माँ श्रीबगलामुखी🌻 पूजन साधनl
मां बगलामुखी जी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं।
इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। देवी बगलामुखी दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश है.
माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश वाकसिद्धि वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है.
बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है। जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है. देवी बगलामुखी भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।
माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है.
देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.
बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। दे
वी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है। बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है।
साधना या अनुष्ठान का स्थान एकांत, निर्जन व शुद्ध हो। साधना घर अथवा पर्वतीय प्रदेश। बीहड़ जंगल या पत्थर के बने घर में अथवा पवित्र महानदियों के संगम के तट पर की जा सकती है। किंतु स्थान खुला नहीं होना चाहिए।
यदि किसी कारणवश खुले स्थान पर जप आदि करना पड़े तो ऊपर पीले कपड़े का चंदोवा तान देना चाहिए। अनुष्ठान पूजा जप स्तुति पाठ आदि टापू पर बैठकर नहीं करने चहिए। स्थान गंदा अशुभ या गलियारे वाला नहीं हो।
बगला साधना के लिए स्थान का चयन करते समय सदैव सावधानी रखनी चाहिए। साधना रात में करनी चाहिए। साधक को सिर खुला रखना चाहिए। परंतु बालों की चोटी खुली नहीं होनी चाहिए।
सर्वांग शरीर शुद्ध होना चाहिए। जप पैर पसारकर या उकडु बैठकर कभी न करें। हाथ खुले रखें। जप करते समय किसी से बातचीत नहीं करनी चाहिए। बगला साधना में कुर्ता कमीज पायजामा टोपी पगड़ी आदि पहनना वर्जित है।
मां बगलामुखी को ‘ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में अंकित है कि सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। इसके दूसरे उपासक भगवान विष्णु व तीसरे परशुराम हुए।
परशुराम ने ही यह विद्या आचार्य द्रोण को बताई थी। रावण के पुत्र मेघनाद ने अशोक वाटिका में हनुमान के वेग को श्री बगलामुखी की स्तंभन शक्ति के बल पर ही अवरुद्ध किया था।
इसी शक्ति के बल पर रावण की सभा में अंगद ने अपना पैर जमा दिया था जिसे उठाने में कोई भी सफल नहीं हुआ था। महारथी वीर अर्जुन ने भी महाभारत के युद्ध में विजय के लिए मां पीतांबरा बगलामुखी की साधना की थी।
मां बगलामुखी पूजन
साधक को माता बगलामुखी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें।
इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल हरिद्रा पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-
संकल्प
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु अद्य (अपने गोत्र का नाम गोत्रोत्पन्नोहं नाम मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।
माँ बगलामुखी मंत्र -विनियोग
श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम् हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें।
नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें-
गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।
इसके बाद गंध चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें-
नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्।
भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।
आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें-
गंध- ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल चड़ाएं।
पुष्प- ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं। धूप- ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं।
दीप- ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं।
नैवेद्य- ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। अब इस प्रकार प्रार्थना करें-
जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।
अब क्षमा प्रार्थना करें
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अंत में माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें। बगलामुखी साधना की सावधानियां :-
1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यधिक आवश्यक है।
2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है।
3. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए।
4. जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें।
5. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं।
6. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए।
जप के पश्चात बगलामुखी कवच अवश्य करना चाहिए। साधना के लिए जपसंख्या कार्य के अनुसार बगलामुखी देवी के जप की संख्या निर्धारित की जाती है।
यदि कोई कार्य बड़ा या दु:साध्य हो तो एक लाख जप अवश्य करना चाहिए। इसके विपरीत छोटे या सुसाध्य कार्य के लिए दस हज़ार जप करना ठीक रहता है। बगला साधना गुरु के सानिध्य में करनी ज़रूरी है।
गुरु के परामर्शानुसार ही जप संख्या निर्धारित करनी चाहिए। बगलामुखी देवी के हवन के मुख्य प्रयोग जप के के बाद उसका दशांश हवन करने का विधान है। अलग अलग पदार्थों से हवन करने से भिन्न फलों की प्राप्ति होती है।
वशीकरण-
श्किरा घृत त्रिमधु तथा नमक का हवन करने से वशीकरण होता है।
स्तम्भन-
हड़ताल नमक तथा हल्दी गांठ से शत्रु स्तम्भन होता है। शत्रुनाश- पीली सरसों तथा हवन सामग्री मिलाकर छन करने से शत्रु नाश होता है। उच्चाटन गिद्ध एवं कौवे के पंख एवं सरसों तेल का हवन करने से शत्रु उच्चाटन होता है।
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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मां बगलामुखी जी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं।
इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। देवी बगलामुखी दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश है.
माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश वाकसिद्धि वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है.
बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है। जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है. देवी बगलामुखी भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।
माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है.
देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.
बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। दे
वी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है। बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है।
साधना या अनुष्ठान का स्थान एकांत, निर्जन व शुद्ध हो। साधना घर अथवा पर्वतीय प्रदेश। बीहड़ जंगल या पत्थर के बने घर में अथवा पवित्र महानदियों के संगम के तट पर की जा सकती है। किंतु स्थान खुला नहीं होना चाहिए।
यदि किसी कारणवश खुले स्थान पर जप आदि करना पड़े तो ऊपर पीले कपड़े का चंदोवा तान देना चाहिए। अनुष्ठान पूजा जप स्तुति पाठ आदि टापू पर बैठकर नहीं करने चहिए। स्थान गंदा अशुभ या गलियारे वाला नहीं हो।
बगला साधना के लिए स्थान का चयन करते समय सदैव सावधानी रखनी चाहिए। साधना रात में करनी चाहिए। साधक को सिर खुला रखना चाहिए। परंतु बालों की चोटी खुली नहीं होनी चाहिए।
सर्वांग शरीर शुद्ध होना चाहिए। जप पैर पसारकर या उकडु बैठकर कभी न करें। हाथ खुले रखें। जप करते समय किसी से बातचीत नहीं करनी चाहिए। बगला साधना में कुर्ता कमीज पायजामा टोपी पगड़ी आदि पहनना वर्जित है।
मां बगलामुखी को ‘ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में अंकित है कि सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। इसके दूसरे उपासक भगवान विष्णु व तीसरे परशुराम हुए।
परशुराम ने ही यह विद्या आचार्य द्रोण को बताई थी। रावण के पुत्र मेघनाद ने अशोक वाटिका में हनुमान के वेग को श्री बगलामुखी की स्तंभन शक्ति के बल पर ही अवरुद्ध किया था।
इसी शक्ति के बल पर रावण की सभा में अंगद ने अपना पैर जमा दिया था जिसे उठाने में कोई भी सफल नहीं हुआ था। महारथी वीर अर्जुन ने भी महाभारत के युद्ध में विजय के लिए मां पीतांबरा बगलामुखी की साधना की थी।
मां बगलामुखी पूजन
साधक को माता बगलामुखी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें।
इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल हरिद्रा पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-
संकल्प
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु अद्य (अपने गोत्र का नाम गोत्रोत्पन्नोहं नाम मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।
माँ बगलामुखी मंत्र -विनियोग
श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम् हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें।
नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें-
गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।
इसके बाद गंध चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें-
नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्।
भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।
आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें-
गंध- ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल चड़ाएं।
पुष्प- ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं। धूप- ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं।
दीप- ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं।
नैवेद्य- ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। अब इस प्रकार प्रार्थना करें-
जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।
अब क्षमा प्रार्थना करें
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अंत में माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें। बगलामुखी साधना की सावधानियां :-
1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यधिक आवश्यक है।
2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है।
3. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए।
4. जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें।
5. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं।
6. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए।
जप के पश्चात बगलामुखी कवच अवश्य करना चाहिए। साधना के लिए जपसंख्या कार्य के अनुसार बगलामुखी देवी के जप की संख्या निर्धारित की जाती है।
यदि कोई कार्य बड़ा या दु:साध्य हो तो एक लाख जप अवश्य करना चाहिए। इसके विपरीत छोटे या सुसाध्य कार्य के लिए दस हज़ार जप करना ठीक रहता है। बगला साधना गुरु के सानिध्य में करनी ज़रूरी है।
गुरु के परामर्शानुसार ही जप संख्या निर्धारित करनी चाहिए। बगलामुखी देवी के हवन के मुख्य प्रयोग जप के के बाद उसका दशांश हवन करने का विधान है। अलग अलग पदार्थों से हवन करने से भिन्न फलों की प्राप्ति होती है।
वशीकरण-
श्किरा घृत त्रिमधु तथा नमक का हवन करने से वशीकरण होता है।
स्तम्भन-
हड़ताल नमक तथा हल्दी गांठ से शत्रु स्तम्भन होता है। शत्रुनाश- पीली सरसों तथा हवन सामग्री मिलाकर छन करने से शत्रु नाश होता है। उच्चाटन गिद्ध एवं कौवे के पंख एवं सरसों तेल का हवन करने से शत्रु उच्चाटन होता है।
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
.
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
08601454449
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
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