Tuesday, November 3, 2020

तंत्र काम-वासना यानि सेक्स नही है








तंत्र काम-वासना यानि सेक्स नही है 

सेक्स यांत्रिक है, प्रेम मांत्रिक है, आत्मीयता तांत्रिक है 

तंत्र है दो आकाशों का मिलन न कि देह का मिलन 

देह है यंत्र ! दो देहों के बीच जो संबंध होता है वह है यांत्रिक ! सेक्स यांत्रिक है ! काम वासना यांत्रिक है ! जैसे दो मशीनों के बीच घटना घट रही हो !

मन है मंत्र ! मंत्र शब्द मन से ही बना है ! जो मन का है वही मंत्र ! जिससे मन में उतरा जाता है वही मंत्र ! जो मन का मौलिक सूत्र है वही मंत्र ! मन और मंत्र की मूल धातु एक ही है !

तो देह है यंत्र ! देह से देह की यात्रा यांत्रिक-कामवासना, सेक्स !

मन है मंत्र ! मन से मन की यात्रा मांत्रिक ! जिसको तुम साधारणत - प्रेम कहते हो ! दो मनों का मिल जाना ! दो मनों के बीच एक संगीत की थिरकन ! दो मनों के बीच एक नृत्य ! देह से ऊपर है ! देह है भौतिक, मंत्र है मानसिक, मनोवैज्ञानिक, सायकॉलॉजिकल !

और आत्मा है तंत्र ! दो आकाशों का मिलन ! जब दो आत्मायें मिलती हैं तो तंत्र ! न देह, न मन ! तंत्र ऊंचे से ऊंची घटना है ! तंत्र परम घटना है !
तो इस से ऐसा समझो...

देह -- यंत्र, शारीरिक, sexual.
मन -- मंत्र, मानसिक, Psychological.
आत्मा - तंत्र, आध्यात्मिक, Cosmic.

ये तीन तल हैं ! तुम्हारे जीवन के, यंत्र का तल, मंत्र का तल, तंत्र का तल ! इन तीनों को ठीक से पहचानो ! और तुम्हारे हर काम तीन में बंटे हैं ! 

कोई व्यक्ति भोजन करता यंत्रवत ! न उसे स्वाद का पता है, न वह भोजन करते वक्त भोजन कर रहा है ! डाल रहा है किसी तरह ! हिसाब लगा रहा है दुकान का ! ग्राहकों से बात कर रहा है, हिसाब-किताब, बही-खाते, सब चल रहा है भीतर, इधर भोजन डाले जा रहा है ! यह भोजन हुआ यांत्रिक ! तो भोजन भी यंत्रवत हो गया !

फिर कोई व्यक्ति बड़े मनोभाव से.. किसी ने बड़े प्रेम से भोजन बनाया है ! तुम्हारी मां ने बड़े प्रेम से भोजन बनाया है, कि तुम्हारी पत्नी ने दिन भर तुम्हारी प्रतीक्षा की है...! ऐसा अपमान तो न करो उसका !! इतने भाव से बनाये गये भोजन का ऐसा तिरस्कार तो न करो ! कि तुम खाते-बही कर रहे हो, कि तुम भीतर ही भीतर गणित बिठा रहे हो, कि तुम यहां हो ही नहीं !!

कोई मन से भोजन करता है तो भोजन भी मांत्रिक हो जाता है ! तब सब हटा दिया ! कहीं और नहीं, यहीं है ! बड़े मनोभावपूर्वक, बड़ी तल्लीनता से, बड़े ध्यानपूर्वक, बड़ी अभिरुचि से, स्वाद से, सम्मान से...!

और कोई ऐसे भी भोजन करता है जो आध्यात्मिक है ! उपनिषद कहते हैं, अन्न ब्रह्म ! अन्न ब्रह्म है !! इन ऋषियों ने भोजन भी आध्यात्मिक ढंग से किया होगा ! तो तांत्रिक ! क्योंकि भोजन भी वही है ! हम भोजन में उसी (परमात्मा) का तो स्वाद लेते हैं ! भोजन में वही तो हमारे भीतर जाकर जीवन का नवसंचार करता, उर्जा से भरता, पुनरुज्जीवित करता है ! जो मुर्दा कोष्ठ हैं उन्हें बाहर फेंक देता, नये जीवित कोष्ठ निर्मित कर देता ! तो परमात्मा भोजन से भीतर आता है ! तो ऐसे भोजन करना - तांत्रिक !

ऐसे तुम समझो प्रत्येक क्रिया के तीन तल हैं ! कोई आदमी रास्ते पर घूमने गया और हजार-हजार विचारों में उलझा है तो—यांत्रिक ! और कोई रास्ते पर घूम रहा है, विचारों में उलझा हुआ नहीं है, सुबह की हवा उसे छूती है, संवेदनशील है, सुबह का सूरज अपनी किरणें बरसाता है, पक्षी गुनगुनाते हैं, वह इन सबको सुन रहा है, होश्पूर्ण, मंत्रमुग्ध, मस्ती में जा रहा है ! तो ये मांत्रिक !! और फिर कोई ऐसे भी जा सकता है कि हर हवा का झोंका परमात्मा का झोंका मालूम पड़े ! और हर किरण उसकी ही किरण मालूम पड़े, और हर पक्षी की गुनगुनाहट उसके ही वेदों का उच्चार, उसके ही कुरान का अवतरण ! तो तांत्रिक !!

तुम अपने जीवन की प्रत्येक क्रिया को तीन में बांट सकते हो ! ध्यान रखना, यंत्र में ही मत मर जाना ! अधिक लोग यंत्र की तरह ही जीते हैं ! यंत्र की तरह ही मर जाते हैं ! बहुत थोड़े से धन्यभागी मांत्रिक हो पाते हैं - कवि, संगीतज्ञ, नर्तक ! बहुत थोड़े से लोग ! और वे भी बहुत थोड़े से क्षणों में, चौबीस घंटे नहीं ! चौबीस घंटे तो वे भी यांत्रिक होते हैं ! कभी-कभी किसी क्षण में, किसी पुलक में, जरा सा द्वार खुलता है ! जरा सा झरोखा खुलता है और उस तरफ का जगत झांकता है ! उस आयाम का प्रवेश होता है ! क्षण भर को काव्य की, संगीत की, झलक आती है ! फिर द्वार बंद हो जाते हैं !

फिर बहुत विरले लोग हैं ! कृष्ण, और बुद्ध, और अष्टावक्र, बहुत विरले लोग हैं, करोड़ों में कभी एक होता, जो तांत्रिक रूप से जीता है ! जिसका प्रतिपल दो आकाशों का मिलन है...प्रतिपल ! सोते, जागते, उठते, बैठते जो भी उसके जीवन में हो रहा है, उसमें अंतरिक आकाश और वाह: आकाश मिल रहे हैं, परमात्मा और प्रकृति मिल रही है, संसार और निर्वाण मिल रहा है ! परम मिलन घट रहा है !

चेतावनी -

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

विशेष -

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महायोगी  राजगुरु जी  《  अघोरी  रामजी  》

तंत्र मंत्र यंत्र ज्योतिष विज्ञान  अनुसंधान संस्थान

महाविद्या आश्रम (राजयोग पीठ )फॉउन्डेशन ट्रस्ट

(रजि.)

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