महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत "महाकाल बटुक भैरव" साधना.
भगवान भैरव को शब्दमय रूप में वर्णित करने का कारण सिर्फ इतना है कि अन्य देव कि अपेक्षा पूरे ब्रहांड में सर्वत्र विद्दमान हैं, जिस प्रकार शब्द को किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं बाँधा जा सकता उसी प्रकार भैरव भी किसी भी विघ्न या बाधा को सहन नहीं कर पाते और उसे विध्वंश कर साधक को पूर्ण अभय प्रदान करते हैं,
उनकी इसी शक्ति को साधक अनेक रूपों वर्णित कर साधनाओं के द्वारा प्राप्त कर अपने जीवन के दुःख और कष्टों से मुक्ति प्राप्त करते हैं,
वस्तुतः भैरव साधना भगवान शिव कि ही साधना है क्योंकि भैरव तो शिव का ही स्वरुप है उनका ही एक नर्तनशील स्वरुप. भैरव भी शिव की ही तरह अत्यन्त भोले हैं, एक तरफ अत्यधिक प्रचंड स्वरूप जो पल भर में प्रलय ला दे और एक तरफ इतने दयालु की आपने भक्त को सब कुछ दे डाले,
इसके बाद भी समाज में भैरव के नाम का इतना भय कि नाम सुनकर ही लोग काँप जाते हैं, उससे तंत्र मन्त्र या जादू टोने से जोड़ने लगते हैं,
भैरव की उन अनेक साधनाओं में एक साधना है महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत "महाकाल बटुक भैरव" साधना. इस साधना की विशेषता है की ये भगवान् महाकाल भैरव के तीक्ष्ण स्वरुप के बटुक रूप की साधना है जो तीव्रता के साथ साधक को सौम्यता का भी अनुभव कराती है और जीवन के सभी अभाव,प्रकट वा गुप्त शत्रुओं का समूल निवारण करती है.विपन्नता,गुप्त शत्रु,ऋण,मनोकामना पूर्ती और भगवान् भैरव की कृपा प्राप्ति,इस १ दिवसीय साधना प्रयोग से संभव है. बहुधा हम प्रयोग की तीव्रता को तब तक नहीं समझ पाते हैं जब तक की स्वयं उसे संपन्न ना कर लें,इस प्रयोग को आप करिए और परिणाम बताइयेगा.
ये प्रयोग रविवार की मध्य रात्रि को संपन्न करना होता है.स्नान आदि कृत्य से निवृत्त्य होकर पीले वस्त्र धारण कर दक्षिण मुख होकर बैठ जाएँ. गुरुदेव और भगवान् गणपति का पंचोपचार पूजन और मंत्र का सामर्थ्यानुसार जप कर लें तत्पश्चात सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें,जिस के ऊपर काजल और कुमकुम मिश्रित कर ऊपर चित्र में दिया यन्त्र बनाना है और यन्त्र के मध्य में काले तिलों की ढेरी बनाकर चौमुहा दीपक प्रज्वलित कर उसका पंचोपचार पूजन करना है,पूजन में नैवेद्य उड़द के बड़े और दही का अर्पित करना है .पुष्प गेंदे के या रक्त वर्णीय हो तो बेहतर है.अब अपनी मनोकामना पूर्ती का संकल्प लें.और उसके बाद विनियोग करें.
अस्य महाकाल वटुक भैरव मंत्रस्य कालाग्नि रूद्र ऋषिः अनुष्टुप छंद आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता ह्रीं बीजं भैरवी वल्लभ शक्तिः दण्डपाणि कीलक सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगः
इसके बाद न्यास क्रम को संपन्न करें.
ऋष्यादिन्यास –
कालाग्नि रूद्र ऋषये नमः शिरसि
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवताये नमः हृदये
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयो
सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे
करन्यास -
ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ह्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
अङ्गन्यास-
ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्
अब हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न मंत्र का ११ बार उच्चारण करते हुए ध्यान करें और उन अक्षतों को दीप के समक्ष अर्पित कर दें.
नील जीमूत संकाशो जटिलो रक्त लोचनः
दंष्ट्रा कराल वदन: सर्प यज्ञोपवीतवान |
दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपाल स्रग विभूषितः
हस्त न्यस्त किरीटीको भस्म भूषित विग्रह: ||
इसके बाद निम्न मूल मंत्र की रुद्राक्ष,मूंगा या काले हकीक माला से ११ माला जप करें
ॐ ह्रीं वटुकाय क्ष्रौं क्ष्रौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु वटुकाय ह्रीं वटुकाय स्वाहा ||
Om hreeng vatukaay kshroum kshroum aapduddhaarnaay kuru kuru vatukaay hreeng vatukaay swaha ||
प्रयोग समाप्त होने पर दूसरे दिन आप नैवेद्य,पीला कपडा और दीपक को किसी सुनसान जगह पर रख दें और उसके चारो और लोटे से पानी का गोल घेरा बनाकर और प्रणाम कर वापस लौट जाएँ तथा मुड़कर ना देखें.
ये प्रयोग अनुभूत है,आपको क्या अनुभव होंगे ये आप खुद बताइयेगा,मैंने उसे यहाँ नहीं लिखा है. तत्व विशेष के कारण हर व्यक्ति का नुभव दूसरे से प्रथक होता है. सदगुरुदेव आपको सफलता दें और आप इन प्रयोगों की महत्ता समझ कर गिडगिडाहट भरा जीवन छोड़कर अपना सर्वस्व पायें यही कामना मैं करत हूँ.
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
08601454449
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
भगवान भैरव को शब्दमय रूप में वर्णित करने का कारण सिर्फ इतना है कि अन्य देव कि अपेक्षा पूरे ब्रहांड में सर्वत्र विद्दमान हैं, जिस प्रकार शब्द को किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं बाँधा जा सकता उसी प्रकार भैरव भी किसी भी विघ्न या बाधा को सहन नहीं कर पाते और उसे विध्वंश कर साधक को पूर्ण अभय प्रदान करते हैं,
उनकी इसी शक्ति को साधक अनेक रूपों वर्णित कर साधनाओं के द्वारा प्राप्त कर अपने जीवन के दुःख और कष्टों से मुक्ति प्राप्त करते हैं,
वस्तुतः भैरव साधना भगवान शिव कि ही साधना है क्योंकि भैरव तो शिव का ही स्वरुप है उनका ही एक नर्तनशील स्वरुप. भैरव भी शिव की ही तरह अत्यन्त भोले हैं, एक तरफ अत्यधिक प्रचंड स्वरूप जो पल भर में प्रलय ला दे और एक तरफ इतने दयालु की आपने भक्त को सब कुछ दे डाले,
इसके बाद भी समाज में भैरव के नाम का इतना भय कि नाम सुनकर ही लोग काँप जाते हैं, उससे तंत्र मन्त्र या जादू टोने से जोड़ने लगते हैं,
भैरव की उन अनेक साधनाओं में एक साधना है महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत "महाकाल बटुक भैरव" साधना. इस साधना की विशेषता है की ये भगवान् महाकाल भैरव के तीक्ष्ण स्वरुप के बटुक रूप की साधना है जो तीव्रता के साथ साधक को सौम्यता का भी अनुभव कराती है और जीवन के सभी अभाव,प्रकट वा गुप्त शत्रुओं का समूल निवारण करती है.विपन्नता,गुप्त शत्रु,ऋण,मनोकामना पूर्ती और भगवान् भैरव की कृपा प्राप्ति,इस १ दिवसीय साधना प्रयोग से संभव है. बहुधा हम प्रयोग की तीव्रता को तब तक नहीं समझ पाते हैं जब तक की स्वयं उसे संपन्न ना कर लें,इस प्रयोग को आप करिए और परिणाम बताइयेगा.
ये प्रयोग रविवार की मध्य रात्रि को संपन्न करना होता है.स्नान आदि कृत्य से निवृत्त्य होकर पीले वस्त्र धारण कर दक्षिण मुख होकर बैठ जाएँ. गुरुदेव और भगवान् गणपति का पंचोपचार पूजन और मंत्र का सामर्थ्यानुसार जप कर लें तत्पश्चात सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें,जिस के ऊपर काजल और कुमकुम मिश्रित कर ऊपर चित्र में दिया यन्त्र बनाना है और यन्त्र के मध्य में काले तिलों की ढेरी बनाकर चौमुहा दीपक प्रज्वलित कर उसका पंचोपचार पूजन करना है,पूजन में नैवेद्य उड़द के बड़े और दही का अर्पित करना है .पुष्प गेंदे के या रक्त वर्णीय हो तो बेहतर है.अब अपनी मनोकामना पूर्ती का संकल्प लें.और उसके बाद विनियोग करें.
अस्य महाकाल वटुक भैरव मंत्रस्य कालाग्नि रूद्र ऋषिः अनुष्टुप छंद आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता ह्रीं बीजं भैरवी वल्लभ शक्तिः दण्डपाणि कीलक सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगः
इसके बाद न्यास क्रम को संपन्न करें.
ऋष्यादिन्यास –
कालाग्नि रूद्र ऋषये नमः शिरसि
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवताये नमः हृदये
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयो
सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे
करन्यास -
ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ह्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
अङ्गन्यास-
ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्
अब हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न मंत्र का ११ बार उच्चारण करते हुए ध्यान करें और उन अक्षतों को दीप के समक्ष अर्पित कर दें.
नील जीमूत संकाशो जटिलो रक्त लोचनः
दंष्ट्रा कराल वदन: सर्प यज्ञोपवीतवान |
दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपाल स्रग विभूषितः
हस्त न्यस्त किरीटीको भस्म भूषित विग्रह: ||
इसके बाद निम्न मूल मंत्र की रुद्राक्ष,मूंगा या काले हकीक माला से ११ माला जप करें
ॐ ह्रीं वटुकाय क्ष्रौं क्ष्रौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु वटुकाय ह्रीं वटुकाय स्वाहा ||
Om hreeng vatukaay kshroum kshroum aapduddhaarnaay kuru kuru vatukaay hreeng vatukaay swaha ||
प्रयोग समाप्त होने पर दूसरे दिन आप नैवेद्य,पीला कपडा और दीपक को किसी सुनसान जगह पर रख दें और उसके चारो और लोटे से पानी का गोल घेरा बनाकर और प्रणाम कर वापस लौट जाएँ तथा मुड़कर ना देखें.
ये प्रयोग अनुभूत है,आपको क्या अनुभव होंगे ये आप खुद बताइयेगा,मैंने उसे यहाँ नहीं लिखा है. तत्व विशेष के कारण हर व्यक्ति का नुभव दूसरे से प्रथक होता है. सदगुरुदेव आपको सफलता दें और आप इन प्रयोगों की महत्ता समझ कर गिडगिडाहट भरा जीवन छोड़कर अपना सर्वस्व पायें यही कामना मैं करत हूँ.
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
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08601454449
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