Monday, February 6, 2017

नवग्रह दोष निवारण (छिन्नमस्ता साधना).










नाथ पंथ सहित बौद्ध मताब्लाम्बी भी देवी की उपासना करते हैं, भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा वैभव की प्राप्ति, बाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है, इनकी सिद्धि हो जाने पर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता, दस महाविद्यायों में प्रचंड चंड नायिका के नाम से व बीर रात्रि कह कर देवी को पूजा जाता है



देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है छिन्नमस्ता देवी शत्रु नाश की सबसे बड़ी देवी हैं,भगवान् परशुराम नें इसी विद्या के प्रभाव से अपार बल अर्जित किया था,गुरु गोरक्षनाथ की सभी सिद्धियों का मूल भी देवी छिन्नमस्ता ही है.देवी नें एक हाथ में अपना ही मस्तक पकड़ रखा हैं  और
दूसरे हाथ में खडग धारण किया है देवी के गले में मुंडों की माला है व दोनों और
सहचरियां हैं देवी आयु, आकर्षण,धन,बुद्धि मे वृद्धि एवं रोगमुक्ति व शत्रुनाश विशेष रूप से करती है.

देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है.

स्तुति:-

ll छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम, प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम, पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम, दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम, दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम, अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम, डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत: ll

देवी की कृपा से साधक मानवीय सीमाओं को पार कर देवत्व प्राप्त कर लेता है.गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए देवी योगमयी हैं ध्यान समाधी द्वारा भी इनको प्रसन्न किया जा सकता है.

इडा पिंगला सहित स्वयं देवी सुषुम्ना नाड़ी हैं जो कुण्डलिनी का स्थान हैं.देवी के भक्त को मृत्यु भय नहीं रहता वो इच्छानुसार जन्म ले सकता है.देवी की मूर्ती पर रुद्राक्षनाग केसर व रक्त चन्दन चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है.महाविद्या छिन्मस्ता के मन्त्रों से होता है आधी व्यादी सहित बड़े से बड़े दुखों का नाश कर देती है.


श्रीभैरवतन्त्र में कहा गया है कि इनकी आराधना से साधक जीवभाव से मुक्त होकर शिवभाव को प्राप्त कर लेता है.

साधना विधि:-

सर्वप्रथम देवी का प्रचंड चंडिका मंत्र "ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा" को बोलते हुए अपने शरीर पर साधना मे बैठकर पानी के छीटे लगाये.
फिर नवग्रह दोष निवारण हेतु माँ से प्रार्थना करे और दीये हुए मंत्र का जाप मंगलवार से नित्य नौ दिनो तक ग्यारह माला (रुद्राक्ष माला) जाप करे.दिशा-उत्तर,आसन-वस्त्र-लाल रंग के,समय रात्री मे 9 बजे के बाद और दसवे दिन 108 बार घी की आहुति  मंत्र बोलकर देना है.
यह विधान पूर्ण होते-होते ही साधक को कई अनुभुतिया होती है परंतु घबराना नही चाहिये.साधना समाप्ती के बाद नवग्रह दोष का निवारण होता है.

माँ छिन्नमस्ता नवग्रहदोष निवारण मंत्र:-

llॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुमll

(om shreem hreem aim kleem vam vajravairochiniye hoom)

मंत्र जाप के बाद देवी की स्तुती करे जो दि हुयी है.मंत्र का सही उच्चारण करने से ही लाभ प्राप्त होगा अन्यथा नही होगा.साधना काल मे ज्यादा से ज्यादा मौन रहेने से तीव्र अनुभुतिया प्राप्त होती है,हवन के समय मंत्र के आखरी मे "स्वाहा" लगाना नही भूलना चाहिये.

माँ चिंतापुरिनी आपका भला करे.....

राज गुरु जी

महाविद्या आश्रम

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