Thursday, August 31, 2017

महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत "महाकाल बटुक भैरव" साधना

महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत  "महाकाल बटुक भैरव" साधना








भगवान भैरव को शब्दमय रूप में वर्णित करने का कारण सिर्फ इतना है कि अन्य देव कि अपेक्षा पूरे ब्रहांड में सर्वत्र विद्दमान हैं, जिस प्रकार शब्द को किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं बाँधा जा सकता उसी प्रकार भैरव भी किसी भी विघ्न या बाधा को सहन नहीं कर पाते और उसे विध्वंश कर साधक को पूर्ण अभय प्रदान करते हैं,

उनकी इसी शक्ति को साधक अनेक रूपों वर्णित कर साधनाओं के द्वारा प्राप्त कर अपने जीवन के दुःख और कष्टों से मुक्ति प्राप्त करते हैं,

वस्तुतः भैरव साधना भगवान शिव कि ही साधना है क्योंकि भैरव तो शिव का ही स्वरुप है उनका ही एक नर्तनशील स्वरुप. भैरव भी शिव की ही तरह अत्यन्त भोले हैं, एक तरफ अत्यधिक प्रचंड स्वरूप जो पल भर में प्रलय ला दे और एक तरफ इतने दयालु की आपने भक्त को सब कुछ दे डाले,

इसके बाद भी समाज में भैरव के नाम का इतना भय कि नाम सुनकर ही लोग काँप जाते हैं, उससे तंत्र मन्त्र या जादू टोने से जोड़ने लगते हैं,

भैरव की उन अनेक साधनाओं में एक साधना है महर्षि कालाग्नि रूद्र प्रणीत "महाकाल बटुक भैरव" साधना. इस साधना की विशेषता है की ये भगवान् महाकाल भैरव के तीक्ष्ण स्वरुप के बटुक रूप की साधना है जो तीव्रता के साथ साधक को सौम्यता का भी अनुभव कराती है और जीवन के सभी अभाव,प्रकट वा गुप्त शत्रुओं का समूल निवारण करती है.

विपन्नता,गुप्त शत्रु,ऋण,मनोकामना पूर्ती और भगवान् भैरव की कृपा प्राप्ति,इस 11 दिवसीय साधना प्रयोग से संभव है. बहुधा हम प्रयोग की तीव्रता को तब तक नहीं समझ पाते हैं जब तक की स्वयं उसे संपन्न ना कर लें,इस प्रयोग को आप करिए और परिणाम बताइयेगा.

   ये प्रयोग रविवार की मध्य रात्रि को संपन्न करना होता है.स्नान आदि कृत्य से निवृत्त्य होकर पीले वस्त्र धारण कर दक्षिण मुख होकर बैठ जाएँ.

सदगुरुदेव और भगवान् गणपति का पंचोपचार पूजन और मंत्र का सामर्थ्यानुसार जप कर लें तत्पश्चात सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें,जिस के ऊपर काजल और कुमकुम मिश्रित कर ऊपर चित्र में दिया यन्त्र बनाना है और यन्त्र के मध्य में काले तिलों की ढेरी बनाकर चौमुहा दीपक प्रज्वलित कर उसका पंचोपचार पूजन करना है,पूजन में नैवेद्य उड़द के बड़े और दही का अर्पित करना है .

पुष्प गेंदे के या रक्त वर्णीय हो तो बेहतर है.अब अपनी मनोकामना पूर्ती का संकल्प लें.और उसके बाद विनियोग करें.

अस्य महाकाल वटुक भैरव मंत्रस्य कालाग्नि रूद्र ऋषिः अनुष्टुप छंद आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवता ह्रीं बीजं भैरवी वल्लभ शक्तिः दण्डपाणि कीलक सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगः
इसके बाद न्यास क्रम को संपन्न करें.

ऋष्यादिन्यास –

कालाग्नि रूद्र ऋषये नमः शिरसि
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे
आपदुद्धारक देव बटुकेश्वर देवताये नमः हृदये
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयो
सर्वाभीष्ट प्राप्तयर्थे समस्तापन्निवाराणार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे

करन्यास -

 ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
 ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
 ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
 ह्रैं  अनामिकाभ्यां नमः
 ह्रौं  कनिष्टकाभ्यां नमः
 ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

अङ्गन्यास-

ह्रां हृदयाय नमः
ह्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रूं शिखायै वषट्
ह्रैं कवचाय हूम
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रः अस्त्राय फट्

अब हाथ में कुमकुम मिश्रित अक्षत लेकर निम्न मंत्र का ११ बार उच्चारण करते हुए ध्यान करें और उन अक्षतों को दीप के समक्ष अर्पित कर दें.

नील जीमूत संकाशो जटिलो रक्त लोचनः
दंष्ट्रा कराल वदन: सर्प यज्ञोपवीतवान |
दंष्ट्रायुधालंकृतश्च कपाल स्रग विभूषितः
हस्त न्यस्त किरीटीको भस्म भूषित विग्रह: ||

इसके बाद निम्न मूल मंत्र की रुद्राक्ष,मूंगा या काले हकीक माला से ११ माला जप करें

ॐ ह्रीं वटुकाय क्ष्रौं क्ष्रौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु वटुकाय ह्रीं वटुकाय स्वाहा ||

Om hreeng vatukaay kshroum kshroum aapduddhaarnaay kuru kuru vatukaay hreeng vatukaay swaha ||

प्रयोग समाप्त होने पर दूसरे  दिन आप नैवेद्य,पीला कपडा और दीपक को किसी सुनसान जगह पर रख दें और उसके चारो और लोटे से पानी का गोल घेरा बनाकर और प्रणाम कर वापस लौट जाएँ तथा मुड़कर ना देखें.

 ये प्रयोग अनुभूत है,आपको क्या अनुभव होंगे ये आप खुद बताइयेगा,मैंने उसे यहाँ नहीं लिखा है. तत्व विशेष के कारण हर व्यक्ति का नुभव दूसरे  से प्रथक होता है.

गुरु आपको सफलता दें और आप इन प्रयोगों की महत्ता समझ कर गिडगिडाहट भरा जीवन छोड़कर अपना सर्वस्व पायें यही कामना मैं करत हूँ.

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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Wednesday, August 30, 2017

धन प्रकोष्ठ (विघ्नेश ) बीसा यंत्र

धन प्रकोष्ठ (विघ्नेश ) बीसा यंत्र




प्रभाव :-

1 - इस यंत्र को दाहिनी भुजा पर धरण करने के बाद जातक जिस कार्य के लिए जाता है । वो निर्विघ्न रूप से सफल होता है ।

2 - जिस मकान की नीव में ये यंत्र विधिवत रूप से दवाया जाता है उस मकान में अकाल मृत्यु नहीं होती । धन की कमी नहीं होती और सदा मकान में रहने वाले परिवार की पूर्ण रूप से रक्षा होती है ।

3 - इस यंत्र को खेत में गाड़ दिया जाये उस खेत में फसल का कभी नुकसान नहीं होता । बगीचे मीन गाड़ देने से बग़ीचा फल फूल से भरा रहता है ।

राज गुरु जी

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Tuesday, August 29, 2017

चामुंडा स्वप्न सिद्धि मंत्र साधना :-

चामुंडा स्वप्न सिद्धि मंत्र साधना :-






ॐ ह्रीम आगच्छा गच्छ चामुंडे श्रीं स्वाहा ।।

विधि :-

सबसे पहले मिट्टी ओर गोबर से जमीन को लीप ले ओर वो जगह पर कोई बिछोना बिछाले । फिर पंचोपचार से मटा का पूजन करके देवी मटा को नेवेध्य अर्पण करे ।

 उसके बाद रुद्राक्ष की माला से उपरोक्त मंत्र का जाप 10,000 बार करे ओर देवी का द्यान करे इस तरह मंत्र सिद्धि कारले फिर उसके बाद जब कभी भी कोई प्रश्न मन मे हो तो मंत्र का 1 माला यानि 108 बार मंत्र का जाप करके सो जाए तो देवी अर्धरात्रि को स्वप्न मे आकार प्रश्न का उत्तर प्रदान करती हे …

राज गुरु जी

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Saturday, August 26, 2017

यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है

यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है






तो परिश्रम तो करना ही होगा। किसी को दो दिन में तारा चाहिए,तो किसी को ९ दिन में छिन्नमस्ता,किसी को ५ दिन में मातंगी सिद्ध करना है तो,किसी को ११ दिन में भुवनेश्वरी। कितनी बचकानी बात है.

हर साधना कि एक विशेष प्रक्रिया होती है जिससे होकर प्रत्येक साधक को गुजरना ही पड़ता है. और अगर बात महाविद्या कि हो तो ये कार्य और भी कठिन हो जाता है.

 इसमें तो और भी अधिक परिश्रम करना होता है. कई कई मंत्रो को क्रमशः सिद्ध करना होता है,कई कई अनुष्ठान करने होते है.जब हम आपको ये प्रक्रिया बताते है तो आपको लगता है कि हम टाल रहे है.

इस बात पर में कोई सफाई नहीं दूंगा।यदि महाविद्या सिद्धि कि और बढ़ना है तो परिश्रम करना सीखे।अन्यथा जो दो या तीन दिन में सिद्ध करवा दे आलसी लोग उनके पास जा सकते है.

कम से कम मेरा कार्य भार कम होगा। और मुझे भी पता चल जायेगा कि तारा २ दिन में और काली ११ दिन में कैसे सिद्ध होती है.

मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को पीड़ित करना नहीं है.अगर किसी को दुःख हुआ हो तो हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी हु.परन्तु कभी कभी व्यर्थ का रोग मिटाने के लिए कड़वे वचनो कि औषधि आवश्यक हो जाती है.

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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नजर आदि दूर करने हेतु -

नजर आदि दूर करने हेतु -






यंहा मैं ऐसे मंत्र का प्रयोग बताने जा रहा हूॅ, जो किसी भी व्यक्ति पर
किये गये पर-प्रयोग, बाधा, बुरी नजर आदि को हटाने में पूर्ण सक्षम है। मेरा
अनुभव है कि यदि किसी व्यक्ति की बुरी नजर किसी भी व्यक्ति के रोजगार
पर, उसकी सम्पत्ति पर, अथवा उसके सुख पर लग जाए तो अच्छा-खासा
परिवार तबाह हो जाता है। प्रभावित व्यक्ति कर्ज, बीमारी, मुकदमों आदि में घिर
जाता है, उसका सुख सम्पूर्णतः दुख में बदल जाता है।

यदि आप ऐसे ही प्रयोगों, बुरी नजर आदि से स्वयं को प्रभावित महसूस
करते हैं तो इस निम्नांकित मंत्र का प्रयोग कीजिए और परिणाम मुझे बताईए।
मेरा पूर्ण विष्वास है कि आपको निष्चित रूप से इन समस्त व्याधियों से मुक्ति
प्राप्त हो जाएगी। लेकिन इस मंत्र को गुरू से प्राप्त करना आवष्यक है, अन्यथा
परिणाम संदेहात्मक ही रहेगा।

मंत्रः-

ओम ह्रीं ब्रीम बिकट , वीर हनुमंत वीर मन्त्र  को मारो ! उलट दो  पाताल , काल जाल संघारो ! जो धन जहा से आये वाही को जाए !टोनहिन का टोना ओझा का दंड ,द्रोही शत्रु को मारो ! ना मारो तो माता अंजनी के बत्तीस धार का दूध हराम करो ! सीता के सर चोट पड़े हुम फट स्वाहा !

साथ में हनुमान जी के १२ नामो का भी जाप करे ! मंदिर में भोग में रोठ लगाये ! घी से यथा सभव हवन करे

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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Wednesday, August 23, 2017

श्री नवनाथ प्रत्यक्षिकरण साधना

श्री नवनाथ प्रत्यक्षिकरण साधना









श्रीनवनाथ भगवान ने ज्ञान का प्रचार किया था भगवान दत्तात्रेय के आशीर्वाद से वे साधना क्षेत्र में नए मंत्रो की रचना करने में समर्थ थे और इसी तरह उन्होंने करोडो साबर मंत्रो की रचना की जो की संस्कृत भाषा में न होते हुए सामान्यजन भाषा में थे.

जिससे सामान्य व्यक्ति भी सफलता को प्राप्त करने लगा जो की उन्हें पहले उच्चारण दोष की वजह से नहीं मिल पाई
थी.

 इस तरह ९ नाथ ने अपना कार्य पूर्ण किया, चूँकि वे मनुष्य योनिज नहीं थे, वे आज भी उनके मूल शरीर में विद्यमान है और आज भी कई साधको को सशरीर आशीर्वाद देते है. ८४ सिद्धो के लिए भी
यही मान्य है.

 ८४ सिद्ध आज, जगत के आध्यात्म में भारतीय सिद्ध प्रणाली की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. साधना जगत में इसे आश्चर्य ही कहा जाएगा अगर कोई साधक ९ नाथ व् ८४ सिद्धो के बारे में नहीं
जनता हो. ९ नाथ वह प्रारंभिक व्यक्तित्व है

जिन्होंने साधना की उच्चतम स्थिति को प्राप्त किया था और अघोर वाम कौल साबर और योग के विशेष साधनात्मक जिसमे कई सिद्ध नाथ का भी समावेश होता हे वह वो मंडली हे जो की सबसे
उच्चतम साधनात्मक स्थिति को प्राप्त साधको की मंडली मानी जाती है जो की तांत्रिक व् योग्य तान्त्रिक साधनाओ में निष्णांत है, उनमेसे कुछ रसायन में भी सिद्धहस्त है.

 इन महान सिद्धयोगियो
का आशीर्वाद लेना व् उनसे साधना के क्षेत्र में मार्गदर्शन लेना किसीभी साधक का सर्वोच्च भाग्योदय व् एक मधुर स्वप्न सामान है.

इस विषय में एसी कई साधना हे जो साधक की इस इच्छा को पूर्ण करे. लेकिन यह करिये बहोत ही कठोर और समय लेने वाली होती हे फिरभी साधको की मन की छह होती हे एसी साधनाए करना. फिर
भी इन कठोर साधनाओ के मध्य भी एक ऐसी साधना हे जो सहज हे अगर इसे दूसरी साधनाओ के साथ देखा जाए तो और यह साधना साधक उन महान व्यक्तित्व के आशीर्वाद प्राप्त करने की
अपनी महेच्छा को पूर्ण करा सकती है.

साधना के लिए साधक के पास एक अलग कमरा हो जिसमे दूसरा कोई भी व्यक्ति प्रवेश न करे इस साधना में कठोर नियमोंका पालन करना पड़ता है.
ब्रम्हचर्य पालन अनिवार्य है

भोजन में एक समाज फलाहार लिया जा सकता है, दूध कभीभी ले सकते है. साधक को और कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए

साधना काल में साधक कोई भाई व्यसन जैसे की मदिरा या तम्बाकू का युअग कर दे

साधना काल में क्षोरकर्म न करवाए साधना कक्ष का फर्श गोबर से लिपा हुआ हो आसान और वस्त्र पीले रंग के हो. दिशा उत्तर हो. अपने सामने पूजास्थान पर एक सुपारी रखे, यह सिद्ध का प्रतिक है. इसका नियमित पूजन करे. भोग में मिठाई का उपयोग कर सकते है. ताजे फूल ही उपयोग में लाए.

अखंड दीप प्रज्वलित करना है जो की पुरे साधना काल दरमियाँ जलता रहे.

रात्रि में ९ बजे के बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र का जाप करे !

मंत्र:-

ll ओम प्रकट सिद्ध अमुकं प्रत्यक्ष,मेरी आण,मेरे गुरू की आण,महादेव की आण ll

अमुकं की जगह इच्छित सिद्ध के नाम का उच्चारण करे,कुल १,२५,००० मंत्र जाप होने चाहिए जिसे २१ या कम दिनों में पूरा करना है.मंत्रजाप की संख्या रोज
एक ही रहे.

साधना के अंतिम दिन सिद्ध सशरीर प्रत्यक्ष होते है और इच्छापूर्ति का आशीर्वाद देते है साथ मे ही मनचाही सिद्धी प्रदान करते है,सिर्फ यहा पर जो मंत्र मैने दिया है वही प्रामानिक मंत्र है.

मै हमेशा पूर्ण मंत्र देता हू,अन्य लोगो के तराहा आधा-अधूरा मंत्र देना मेरे लिये महापाप है.विश्वास के साथ मंत्र जाप करे तो अवश्य ही आपको दर्शन होगे!

राज गुरु जी

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Monday, August 21, 2017

निच्छित श्री अप्सरा सिद्धी

निच्छित श्री अप्सरा सिद्धी






सुंदर और बेहद आकर्षक.... सही मायनों में शायद यही है अप्सराओं की परिभाषा। हिन्दू पौराणिक ग्रंथों एवं कुछ बौद्ध शास्त्रों द्वारा भी अप्सराओं का ज़िक्र किया गया है। जिसके अनुसार ये काल्पनिक, परंतु नितांत रूपवती स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं। यूनानी ग्रंथों मे अप्सराओं को सामान्यत: 'निफ' नाम दिया गया है।

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इन अप्सराओं का कार्य स्वर्ग लोक में रहनी वाली आत्माओं एवं देवों का मनोरंजन करना था। वे उनके लिए नृत्य करती थीं, अपनी खूबसूरती से उन्हें प्रसन्न रखती थीं और जरूरत पड़ने पर वासना की पूर्ति भी करती थीं।

 लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता, क्योंकि इनका उल्लेख अमूमन ऐतिहासिक दस्तावेजों में ही प्राप्त हुआ है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अलावा अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी अप्सराओं का उल्लेख पाया गया है। लेकिन इनके नाम काफी भिन्न हैं। चीनी धार्मिक दस्तावेजों में भी अप्सराओं का ज़िक्र किया गया है, लेकिन शुरुआत हम हिन्दू इतिहास से करेंगे।

हिन्दू इतिहास की बात करें ऋग्वेद के साथ-साथ महाभारत ग्रंथ में भी कई अप्सराओं का उल्लेख पाया गया है।

अप्सराएँ निच्छित सिद्ध हो सकती है परंतु इसके लिये साधक को सय्यम रखना आवश्यक है। जो साधक सय्यम खो देते है,उनको तो कई जन्मो तक अप्सराएँ सिद्ध नही हो सकती है। यहा आजकल कुछ लोग अप्सरा को प्रत्यक्ष करने का दावा करते,जिसे हम एक अफवा मानतें हैं।

 क्योंकि आजकल के दुनिया में चाहे कोई कितना भी प्रेम करता हो या सुंदर लड़का हो,उसको किसी गलि की लड़की को अपनी ओर आकर्षित करनें  मे 3-4 महिने लग जाते है और यहा लोग बात करते है एक देवकन्या जो अत्यंत सुंदर है उस अप्सरा को प्रत्यक्ष करने की ।

 सोचो ऎसे में सुंदर अप्सरा को प्रत्यक्ष करने मे कितना समय लगेगा ? तंत्र शास्त्र मे 108 अप्सराओं का वर्णन मिलता है,जिनका आज के समय मे किसीको नाम तक पता नही चला और एक प्राचीन किताब मे लिखा हुआ है "जब तक 108 अप्सराओं की रजामंदी ना मिल जाए तब कोई भी एक विशेष अप्सरा किसी भी साधक के सामने प्रत्यक्ष नही हो सकती है" और इस बात का प्रमाण भी हमे देखने को मिलता है।

आप सभी जानते है,श्री हनुमानजी जी के माताजी  का नाम "अंजनी" था,माता अंजना देवी स्वयं एक अप्सरा थी ।

देवताओ के कार्यपुर्ति हेतु उन्होंने धरती पर जन्म लिया था। उनका उद्देश्य सिर्फ हनुमानजी को जन्म देना ही नही बल्कि उनका पालन-पोषण करने के साथ साथ उन्हे अच्छे सन्स्कार से पुर्ण करना था। उनको धरती पर जन्म लेने हेतु समस्त अप्सराओं की रजामंदी लेनी पडी थी और एक समय ऎसा भी आया था के "उन्हे बाल हनुमानजी को छोड़कर अप्सरा लोक वापिस जाना पड़ा था क्योंकि समय काल के हिसाब से उनका धरती पर कार्यकाल पुर्ण हो गया था" ।

उस समय अचानक अपने माता से दुर हो जाने के वजह बाल हनुमानजी का व्यथा बहुत खराब हो चुका था और ममता स्वरुप समस्त अप्सराओं ने देवराज इंद्र से पुनः निवेदन करके माता अंजना देवि को धरती पर भेजने का प्रस्ताव रखा था । देवराज इन्द्र ने उस समय यह गोपनियता स्पष्ट की थी,जिसमें उन्होंने कहा था "अगर आप समस्त अप्सराओं की रजामंदी (अनुमति) है,तो अंजना

​देवी को पुनः धरती लोक पर भेज सकते है"। तो इस तरह से ​देवी अंजना माता को पुनः धरती लोक पर आकर हनुमानजी को एक महाबली बनाने मे समस्त अप्सराओं की मदत प्राप्त हुई।

यह सिर्फ एक कहानी नही है अपितु अप्सरा साधक के

​लिए ​गोपनिय रहस्य है। जब अप्सरा साधक 21 दिनो तक "सर्व अप्सरा सिद्धी यंत्र" के सामने बैठकर "सर्व अप्सरा सिद्धी शाबर मंत्र" का जाप करता है तो उसके ​लिए स्वयं समस्त अप्सराएँ किसी भी एक विशेष अप्सरा को सिद्ध करने हेतु सहायता करती है।

जब कोई भी अप्सरा साधक यह सर्व अप्सरा सिद्धी शाबर मंत्र का 21 दिनो तक जाप कर लेता है तो कोई भी एक अप्सरा उसका इच्छित कार्य पुर्ण कर देती है।

सर्व अप्सरा सिद्धी यंत्र को भोजपत्र पर विशेष मुहुर्त मे बनाया जाता है,जिसपर सुर्य के रोशनी के साथ शुक्र ग्रह के होरा का ध्यान रखकर निर्मित किया जाता है।

भोजपत्र पर यंत्र निर्मित हो जाने के उपरांत कुछ विशेष ​जड़ी ​​बुटियो के माध्यम से सर्व अप्सरा सिद्धी यंत्र का निर्माण होता है। जैसे चंद्रनाग, मनमोहीनी, मायाजाल, लज्जावती, केसर, जटाशंकर......इत्यादि

11 प्रकार की ​जड़ी ​बुटिया इस ताबीज स्वरुप यंत्र मे स्थापित करना आवश्यक है।

 साथ मे सर्व अप्सरा सिद्धी माला जो डबल झिरो साईज का हो,जिससे जाप करते समय आसानी हो और वह माला भी "क्लीम्" बीज मंत्र के साथ क्रोध भैरव के मुल मंत्र से सिद्ध करना आवश्यक है।

इस साधना को करने के बाद ही विशेष अप्सरा साधना को सम्पन्न करने से प्रत्यक्ष अप्सरा साधना सिद्धी सम्भव है,जो इस साधना को सम्पन्न करने मे तत्पर ना हो,उन्हे अप्सरा साधना सिद्धी मे सफलता प्राप्त करना  एक मुश्किल कार्य हो सकता है।

सर्व अप्सरा सिद्धी दीक्षा के माध्यम से साधक को अप्सरा साधना मे विशेष अनुभूतियाँ हो सकती है,जिसके माध्यम से साधक अपने

​जीवन ​​मे सभी प्रकार के सुख प्राप्त कर सकता है। अप्सरा साधना से पुरे ​जीवन बदला जा सकता है ।

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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माँ श्रीबगलामुखी🌻 पूजन साधनl

माँ श्रीबगलामुखी🌻 पूजन साधनl






मां बगलामुखी जी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं।

इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। देवी बगलामुखी दस महाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश है.

माता बगलामुखी की उपासना से शत्रुनाश वाकसिद्धि वाद विवाद में विजय प्राप्त होती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है.

 बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है। जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है. देवी बगलामुखी भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।

माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है.

देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.

बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। दे

वी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है। बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है।

साधना या अनुष्ठान का स्थान एकांत, निर्जन व शुद्ध हो। साधना घर अथवा पर्वतीय प्रदेश। बीहड़ जंगल या पत्थर के बने घर में अथवा पवित्र महानदियों के संगम के तट पर की जा सकती है। किंतु स्थान खुला नहीं होना चाहिए।

 यदि किसी कारणवश खुले स्थान पर जप आदि करना पड़े तो ऊपर पीले कपड़े का चंदोवा तान देना चाहिए। अनुष्ठान पूजा जप स्तुति पाठ आदि टापू पर बैठकर नहीं करने चहिए। स्थान गंदा अशुभ या गलियारे वाला नहीं हो।

बगला साधना के लिए स्थान का चयन करते समय सदैव सावधानी रखनी चाहिए। साधना रात में करनी चाहिए। साधक को सिर खुला रखना चाहिए। परंतु बालों की चोटी खुली नहीं होनी चाहिए।

सर्वांग शरीर शुद्ध होना चाहिए। जप पैर पसारकर या उकडु बैठकर कभी न करें। हाथ खुले रखें। जप करते समय किसी से बातचीत नहीं करनी चाहिए। बगला साधना में कुर्ता कमीज पायजामा टोपी पगड़ी आदि पहनना वर्जित है।

मां बगलामुखी को ‘ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में अंकित है कि सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। इसके दूसरे उपासक भगवान विष्णु व तीसरे परशुराम हुए।

परशुराम ने ही यह विद्या आचार्य द्रोण को बताई थी। रावण के पुत्र मेघनाद ने अशोक वाटिका में हनुमान के वेग को श्री बगलामुखी की स्तंभन शक्ति के बल पर ही अवरुद्ध किया था।

इसी शक्ति के बल पर रावण की सभा में अंगद ने अपना पैर जमा दिया था जिसे उठाने में कोई भी सफल नहीं हुआ था। महारथी वीर अर्जुन ने भी महाभारत के युद्ध में विजय के लिए मां पीतांबरा बगलामुखी की साधना की थी।

मां बगलामुखी पूजन

साधक को माता बगलामुखी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें।

 इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल हरिद्रा पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-

संकल्प

ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु अद्य (अपने गोत्र का नाम गोत्रोत्पन्नोहं नाम मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।

माँ बगलामुखी मंत्र -विनियोग

श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।

ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।

अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार

सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम् हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम् हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें।

नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें-

गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।

इसके बाद गंध चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें-

नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्।
भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।

आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें-

गंध- ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल चड़ाएं।

पुष्प- ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं। धूप- ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं।

दीप- ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं।

नैवेद्य- ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। अब इस प्रकार प्रार्थना करें-

जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।

अब क्षमा प्रार्थना करें

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।

अंत में माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें। बगलामुखी साधना की सावधानियां :-

1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यधिक आवश्यक है।

2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है।

3. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए।

4. जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें।

5. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं।

6. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए।

जप के पश्चात बगलामुखी कवच अवश्य करना चाहिए। साधना के लिए जपसंख्या कार्य के अनुसार बगलामुखी देवी के जप की संख्या निर्धारित की जाती है।

यदि कोई कार्य बड़ा या दु:साध्य हो तो एक लाख जप अवश्य करना चाहिए। इसके विपरीत छोटे या सुसाध्य कार्य के लिए दस हज़ार जप करना ठीक रहता है। बगला साधना गुरु के सानिध्य में करनी ज़रूरी है।

 गुरु के परामर्शानुसार ही जप संख्या निर्धारित करनी चाहिए। बगलामुखी देवी के हवन के मुख्य प्रयोग जप के के बाद उसका दशांश हवन करने का विधान है। अलग अलग पदार्थों से हवन करने से भिन्न फलों की प्राप्ति होती है।

वशीकरण-

 श्किरा घृत त्रिमधु तथा नमक का हवन करने से वशीकरण होता है।

स्तम्भन-

हड़ताल नमक तथा हल्दी गांठ से शत्रु स्तम्भन होता है। शत्रुनाश- पीली सरसों तथा हवन सामग्री मिलाकर छन करने से शत्रु नाश होता है। उच्चाटन गिद्ध एवं कौवे के पंख एवं सरसों तेल का हवन करने से शत्रु उच्चाटन होता है।

राज गुरु जी

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Saturday, August 19, 2017

श्री तारा महाविद्या प्रयोग

श्री तारा महाविद्या प्रयोग







          सृष्टि की उत्तपत्ति से पहले घोर अन्धकार था, तब न तो कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अन्धकार का साम्राज्य था, इस परलायाकाल के अन्धकार की देवी थी काली, उसी महाअधकार से एक प्रकाश का बिन्दु प्रकट हुआ जिसे तारा कहा गया,

यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रहमांड में जितने धधकते पिंड हैं सभी की स्वामिनी उत्तपत्तिकर्त्री तारा ही हैं, जो सूर्य में प्रखर प्रकाश है उसे नीलग्रीव कहा जाता है,

यही नील ग्रीवा माँ तारा हैं, सृष्टि उत्तपत्ति के समय प्रकाश के रूप में प्राकट्य हुआ इस लिए तारा नाम से विख्यात हुई किन्तु देवी तारा को महानीला या नील तारा कहा जाता है क्योंकि उनका रंग नीला है, जिसके सम्बन्ध में कथा आती है कि जब सागर मंथन हुआ तो सागर से हलाहल विष निकला, जो तीनों लोकों को नष्ट करने लगा, तब समस्त राक्षसों देवताओं ऋषि मुनिओं नें भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, भूत बावन शिव भोले नें सागर म,अन्थान से निकले कालकूट नामक विष को पी लिया,

विष पीते ही विष के प्रभाव से महादेव मूर्छित होने लगे, उनहोंने विष को कंठ में रोक लिया किन्तु विष के प्रभाव से उनका कंठ भी नीला हो गया, जब देवी नें भगवान् को मूर्छित होते देख तो देवी नासिका से भगवान शिव के भीतर चली गयी और विष को अपने दूध से प्रभावहीन कर दिया,

 किन्तु हलाहल विष से देवी का शरीर नीला पड़ गया, तब भगवान शिव नें देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार सृष्टि उत्तपत्ति के बाद पहली बार देवी साकार रूप में प्रकट हुई, दस्माहविद्याओं में देवी तारा की साधना पूजा ही सबसे जटिल है, देवी के तीन प्रमुख रूप हैं

१) उग्रतारा २) एकाजटा और ३) नील सरस्वती
देवी सकल ब्रह्म अर्थात परमेश्वर की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी ब्रहमांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती है ये सात शक्तियां हैं
१) परा २) परात्परा ३) अतीता ४) चित्परा ५) तत्परा ६) तदतीता ७) सर्वातीता

इन कलाओं सहित देवी का धन करने या स्मरण करने से उपासक को अनेकों विद्याओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगता है,

देवी तारा के भक्त के बुद्धिबल का मुकाबला तीनों लोकों मन कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है |

देवी तारा ही अनेकों सरस्वतियों की जननी है इस लिए उनको नील सरस्वती कहा जाता हैदेवी का भक्त प्रखरतम बुद्धिमान हो जाता है जिस कारण वो संसार और सृष्टि को समझ जाता हैअक्षर के भीतर का ज्ञान ही तारा विद्या हैभवसागर से तारने वाली होने के कारण भी देवी को तारा कहा जाता है

देवी बाघम्बर के वस्त्र धारण करती है और नागों का हार एवं कंकन धरे हुये हैदेवी का स्वयं का रंग नीला है और नीले रंग को प्रधान रख कर ही देवी की पूजा होती हैदेवी तारा के तीन रूपों में से किसी भी रूप की साधना बना सकती है

 समृद्ध, महाबलशाली और ज्ञानवानसृष्टि की उतपाती एवं प्रकाशित शक्ति के रूप में देवी को त्रिलोकी पूजती हैये सारी सृष्टि देवी की कृपा से ही अनेक सूर्यों का प्रकाश प्राप्त कर रही हैशास्त्रों में देवी को ही सवित्राग्नी कहा गया हैदेवी की स्तुति से देवी की कृपा प्राप्त होती है |

स्तुति . . .

प्रत्यालीढ़ पदार्पिताग्ध्रीशवहृद घोराटटहासा पराखड़गेन्दीवरकर्त्री खर्परभुजा हुंकार बीजोद्भवा,खर्वा नीलविशालपिंगलजटाजूटैकनागैर्युताजाड्यन्न्यस्य कपालिके त्रिजगताम हन्त्युग्रतारा स्वयं

देवी की कृपा से साधक प्राण ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता हैगृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए

देवी अज्ञान रुपी शव पर विराजती हैं और ज्ञान की खडग से अज्ञान रुपी शत्रुओं का नाश करती हैंलाल व नीले फूल और नारियल चौमुखा दीपक चढाने से देवी होतीं हैं प्रसन्नदेवी के भक्त को ज्ञान व बुद्धि विवेक में तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पतादेवी की मूर्ती पर रुद्राक्ष चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती हैमहाविद्या तारा के मन्त्रों से होता है बड़े से बड़े दुखों का नाश |

देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है. . .

श्री सिद्ध तारा महाविद्या महामंत्र

" ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट "

इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे

1. बिल्व पत्र, भोज पत्र और घी से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है

2.मधु. शर्करा और खीर से होम करने पर वशीकरण होता है

3.घृत तथा शर्करा युक्त हवन सामग्री से होम करने पर आकर्षण होता है।

4. काले तिल व खीर से हवन करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।

देवी के तीन प्रमुख रूपों के तीन महा मंत्रमहाअंक-

देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं तारा ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -

"1"विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती हैसफेद या नीला कमल का फूल चढ़ानारुद्राक्ष से बने कानों के कुंडल चढ़ानाअनार के दाने प्रसाद रूप में चढ़ानासूर्य शंख को देवी पूजा में रखनाभोजपत्र पर ह्रीं लिख करा चढ़ानादूर्वा,अक्षत,रक्तचंदन,पंचगव्य,पञ्चमेवा व पंचामृत चढ़ाएंपूजा में उर्द की ड़ाल व लौंग काली मिर्च का चढ़ावे के रूप प्रयोग करेंसभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-

" ॐ क्रोद्धरात्री स्वरूपिन्ये नम: "

१) देवी तारा मंत्र - ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट

२) देवी एक्जता मंत्र - ह्रीं त्री हुं फट

३) नील सरस्वती मंत्र - ह्रीं त्री हुं

सभी मन्त्रों के जाप से पहले अक्षोभ्य ऋषि का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिएसबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करेंयन्त्र के पूजन की रीति है-

पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं, " ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय" कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करेंदेवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है

यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करेंतारा शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैंतारा शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-

"तारणी तरला तन्वी तारातरुण बल्लरी,तीररूपातरी श्यामा तनुक्षीन पयोधरा,तुरीया तरला तीब्रगमना नीलवाहिनी,उग्रतारा जया चंडी श्रीमदेकजटाशिरा"
 देवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करेंअब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र

1) देवी तारा का भय नाशक मंत्र "ॐ त्रीम ह्रीं हुं" नीले रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें

पुष्पमाला,अक्षत,धूप दीप से पूजन करेंरुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करेंमंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता हैनीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखेंपूर्व दिशा की ओर मुख रखेंआम का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं

2) शत्रु नाशक मंत्र "ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट" नारियल वस्त्र में लपेट कर देवी को अर्पित करेंगुड से हवन करेंरुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करेंएकांत कक्ष में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता हैकाले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखेंउत्तर दिशा की ओर मुख रखेंपपीता का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं

3) जादू टोना नाशक मंत्र "ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट" देसी घी ड़ाल कर चौमुखा दीया जलाएंकपूर से देवी की आरती करेंरुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें

4) लम्बी आयु का मंत्र "ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौ: हुं फट" रोज सुबह पौधों को पानी देंरुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करेंशिवलिंग के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता हैभूरे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखेंपूर्व दिशा की ओर मुख रखेंसेब का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं

5) सुरक्षा कवच का मंत्र "ॐ हुं ह्रीं हुं ह्रीं फट" देवी को पान व पञ्च मेवा अर्पित करेंरुद्राक्ष की माला से 3 माला का मंत्र जप करेंमंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखेंकिसी खुले स्थान में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है

काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखेंउत्तर दिशा की ओर मुख रखेंकेले व अमरुद का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएंदेवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-

बिना "अक्षोभ ऋषि" की पूजा के तारा महाविद्या की साधना न करेंकिसी स्त्री की निंदा किसी सूरत में न करेंसाधना के दौरान अपने भोजन आदि में लौंग व इलाइची का प्रयोग नकारेंदेवी भक्त किसी भी कीमत पर भांग के पौधे को स्वयं न उखाड़ेंटूटा हुआ आइना पूजा के दौरान आसपास न रखें

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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श्री देवी प्रत्यंगिरा तन्त्र

श्री देवी प्रत्यंगिरा तन्त्र






शत्रु की प्रबल से प्रबलतम तांत्रिक क्रियाओं को वापिस लौटने वाली एवं रक्षा करने वाली ये दिव्य शक्ति है I पर प्रयोग को नाश करने के लिए, शत्रुओं के -

किए करायों को नाश करने के लिए इस तन्त्र का प्रयोग किया जाता है I

 एक तन्त्र सिद्ध एवं चलन क्रियाओं को जानने वाला तांत्रिक ही इस विद्या का प्रयोग कर सकता है क्योंकि इस विद्या को प्रयोग करने से पूर्व शत्रुओं के तन्त्र शक्ति, उसकी प्रकृति एवं उसकी मारक क्षमता का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि साधारण युद्ध में भी शत्रु की गति और शक्ति को ना पहचानने वाला, उसको कम आंकने वाला हमेशा मारा जाता है I फिर यह तो तरंगों से होने वाला अदृश्य युद्ध है I

वास्तव में प्रत्यंगिरा स्वयं में शक्ति ना होकर नारायण, रूद्र, कृत्य, भद्रकाली आदि महा शक्तियों की संवाहक है I जैसे तारें स्वयं में विद्युत् ना होकर करंट की सम्वाहिकाएँ हैं I

आइए प्रत्यंगिरा के कुछ मंत्रों को जानें एवं अपनी रूचि अनुसार इनको साधें !

           

                  II ध्यानम् II

नानारत्नार्चिराक्रान्तं वृक्षाम्भ: स्त्रव??र्युतम् I
व्याघ्रादिपशुभिर्व्याप्तं सानुयुक्तं गिरीस्मरेत् II
मत्स्यकूर्मादिबीजाढ्यं नवरत्न समान्वितम् I
घनच्छायां सकल्लोलम कूपारं विचिन्तयेत् II
ज्वालावलीसमाक्रान्तं जग स्त्री तयमद्भुतम् I
पीतवर्णं महावह्निं संस्मरेच्छत्रुशान्तये II
त्वरा समुत्थरावौघमलिनं रुद्धभूविदम् I
पवनं संस्मरेद्विश्व जीवनं प्राणरूपत: II
नदी पर्वत वृक्षादिकालिताग्रास संकुला I
आधारभूता जगतो ध्येया पृथ्वीह मंत्रिणा II
सूर्यादिग्रह नक्षत्र कालचक्र समन्विताम् I
निर्मलं गगनं ध्यायेत् प्राणिनामाश्रयं पदम् II

  II प्रत्यंगिरा माला यन्त्र II

ॐ ह्रीं नमः कृष्णवाससेशते विश्वसहस्त्रहिंसिनि सहस्त्रवदने महाबलेSपराजितो प्रत्यंगिरे परसैन्य परकर्म विध्वंसिनि परमंत्रोत्सादिनि सर्वभूतदमनि सर्वदेवान् वंध बंध सर्वविद्यां छिन्धि क्षोभय क्षोमय परयंत्राणि स्फोटय स्फोटय सर्वश्रृंखलान् त्रोटय त्रोटय ज्वालाजिह्वे करालवदने प्रत्यंगिरे ह्रीं नमः I

विनियोग

 अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि अनुष्टप् छंद: देवीप्रत्यंगिरा देवता ॐ बीजं, ह्रीं शक्तिं, कृत्यानाशने जपे विनियोग: I

  II ध्यानम् II

सिंहारुढातिकृष्णांगी ज्वालावक्त्रा भयंकरराम् I
शूलखड्गकरां वस्त्रे दधतीं नूतने भजे II

1 . अन्य मंत्र - ॐ ह्रीं कृष्णवाससे नारसिंहवदे महाभैरवि ज्वल- ज्वल विद्युज्जवल ज्वालाजिह्वे करालवदने प्रत्यंगिरे क्ष्म्रीं क्ष्म्यैम् नमो नारायणाय घ्रिणु: सूर्यादित्यों सहस्त्रार हुं फट् I

2 .  ॐ ह्रीं यां कल्ययन्ति नोSरय: क्रूरां कृत्यां वधूमिव I
       तां ब्रह्मणाSपानिर्नुद्म प्रत्यक् कर्त्तारमिच्छतु ह्रीं ॐ II

  II ध्यानम् II

खड्गचर्मधरां कृष्णाम मुक्तकेशीं विवाससम् I
दंष्ट्राकरालवदनां भीषाभां सर्वभूषणाम् I  
ग्रसन्तीं वैरिणं ध्यायेत् प्रेरीतां शिवतेजसा I

   II प्रत्यंगिरा मन्त्र भेदा: II

(क) ब्राह्मी प्रत्यंगिरा -

ॐ आं ह्रीं क्रों ॐ नमः कृष्णवसने सिंहवदने महाभैरवि ज्वलज्ज्वालाजिह्वे करालवदने प्रत्यंगिरे क्ष्म्रों I ॐ नमो नारायणाय घृणिसर्य आदित्योम् I सहस्त्रार हुं फट् I अव ब्रह्मद्विषो जहि I

(ख) नारायणी प्रत्यंगिरा -

ॐ ह्रीं खें फ्रें भक्षज्वालाजिह्वे करालवदने कालरात्रि प्रत्यंगिरे क्षों क्ष्म्रों ह्रीं नमस्तुभ्यं हन हन मां रक्ष रक्ष मम शत्रून् भक्षय भक्षय हुं फट् स्वाहा I

(ग) रौद्री प्रत्यंगिरा -

 श्रीं ह्रीं ॐ नमः कृष्णवाससेशते विश्वसहस्त्रहिंसिनि सहस्त्रवदने महाबलेSपराजितो प्रत्यंगिरे परसैन्य परकर्म विध्वंसिनि परमंत्रोत्सादिनि सर्वभूतदमनि सर्वदेवान् वंध बंध सर्वविद्यां छिन्धि क्षोभय क्षोमय परयंत्राणि स्फोटय स्फोटय सर्वश्रृंखलान् त्रोटय त्रोटय ज्वालाजिह्वे करालवदने प्रत्यंगिरे ह्रीं नमः I

(घ) उग्रकृत्या प्रत्यंगिरा -

ह्रीं यां कल्पयन्ति नोSरय क्रूरां कृत्यां वधूमिव I तां ब्रह्मणाप निर्णुद्म प्रत्यक् कर्तारमिच्छ्तु II

(ड.) अथर्वण भद्रकाली प्रत्यंगिरा - ऐं ह्रीं श्रीं ज्वलज्ज्वालाजिह्वे करालदंष्ट्रे प्रत्यंगिरे क्षीं ह्रीं हुं फट् I

राज गुरु जी

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Friday, August 18, 2017

हाजरात साधना

हाजरात साधना






यह विधान सनातन धर्म पर आधारित है। जैसे आज तक आपने सुना होगा सुलेमानी हाजरात जो इस्लाम पर अाधारित है। पर यह साधना हिन्दू देवी/देवता से सम्बंधित है। इस मे मेहनत बहोत है,परन्तु फल प्राप्ति अवश्य  है।

 यह विधान चन्द्र/सूर्य ग्रहण पर करने से पूर्ण सफलता मिलती है। हाजरात एक क्रिया है, जिस के माध्यम से हम भूत भविष्य की  घटना देख सकते है। और अदृश्य शक्तियोको भी देख सकते है। बहोत से ऐसे कार्य होते है,जिनमे हमे भूतकाल और भविषयकाल मे होनेवाली घटना का ज्ञान होना आवश्यक होता है। यह साधना ग्रहण काल  मे सम्पन करना  है।

आज कल लोगो ने हाजरात के नाम पर लूटना शुरू कर दिया है, और जिनको सिद्ध हुवा है,उनकी तो रोजी रोटी बन गया है।
यह विधान यह विषय उत्तम है, इसे अन्य भाषा मे " कजली लगाना " कहते है, कुछ लोग " अंजन " भी बोलते है।

पर यह विधान हाजरात नाम से प्रचलित है,इस क्रिया से आप स्वयम अपने आँखों मे या अंगूठे पर काजल लगाकर देख सकते है और देवता का आवाहन भी कर सकते है,ताकि आपकी परेशानिया दूर हो। यह मेरे तरफ  से साधना गिफ्ट है।

  नवरात्रि के शुभ अवसर पर। इसमे सबसे खास है हाजरात सुमेरु मंत्र जिसके माध्यम से आप हाजरात साधना मे सफल हो जाये। परन्तु आप की मेहनत ,विश्वास और धैर्य जरुरी है,वैसे तो यह प्रत्येक साधनामे जरुरी है इसमे दूसरा मंत्र हाजरात  सिद्धि का होता है।

यह एक  दुर्लभ साधना है, जिसे प्राप्त करना ही उत्तम माना जाता है। इस साधना का पूर्ण विधान नवरात्री  बाद इसी लेख मे मिलेंगा  अब नवरात्री चल रही है,और मै नहीं चाहता हु अभी आपके  साधना मे व्यत्यय आये।

बस थोडासा इन्तेजार करे, और यह महत्वपूर्ण साधना  सभी करे। ऐसा साधना पहिले बार प्रामाणिक विधान के साथ दिया जा रहा है। यह साधना सभी के लिए जरुरी है, और आप प्रत्यक्ष लाभ उठाये यही मैं कामना करता हु।

सब्र का फल मीठा होता है।

हाजरात मेरु मंत्र :-

॥ ओम ह्रीं श्रीं क्लीं हाजरात सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा ॥


साधना विधि :- ग्रहण मे १० माला जप और १०८ आहुति घी का देने से मंत्र सिद्ध होता है
हाजरात भराने का मंत्र :-

॥ ॐ नम: उमा महेश गणेश,गुरु ब्रम्हा ,विष्णु फणीश,विष्णु-रूप हिए धारु धारु धारु धारु शिवजी को ध्यान,हाजरात कुरु नाम: हाजरात कुरु नाम: हाजरात कुरु नम:॥

साधना विधि:-ग्रहण काल मे १० माला जाप से सिद्धि मिलती है। काजल बनाने के लीये कोई समय चुने जैसे अमावश्या

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Thursday, August 17, 2017

में अपने आप में ऐसा कोई दंभ नहीं भरता हूँ

में अपने आप में ऐसा कोई दंभ नहीं भरता हूँ







कि में कोई अद्दितीय युग पुरुष हूँ  या कोई महान हूँ . ऐसा घमंड नहीं हैं , गर्व तो हैं उन साधना सिद्धियों को प्राप्त किया हैं जो अपने आप में अद्दितीय हैं .

 यह गर्व हैं और ऐसे सैकड़ो सन्यासी  , योगी हैं  , में अकेला  ही नहीं हूँ ,  . मगर वे उन गुफाओ में बैठे हैं जंहा वे अकेले ही हैं . वो क्या काम की ???   में उनसे पूछ रहा हूँ कि आप गुफाओ में बैठकर के सधानाओ से आप हिमालयवत् बन गए हैं , सूर्य बन गए .

वह हमारे क्या काम का  ??  इन लोगो से फिर लाभ कैसे मिल पायेगा , उन गुफाओ में बैठने से . उनके बीच बैठना पड़ेगा . आप सूर्य हैं यह कोई बड़ी बात नहीं  हैं . आप विद्वान हैं यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं हैं .

आप चैतन्य हैं यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं हैं . आप के अंदर ज्ञान का बहुत बड़ा सूर्य हैं यह भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं हैं . .

बात तो यह हैं कि आप ने समाज को क्या दिया , मानवता के लिए क्या किया , उस ज्ञान का प्रयोग कहा किया कैसे किया किस रूप में किया किया कि नहीं किया नहीं किया तो क्यिू नहीं किया ,??  

             क्या आप को ये सिद्धि ये ज्ञान इस लिए मिला था कि आप उसका प्रयोग स्वयं के लिए करे. हिमालय कि गुफाओ में जाकर अपने लिए जीये , अगर ऐसा ही होता तो अमज़रे महर्षि ऋषि मुनि समाज का निर्माण किस लिए करते . वे तो आप से बड़े सिद्धि  पुरुष थे .. आप से असंख्य गुना महान थे , उन्हें क्या जरुरत थी समाज के लिए जीने कि . तपने कि ,

             आप सब तो इतने बड़े ज्ञानी भी तो नहीं हैं कि आप एक मंत्र का निर्माण कर सके , क्यिुकि आप मंत्र द्रस्टा नहीं हो सकते आप के अंदर इतना टप नहीं हैं आप के अंदर इतनी ऊर्जा नहीं हैं और न ही तपो बल ही हैं ,. फिर कैसा अहम , घमंड  , इर्षा , ,

                मैंने तो निकल गया हूँ , चलते जा रहा हूँ जंहा तक चल सकता हूँ वंहा तक चलता जाऊंगा जो हैं मेरे पास देता जाऊंगा मेरा क्या हहैं . कुछ भी नहीं , जो लिया यही से लिया जो दूंगा यही पर दूंगा ,

                       
                                                      आप का

                                                                              राजगुरु जी

                                                                         महाविद्या  आश्रम

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चेतावनी :--- ख़बरदार ------ ख़बरदार

चेतावनी  :---  ख़बरदार ------  ख़बरदार







      कुछ लोग तंत्र मंत्र , साधना के बारे में गलत और भ्रामक जानकारी समाज में फैला रहे हैं , और स्वयं सिद्धि पुरुष तंत्र साधक बन गए हैं , खास कर नए साधको को दिग्भ्रमित कर रहे हैं , गलत जानकारी देकर उनके मन में डर भय  पैदा कर रहे हैं ,

दीक्षा के नाम पर लूट रहे हैं ,  ,सीखाने  के नाम पर कोई २१००० हजार कोई ३१००० हजार रूपये माग रहा हैं , साधना और सिद्धि कही पैसे से खरीदी जा सकती हैं , नहीं . ऐसा आप लोग खुद जानते हैं ,

                                                  कृपया ऐसे महा ठगो से सावधान रहे और अच्छे और योग्य गुरु कि खोज कर के उनके मार्गदर्शन में तंत्र साधनाए सम्पन्न करे .

     कुछ लोग महाविद्या आश्रम  का नाम लेके समाज के अंदर में भ्रम फैला रहे हैं , कृपया उनसे सावधान रहे

          हमारे यहाँ दश महाविद्या साधना करने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता हैं साधना टोटल फ्री में कराइ जाती हैं और ना ही दीक्षा के ना पर कोई शुल्क देना होता हैं  हाँ अगर आप हमारे यंहा से प्राण प्रतिष्ठा युक्त मंत्र सिद्धि चैतन्य माला और भोज पत्र पर बना हुआ यन्त्र मागते हैं या लेते हैं तो आप को इसका शुल्क देना होता होता हैं

आप का

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Wednesday, August 16, 2017

व्यापार वृद्धि प्रयोग -

व्यापार वृद्धि प्रयोग -




-: मंत्र :-

॥ धां धीं धूं धूर्जटे पत्नीं वां वीं वुं वागधीश्वरी
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्ये शां शीं शुं में शुभम कुरु ॥

विधी :-

उपरोक्त मन्त्र सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में से हैं । कुछ शुद्ध गुलाब में से बनी अगरबत्ती लेकर उपरोक्त मन्त्र 108 बार जप
कर अगरबत्ती अभिमंत्रित कर लीजिए । उसके बाद उन अगरबत्ती में से 5 अगरबत्ती लेकर प्रज्वलित करे ।

उसके बाद अपने पुरे व्यवसाय स्थल में एंटी क्लोक वाइस (घडी की उलटी दिशा में) घुमाले और एक जगह लगादे और फिर देखे आपका व्यापार कैसे नहीं चलता ।

यह प्रयोग पूर्ण प्रामाणिक एवं कई बार परिक्षीत हैं ।

माँ भगवती ने चाहा तो आप व्यापार को लेकर जल्द ही चिंता मुक्त हो जायेंगे ॥

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
.
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तंत्र वाधा निवारण —एक सरल प्रयोग

तंत्र वाधा निवारण —एक सरल प्रयोग





एक सरल प्रयोग यह प्रयोग किसी भी शत्रु दुयारा किए अभिचार जैसे अगर किसी शत्रु ने किसी पर तंत्र यंत्र मांत्रिक प्रयोग कर दिया है तो उस से निजात पाने के लिए यह एक अनुभूत प्रयोग है !

तंत्र किसी भी व्यक्ति के जीवन को नष्ट भ्रष्ट कर देता है !और तरह तरह के अज्ञात वाधाए उस व्यक्ति के जीवन की दिशा ही बदल देते है !

व्यक्ति इस से छुटकारा पाने के लिए कथित तांत्रिक लोगो के पास धके खाता है और आराम के नाम पे उसे ठगा जाता है !और वह अपना समय और पैसा दोनों गवा बैठता है !

इस मंत्र को ग्रहण के दिन 108 वार जप कर सिद्ध कर ले माला कोई भी ले ले काले हकीक की बेहतर है और हो सके तो 5 माला कर ले नहीं तो 108 वार भी चल जाएगा !

प्रयोग के वक़्त जब किसी के दुयारा किए प्रयोग को नष्ट करना हो तो एक शराब की प्याली और बतासे ले किसी चोराहे पे चले जाए जो निर्जन हो तो जायदा उचित है !

बतासे और शराब की पियाली रख कर 21 वार मंत्र पढे और वहाँ से 7 कंकर उठा ले उन में से 4 कंकर चारो दिशायों में फेक दे और शेष तीन अपने पास ले आए जिस को वाधा हो एक एक कंकर पे 7 वार मंत्र पढ़ उसके शरीर से tuch करे मतलव छूया दे और इस प्रकार तीनों कंकर 7 -7 वार मंत्र पढ़ छूयाए और उन्हे दक्षिण दिशा की तरफ अपनी हद के बाहर फेक दे इस तरह उस पे किया गया प्रयोग का असर समापत हो जाएगा !

साबर मंत्र –

ॐ उलटंत देव पलतंट काया उतर आवे बच्चा गुरु ने बुलाया बेग सत्यनाम आदेश गुरु का !!

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Tuesday, August 15, 2017

वशीकरण के नाम पर छलावा:::----

वशीकरण के नाम पर छलावा:::----





"कई जगह ऐसा लिखा हुआ है 24 घंटे मे या 72 घंटे मे 101% वशीकरण करवा देगे"

मै तो कहता हू की ये लोग 24 घंटे तो छोडीये 24 दिनो मे भी वशीकरण कराके दिखाये तो उनको दस हजार रुपये  इनाम मे दे दुगा वशीकरण एक अद्वितीय क्रिया है जो मनमुटाव को दुर करती है,दो दिलो का मेल करवाती है,जीवन मे प्रेम का रंग भर देती है,हृदय की पिडा को समाप्त करती है।इस प्यारी सी क्रिया को आज लोगो ने व्यवसाय बना दिया है जो उचित नही है.
वशीकरण प्रयोग अत्याधिक महत्वपूर्ण है,

।।वशीकरण।।

वशीकरण क्या है?  और आज कल के लोगो ने क्या समझ लिया है?

वशीकरण विधि भूतकाल में राजकर्मी प्रयोग करते थे राजा की आज्ञा से । वह भी जब कोई घुसपैठिया उनके क्षेत्र में घुस जाता था उस से सच उगलवाने के लिए। आज वशीकरण की परिभाषा ही बदल दी गयी है।

वशी: बस

करण: में करना।

बस में करके सब कुछ गलत करना।

क्या आप की आत्मा आपको गवाही देती है की आप किसी का वशीकरण करके उसके साथ गलत करें।
अगर आपकी आत्मा मानती है वशीकरण ठीक है तो आप तैयार रहे इसके दुष्परिणाम के लिए।

नाना प्रकार के लोग जिनको वशीकरण की विधि विधान नहीं पता वह भी वशीकरण ऐसे देते है जैसे महारत हासिल है। कई हज़ार साल का अनुभव अपने साथ लेकर घूम रहे हैं।

आज कल एक नया मोड्यूल मार्केट में आया हुआ है।
वशीकरण मन्त्र लिखिए और निचे लिख दीजिये गलत के लिए किया तो इस मन्त्र के इष्ट आपको दंड देंगे।इसका मतलब आप पहले गलत करने के योग उस यूजर की लाइफ में क्रिएट करो वह गलत करे और मन्त्र इष्ट से आप उसकी वाट लगवा दो। ये तो आप उस यूजर की लाइफ से टोटली लाइफ क्रश खेल रहे हो।

सभी को पता है जितनी बेरोजगारी इस समय बढ़ती जा रही है ये बेरोजगारी के चलते सभी कार्य वशीकरण से होंगे क्या?

वशीकरण से महिलाओ बच्चों एवं पुरुषो का शोषण करने और होने का नया रास्ता जो आज कल आरम्भ हुआ है ये तो अप्रितम है। आज के समय वशीकरण देने वाले मंत्रेश्वर महाराजो से कोई पूछे अगर ये वशीकरण जो आप किसी क्लाइंट को दे रहे हो किसी महिला पक्ष शिशु अथवा बाल पक्ष को आकर्षित करने के लिए ; अगर ये मन्त्र मंत्रेश्वर महाराज के परिवार पर कर दिया तो महाराज को कैसी शुभ अनुभूति होगी।

थोडा सा अपनी माताओ बहनो अपने ही शिशु एवं बाल पक्ष को ही मत बचाओ और पुरे समाज में भी माताये बहने और बच्चे है जो किसी न किसी की माता या बहिन है और शिशु है। ये प्रयोग न करें ज्यादा ही मांत्रिक बन ने का शोक है तो पहले सोच ले की क्या हश्र हो सकता है।

किसी भी प्रकार का तंत्र जो किसी को नुकसान दे वह करने वाले की लाइफ में भी तूफ़ान जरूर लाएगा।

वशीकरण करना कोई चाहता ही है तो अपनी आत्मा का करे जिस से हम कोई गलत कार्य न करे।

वशीकरण करना है तो ऐसे करे।
दुसरे को भाई बहिन पुत्र पुत्री संबोधित करके करे देखिये ये वशीकरण आपके संस्कार तो उत्तम करेगा ही बहिन या माता बोल कर इसके साथ चरित्र भी साफ़ रखेगा।

मुझे पता है आपको ये लेख पढ़ कर अच्छा नहीं लगेगा। आपकी बद्दुआओं का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा हु।आपकी गालिया भी में महसूस कर रहा हूँ की कब आप देना आरम्भ करे।

इसीलिए में एक एस्ट्रोलोजर नहीं हूँ पहले एक इंसान हूँ । अब आप क्या समझते हैं ये आप की सोच।

अपने शब्दों को विराम देता हूँ।

आप सभी के सकुशल समृद्ध सुखी निष्काम निस्वार्थ जीवन की कामनाओ के साथ,

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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========मारण मन्त्र=========

========मारण मन्त्र=========





==(बिना गुरु Try मत करना)==

ॐ हमखानी तोमखानी न्हुदेवी सरको पानी सातसमुन्द्र पारी जाइ।सुकेको काठ बृक्षामा लागि जाइ।सत्तेदेवीको वाचा चाण्डिदेविको बाचा न्हुदेवीको वाचा लतादेवीको वाचा ॐ लतादेवी तेरे अघि श्रीमनुकामना कालीकी खुकुरी रक्तकि तैयो अगि अर्जुन बाण अगाडि सारै अरुहेकी मन्त्र होला कि जाइ ईश्वर गौरा पार्वती महादेव कि वाचा।।।

येह उपर मैनें जो मन्त्र बताय हैं वो बहुत हि powerful हैं।जो मा काली,मनकामना माता कि हैं।जो मेरे खास मन्त्र हैं।

इसके लिए कोइ साधना,बाधना नहिं सिर्फ ३ बार जाप करने से काम तमाम। येह मन्त्र तब काम आता है जब आप कोइ उपाय करते समय,किसिको झाट्ते समय कोइ तान्त्रिक कृया करते समय जब कोइ आप के उपर काला जादु से या मन्त्र से बाण भेज्ते है तो उस समय उस

 "अमुक"

को येह मन्त्रद्वारा मारण कर सकते है।

साधारण व्यक्ति के उपर आप इस मन्त्रका प्रयोग नहि करसकते हैं।

Note;

        मन्त्र के अन्त मे मैंने कुछ शब्द नहिं दिया हैं।क्यु कि येह घोर कलियुग हैं।सिर्फ गुरु दीक्षा से हि मिलसकते है।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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पारद गुटिका के दिव्य प्रयोग

पारद गुटिका के दिव्य प्रयोग






आज हम पारद गुटिका के कुछ प्रयोग के विषय में बात करेंगे.पारद के बंधन को ही सिद्धों और सभी दिव्या योनियों ने धन्य कहा है.

बस जरूरत इतनी है की इसके महत्व को हम समझे और अपने जीवन को सफल बनायें.

आख़िर हम क्यूँ नही समझते हैं की कोई तो वजह होगी जो पारद तंत्र को तंत्र की अन्तिम और गोपनीय विद्या मन जाता है.क्यूंकि इस विद्या के द्वारा सर्जन किया जा सकता है और सर्जन वही कर सकता है जो की इस ब्रह्मंडा के गोपनीय रहस्य को या तो जान चुका हो या फिर जानने की और पूर्ण रूप से अग्रसर हो .

अभी पिछले दिनों मैं मेरे एक अतिप्रिय आत्मीय मित्र से मिलने के लिए पहाड़ी प्रदेश गया था .पिछले जीवन के सूत्र इतनी मजबूती से जुड़े हुए हैं की मुझे जाना ही पड़ा .मेरे वो आत्मीय पेट के रोग से ग्रस्त हैं और यही वजह उनकी साधनात्मक प्रक्रिया के विकास में बाधक भी है.

जब मैंने उनकी जन्मपत्रिका का अध्धयन किया तो मुझे वो बात समझ भी आ गयी की क्यूँ वो अभी तक वह नही पहुच पाए जहा उन्हें पहुच जन था.

उच्च संस्कृत परिवार में जन्म लेने के बाद और आत्मीय स्वाभाव के होने बाद भी वे अत्यन्त संकोची हैं और मैंने कई बार उनसे कहा भी की आप मुझे बताएं.पर ..... खैर.

मैं उनके लिए अत्यन्त दुर्लभ पारद कल्प भी ले गया था पर उनको इस कल्प का फल भी तभी मिल पाटा (क्यूंकि यह कल्प आध्यात्मिक और शारीरिक प्रगति के लिए अत्यन्त आवश्यक है).

पहले मुझे उन्हें पेट के विकार का निवारण भी करना था बस इसी कारण मैं आज वे रहस्य आप लोगो के सामने प्रकट कर रहा हूँ जो की सरल लेकिन अत्यन्त चमत्कारी हैं.आप इन प्रयोगों को संपन्न करें और ख़ुद इनके प्रभाव को देखें.

ये प्रयोग स्वयं ही तंत्र हैं इनमे किसी मंत्र का कोई प्रयोग नही है.

सुद्ध और संस्कृत पारद से बद्ध गुटिका के दुर्लभ प्रयोग इस प्रकार हैं:-

१.कुंडलिनी जागरण और ध्यान व संकल्प शक्ति के द्वारा अपने मनोरथ पूरे करने के लिए इस गुटिका को यदि अपनी जीभ के ऊपर रख कर अपना संकल्प लें और उसकी पूर्णता के लिए प्रे करें.

एक इम्प बात यह है की पारद इस उनिवेर्स का सर्वाधिक चैतन्य जीव है जो शिव वीर्य होने के कारण आपके कार्यों को तीव्र गति देता है.गुटिका को मुख में रख कर योग करने से सफलता शीघ्र मिलती है.

इस अभ्यास को कम से कम ५ मिनट करना चाहिए और गुटिका को निगलना नही है अन्यथा नुक्सान होगा ही.पारद उष्ण प्रकृति का है इसीलिए समय धीरे-२ बाधाएं.और ध्यान का अभ्यास हो जाने पर लंबे समय तक ध्यान किया जा सकता है.

२.बल प्राप्ति और रोग मुक्ति हेतु-सोते समय रात मे२०० मिली दूध को गुनगुन आकार के पारद गुटिका को उसमे ४ बार दुबयें और निकल लें और उसे पी लें.कम से कम ४० दिन तक प्रयोग करे रोगों से मुक्ति होती है.

३.गले में धारण करने से यदि गुटिका का स्पर्श हार्ट पर होता है तो हार्ट के रोगों का निवारण होता है.

४.शरीर के किसी भी भाग में दर्द हो तो गुटिका को प्लास्टर से उस स्थान पर चिपका लें.गुटिका दर्द को खीच लेती है.

५.सम्भोग के समय मुह में रखने से स्तम्भन का समय बढ़ते जाता है .ध्यान रखिये गुटिका को निगलना नही है.वीर्य स्तम्भन और नापुन्शाकता के लिए भी ये बेहद उपयोगी है.

६.पेट के विकार,लगातार डकार,अजीर्ण,गैस आदि के लिए इस गुटिका को रात में अपनी नाभि के ऊपर २० मिनुत तक रखने से कैसी भी बीमारी जड़ से समाप्त होती ही है.

७.आँखों में यदि कोई बीमारी हो और देखने में परेशानी हो रही हो तोरात में सोते समय इस गुटिका को आँखों को बंद करके २० मिनट तक बंधने से बीमारी ठीक होती है.

८.यदि पैदल चलने से थकान होती हो तो आप पारद गुटिका को कमर पर बाँध कर देखे थकान बहुत कम हो जाती है चलने पर.

अति उच् वनस्पतियों के द्वारा संस्कृत की गयी ऐसी गुटिका भूचरी गुटिका कहलाती है जिसके प्रयोग द्वारा व्यक्ति एक दिन में १०० मील भी चल लेता है और थकान नही होती है.

९.यदि आपको यह पहचानना है तो आपके शरीर पर पंचभूतों के किस तत्त्व का प्रभाव ज्यादा है तो गुटिका को गले में धारण करें से जब आपको पसीना आता है तो गुटिका भी उसी रंग में बदल जाती है जिस रंग का स्वामी तत्त्व है.

blue-sky
violot(jamuni)-air
red-fire
green-earth
white-water

१०.तंत्र बढ़ा और भूत प्रेत के निवारण के लिए काले धागे में बाँध कर के गुटिका पहनने से शमन होता है.

११.गुटिका के धारण करने से अत्रक्शन पॉवर बढ़ता ही है.

मुझे आप सभी के विचारों का इन्तजार है

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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श्रीयंत्र को यंत्रराज क्यों कहते हे ?

श्रीयंत्र को यंत्रराज क्यों कहते हे ?


 

प्रणाम दोस्तों

ज्यादातर लोग श्रीयंत्र को लक्ष्मी प्राप्ति का ही माध्यम समजते हे परन्तु श्रीयंत्र अपने आप में सारे संसार का सुख देने में सामर्थ्य रखता हे |

एक पौराणिक खाता के अनुसार लक्ष्मी जी पृथ्वी से रुष्ट हो कर वैन्कुठ चली गई | तो लक्ष्मीजी की अनुपस्थिति में पृथ्वी पर अनेक समस्याए उत्पन्न होगई तब महर्षि वशिष्ठ और श्री विष्णु ने लक्ष्मीजी को बहोत मनाया फिर भी लक्ष्मी जी नहीं मानी तब जाके देवगुरु बृहस्पति ने एक उपाय किया, लक्ष्मीजी को आकर्षित करने के लिए श्रीयंत्र की रचना की और उसका स्थापन और पूजन का उपाय बताया |

 तब जाके लक्ष्मीजी को न चाहते हुवे भी विवश हो कर पृथ्वी पर आना पड़ा क्यों की -

लक्ष्मीजी ने अपने स्वयं के मुख से कहा " श्रीयंत्र ही मेरा आधार हे और यही श्रीयंत्र में मेरी आत्मा निवास करती हे इस लिए मुझे आना ही पड़ा "

एक अन्य कथा में श्रीयंत्र का सम्बन्ध आध्यशंकराचार्य से जोड़ा गया हे |

एक बार विश्व में बहोत परेशानी व्याप्त हो गई तब आध्यशंकराचार्य जी ने आशुतोष शिवजी से विश्वकल्याण के लिए उपाय पूछा तो शिवजी ने श्रीयंत्र और श्रीविद्या प्रदान करते हुवे कहा की श्रीविद्या की साधना जाननेवाला मनुष्य अपर यश और लक्ष्मी का स्वामी होगा जबकि श्रीयंत्र का पूजन करने वाला प्रत्येक प्राणी सभी देवताओ की आराधना का फल प्राप्त करेगा क्यों की इस यंत्र राज

" श्रीयंत्र " में सभी देवी देवताओ का वास हे .... हरी ओम तत्सत

मेरे सभी दोस्तों से मेरा नम्र निवेदन हे की हो शके तो जीवन में एक बार सम्पूर्ण रूप से श्रीविद्या के तहद एक श्रीयंत्र वैदिक रीती से बनवाकर अपने घर में स्थापन करे और यह श्री यन्त्र का नित्य वैदिक पूजन करे और हवन द्वारा देवताको को भोग प्रदान करे ..

 अवश्य ही लक्ष्मी की महेर होगी .. मेरा स्यवंम का अनुभव हे ... कृपया लाभ उठाये

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
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Monday, August 14, 2017

भूत प्रत्यक्षिकरण साधना.

भूत प्रत्यक्षिकरण साधना.




जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत
ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में
अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है।जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है ।

भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती
है।इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और
उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि
कहा जाता है।हिन्दू धर्म में गति और कर्म
अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन
किया है,आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं।

 भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।

इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे
अलग नामों से जाना जाता है। माना
गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती
मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।

84 लाख योनियां पशुयोनि,पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं।

आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते।यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है।बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं।

पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण
करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों
का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।

पृथ्वी पर अनिष्ट शक्तियों का अस्तित्व
विभिन्न स्थानों पर होता है । जीवित और निर्जीव वस्तुओं में वे अपने लिए केंद्र बना सकती हैं । जहां वे अपनी काली शक्ति संग्रहित कर सकती हैं, उसे केंद्र कहते
है ।

केंद्र उनके लिए प्रवेश करने का स्थान
होता है तथा वे वहां से काली शक्ति ग्रहण अथवा प्रक्षेपित कर सकती हैं । अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)अपने लिए साधारणतः मनुष्य, वृक्ष, घर, बिजली के उपकरण आदि में केंद्र बनाती हैं। जब वे मनुष्य में अपने लिए केंद्र बनाती हैं, तब उनका उद्देश्य होता है-खाना-पीना, धूम्रपान करना तथा लैंगिक वासनाओं की पूर्ति करना अथवा लेन-देन खाता पूर्ण करना ।

मूलभूत वायुतत्त्व से बनने के कारण सूक्ष्म-दृष्टि के बिना उन्हें देख पाना संभव नहीं होता है इसलिये आज मै यहा अदृश्य शक्तीयो को देखने का विधान दे रहा हू।

कुत्ते, घोडे, उल्लू तथा कौए जैसे पक्षी तथा कुछ प्राणी अनिष्ट शक्तियों के अस्तित्व के संदर्भ में अधिक संवेदनशील होते हैं । रातमें जब कुत्तों का बिना किसी दृश्य कारण से अचानक भौंकना तथा रोना उनके द्वारा अनिष्ट शक्तियों के अस्तित्व को समझ पाने के कारण होता है ।

भुतोका अस्तित्व है यह बात आज अमेरिका वाले भी मानते है और हमारे देश मे तो यह मान्यता पहीले से ही है ।
साधना विधी:-

सामग्री:-भूतकेशी नामक जडि से निर्मित काजल,काली हकिक माला और भूत रक्षा कवच । विशेषता यह सामग्री आवश्यक है,बिना सामग्री के साधना करने पर सफलता प्राप्त करना मुश्किल है ।

भूतकेशी:-

यही जडि दुर्लभ है और हिमाचल प्रदेश के जंगल मे पायी जाती है,इसको घी मे पकाकर अग्नी के माध्यम से काजल निर्मित होता है ।इस जडि के काजल से अदृश्य शाक्तिया आसानी से देख सकते है क्युके इस जडि मे भूत का अस्तित्व सबसे ज्यादा होता है ।यह दिव्य काजल सिर्फ हमारे पास ही मिलता है ।

काली हकिक माला:-

यह तो आज कल मार्केट मे आसानी से मिल जाती है ।
भूत रक्षा कवच:-यह जरुरी है अन्यथा भूत-प्रेत साधक पर हमला करते है तो इसे पहेनना आवश्यक है और आप सुरक्षित रहेगे.बिना सुरक्षा कवच के साधना करना नुकसान दायक होता है ।

यह साधना तीन दिवसिय है और इसे अमावस्या के तीन दिन पूर्व शुरूवात करना होता है,आखरी दिन अमावस्या होना चाहिये ।आसन-वस्त्र-काले रंग के हो और दक्षिण दिशा के तरफ मुख होना चाहिये ।

साधना एक बंद कमरे मे करनी है जहा किसी भी प्रकार की कोई भी रोशनी ना हो सिर्फ तीव्र सुगंध युक्त अगरबत्ती जला सकते है ।साधना मे तीसरे दिन भयानक दृश्य आखो के सामने प्रकट होते है जिसे देखकर डर लगता है परंतु रक्षा कवच पहेनने के बाद डरना नही चाहिये ।

तीसरे दिन भूत प्रत्यक्ष हो तो उससे कोई भी तीन प्रकार के वचन माँगे,जिससे भूत आपका प्रत्येक कार्य पूर्ण कर दे ।

मंत्र-

ll ह्रीं क्रीं भुताय वश्यै फट ll

(hreem kreem bhootaay vashyai phat)

यह मंत्र दिखने मे छोटा है पर इसका प्रभाव तीव्र है ।यह मंत्र गुरू गोरखनाथ प्रणीत तंत्र से है जो शीघ्र सिद्धीप्रदायक है ।जब भूत सिद्धी होती है तो साधक भुतो से मनचाहा काम करवा सकता है ।

आकर्षण-वशीकरण जैसे काम भुतो के लिये छोटे काम है तो सोचिये भूत क्या-क्या कर सकते होगे?इसलिये जीवन मे भुतसिद्धी महत्वपूर्ण है ।

(नोट:-कमजोर दिल वाले लोग यह साधना करने का साहस ना करे)

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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चक्रेगमालिनी देवी साधना

चक्रेगमालिनी देवी साधना



(शिव शक्ति)

यह देवी भगवती से उत्पन्न है।यह सफ़ेद वस्त्रो को धारण किये हुये,गले में फूलो का सफ़ेद हार पहने हुये साधक को दर्शन देती है।

सिद्ध होने पर यह साधक को भूत भविष्य वर्तमान बताती हैं और अन्य बाते भी साधक के कानो में बोलकर बताती हैं।इस देवी सिद्धि से साधक स्वयं ही त्रिकाल दर्शी बन जाता है।

देवी अम्बिका की मूर्ति का पूजन करे।मिठाई का भोग लगाय, धूपबत्ती,फूल,अर्पित करे,देशी घी का दिया जलाय।जल का कलश रखे।

21 माला जाप 41 दिन करे।

सफ़ेद वस्त्र,सफ़ेद आसन ले।माथे पर लाल चन्दन का तिलक लगाये।रुद्राक्ष माला से जप करे।

बन्द आँखों से जप करे।सिद्ध होने पर यह साधक की सहायता करती हैं।

अंतिम दिन दशांश हवन करे।

गुरु पूजन,पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन,शिव पूजन,अम्बा देवी पूजन करे।लालची साधक दूर रहे।

मन्त्र।

।ॐ ह्रीम् चक्रगमालिनी स्वाहा।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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प्रचंड भगवती धूमावती साधना

प्रचंड भगवती धूमावती साधना




प्रचंड भगवती धूमावती तंत्र की सातवी महाविद्या के रूप जगत में प्रसिद्धि हैं . दतिया मध्य प्रदेश में माँ बंगलामुखी सिद्धि पीठ के के समीप ही भगवती धूमावती का भी स्थान हैं . माँ भगवती धूमावती का साधना प्रयोग इस प्रकार हैं .

धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी |
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ||
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके |
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ||
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः |
सौभाग्यमयतं प्राप्य जाते देवितुरं ययौ ||

॥ धूं धूं धूं धूमावती स्वाहा॥

मंत्र जाप संख्या : - सवा लाख
दिशा :- दक्षिण
स्थान :- शमशान , शिवालय , सिद्धि पीठ , या निर्जन स्थान ,
समय :- रात्रि
दिन ;- शनिवार / या धूमावती जयंती
आसन :- सफ़ेद
वस्त्र :- काले रंग की धोती , कला वस्त्र , काला कम्बल ,
हवन :- ( दशांश ) हवन

विधि :-

मोहनी एकादशी या किसी भी शुक्रवार को स्नान आदि से निवित्र होकर कांशे की थाली में समस्त तांत्रिक पूजन सामग्री स्थापित करके पंचोपचार पूजन करना चाहिए व्यक्ति विशेष को वश में करने का अथवा सिद्धि का संकल्प लेते हुए ,

 विधि -

विधान पूर्वक गुरु - गणेश वंदना करके , मूल मंत्र का जाप करे , . जाप की पूर्णता पर दशांश हवन करके ब्राह्मण , एवं पांच कुवारी कन्यायो को भोजन सहित उपयुक्त दान - दक्षिणा देकर साधना को पूरा करे .

इस महत्व पूर्ण सम्मोहनी साधना से साधक का व्यक्तित्व अत्यंत सम्मोहक और आकर्षक हो जाता हैं .

उसके संपर्क में आने वाला कोई भी व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता .

 यदि कोई साधना करने में असमर्थ हो , तो योग्य विद्द्वान द्वारा या साधना सम्पन्न करा के करवाकर सम्मोहनी कवच धारण करके उक्त लाभ प्राप्त कर सकता हैं .

साधना सामग्री :-

सिद्धि अधेर मंत्रो से अभिमंत्रित धूमावती यन्त्र . काले हकीक की या रुद्राक्ष की माला , गुड़हल के फूल , तेल का दीपक नैवेद्य , कपूर ,एवं पूजन की अन्य आवश्यक सामग्री ,.

विधि :-

 भय रहित ह्रदय से नदी या तालाब में स्नान आदि से निवृत होकर पूर्ण विधि - विधान से एकाग्र भाव से साधना करें . मंत्र जाप की समाप्ति पर दशांश यज्ञ हवन करना चाहिए .

किसी विशेष प्रयोजन हेतु यदि आप धूमावती साधना अनुष्ठान करने के इच्छुक हैं तो अपनी मनोकामना का स्पष्ट शब्दों में संकल्प करें . यह देवी साधक के सभी शत्रुओ को समाप्त कर देती हैं . इस देवी का सिद्ध साधक निर्भय हो जाता हैं .

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम
.
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Sunday, August 13, 2017

ज्वाला शत्रु स्तम्भय साधना

ज्वाला शत्रु स्तम्भय  साधना




जीवन मे निरंतर पग पग पर समस्या तथा बाधाए आना स्वाभाविक है। आज के युग मे जब चारो तरफ अविश्वास और ढोंग का माहोल छाया हुआ है तब ज्यादातर व्यक्तियो का समस्या से ग्रस्त रहना स्वाभाविक है। और व्यक्ति कई प्रकार के षड्यंत्रो का भोग बनता है।

यु एक हस्ते खेलते परिवार का जीवन जाता है अत्यधिक दुखी हो। कई बार व्यक्ति के परिचित ही उसके सबसे बड़े शत्रु बन जाते है और यही कोशिश मे रहते है की किसी न किसी रूप मे इस व्यक्ति का जीवन बर्बाद करना ही है।

 चाहे इसके लिए स्वयं का भी नुक्सान कितना भी हो जाए। आज के इस अंधे युग मे मानवता जैसे शब्दों को माना नहीं जाता है। और व्यक्ति इसे अपना भाग्य मान कर चुप हो जाता है।

अपने सामने ही खुद की तथा परिवार की बर्बादी को देखता ही रहता है और आखिर मे अत्यधिक दारुण परिणाम सामने आते है जो की किसी के भी जीवन को हिलाकर रख देते है।

 एसी परिस्थिति मे गिडगिडाने के अलावा और कोई उपाय व्यक्ति के पास नहीं रह जाता है। लेकिन हमारे ग्रंथो मे जहा एक और नम्रता को महत्व दिया है तो दूसरी और व्यक्ति की कायरता को बहोत बड़ा बाधक भी माना है।

 एसी परिस्थितियो मे शत्रु को सबक सिखाना कोई मर्यादाविरुद्ध नहीं है। यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार व्यक्ति अपनी और परिवार की आत्मरक्षा के लिए हमलावर को हावी ना होने दे और उस पर खुद ही हावी हो जाए। हमारे तंत्र ग्रंथो मे इस प्रकार के कई महत्वपूर्ण प्रयोग है जिसे योग्य समय पर उपयोग करना हितकारी है।

लेकिन मजाक मस्ती मे या फिर किसी को गलत इरादे से व्यर्थ ही परेशान करने के लिए इस प्रकार की साधनाओ का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए वरना इसका भयंकर विपरीत परिणाम भी आ सकता है।

शत्रुओ के द्वारा निर्मित षड्यंत्रो का किसीभी प्रकार से कोई असर हम पर ना हो और भविष्य मे वह हमारे विरुद्ध परेशान या नुकसान के इरादे से कोई भी योजना ना बना पाए इस प्रकार से साधक का चिंतन हो तो वह यथायोग्य है।

तन्त्र के कई रहस्यपूर्ण और गुप्त विधानों मे से एक विधान है "ज्वाला शत्रु स्तम्भन"। यह अत्यधिक महत्वपूर्ण विधान है जिसे पूर्ण सात्विक तरीके से सम्प्पन किया जाता है लेकिन इसका प्रभाव अत्यधिक तीक्ष्ण है।

देवी ज्वाला अपने आप मे पूर्ण अग्नि रूप है, और शत्रुओ की गति मति स्तंभित कर के साधक का कल्याण करती है। साधक को इस प्रयोग के लिए कोई विशेष सामग्री की ज़रूरत नहीं है।

इस विधान को साधक किसी भी दिन से शुरू कर सकता है तथा इसे आठ दिन तक करना है, इन आठ दिनों मे साधक को शुद्ध सात्विक भोजन ही करना चाहिए, लहसुन तथा प्याज भी नहीं खाना चाहिए।

 यह जैन तंत्र साधना है इस लिए इन बातो का ध्यान रखा जाए। इस प्रयोग मे वस्त्र तथा आसान सफ़ेद रहे। दिशा उत्तर रहे। साधक रात्री काल मे 10 बजे के देवी ज्वाला को मन ही मन शत्रुओ से मुक्ति के लिए प्रार्थना करे।

 इसके बाद निम्न मंत्र की 1008 आहुतिय शुद्ध घी से अग्नि मे प्रदान करे।

औम झ्राम् ज्वालामालिनि शत्रु स्तम्भय उच्चाटय फट्

आहुति के बाद साधक फिर से देवी को प्रार्थना करे तथा भूमि पर सो जाए। इस प्रकार आठ दिन नियमित रूप से करने पर साधक के समस्त शत्रु स्तंभित हो जाते है और साधक को किसी भी प्रकार की कोई भी परेशानी नहीं होती। शत्रु के समस्त षडयंत्र उन पर ही भारी पड जाते है।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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अर्पणा अप्सरा साधना

अर्पणा अप्सरा साधना




@परिचय अपसरा साधना स्पष्ट शब्दो मेँ यह काम भावना की साधना है। अप्सरा का अर्थ एसी देवी वर्ग से है जोसौंदर्य की द्रष्टि से अनुपमेय हो। मुख की सुन्दरता के साथ साथ देह व वाणी सौँन्दर्य न्रत्य संगीतकाव्य-हास्य-विनोद सभी प्रकार के सौंदर्योँ से भरपूर हो।जिसे देख कर मन मोहित हो काम स्फुरन आरंम्भ हो जाए

@कुंकुमपंअकलंकितदेहा गौरपयोधरकपम्पितहारा।नूपूरहंसरणत्पदपदूमाकं नवशीकुरुते भुविरामा॥@

अर्थ-जिसका शरीर केसर के उबटन से सुन्दर बना हुआ है, जिसके गुलाबी स्तनोँ पर मोती का हार झूल रहा है चरण कमल मे नुपूर रुपी हंस शब्द करतेँ हो। एसी लोकोत्तर सुन्दरी किसे अपने वश मे नहिकर सकती।

@आवश्यक सामग्री-गुलाबजल,गुलाब का इत्र, अप्सरा का चित्र,दीपक, शुद्ध घी या चमेली का तेल, एक बेजोट,कोरा श्वेत वस्त्र केसर दो गुलाब के फूल,शंख की माला, श्वेत या कंबल का आसन, सफेद धोती गमझा,

@दिन व समय-किसी भी मास की एक तारीख को या किसी भी पुष्य नक्षत्र मे की जा सकती है। रात्रि 11 बजे करे।

@

मंत्र-ॐ ल्रं ठं ह्रां सः सः[OM LRAM THM HRAM SH SH]@

विधी-

साधना के करने से पूर्व बेजोट पर श्वेत वस्त्र कोरा वस्त्र बिछा कर अप्सरा का चित्र रखेँ! दीपक जला कर केसर से पूजन करे।उक्त विधी द्वारा अंगो को चित्र मे स्पर्श करें!

 [>समस्त अप्सराओ की साधना मे यह वैदिक विधी प्रयोग की जा सकती है।<]अं नारिकेल रुपायै नमः-शिरसिआं वासुकी रुपायै नमः-केशायइं सागर रुपायै नमः- नेत्रयोईँ-मत्यस्य रुपायै नमः -भ्रमरेउं मधुरायै नमः- कपोलेऊं गुलपुष्पायै नमः- मुखेएं गह्वरायै नमः-चिबुकेऐं पद्मपत्रायै नमः-अधरोष्ठेओं दाडिमबीजायै नमः-दंतपंक्तौऔं हंसिन्यै नमः-ग्रिवायैअं पुष्प वल्ल्यै नमः-भुजायोःअः सूर्यचंद्रमाय नमः-कुचेकं सागरप्रगल्भायै नमः- वक्षेखं पीपरपत्रकायै नमः-उदरौगं वासुकीझील्यै नमः-नाभौघं गजसुंडायै नमः-जंघायैचं सौंदर्यरुपायै नमः पादयौघं हरिणमोहिन्यै नमः-चरणेजं आकाशाय नमः-नितम्भयोझं जगतमोहिन्यै नमः-रुपेटं काम प्रियायै नमः- सर्वांगेअब अप्सरा के भावोँ की कल्पना करेँठं देवमोहिन्यै नमः-गत्यमौडं विश्व मोहिन्यै नमः-चितवनेढं अदोष रुपायै नमः-द्रष्ट्यैतं अष्टगंधायै नमः-सुगंधेषुथं देवदुर्लभायै नमः-प्रणयंदं सर्वमोहिन्यै नमः-हास्येघं सर्वमंगलायै नमः-कोमलांग्यैनं धनप्रदायै नमः- लक्ष्म्यैपं देहसुखप्रदाय नमः-रत्यैफं कामक्रिडायै नमः-मधुरेबं सुखप्रदायै नमः-हेमवत्यैभं आलिंगनायै नमः-रुपायैमं रात्रौसमाप्त्यैनमः-गौर्यैयं भोगप्रदायै नमः-भोग्यैरं रतिक्रयायै नमः-अप्सरायैलं प्रणयप्रियायै नमः-दिव्यांगनायैवं मनोवांछितप्रदायनमः-अप्सरायैशं सर्वसुखप्रदायै नमः-योगरुपायैषं कामक्रिडायै नमः-देव्यैसं जलक्रिडायै नमः-कोमलांगिन्यैहं स्वर्ग प्रदायै नमः-

अर्पणाप्सरायैअब एक गुलाब का पुष्प चित्र के पास रखे गुराब का इत्र रुई मे ले कर चित्र के पास रख दे। एवं अब स्वयं इत्र लगावेँ।

 एक मुलैठी या इलायची चबा जाऐ।अब लोटे मे जल ले उसमेँ गुलाब जल व गंगा जल मिला कर विनयोग करेँ

ॐ अस्य श्री अर्पणा अप्सरा मंत्रस्य कामदेव ऋषि पंक्ति छंद काम क्रिडेश्वरी देवता सं सौन्दर्य बीजं कं कामशक्ति अं कीलकं श्री अर्पणाप्सरा सिध्दयर्थं रति सुख प्रदाय प्रिया रुपेण सिद्धनार्थमंत्र जपे विनयोगः

न्यास/करन्यास

ॐअद्वितीयसौँदर्यनमः शिरषिॐकामक्रिड़ासिध्दायैनमः मुखेॐआलिंगनसुखप्रदायैनमः ह्रिदीॐदेहसुखप्रदायैनमः गुह्योॐआजन्मप्रियायैनमः

 पादयोॐमनोवांछितकार्यसिद्धायै नमः करसंपुटेॐ दरिद्रनाशय विनियोगायैनमः सरवांगेॐसुभगायै अंगुष्ठाभ्यां नमःॐसौन्दर्यायै तर्जनीभ्यां नमःॐरतिसुखप्रदाय मध्यमाभ्यां नमःॐदेहसुखप्रदाय अनामिकाभ्याम नमःॐ भोगप्रदाय कनिष्ठाभ्यां नमःॐ आजन्मप्रणयप्रदायै

 करतलपृष्ठाभ्यांनमःध्यानहेमप्रकारमध्ये सुरविटपटले रत्नपीठाधिरुढांयक्षीँ बालां स्मरामः परिमल कुसुमोद्भासिधम्मिल्लभाराम पीनोत्तुंग स्तननाढ्य कुवलयनयनां रत्नकांचीकराभ्यां भ्राम द्भक्तोत्पलाभ्यां नवरविवसनां रक्तभूषांगरागाम्रात्री

काल मेँ मन मे प्रेमिकासे मिलने का भाव रख कर 11 शंख की माला से जाप करेँ।

 5 माला पूर्ण हो जाने पर पर प्रमाव प्रत्यक्ष होने लगता हैनाना प्रकार की क्रिडा अप्सरा द्वारा की जाती है

 विचलित हुए बिना जप पूर्ण हो जाए तो वचन हरा लेँ।@विशेषसाधना से एक दिन पूर्व ही साधना कक्ष को साफ कर लेना चाहिए अर्धरात्री से मौन रखे कर अकले दिन रात मेँ साधना से पूर्व मौन खत्म होता है व्यसन कामुकता पूर्णतः वर्जित है।

 साधना से पूर्व गुरु,गणेश,शिव,इष्ट पूजन आवश्यक है आसन शुद्धी माला संस्करण आसन जाप आदी कर लेना चाहिए ताकी साधना की सफलता की संभावना बनी रहे ये सभी साधनाओँ का आधार होते है

@भाव की प्रधानतायह साधना काम भाव की है अर्थ ये नही की आप कामुक भाव से करे। भाव ये है की एक प्रेमी अपनी प्रेयसी के प्रेम मे व्याकुल उसे पुकार रहा है। और@

नोट-

 ये साधना एक दिवसी अवश्य है परन सरल नहि सात्विक्ता से रह कर, मौन रह कर, काम क्रोध लोभ मोह त्याग कर, मनको शांत रख कर ही आप साधना मे अपनी सफलता की संभावना को बढा सकतेँ है सामग्री को बदला जाए या इनके विकल्पो का प्रयोग करना वर्जित है।।

याद रखे गाण्डिवधारी अर्जुन जैसा धनुर्धर खुद को अप्सरा के श्राप से नहि बचा पाया था। अतः किसी भी साधना या शक्ती को सहज न समझेँ।

देवराज इन्द्र द्वारा इन्हे साधना भंग करने हेतु पहुँचाया जाता रहा अतः ये इस कार्य मे निपुण होतीँ है अतः साधक विचलित न हो ये आवश्यक है।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Saturday, August 12, 2017

तंत्र से करें सुख-समृद्धि

तंत्र से करें सुख-समृद्धि




1‌‌‍॰ यदि परिश्रम के पश्चात् भी कारोबार ठप्प हो, या धन आकर खर्च हो जाता हो तो यह टोटका काम में लें। किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन प्रात: हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे “संकटनाशन गणेश स्तोत्र´´ के 11 पाठ करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं। फिर यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहे। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।

2॰ किसी के प्रत्येक शुभ कार्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर “बटुक भैरव स्तोत्र´´ का एक पाठ कर के गौ, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।

3॰ रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं, जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें `जय गणेश काटो कलेश´।

4॰ सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की `कुशा´ की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के पश्चात् किसी शुभ कार्य में दानादि दें।

5॰ व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें- सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें -“हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना।´´ सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।

6॰ सिन्दूर लगे हनुमान जी की मूर्ति का सिन्दूर लेकर सीता जी के चरणों में लगाएँ। फिर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना निवेदित कर भक्ति पूर्वक प्रणाम कर वापस आ जाएँ। इस प्रकार कुछ दिन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है।

7॰ किसी शनिवार को, यदि उस दिन `सर्वार्थ सिद्धि योग’ हो तो अति उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी सूत नाप लें। फिर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्वच्छ जल से धोकर पोंछ लें। तब पत्ते पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी सूत लपेट दें और पत्ते को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और कामनाओं की पूर्ति होती है।

८॰ रविवार पुष्य नक्षत्र में एक कौआ अथवा काला कुत्ता पकड़े। उसके दाएँ पैर का नाखून काटें। इस नाखून को ताबीज में भरकर, धूपदीपादि से पूजन कर धारण करें। इससे आर्थिक बाधा दूर होती है। कौए या काले कुत्ते दोनों में से किसी एक का नाखून लें। दोनों का एक साथ प्रयोग न करें।

9॰ प्रत्येक प्रकार के संकट निवारण के लिये भगवान गणेश की मूर्ति पर कम से कम 21 दिन तक थोड़ी-थोड़ी जावित्री चढ़ावे और रात को सोते समय थोड़ी जावित्री खाकर सोवे। यह प्रयोग 21, 42, 64 या 84 दिनों तक करें।

10॰ अक्सर सुनने में आता है कि घर में कमाई तो बहुत है, किन्तु पैसा नहीं टिकता, तो यह प्रयोग करें। जब आटा पिसवाने जाते हैं तो उससे पहले थोड़े से गेंहू में 11 पत्ते तुलसी तथा 2 दाने केसर के डाल कर मिला लें तथा अब इसको बाकी गेंहू में मिला कर पिसवा लें। यह क्रिया सोमवार और शनिवार को करें। फिर घर में धन की कमी नहीं रहेगी।

11॰ आटा पिसते समय उसमें 100 ग्राम काले चने भी पिसने के लियें डाल दिया करें तथा केवल शनिवार को ही आटा पिसवाने का नियम बना लें।

12॰ शनिवार को खाने में किसी भी रूप में काला चना अवश्य ले लिया करें।

13॰ अगर पर्याप्त धर्नाजन के पश्चात् भी धन संचय नहीं हो रहा हो, तो काले कुत्ते को प्रत्येक शनिवार को कड़वे तेल (सरसों के तेल) से चुपड़ी रोटी खिलाएँ।

14॰ संध्या समय सोना, पढ़ना और भोजन करना निषिद्ध है। सोने से पूर्व पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए, किन्तु गीले पैर नहीं सोना चाहिए। इससे धन का क्षय होता है।

15॰ रात्रि में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात्रि भोज में नहीं करना चाहिये।

16॰ भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर के करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए।

17॰ सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।

18॰ घर में देवी-देवताओं पर चढ़ाये गये फूल या हार के सूख जाने पर भी उन्हें घर में रखना अलाभकारी होता है।

19॰ अपने घर में पवित्र नदियों का जल संग्रह कर के रखना चाहिए। इसे घर के ईशान कोण में रखने से अधिक लाभ होता है।

20॰ रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो, तब गूलर के वृक्ष की जड़ प्राप्त कर के घर लाएं। इसे धूप, दीप करके धन स्थान पर रख दें। यदि इसे धारण करना चाहें तो स्वर्ण ताबीज में भर कर धारण कर लें। जब तक यह ताबीज आपके पास रहेगी, तब तक कोई कमी नहीं आयेगी। घर में संतान सुख उत्तम रहेगा। यश की प्राप्ति होती रहेगी। धन संपदा भरपूर होंगे। सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी।

राजगुरु जी

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...