Thursday, February 23, 2017

यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है तो परिश्रम तो करना ही होगा। किसी को दो दिन में तारा चाहिए,तो किसी को ९ दिन में छिन्नमस्ता,किसी को ५ दिन में मातंगी सिद्ध करना है तो,किसी को ११ दिन में भुवनेश्वरी। कितनी बचकानी बात है.

हर साधना कि एक विशेष प्रक्रिया होती है जिससे होकर प्रत्येक साधक को गुजरना ही पड़ता है. और अगर बात महाविद्या कि हो तो ये कार्य और भी कठिन हो जाता है.

इसमें तो और भी अधिक परिश्रम करना होता है. कई कई मंत्रो को क्रमशः सिद्ध करना होता है,कई कई अनुष्ठान करने होते है.जब हम आपको ये प्रक्रिया बताते है तो आपको लगता है कि हम टाल रहे है.इस बात पर में कोई सफाई नहीं दूंगा।यदि महाविद्या सिद्धि कि और बढ़ना है तो परिश्रम करना सीखे।

अन्यथा जो दो या तीन दिन में सिद्ध करवा दे आलसी लोग उनके पास जा सकते है.कम से कम मेरा कार्य भार कम होगा। और मुझे भी पता चल जायेगा कि तारा २ दिन में और काली ११ दिन में कैसे सिद्ध होती है.मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को पीड़ित करना नहीं है.अगर किसी को दुःख हुआ हो तो हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी हु.

परन्तु कभी कभी व्यर्थ का रोग मिटाने के लिए कड़वे वचनो कि औषधि आवश्यक हो जाती है.

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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