Monday, July 31, 2023

* संपूर्ण भारत में हमारी सेवाएं*


 



* संपूर्ण भारत में हमारी सेवाएं*


हमारे द्वारा अगले महीने से *पूरे भारत देश में अपनी सेवाएं शुरू की जा रही है* जिसके अंतर्गत *🕊️यदि आपके घर में कोई नेगेटिव एनर्जी है


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 या 🕊️आपके परिवार के किसी सदस्य के शरीर में कोई नेगेटिव एनर्जी है या 🕊️आपके घर या दुकान पर किसी ने कोई नेगेटिव एनर्जी छोड़ रखी है जिसके कारण आपका पारिवारिक और व्यापारिक जीवन तहस नहस हो गया है 


🕊️ या आप अपने घर में पितृ शांति🕊️,वस्तु दोष निवारण,🕊️लक्ष्मी हवन🕊️,दस महाविद्या हवन🕊️,बगलामुखी हवन,🕊️कुल देवी स्थापना,🕊️अपने देवताओं को मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा,🕊️लक्ष्मी हवन* और आप चाहते हैं कि हम खुद आपके शहर ,आपके घर आकर उसका निवारण करें तो यह सेवा अगले महीने से शुरू की जा रही है


पूरे भारत में किसी भी शहर किसी भी राज्य किसी भी गांव में आप रहते हैं *हम वहां आकर आपकी सभी समस्याओं का निवारण करेंगे* 


कई ऐसी समस्या होती है जो दूर बैठकर हल नहीं हो पाती इसके लिए हमें आपके घर आकर ही उसका निवारण करना होगा 


9958417249 पर whatsapp करें 


*🪴शुल्क👇* 


*आने जाने का किराया ( /निजी वाहन /ट्रेन /फ्लाइट  )+ शुल्क समस्या के अनुसार + सामग्री का शुल्क* ( जो सामग्री लगेगी वो आपको बता दी जाएगी आप खुद भी ला सकते हैं कुछ विशेष तांत्रिक सामग्री होगी वो हमारी होगी उसका शुल्क आपको आपकी समस्या के अनुसार बता दिया जाएगा )


*हमारे द्वारा दी जाने वाली सेवा निम्न राज्यों में दी जाएगी👇*


राजस्थान, महाराष्ट्र ,गुजरात ,मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश ,दिल्ली ,गाजियाबाद ,हिमाचल प्रदेश ,पंजाब ,तमिलनाडु कर्नाटक,

हैदराबाद ,केरल ,गोवा ,कलकत्ता, नेपाल ,जम्मू कश्मीर ,हरियाणा,

दमन दीप ,आंध्र प्रदेश ,बिहार,

झारखंड, उड़ीसा ,उत्तराखंड


साधना समाग्री दक्षिणा === 


पेटियम नम्बर ==9958417249


गूगल पे नम्बर ==== 9958417249


फोन पे =======6306762688


 चेतावनी -


सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।


विशेष -


किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें


महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》


तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान


महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट


(रजि.)


किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :


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शाबर धूमावती साधना :


 


शाबर धूमावती साधना :


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दस महाविद्याओं में माँ धूमावती का स्थान सातवां है और माँ के इस स्वरुप को बहुत ही उग्र माना जाता है ! माँ का यह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपा कहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी है ! एक मान्यता के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया तो उस यज्ञ में शिव जी को आमंत्रित नहीं किया !


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 माँ सती ने इसे शिव जी का अपमान समझा और अपने शरीर को अग्नि में जला कर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा )उसने माँ धूमावती का रूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँ प्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं पर आधारित है !


नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँ धूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे और अनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की !


यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलित शाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है !


कोर्ट कचहरी आदि के पचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोग करे !


माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रु उसे मूक होकर देखते रह जाते है !


|| मंत्र ||


ॐ पाताल निरंजन निराकार


आकाश मंडल धुन्धुकार


आकाश दिशा से कौन आई


कौन रथ कौन असवार


थरै धरत्री थरै आकाश


विधवा रूप लम्बे हाथ


लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव


डमरू बाजे भद्रकाली


क्लेश कलह कालरात्रि


डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी


जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते


जाया जीया आकाश तेरा होये


धुमावंतीपुरी में वास


ना होती देवी ना देव


तहाँ ना होती पूजा ना पाती


तहाँ ना होती जात न जाती


तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ


आप भई अतीत


ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !


|| विधि ||


41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !


|| प्रयोग विधि १ ||


जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे –


“ हे माँ ! मेरे (अमुक) शत्रु के घर में निवास करो ! “


ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !


|| प्रयोग विधि २ ||


शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे !


ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !


नोट – इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !कोई भी जप-अनुष्ठान करने से पूर्व मंत्र की शुद्धि जांचा लें ,विधि की जानकारी प्राप्त कर लें तभी प्रयास करें |


गुरु की अनुमति बिना और सुरक्षा कवच बिना तो कदापि कोई साधना न करें |उग्र महाशक्तियां गलतियों को क्षमा नहीं करती कितना भी आप सोचें की यह तो माँ है |उलट परिणाम तुरत प्राप्त हो सकते हैं |


अतः बिना सोचे समझे कोई कार्य न करें |पोस्ट का उद्देश्य मात्र जानकारी उपलब्ध करना है ,अनुष्ठान या प्रयोग करना नहीं |अतः कोई समस्या होने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे


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Sunday, July 30, 2023

पन्द्रिया यंत्र साधना -- साबर विधि से


 




पन्द्रिया यंत्र साधना -- साबर विधि से


जरुरी है| अतः इस साधना को उसी साधक को शुरू करना चाहिए जो इस साधना के नियम का पूर्ण शुद्धि से पालन करऔर जन कल्याण किया है | यह बहुत ही तीव्र  साधना है | इस में शुद्धि का 


खास ध्यान ख़ास तौर पर  रखा जाता है।। अन्यथा तकलीफ हो सकती है ..| 


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हर  उस व्यक्ति का बहुत ही सौभाग्य उदय होता है जब ऐसी साधना प्राप्त होती है | मेरी नजर में ऐसा कोई काम  ही नहीं है।। जो इस साधना से पूरा ना हो | हिन्दू और इस्लामिक दोनों मतो में यह साधना की जाती

है|


मैंने कई मुसलमानी मौलवियों को भी इस यंत्र का प्रयोग करते हुए देखा है |


यह मैं स्वयं भी इस साधना का प्रयोग बहुत बार करके इसे परख चुका हूँ| और कई संतो ने भी इसे समय-समय पर सिद्ध किया है


यह साधना अगर शारदीय,चैत्र अथवा गुप्त नवरात्री में की जाये तो और भी फल मिलता है | 

इसे सिद्ध करने के


लिए समय तो अवश्य ही लगेगा लेकिन अगर आप इसे सिद्ध कर ले तो किसी सिद्धि के

पीछे

भागने की आवश्कता नहीं है | इस में धैर्य बहुत जरुरी है और ब्रह्मचर्य  का

पालन भी

सके |


नियम  --- 


१. एक समय शुद्ध भोजन करे, फलाहार कभी भी ले सकते हैं |


२.ब्रह्मचर्य अनिवार्य है |


३.सत्य बोलने की

कोशिश करे |


४.किसी से व्यर्थ

में ना उलझें |


५.बड़ों का हमेशा सम्मान करें !


विधि


-- शुद्ध धुले हुये वस्त्र  पहने सिले हुए ना हो तो जयादा बेहतर है (जैसे 

धोती, चादर) | पीले लाल या सफ़ेद रंग के कपडे ज्यादा बेहतर है | लाल रंग

विशेष फल दाई  है !


२.शुद्ध घी का दीपक लगाये और एक बेजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर  माता जगदम्बा का 

सुन्दर चित्र स्थापत करें हर रोज पूजन करे और गुरु पूजन करे

और पूर्ण समर्पित भाव से साधना शुरू करे !


३.मन को विचलित ना


होने दे माता का दर्शन होने के बाद कन्या पूजन करे जा साधना पूर्ण होने के बाद

कन्या पूजन जरुरी है |


५.माता की हलवे का भोग लगा कर कन्या पूजन किया जा सकता है !


६. इस यंत्र को


निम्न मन्त्र पड़ते हए सवा लाख बार लिखना है और जितने रोज लिखो आटे में मिक्स कर के

गोलिया बना ले और मछलियों को डाल दे किसी तालाब या नदी पर जाकर |


इस यंत्र को जैसे नीचे दिया है बना ले |


साबर मंत्र ---


ॐ  सात पूनम काल का बारह  बरस क्वार ,एको देवी जानिए चौदह भुवन द्वार द्वि पक्षे निर्मलिये तेरह देवन देव अष्ट भुजी परमेशवरी ग्यारह रूद्र सेव ,सोलह कला समपुरनी तिन नयन भरपूर दसो द्वारी तुही माँ , पांचो बाजे नूर ,नव निधि षट दर्शनी पन्द्रह तिथि जान चारो युग में कालका कर काली कल्याण ......!


ये मन्त्र थोडा उग्र  का है ..इसलिए सात्विकता बरतिए ..और इसे प्रयोग में  लाइए 


 इस मन्त्र का जप करते हुए उपर वाला यन्त्र लिखे और जब  साधना पूरी हो जाती है साधक के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता |


प्रयोग  --


जिस किसी व्यक्ति पर कैसी भी प्रेत बाधा या किसी का किया तंत्र प्रयोग 


(जैसे-मूठ) हो, तो इस यन्त्र को अष्ट गंध से लिख कर उस व्यक्ति को पहना 

दिया जाये तो बाधा शांत हो जाती है | 


कार्य सिद्धि के लिए इस यन्त्र को अपने साथ ले कर कार्य के लिए जा सकते है | मुक़दमे में विजय पाने के लिए  है और घर छोड़  कर

गये व्यक्ति  को


वापिस लाने के लिए इसका अचूक असर होता है वशीकरण  के लिए भी इसका प्रयोग  किया 


जाता है आप पहले इसे सिद्ध कर ले इसके प्रयोग  तो सैकड़ो है उसे फिर

कभी दे दूंगा | यंत्र सिद्ध करते करते माँ का दर्शन हो जाता है ऐसा मेरा और

कई लोगो का अनुभव है |


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क्या आपके हाथ में है अधिक शत्रु षड्यंत्र दुश्मन आपको परेशान करने वाला तथा बर्बाद करने का योग जाने ..


 



क्या आपके हाथ में है अधिक शत्रु षड्यंत्र दुश्मन आपको परेशान करने वाला तथा बर्बाद करने का योग जाने ...


हस्तरेखा शास्त्र ज्योतिष शास्त्र की ही एक शाखा है। इसमें हथेलियों में बनी रेखाओं और चिन्हों का आकलन करके व्यक्ति जीवन के विषय में जानकारी दी जाती है।


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 हस्तरेखा शास्त्र में रेखाओं और हाथों में बने चिन्हों को देखकर उसके भविष्य या जीवन के बारे में केवल मूल्यांकन किया जा सकता है, भविष्य को लेकर इसकी सटीकता प्रमाणित नहीं होती है 


क्योंकि हाथ की रेखाएं समय-समय पर बदलती रहती हैं। जीवन में कोई भी लक्ष्य हासिल करने के लिए कर्मों का प्रभाव सबसे अधिक मायने रखता है।  हस्तरेखा शास्त्र में हमारे हाथों में बनी रेखाएं देखकर जीवन में आने वाले शुभ और अशुभ प्रभावों के बारे में बताया जाता है।


 ज्योतिष शास्त्र में कुछ बहुत शुभ रेखाओं के बारे में बताया गया है तो वहीं कुछ रेखाएं ऐसी भी होती हैं जिनकी वजह से आपके जीवन में एक के बाद एक परेशानियां बनी रहती हैं। 


हस्तरेखा शास्त्र में ऐसी कुछ रेखाएं और चिन्हों के बारे में बताया गया है, जिन्हें दुर्भाग्य का कारण माना जाता है। तो चलिए जानते हैं कौन सी हैं वे रेखाएं और चिन्ह।


जीवन  रेखा को काटती हुई रेखाएं

अगर किसी की हथेली में कई छोटी-छोटी रेखाएं जीवन रेखा को काटती हैं, तो इन्हें शुभ नहीं माना जाता है। इन रेखाओं के संबंध में कहा जाता है 


कि जिस स्थान पर ये रेखाएं जीवन रेखा को काटती हैं, उसी आयु में व्यक्ति को रोग-व्याधि और दुर्घटना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इन्हें दुर्भाग्य का सूचक माना जाता है।


द्वीप का निशान होना


यदि किसी व्यक्ति की हथेली में पर्वत या फिर रेखा पर द्वीप का निशान बना हुआ है तो यह शुभ नहीं माना जाता है लेकिन प्रत्येक रेखा और पर्वत पर बने हुए द्वीप का अलग-अलग अर्थ होता है।


 जिस रेखा या पर्वत पर द्वीप का चिन्ह बनता है यह उसके प्रभाव को कमजोर करता है। जिसके कारण आपको अपने जीवन में धन, स्वास्थ, मान-प्रतिष्ठा आदि से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।


अनामिका उंगली पर क्षैतिज रेखाएं


यदि किसी व्यक्ति की अनामिका उंगली पर बहुत सारी क्षैतिज रेखाएं बनी हुई हैं तो इन्हें दुर्भाग्य का संकेत माना जाता है।


 इससे व्यक्ति के मान-सम्मान की हानि का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति के हाथ में काले धब्बे हो तो यही भी शुभ संकेत नहीं माना जाता है।


और अधिक जानकारी हस्तरेखा से जुड़ा हुआ परामर्श उपाय विधि प्रयोग या किसी तरह के विशेष परेशानियों में फंसे हुए हैं तो संपर्क करें और हस्तरेखा दिखाकर जानकारी प्राप्त करें संपर्क करें कॉल करें 


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 


दक्षिणा  -  351  मात्र .


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अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच


 



अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच


चेहरे पर निखार, आकर्षक शरीर और एक सेहतमंद शरीर की कामना भला आज कौन नहीं करता है। हर कोई आकर्षक नज़र आना चाहता है। तो इस मनोकामना को पूरा  करने के लिए व्यक्ति आमतौर पर अप्सरा वशीकरण मंत्र  और साधना का इस्तेमाल करता है, जिसे काफी कारगर व असरदार भी माना गया है। 


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इसके बारे मे ये भी कहां गया है कि अप्सरा साधना की मदद से अप्सरा के जैसा  सौंदर्य व समृद्धि प्राप्त किया जा सकता है और ऐसा नहीं है की सिर्फ इसका इस्तेमाल स्त्रिया ही कर सकती है, क्यूकी सुंदर शरीर और खूबसूरत चेहरे की लालसा पुरुष भी रखता है।


तो अब हम आपको बताते है अप्सरा साधना के बारे मे की किस प्रकार आप इसे कर सकते है। जैसा की हमेशा से यह मान्यता रही है कि अप्सराओ को गुलाब, चमेली, रजनीगंधा और रातरानी जैसे फूलों की सुगंध काफी पसंद आती है। 


अप्सरा साधना करने के दौरान उस व्यक्ति को खास तौर पर अपनी यौन भावनाओं पर संयम रखना पड़ता है। ऐसा न कर पाने से साधना सिद्ध नहीं हो पाती है। 


साधक पूरे विश्वास और संकल्प व मंत्र की सहायता से अगर इस साधना को करता है, तो माना गया है कि अप्सरा प्रकट होती है और उस समय वो साधक उसे गुलाब के साथ इत्र भेंट करता है। साथ ही उसे दूध से बनी मिठाई व पान आदि भेंट देता है और उससे  जीवन भर साथ रहने का वचन लेता है।


 इन अप्सराओ मे चमत्कारिक शक्तिया होती है जो साधक की जिंदगी को सुंदर बनाने की योग्यता रखती है।

अब हम आपको रंभा अप्सरा साधना के बारे मे जानकारी देते हुए बताएँगे की इस साधना को करने के लिए आपको इस मंत्र का जप करना होता है, जोकि इस प्रकार है, 


मंत्र:


ऊँ दिव्यायै नमः! ऊँ वागीश्वरायै नमः!


ऊँ सौंदर्या प्रियायै नमः! ऊँ यौवन प्रियायै नमः!


ऊँ सौभाग्दायै नमः! ऊँ आरोग्यप्रदायै नमः!


 ऊँ प्राणप्रियायै नमः! ऊँ उजाश्वलायै नमः! ऊँ देवाप्रियायै  नमः!


 ऊँ ऐश्वर्याप्रदायै नमः! ऊँ धनदायै रम्भायै नमः!


बाकी साधना के जैसे इसमे भी साधक को पूजा-अर्चना के बाद  रम्भेत्किलन यंत्र के सामने बताए मंत्र का जप करना होता है। 


साधना हो जाने के बाद साधक की इक्छा पूर्ण होने के साथ उसके जीवन मे खुशियों आ जाती है।


अप्सरा साधना विधि को करने के लिए साधक के लिए जरूरी होता है कि वो कोई एक शांत जगह चुन ले। फिर उस जगह पर सफ़ेद रंग का एक कपड़ा बिछाकर, पीले चावल के इस्तेमाल से एक यंत्र का निर्माण करे। 


इसके बाद साधक के लिए जरूरी है कि वो अपने वस्त्र पर इत्र लगा ले जिससे वो  सुगन्धित हो जाये और मखमल को अपना आसन बनाए। 


केवल शुक्रवार के दिन, आधी रात को आप इस साधना करे। ध्यान जरूर रखे की साधना करते वक़्त आपका मुख उत्तर दिशा की ओर हो और फिर बनाए हुए यंत्र का पंचोपकर पूजन करे।


 जिस एकांत जगह या कमरे मे साधक बैठा है वो वहाँ गुलाब के इत्र का प्रयोग करे। आस-पास एक सुगन्धित माहोल बना ले।


 इन सबके बाद आप गुरु गणपति का ध्यान करके स्फटिक मणिमाला का मंत्र के साथ 51 जप करे। 


मंत्र:


 “ऊँ उर्वशी प्रियं वशं करी हुं! ऊँ ह्रीं उर्वशी अप्सराय आगच्छागच्छ स्वाहा!!” 


इस अनुष्ठान को आप कुल 7, 11 या 21 दिनों तक करे और आखिरी दिन 10 माल का जाप करे। बताए मंत्र के नीचे अपना नाम लिखकर उर्वशी माला की मदद से बताए मंत्र का 101 बार जप करे,


 मंत्र:  


“ऊँ ह्रीं उर्वशी मम प्रिय मम चित्तानुरंजन करि करि फट”।


अप्सरा वशीकरण साधना से जुड़े एक शाबर मंत्र के बारे मे भी हम आपको बताते है। जिसको करने के लिए जरूरी है की आप एक बाजोट पर लाल रंग का कपड़ा बिछा ले और उस पर एक चावल से ढेरी बना ले, जो कुम्कुम से रंगे हो।


 आप जिस आसान पर बैठे वो भी लाल रंग का ही हो। इसके बाद उन चावल पर “पुष्पदेहा आकर्षण सिद्धि यंत्र” स्‍थापित कर दे और स्फटिक की माला से मंत्र जाप करे।


 मंत्र: 


“ॐ आवे आवे शरमाती पुष्पदेहा प्रिया रुप आवे आवे हिली हिली मेरो कह्यौ करै,मनचिंतावे,कारज करे वेग से  आवे आवे,हर क्षण साथ रहे हिली हिली पुष्पदेहा अप्सरा फट् ॐ ”।


 शुक्रवार के दिन इस साधना को शुरू करे जो 7 दिनों तक चलती है। आपका मुख उत्तर दिशा की ओर हो इसका खास ध्यान रखे और मंत्र का रोज 11 माला जप करना होगा। बनाए हुए यंत्र पर रोज गुलाब का इत्र चढाये और 5 गुलाब भी चढा दे।


 घी का दीपक जला दे, जो साधना विधि के समय जलता रहे। आप जो धूप इस्तेमाल करे वो गुलाब का ही हो। जब मंत्र का जप किया जा रहा हो उस समय नजर  यंत्र की ओर होनी चाहिए। इसी यंत्र के माध्यम से साधक को अप्सरा से वचन प्राप्त करने का मंत्र प्राप्त होता है।


तो यकीन है की रूप-रंग व यौवन की चाहत रखने वाले लोगों के लिए ऊपर बताई गई बाते मददगार होंगी, जिनके उपयोग से साधक अपनी मनोकामना को पूर्ण कर सकता है।


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Friday, July 28, 2023

महाकाली साधना


 



महाकाली साधना


काल की गति सूक्ष्म से अति सूक्ष्म हैं . काल केबल कोई समय मात्र नहीं हैं , काल सजीव व् निर्जीव की गतिशीलता की पृष्ठभूमि हैं . काल गति के हरेक बिंदु में असंख्य घटनाए समाहित हैं . 


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इन्ही को हम काल योग या काल खंड कहते हैं . काल खंड में एक साथ हजारो प्रक्रियाए चलती रहती हैं , पर जिस भी प्रक्रिया का प्रभुत्व ज्यादा होता हे उसका असर हम पर प्रभाव ज्यादा रहता हे.


 इसी तरह अगर हम घटनाओ का अनावरण करे तो हरेक प्रक्रिया के लिए हमारे शास्त्रों में देवी एवं देवता निर्धारित हैं . 


आप ब्रम्हा, विष्णु, महेश, वरुण, इन्द्र, लक्ष्मी, सरस्वती, महाविद्या या किसी भी देवी देवता को देख लीजिए, प्रकृति में उनके कार्य निश्चित रूप से होते ही हैं .


अगर हम इसी बात को आगे लेकर बढे तो यह एक निष्कर्ष हैं कि पृथ्वी में जो भी गतिशीलता हैं या, काल खंड में समाहित जो भी घटनाए हैं उन हरएक घटना के स्वामी देव या देवी होते ही हैं.


हर एक क्षण में हमारे जीवन पर कोई न कई देवी देवता का प्रभाव पड़ता ही हैं . इसी को कहा गया हैं कि हरेक क्षण में कोई न कोई देवी या देवता शरीर में चैतन्य होते ही हैं . 


साधनाओ के द्वारा किसीभी देवी एवं देवताओ को सिद्ध कर के उनके द्वारा हमारी मनोकामना पूर्ति ,कार्य पूर्ति व इच्छा पूर्ति करवा सकते हैं . 


मगर हम ये नहीं जानते की किस क्षण में कौन देव / देवी चैतन्य हैं , और अगर हैं भी तो हम ये नहीं जानते कि प्रकृति आखिर कौन सा कार्य उस क्षण में करेगी और उसका हम पर क्या प्रभाव पड़ेगा.


अत्यंत उच्चकोटि के योगी, इस प्रकार का कालज्ञान रखते हैं , उन्हें मालूम रहता हैं कि कौन से क्षण में क्या होगा और उसका परिणाम किसके ऊपर क्या असर करेगा.


 कौनसे देवी या देवता उस क्षण में जागृत होंगे और कौन से देवी देवता उस क्षण अलग अलग मनुष्य में चैतन्य रहते हैं . 


इसी के आधार पर वे भविष्य में कौन से क्षण में किसके साथ क्या होगा और उसे अलग अलग व्यक्तियों के लिए कैसे अनुकूल या प्रतिकूल बनाना हैं इस प्रकार से अति सूक्ष्म ज्ञान रहता हैं .


जैसे कि पहले कहा गया हैं , कि काल खंड में घटित असंख्य घटनाओ में से किसी एक घटना का प्रभाव सब से ज्यादा रहता हैं हर एक व्यक्ति के लिए वो अलग अलग हो सकता हैं . और हम उसी को एक डोर में बांधते हुए "जीवन" नाम देते हैं . 


दरअसल हमारे साथ एक ही वक़्त में सेकड़ो घटनाए घटित होती हैं पर उनके न्यून प्रभाव के कारण हम उसे समझ नहीं पाते. अब जिस घटनाका प्रभाव सबसे ज्यादा होगा उसके देवता को अगर हम साधना के माध्यम से अनुकूल करले तो उस समय में होने वाले किसी भी घटना क्रम को हम आसानी से हमारे अनुकूल बना सकते हैं .


 पर हम इतने कम समय में कैसे समझ ले की क्या घटना हैं देवता कौन हैं प्रभाव कैसा रहेगा आदि आदि ...उच्चकोटि के योगियों के लिए ये भले ही संभव हो लेकिन सामान्य मनुष्यों के लिए ये किसी भी हिसाब से संभव नहीं हैं . 


और इसी को ध्यान में रखते हुए , एक ऐसी साधना का निर्माण हुआ जिससे अपने आप ही हर एक क्षण में रहा देव योग अपने आप में सिद्ध हो जाता हैं और देव योग का ज्ञान होता रहता हे जिससे कि ये पता चलेगा कि कौन से क्षण में क्या कार्य करना चाहिए. 


अपने आपही क्षमता आ जाती हैं की उसे कार्य के अनुकूल या प्रतिकूल होने का आभाष पहले से ही मिल जाता हैं और देवता उसके वश में रहते हैं


काल की देवी महाकाली को कहा गया हैं और काल उनके नियंत्रण में रहता हैं . इस साधना के इच्छुक लोगो को साधना के साथ साथ शक्ति चक्र पर त्राटक का भी अभ्यास करना चाहिए.


ये साधना रविवार या फिर किसी भी दिन शुरू की जा सकती हैं इस साधना में साधक को काले वस्त्र ही धारण करने चाहिए.


इस साधना में महाकाली यन्त्र व काले हकीक माला की जरुरत रहती हैं साधना काल के के सभी नियम इस साधना में पालन करने चाहिए .


रात्रि में ११ बजे के बाद साधक स्नान कर के, काले वस्त्र धारण कर के काले उनी आसन पर बेठे. अपने सामने महाकाली का चित्र स्थापित हो. यन्त्र की सामान्य पूजा करे. दीपक और लोबान धूप जरुर लगाए.


फिर निम्न लिखित ध्यान करे


मुंड माला धारिणी दिगम्बरा

शत्रुसम्हारिणी विचित्ररूपा

महादेवी कालमुख स्तंभिनी

नमामितुभ्यम मात्रुस्वरूपा


इसके बाद साधना में सफलता के लिए महाकाली से प्राथना करे एवं निम्न लिखित मन्त्र का २१ माला जाप करे.


क्लीं क्लीं क्रीं महाकाली काल सिद्धिं क्लीं क्लीं क्रीं फट .


११ दिन तक प्रति दिन साधना निर्देशित जप करे . इसके बाद माला को १ महीने तक धारण करे फिर इसे नदी में विसर्जित करदे. यन्त्र को पूजा स्थान में रखा

जा सकता हैं.


साधना समाग्री दक्षिणा === 1500


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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》


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अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें


 


अपने ऊपर तान्त्रिक प्रयोग का कैसे पता करें :


अक्सर लोग सोचते हैं की किसी ने उनपर कोई जादू टोना या तांत्रिक प्रयोग कर दी है तो आईये जानते हैं –


1) रात को सिरहाने एक लोटे मैं पानी भर कर रखे और इस पानी को गमले मैं लगे या बगीचे मैं लगे किसी छोटे पौधे मैं सुबह डाले । 3 दिन से एक सप्ताह मे वो पौधा सूख जायेगा है ।


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2) रात्रि को सोते समय एक हरा नीम्बू तकिये के नीचे रखे और प्रार्थना करे कि जो भी नेगेटिव क्रिया हूई इस नीम्बू मैं समाहित हो जाये । सुबह उठने पर यदि नीम्बू मुरझाया या रंग काला पाया जाता है तो आप पर तांत्रिक क्रिया हुई है।


3) यदि बार बार घबराहट होने लगती है, पसीना सा आने लगता हैं, हाथ पैर शून्य से हो जाते है । डाक्टर के जांच मैं सभी रिपोर्ट नार्मल आती हैं।लेकिन अक्सर ऐसा होता रहता तो समझ लीजिये आप किसी तान्त्रिक क्रिया के शिकार हो गए है ।


4) आपके घर मैं अचानक अधिकतर बिल्ली,सांप, उल्लू, चमगादड़, भंवरा आदि घूमते दिखने लगे ,तो समझिये घर पर तांत्रिक क्रिया हो रही है।


5) आपको अचानक भूख लगती लेकिन खाते वक्त मन नही करता ।


6) भोजन मैं अक्सर बाल, या कंकड़ आने लगते है ।


7) घर मे सुबह या शाम मन्दिर का दीपक जलाते समय विवाद होने लगे या बच्चा रोने लगे ।


8) घर के मन्दिर मैं अचानक आग लग जाये ।


9) घर के किसी सदस्य की अचानक मौत ।


10) घर के सदस्यों की एक के बाद एक बीमार पढ़ना ।


11) घर के जानवर जैसे गाय, भैंस, कुत्ता अचानक मर जाना।


12) शरीर पर अचानक नीले रंग के निशान बन जाना ।


13) घर मे अचानक गन्दी बदबू आना ।


14) घर मैं ऐसा महसूस होना की कोई आसपास है ।


15) आपके चेहरे का रंग पीला पड़ना ये भी एक कारण हैं की जितना प्रबल तन्त्र प्रयोग होगा आपके मुह का रंग उतना ही पिला पड़ता जायेगा आप दिन प्रतिदिन अपने आपको कमज़ोर महसूस करेंगे।


16) आपके पहने नए कपड़े अचानक फट जाए, उस पर स्याही या अन्य कोई दाग लगने लग जाए, या जल जाए।


17) घर के अंदर या बाहर नीम्बू, सिंदूर, राई , हड्डी आदि सामग्री बार बार मिलने लगे।


18) चतुर्दशी या अमावस्या को घर के किसी भी सदस्य या आप अचानक बीमार हो जाये या चिड़चिड़ापन आने लग जाये ।


19) घर मैं रुकने का मन नही करे, घर मे आते ही भारीपन लगे,जब आप बाहर रहो तब ठीक लगे****** दशमहाविद्द्या माँ


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


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Thursday, July 27, 2023

दंतेश्वरी मंदिर-


 



दंतेश्वरी मंदिर- 


एक शक्ति पीठ यहां गिरा था सती का दांत


छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की हसीन वादियों में स्थित है, दन्तेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर। देवी पुराण में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है जबकि तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। जबकि कई अन्य ग्रंथों में यह संख्या 108 तक बताई गई है।


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 दन्तेवाड़ा को हालांकि देवी पुराण के 51 शक्ति पीठों में शामिल नहीं किया गया है लेकिन इसे देवी का 52 वा शक्ति पीठ माना जाता है। मान्यता है की यहाँ पर सती का दांत गिरा था इसलिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और माता क़ा नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। 51 शक्ति पीठों की जानकारी और शक्ति पीठों के निर्माण कि कहानी आप हमारे पिछले लेख 51 शक्ति पीठ में पढ़ सकते है।


 दंतेश्वरी मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदीयों के संगम पर स्थित हैं।


दंतेश्वरी देवी को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दजऱ्ा प्राप्त है। इस मंदिर की एक खासियत यह है की माता के दर्शन करने के लिए आपको लुंगी या धोति पहनकर ही मंदीर में जाना होगा। मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहन कर जानें की मनाही है।


मंदिर के निर्माण की कथा-


दन्तेवाड़ा शक्ति पीठ में माँ दन्तेश्वरी के मंदीर का निर्माण कब व कैसे हूआ इसकि क़हानी कुछ इस तरह है। ऐसा माना जाता है कि बस्तर के पहले काकातिया राजा अन्नम देव वारंगल से यहां आए थे। उन्हें दंतेवश्वरी मैय्या का वरदान मिला था। 


कहा जाता है कि अन्नम देव को माता ने वर दिया था कि जहां तक वे जाएंगे, उनका राज वहां तक फैलेगा। शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना था और मैय्या उनके पीछे-पीछे जहां तक जाती, वहां तक की ज़मीन पर उनका राज हो जाता। अन्नम देव के रूकते ही मैय्या भी रूक जाने वाली थी।


अन्नम देव ने चलना शुरू किया और वे कई दिन और रात चलते रहे। वे चलते-चलते शंखिनी और डंकिनी नंदियों के संगम पर पहुंचे। यहां उन्होंने नदी पार करने के बाद माता के पीछे आते समय उनकी पायल की आवाज़ महसूस नहीं की। सो वे वहीं रूक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्?होंने पीछे पलटकर देखा। माता तब नदी पार कर रही थी। राजा के रूकते ही मैय्या भी रूक गई और उन्?होंने आगे जाने से इनकार कर दिया।


 दरअसल नदी के जल में डूबे पैरों में बंधी पायल की आवाज़ पानी के कारण नहीं आ रही थी और राजा इस भ्रम में कि पायल की आवाज़ नहीं आ रही है, शायद मैय्या नहीं आ रही है सोचकर पीछे पलट गए।


वचन के अनुसार मैय्या के लिए राजा ने शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर एक सुंदर घर यानि मंदिर बनवा दिया। तब से मैय्या वहीं स्थापित है। दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकिन नदी के संगम पर माँ दंतेश्वरी के चरणों के चिन्ह मौजूद है और यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।


अदभुत है मंदिर-


दंतेवाड़ा में माँ दंतेश्वरी की षट्भुजी वाले काले ग्रेनाइट की मूर्ति अद्वितीय है। छह भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशुल और बाएं हाथ में घंटी, पद्य और राक्षस के बाल मांई धारण किए हुए है।


 यह मूर्ति नक्काशीयुक्त है और ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरुप है। माई के सिर के ऊपर छत्र है, जो चांदी से निर्मित है। वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। द्वार पर दो द्वारपाल दाएं-बाएं खड़े हैं जो चार हाथ युक्त हैं। बाएं हाथ सर्प और दाएं हाथ गदा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है। 


इक्कीस स्तम्भों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान जो काले पत्थर के हैं। यहां भगवान गणेश, विष्णु, शिव आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में प्रस्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में सिले हुए वस्त्र पहनकर प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पर्वतीयकालीन गरुड़ स्तम्भ से अड्ढवस्थित है। 


बत्तीस काष्ठड्ढ स्तम्भों और खपरैल की छत वाले महामण्डप मंदिर के प्रवेश के सिंह द्वार का यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मांई जी का प्रतिदिन श्रृंगार के साथ ही मंगल आरती की जाती है।


माँ भुनेश्वरी देवी-


माँ दंतेश्वरी मंदिर के पास ही उनकी छोटी बहन माँ भुनेश्वरी का मंदिर है। माँ भुनेश्वरी को मावली माता, माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। माँ भुनेश्वरी देवी आंध्रप्रदेश में माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है और लाखो श्रद्धालु उनके भक्त हैं।


 छोटी माता भुवनेश्वरी देवी और मांई दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है। लगभग चार फीट ऊंची माँ भुवनेश्वरी की अष्टड्ढभुजी प्रतिमा अद्वितीय है। मंदिर के गर्भगृह में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं है। 


वहीं भगवान विष्णु अवतार नरसिंह, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमाएं प्रस्थापित हैं। कहा जाता है कि माणिकेश्वरी मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में हुआ।


फाल्गुन में होता है मड़ई उत्सव का आयोजऩ-

होली से दस दिन पूर्व यहां फाल्गुन मड़ई का आयोजन होता है, जिसमें आदिवासी संस्कृति की विश्वास और परंपरा की झलक दिखाई पड़ती है। 


नौ दिनों तक चलने वाले फाल्गुन मड़ई में आदिवासी संस्कृति की अलग-अलग रस्मों की अदायगी होती है। मड़ई में ग्राम देवी-देवताओं की ध्वजा, छत्तर और ध्वजा दण्ड पुजारियों के साथ शामिल होते हैं। 


करीब 250 से भी ज्यादा देवी-देवताओं के साथ मांई की डोली प्रतिदिन नगर भ्रमण कर नारायण मंदिर तक जाती है और लौटकर पुनरू मंदिर आती है। इस दौरान नाच मंडली की रस्म होती है, जिसमें बंजारा समुदाय द्वारा किए जाने वाला लमान नाचा के साथ ही भतरी नाच और फाग गीत गाया जाता है। 


मांई जी की डोली के साथ ही फाल्गुन नवमीं, दशमी, एकादशी और द्वादशी को लमहा मार, कोड़ही मार, चीतल मार और गौर मार की रस्म होती है। मड़ई के अंतिम दिन सामूहिक नृत्य में सैकड़ों युवक-युवती शामिल होते हैं और रात भर इसका आनंद लेते हैं।


 फाल्गुन मड़ई में दंतेश्वरी मंदिर में बस्तर अंचल के लाखों लोगों की भागीदारी होती है।


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जादुई पत्थर सुलेमानी हकीक


 



जादुई पत्थर सुलेमानी हकीक


कई समस्याओं का सस्ता और मजबूत उपाय... जो नहीं होने देता वाल भी बाँका।।


 *ऐसा पत्थर जो जादुई शक्ती जैसा असर देता है। अकेला शनि , राहु , केतु के दुष्प्रभाव और जीवन की विभिन्न प्रकार की  बाधाओं जैसे तंत्र, मंत्र, अभिचारिक टोटके, और प्रेतादि प्रकोप से रक्षा करे। तथा दुर्घटना में कर देता है प्राणरक्षा ।।


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शास्त्रो में 84 रत्नों और 9 मणियों का वर्णन  मिलता है जिसमें से सुलेमानी रत्न मनुष्य के लिए प्राकृति की अनुपम भेंट है। यह रत्न ऐसा रत्न है जो तीन ग्रहों शनि , राहु और केतु के दोष दूर करता है इसके अतिरिक्त यदि आप पर कोई तंत्र क्रिया (जादू-टोना) किया गया है तो यह उसके प्रभाव को भी दूर करता है ।


*सुलेमानी हकीक के चमत्कारी और अदभुत लाभ :-

            

1⃣सुलेमानी हकीक जो आपको लोगो की बुरी नजर से बचा कर रखता है ।


2⃣आपका व्यवसाय काला जादू या टोना - टोटका की वजह से मंदा चल रहा है तो सुलेमानी हकीक पत्थर उसका काट कर देता है और व्यवसाय में बढ़ोतरी होती है ।

3⃣अगर पूर्ण प्रयास के बाद भी घर की उन्नती में बाधाऐं आ रही हैं तो उन्नती के रास्ते खुलने लगते हैं |


 4⃣अज्ञात शत्रु  आपको परेशान कर रहे हैं या कोई तंत्र-क्रिया आप पर करवा रहे हैं तो आपका उसके की हुई क्रिया से आपका बचाव करते हुऐ आपके शत्रु को परास्त करता है | उस शत्रु को आपके सामने शक्तिहीन बनाता है |

5⃣अगर आपकी सेहत सही नही रहती है या आपके परिवार में बार-बार कोई बीमार रहता है और दवाऐं भी बेअसर हो रहीं हैं तो उसको सुलेमानी हकीक धारण करवाइऐ उस से सेहत में शीध्र ही काफ़ी अच्छा सुधार होगा ।


6⃣सुलेमानी हकीक राहु, केतु और शनि द्वारा आ रही बाधाओ को दूर करता है और व्यक्ति को सफलता मिलने लगती है 


7⃣काला जादू ख़त्म करता है और बुरी नज़र से बचाव करता है... (यहाँ तक मूठ या दिनारी जैसी तंत्र क्रियाओं से भी बचा लेता है) |


8⃣नौकरी, तरक्की, और व्यवसाय में आ रही अनावस्यक अड़चनो को दूर करता है ।


9⃣सुलेमानी हकीक को धारण करने के बाद लोग आपकी तरफ आकर्षित होने लगते है औ आपको महत्त्व देने लगते है ।|


🔟ये पत्थर  दुर्घटनाओं में भी स्वयं टूटकर .. पहनने वाले के प्राणों की रक्षा करता है... इस पत्थर पर.. सर का वाल या सूंती वस्त्र भी नहीं जलता है.. कितनी भी आग जलाई जाऐ।।

      *पहनने की बिधी*


आपको सुलेमानी हकीक शनिवार को, दाहिने हाथ की मध्यमा (सबसे बड़ी) उंगली में धारण करना है व पंचधातु या चाँदी की अंगूठी में बनबाना है | 


अगर इसको गले में पंचधातु के लॉकेट में धारण कर सकते है तो बहुत अच्छे परिणाम मिलते हैं । "परंतु सही से प्राणप्रतिष्ठित ही पहनना चाहिऐ तो पूर्ण लाभ देता है।।"


            -:विषेश:-


*सुलेमानी हकीक को कोई भी व्यक्ति धारण कर सकता हैं।*


*ध्यान रखें ये पत्थर असली और त्रुटि रहित हो।*


*(अगर सुलेमानी हकीक को पंचधातु या चाँदी में बनाकर.... शनी, राहु, केतु के मंत्र या देवी मंत्र के जाप और हवन द्वारा अभिमंत्रित कर दिया जाय तो अदभुत परिणाम मिलते हैं।)*


, सिद्ध सामग्री. :-. 


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Tuesday, July 25, 2023

अगर आपकी हथेली पर है यह शुभ चिन्ह तो मिलेगी अथाह धन-दौल‍त ..


 


अगर आपकी हथेली पर है यह शुभ चिन्ह तो मिलेगी अथाह धन-दौल‍त ..

 


हमारी हथेली पर कई तरह के चिन्ह बने होते हैं। हर चिन्ह का कोई ना कोई अर्थ निहित होता है। आज हम आपके लिए लाए हैं हथेली के पर्वतों पर वृत्त यानी गोल घेरे के होने के शुभ-अशुभ संकेत... 


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अगर आपकी हथेली के गुरु पर्वत पर वृत्त का चिह्न बना है तो यह आपके लिए बहुत फलदायी है। जिनके हाथ में ऐसा निशान होता है वह व्यक्ति बहुत ही प्रभावशाली होते हैं।


 ऐसे व्यक्ति दवारा किये गये प्रयासों के कारण जीवन में उच्च पद प्राप्त होता हैं। साथ ही ऐसे व्यक्तियों को ससुराल से भी धन की प्राप्ति होती है। 

 

अगर किसी के हाथ में शनि पर्वत पर वृत्त का निशान हो तो व्यक्ति को अचानक धन की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्तियों की लॉटरी, जुए,


 सट्टे आदि में विशेष रुचि होती है ऐसे व्यक्ति गलत तरीके से धन कमाते हैं। अथाह धन-दौल‍त का शुभ संकेत है शनि पर्वत पर गोल घेरा। 

 

हथेली में सूर्य पर्वत पर वृत्त का चिन्ह होने से व्यक्ति उच्च एवं सात्विक विचारों का होता है। ऐसा व्यक्ति अपने अच्छे कामों के कारण अपना नाम कमाता है।


हस्तरेखा के अनुसार चंद्र पर्वत पर वृत्त का निशान होने से व्यक्ति का स्वास्थ्य कमजोर रहता है। ऐसे व्यक्ति को पानी के स्रोतों से दूर रहना चाहिए। इन स्‍थानों पर ऐसे लोगों के लिए मृत्‍यु योग बनता है।

 

हाथ में बुध पर्वत पर वृत्त का निशान होने से व्यक्ति व्यापार में लाभ कमाता है। ऐसे चिन्ह वाले जातक व्यापार में सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति और विलासिता पूर्ण जीवन जीते हैं।

 

अगर किसी के हाथ में बनी रेखाओं पर वृत्त का चिन्ह बनता हैं। तो इनका प्रभाव नकारात्मक होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जीवन रेखा पर वृत्त का चिन्ह बनने से व्यक्ति की आंखें कमजोर होती है।


 मस्तिष्क रेखा पर बना वृत्त का निशान मानसिक रोगों का कारण होता है। हृदय रेखा पर बना वृत्त चिह्न व्यक्ति को हृदय रोगी होने के बारे में बताता है।


और अधिक जानकारी हस्तरेखा से जुड़ा हुआ परामर्श कुंण्डली विश्लेषण वास्तु हस्तरेखा अंक ज्योतिष के लिए संपर्क करें.  मुक्त फ्री वाले संपर्क ना करें ..


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दक्षिणा  -  351  मात्र .


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Monday, July 24, 2023

आर्थिक स्थिति में परेशानी के लिये रोजगार एवं आमदनी से संबंधित योग देखा जाता है ...


 


आर्थिक स्थिति में परेशानी के लिये रोजगार एवं आमदनी से संबंधित योग देखा जाता है ...


इस कुंडली में दशम भाव का स्वामी चंद्रमा लग्न में विराजमान है एवं दशम भाव में गुरु उच्च राशि में विराजमान है। 


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जो अपने मेहनत और परिश्रम के माध्यम से रोजगार में सफलता प्राप्त करने का योग बना रहे हैं और आयेश सूर्य की भी दृष्टि दशम भाव पर है । रोजगार एवं  आमदनी का अच्छा योग है ।


परंतु दशम भाव पर शनि की दृष्टि है कर्क राशि में शनि की दृष्टि कभी भी अच्छा फल नहीं देती है चाहे  कारक ही क्यों ना  हो और लग्न में दशम भाव का स्वामी चंद्रमा पर भी शनि की दृष्टि  है ।  


दशम भाव में केतु विराजमान है और राहु की दृष्टि है, इस प्रकार राहु केतु शनि दशम भाव  में  समस्या उत्पन्न कर रहे हैं और शनि  दशमेश  को पीड़ित कर वहां भी परेशानी उत्पन्न कर रहे हैं, ऐसे में रोजगार से संबंधित समस्या होना आवश्यक है


आमदनी भाव के स्वामी सूर्य चतुर्थ भाव में राहु शनि के साथ विराजमान हैं और ग्रहण योग बना रहे हैं ऐसे में आमदनी अच्छी नहीं होगी ग्रहों के अंश बल के अनुसार भी सूर्य कमजोर हैं आय  भाव पर किसी दूसरे ग्रह की दृष्टि नहीं है जो सहयोग करें, आमदनी सही नहीं होगी ।


द्वितीय भाव का स्वामी मंगल सप्तम भाव का  भी स्वामी है इसके माध्यम से स्वयं के व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है धन का संग्रह होता है, परंतु यह भी अष्टम भाव में विराजमान है. एवं  उस पर राहु की दृष्टि है 


अर्थात स्वयं के व्यवसाय करेंगे उस पर भी कठिनाई होगी पार्टनरशिप के साथ व्यवसाय करेंगे उसको भी परेशानी होगी धन का संग्रह सही प्रकार से नहीं हो पाएगा. कुटुम्ब के सुख में भी मतभेद रहेगा ।


उपाय . सबसे पहले चंद्रमा और सूर्य जो पीड़ित है और ग्रह बल के अनुसार बिल्कुल कमजोर हैं इन्हें मंत्र जाप के माध्यम से या किसी भी विधि से प्रबल करना ।


राहु केतु शनि जो सूर्य गुरु चंद्रमा मंगल को पीड़ित कर रहे हैं इनसे संबंधित दान तथा उपाय लगातार करें शनि  सबसे कारक है परंतु यहां परेशानी उत्पन्न कर रहे हैं और दान करने से कोई भी ग्रह कमजोर नहीं होता है बल्कि उसके दोष में कमी आती है ।


सबसे मुख्य बात ऐसी योग  वाले व्यक्ति को ग्रहों के उपाय के साथ लक्ष्मी साधना विशेष रूप से करना चाहिए  । यदि ऐसी कुंडली में योग हो तो बचपन से हैं लक्ष्मी साधना प्रारंभ कर देना चाहिए । 


ज्योतिष एवं साधना दोनों एक दूसरे के पूरक हैं यदि इन दोनों का सहयोग लिया जाए तो हम अपने परेशानी को जल्द से जल्द ठीक कर सकते हैं ।


सूर्य चंद्रमा एवं गुरु का बहुत ज्यादा महत्व है ।  इसके बारे में विस्तार से लेख लिख चुका हूँ यदि किसी की कुंडली में यह तीनों ग्रह एक साथ पीड़ित हो जाए तो इसके ऊपर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भी रहता है और इस कुंडली  में तीनों ही पीड़ित है ।


यदि ये एक साथ पीड़ित हो जाए तो कुंडली में अच्छे अच्छे योग  रहने के बाद भी जीवन में कभी कभी बहुत ज्यादा परेशानी हो जाती है ।


और अधिक जानकारी समाधान उपाय विधि प्रयोग या ओरिजिनल रत्न की जानकारी या रत्न प्राप्ति के लिए या कुंडली विश्लेषण कुंडली बनवाने के लिए संपर्क करें 


जन्म  कुंडली  देखने और समाधान बताने  की 


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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》


तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान


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Sunday, July 23, 2023

दिव्य दृ्ष्टि यक्षिणी साधना


 


दिव्य दृ्ष्टि यक्षिणी साधना


इस साधना के बाद साधक किसी भी मनुष्य के बारे मे आखे बन्द करके ही सब कुछ जान लेता है

वो जहॉ भी हो एकदम साफ साफ देख लेता है


कि सामने वाला क्या कर रहा है किस हाल मे है


योगी ध्यानी इसका अधिक प्रयोग करते है


ये प्रयोग पूर्ण रूप से गोपनीय है


मे इसे पहली बार आपलोगो के समक्ष पेश कर रहा हू

ये बहुत दुर्लभ साधना है


पूर्णिमा की रात नहा धोकर

साधक लाल वस्त्र पहने

लाल आसन पर बैठे

उत्तर मुख होकर

सामने यक्षिणी के लिये एक थाल रखे जिसमे सिन्दूर से स्वास्तिक बना ले

लाल कपडे की पट्टी जिसे आखो पर लपेट कर बाधॉ जा सके उतनी बडी होनी चाहिये

गुरू गणेश इष्ट कुल देव स्थान देव की पूजा दे

माता दुर्गा की पूजा दे

शिव पार्वती की पूजा दे


सभी से साधना मे सफलता का आशिर्वाद ले


फिर हाथ मे चावल लेकर दिव्या यक्षिणी का आवाहन करे


चावलो को थाल मे छोडे

फिर धूप दीप पुष्प गंध चन्दन इत्र सिन्दूर मिठाई कुमकुम आदि से पूजा करे


यक्षिणी का देवी रूप मे ही आवाहन पूजन करे

कोई सम्बंध ना बनाये

दिव्य दृष्टि के  लिये ही केवल संकल्प लें


पूजन करके

उस लाल पट्टी को आखो पर बॉध ले फिर

एक माला गुरू मंत्र की करे फिर 21 माला मंत्र स्फटिक की माला  से जाप करे

जाप उपांशु करे


जाप के बाद पट्टी खोल कर वही रख दे


जाप के बाद छमा याचना करे

वही कमरे मे ही सोये


येसा लगातार 15 दिन करे

पन्द्रहवे दिन अमावस्या को जाप करके उस पट्टी को आखो पर बॉध ले और फिर खोले नही लगातार तीन दिन तक बंधी रहने दे


साधना के बीच मे ही आपको रोशनी दिखाई देगी फिर वो साफ होकर चित्र रूप मे दिखने  लगेगा


येसा होने पर साधना सिद्ध मानी जाती है


इसमे यक्षिणी दर्शन भी दे सकती है और वो सिर पर हाथ रखकर भी दिव्य दृष्टि खोल सकती है


इसमे यक्षिणी का दर्शन होना जरूरी नही है

तीन दिन पट्टी बॉधते वक्त अपने साथ किसी और को रख लेना जो दैनिक कार्यो मे मदद करेगा


या जो लोग पट्टी को तीन दिन लगातार नही बाध सकते वो साधना लगातार पूरे एक महीने तक विधिवत करे

यानि पूर्णिमा तक तो बीच मे ही दिव्य दृष्टि खुल जाती है


येसा होने पर पूजन का विसर्जन करे


यक्षिणी दर्शन दे तो ये समय की मॉग करती है तो जितने वर्ष के लिये दिव्य दृष्टि रखनी हो जैसे बीस साल तीस साल उतने दिन का बोल दे


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Tuesday, July 18, 2023

हाथ की लकीर से जानें अपने हर सवाल का जवाब ...


 


हाथ की लकीर से जानें अपने हर सवाल का जवाब ...


ये नहीं देखा तो क्या देखा जीवन रेखा ही हथेली में एक ऐसी रेखा है, जो प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में पाई जाती है। यदि किसी के हाथ में यह रेखा न देखने को मिले तो यह समझना चाहिए कि ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व शून्यवत् है 


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और उस व्यक्ति की जीवन शक्ति का सर्वथा लोप हो गया है। ऐसे व्यक्ति का जीवन किसी भी समय समाप्त हो सकता है। कई बार मंगल रेखा चल कर इस रेखा को बल देती है, 


कभी-कभी शनि रेखा भी इस रेखा को बल देती हुई दिखाई देती है फिर भी जो जीवन रेखा अपने आप में निर्दोष और स्पष्ट होती है, वास्तव में वही रेखा मानव के लिए कल्याणकारी मानी जाती है।


इसी रेखा से व्यक्ति की आयु का पता चलता है तथा इस रेखा के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि जीवन में कौन-कौन सी दुर्घटनाएं किस-किस समय घटित होंगी तथा मृत्यु का कारण और मृत्यु का समय भी इसी रेखा से ज्ञात होता है।


यह रेखा बृहस्पति पर्वत के नीचे से निकलती है पर कई बार यह रेखा बृहस्पति पर्वत के ऊपर से भी निकलती हुई दिखाई दी है। इस रेखा के बारे में यह ध्यान रखना अत्यंत जरूरी है 


कि यह रेखा शुक्र पर्वत को जितने ही बड़े रूप में घेरती है, उतनी ही यह रेखा ज्यादा श्रेष्ठ मानी जाती है। यद्यपि कई बार यह रेखा शुक्र पर्वत को अत्यंत संकीर्ण बना देती है,


 जब ऐसा तथ्य हथेली में दिखाई दे तब यह समझ लेना चाहिए कि इस व्यक्ति की प्रगति जीवन में कठिन ही होगी, साथ ही साथ इस व्यक्ति को जीवन में प्रेम, भोग, सुख आदि सांसारिक गुणों की न्यूनता ही रहेगी। 


अंगूठे के पास में से होकर यह रेखा निकले तो उस व्यक्ति की आयु बहुत कम होती है।


जीवन रेखा जितनी ज्यादा गहरी स्पष्ट और बिना टूटी हुई होती है उतनी ही ज्यादा अच्छी कहलाती है। ऐसे व्यक्ति का स्वास्थ्य उन्नत होगा।


 उसके हृदय में प्रेम और सौंदर्य की भावना विकसित रहेगी परंतु जिसके हाथ में यह रेखा कटी-फटी या टूटी हुई अथवा अस्पष्ट दिखाई दे तो उसका जीवन दुखमय, भावना शून्य एवं दुर्घटनाओं से युक्त रहता है। ऐसे व्यक्ति तुनक मिजाज, चिड़चिड़े तथा बात-बात पर क्रोधित होने वाले होते हैं।


यदि गुरु पर्वत के नीचे, जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का पूर्ण मिलन होता है तो यह शुभ माना जाता है। ऐसा व्यक्ति परिश्रमी, सतर्क और योजनाबद्ध तरीके से काम करने वाला होता है परंतु यदि इन दोनों रेखाओं का उद्गम अलग-अलग होता है ...


 तो व्यक्ति उन्मुक्त विचारों वाला तथा अपनी ही धुन में कार्य करने वाला होता है परंतु यदि किसी के हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा तीनों एक ही स्थान से निकलें तो यह एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रतीक होता है। ऐसे व्यक्ति की नि:संदेह हत्या हो जाती है।


जीवन रेखा पर यदि आड़ी-तिरछी लकीरें दिखाई दें तो उस व्यक्ति का स्वास्थ्य कमजोर समझना चाहिए यदि हृदय रेखा और जीवन रेखा के बीच में त्रिभुज बन जाए तो ऐसा व्यक्ति दमे का रोगी होता है।


यदि जीवन रेखा से कोई पतली रेखा निकल कर गुरु पर्वत की ओर जाती दिखाई दे तो उस व्यक्ति में इच्छाएं, भावनाएं और महत्वाकांक्षाएं जरूरत से ज्यादा होती हैं और वह उन इच्छाओं को पूरा करने का भागीरथ प्रयत्न करता है। 


यदि इस रेखा पर कई रेखाएं उठती हुई दिखाई दें तो वह परिश्रमी और कर्मठ होता है तथा अपने प्रयत्नों से भाग्य का निर्माण करता है।


यदि जीवन रेखा के प्रारंभ से ही उसके साथ-साथ सहायक रेखा चल रही हो तो ऐसा व्यक्ति सोच-समझ कर कार्य करने वाला, विवेकपूर्वक योजनाएं बनाने वाला, चतुर तथा महत्वाकांक्षी होता है।


 इसके जीवन में कुछ भी असंभव नहीं होता। यदि जीवन रेखा चलती-चलती अचानक बीच में समाप्त हो जाती है तो यह आकस्मिक मृत्यु की ओर संकेत करती है।


यदि जीवन रेखा से कोई सहायक रेखा निकल कर चंद्र पर्वत की ओर जाती हुई दिखाई दे तो यह व्यक्ति वृद्धावस्था में पागल होता है। यदि इस रेखा में शनि रेखा आकर मिल जाए तो वह प्रतिभावान और तेजस्वी होता है।


जीवन रेखा के अंत में यदि किसी प्रकार का कोई बिंदू या क्रास दिखाई दे तो उस व्यक्ति की मृत्यु अचानक होती है। यदि जीवन रेखा अंत में जाकर कई भागों में बंट जाए तो ऐसे व्यक्ति को बुढ़ापे में निश्चय ही क्षय रोग होगा।


कुछ अन्य तथ्य-

छोटी रेखा-कम आयु। 


पीली और चौड़ी रेखा-बीमारी और विवादास्पद चरित्र।


लाल रेखा - हिंसा की भावना।


पतली रेखा - आकस्मिक मृत्यु।


जंजीरदार रेखा- शारीरिक कोमलता।


टूटी हुई रेखा- बीमारी। 


सीढ़ी के समान रेखा- जीवन भर रुग्णता।


बृहस्पति पर्वत के नीचे प्रारंभ- उच्च सफलता। 


मस्तिष्क रेखा से मिली हुई- विवेकपूर्ण जीवन।


जीवन मस्तिष्क तथा हृदय रेखा का मिलन- दुर्भाग्यपूर्ण व्यक्ति।


धंसी हुई गहरी रेखा- अशिष्टतापूर्ण व्यवहार।


स्वास्थ्य तथा मस्तिष्क रेखाओं के पास नक्षत्र-संतानहीनता।


स्पष्ट रेखा : न्यायपूर्ण जीवन।


प्रारंभ स्थल पर शाखा पुंज : अस्थिर जीवन।


रेखा के मध्य से शाखाएं : क्षयपूर्ण जीवन।


अंतिम सिरे पर शाखाएं : दुखदायी बुढ़ापा।


अंत में दो भागों में विभक्त : निर्धनतापूर्ण मृत्यु।


अंत में जाल- धनहानि के बाद मृत्यु।


रेखा के ऊपर की ओर उठती हुई सहायक रेखा : आकस्मिक धन प्राप्ति।


रेखा पर काला धब्बा : रोग का प्रारंभ।


नीचे की ओर जाती सहायक रेखाएं- स्वास्थ्य तथा धन की हानि 


मार्ग में रेखा का टूटना-आर्थिक हानि।


कई जगह पर कटती हुई रेखाएं- स्थायी रोग।


रेखा पर वृत्त का निशान - हत्या।


प्रारंभ में क्रास-दुर्घटना से अंग-भंग।


रेखा के अंत में क्रास : असफल बुढ़ापा।


क्रास से काटती हुई जीवन रेखा : मानसिक कमजोरी।


रेखा के प्रारंभ में द्वीप : तंत्र विद्या में रुचि।


रेखा के मध्य में द्वीप : शारीरिक कमजोरी।


लहरदार जीवन रेखा और उस पर द्वीप रोगी- जीवन।


जीवन रेखा के हाथ से पार जाती हुई रेखाएं- चिंताएं और कष्ट।


जीवन रेखा से गुरु पर्वत को जाती हुई रेखाएं- कदम-कदम पर सफलता।


शनि पर्वत पर जाती हुई रेखाएं- पशु से दुर्घटना एवं मृत्यु।


सूर्य पर्वत की ओर जाती हुई रेखाएं- प्रसिद्धि और सम्मान।


बुध पर्वत की ओर जाती हुई रेखाएं- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सफलता।


चंद्र पर्वत की ओर जाती हुई रेखाएं- जरूरत से ज्यादा निर्धनता तथा रोगमय जीवन।


निम्र मंगल की ओर जाती हुई रेखाएं- क्रोध में आत्महत्या।


मंगल पर्वत की ओर जाती हुई रेखाएं- प्रेम के कारण युवावस्था में बदनामी।


शुक्र पर्वत की ओर जाती हुई 

रेखाएं- प्रेम भंग।


जीवन रेखा को कई स्थानों पर काटती हुई रेखाएं : पारिवारिक जीवन में असफलता।


जीवन रेखा को काट कर भाग्य रेखा तक जाने वाली रेखा- व्यापार में पूर्ण असफलता।


जीवन रेखा को काट कर मस्तिष्क रेखा की ओर जाती हुई रेखा- पागलपन।


जीवन रेखा को काट कर हृदय रेखा की ओर जाती हुई रेखा- हृदय रोग।


जीवन रेखा तथा हृदय रेखा को काटती हुई रेखा- प्रेम कार्यों में असफलता।


हृदय रेखा की ओर जाने वाली रेखा के अंत में द्वीप- दुखपूर्ण वैवाहिक जीवन।


जीवन रेखा और सूर्य रेखा को काटती हुई रेखा- सामाजिक पतन।


शुक्र पर्वत तथा जीवन रेखा पर नक्षत्र का चिन्ह- घरेलू झगड़े।


सूर्य रेखा तथा जीवन रेखा पर नक्षत्र - दुखमय घरेलू जीवन।


मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा तथा जीवन रेखा पर चिन्ह- रोगपूर्ण जीवन।


भाग्य रेखा तथा जीवन रेखा पर त्रिकोण- आर्थिक हानि।


सूर्य रेखा तथा जीवन रेखा पर त्रिकोण- अपराधपूर्ण जीवन


और भी बहुत कुछ कहता है आप की हाथ की रेखाएं आप भी अपने जीवन से जुड़ा हुआ किसी भी प्रकार की जानकारी चाहते हैं तो हमें संपर्क करें और संपर्क करके हर  समस्या का समाधान प्राप्त करें ...


 

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Monday, July 17, 2023

श्री हनुमान बालाजी सरकार का सूर्य अस्त के बाद करे इस प्रकार पूजन दूर होगा आर्थिक संकट !!


 


श्री हनुमान बालाजी सरकार का सूर्य अस्त के बाद करे इस प्रकार पूजन दूर होगा आर्थिक संकट !!


कलियुग में हनुमानजी की पूजा सबसे जल्दी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी गई है। जो भी व्यक्ति सही विधि से बजरंगबली को मनाने के लिए पूजन करता है, उसे जल्दी ही शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं। 


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यदि आप भी हनुमानजी के भक्त हैं और धन संबंधी समस्याओं से मुक्ति पाना चाहते हैं तो यहां दीपक का एक पूजन बताया जा रहा है। यह पूजन सूर्यास्त के बाद करना है।


पूजन करने से पहले ध्यान रखें ये सामान्य


 सावधानियां :=


हनुमानजी के पूजन में साफ-सफाई और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना अनिवार्य है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता नहीं होनी चाहिए। जब भी पूजा करें, तब हमें मन से और तन से पवित्र हो जाना चाहिए।


 पूजन के दौरान गलत विचारों की ओर मन को भटकने न दें। यह कुछ सामान्य सावधानियां हैं, जो कि हनुमानजी का पूजन करते समय ध्यान रखनी चाहिए।


पूजन के लिए जरूरी हैं ये सामान := 


मिट्टी का दीपक, सरसो का तेल, रूई की बत्ती, सिंदूर, चमेली का तेल, अगरबत्ती, पुष्प-हार और बैठने के लिए साफ आसन।


पूजन की विधि:=


शाम को सूर्यास्त के बाद किसी भी हनुमानजी के मंदिर जाएं। इसके पूर्व पवित्र हो जाना चाहिए। मंदिर पहुंचकर हनुमानजी के सामने साफ आसन पर बैठें और सरसो के तेल का दीपक लगाएं। 


दीपक चौमुखा होना चाहिए यानी बत्ती इस प्रकार लगाएं कि दीपक को चारों ओर से जलाया जा सके। इस प्रकार दीपक लगाने के साथ ही अगरबत्ती, पुष्प आदि अर्पित करें। सिंदूर, चमेली का तेल चढ़ाएं। दीपक लगाते समय हनुमानजी के मंत्रों का जप करना चाहिए। 


मंत्र- 


ऊँ रामदूताय नम:, ऊँ पवन पुत्राय नम: आदि। इसके बाद हनुमान चालीसा का जप करें।


विशेष:==


यदि आप पूरी हनुमान चालीसा पढऩे में समर्थ न हों तो कुछ पंक्तियों का जप भी कर सकते हैं। इस उपाय से बहुत जल्द व्यक्ति का बुरा समय दूर हो सकता है। धन संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं।


हर मंगलवार या शनिवार के दिन बजरंगबली को बना हुआ बनारसी पान चढ़ाना चाहिए। बनारसी पत्ते का बना हुआ पान चढ़ाने से भी हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है।जो भक्त रामायण या श्रीरामचरित मानस का पाठ करते हैं या इनके दोहे प्रतिदिन पढ़ते हैं, उन्हें हनुमानजी का विशेष स्नेह प्राप्त होता है।


किसी भी खास मुहूर्त में या त्यौहार या विशेष तिथि पर हनुमानजी का पूरा श्रृंगार अपनी श्रद्धा अनुसार करवाना चाहिए। इसे चोला चढ़ाना कहा जाता है। हनुमानजी का चोला चढ़वाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पाप का प्रभाव कम होता है।.


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Sunday, July 16, 2023

बटुक भैरव मंत्र


 

बटुक भैरव मंत्र


॥ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा॥


यह इक्कीस अक्षरों का मंत्र अत्यन्त ही महत्वपूर्ण माना गया है, 31  दिवसीय इस साधना की समाप्ति के पश्‍चात् नित्य बटुक भैरव यंत्र अपने सामने स्थापित कर उसका संक्षिप्त पूजन कर एक माह तक नित्य उपरोक्त बटुक भैरव मंत्र की 31 माला जप करने से साधक की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।


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एक माह अर्थात् 30 दिन मंत्र जप के पश्‍चात् यंत्र एवं माला को जल में विसर्जित कर दें।


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Friday, July 14, 2023

वशीकरण प्रयोग


 


वशीकरण प्रयोग


जप खत्म होने के बाद उस फोटो के ऊपर 11 बार फूंक मारे । यह क्रिया आपको लगातार तीन दिन तक करनी है । एक बात का ध्यान रखें कि जब आप इस वशीकरण क्रियाओं को कर रहे हो तब आपको बीच में कोई ना टोके और ना ही कोई आपको देखें । 


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जब आप का सफलतापूर्वक 3 दिन तक जप हो जाएगा तब 5 से 6 दिन के भीतर सामने वाले के भीतर आपके प्रति शक्तिशाली आकर्षण पैदा होगा और वह आपसे मिले बिना या बात किए बिना नहीं रह पाएगा


ॐ सर्वस्त्री सर्वपुरुष वशीकरणी श्रीं ह्रीं स्वाहा||


11 दिन और 31 माला प्रतिदिन जाप करना है


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Wednesday, July 12, 2023

नील सरस्वती साधना


 



नील सरस्वती साधना


देवी तारा दस महाविद्याओं में से एक है इन्हे नील सरस्वती भी कहा जाता है ! ये सरस्वती का तांत्रिक स्वरुप है


अब आप एक एक अनार निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ गणेश जी व् अक्षोभ पुरुष को काट कर बली दे ..


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ॐ गं उच्छिस्ट गणेशाय नमः भो भो देव प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट .


.ॐ भं क्षं फ्रें नमो अक्षोभ्य काल पुरुष सकाय प्रसिद प्रसिद मया दत्तं इयं बलिं गृहान हूँ फट ..


अब आप इस मंत्र की एक माल जाप करे ..


॥क्षं अक्षोभ्य काल पुरुषाय नमः स्वाहा॥


फिर आप निम्न मंत्र की एक माला जाप करे ..


॥ह्रीं गं हस्तिपिशाची लिखे स्वाहा॥


इन मंत्रो की एक एक माला जाप शरू में व् अंत में करना अनिवार्य है क्यों नील तारा देवी के बीज मंत्र की जाप से अत्यंत भयंकर उर्जा का विस्फोट होता है शरीर के अंदर .. 


ऐसा लगता है जैसे की आप हवा में उड़ रहे हो .. एक हि क्षण में सातो आसमान के ऊपर विचरण की अनुभति तोह दुसरे ही क्षण अथाह समुद्र में गोता लगाने की .. इतना उर्जा का विस्फोट होगा की आप कमजोर पड़ने लग जायेंगे आप के शारीर उस उर्जा का प्रभाव व् तेज को सहन नहीं कर सकते इस के लिए ही यह दोनों मात्र शुरू व् अंत में एक एक माला आप लोग अवस्य करना .. नहीं तोह आप को विक्षिप्त होने से स्वं माँ भी नहीं बचा सकती ..


इस साधना से आप के पांच चक्र जाग्रत हो जाते है तोह आप स्वं ही समझ सकते हो इस मंत्र में कितनी उर्जा निर्माण करने की क्षमता है .. 


एक एक चक्र को उर्जाओ के तेज धक्के मार मार के जागते है ..अरे परमाणु बम क्या चीज़ है भगवती की इस बीज मंत्र के सामने ?

सब के सब धरे रह जायेंगे ..


मूल मंत्र-


॥स्त्रीं ॥ ॥ STREENG ॥


जप के उपरांत रोज देवी के दाहिने हात में समर्पण व् क्षमा पार्थना करना ना भूले ..


साधना समाप्त करने की उपरांत यथा साध्य हवन करना .. व् एक कुमारी कन्या को भोजन करा देना ..अगर किसी कन्या को भोजन करने में कोई असुविधा हो तोह आप एक वक्त में खाने की जितना मुल्य हो वोह आप किसी जरुरत मंद व्यक्ति को दान कर देना ...


भगवती आप सबका कल्याण करे ..


जब भगवती का बीजमंत्र का एक लाख से ऊपर जप पूर्ण हो जाये तब उनके अन्य मंत्रो का जाप लाभदायी होता है


कुछ लॊग अपने आपको वयक्त नहीं कर पाते, उनमे बोलने की छमता नहीं होती ,उनमे वाक् शक्ति का विकास नहीं होता ऐसे जातको को बुधवार के दिन तारा यन्त्र की स्थापना करनी चाहिए ! उसका पंचोपचार पूजन करने के पश्चात स्फटिक माला से इस मंत्र का २१ माला जप करना चाहिए -


मंत्र - ॐ नमः पद्मासने शब्दरुपे ऐं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा


२१ वे दिन हवन सामग्री मे जौ-घी मिलाकर उपरोक्त मंत्र का १०८ आहुति दे और पूर्ण आहुति प्रदान करे !


इस साधना से वाक् शक्ति का विकास होता है , आवाज़ का कम्पन जाता रहता है ! यह मोहिनी विद्या है एवं बहुत से प्रवचनकार,कथापुराण वाचक इसी मंत्र को सिद्ध कर जन समूह को अपने शब्द जालो से मोहते है ! 


अपने पास कुछ भी गोपनीय नहीं रख रहा सब आप लोगो से शेयर कर रहा हु !! 


प्रतिदिन साधना से पूर्व माँ तारा का पूजन कर एक -एक माला (स्त्रीम ह्रीं हुं ) तारा कुल्लुका एवं ( अं मं अक्षोभ्य श्री ) की अवश्य करे I


साधना समाग्री दक्षिणा === 1500


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किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें


महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》


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Tuesday, July 11, 2023

विपरीत प्रत्यंगिरा तंत्रोक्त प्रयोग


 



विपरीत प्रत्यंगिरा तंत्रोक्त प्रयोग


जय भगवती आज में शत्रु के के लिए एक ऐसा प्रयोग देने जारहा हूँ जो किसी भी हालात में फ़ैल नहीं होता अगर आप नहीं करसकते तो मुझसे केरवासकते है मुझे करवाने में अनुतान का खर्चा देना होगा 


https://youtube.com/channel/UCWF8VKQJ_vL4K0-WKrGk-BA


ध्यानं


टंकं कपालं डमरूं त्रिशूलं। संबिभ्रती चंद्रकलावतंसा।

पिंगोर्ध्वकेशाासित भीमदंष्ट्रा। भूयाद् विभूत्यै मम भद्रकाली।।


इस मंत्र से माता का भक्तिपूर्वक ध्यान करें। इसके बाद निम्न मंत्रों से आगे की प्रक्रिया करें।


विनियोग


ऊं अस्य श्रीविपरीत प्रत्यंगिरास्तोत्रमंत्रस्य भैरव ऋषि:। अनुष्टुप-छंद:। श्रीविपरीत प्रत्यंगिरा देवता। हं बीजं। ह्रीं शक्ति:। क्लीं क्लीकं। ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे पाठे च विनियोग:।


करंगन्यास


ऊं ऐं अंगुष्ठाभ्यां नम:। ऊं ह्रीं तर्जनीभ्यां नम:। ऊं श्रीं मध्यमाभ्यां नम:। ऊं प्रत्यंगिरे अनामिकाभ्यां नम:। ऊं मां रक्ष रक्ष कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ऊं मम शत्रून् भंजय भंजय करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।


हृदयादिन्यास


ऊं ऐं हृदयाय नम:। ऊं ह्रीं शिरसे स्वाहा। ऊं श्रीं शिखायै वषट्। ऊं प्रत्यंगिरे कवचाय हुम्। ऊं मां रक्ष रक्ष नेत्रत्रयाय वौषट्।। ऊं मम शत्रून भंजय भंजय अस्त्राय फट्।


दिग्बंध


ऊं भूर्भुव: स्व:। इति दिग्बंध:। सभी दिशाओं में चुटकी बजाएं।


लघु मंत्र


ऊं ऐं ह्रीं श्रीं प्रत्यंगिरे मां रक्ष रक्ष मम शत्रून् भंजय भंजय फे हूं फट स्वाहा।


रोज 108 बार जप करें। शत्रु प्रबल हो तो एक बार में 16 हजार जप करें। दसवें हिस्से का हवन करें। हवन में कालीमिर्च, लावा, सरसो, नमक और घी की समान मात्रा हो। इस लघु महाविपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र का भी जवाब नहीं।


विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र


ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ कुं कुं कुं मां सां खां चां लां क्षां ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ ॐ ह्रीं वां धां मां सां रक्षां कुरु। ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ स: हुं ॐ क्षौं वां लां धां मां सां रक्षां कुरु। ॐ ॐ हुं प्लुं रक्षां कुरु।


ॐ नमो विपरीतप्रत्यंगिरायै विद्याराज्ञि त्रैलोक्यवंशकरि तुष्टि-पुष्टि-करि सर्वपीडापहारिणि सर्वापन्नाशिनि सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिनि मोदिनि सर्वशास्त्राणां भेदिनि क्षोभिणि तथा परमंत्र-तंत्र-यंत्र-विष-चूर्ण-सर्वप्रयोगादीननयेषां निर्वर्तयित्वा यत्कृतं तन्मेस्स्तु कलिपातिनि सर्वहिंसा मा कारयति अनुमोदयति मनसा वाचा कर्मणा ये देवासुर राक्षसास्तिर्यग्योनिसर्वहिंसका विरुपेकं कुर्वंति मम मंत्र-तंत्र-यंत्र-विष-चूर्ण-सर्व-प्रयोगादीनात्महस्तेन यः करोति करिष्यित्वा पातय कारय मस्तके स्वाहा।


गुरु मंत्र


ऊं हुं स्फारय स्फारय मारय मारय शत्रुवर्गान् नाशय नाशय स्वाहा।


इस मंत्र का सौ बार जप करें। मारण के लिए सफेद सरसों का प्रयोग करें।


विनियोग


ऊं अस्य श्रीमहाविपरीत प्रत्यंगिरास्तोत्र मंत्रस्य महाकालभैरवऋषि:। स्त्रिष्टुप् छन्द:। श्रीमहाविपरीत प्रत्यंगिरा देवता। हं बीजं। ह्रीं शक्ति:। क्लीं कीलकं। मम सर्वार्थसिद्ध्यर्थे जपे विनियोग:। परमंत्र, परयंत्र, परकृत्याछेदनार्थे, सर्वशत्रु क्षयार्थे विनियोग:।


महाविपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र का माला मंत्र


ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं नमो विपरीतप्रत्यंगिरायै सहस्रानेककार्यलोचनायै कोटि विद्युज्जिह्वायै महाव्यापिन्यै संहाररूपायै जन्मशांति कारिण्यै मम सपरिवारकस्य भावि भूत भवच्छत्रु दाराप्रत्यान् संहारय संहारय महाप्रभावं दर्शय दर्शय हिलि हिलि किलि किलि मिलि मिलि चिलि चिलि भूरि भूरि विद्युज्जिह्वे ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ध्वंसय ध्वंसय प्रध्वंसय प्रध्वंसय ग्रासय ग्रासय पिब पिब नाशय नाशय त्रासय त्रासय वित्रासय वित्रासय मारय मारय विमारय विमारय भ्रामय भ्रामय विभ्रामय विभ्रामय द्रावय द्रावय विद्रावय विद्रावय हूं हूं फट् स्वाहा।


हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे हूं लं ह्रीं लं क्लीं लं ऊं लं फट फट स्वाहा। हूं लं ह्रीं क्लीं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे मम सपिरवारकस्य यावच्छत्रून् देवता पितृ पिशाच नाग गरुड किन्नर विद्याधर गंधर्व यक्ष राक्षस लोकपालान् ग्रह भूत नर लोकान् समन्त्रान् सौषधान् सायुधान् स-सहायान् पाणौ धिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि निकृन्तय निकृन्तय छेदय छेदय उच्चाटय उच्चाटय मारय मारय तेषां साहंकारादि धर्मान् कीलय कीलय घातय घातय नाशय नाशय विपरीतप्रत्यंगिरे स्फ्रें स्फ्रेत्कारिणी ऊं ऊं जं ऊं ऊं जं ऊं ऊं जं ऊं ऊं जं ऊं ऊं जं ऊं ठ: ऊं ठ: ऊं ठ: ऊं ठ: ऊं ठ: मम सपरिवारकस्य शत्रूणां सर्वा: विद्या: स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय हस्तौ स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय मुखं स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय नेत्राणि स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय दंतान् स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय जिह्वां स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय पादौ स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय गुह्यं स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय सकुटुम्बानां स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय स्थानं स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय सं प्राणान् कीलय कीलय नाशय नाशय हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्री ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् फट् स्वाहा। मम सपरिवारकस्य सर्वतो रक्षां कुरु कुरु फट् फट् स्वाहा।


ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ऐं ह्रूं ह्रीं क्लीं हूं सों विपरीतप्रत्यंगिरे! मम सपरिवारकस्य भूत भविष्य च्छत्रूणामुच्चाटनं कुरु कुरु हूं हूं फट् स्वाहा। ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं वं वं वं वं वं लं लं लं लं लं रं रं रं रं रं यं यं यं यं यं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं नमो भगवति विपरीतप्रत्यंगिरे दुष्ट चांडालिनी त्रिशूल वज्रांकुश शक्ति शूल धनु: शर पाशधारिणी शत्रुरुधिर चर्म मेदो मांसाास्थि मज्जा शुक्र मेहन वसा वाक् प्राण मस्तक हेत्वादिभक्षिणी परब्रह्मशिवे ज्वालादायिनी मालिनी शत्रूच्चाटन मारण क्षोभन स्तंभन मोहन द्रावण जृम्भण भ्रामण रौद्रण संतापन यंत्र मंत्र तंत्रान्तर्याग पुरश्चरण भूतशुद्धि पूजाफल परमनिर्वाण हारण कारिणि कपालखट्वांग परशुधारिणि मम सपरिवारकस्य भूतभविष्यच्छत्रून् स-सहायान् सवाहनान् हन हन रण रण दह दह दम दम धम धम पच पच मथ मथ लंघय लंघय खादय खादय चर्वय चर्वय व्यथय व्यथय ज्वरय ज्वरय मूकान् कुरु कुरु ज्ञानं हर हर हूं हूं फट् फट् स्वाहा।


ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् स्वाहा। मम सपिरवारकस्य कृतमंत्र यंत्र तंत्र हवन कृतौषध विषचूर्ण शस्त्राद्यभिचार सर्वोपद्रवादिकं येन कृतं कारितं कुरुते करिष्यति वा तान् सर्वान् हन हन स्फारय स्फारय सर्वतो रक्षां कुरु कुरु हूं हूं फट् फट् स्वाहा। हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ओं ओं ओं ओं ओं ओं ओं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् फट् स्वाहा। ऊं हूं ह्रीं क्लीं ऊं अं विपरीतप्रत्यंगिरे मम सपरिवारकस्य शत्रव: कुर्वन्ति करिष्यन्ति शत्रुश्च कारयामास कारयन्ति कारयिष्यन्ति याान्यायं कृत्यान्तै: सार्धं तांस्तां विपरीतां कुरु कुरु नाशय नाशय मारय मारय श्मशानस्थानं कुरु कुरु कृत्यादिकां क्रियां भावि भूत भवच्छत्रूणां यावत्कृत्यादिकां क्रियां विपरीतां कुरु कुरु तान् डाकिनीमुखे हारय हारय भीषय भीषय त्रासय त्रासय परम शमनरूपेण हन हन धर्मावच्छिन्न निर्वाणं हर हर तेषाम् इष्टदेवानां शासय शासय क्षोभय क्षोभय प्राणादि मनोबुद्ध्य हंकार क्षुत्तृष्णा कर्षण लयन आवागमन मरणादिकं नाशय नाशय हूं हूं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं फट् फट् स्वाहा।


क्षं लं हं सं षं शं वं लं रं यं मं भं बं फं पं नं धं दं थं तं णं ढं डं ठं टं ञं झं जं छं चं ङं घं गं खं कं अ: अं औं ओं ऐं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ईं इं आं अं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् स्वाहा। क्षं लं हं सं षं शं वं लं रं यं मं भं बं फं पं नं धं दं थं तं णं ढं डं ठं टं ञं झं जं छं चं ङं घं गं खं कं अ: अं औं ओं ऐं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ईं इं आं अं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् स्वाहा। अ: अं औं ओं ऐं एं लृं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ईं इं आं अं ङं घं गं खं कं ञं झं जं छं चं णं ढं डं ठं टं नं धं दं थं तं मं भं बं फं पं क्षं लं हं सं षं शं वं लं रं यं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं मम सपरिवारकस्य स्थाने शत्रूणां कृत्यान् सर्वान् विपरीतान् कुरु कुरु तेषां तंत्र मंत्र तंत्रार्चन शमशानरोहण भूमिस्थापन भस्म प्रक्षेपण पुरश्चरण होमाभिषेकादिकान् कृत्यान् दूरी कुरु कुरु हूं विपरीतप्रत्यंगिरे मां सपरिवारकं सर्वत: सर्वेभ्यो रक्ष रक्ष हूं ह्रीं फट् स्वाहा।


अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं हूं ह्रीं क्लीं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे हूं ह्रीं क्लीं ऊं फट् स्वाहा। ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं विपरीतप्रत्यंगिरे मम सपरिवारकस्य शत्रूणां विपरीतक्रियां नाशय नाशय त्रुटिं कुरु कुरु तेषामिष्टदेवतादि विनाशं कुरु कुरु सिद्धम् अपनय अपनय विपरीतप्रत्यंगिरे शत्रुमर्दिनि भयंकरि नाना कृत्यामर्दिनि ज्वालिनि महाघोरतरे त्रिभुवन भयंकरि शत्रुभ्य: मम सपरिवारकस्य चक्षु: श्रोत्राणि पादौ सर्वत: सर्वेभ्य: सर्वदा रक्षां कुरु कुरु स्वाहा।


श्रीं ह्रीं ऐं ऊं वसुंधरे मम सपरिवारकस्य स्थानं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं महालक्ष्मि मम सपरिवारकस्य पादौ रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं चंडिके मम सपरिवारकस्य जंघे रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं चामुंडे मम सपरिवारकस्य गुह्यं रक्ष  रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं इंद्राणी मम सपरिवारकस्य नाभिं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं नारसिंहि मम सपरिवारकस्य बाहूं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं वाराहि मम सपरिवारकस्य हृद्यं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं वैष्णवि मम सपरिवारकस्य कंठं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं कौमारि मम सपरिवारकस्य वक्त्रं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं माहेश्वरि मम सपरिवारकस्य नेत्रे रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं ब्रह्माणि मम सपरिवारकस्य शिरो रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। हूं ह्रीं क्लीं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे मम सपरिवारकस्य छिद्रं सर्वगात्राणि रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा।


ऊं संतापिनि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् संतापय संतापय हूं फट् स्वाहा। ऊं संहारिणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् संहारय संहारय हूं फट् स्वाहा। ऊं रौद्रि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् रौद्रय रौद्रय हूं फट् स्वाहा। ऊं भ्रामिणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् भ्रामय भ्रामय हूं फट् स्वाहा। ऊं जृम्भिणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् जृम्भय जृम्भय हूं फट् स्वाहा। ऊं द्राविणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् द्रावय द्रावय हूं फट् स्वाहा। ऊं क्षोभिणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् क्षोभय क्षोभय हूं फट् स्वाहा। ऊं मोहिनि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् मोहय मोहय हूं फट् स्वाहा। ऊं स्तंभिनि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् स्तंभय स्तंभय हूं फट् स्वाहा।


ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं विपरीत परब्रह्म महाप्रत्यंगिरे ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं मम सपरिवारकस्य सर्वेभ्य: सर्वत: सर्वदा रक्षां कुरु कुरु मरण भयापन पापनय त्रिजगतां पररूपवित्तायुर्मे सपरिवारकाय देहि देहि दापय साधकत्वं प्रभुत्वं च सततं देहि देहि विश्वरूपे धनं पुत्रान् देहि देहि मां सपरिवारकस्य मां पश्येत्तु देहिन: सर्वे हिंसका: प्रलयं यान्तु मम सपरिवारकस्य शत्रूणां बलबुद्धिहानिं कुरु कुरु तान् स-सहायान स्वेष्टदेवतान् संहारय संहारय स्वाचारमपनयाापनय ब्रह्मास्त्रादीनि व्यर्थीकुरु हूं हूं स्फ्रें स्फ्रें ठ: ठ: फट् फट् ऊं।


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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...