Tuesday, February 28, 2017

 प्रेट सिद्धी

हमारे चारों ओर फैला ब्रह्मांड हवा और धुएं का केन्द्र मात्र नहीं है, अपितु इसमें निहित है ऐसे रहस्य और ऐसा ज्ञान जिसका अगर एक अंश मात्र भी यदि किसी की भी समझ में आ जाये तो उसकी जीवन धारा ही बदल जाती है!!!!

 क्योंकि ब्रह्मांडीय ज्ञान कोई कोरी कपोल कल्पना ना हो के इस समस्त चराचर विश्व की उत्पत्ति और विध्वंस का करोडों बार साक्षी बन चुका है और जब तक सृजन और संहार का क्रम चलता रहेगा इस ब्रह्मांडीय ज्ञान में इजाफा होता जायेगा.......पर यह ज्ञान हम किताबों से या बड़े बड़े ग्रंथो को पढ़ कर प्राप्त नहीं कर सकते...किन्तु यह ग्रंथ उस ज्ञान को कुछ हद तक समझने में हमारी संभव सहायता जरूर करते हैं.

परमसत्ता अपना ज्ञान देने में कभी कोई कोताहि नहीं करती पर उसके लिए मात्र एक ही शर्त है की आप में पात्रता होनी चाहिए. ब्रह्मांडीय ज्ञान को हम दो तरह से अर्जित कर सकते हैं



१) आगम स्तर

 २) निगम स्तर

 !!!!

 आगम ६४ तरह के तांत्रिक ज्ञान पर आधारित है और निगम वेदों पर निर्भर करता है.....खैर निगम ज्ञान या वेद शास्त्र यहाँ हमारा विषय नहीं है तो हम बात करते हैं तंत्र ज्ञान की जिसे गुहा ज्ञान या रहस्यमय ज्ञान भी कहते हैं.

 क्योंकि तंत्र कोई चिंतन-मनन करने वाली विचार प्रणाली नहीं है या यूँ कहें की तंत्र कोई दर्शन शास्त्र नहीं है यह शत प्रतिशत अनुभूतियों पर आधारित है.

अब जब अनुभूतियों की बात करते हैं तो एक साधक साधना करते समय तीन तरह की अनुभूतियों का अनुभव करता है –

१) साधना के प्रथम स्तर पर उसे अपनी इन्द्रियों का बोध होता है जिसे हम ऐसे समझते हैं की हाथ पैर दुःख रहे हैं.....आसन पर बैठा नहीं जाता.

२) दूसरे स्तर पर हमें उस दूसरे की अनुभूति होती है जिसे हम सिद्ध कर रहे होते हैं या जिसका आवाहन किया जा रहा होता है.

३) अंतिम अनुभूति होती है उस अलौकिक, अखंड परम सत्ता की जिसे हम समाधि की अवस्था कहते हैं.

पर यहाँ हम बात कर रहे हैं प्रेत सिद्धि की तो वो दूसरे स्तर की अनुभूति है. यदि आप सब को याद होगा तो पिछले लेख में हमने पढ़ा था की प्रेत जिस लोक में रहते हैं उसे वासना लोक कहते हैं और वासना जितनी गहन होगी उतना ही अधिक समय लगेगा आत्मा को प्रेत योनि से मुक्त हो के सूक्ष्म योनि प्राप्त करने में और साथ ही साथ हमने यह भी समझा था की इन प्रेतों और पिशाचों का भू लोक पर आने वाला मार्ग महावासना पथ कहलाता है किसका महादिव्योध मार्ग से एकीकरण पृथ्वी के केन्द्र में होता है.......

पर हमने तब यह तथ्य नहीं समझा था की पृथ्वी के केन्द्र में ही यह दोनों मार्ग क्यों मिलते हैं कहीं और क्यों नहीं तो इसका एक सीधा सरल उत्तर यह है की भू के गर्भ में अर्थात उसके केन्द्र में ऊर्जा का घ्न्तत्व सबसे अधिक मात्रा में होता है या यूँ कहें की केन्द्र में कहीं ओर की तुलना में गुरुत्वाकर्षण की क्रिया सबसे ज्यादा होती है और इसी गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण ही प्रेत योनियाँ भू लोक की तरफ खींची चली आती हैं.

इस प्रयोग के विधान को समझने से पहले या ये प्रयोग करने से पहले आपको दो अति महत्वपूर्ण बातों को अपने ज़हन में रखना होगा –

१) यह साधना प्रेत प्रत्यक्षीकरण साधना है तो हम ये भी जानते हैं की यदि आपने उसे प्रत्यक्ष करके सिद्ध कर लिया तो वो आपके द्वारा दिए गए हर निर्देश का पालन करेगा किन्तु उससे यह सब करवाने के लिए आपको अपने संकल्प के प्रति दृढ़ता रखनी पड़ेगी अर्थात आपको पूरे मन, वचन और क्रम से ये साधना करनी पड़ेगी, क्योंकि जहाँ आप कमजोर पड़े आपकी साधना उसी एक क्षण विशेष पर खत्म हो जायेगी......

और हाँ एक बात और अब चूंकी ये योनियाँ मंत्राकर्षण की वजह से आपकी तरफ आकर्षित होती है तो यथा संभव कोशिश करें की यदि आपने आसन सिद्ध किया हुआ है तो आप उसी आसन पर बैठ कर इस प्रयोग को करें... क्योंकि वो आसन भू के गुरुत्व बल से आपका सम्पर्क तोड़ देता है.

२) हम में से बहुत कम लोग यह बात जानते है की दिन के २४ घंटों में एक क्षण ऐसा भी होता है जब हमारी देह मृत्यु का आभास करती है अर्थात यह क्षण ऐसा होता है जब हमारी सारी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती है और ह्रदय की गति रुक जाती है....

रोज मरा की दिनचर्या में यह पल कौन सा होता है और कब आता है यह तो बहुत आगे का विधान है पर इस प्रयोग को करते समय यह पल तब आएगा जब आप साधना सम्पूर्णता की कगार पर होंगे तो आपको उस समय खुद के डर पर नियंत्रण करते हुए उस मूक संकेत को समझना है......वो जिसका कोई अस्तित्व नहीं है उसके अस्तित्व को पहचानते हुए उसकी मूल पद ध्वनि को सुनना है.

विधान –

मूलतः ये साधना मिश्रडामर तंत्र से सम्बंधित है.
अमावस्या की मध्य रात्रि का प्रयोग इसमें होता है,अर्थात रात्रि के ११.३० से ३ बजे के मध्य इस साधना को किया जाना उचित होगा.

वस्त्र व आसन का रंग काला होगा.

दिशा दक्षिण होगी.

वीरासन का प्रयोग कही ज्यादा सफलतादायक है.

नैवेद्य में काले तिलों को भूनकर शहद में मिला कर लड्डू जैसा बना लें,साथ ही उडद के पकौड़े या बड़े की भी व्यवस्था रखें और एक पत्तल के दोनें या मिटटी के दोने में रख दें..

दीपक सरसों के तेल का होगा.

बाजोट पर काला ही वस्त्र बिछेगा,और उस पर मिटटी का पात्र स्थापित करना है जिसमें यन्त्र का निर्माण होगा.

रात्रि में स्नान कर साधना कक्ष में आसन पर बैठ जाएँ.

 गुरु पूजन,गणपति पूजन,और भैरव पूजन संपन्न कर लें. रक्षा विधान हेतु कवच का ११ पाठ अनिवार्य रूप से कर लें.

अब उपरोक्त यन्त्र का निर्माण अनामिका ऊँगली या लोहे की कील से उस मिटटी के पात्र में कर दें और उसके चारों और जल का एक घेरा मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए कर बना दें,अर्थात छिड़क दें.

और उस यन्त्र के मध्य में मिटटी या लोहे का तेल भरा दीपक स्थापित कर प्रज्वलित कर दें.और भोग का पात्र जो दोना इत्यादि हो सकता है या मिटटी का पात्र हो सकता है.उस प्लेट के सामने रख दें.

अब काले हकीक या रुद्राक्ष माला से ५ माला मंत्र जप निम्न मंत्र की संपन्न करें.मंत्र जप में लगभग ३ घंटे लग सकते हैं.

मंत्र जप के मध्य कमरे में सरसराहट हो सकती है,उबकाई भरा वातावरण हो जाता है,एक उदासी सी चा सकती है.

कई बार तीव्र पेट दर्द या सर दर्द हो जाता है और तीव्र दीर्घ या लघु शंका का अहसास होता है.

दरवाजे या खिडकी पर तीव्र पत्रों के गिरने का स्वर सुनाई दे सकता है,इनटू विचलित ना हों.किन्तु साधना में बैठने के बाद जप पूर्ण करके ही उठें.

क्यूंकि एक बार उठ जाने पर ये साधना सदैव सदैव के लिए खंडित मानी जाती है और भविष्य में भी ये मंत्र दुबारा सिद्ध नहीं होगा.

जप के मध्य में ही धुएं की आकृति आपके आस पास दिखने लगती है.

जो जप पूर्ण होते ही साक्षात् हो जाती है,और तब उसे वो भोग का पात्र देकर उससे वचन लें लें की वो आपके श्रेष्ट कार्यों में आपका सहयोग ३ सालों तक करेगा,और तब वो अपना कडा या वस्त्र का टुकड़ा आपको देकर अदृश्य हो जाता है,और जब भी भाविओश्य में आपको उसे बुलाना हो तो आप मूल मंत्र का उच्चारण ७ बार उस वस्त्र या कड़े को स्पर्श कर एकांत में करें,वो आपका कार्य पूर्ण कर देगा.

 ध्यान रखिये अहितकर कार्यों में इसका प्रयोग आप पर विपत्ति ला देगा.जप के बाद पुनः गुरुपूजन,इत्यादि संपन्न कर उठ जाएँ और दुसरे दिन अपने वस्त्र व आसन छोड़कर,वो दीपक,पात्र और बाजोट के वस्त्र को विसर्जित कर दें.

 कमरे को पुनः स्वच्छ जल से धो दें और कवच का उच्चारण करते हुए गंगाजल छिड़क कर गूगल धुप दिखा दें.

मंत्र:-

इरिया रे चिरिया,काला प्रेत रे चिरिया.पितर की शक्ति,काली को गण,कारज करे सरल,धुंआ सो बनकर आ,हवा के संग संग आ,साधन को साकार कर,दिखा अपना रूप,शत्रु डरें कापें थर थर,कारज मोरो कर रे काली को गण,जो कारज ना करें शत्रु ना कांपे तो दुहाई माता कालका की.काली की आन.

मुझे आशा है की आप इस अहानिकर प्रयोग के द्वारा लाभ और हितकर कारों को सफलता देंगे. भय को त्याग कर तीव्रता को आश्रय दें

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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अष्ट यक्षिणी साधना

जीवन में रस आवश्यक है,जीवन में सौन्दर्य आवश्यक है,जीवन में आहलाद आवश्यक है,जीवन में सुरक्षा आवश्यक है,ऐसे श्रेष्ठ जीवन के लिए संपन्न करें———-

बहुत से लोग यक्षिणी का नाम सुनते ही डर जाते हैं कि ये बहुत भयानक होती हैं, किसी चुडैल कि तरह, किसी प्रेतानी कि तरह, मगर ये सब मन के वहम हैं। यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है।

देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर स्वयं भी यक्ष जाती के ही हैं। यक्षिणी साधना का साधना के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ है। यक्षिणी प्रेमिका मात्र ही होती है, भोग्या नहीं, और यूं भी कोई स्त्री भोग कि भावभूमि तो हो ही नहीं सकती, वह तो सही अर्थों में सौन्दर्य बोध, प्रेम को जाग्रत करने कि भावभूमि होती है।

यद्यपि मन का प्रस्फुटन भी दैहिक सौन्दर्य से होता है किन्तु आगे चलकर वह भी भावनात्मक रूप में परिवर्तित होता है या हो जाना चाहिए और भावना का सबसे श्रेष्ठ प्रस्फुटन तो स्त्री के रूप में सहगामिनी बना कर एक लौकिक स्त्री के सन्दर्भ में सत्य है तो क्यों नहीं यक्षिणी के संदर्भ में सत्य होगी? वह तो प्रायः कई अर्थों में एक सामान्य स्त्री से श्रेष्ठ स्त्री होती है।

तंत्र विज्ञान के रहस्य को यदि साधक पूर्ण रूप से आत्मसात कर लेता है, तो फिर उसके सामाजिक या भौतिक समस्या या बाधा जैसी कोई वस्तु स्थिर नहीं रह पाती। तंत्र विज्ञान का आधार ही है, कि पूर्ण रूप से अपने साधक के जीवन से सम्बन्धित बाधाओं को समाप्त कर एकाग्रता पूर्वक उसे तंत्र के क्षेत्र में बढ़ने के लिए अग्रसर करे।

साधक सरलतापूर्वक तंत्र कि व्याख्या को समझ सके, इस हेतु तंत्र में अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं, जिनमे अत्यन्त गुह्य और दुर्लभ साधानाएं वर्णित है। साधक यदि गुरु कृपा प्राप्त कर किसी एक तंत्र का भी पूर्ण रूप से अध्ययन कर लेता है, तो उसके लिए पहाड़ जैसी समस्या से भी टकराना अत्यन्त लघु क्रिया जैसा प्रतीत होने लगता है।

साधक में यदि गुरु के प्रति विश्वास न हो, यदि उसमे जोश न हो, उत्साह न हो, तो फिर वह साधनाओं में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। साधक तो समस्त सांसारिक क्रियायें करता हुआ भी निर्लिप्त भाव से अपने इष्ट चिन्तन में प्रवृत्त रहता है।

ऐसे ही साधकों के लिए ‘उड़ामरेश्वर तंत्र’ मे एक अत्यन्त उच्चकोटि कि साधना वर्णित है, जिसे संपन्न करके वह अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है तथा अपने जीवन में पूर्ण भौतिक सुख-सम्पदा का पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकता है।

‘अष्ट यक्षिणी साधना’ के नाम से वर्णित यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों, जो साधक के जीवन में सम्पूर्णता का उदबोध कराती हैं, की ये है।

ये प्रमुख यक्षिणियां है -

1. सुर सुन्दरी यक्षिणी २. मनोहारिणी यक्षिणी 3. कनकावती यक्षिणी 4. कामेश्वरी यक्षिणी

5. रतिप्रिया यक्षिणी 6. पद्मिनी यक्षिणी 6. नटी यक्षिणी 8. अनुरागिणी यक्षिणी

प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होती है, अतः साधक को चाहिए कि वह आठों यक्षिणियों को ही सिद्ध कर लें।

सुर सुन्दरी यक्षिणी

यह सुडौल देहयष्टि, आकर्षक चेहरा, दिव्य आभा लिये हुए, नाजुकता से भरी हुई है। देव योनी के समान सुन्दर होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है। सुर सुन्दरी कि विशेषता है, कि साधक उसे जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होता ही है – चाहे वह माँ का स्वरूप हो, चाहे वह बहन का या पत्नी का, या प्रेमिका का। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है।

मनोहारिणी यक्षिणी

अण्डाकार चेहरा, हरिण के समान नेत्र, गौर वर्णीय, चंदन कि सुगंध से आपूरित मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहन बना देती है, कि वह कोई भी, चाहे वह पुरूष हो या स्त्री, उसके सम्मोहन पाश में बंध ही जाता है। वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट कराती है।

कनकावती यक्षिणी

रक्त वस्त्र धारण कि हुई, मुग्ध करने वाली और अनिन्द्य सौन्दर्य कि स्वामिनी, षोडश
वर्षीया, बाला स्वरूपा कनकावती यक्षिणी है। कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने कि क्षमता प्राप्त कर लेता है। यह साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है।

कामेश्वरी यक्षिणी

सदैव चंचल रहने वाली, उद्दाम यौवन युक्त, जिससे मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है। साधक का हर क्षण मनोरंजन करती है कामेश्वरी यक्षिणी। यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख कि कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में साधक कि कामना करती है। साधक को जब भी द्रव्य कि आवश्यकता होती है, वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है।

रति प्रिया यक्षिणी

स्वर्ण के समान देह से युक्त, सभी मंगल आभूषणों से सुसज्जित, प्रफुल्लता प्रदान करने वाली है रति प्रिया यक्षिणी। रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है। साधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य कि उपलब्धि होती है।

पदमिनी यक्षिणी

कमल के समान कोमल, श्यामवर्णा, उन्नत स्तन, अधरों पर सदैव मुस्कान खेलती रहती है, तथा इसके नेत्र अत्यधिक सुन्दर है। पद्मिनी यक्षिणी साधना साधक को अपना सान्निध्य नित्य प्रदान करती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान कराती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति कि और अग्रसर करती है।

नटी यक्षिणी

नटी यक्षिणी को ‘विश्वामित्र’ ने भी सिद्ध किया था। यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार कि विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है।

अनुरागिणी यक्षिणी

अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है। साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है तथा साधक की इच्छा होने पर उसके साथ उल्लास करती है।

अष्ट यक्षिणी साधना को संपन्न करने वाले साधक को यह साधना अत्यन्त संयमित होकर करनी चाहिए। समूर्ण साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। साधक यह साधना करने से पूर्व यदि सम्भव हो तो ‘अष्ट यक्षिणी दीक्षा’ भी लें। साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें तथा मानसिक रूप से निरंतर गुरु मंत्र का जप करते रहे। यह साधना रात्रिकाल में ही संपन्न करें। साधनात्मक अनुभवों की चर्चा किसी से भी नहीं करें, न ही किसी अन्य को साधना विषय में बतायें। निश्चय ही यह साधना साधक के जीवन में भौतिक पक्ष को पूर्ण करने मे अत्यन्त सहायक होगी, क्योंकि अष्ट यक्षिणी सिद्ध साधक को जीवन में कभी भी निराशा या हार का सामना नहीं करना पड़ता है। वह अपने क्षेत्र में अद्वितीयता प्राप्त करता ही है।

साधना विधान

इस साधना में आवश्यक सामग्री है –

८ अष्टाक्ष गुटिकाएं तथा अष्ट यक्षिणी सिद्ध यंत्र एवं ‘यक्षिणी माला’। साधक यह साधना किसी भी शुक्रवार को प्रारम्भ कर सकता है। यह तीन दिन की साधना है। लकड़ी के बजोट पर सफेद वस्त्र बिछायें तथा उस पर कुंकुम से निम्न यंत्र बनाएं।

फिर उपरोक्त प्रकार से रेखांकित यंत्र में जहां ‘ह्रीं’ बीज अंकित है वहां एक-एक अष्टाक्ष गुटिका स्थापित करें। फिर अष्ट यक्षिणी का ध्यान कर प्रत्येक गुटिका का पूजन कुंकूम, पुष्प तथा अक्षत से करें। धुप तथा दीप लगाएं। फिर यक्षिणी से निम्न मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमानुसार दिए गए हुए आठों यक्षिणियों के मंत्रों की एक-एक माला जप करें। प्रत्येक यक्षिणी मंत्र की एक माला जप करने से पूर्व तथा बाद में मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। उदाहरणार्थ पहले मूल मंत्र की एक माला जप करें, फिर सुर-सुन्दरी यक्षिणी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमशः प्रत्येक यक्षिणी से सम्बन्धित मंत्र का जप करना है। ऐसा तीन दिन तक नित्य करें।

मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र

॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः ॥

सुर सुन्दरी मंत्र

॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥

मनोहारिणी मंत्र

॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥

कनकावती मंत्र

॥ ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥

कामेश्वरी मंत्र

॥ ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥

रति प्रिया मंत्र

॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥

पद्मिनी मंत्र

॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥

नटी मंत्र

॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥

अनुरागिणी मंत्र

॥ ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥

मंत्र जप समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में ही सोयें। अगले दिन पुनः इसी प्रकार से साधना संपन्न करें, तीसरे दिन साधना साधना सामग्री को जिस वस्त्र पर यंत्र बनाया है, उसी में बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Monday, February 27, 2017

भैरवी साधना:-

भैरवी साधना एक उचकोटी का साधना है।सस्त्र मे 64 भैरवी का उलेख मिलता है।हर भैरवी आलग आलग सक्ति का आधिकारी है।साधक आगर भैरवी का साधना करता है तो जिवन मेँ वह हर तारफ सफलता का डंका वाजाता है।मेरा मानोँ तो भैरवी साधना से बाढकार कोई और साधना नही है।

 दुनिया मेँ जिधार भी देखोँ भैरव के साथ एक भैरवी होति है।आपनी माता पिता को देखो।भैरव का जिवन तब तक पुर्ण नही है जब तक एक भैरवी उसकि साथ ना हो। एक बार मेँ चाय के दुकान मेँ मेरे मित्र के साथ चाय पि राहा था।बात करते करते मिरा मित्र मुझकोँ बोला तंत्रकिक आज हम फलना के घर चालते है, मेने बोल कियु बो बोला यार चाल तो हम दोनो मेरे दोस्त का दोस्त के घर कुछ समय बाद चाले गाये।

कुछ दिन बाद मे फिर से बह चाय के दिकान मे चाय पिने गया तो एक आंजान लडका मिला बह मुझ से बात करते करते बोला किया आपके पास दस मिनिँट है कुछ बात करना था।मेने बोला है ,किया बात है बोलो ,बो बोला मांदिर चालते है बाहा बात करते है .मेने हा बोला चालो।मिरा और उसका चाय का पैसा वो लडका चाय बाला को चुकुता किया।

मांदिर मेँ एक पेड के नेचे दोनो बेठ गाये और मेने बोला आब बोलो किया बात है।बह बोला मे उसदिन आप दोनो का बाते सुन राहा था किया आप जादु जानते है।मेने बोला लागभाग थडा बहुत।उसके बाद उसने आपना दु:ख भारे दास्तान सुनाया और बोला किया आप मुझको ईससे मुक्ति दे साकते है, मेने बोला ना फिर भी तुम चाह तो एक तारिका मेरे पास है, किया तुम कर साकते हो ।वो बोला कुछ भी करुगा आप बाताए किया करना है।

मेने सिद्ध भैरबी का मंत्र दिया और बोला केसे करना है। कुछ दिन के बाद बो लडका को नौकरी मिल गया ईसके साथ छोटि वाहेन और छोटा भाई को भी नौकरी बैँक मेँ मिला।आज उनके पास एक आलिशान घर है कार दोलोत सब है। जाब वो लडका मुझसे मिलता है बो रो पाडता है और बोलता है आप मेरे जिंदेगी बादल दिया, मे बोलता हु ए तुमहरा मेहनत का नातिजा है।आज वो तिनो बिवाह कर चुके हे और तोनो के दो दो बाच्चे भी है। सिद्ध भैरवी साधना ए आसान साधना है।

कोई भी आराम से कर साकता है।

विधि-

सिद्ध भैरवी यंत्र।सिद्ध भैरवी मुद्रिका।सिद्ध भैरवी माला।गाले मे रुद्राक्ष माला धारण करना है।शुक्रवार से साधना आरंभ करना है।साफेद कपडा परिधान कर के यंत्र को धुप, दिप, फुल,संदुर और अक्षत से पुजा करना है।

 सफेद आसान मे वैठ कर दक्षिण दिशा मे मुख कर मंत्र को 21 माला जाप करे।

 मंत्र-

ॐ हुं फट वज्र सिद्ध भैरवी आलकिक आलकिक सक्ति सक्ति सिद्धि सिद्धि प्रविश प्रविश हु फट।

यह मंत्र कुछ ही समय मे आसार दिखाना सुरु कर देता है।माथे मे दर्द होता है।यह ईसलिय होता है, आज्ञाचक्र जागुत होना प्रथम दिन से आरंभ हो जाता है।

 आप पायगे कुछ दिन मे आपका हर काम ठिक होता जाएगा। जो पाने का कामना हो वह सपना शाच होने लागगे। माला को कामना पुरी होने पर नदि पर विर्शजित कर दे या फिर देवि भैरवी के दर्शन देने तक रख ले।

जाप प्रतिदिन करते राहे।य मेरा रचना मंत्र है ईस मंत्र का गुरु मे हु।ए सिद्ध मंत्र है।

दुसरा विधि-

विना माला के सिर्फ एक घंटा जाप करते राहे और ईसका दिव्यता देखे।

राज गुरु जी

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Friday, February 24, 2017

हाजरात साधना

यह विधान सनातन धर्म पर आधारित है। जैसे आज तक आपने सुना होगा सुलेमानी हाजरात जो इस्लाम पर अाधारित है। पर यह साधना हिन्दू देवी/देवता से सम्बंधित है। इस मे मेहनत बहोत है,परन्तु फल प्राप्ति अवश्य  है।

 यह विधान चन्द्र/सूर्य ग्रहण पर करने से पूर्ण सफलता मिलती है। हाजरात एक क्रिया है, जिस के माध्यम से हम भूत भविष्य की  घटना देख सकते है। और अदृश्य शक्तियोको भी देख सकते है। बहोत से ऐसे कार्य होते है,जिनमे हमे भूतकाल और भविषयकाल मे होनेवाली घटना का ज्ञान होना आवश्यक होता है। यह साधना ग्रहण काल  मे सम्पन करना  है।

आज कल लोगो ने हाजरात के नाम पर लूटना शुरू कर दिया है, और जिनको सिद्ध हुवा है,उनकी तो रोजी रोटी बन गया है।
यह विधान यह विषय उत्तम है, इसे अन्य भाषा मे " कजली लगाना " कहते है, कुछ लोग " अंजन " भी बोलते है।

पर यह विधान हाजरात नाम से प्रचलित है,इस क्रिया से आप स्वयम अपने आँखों मे या अंगूठे पर काजल लगाकर देख सकते है और देवता का आवाहन भी कर सकते है,ताकि आपकी परेशानिया दूर हो। यह मेरे तरफ  से साधना गिफ्ट है।

 नवरात्रि के शुभ अवसर पर। इसमे सबसे खास है हाजरात सुमेरु मंत्र जिसके माध्यम से आप हाजरात साधना मे सफल हो जाये। परन्तु आप की मेहनत ,विश्वास और धैर्य जरुरी है,वैसे तो यह प्रत्येक साधनामे जरुरी है इसमे दूसरा मंत्र हाजरात  सिद्धि का होता है।

यह एक  दुर्लभ साधना है, जिसे प्राप्त करना ही उत्तम माना जाता है। इस साधना का पूर्ण विधान नवरात्री  बाद इसी लेख मे मिलेंगा  अब नवरात्री चल रही है,और मै नहीं चाहता हु अभी आपके  साधना मे व्यत्यय आये।

बस थोडासा इन्तेजार करे, और यह महत्वपूर्ण साधना  सभी करे। ऐसा साधना पहिले बार प्रामाणिक विधान के साथ दिया जा रहा है। यह साधना सभी के लिए जरुरी है, और आप प्रत्यक्ष लाभ उठाये यही मैं कामना करता हु।

सब्र का फल मीठा होता है।

हाजरात मेरु मंत्र :-

॥ ओम ह्रीं श्रीं क्लीं हाजरात सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा ॥


साधना विधि :-

ग्रहण मे १० माला जप और १०८ आहुति घी का देने से मंत्र सिद्ध होता है

हाजरात भराने का मंत्र :-

॥ ॐ नम: उमा महेश गणेश,गुरु ब्रम्हा ,विष्णु फणीश,विष्णु-रूप हिए धारु धारु धारु धारु शिवजी को ध्यान,हाजरात कुरु नाम: हाजरात कुरु नाम: हाजरात कुरु नम:॥

साधना विधि:-

ग्रहण काल मे १० माला जाप से सिद्धि मिलती है। काजल बनाने के लीये कोई समय चुने जैसे अमावश्या

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Thursday, February 23, 2017

इतर योनि अवलोकन साधना

मित्रों !!!! इस अनन्त ब्रह्मांड में मनुष्य अकेला नहीं है जिसका निर्माण भगवान द्वारा किया गया है । पेड़-पौधे, पशु- पक्षियों के इलावा कोई और भी है जो हमारी ही दुनिया में रहतीं हैं पर हमें दिखतीं नहीं । उनका हमें ज्ञान तो है पर प्रमाण नहीं । परंतु!! यदा-कदा वो किसी के सामने आ भी जाएँ , तो कौन यकीन करता है भाई!! क्योंकि दुनिया कहती है आँखों से देखी बात ही सत्य है ।

 लेकिन आज की प्रस्तुत साधना आपको पूरा यकीन दिलाने के लिए है की हमारे इलावा और भी कोई है जो अगर हमारे वश में हो जाए तो वो अपनी शक्तिओं द्वारा पूरा जहान हमारे कदमों में लाकर रख सकती हैं । वो हैं इतर योनिआँ । मनुष्य को भगवान ने उसके कर्मों के अनुसार मृत्यु उपरांत कई योनिओं मे विभक्त किया है

जैसे : -

भूत , प्रेत , पिशाच , राक्षस , ब्रह्मराक्षस , देव , यक्ष , गन्धर्व , किन्नर , पितृ , अप्सरा , परि , जिन्नात आदि ॥
साधकों के लिए इन्हें सिद्ध करना किसी भयंकर चुनौती से कम नहीं होता क्योंकि इस संसार में कोई किसी का गुलाम बनकर नहीं रहना चाहता । हर कोई अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करना चाहता है तो ये योनिआँ कैसे यूं ही आपके वश में हो जाएँ ।

ये योनिआँ खुद को आपके वश से बचाने के लिये किसी भी हद तक जा सकतीं हैं । परंतु!! एक बार साधक इन्हें सिद्ध करले तो ये आजीवन साधक को वो सब कुछ देतीं रहती हैं जो साधक चाहता है । आपका वफ़ादार कुत्ता आपको एक बार काट सकता है पर ये योनिआँ अपनी शक्ति का प्रयोग आपके खिलाफ कभी नहीं करतीं । ये अपनी जान पर खेलकर भी आपके उपर आई मुसीबत खुद पर ले लेती हैं ।

परंतु कई मेरे भाई साधक एसे भी हैं जो लाख कोशिश करते हैं किसी इतर योनि को वश में करने की और अन्य साधनाएँ भी करते हैं और बाद में थक हार कर बैठ जाते हैं जब उन्हें कोई अनुभूति नहीं होती ।

 पर आज की यह साधना इतर योनिओं के दर्शन करने के लिए है जिसे अगर कोई नास्तिक भी करे तो वो भी इतर योनिओं के दर्शन कर अपना विश्वास इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड की इन गुप्त शक्तिओं पे दृढ़ कर सकता है ।

 आप खुद इस साधना को करके देखिए और अवलोकन कीजिए उन शक्तिओं का जिनका अस्तित्व अति दिव्य होने के साथ - साथ गोपनीय भी है । पूरी कर लीजिए अपने मन की कामना विभिन्न प्रकार की इतर योनिओं के दर्शन करके क्योंकि तंत्र में शंका का कोई स्थान नहीं है ।

" तंत्र निर्मल है , स्वच्छ है और सबसे महत्वपूर्ण बात कि तंत्र प्रत्यक्ष है । जो भी इसका अनुसरण करेगा वो निश्चित ही समस्त भौतिक सुखों को भोगते हुए अंततः मुझमें विलीन हो जाएगा "॥ एसा भगवान शिव ने कहा है ।

इन योनिओं से आपको भय खाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो खुद भगवान शिव के सान्निधय में रहती हों और बेचैन होकर और किसी के बस में होकर अपनी मुक्ति के लिए तत्पर हों उनसे भय कैसा!!!!!

॥ साधना विधि ॥

दिन - अमावस्या

साधना अवधि - 16 दिन
दिशा - उत्तर
वस्त्र एवं आसन - सफेद
माला - रूद्राक्ष की
साधना समय - रात 10 बजे

साधक को चाहिये कि वो वट वृक्ष की थोड़ी सी जटा जो लमक रही होती है तोड़कर ले आए और उसे अपने साधना कक्ष में बाजोट पर रख दे । याद रखिए उसे धोना बिल्कुल नहीं है । इसके बाद स्नान करे और अपने साधना कक्ष में उत्तर की ओर मुख करके बैठे ।

गुरु पूजन एवं गणेश पूजन सम्पन्न करके उस जटा को अपने बाएँ हाथ में और माला दायें हाथ में पकड़ कर निम्न मंत्र की 11 माला संपन्न करे । इसके बाद किसी से बात किए बिना उस जटा को अपने तकिए के नीचे रखिए और सो जाइये । इससे आपको सपने में एसी - एसी इतर योनिओं के दर्शन होंगे जिनके बारे में आपने किसी किताब में ही पढ़ा या किसी से सिर्फ सुना होगा ॥

॥ मन्त्र ॥

ॐ हूं हूं फट

( OM HOOM HOOM PHAT )

साधक को अगले दिन उस जटा को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए और माला को पुनः प्राण प्रतिष्ठित कर देना चाहिए ताकि भविष्य में अन्य साधनाओं में इसका उपयोग किया जा सके ।

॥ मेरा अनुभव ॥

जब मैंने ये साधना की थी तब एसी - एसी इतर योनिआँ मेरे सामने आ रहीं थी जिनमें से कई के मुँह में से आग निकल रही थी और कई एक छोटे Pipe के समान मुख में लगातार खून और मांस डालतीं जा रहीं थी । इसके पश्चात मुझे अप्सरा , परि और यक्ष एवं अन्य योनिओं के भी दर्शन हुए जो उग्र के साथ - साथ सौम्य भी थीं ।
राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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यदि आप मुझसे कुछ सीखना चाहते है तो परिश्रम तो करना ही होगा। किसी को दो दिन में तारा चाहिए,तो किसी को ९ दिन में छिन्नमस्ता,किसी को ५ दिन में मातंगी सिद्ध करना है तो,किसी को ११ दिन में भुवनेश्वरी। कितनी बचकानी बात है.

हर साधना कि एक विशेष प्रक्रिया होती है जिससे होकर प्रत्येक साधक को गुजरना ही पड़ता है. और अगर बात महाविद्या कि हो तो ये कार्य और भी कठिन हो जाता है.

इसमें तो और भी अधिक परिश्रम करना होता है. कई कई मंत्रो को क्रमशः सिद्ध करना होता है,कई कई अनुष्ठान करने होते है.जब हम आपको ये प्रक्रिया बताते है तो आपको लगता है कि हम टाल रहे है.इस बात पर में कोई सफाई नहीं दूंगा।यदि महाविद्या सिद्धि कि और बढ़ना है तो परिश्रम करना सीखे।

अन्यथा जो दो या तीन दिन में सिद्ध करवा दे आलसी लोग उनके पास जा सकते है.कम से कम मेरा कार्य भार कम होगा। और मुझे भी पता चल जायेगा कि तारा २ दिन में और काली ११ दिन में कैसे सिद्ध होती है.मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को पीड़ित करना नहीं है.अगर किसी को दुःख हुआ हो तो हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थी हु.

परन्तु कभी कभी व्यर्थ का रोग मिटाने के लिए कड़वे वचनो कि औषधि आवश्यक हो जाती है.

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Wednesday, February 22, 2017

बगुलामुखी कवच यन्त्र

आज के इस भागदौड़ के युग में श्री बगलामुखी यंत्र
की साधना अन्य किसी भी साधना से अधिक
उपयोगी है। यह एक परीक्षित और अनुभवसिद्ध
तथ्य है। इसे गले में पहनने के साथ-साथ पूजा घर में
भी रख सकते हैं।

इस यंत्र की पूजा पीले दाने, पीले
वस्त्र, पीले आसन पर बैठकर निम्न मंत्र को
प्रतिदिन जप करते हुए करनी चाहिए। अपनी
सफलता के लिए कोई भी व्यक्ति इस यंत्र का
उपयोग कर सकता है।

इसका वास्तविक रूप में
प्रयोग किया गया है। इसे अच्छी तरह से अनेक
लोगों पर उपयोग करके देखा गया है।

शास्त्रानुसार और वरिष्ठ सड़कों के अनुभव के
अनुसार जिस घर में यह महायंत्र स्थापित होता
है, उस घर पर कभी भी शत्रु या किसी भी
प्रकार की विपत्ति हावी नहीं हो सकती।

 न
उस घर के किसी सदस्य पर आक्रमण हो सकता है, न
ही उस परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो
सकती है। इसीलिए इसे महायंत्र की संज्ञा दी
गई है। इससे दृश्य/अदृश्य बाधाएं समाप्त होती
हैं। यह यंत्र अपनी पूर्ण प्रखरता से प्रभाव
दिखाता है।

 उसके शारीरिक और मानसिक
रोगों तथा ऋण, दरिद्रता आदि से उसे मुक्ति
मिल जाती है। वहीं उसकी पत्नी और पुत्र सही
मार्ग पर आकर उसकी सहायता करते हैं। उसके
विश्वासघाती मित्र और व्यापार में
साझीदार उसके अनुकूल हो जाते हैं।

शत्रुओं के शमन (चाहे बाहरी हो या घरेलू कलह ,
दरिद्रता या शराब / नशे व्यसन रूप में भीतरी
शत्रु ),रोजगार या व्यापार आदि में आनेवाली
बाधाओं से मुक्ति, मुकदमे में सफलता के लिए ,
टोने टोटकों के प्रभाव से बचाव आदि के लिए
किसी साधक के द्वारा सिद्ध मुहूर्त में
निर्मित, बगलामुखी तंत्र से अभिसिंचित तथा
प्राण प्रतिष्ठित श्री बगलामुखी यंत्र घर में
स्थापित करना चाहिए या कवच रूप में धारण
करना चाहिए।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Tuesday, February 21, 2017

श्वेतार्क गणेश साधना

हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को अनेक रूप में पूजा जाता है इनमें से ही एक श्वेतार्क गणपति भी हैं. धार्मिक लोक मान्यताओं में धन, सुख-सौभाग्य समृद्धि ऐश्वर्य और प्रसन्नता के लिए श्वेतार्क के गणेश की मूर्ति शुभ फल देने वाली मानी जाती है.

श्वेतार्क के गणेश आक के पौधे की जड़ में बनी प्राकृतिक बनावट रुप में प्राप्त होते हैं. इस पौधे की एक दुर्लभ जाति सफेद श्वेतार्क होती है जिसमें सफेद पत्ते और फूल पाए जाते हैं  इसी सफेद श्वेतरक की जड़ की बाहरी परत को कुछ दिनों तक पानी में भिगोने के बाद निकाला जाता है तब इस जड़ में भगवान गणेश की मूरत दिखाई देती है.

इसकी जड़ में सूंड जैसा आकार तो अक्सर देखा जा सकता है. भगवान श्री गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि के दाता माना जाता है. इसी प्रकार श्वेतार्क नामक जड़ श्री गणेश जी का रुप मानी जाती है. श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है.

श्वेतार्क की जड़ को तंत्र प्रयोग एवं सुख-समृद्धि हेतु बहुत उपयोगी मानी जाती है. गुरू पुष्य नक्षत्र में इस जड़ का उपयोग बहुत ही शुभ होता है. यह पौधा भगवान गणेश के स्वरुप होने के कारण धार्मिक आस्था को ओर गहरा करता है.

श्वेतार्क गणेश पूजन | Shwetark Ganesha Pujan

श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा को पूर्व दिशा की तरफ ही स्थापित करना चाहिए तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह गणेश मंत्रों का जप करने से सर्वकामना सिद्ध होती है. श्वेतार्क गणेश पूजन में लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करनी चाहिए.  नेवैद्य में लड्डू अर्पित करने चाहिए.

"ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्"

मंत्र का जप करते हुए श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के प्रभावस्वरुप प्रत्यक्ष रूप से इसके शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है.

तन्त्र शास्त्र में भी श्वेतार्क गणपति की पूजा का विशेष विधान बताया गया है. तन्त्र शास्त्र  अनुसार घर में इस प्रतिमा को स्थापित करने से ऋद्धि-सिद्धि  कि प्राप्ति होती है. इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से भक्त को धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा लक्ष्मी जी का निवास होता है.

 इसके पूजन द्वारा शत्रु भय समाप्त हो जाता है. श्वेतार्क प्रतिमा के सामने नित्य गणपति जी का मन्त्र जाप करने से गणश जी  का आशिर्वाद प्राप्त होता है तथा उनकी कृपा बनी रहती है.

श्वेतार्क गणेश महत्व | Significance of Shwetark Ganesha

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ ही श्वेतार्क गणेश जी का पूजन व अथर्वशिर्ष का पाठ करने से बंधन दूर होते हैं और कार्यों में आई रुकावटें स्वत: ही दूर हो जाती हैं. धन की प्राप्ति हेतु श्वेतरक की प्रतिमा को दीपावली की रात्रि में षडोषोपचार पूजन करना चाहिए. श्वेतार्क गणेश साधना अनेकों प्रकार की जटिलतम साधनाओं में सर्वाधिक सरल एवं सुरक्षित साधना है .

श्वेतार्क गणपति समस्त प्रकार के विघ्नों के नाश के लिए सर्वपूजनीय है. श्वेतार्क गणपति की विधिवत स्थापना और पूजन से समस्त कार्य साधानाएं आदि शीघ्र निर्विघ्न संपन्न होते हैं. श्वेतार्क-गणेश के सम्मुख मन्त्र का प्रतिदिन 10 माला ‘जप’ करना चाहिए तथा

 "ॐ नमो हस्ति-मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट-महात्मने आं क्रों ह्रीं क्लीं ह्रीं हुं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा" साधना से सभी इष्ट-कार्य सिद्ध होते हैं.

राजगुरु जी

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Monday, February 20, 2017



अप्सरा रम्भा साधना









जब भी अप्सरा का नाम लिया जाता है तो मन में एक आकर्षक, सुन्दर, मनमोहिनी, जवान और अद्वितीय स्त्री की छवि बन जाती है. एक ऐसी स्त्री जिसको देखकर लगता है कि उसे शक्ति और सुंदरता विरासत में मिली हुई है.


उसमें से ऐसी सुगंध आती है जो सबको उसकी तरफ खिंच लेती है और जिसे देखकर आँखे सिर्फ उसी पर टिकी रहती है. इनके लम्बे घने खुले बाल इनकी सुंदरता को और भी अधिक बढ़ाते है.


अप्सरायें अधिकतर चुस्त कपड़ों के साथ गहने पहनती है और इनकी चाल देखते ही बनती है. अप्सरायें इतनी खुबसूरत होती है कि बड़े बड़े ऋषि भी इनकी सुंदरता के जाल में फंस जाते है.



जितनी ये खुबसूरत होती है उतनी ही अधिक ये अपने साधक के प्रति समर्पित भी होती है. 16 – 17 साल की दिखने वाली ये युवतियाँ वैसे बहुत सरल और सीधी भी होती है और कभी भी अपने साधक के साथ धोखा नहीं करती.

किन्तु ऐसे अनेक साधक भी होते है जिनके मन में इन अप्सराओं को देखकर अपवित्रता जन्म ले लेती है और वे उनके साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करते है, जोकि सरासर गलत है. इसका परिणाम भी बुरा हो सकता है क्योकि इनके पास असीम शक्तियाँ भी होती है.

 इसलिए आप किसी भी अप्सरा को देखकर मन को विचलित ना होने दें और अपनी काम भावना को नियंत्रित रखें. आज हम आपको एक ऐसी ही अप्सरा की साधना के बारे में बताने जा रहे है जो बहुत ही आकर्षक और कामुक है.



आकर्षक और कामुक है.

रम्भा अप्सरा साधना सामग्री

-   रम्भा यन्त्र

-   अप्सरा माला

-   गुलाब के फुल व अगरबत्ती

-   गुलाबी रंग का कपडा

-   दीपक

-   आसन, जिसपर पिला वस्त्र बिछा हो

-   लकड़ी की चौकी

-   अक्षत ( बिना टूटे चावल )

-   सौंदर्य गुटिका

-   साफल्य  मुद्रिका

-   इत्र

-   स्टील की प्लेट

-   मुद्रिका

-   2 फूलों की माला



सही दिन  : पूर्णिमा की रात्री या शुक्रवार का दिन

साधना समय  : इस साधना को 21 दिनों तक रात्री में ही करना है.

रम्भा अप्सरा साधना विधि


साधना आरम्भ करने से पहले आप नहा धोकर अच्छे कपडे पहन खुद को शुद्ध और पवित्र कर लें. उसके बाद आप पीले रंग के आसन पर बैठ जाएँ और पूर्व दिशा की तरफ मुंह करें.

 ध्यान रहें कि आप अपने पास फूलों की 2 मालायें अवश्य रखें और जब अप्सरा आयें तो एक उसे पहना दें, दूसरी को वो आपको पहनाएगी. आप अगरबत्तियां और 1 घी के दीपक जलाएं. अपने सामने खाली स्टील की प्लेट को रखना बिलकुल ना भूलें.

अब आप गुलाब की पंखुडियां लेते हुए अपने दोनों हाथों को जोड़ें और “ ओ राम्भे आगच्छ पूर्ण यौवन संस्तुते ” मंत्र का जप करें. हर मंत्र के बाद आप कुछ पंखुड़ियों को स्टील की प्लेट में डालें. आपको कम से कम 108 बार इस मंत्र का जाप करना है. स्टील की थाली कुछ देर बाद पंखुड़ियों से भर जायेगी. आप उसपर अप्सरा माला रख दें.



इसके बाद आपको गुलाबी कपडे को बिछाकर उसपर सौंदर्य गुटिका, साफल्य मुद्रिका और राम्भोत्किलन यंत्र को स्थापित करना है. अब आप उनका पंचोपचार पूजन करें. आप सारी सामग्री पर इत्र छिड़कना बिलकुल ना भूलें. अब आप गुलाबी रंग के चावलों के साथ यन्त्र की पूजा करें और निम्नलिखित मन्त्रों का जाप करें.

ॐ दिव्यायै नमः | ॐ वागीश्चरायै नमः | ॐ सौंदर्या प्रियायै नमः |

ॐ योवन प्रियायै नमः | ॐ सौभाग्दायै नमः | ॐ आरोग्यप्रदायै नमः |

ॐ प्राणप्रियायै नमः | ॐ उर्जश्चलायै नमः | ॐ देवाप्रियायै नमः |

ॐ ऐश्वर्याप्रदायै नमः | ॐ धनदायै धनदा रम्भायै नमः |

आप हर मंत्र के जाप के बाद कुछ चावलों को यन्त्र पर अवश्य डालते जाएँ. इसके बाद आपको 15 अप्सरा माला तक इस मंत्र को जपना है.

“ ॐ ह्रीं रं रम्भे आगच्छ आज्ञां पालय मनोवांधितं देहि एं ॐ स्वाहा “

इस तरह आपकी अप्सरा साधना पूर्ण होती है.

रम्भा अप्सरा साधना लाभ



·     जो व्यक्ति रम्भा अप्सरा साधना करता है उसे बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है क्योकि इसको करने वाले को हर तरह का सुख शांति और मिलती है.

·     उसे हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और वो शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत हो जाता है.

·     इस साधना को पूर्ण कर लेने वाले व्यक्ति के साथ रम्भा पूरी जिंदगी उस व्यक्ति के साथ रहती है और हर कदम पर उसका साथ देती है.

·     जिस तरह रम्भा सबको अपनी तरफ आकर्षित करने की शक्ति रखती है ठीक उसी तरह साधक में भी आकर्षक और सम्मोहन शक्ति आ जाती है.

·     साधक में कभी भी बुढापा नहीं आता और बीमारियाँ तो कोशों दूर चली जाती है. इस तरह साधक के जीवन में प्यार और खुशियाँ भर जाती है.



सावधानियाँ


 वैसे अप्सरायें शीघ्रता से अपनी साधना से को पूरा भी नहीं होने देती और आपके ध्यान को भाग करने की कोशिश करती रहती है. कई बार तो आपको आपकी साधना पूर्ण होने से पहले ही अप्सरा दिखने लगती है किन्तु उस स्थिति में आप अपनी साधना को बिलकुल भी ना रोके और मन्त्रों और जप के पूर्ण होने के बाद ही उनके पास जाएँ.

§ साधना के दौरान और अप्सरा को देखने के बाद अपनी काम इच्छाओं पर काबू रखें और उसके प्रति समर्पित रहें.

§ साधना के दौरान जो भी घटित होता है उसे आप अपने तक ही सिमित रखें.

§ जब साधना खत्म हो जाएँ तो आप एक मुद्रिका को अपनी अनामिका वाली उंगली में धारण करें. साथ ही बाकी के सामान को आप किसी बहते पानी अर्थात नदी में प्रवाहित कर दें.

तो आप भी रम्भा अप्सरा साधना कर अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हो, साथ ही किसी भी अन्य सहायता के लिए




राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Monday, February 13, 2017

महाकाली सबंधित पूर्ण काल ज्ञान के लिए

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निकटत्तम भविष्य को जानने के लिए एक सामान्य विधान इस रूप से है जो की व्यक्ति को भविष्य के ज़रोखे मे जांक कर देखने के लिए शक्ति प्रदान करता है

किसीभी शुभदिन से यह साधना शुरू की जा सकती है । इसमें महाकाली का विग्रह या चित्र अपने सामने स्थापित करे और रात्री काल मे उसका सामान्य पूजन कर के निम्न मंत्र की २१ माला २१ दिन तक करे । यानि रोज 21 माला प्रतिदिन जाप करना हे ।

मंत्र :-

काली कंकाली प्रत्यक्ष क्रीं क्रीं क्रीं हूं

साधना काल मे लोहबान का धुप व् घी का दीपक जलते रहना चाहिए ।

यह जाप रुद्राक्ष या काली हकीक माला से किया जा सकता है ।

साधना के कुछ दिनों मे साधको को कई मधुर अनुभव हो सकते है.

राजगुरु जी

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श्मशान काली सिद्धि दिवस

श्मशान काली सिद्धि को सभी वर्ग के साधक अत्यंत श्रेष्ठ मुहूर्त मानते है,येसे पावन पर्व पे अगर श्मशान काली साधना किया जाये तो यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात होगी.........

इसी दिवस पर श्रेष्ठ साधक सुरक्षा कवच का निर्माण करते है जो उन्हे वर्ष तक सहाय्यक होता है,परंतु आज हम बात करेगे श्मशान काली जी का जिनका रूप अत्यंत भव्य है जिसका कोई स्तुति नहीं कर सकता है,परम पूजनीय आदिगुरु शंकराचार्य जी ने श्मशान काली जी की स्तुति पूर्ण चैतन्ययुक्त शब्दो मे कियी है जिसका नाम है “काली श्मशानालयवासिनीम स्तोत्र”मे किया है,इस स्तोत्र का पाठ करने से माँ भक्तो को जहा दर्शन देती है वही सभी समस्याओ से मुक्त भी करती है............

मेरा नम्र निवेदन है आपसे इस स्तोत्र को आप प्राप्त कीजिये और कम से कम रोज एक पाठ इस दिवस से शुरू करते हुये एक वर्ष तक कीजिये तो आपको तंत्र शक्ति प्राप्त होगा जिसके माध्यम से आप गुरुकार्य कर सकते हो और अपना साधनात्मक कद भी आगे बढ़ा सकते हो...........

इसी विषय को समजते हुये तंत्र के महान साधकोने श्मशान काली साधना करके अपने जीवन को बाधामुक्त,भयमुक्त एवं दोषमुक्त बनाया जिसके बाद उन्हे प्रत्येक साधना मे निच्छित सफलता मिला,यह कोई आम बात नहीं येसे तांत्रिको को हमे सदैव धन्यवाद करना चाहिये जिन्होने श्मशान तंत्र को भी जीवित रखा नहीं तो आज हम लोग येसे मंत्र प्राप्त नहीं कर पाते॰

आज यहा मै सौम्य श्मशान काली साधना दे रहा जिसके माध्यम से बहोत सारे भौतिक और आध्यात्मिक सफलताये प्राप्त होती है,इस साधना से हर समस्या का समाधान प्राप्त होता है इसीलिये मुजे लगता है के ज्यादा कुछ लिखने का आवश्यकता नहीं है...........

विनियोग:-

        अस्य श्मशानकाली मंत्रस्य भृगुऋषी: । त्रिवृच्छन्द: । श्मशानकाली देवता । ऐं बीजम । ह्रीं शक्ति: । क्लीं किलकम । मम सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोग: ।

ध्यान:-

                   अन्जनाद्रिनिभां देवी श्मशानालय वासीनीं ।
                   रक्तनेत्रां मुक्तकेशीं शुष्कमांसातिभैरवां ॥
                   पिंगलाक्षीं वामहस्तेन मद्दपूर्णा समांसकाम ।
                   सद्द: कृ तं शिरो दक्ष हस्तेनदधतीं शिवाम ॥
                   स्मितवक्त्रां सदा चाम मांसचर्वणतत्पराम ।
                   नानालंकार भूशांगीनग्नाम मत्तां सदा शवै: ॥
  
 माँ को हृदय मे स्थापित करना है इसलिये यहा सिर्फ हृदयादि षडंगन्यास दे रहा हु

 हृदयादि षडंगन्यास:-

                      ऐं हृदयाय नम: ।
                      ह्रीं शिरसे स्वाहा: ।
                      श्रीं शिखायै वषट ।
                      क्लीं कवचाय हुं ।
                      कालिके नेत्रत्रयाय वौषट ।
                      ऐं श्रीं क्लीं कालिके ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं अस्त्राय फट ।
                             इति हृदयादि षडंगन्यास: ॥

मंत्र:-

          ॥ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं ॥
Aim hreem shreem  kleem kaalike kleem shreem  hreem aim

यह साधना 3 दिन का है और इसमे रुद्राक्ष माला से 11 माला मंत्र जाप करना आवश्यक है,तीसरे दिन साधना समाप्ती के बाद हवन मे काले तिल से 374 बार मंत्र मे स्वाहा लगाकर आहूती दीजिये मंत्र इस प्रकार होगा 

“ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं स्वाहा”,

आहुती के बाद नींबू का बलि देना है और नींबू का थोड़ा सा रस हवनकुंड मे निचौड दीजिये,समय रात्री मे 10 बजे के बाद,दिशा दक्षिण,आसन-वस्त्र लाल/काले,भोग मे तिल और गुड के लड्डू जो मार्केट मे आसानी से मिलते है परंतु प्रयत्न कीजिये घर पर लड्डू बनाने का,महाकाली जी के चित्र पर रोज लाल रंग का पुष्प चढ़ाना मत भूलीयेगा॰

यह साधना विधि पूर्ण प्रामाणिक है और शीघ्र फलदायी भी है...............इस साधना का असर साधक को एक वर्ष तक प्राप्त होता रहता है...........

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Sunday, February 12, 2017

अप्सरा साधना के नियम

यदि किसी भाई या बहन को साधना में यकीन ना हो तो यह साधनाए मत करें। यह साधना तो केवल साधक जगत के लोगों के लिए हैं ना कि किसी को यकीन दिलाने के लिए। साधक इन सब साधनाओं के बारे मे पहले से ही जानते हैं।

 बिना किसी के मार्गदर्शन मे साधना करने से समय ज्यादा लगता है इसलिए अच्छा यही है कि अपने गुरु की सहायता और आज्ञा प्राप्त करने के बाद ही इस प्रकार की साधना करें तो अधिक उपयुक्त रहेगा। जिन लोगों को इस प्रकार की साधना मे यकीन ना हो वो सब इनको कहानीयाँ समझ कर भुल जायें ऐसी हमारी प्रार्थना हैं।

The name of many Nymphs or Apsara are: Ambika, Alamvusha, Anavdaya, Anuchana, Aruna, Asita, Budbudha, Chandra Jyotsna, Devi, Ghartchi, Gunmukya, Gunuvra-Herrsha, Indar-lakshmi, Kamya, Karnika, Keshini, Kshaema Lata, Lakshmna, Manorama, Maarichi, Maneka, Misrasthlah, Mrigakshi, Nabhidarshana, Puarv-chitti, Pushpdeha, Rakshaita, Rambha, Rituashalah, Sahjanya, Samichi, Sor-Bhedi, Saradvti, Shuchika, Somi, Shuvahu, Shugandha, Supriya, Surza, Surasa, Surata (Riti Priya), Tialottama, Umalocha, Urvashi, Wpu, Waraga, Vidyutparna, Vihaachi.

अप्सराये अत्यंत सुंदर और जवान होती हैं. उनको सुंदरता और शक्ति विरासत में मिली है. वह गुलाब का इत्र और चमेली आदि की गंध पसंद करती हैं। तुमको उसके शरीर से बहुत प्रकार की खुशबू आती महसूस कर सकते हैं. यह गन्ध किसी भी पुरुष को आकर्षित कर सकती हैं।

वह चुस्त कपड़े पहनना के साथ साथ अधिक गहने पहना पसंद करती है. इनके खुले-लंबे बाल होते है। वह हमेशा एक 16-17 साल की लड़की की तरह दिखती है। दरअसल, वह बहुत ही सीधी होती है। वह हमेशा उसके साधक को समर्पित रहती है। वह साधक को कभी धोखा नहीं देती हैं। इस साधना के दौरान अनुभव हो सकता है, कि वह साधना पूरी होने से पहले दिखाई दे। अगर ऐसा होता है, तो अनदेखा कर दें।

आपको अपने मंत्र जाप पूरा करना चाहिए जैसा कि आप इसे नियमित रूप से करते थे। कोई जल्दबाजी ना करे जितने दिन की साधना बताई हैं उतने दिन पुरी करनी चाहिए। काम भाव पर नियंत्रण रखे। वासना का साधना मे कोई स्थान नहीं होता हैं।

 अप्सरा परीक्षण भी ले सकती हैं। जब सुंदर अप्सरा आती है तो साधक सोचता है, कि मेरी साधना पूर्ण हो गया है। लेकिन जब तक वो विवश ना हो जाये तब तक साधना जारी रखनी चाहिए।

केई साधक इस मोड़ पर, अप्सरा के साथ यौन कल्पना लग जाते है। यौन भावनाओं से बचें, यह साधना ख़राब करती हैं। जब संकल्प के अनुसार मंत्र जाप समाप्त हो और वो आपसे अनुरोध करें तो आप उसे गुलाब के फूल और कुछ इत्र दे।

उसे दूध का बनी मिठाई पान आदि भेंट दे। उससे वचन ले ले की वह जीवन-भर आपके वश में रहेगी। वो कभी आपको छोड़ कर नहीं जाएगी और आपक कहा मानेगी। जब तक कोई वचन न दे तब तक उस पर विश्वास नही किया जा सकता क्योंकि वचन देने से पहले तक वो स्वयं ही चाहती हैं कि साधक की साधना भंग हो जाये।

किसी भी साधना मैं सबसे महत्वपुर्ण भाग उसके नियम हैं. सामान्यता सभी साधना में एक जैसे नियम होते हैं. परतुं मैं यहाँ पर विशेष तौर पर यक्षिणी और अप्सरा साधना में प्रयोग होने वाले नियम का उल्लेख कर रहा हूँ ।

अप्सरा या यक्षिणी साधना में ऊपर जो अण्डरलाइन और हरे रंग से लिखे गये नियम ही प्रयोग में आने वाले नियम हैं ।

1. ब्रह्मचये : सभी साधना मैं ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं. सेक्स के बारे में सोचना, करना, किसी स्त्री के बारे में विचारना, सम्भोग, मन की अपवित्रा, गन्दे चित्र देखना आदि सब मना हैं, अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्ट को, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अलंकार युक्त अप्सरा या देवी आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं. और उसके शरीर में से ग़ुलाब जैसी या अष्टगन्ध की खुशबू आ रही हैं । साकार रुप मैं उसकी कल्पना करते रहो.

2. भूमि शयन : केवल जमीन पर ही अपने सभी काम करें. जमीन पर एक वस्त्र बिछा सकते हैं और बिछना भी चाहिए

3. भोजन : मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, लहसुन, प्याज आदि सभी का प्रयोग मना हैं. केवल सात्विक भोजन ही करें.

4. वस्त्र : वस्त्रो में उन्ही रंग का चुनाव करें जो देवता पसन्द करता हो.( आसन, पहनने और देवता को देने के लिये) (सफेद या पीला अप्सरा के लिये)
5. क्या करना हैं :- नित्य स्नान, नित्य गुरु सेवा, मौन, नित्य दान, जप में ध्यान- विश्वास, रोज पुजा करना आदि अनिवार्य हैं. और जप से कम से कम दो-तीन घंटे पहले भोजन करना चाहिए

6. क्या ना करें :- जप का समय ना बद्ले, क्रोध मत करो, अपना आसन किसी को प्रयोग मत करने दो, खाना खाते समय और सोकर जागते समय जप ना करें. बासी खाना ना खाये, चमडे का प्रयोग ना करना, साधना के अनुभव साधना के दोरान किसी को मत बताना (गुरु को छोडकर)

7. मंत्र जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, बक्वास, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना( पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना ), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना, पिछ्ले दिन के गन्दे वस्त्र पहनकर मंत्र जप करना, यह सब कार्य मना हैं (हर मंत्र की एक मुल ध्वनि होती हैं अगर मुल ध्वनि- लय में मंत्र जपा तो मज़ा ही जायेगा, मंत्र सिद्धि बहुत जल्द प्राप्त हो सकती हैं जो केवल गुरु से सिखी जा सकती हैं )

8. यादि आपको सिद्धि करनी हैं तो श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि “जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं”

9. और एक सबसे महत्वपुर्ण कि आप जिस अप्सरा की साधना उसके बारे में यह ना सोचे कि वो आयेगी और आपसे सेक्स करेंगी क्योंकि वासना का किसी भी साधना में कोई स्थान नहीं हैं । बाद कि बातें बाद पर छोड दे । क्योंकि सेक्स में उर्जा नीचे (मुलाधार) की ओर चलती हैं जबकि साधना में उर्जा ऊपर (सहस्त्रार) की ओर चलती हैं

10. किसी भी स्त्री वर्ग से केवल माँ, बहन, प्रेमिका और पत्नी का सम्बन्ध हो सकता हैं । यही सम्बन्ध साधक का अप्सरा या देवी से होता हैं।

11.यह सब वाक सिद्ध होती हैं । किसी के नसिब में अगर कोई चीज़ ना हो तब भी देने का समर्थ रखती हैं । इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए।
अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच:

इस कवच को यक्षिणी पुजा से पहले 1,5 या 7 बार जप किया जाना चाहिए। इस कवच के जप से किसी भी प्रकार की सुन्दरी साधना में विपरीत परिणाम प्राप्त नहीं होते और साधना में जल्द ही सिद्धि प्राप्त होती हैं। हम आशा करते हैं कि जब भी आप कोई भी यक्षिणी साधना करोगें तो इस कवच का जप अवश्य करोगें।

इस कवच के जप से समस्त प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली यक्षिणी साधक के नियंत्रण मे आ जाती हैं और साधक के सभी मनोरथो को पूर्ण करती हैं। यक्षिणी साधना से जुडा यह कवच अपने आप मे दुर्लभ हैं। इस कवच के जपने से यक्षिणीयों का वशीकरण होता हैं। तो क्या सोच रहे हैं आप……………………

।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।

श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं। यक्षिणी-नायिकानां तु, संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।
ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं। यक्षिणि स्वयमायाति, कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।
सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं। पठनात् धारणान्मर्त्यो, यक्षिणी-वशमानयेत् ।।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्री गर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः- श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री रतिप्रिया यक्षिणी देवतायै नमः हृदि, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

।। मूल पाठ ।।

शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला।
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।
स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।
भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा।
अलंकारान्विता पातु, नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका।।
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।
इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात्।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम्।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत्।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे।।
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः।।
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।

नोटः-

शुद्ध उच्चारण के साथ किसी साधक के मार्गदर्शन में इन मंत्रों का प्रयोग करना ही लाभकर होगा।यदि किसी भी प्रकार की दिक्कते हो,तो मुझसे सम्पर्क कर सकते है।

आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Saturday, February 11, 2017

कर्ण मातंगी साधना









जिज्ञासु पाठक श्री विनोद शर्मा जी के अनुरोध पर कर्ण मातंगी के बारे में संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूं। यह मूलतः जल्दी फल देने वाली साधना से ज्यादा एक प्रयोग विधि है। इसके साधक को माता भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी स्वप्न में दे देती हैं।

निष्कम भाव से साधना करने वालों पर माता अपनी विशेष कृपा बरसाती हैं लेकिन चूंकि फल आसानी से मिल जाता है, अतः साधक का निष्काम रह पाना बेहद कठिन होता है।

 फल आधारित साधना होने के कारण इसका असर भी जल्दी खत्म होने लगता है। अतः साधक को प्रयोग की अधिकता/कमी के आधार पर हर तीन या छह माह पर इसका पुनः जप कर लेना चाहिए। इनके कई मंत्र हैं लेकिन यहां अनुभव किए हुए सिर्फ दो मंत्रों का ही उल्लेख कर रहा हूं।

कर्ण मातंगी मंत्र

ऐं नमः श्री मातंगि अमोघे सत्यवादिनि मककर्णे अवतर अवतर सत्यं कथय एह्येहि श्री मातंग्यै नमः।

या

ऊं नमः कर्ण पिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनी मम कर्णे अवतर अवतर अतीत अनागत वर्तमानानि दर्शय दर्शय मम भविष्यं कथय कथय ह्रीं कर्ण पिशाचिनी स्वाहा।

ऐं बीज से षडंगन्यास करें। पुरश्चरण के लिए आठ हजार की संख्या में जप करें। कई बार प्रतिकूल ग्रह स्थिति रहने पर जप संख्या थोड़ी बढ़ानी भी पड़ती है।

 जप के दौरान शारीरिक पवित्रता की जरूरत नहीं है लेकिन मानसिक रूप से पवित्र होना आवश्यक है। इसमें हवन भी आवश्यक नहीं है। हालांकि उच्छिष्ट वस्तु (खीर के प्रसाद से) या मांस-मछली को प्रसाद के रूप में माता को ही चढ़ाकर उससे हवन करना अतिरिक्त ताकत देता है।

 इसके साधक को माता कर्ण मातंगी भविष्य में घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं की जानकारी स्वप्न में देती हैं। इच्छुक साधक को माता से प्रश्न का जवाब भी मिल जाता है। भक्तिपूर्वक एवं निष्काम साधना करने पर माता साधक का पथप्रदर्शन करती हैं।



राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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तिलोत्तमा अप्सरा

तिलोत्तमा अप्सरा की गिनती भी श्रेष्ठ अप्सराओं मे होती हैं। यह अप्सरा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनो ही रुप मे साधक की सहायता करती रहती हैं। यह साधना अनुभुत हैं। इस साधना को करने से सभी सुखो की प्राप्ति होती हैं।

इस साधना को शुरु करते ही एक – दो दिन में धीमी धीमी खुशबू का प्रवाह होने लगता हैं। यह खुशबू तिलोत्तमा के सामने होने की पूर्व सुचना हैं। अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण एक श्रमसाध्य कार्य हैं। मेहनत बहुत ही जरुरी हैं। एक बार अप्सरा के प्रत्यक्षीकरण के बाद कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता, इसमे कोई दोराय नहीं हैं। यह प्रक्रिया आपकी सेवा में प्रस्तुत करने की कोशिश करता हूँ।

सामान्यतः अप्सरा साधना भी गोपनीयता की श्रेष्णी में आती हैं। सभी को इस प्रकार की साधना जीवन मे एक बार सिद्ध करने की पुरी कोशिश करनी चाहिए क्योंकि कलियुग में जो भी कुछ चाहिए वो सब इस प्रकार की साधना से सहज ही प्राप्त किया जा सकता हैं। इन साधनाओं की अच्छी बात यह हैं कि इन साधनाओं को साधारण व्यक्ति भी कर सकता हैं मतलब उसको को पंडित तांत्रिक बनाने की कोई अवश्यकता नहीं हैं।

साधक स्नान कर ले अगर नही भी कर सको तो हाथ-मुहँ अच्छी तरह धौकर, धुले वस्त्र पहनकर, रात मे ठीक 10 बजे के बाद साधना शुरु करें। रोज़ दिन मे एक बार स्नान करना जरुरी है। मंत्र जाप मे कम्बल का आसन रखे और अप्सरा और स्त्री के प्रति सम्मान आदर होना चाहिए। अप्सरा , गुरु, धार्मिक ग्रंथो और विधि मे पुर्ण विश्वास होना चाहिए, नहीं तो सफलत होना मुश्किल हैं। अविश्वास का साधना मे कोई स्थान नही है। साधना का समय एक ही रखने की कोशिश करनी चाहिए।

एक स्टील की प्लेट मे सारी सामग्री रख ले। साधना करते समय और मंत्र जप करते समय जमीन को स्पर्श नही करते। माला को लाल या किसी अन्य रंग के कपडे से ढककर ही मंत्र जप करे या गौमुखी खरीदे ले। मंत्र जप को अगुँठा और माध्यमा से ही करे । मंत्र जपते समय माला मे जो अलग से एक दान लगा होता हैं उसको लांघना नहीं है मतलब जम्प नहीं करना हैं। जब दुसरी माला शुरु हो तो माला के आखिए दाने/मनके को पहला दान मानकर जप करें, इसके लिए आपको माला को अंत मे पलटना होगा। इस क्रिया का बैठकर पहले से अभ्यास कर लें।

पूजा सामग्री:-

सिन्दुर, चावल, गुलाब पुष्प, चौकी, नैवैध, पीला आसन, धोती या कुर्ता पेजामा, इत्र, जल पात्र मे जल, चम्मच, एक स्टील की थाली, मोली/कलावा, अगरबत्ती,एक साफ कपडा बीच बीच मे हाथ पोछने के लिए, देशी घी का दीपक, (चन्दन, केशर, कुम्कुम, अष्टगन्ध यह सभी तिलक के लिए))

विधि :

 पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री अपने पास रख लें।
बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने को जल से छिडके।
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
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(निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा/चोटी को गांठ लगाये / स्पर्श करे)
ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते। तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
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(अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें)
ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥
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(अपने सीधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल दे) और कहे
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
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संकल्प:- दाहिने हाथ मे जल ले।
मैं ........अमुक......... गोत्र मे जन्मा,................... यहाँ आपके पिता का नाम.......... ......... का पुत्र .............................यहाँ आपका नाम....................., निवासी.......................आपका पता............................ आज सभी देवी-देव्ताओं को साक्षी मानते हुए देवी तिलोत्त्मा अप्सरा की पुजा, गण्पति और गुरु जी की पुजा देवी तिलोत्त्मा अप्सरा के साक्षात दर्शन की अभिलाषा और प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जिससे देवी तिलोत्त्मा अप्सरा प्रसन्न होकर दर्शन दे और मेरी आज्ञा का पालन करती रहें साथ ही साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें।
जल और सामग्री को छोड़ दे।
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गणपति का पूजन करें।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
गुरु पुजन कर लें कम से कम गुरु मंत्र की चार माला करें या जैसा आपके गुरु का आदेश हो।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। ॐ उमामहेश्वराभ्यां नमः। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः। ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ भ्रं भैरवाय नमः का 21 बार जप कर ले।
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अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं।
दोनो हाथो को मिलाकर और फैलाकर कुछ नमाज पढने की तरफ बना लो। साथ ही साथ “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तिलोत्त्मा अप्सरा आगच्छ आगच्छ स्वाहा” मंत्र का 21 बार उचारण करते हुए एक एक गुलाब थाली मे चढाते जाये। अब सोचो कि अप्सरा आ चुकी हैं।

हे सुन्दरी तुम तीनो लोकों को मोहने वाली हो तुम्हारी देह गोरे गोरे रंग के कारण अतयंत चमकती हुई हैं। तुम नें अनेको अनोखे अनोखे गहने पहने हुये और बहुत ही सुन्दर और अनोखे वस्त्र को पहना हुआ हैं। आप जैसी सुन्दरी अपने साधक की समस्त मनोकामना को पुरी करने मे जरा सी भी देरी नही करती। ऐसी विचित्र सुन्दरी तिलोत्तमा अप्सरा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
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इन गुलाबो के सभी गन्ध से तिलक करे। और स्वयँ को भी तिलक कर लें।
ॐ अपूर्व सौन्दयायै, अप्सरायै सिद्धये नमः।
मोली/कलवा चढाये : वस्त्रम् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर चावल (बिना टुटे) : अक्षतान् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
पुष्प : पुष्पाणि समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
अगरबत्ती : धूपम् आघ्रापयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
दीपक (देशी घी का) : दीपकं दर्शयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
मिठाई से पुजा करें।: नैवेद्यं निवेदयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर पुजा सामप्त होने पर सभी मिठाई को स्वयँ ही ग्रहण कर लें।
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पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का) अप्सरा को अर्प्ति करे और स्वयँ खाये। इस मंत्र की स्फाटिक की माला से 21 माला जपे और ऐसा 11 दिन करनी हैं।
ॐ क्लीं तिलोत्त्मा अप्सरायै मम वश्मनाय क्लीं फट
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यहाँ देवी को मंत्र जप समर्पित कर दें। क्षमा याचना कर सकते हैं। जप के बाद मे यह माला को पुजा स्थान पर ही रख दें। मंत्र जाप के बाद आसन पर ही पाँच मिनट आराम करें।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः।
यदि कर सके तो पहले की भांति पुजन करें और अंत मे पुजन गुरु को समर्पित कर दे।
अंतिम दिन जब अप्सरा दर्शन दे तो फिर मिठाई इत्र आदि अर्पित करे और प्रसन्न होने पर अपने मन के अनुसार वचन लेने की कोशिश कर सकते हैं।
पुजा के अंत मे एक चम्मच जल आसन के नीचे जरुर डाल दें और आसन को प्रणाम कर ही उठें।
॥ हरि ॐ तत्सत ॥
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नियम जिनका पालन अधिक से अधिक इस साधना मे करना चाहिए वो सब नीचे लिखे हैं।

ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं अगर कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्‍ट का या ॐ नमः शिवाय या अप्सरा का ध्यान करें, आप सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अप्सरा आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं। ऐसी अवस्था मे क्या शोभनीय हैं आप स्वयँ अन्दाजा लगा सकते हैं।

भोजन: मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, तामसिक भोजन आदि सभी से ज्यादा से ज्यादा दुर रहना हैं। इनका प्रयोग मना ही हैं। केवल सात्विक भोजन ही करें क्योंकि यह काम भावना को भडकाने का काम करते हैं। मंत्र जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग को हाथ लगाना, सेल फोन को पास रखना, जप को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत् ही ज्यादा तेज-तेज जपना, सिर हिलाते रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र को भुल जाना (पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना), हाथ-पैंर फैलाकर जप करना यह सब कार्य मना हैं। मेरा मतलब हैं कि बहुत ही गम्भीरता से मंत्र जप करना हैं। यदि आपको पैर बदलने की जरुरत हो तो माला पुरी होने के बाद ही पैरों को बदल सकते हैं या थोडा सा आराम कर सकते हैं लेकिन मंत्र जप बन्द ना करें।

यदि आपको सिद्धि चाहिए तो भगवन श्री शिव शंकर भगवान के कथन को कभी ना भुलना कि "जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन खाना) से जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती हैं"।

यदि उसे एक बार भी प्रेमिका की तरह प्रेम/पुजा किया तो आने मे कभी देरी नही करती है। साधना के समय वो एक देवी मात्र ही हैं और आप साधक हैं। इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए। समस्त अप्सराएँ वाक सिद्ध होती हैं।

किसी भी साधना को सीधे ही करने नही बैठना चाहिए। उससे पहले आपको अपना कुछ अभ्यास करना चाहिए। मंत्रो का उचारण कैसे करना है यह भी जान लेना चाहिए और बार बार बोलकर अभ्यास कर लेना चाहिए।

ऐसा करने पर अप्सरा जरुर सिंद्ध होती हैं बाकी जो देवी कालिका की इच्छा क्योंकि होता वही हैं जो देवी जगत जननी चाहती हैं। साधना से किसी को नुकसान पहुँचाने पर साधना शक्ति स्वयँ ही समाप्त होने लगती हैं। इसलिए अपनी साधना की रक्षा करनी चाहिए। किसी को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की जरुरत नहीं हैं। यहाँ कोई किसी के काम नहीं आता हैं लेकिन फिर भी कभी कभार किसी ना किसी जो बहुत ही जरुरत मन्द हो की सहायता करी जा सकती हैं। वैसे यह साधना साधक का ही ज्यादा भला करने वाले हैं।

मैं तो इतना ही कहुगाँ कि इस साधना को नए साधक और ऐसे आदमी को जरुर करना चाहिए जो देवी देवता मे यकीन ना रखता हो। यदि ऐसे लोगों थोडा सा विश्वास करके भी इस साधना को करते हैं तो उन्हें कुछ ना कुछ अच्छे परिणाम जरुर मिलने चाहिए। यदि किसी को साधना करने मे कोई दिक्कत हो रही हैं तो हमसे भी सम्पर्क (ईमेल का पता सबसे उपर दिया गया हैं) किया जा सकता हैं। यदि पहली बार में साधना मे सिद्धि प्राप्त नहीं हो रही है तो आप सहायता के लिए ईमेल कर सकते हैं। देवी माँ आपको सभी सिद्धि प्रदान करें इस कामना के साथ इस लेख को विराम देता हूँ।

राजगुरु जी

महाविद्या आश्रम

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Tuesday, February 7, 2017

महावशीकरण श्यामा मातंगी यन्त्र /कवच और महावशीकरण मन्त्र

मातंगी महाविद्या ,दस महाविद्या में से एक प्रमुख महाविद्या ,,वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप हैं और श्री कुल के अंतर्गत पूजित हैं |यह सरस्वती ही हैं और वाणी ,संगीत ,ज्ञान ,विज्ञान ,सम्मोहन ,वशीकरण ,मोहन की अधिष्ठात्री हैं |

त्रिपुरा ,काली और मातंगी का स्वरुप लगभग एक सा है |यद्यपि अन्य महाविद्याओं से भी वशीकरण ,मोहन ,आकर्षण के कर्म होते हैं और संभव हैं किन्तु इस क्षेत्र का आधिपत्य मातंगी [सरस्वती] को प्राप्त हैं |

यह जितनी समग्रता ,पूर्णता ,निश्चितता से इस कार्य को कर सकती हैं कोई अन्य नहीं क्योकि सभी अन्य की अवधारणा अन्य विशिष्ट गुणों के साथ हुई है |उन्हें वशीकरण ,मोहन के कर्म हेतु अपने मूल गुण के साथ अलग कार्य करना होगा जबकि मातंगी वशीकरण ,मोहन की देवी ही हैं अतः यह आसानी से यह कार्य कर देती हैं |

मातंगी के तीन विशिष्ट स्वरुप हैं श्यामा मातंगी ,राज मातंगी और वश्य मातंगी |श्यामा मातंगी स्वरुप मातंगी का उग्र स्वरुप है और वशीकरण ,मोहन, आकर्षण को तीब्रता से करता है |

इनका मात्र अति विशिष्ट है ,जिसमे माया [देवी] ,सरस्वती [मातंगी ],लक्ष्मी ,त्रिपुरसुन्दरी[श्री विद्या]और काली के बीज मन्त्रों का विशिष्ट संयोग है जिससे मातंगी की मुख्यता के साथ इन सभी शक्तियों की शक्ति भी सम्मिलित होती है जिससे यह विद्या सब कुछ देने के साथ वशीकरण ,आकर्षण में निश्चित सफलता देती है |

मातंगी ,या श्यामा मातंगी का मंत्र ,मातंगी साधक ही प्रदान कर सकता है ,अन्य किसी महाविद्या का साधक इनके मंत्र को प्रदान करने का अधिकारी नहीं है |

स्वयं मंत्र लेकर जपने से महाविद्याओं के मंत्र सिद्ध नहीं होते ,अतः जब भी मंत्र लिया जाए मातंगी साधक से ही लिया जाए ,यद्यापि मातंगी साधक खोजे नहीं मिलते जबकि अन्य महाविद्या के साधक मिल जाते हैं |

इनके मंत्र और यंत्र का उपयोग अधिकतर प्रवचनकर्ता ,धर्म गुरु ,tantra गुरु ,बौद्धिक लोग करते हैं जिन्हें समाज-भीड़-लोगों के समूह का नेतृत्व अथवा सामन करना होता है ,ज्ञान विज्ञानं की जानकारी चाहिए होती है |मातंगि के शक्ति से इनमे सम्मोहन -वशीकरण की शक्ति होती है |

मातंगी का यन्त्र इसमें अतिरिक्त ऊर्जा का कार्य करता है जिसे मातंगी साधक निर्मित करता है भोजपत्र पर |मातंगी का यन्त्र बाजार में धातु का मिल जाता है किन्तु श्यामा मातंगी का मिलना मुश्किल होता है |

धातु के यन्त्र की प्रभावित भी संदिग्ध होती है जबकि मातंगी साधक द्वारा निर्मित श्यामा मातंगी के यन्त्र में साधक की शक्ति ,मुहूर्त की शक्ति ,भोजपत्र की पवित्रता ,अष्टगंध की विशिष्टता ,मंत्र की शक्ति ,प्राण प्रतिष्ठा की शक्ति सम्मिलित होती है जिससे यह यन्त्र निश्चित प्रभावकारी हो जाता है |

धारण करने पर इससे उत्पन्न विशिष्ट तरंगे व्यक्ति और वातावरण को प्रभावित करती हैं जिससे खुद व्यक्ति में भी परिवर्तन आता है और आसपास के लोग भी प्रभावित होते हैं |इसके वाशिकारक प्रभाव में संपर्क में आने वाले लोग बांध जाते हैं |

यद्यपि यन्त्र किसी विशिष्ट व्यक्ति के लिए भी बनाया जा सकता है किन्तु व्यक्ति केन्द्रित न रखा जाए तो यह सब पर प्रभाव डालता है |

श्यामा मातंगी का मंत्र और यन्त्र प्रकृति की सभी शक्तियों में सर्वाधिक शक्तिशाली वाशिकारक और मोहक प्रभाव रखता है क्योकि यह इसी की शक्ति हैं ही |यद्यपि इनका यन्त्र काफी महंगा पड़ जाता है ,जबकि अन्य वशीकरण के यन्त्र बाजार में बहुत सस्ते मिल जाते हैं ,यह अलग है की अन्य भले असफल हो जाए इनका यन्त्र प्रभाव जरुर देता है |

उदाहरण के लिए ,श्यामा मातंगी का मंत्र केवल इनका साधक ही जप सकता है और वाही अभिमंत्रित कर सकता है यन्त्र को जबकि अगर वह दिन में 5 घंटे लगातार जप करे तो भी तीन हजार मंत्र से अधिक जप नहीं कर सकता ,कारण मंत्र बड़ा और क्लिष्ट होता है |

ऐसे में यन्त्र को २१ हजार अभिमंत्रित करने के लिए कम से कम 7 दिन चाहिए ,पूजा प्राण प्रतिष्ठा और बाद में हवन के लिए दो दिन अतिरिक्त चाहिए अर्थात ९ दिन लगेंगे एक यन्त्र बनाने में अर्थात 2000 /- रु ,,500 अन्य पूजा पाठ और हवन आदि के खर्च अर्थात कुल 2500 रु. |

इस प्रकार केवल २१ हजार मंत्र से अभिमंत्रित यन्त्र भी 2500 रु. का पड़ जाता है |कम से कम अभिमंत्रित यन्त्र भी 7000 से कम में नहीं आएगा यदि वास्तविक प्रभाव लानी है ,क्योकि बहुत कम अभिमन्त्रण अपेक्षित परिणाम नहीं देगा |

इस तरह सबके लिए तो नहीं किन्तु जरूरतमंद के लिए यह यन्त्र लाभदायक होता है |

श्यामा मातंगी यन्त्र का प्रभाव और उपयोग

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१. यन्त्र धारण करने से वशीकरण की शक्ति बढती है |व्यक्तित्व का प्रभाव बढ़ता है |

२. अधिकारी वर्ग को अपने कर्मचारियों पर नियंत्रण और उन्हें वशीभूत रखने में आसानी होती है |

३.कर्मचारी को अपने अधिकारियों को अनुकूल रखने में मदद मिलती है |

४.पति को पत्नी की और पत्नी को पति की अनुकूलता अपने आप प्राप्त होती है और धारण करने वाले का पति या पत्नी वशीभूत होता है |

५.सेल्स ,मार्केटिंग ,पब्लिक रिलेसन का कार्य करने वालों को लोगों का अपेक्षित सहयोग मिलता है |

६.व्यवसायी को ग्राहकों की अनुकूलता मिलती है और अपरोक्त उन्नति में सहायत मिलती है |

७.रुष्ट परिवार वालों को इससे अनुकूल करने में मदद मिलती है |

८.वाद-विवाद ,मुकदमे ,बहस ,समूह वार्तालाप ,आपसी बातचीत में सामने वाले की अनुकूलता प्राप्त होती है |

९. चूंकि यह महाविद्या यन्त्र है और काली की शक्ति से संयुक्त है अतः नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है |

१०. किसी पर पहले से कोई वशीकरण की क्रिया है तो यन्त्र भरे हुए चांदी कवच को सुबह शाम कुछ दिन एक गिलास जल में डुबोकर वह जल व्यक्ति को पिलाने से वशीकरण का प्रभाव उतरता है |

११.किसी भी तरह के इंटरव्यू में परीक्षक पर सकारात्मक प्रभाव देता है |

१२. व्यक्ति विशेष के लिए बनाया गया यन्त्र धारण और मंत्र जप निश्चित रूप से सम्बंधित व्यक्ति को वशीभूत करता है |

१३.दाम्पत्य कलह ,पारिवारिक कलह ,मनमुटाव ,विरोध में लोगों को प्रभावित करता है और व्यक्ति के अनुकूल करता है |

१४.सामाजिक संपर्क रखने वालों को लोगों की अनुकूलता प्राप्त होती है |

१५.ज्ञान-विज्ञानं-अन्वेषण-परीक्षा

-प्रतियोगिता ,प्रवचन ,भाषण से समबन्धित लोगों को सफल होने में मदद करता है |

इस प्रकार ऐसा कोई क्षेत्र लगभग नहीं जहाँ इस यन्त्र से लाभ न मिलता हो क्योकि लोगों की अनुकूलता की जरुरत सबको होती है और लोग या व्यक्ति प्रभावित हो अनुकूल हों ,वशीभूत हों तो व्यक्ति को लाभ अवश्य होता है |

अतः श्यामा मातंगी साधक द्वारा बनाया गया श्यामा मातंगी यन्त्र ,अन्य किसी यन्त्र से अधिक लाभकारी होता है |यदि कोई श्यामा मातंगी साधक श्यामा यन्त्र को रविपुष्य योग में

राजगुरु जी

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Monday, February 6, 2017

परकाया प्रवेश सिद्धि योगा, जानिए

 ‘नाथ सम्प्रदाय’ के आदि गुरु मुनिराज ‘मछन्दरनाथ’ के विषय में भी कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी। सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार गमनागमन विभिन्न शरीरों में करते थे। एकबार अपने शिष्य गोरखनाथ को स्थूल शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर एक मृत राजा के शरीर में उन्होंने सूक्ष्म शरीर से प्रवेश किया था। 'महाभारत के शान्ति पर्व' में वर्णन है कि सुलभा नामक विदुषी अपने योगबल की शक्ति से राजा जनक के शरीर में प्रविष्ट कर विद्वानों से शास्त्रार्थ करने लगी थी। उन दिनों राजा जनक का व्यवहार भी स्वाभाविक न था।

‘अनुशासन पर्व’ में ही कथा आती है कि एक बार इन्द्र किसी कारण वश ऋषि देवशर्मा पर कुपित हो गये। उन्होंने क्रोधवश ऋषि की पत्नी से बदला लेने का निश्चय किया। देवशर्मा का शिष्य ‘विपुल’ योग साधनाओं में निष्णात और सिद्ध था। उसे योग दृष्टि से यह मालूम हो गया कि मायावी इन्द्र, गुरु पत्नी से बदला लेने वाले हैं। ‘विपुल’ ने सूक्ष्म शरीर से गुरु पत्नी के शरीर में उपस्थित होकर इन्द्र के हाथों से उन्हें बचाया।

‘पातंजलि योग दर्शन’ में सूक्ष्म शरीर से आकाश गमन, एक ही समय में अनेकों शरीर धारण, परकाया प्रवेश जैसी अनेकों योग विभूतियों का वर्णन है।

मरने के बाद सूक्ष्म शरीर जब स्थूल शरीर को छोड़कर गमन करता है तो उसके साथ अन्य सूक्ष्म परमाणु कहिए या कर्म भी गमन करते हैं जो उनके परिमाप के अनुसार अगले जन्म में रिफ्लेक्ट होते हैं, जैसे तिल, मस्सा, गोली का निशान, चाकू का निशान, आचार-विचार, संस्कार आदि। इस सूक्ष्म शरीर को मरने से पहले ही जाग्रत कर उसमें स्थिति हो जाने वाला व्यक्ति ही परकाय प्रवेश सिद्धि योगा में पारंगत हो सकता है।

सबसे बड़ा सवाल यह कि खुद के शरीर पर आपका कितना कंट्रोल है? योग अनुसार जब तक आप खुद के शरीर को वश में करन नहीं जानते तब तक दूसरे के शरीर में प्रवेश करना मुश्किल होगा।

दूसरों के शरीर में प्रवेश करने की विद्या को परकाय प्रवेश योग विद्या कहते हैं। आदि शंकराचार्य इस विद्या में अच्छी तरह से पारंगत थे। नाथ संप्रदाय के और भी बहुत से साधक इस तकनीक से अवगत थे, लेकिन आम जनता के लिए तो यह बहुत ही कठिन जान पड़ता है। क्यों?

योग में कहा गया है कि मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है 'चित्त की वृत्तियां'। इसीलिए योग सूत्र का पहला सूत्र है- योगस्य चित्तवृत्ति निरोध:। इस चित्त में हजारों जन्मों की आसक्ति, अहंकार काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से उपजे कर्म संग्रहित रहते हैं, जिसे संचित कर्म कहते हैं।

यह संचित कर्म ही हमारा प्रारब्ध भी होते हैं और इसी से आगे की दिशा भी तय होती है। इस चित्त की पांच अवस्थाएं होती है जिसे समझ कर ही हम सूक्ष्म शरीर को सक्रिय कर सकते हैं। सूक्ष्म शरीर से बाहर निकल कर ही हम दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।

इस चित्त या मानसिक अवस्था के पांच रूप हैं:- (1)क्षिप्त (2) मूढ़ (3)विक्षिप्त (4)एकाग्र और (5)निरुद्व। प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ मानसिक वृत्तियों का निरोध होता है।

(1)क्षिप्त : क्षिप्त अवस्था में चित्त एक विषय से दूसरे विषय पर लगातार दौड़ता रहता है। ऐसे व्यक्ति में विचारों, कल्पनाओं की भरमार रहती है।

(2)मूढ़ : मूढ़ अवस्था में निद्रा, आलस्य, उदासी, निरुत्साह आदि प्रवृत्तियों या आदतों का बोलबाला रहता है।

(3)विक्षिप्त : विक्षिप्तावस्था में मन थोड़ी देर के लिए एक विषय में लगता है पर क्षण में ही दूसरे विषय की ओर चला जाता है। पल प्रति‍पल मानसिक अवस्था बदलती रहती है।

(4)एकाग्र : एकाग्र अवस्था में चित्त देर तक एक विषय पर लगा रहता है। यह अवस्था स्थितप्रज्ञ होने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है।

(5)निरुद्व : निरुद्व अवस्था में चित्त की सभी वृत्तियों का लोप हो जाता है और चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिर, शान्त अवस्था में आ जाता है। अर्थात व्यक्ति को स्वयं के होने का पूर्ण अहसास होता है। उसके उपर से मन, मस्तिष्क में घुमड़ रहे बादल छट जाते हैं और वह पूर्ण जाग्रत रहकर दृष्टा बन जाता है। यह योग की पहली समाधि अवस्था भी कही गई है।

सूक्ष्म शरीर के होने का आभास

*ध्यान योग का सहारा : निरुद्व अवस्था को समझें यह व्यक्ति को आत्मबल प्रदान करती है। यही व्यक्ति का असली स्वरूप है। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए सांसार की व्यर्थ की बातों, क्रियाकलापों आदि से ध्यान हटाकर संयमित भोजन का सेवन करते हुए प्रतिदिन ध्यान करना आवश्यक है। इस दौरान कम से कम बोलना और लोगों से कम ही व्यवहार रखना भी जरूरी है।

*ज्ञान योग का सहारा : चित्त की वृत्तियों और संचित कर्म के नाश के लिए योग में ज्ञानयोग का वर्णन मिलता है। ज्ञानयोग का पहला सूत्र है कि स्वयं को शरीर मानना छोड़कर आत्मा मानों। आत्मा का ज्ञान होना सूक्ष्म शरीर के होने का आभास दिलाएगा।

कैसे होगा यह संभव : चित्त जब वृत्ति शून्य (निरुद्व अवस्था) होता है तब बंधन के शिथिल हो जाने पर और संयम द्वारा चित्त की प्रवेश निर्गम मार्ग नाड़ी के ज्ञान से चित्त दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की सिद्धि प्राप्त कर लेता है। यह बहुत आसान है, चित्त की स्थिरता से सूक्ष्म शरीर में होने का अहसास बढ़ता है। सूक्ष्म शरीर के निरंतर अहसास से स्थूल शरीर से बाहर निकलने की इच्‍छा बलवान होती है।

*योग निंद्रा विधि : जब ध्यान की अवस्था गहराने लगे तब निंद्रा काल में जाग्रत होकर शरीर से बाहर निकला जा सकता है। इस दौरान यह अहसास होता रहेगा की स्थूल शरीर सो रहा है। शरीर को अपने सुरक्षित स्थान पर सोने दें और आप हवा में उड़ने का मजा लें। ध्यान रखें किसी दूसरे के शरीर में उसकी इजाजत के बगैर प्रवेश करना अपराध है।

राजगुरु जी

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नवग्रह दोष निवारण (छिन्नमस्ता साधना).










नाथ पंथ सहित बौद्ध मताब्लाम्बी भी देवी की उपासना करते हैं, भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा वैभव की प्राप्ति, बाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है, इनकी सिद्धि हो जाने पर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता, दस महाविद्यायों में प्रचंड चंड नायिका के नाम से व बीर रात्रि कह कर देवी को पूजा जाता है



देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है छिन्नमस्ता देवी शत्रु नाश की सबसे बड़ी देवी हैं,भगवान् परशुराम नें इसी विद्या के प्रभाव से अपार बल अर्जित किया था,गुरु गोरक्षनाथ की सभी सिद्धियों का मूल भी देवी छिन्नमस्ता ही है.देवी नें एक हाथ में अपना ही मस्तक पकड़ रखा हैं  और
दूसरे हाथ में खडग धारण किया है देवी के गले में मुंडों की माला है व दोनों और
सहचरियां हैं देवी आयु, आकर्षण,धन,बुद्धि मे वृद्धि एवं रोगमुक्ति व शत्रुनाश विशेष रूप से करती है.

देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है.

स्तुति:-

ll छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम, प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम, पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम, दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम, दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम, अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम, डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत: ll

देवी की कृपा से साधक मानवीय सीमाओं को पार कर देवत्व प्राप्त कर लेता है.गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए देवी योगमयी हैं ध्यान समाधी द्वारा भी इनको प्रसन्न किया जा सकता है.

इडा पिंगला सहित स्वयं देवी सुषुम्ना नाड़ी हैं जो कुण्डलिनी का स्थान हैं.देवी के भक्त को मृत्यु भय नहीं रहता वो इच्छानुसार जन्म ले सकता है.देवी की मूर्ती पर रुद्राक्षनाग केसर व रक्त चन्दन चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है.महाविद्या छिन्मस्ता के मन्त्रों से होता है आधी व्यादी सहित बड़े से बड़े दुखों का नाश कर देती है.


श्रीभैरवतन्त्र में कहा गया है कि इनकी आराधना से साधक जीवभाव से मुक्त होकर शिवभाव को प्राप्त कर लेता है.

साधना विधि:-

सर्वप्रथम देवी का प्रचंड चंडिका मंत्र "ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा" को बोलते हुए अपने शरीर पर साधना मे बैठकर पानी के छीटे लगाये.
फिर नवग्रह दोष निवारण हेतु माँ से प्रार्थना करे और दीये हुए मंत्र का जाप मंगलवार से नित्य नौ दिनो तक ग्यारह माला (रुद्राक्ष माला) जाप करे.दिशा-उत्तर,आसन-वस्त्र-लाल रंग के,समय रात्री मे 9 बजे के बाद और दसवे दिन 108 बार घी की आहुति  मंत्र बोलकर देना है.
यह विधान पूर्ण होते-होते ही साधक को कई अनुभुतिया होती है परंतु घबराना नही चाहिये.साधना समाप्ती के बाद नवग्रह दोष का निवारण होता है.

माँ छिन्नमस्ता नवग्रहदोष निवारण मंत्र:-

llॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं वं वज्रवैरोचिनिये हुमll

(om shreem hreem aim kleem vam vajravairochiniye hoom)

मंत्र जाप के बाद देवी की स्तुती करे जो दि हुयी है.मंत्र का सही उच्चारण करने से ही लाभ प्राप्त होगा अन्यथा नही होगा.साधना काल मे ज्यादा से ज्यादा मौन रहेने से तीव्र अनुभुतिया प्राप्त होती है,हवन के समय मंत्र के आखरी मे "स्वाहा" लगाना नही भूलना चाहिये.

माँ चिंतापुरिनी आपका भला करे.....

राज गुरु जी

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Sunday, February 5, 2017

विकटमुखी वशिकरण मंत्र

यह मंत्र अद्भुत है स्वयं सिद्ध है आप सिद्ध करने कि जरुरत नही सिधे प्रयग मे लाय। प्रतिदिन इस मत्र से अन्न के सात ग्रास अभिमत्रित कर साध्य के रुप.

 नाम चिँनता कर भजन करे वो साध्य आपके वश मेँ होगा। इसमे सदेह करने का कई कारण नही है।लेकिन आप कुछ दिन तक आगर पाँच माल जाप कर यह प्रयग करे तो लाभ दोगुना होगा

मंत्र-

ॐ नमः कट् विकट घोररुपिणी स्वाहा

राजगुरु जी

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Saturday, February 4, 2017

देवी अनंग माला साधना

शिव में ही तो हु परम शक्ति भद्र काली ,जो तुम्हारे ह्रदय में अनंग माला  रूप से निवास करती हु. मेरा यही स्वरुप तुम्हे आकर्षण प्रदान करता है।इस  आकर्षण के आगे संसार का सारा आकर्षण व्यर्थ है,आकर्षण की सारी साधनाए  व्यर्थ है. संसार का परम आकर्षण में हु। में ही हु वो अनंग माला जो कामदेव  को भी आकर्षित कर लेती है. ये मेरा ही आकर्षण है जिसके फल स्वरूप,संसार की  हर

 अप्सरा,यक्षिणी,डाकिनी,शाकिनी,तथा  सामान्य स्त्री शिव पर मोहित होती है.यदि में नहीं तो संसार में आकर्षण  नहि. शिव तू कह तो सही संसार की ऐसी कोनसी  वस्तु है जो तुझसे दूर है।में  क्षण भर में उसका आकर्षण तेरे ऊपर कर दूंगी

ये है भगवती अनंग माला जो की महाकाली का ही एक स्वरूप है.तन्त्र में आकर्षण की इससे श्रेष्ट साधना कोई और नहीं है.और न ही होगि. जो शिव को भी आकर्षण प्रदान करने वाली है,जरा सोचे वो अपने भक्त के लिये क्या कुछ नहीं कर सकती है

अनंग माला साधना मंत्र :

॥ॐ ऐं आं ह्रीं हूं क्रों क्षों  क्रीं क्रौं फ्रें अनंगमाले स्त्रीयमाकर्षय त्रुट त्रुट छेदय छेदय  हूं हूं फट फट स्वाहा॥

विधि:

 साधना किसी भी शुभ दिन से शुरू कर सकते है. आसन वस्त्र लाल,दिशा  उत्तर होगि. समय रात्रि दस के बाद का हो.सामने बजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर  उसपर शक्ति रुद्राक्ष स्थापित करे. गुरु पूजन तथा गणेश पूजन करे. अब  रुद्राक्ष पूजन करे सामान्य,कोई भी मिठाई का भोग अर्पण करे।तील के तेल का  दीपक लगाये।और रुद्राक्ष माला से मंत्र की ५ माला जाप करे. साधना दस दिनों  तक करे आखरी दिन यथा संभव हवन करे,घी में पञ्च मेवा मिलाकर। इस तरह देवी  अनंग माला की ये लघु साधना पूर्ण होती है जो साधक में पूर्ण आकर्षण भर देती  है.

जिससे संसार की हर स्त्री साधक की और आकर्षित होती है,यहाँ तक की जब  आप यक्षिणी या अप्सरा की साधना करे तब एक माला मंत्र की करके शक्ति  रुद्राक्ष को अपने बाजु पर बांध ले लाल धागे से।तो ये मंत्र अप्सरा तथा  यक्षिणी का भी आकर्षण करता है.

साधना  के बाद पुनः रुद्राक्ष को स्नान कराके  सुरक्षित रख ले.यदि पत्नी रात  दिन कलह करती है तो उसके नाम से संकल्प  लेकर मात्र एक माला करे और भगवती काली को एक नारियल अर्पण कर दे. पत्नी  आपकी और आकर्षित होकर आपके अनुकूल हो जयेगि. निसंदेह ये साधना अद्भूत है  अतः आप सभी इससे लाभ ले.

जय माँ .

राजगुरु जी

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पुष्पदेहा अप्सरा साधना





किसी भी शुक्रबार से प्रारंभ कर अगले १४ दिनों तक की साधना है ( कुल १५ दिन की )... इसमें पुष्पदेहा अप्सरा यन्त्र और पुष्पदेहा अप्सरा माला प्रयोग मे लानी चाहिए! उत्तम वस्त्र पहनने चाहिए एवं दिशा उत्तर मुख होनी चाहिए ! मंत्र जप के समय शुद्ध घी का दीपक जलते रहना चाहिए उसमे कुछ इत्र की बूंदे भी डाल दें ! साधना का समय और स्थान बदलना नहीं चाहिए ! स्थान साफ़ सुथरा और सुसजित होना चाहिए !

यह रात्रि कालीन साधना है अतः १० बजे के बाद ही प्रारंभ करे ! यन्त्र एवं माला का कुमकुम अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें और निम्न मंत्र का १५ दिन तक ५ माला जप करें !

!! ॐ ह्रीं पुष्पदेहा आगच्छ प्रत्यक्षं भव ॐ फट !!

मंत्र जप के बाद हो सके तो वहीँ पर विश्राम करें ! १५ दिन के बाद यन्त्र और माला को किसी पवित्र नदी या सरोवर या देवालय मे विसर्जित कर दें !
साधना काल मे गुरु मंत्र और गुरु पर पूर्ण विशवास रखें


राजगुरु जी

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महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...