भैरवी चक्र साधना में साधक-साधिकाओं के लिए निर्देश
1.किसी भी नारी कि उपेक्षा या अपमान न करें।
2.कन्याओं को देवी का रूप समझकर उनकी पूजा करें।
3.कन्याओं-नारियों की शक्ति पर सहायता एवं रक्षा करें।
4.पेड़ न काटे, न कटवाएं।
5.मदिरापान या मांसाहार केवल साधना हेतु है। इसे व्यसन न बनाये।जो मस्तिष्क और विवेक को नष्ट कर दे; उस मदिरापान से भैरव जी कुपित होकर उसका विनाश कर देते है।
6.भैराविमार्ग की अपनी साधना को गुप्त रखें, किसी को न बताएं।
7.दिन में सामान्य पूजा करें।साधना 9 से 1 बजे तक रात्रि में प्रशस्त हैं।
8.नवमी एवं चतुर्दशी को भैरवी में स्थित देवी की पूजा करें।
9.इस मार्ग के आलोचकों से मत उलझे। इस संसार में भांति-भांति के प्राणी रहते है। सब की प्रवृत्ति एवं एवं सोच अलग-अलग होती है। न तो किसी को इस मार्ग कि ओर प्रेरित करे, न ही विरोध करे।
10.यह प्रयास रखे कि भैरवी सदा प्रसन्न रहे।
11.यदि वह मांसाहारी नहीं है; तो वानस्पतिक गर्म और कामोत्तेजक पदार्थों का सेवन करें और विजया से निर्मित मद का प्रयोग करें।
अन्य जानकारियाँ
11.आसन, वस्त्र लाल होते हैं। एक वस्त्र का प्रयोग करे, जो ढीला हो। कुछ सिले हुए वस्त्र की भी वर्जना करते हैं।
12.पूजा केवल नवमी-चतुर्दशी को होती है। अन्य तिथियों में केवल साधना होती है।
13.साधना के अनेक स्तर है। यहाँ सामान्य स्तर दिया गया है। भैरवी को सामने बैठाकर देवीरुप कल्पना में मंत्र जप करने से मन्त्र सिद्ध होते है।
14.मूलाधार के प्लेट के नीचे से खोपड़ी कि जोड़ तक और सिर के चाँद तक में मुख्य चक्र होते है। साधक-साधिका को इस पर जैतून या चमेली के तेल की मालिश करते रहना चाहिए।
15.इन चक्रों पर नीचे से ऊपर तक होंठ फेरने और चुम्बन लेने से ये शक्तिशाली होते है।
16.एक-दूसरे के आज्ञाचक्र को चूमने से मनासिक शक्ति प्रबल होती है।
17.चषक (पानपात्र) को सम्हाल कर रखें। इनका दिव्य महत्त्व होता है।
18.घट हर बार न्य लें, पूराने को विसर्जित कर दें।
घट के प्रसाद में मध के साथ सुगन्धित पदार्थ और गुलाब –केवड़ा जैसे फूलों को रखने का निर्देश है।
घट के प्रसाद में मध के साथ सुगन्धित पदार्थ और गुलाब –केवड़ा जैसे फूलों को रखने का निर्देश है।
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