क्यों असफल हो जाती है वशीकरण की क्रिया
वशीकरण मानव मन की सूक्ष्म तरंगों पर आधारित विलक्षण कर्म है |यह कभी सफल होता है कभी असफल होता है ,या यूँ कहें अकसर असफल भी होता है |क्यों ,क्योकि इसकी तकनिकी का ज्ञान नहीं होता ,सूत्र पता नहीं होता ,उद्देश्य पवित्र नहीं होते ,लक्ष्य के प्रति एकाग्रता नहीं होती ,स्वार्थपरता की भावना होती है ,क्रिया-उद्देश्य-भाव-मानसिक तरंगों में एक रूपता नहीं होती |जिसके लिए क्रिया की जा रही होती है उसकी और से भी बहुत सारे अवरोध होते है ,उसका मानसिक बल-शक्ति ,उसके चक्रों और ऊर्जा परिपथ की शक्ति ,उसके ईष्ट ,उसके कुलदेवता/देवी ,उसपर पहले से की गयी कोई तांत्रिक क्रिया आदि आदि |उपरोक्त स्थितियों में यह क्रिया असफल हो सकती है |
इस क्रिया के लिए इसके रास्ते के अवरोधों को समझना भी आवश्यक होता है |सम्पूर्ण जानकारी के साथ पूर्ण क्रिया द्वारा ही वशीकरण संभव है ,चाहे वह किसी व्यक्ति के लिए किया जा रहा हो या ईश्वर के लिए |व्यक्ति विशेष के मामले में यदि कोई तंत्र साधक कहीं दूर से केवल मंत्र द्वारा किसी अन्य के कहने पर किसी पर वशीकरण की क्रिया करता है तो जिसपर वह क्रिया कर रहा है उसके कुलदेवता और ईष्ट इसमें रुकावट उत्पन्न करते है |यह लोग नहीं चाहते की उनके संरक्षण में रहने वाला उनका भक्त किसी प्रकार के षट्कर्म के प्रभाव में आये ,अतः यह वहां मंत्र के प्रभाव से आ रही शक्ति को रोकते हैं |यदि तंत्र साधक इन कुलदेवता/देवी और ईष्ट को अनुकूल कर या इनके प्रभाव को निष्प्रभावी कर लक्ष्य के व्यक्ति तक अपनी शक्ति पंहुचा देता है तो सफलता मिल सकती है बशर्ते व्यक्ति किसी अन्य नजदीकी तांत्रिक क्रिया के प्रभाव में न हो |यदि व्यक्ति के आसपास का कोई व्यक्ति उसपर पहले से कोई तांत्रिक क्रिया कर या करवा रहा होगा या कुछ खिला पिला दिया होगा तब दूर बैठे तंत्र साधक की केवल मान्त्रिक शक्ति की सफलता संदिग्ध हो जाती है |
उपरोक्त परिस्थिति में जिस व्यक्ति ने तंत्र साधक से यह क्रिया करने को कहता है या जो किसी को वश में करना चाहता है उसकी खुद की मानसिक स्थिति मुख्य हो जाती है |उसकी मानसिक शक्ति -एकाग्रता पर सबकुछ निर्भर हो जाता है ,क्योकि मुख्य क्रिया अब उसे ही करनी पद सकती है ,क्योकि वह सीधे व्यक्ति के संपर्क में है या संपर्क चाहता है |अब तंत्र साधक की क्रिया सहायक के तौर पर हो सकती है [सामान्यतया ऐसा इसलिए होता है की बहुत उच्च स्तर का साधक जो किसी को भी कहीं से भी किसी भी स्थिति में अनुकूल कर सके वह ऐसे मामलों में कम ही रूचि लेता है ,जो सामान्यतया रूचि लेते हैं वह गंभीर अनुष्ठानिक क्रिया से या तो बचते हैं या इतनी शक्ति मुस्ज्किल से ही होती है की हर स्थिति में सफल ही हो जाएँ |कुल मिलाकर जो यह क्रिया चाहता है उसकी भूमिका मुख्य हो जाती है |
जिसने तंत्र साधक से संपर्क किया है या जो किसी को वशीभूत करना चाहता है ,वह जब भी जब खुद कोई क्रिया करता है तो उसकी मानसिक एकाग्रता और मानसिक शक्ति पर पर ही सबकुछ निर्भर होता है |लक्षित व्यक्ति पर यदि तांत्रिक प्रभाव है तब तो गंभीर क्रियाएं करनी पड़ती ही हैं ,सामान्य मामलों में भी पूर्ण एकाग्रता और शक्ति की आवश्यकता होती है |क्रियाकर्ता का मानसिक भटकाव, एकाग्रता में कमी ,किसी क्रिया में एक छोटी सी त्रुटी सारे कार्य बिगाड़ देती है ,क्योकि यह ऊर्जा का खेल है और व्यवधान या त्रुटी से सम्पूर्ण क्रिया अनियंत्रित हो बिखर जाती है |इसी तरह यदि क्रिया गोपनीय न रहे और किसी तीसरे व्यक्ति को जानकारी हो तो भी प्रभाव में कमी आ जाती है |
जिस व्यक्ति पर पहले से कोई तांत्रिक क्रिया की गयी हो ,या जिसके कुलदेवता/देवी अथवा ईष्ट बहुत प्रबल हों ,जो बहुत मजबूत मानसिक शक्ति का स्वामी हो उसपर सीधे वशीकरण की क्रिया असफल हो सकती है ,यहाँ पहले आकर्षण की क्रिया कर उसे बुलाया या अपनी और आकर्षित करना बेहतर होता है |व्यक्ति से मिलने ,संपर्क करने का प्रयास आकर्षण द्वारा करके उससे मिलने पर वशीकरण की क्रिया की जाए या अभिमंत्रित वस्तुएं खिलाई-पिलाई जाए तो अधिक सफलता की उम्मीद हो सकती है |
यद्यपि एक से बढकर एक सक्षम व्यक्ति और साधक है ,जो कही भी कभी भी कुछ भी कर पाने में सक्षम होते हैं ,किन्तु अक्सर क्षमतावान का मिलना मुश्किल होता है या उन्हें रूचि नहीं होती |ऐसे में अक्सर सामान्य लोग ही किसी जानकार की सलाह से यह सब करने लगते है ,और जरुँरत भी खुद करने की होती है ,{सहायता जरुर किसी साधक से ली जा सकती है },अतः पूर्ण क्रिया ,पद्धति ,विधि आदि की जानकारी होनी चाहिए |विचारों की शुद्धता ,उद्देश्य की पवित्रता ,एकाग्रता ,लक्ष्य का भटकाव असफल ही बनता है
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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