अद्भुत शक्तियों के स्वामी हैं आप
मनाली के पास स्थित वशिष्ठ का मंदिर
खुद को पहचानें
विभिन्न प्रदेशों की यात्राओं के दौरान मैंने देखा है कि विभिन्न ऋषियों- वशिष्ठ, विश्वामित्र, वाल्मीकि, परशुराम आदि के बाकायदा मंदिर हैं, जिनमें उनको भगवान मानकर पूजा की जाती है। इसी तरह ऋषि पत्नी रेणुका, राक्षसी हिडंबा, एक जमींदार की पत्नी बिहुला, राणी सती आदि की देवी के रूप में पूजा होती है। अपने-अपने क्षेत्र में इन सभी देवी-देवताओं पर भक्तों का अगाध विश्वास है। वे श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं और उनकी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। कई जगह तो उन देवी-देवताओं के आशीर्वाद के बिना कोई महत्वपूर्ण काम भी शुरू नहीं किया जाता है। मनाली में मान्यता है कि माता हिडंबा के दर्शन के बिना कोई शुभ काम सफल नहीं हो सकता। स्थानीय लोगों की यहां तक मान्यता है कि बाहर से आने वाले लोगों के लिए भी मनाली आने पर माता का आशीर्वाद लेना आवश्यक है। इसके बिना उनकी यात्रा अधूरी रहती है। इन घटनाओं को महज संयोग नहीं कहा जा सकता है। इन देवी-देवताओं के संतुष्ट और समर्पित भक्तों की बड़ी संख्या साबित करती हैं कि उनमें कुछ तो है। पहाड़ी क्षेत्रों एवं ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में ऐसे देवियां एवं ग्राम देवता मिल जाते हैं जो पहले मानव ही थे। उन्होंने त्याग, तपस्या और जनकल्याण की भावना के बल पर ही यह स्थिति हासिल की है। वैज्ञानिक रूप से विचार करें तो पाएंगे कि ब्रह्मांड की सारी शक्ति हममें (मानवों में) भी सन्निहित है।
भगवान का ही रूप है इंसान
एक इंसान ब्रह्मांड का ही लघु रूप है। इस लिहाज से कह सकते हैं कि वह भगवान का लघु रूप है। अतः खुद को पहचान कर तथा ब्रह्मांड से जुड़ी शक्तियों को जगाकर एवं उसका संबंध ब्रह्मांड से कर हम भी कभी नष्ट न होने वाले शक्तिपूंज बन सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हम पूर्ण भगवान बन सकते हैं। शास्त्रों में भी वर्णन है कि इंसान तंत्र, मंत्र, योग, ध्यान आदि तरीके से आध्यात्मिक शक्तियों को जगाकर खुद को परमपिता परमेश्वर में मिला सकता है। जाहिर है कि इस तरह से वह भगवान बन सकता है। वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो साबित हो गया है कि ब्रह्मांड की हर वस्तु को टुकड़ों में विभक्त करते जाएं तो वह अणु से परमाणु फिर इलेक्ट्रान-प्रोटान-न्यूट्रान और अंततः गॉड पार्टिकल में विभक्त हो जाता है। अर्थात ब्रह्मांड की हर जड़ व चेतन वस्तु गॉड पार्टिकल से ही बनी है। जड़ व चेतन में वस्तु के गुण-धर्म के अनुरूप गाड पार्टिकल सक्रिय या निष्क्रिय पड़ा रहता है। ब्रह्मांड में सिर्फ इंसान में वह ताकत है कि योग, मंत्र, ध्यान आदि से अपने अंदर निहित शक्तियों को अधिक सक्रिय कर ईश्वरीय तत्व को हासिल कर सकता है। देवी-देवता बने महामानव इसी श्रेणी में आते हैं। ग्राम देवता, पीर बाबा की मजार आदि को भी इस के छोटे रूप में माना जाना चाहिए।
कैसे करें शक्ति को जागृत
शिमला के पास स्थित माता रेणुका का मंदिर
यह प्रश्न है कि जब सबके शरीर में समान ताकत है तो सभी ईश्वर क्यों नहीं बन जाते हैं? उन्हें क्यों बार-बार मानवीय समस्याओं और बंधनों में जकड़ना पड़ता है? वास्तव में इसका जवाब बहुत सरल है। ईश्वरीय तत्व हम सबके शरीर में है तो, लेकिन बीज रूप में। उसे फलीभूत करने के लिए पहले उसे जगाना होगा। ईश्वरीय तत्व हम सबके शरीर में बीज रूप में है। उसे ईश्वर रूपी पौधा बनाने के लिए मानव रूपी शरीर के तत्वों को गलना होगा, नष्ट करना होगा। जैसे बीज को पौधा बनने में अपने अस्तित्व को मिटाना पड़ता है, उसी तरह इंसान रूपी बीज को ईश्वरीय तत्व रूपी पौधे में बदलने के लिए काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार से मुक्त होना होता है। इसमें भी सबसे जरूरी है अहं की भावना को खत्म कर खुद को ईश्वरीय तत्व के रूप में बदलना। यह सारी प्रक्रिया मुख्य रूप से मानसिक ही है लेकिन चूंकि मानव के रूप में हमारी पहचान, ताकत या बंधन जो भी कहें, शरीर ही है, इसलिए शरीर को भी मानसिक यात्रा के साथ सहभागी बनाना होगा। इसके लिए ध्यान, योग, भक्ति, मंत्र आदि प्रमुख माध्यम हैं। इनके माध्यम से शरीर में सबसे पहले सोयी पड़ी शक्तियों को जगाकर मानसिक यात्रा के अनुरूप बनाना होता है। यह अलग और विस्तृत विषय है, अतः इस पर बाद के लेखों में विस्तार से चर्चा करूंगा।
यह प्रश्न है कि जब सबके शरीर में समान ताकत है तो सभी ईश्वर क्यों नहीं बन जाते हैं? उन्हें क्यों बार-बार मानवीय समस्याओं और बंधनों में जकड़ना पड़ता है? वास्तव में इसका जवाब बहुत सरल है। ईश्वरीय तत्व हम सबके शरीर में है तो, लेकिन बीज रूप में। उसे फलीभूत करने के लिए पहले उसे जगाना होगा। ईश्वरीय तत्व हम सबके शरीर में बीज रूप में है। उसे ईश्वर रूपी पौधा बनाने के लिए मानव रूपी शरीर के तत्वों को गलना होगा, नष्ट करना होगा। जैसे बीज को पौधा बनने में अपने अस्तित्व को मिटाना पड़ता है, उसी तरह इंसान रूपी बीज को ईश्वरीय तत्व रूपी पौधे में बदलने के लिए काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार से मुक्त होना होता है। इसमें भी सबसे जरूरी है अहं की भावना को खत्म कर खुद को ईश्वरीय तत्व के रूप में बदलना। यह सारी प्रक्रिया मुख्य रूप से मानसिक ही है लेकिन चूंकि मानव के रूप में हमारी पहचान, ताकत या बंधन जो भी कहें, शरीर ही है, इसलिए शरीर को भी मानसिक यात्रा के साथ सहभागी बनाना होगा। इसके लिए ध्यान, योग, भक्ति, मंत्र आदि प्रमुख माध्यम हैं। इनके माध्यम से शरीर में सबसे पहले सोयी पड़ी शक्तियों को जगाकर मानसिक यात्रा के अनुरूप बनाना होता है। यह अलग और विस्तृत विषय है, अतः इस पर बाद के लेखों में विस्तार से चर्चा करूंगा।
सूक्ष्म शरीर की यात्रा
मेरा व्यक्तिगत अनुभव है और निश्चय ही आपमें से भी कई ने अनुभव किया होगा कि किसी गंभीर संकट या समस्या उपस्थित होने पर आकस्मिक रूप से कोई अज्ञात शक्ति हमें उससे निकलने में मदद करती है। उसे हम संयोग मान लेते हैं लेकिन वास्तव में संयोग कुछ होता ही नहीं है। इस ब्रह्मांड में जहां अकारण पत्ता भी नहीं हिलता है, वहां कई बार इस तरह की घटनाएं अकारण कैसे हो जाएंगी, निश्चय ही इसके कारण हैं। यह कारण सूक्ष्म रूप में मौजूद सकारात्मक शक्तियां हैं जो कभी शरीर में थीं लेकिन आंतरिक शक्तियों को जगाकर ब्रह्मांड में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हो गई हैं। वही शक्तियां अपने समान गुण-धर्म वाले लोगों पर नजर रखती हैं और उन्हें समय-असमय मदद करती हैं। अगर आप ध्यान दें तो कई बार उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं। इसके लिए आवश्यकता सिर्फ इतनी है कि अपनी संवेदनशीलता बढ़ाएं और महसूस करने का लगातार अभ्यास करें।
राज गुरु जी
महाविद्या आश्रम
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