है और वे कैसे तृप्त हो हमें आशीर्वाद देते है और व्यक्ति पित्र दोष कए प्रभाव में कमी पाता है ,क्योकि विभिन्न कर्मो कए अनुसार हमारे पित्र तो मृत्यु के बाद भिन्न -भिन्न गति को प्राप्त होते है ,कोई देवता बन जाता है ,कोई पित्र ,कोई प्रेत ,कोई हाथी ,कोई चिटी ,कोई चिनार का वृक्ष और कोई तृण ,,,,,,,श्राद्ध में दिए गए छोटे से पिंड से हाथी का पेट कैसे भर सकता है ,,इसी प्रकार चिटी इतने बड़े पिंड को कैसे खा सकती है ,,देवता अमृत से तृप्त होते है पिंड से उन्हें कैसे तृप्ति मिलेगी ,,,इन प्रश्नों का शास्त्रानुसार उत्तर यह है की जब श्राद्ध करने वाला संकल्प में अपने नाम ,गोत्र आदि का उच्चारण करता है और श्राद्ध करता है तो वह विश्वेदेव और अग्निश्वात आदि दिव्या पितरो द्वारा हव्य-कव्य को आपके पितरो तक पहुचा दिया जाता है ,यदि पित्र देव योनी को प्राप्त हो चुके है तो यह दिया गया अन्न उन्हें वहा अमृत होकर प्राप्त हो जाता है ,मनुष्य योनी में अन्न रूप में ,पशु योनी में तृण रूप में उन्हें इसकी प्राप्ति होती है ,,,जिस प्रकार गोशाला में भूली माता को बछड़ा किसी न किसी प्रकार ढूढ़ ही लेता है ,उसी प्रकार मंत्र तत्सद वस्तुजात को प्राणी कए पास किसी न किसी प्रकार पहुचा ही देता
है ,,,,नाम ,गोत्र ,ह्रदय की श्रद्धा और उचित संकल्प पूर्वक दिए हुए पदार्थो को भक्तिपूर्वक उच्चारित मंत्र उनके पास पहुचा देता है ,,जिससे पित्र तृप्त हो आशीर्वाद देते है और अतृप्त या दोष होने कए कारण होने वाली बाधाए कम हो जाती है ,,,ऐसे ही एक विदेशी द्वारा प्रश्न किये जाने पर की दान या श्राद्ध में दिए अन्न कैसे देवता या पित्र तक पहुचाते है ,,धर्मं सम्राट करपात्री जी ने उत्तर दिया की जैसे विदेश से आपके सम्बन्धी द्वारा आपके लिए भेजा धन आपके नाम -पते कए सहारे विशेषी मुद्रा से बदल कर भारतीय मुद्रा में आप तक पहुचा दिया जाता है ,उसी प्रकार यह अन्न भी स्वरुप परिवर्तित हो अपेक्षित रूप में इच्छित स्थान पर पहुच जाता है ,,,अतः व्यक्ति को श्राद्ध पितरो कए लिए और दान देवताओं कए लिए अवश्य करना चाहिए ...........................
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