Tuesday, November 1, 2016

कर्ण - पिशाचनी साधना प्रयोग

     इस मंत्र को गुप्त त्रिकालदर्शी मंत्र भी कहा जाता हैं .इस मंत्र के साधक को किसी भी  व्यक्ति को देखते ही उसके जीवन की सूक्ष्म से सुक्ष्म घटना का ज्ञान हो जाता हैं . उसके विषय में विचार करते ही उसकी समस्त गतिविधियों एवं क्रिया कलापो का ज्ञान हो जाता हैं .

        कर्ण - पिशाचनी - साधना वैदिक विधि से भी सम्पन्न की  जताई हैं , और तांत्रिक विधि से भी अनुष्ठानित  की जाती हैं . यंहा वैदिक विधि द्वारा सम्पन्न की जाने वाली साधना का  प्रयोग दिया जा रहा हैं .

                                                                                   मंत्र

      """"     ॐ  लिंग सर्वनाम शक्ति भगवती  कर्ण - पिशाचनी    रुपी सच चण्ड  सच  मम  वचन  दे स्वाहा   """"""

विधि  :-  
            किसी भी नवरात्री में या शुभ नक्षत्र योग तिथि में   भूति - शुद्धि ,  स्थान  - शुद्धि  , गुरु स्मरण  , गणेश - पूजन , नवग्रह पूजन , से पूर्व एक चौकी पर लाल कपडा बिछाये . उस पर तांबे का एक लोटा या कलश - स्थापना करें . कलश पर  पानी वाला नारियल रखे . कलश के चारो ओर  पान , सुपारी , सिंदूर  , व २ लड्डू रखे . कलश - पूजन करके साष्टांग प्रणाम करें .

                          इसके बाद कंधे पर लाल कपडा रखकर उपरोक्त मंत्र का जाप करें . जाप पूर्ण होने पर पहले सामग्री से , फिर खीर से  , और अंत में त्रिमधु से होम करें . इसके उपरांत क्षमा - याचना  कर साक्षात देवी के रुपी कलश  को भूमि पर लेटकर दंडवत प्रणाम करें . अनुष्ठान  के दिनों में ब्रम्हचर्य का पालन एवं एकांत वास करें . सदाचरण करते हुए  सभी नियमो का  पालन करें . झूठ  - फरेब - अत्याचार  , बेईमानी  से दूर रहें .

   समय    :-
                     नवरात्र यदि  ग्रहण काल में आरम्भ करे तो स्पर्श  काल से , १५ मिनट पूर्व , आरम्भ  करके मोक्ष के १५ मिनट बाद तक करें . ग्रहण काल में नदी के किनारे अथवा शमशान में जाप करें . आवश्यक समस्त सामग्री अपने पास रखे .

सामग्री  :- एक यन्त्र  और एक माला  जो  प्राण - प्रतिष्ठा  युक्त  , मंत्र सिद्धि चैतन्य  हो ,   पान , सुपारी , लौंग , सिंदूर , नारियल , अगर - ज्योति  , लाल वस्त्र , जल का लोटा , लाल चन्दन की माला , जाप करने के लिए और दो लड्डू  .

          जाप  - संख्या  : - एक लाख

    हवन - सामग्री  : -
                              सफ़ेद चन्दन का चुरा , लाल चन्दन का चुरा , लोबान , गुग्गल , प्रत्येक  ३०० ग्राम , कपूर लगभग १०० ग्राम , बादाम गिरी ५० ग्राम ,काजू ५० ग्राम , अखरोट गिरी ५० ग्राम , गोल ५० ग्राम , छुहारे  ५० ग्राम , मिश्री का कुजा १ , . इन सभी को बारीक़ कर के मिला ले . इसमे घी भी मिलाए . फिर खीर बनाये , चावल काम दूध जड़ा रखें . खीर में ५ मेवे डाले , देशी घी , शहद  , व चीनी  भी डाले .

 विशेष   :-

             जाप करने के उपरांत १०००० मंत्रो से हवन करें . हवन के दशांश का तर्पण , उसके दशांश का यानि एक माला  से मार्जन  , और उसके बाद  १० कन्याओ एवं एक बटुक को भोजन करा कर अपने गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त करें .

नोट  : -

          उपरोक्त साधना के लिए गुरु - दीक्षा आवश्यक हैं . अन्यथा प्रयास असफल  रहता हैं .

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम

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