Saturday, November 26, 2016

संकट-निवारक काली-मन्त्र

“काली काली, महा-काली। इन्द्र की पुत्री, ब्रह्मा की साली। चाबे पान, बजावे थाली। जा बैठी, पीपल की डाली। भूत-प्रेत, मढ़ी मसान। जिन्न को जन्नाद बाँध ले जानी। तेरा वार न जाय खाली। चले मन्त्र, फुरो वाचा। मेरे गुरु का शब्द साचा। देख रे महा-बली, तेरे मन्त्र का तमाशा। दुहाई गुरु गोरखनाथ की।”

सामग्रीः

माँ काली का फोटो, एक लोटा जल, एक चाकू, नीबू, सिन्दूर, बकरे की कलेजी, कपूर की ६ टिकियाँ, लगा हुआ पान, लाल चन्दन की माला, लाल रंग के पूल, ६ मिट्टी की सराई, मद्य।

विधिः

 पहले स्थान-शुद्धि, भूत-शुद्धि कर गुरु-स्मरण करे। एक चौकी पर देवी की फोटो रखकर, धूप-दीप कर, पञ्चोपचार करे। एक लोटा जल अपने पास रखे। लोटे पर चाकू रखे। देवी को पान अर्पण कर, प्रार्थना करे- हे माँ! मैं अबोध बालक तेरी पूजा कर रहा हूँ। पूजा में जो त्रुटि हों, उन्हें क्षमा करें।’ यह प्रार्थना अन्त में और प्रयोग के समय भी करें।

अब छः अङ्गारी रखे। एक देवी के सामने व पाँच उसके आगे। ११ माला प्रातः ११ माला रात्रि ९ बजे के पश्चात् जप करे। जप के बाद सराही में अङ्गारी करे व अङ्गारी पर कलेजी रखकर कपूर की टिक्की रखे। पहले माँ काली को बलि दे। फिर पाँच बली गणों को दे। माँ के लिए जो घी का दिया जलाए, उससे ही कपूर को जलाए और मद्य की धार निर्भय होकर दे। बलि केवल मंगलवार को करे। दूसरे दिनों में केवल जप करे। होली-दिवाली-ग्रहण में या अमावस्या को मन्त्र को जागृत करता रहे। कुल ४० दिन का प्रयोग है।

भूत-प्रेत-पिशाच-जिन्न, नजर-टोना-टोटका झाड़ने के लिए धागा बनाकर दे। इस मन्त्र का प्रयोग करने वालों के शत्रु स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम

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