Thursday, August 17, 2017

में अपने आप में ऐसा कोई दंभ नहीं भरता हूँ

में अपने आप में ऐसा कोई दंभ नहीं भरता हूँ







कि में कोई अद्दितीय युग पुरुष हूँ  या कोई महान हूँ . ऐसा घमंड नहीं हैं , गर्व तो हैं उन साधना सिद्धियों को प्राप्त किया हैं जो अपने आप में अद्दितीय हैं .

 यह गर्व हैं और ऐसे सैकड़ो सन्यासी  , योगी हैं  , में अकेला  ही नहीं हूँ ,  . मगर वे उन गुफाओ में बैठे हैं जंहा वे अकेले ही हैं . वो क्या काम की ???   में उनसे पूछ रहा हूँ कि आप गुफाओ में बैठकर के सधानाओ से आप हिमालयवत् बन गए हैं , सूर्य बन गए .

वह हमारे क्या काम का  ??  इन लोगो से फिर लाभ कैसे मिल पायेगा , उन गुफाओ में बैठने से . उनके बीच बैठना पड़ेगा . आप सूर्य हैं यह कोई बड़ी बात नहीं  हैं . आप विद्वान हैं यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं हैं .

आप चैतन्य हैं यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं हैं . आप के अंदर ज्ञान का बहुत बड़ा सूर्य हैं यह भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं हैं . .

बात तो यह हैं कि आप ने समाज को क्या दिया , मानवता के लिए क्या किया , उस ज्ञान का प्रयोग कहा किया कैसे किया किस रूप में किया किया कि नहीं किया नहीं किया तो क्यिू नहीं किया ,??  

             क्या आप को ये सिद्धि ये ज्ञान इस लिए मिला था कि आप उसका प्रयोग स्वयं के लिए करे. हिमालय कि गुफाओ में जाकर अपने लिए जीये , अगर ऐसा ही होता तो अमज़रे महर्षि ऋषि मुनि समाज का निर्माण किस लिए करते . वे तो आप से बड़े सिद्धि  पुरुष थे .. आप से असंख्य गुना महान थे , उन्हें क्या जरुरत थी समाज के लिए जीने कि . तपने कि ,

             आप सब तो इतने बड़े ज्ञानी भी तो नहीं हैं कि आप एक मंत्र का निर्माण कर सके , क्यिुकि आप मंत्र द्रस्टा नहीं हो सकते आप के अंदर इतना टप नहीं हैं आप के अंदर इतनी ऊर्जा नहीं हैं और न ही तपो बल ही हैं ,. फिर कैसा अहम , घमंड  , इर्षा , ,

                मैंने तो निकल गया हूँ , चलते जा रहा हूँ जंहा तक चल सकता हूँ वंहा तक चलता जाऊंगा जो हैं मेरे पास देता जाऊंगा मेरा क्या हहैं . कुछ भी नहीं , जो लिया यही से लिया जो दूंगा यही पर दूंगा ,

                       
                                                      आप का

                                                                              राजगुरु जी

                                                                         महाविद्या  आश्रम

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