Friday, July 31, 2015

हर संकट को नष्ट करता है मां काली का यह मंत्र







मां कालिका का स्वरूप जितना भयावह है उससे कही ज्यादा मनोरम और भक्तों के लिए आनंददायी है। आमतौर पर मां काली की पूजा सन्यासी तथा तांत्रिक किया करते हैं। माना जाता है कि मां काली काल का अतिक्रमण कर मोक्ष देती है।
आद्यशक्ति होने के नाते वह अपने भक्त की हर इच्छा पूर्ण करती है। तांत्रिक तथा ज्योतिषियों के अनुसार मां काली के कुछ मंत्र ऐसे हैं जिन्हें एक आम व्यक्ति अपने रोजमर्रा के जीवन में अपने संकट दूर करने के लिए प्रयोग कर सकता है। इन्हीं में एक नवार्ण मंत्र है।
दुर्गासप्तशती के अनुसार नौ अक्षरों से बना यह मंत्र मां के नौ स्वरूपों को समर्पित हैं तथा इसके प्रत्येक अक्षर एक ग्रह को नियंत्रित करता है। इस तरह नौ अक्षरों से मिलकर बना नवार्ण मंत्र कुंडली के सभी नौ ग्रहों को साधकर व्यक्ति के जीवन से सभी संकटों को दूर करता है। मंत्र इस प्रकार है:
ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:
कैसे करें इस मंत्र का प्रयोग
यूं तो इस मंत्र का नवरात्रों में विशेष प्रयोग किया जाता है। तांत्रिक इसके सवा लाख, पांच लाख अथवा नौ लाख जाप करके सिद्धियां प्राप्त करते हैं। परन्तु एक आम व्यक्ति भी इस मंत्र से उतना ही लाभ उठा सकता है। इसके लिए आप अपने घर में मां भगवती काली की तस्वीर या प्रतिमा लाएं। सुबह जल्दी नहा-धोकर स्वच्छ वस्त्र पहन कर उस प्रतिमा या तस्वीर के आगे दीपक जलाएं। तिलक लगाएं तथा लाल रंग के पुष्प यथा गुलाब, गुड़हल आदि समर्पित करें। इसके बाद उसी जगह एक आसन पर बैठकर इस मंत्र का 108 बार जप करें। जप के बाद यथायोग्य भोग मां काली को अर्पण करें। यदि आपकी अधिक सामथ्र्य नहीं है तो आप मिश्री के दो दाने भी भोग में अर्पण कर सकते हैं और चाहे तो लाल सेव या अनार का भोग भी मां को लगा सकते हैं।
भोग लगाने के बाद मन ही मन अपनी इच्छा मां को कहें। अपनी इच्छा पूरी होने तक इस प्रयोग को जारी रखें। यदि आपकी इच्छा सात्विक होगी या उससे किसी का अनिष्ट नहीं हो रहा है तो मां कुछ ही दिनों में आपकी मनोकामना पूरी करेगी। यदि आप चाहे तो अपनी इच्छा पूरी होने के बाद भी इस प्रयोग को आजीवन कर सकते हैं।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249




करेंगे बटुक भैरव की इस तरह पूजा तो काम में मिलेगी तुरंत सफलता







बटुक भैरव भगवान रूद्र के अवतार है। भगवान भैरव की पूजा आराधना करने से सभी तांत्रिक अभिकर्मों में सफलता मिलती है।
दस भैरवों में जहां कालभैरव को सर्वाधिक उग्र रूप माना जाता है वहीं बटुक भैरव को सबसे शांत और सौम्य स्वरूप मान कर पूजा जाता है। अघोरियों, तांत्रिकों तथा सन्यास ले चुके व्यक्तियों के लिए जहां काल भैरव की पूजा बताई गई हैं वहीं दूसरी ओर गृहस्थों के लिए बटुक भैरव की पूजा करना उपयुक्त माना गया है।
भैरव तंत्र के अनुसार जो भय से मुक्ति दिलाए उसे भैरव कहा जाता है। इनकी साधना करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है।
साधना का मंत्र
ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा
उक्त मंत्र की प्रतिदिन 11 माला 21 मंगल तक जप करें। मंत्र साधना के बाद अपराध-क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें। भैरव की पूजा में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ भी करना चाहिए।
ऐसे करें साधना
श्री बटुक भैरव यंत्र लाकर उसे अपने पूजा स्थान पर रखें, साथ में भैरवजी का चित्र या प्रतिमा भी हो तो बेहतर होगा, दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उस पर रखना चाहिए। चित्र के सामने फूल, काले उड़द आदि चढ़ाकर शाम को लड्डू का भोग लगाएं।
इस साधना को किसी भी मंगलवार या अष्टमी के दिन शुरू करना चाहिए। पूजा का समय शाम 7 से 10 बजे के बीच ही रखें।
साधना के दौरान रखें ये सावधानियां
भगवान भैरव की पूजा करते समय कुछ सावधानियों को रखने की विशेष जरूरत होती है। यथा, खान-पान शुद्ध रखें। स्त्री संसर्ग तथा संभोग से दूर रहें। वाणी, आचार-विचार की शुद्धता रखें तथा किसी पर भी क्रोध न करें। यदि कोई योग्य गुरु मिल जाएं तो उससे पूजा विधि को भली-भांति समझ कर ही पूजा आरंभ करें।
ऐसे लगाएं भगवान भैरव को भोग
भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार किया जाता है, जैसे रविवार को चावल-दूध की खीर, सोमवार को मोतीचूर के लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ अथवा गुड़ से बनी लापसी या लड्डू, बुधवार को दही-बूरा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने, शनिवार को तले हुए पापड़, उड़द के पकौड़े या जलेबी का भोग लगाया जाता है।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
हनुमानजी के सामने नींबू के उपाय करने से चमक जाती है किस्मत








नींबू स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद है। ये बात तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि नींबू कुछ और कामों में भी उपयोग किया जाता है। जिन दूसरे कामों में नींबू का उपयोग किया जाता है वे किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। नींबू के ऐसे उपयोग काफी पुराने समय से किया जाते रहे हैं।
यहां जानिए नींबू के ऐसे ही कुछ चमत्कारी उपाय...
बुरी नजर कैसे लगती है...
अक्सर कुछ लोग दुकानों पर और घरों के बाहर नींबू-मिर्च टांगकर रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे हमारे घर और दुकान की बुरी नजरों से रक्षा हो जाती है। वैसे तो यह तंत्र-मंत्र से जुड़ा एक टोटका है, लेकिन इस परंपरा के पीछे मनोविज्ञान से जुड़ी हुई एक वजह भी है।
तंत्र-मंत्र में नींबू, तरबूज, सफेद कद्दू और मिर्च का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। सामान्यत: नींबू का उपयोग बुरी नजर से बचने के लिए किया जाता है। बुरी नजर लगने का मुख्य कारण यह है कि जब कोई व्यक्ति किसी दुकान को, किसी चीज को, किसी बच्चे या अन्य इंसान को लगातार अधिक समय देखता रहता है तो उसे बुरी नजर लग जाती है।
बुरी नजर लगने के बाद व्यक्ति का चलता व्यवसाय भी मंदा हो जाता है, पैसों की तंगी आ जाती है, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। इससे बचने के लिए दुकानों और घरों के बाहर नींबू-मिर्च टांग दी जाती है। ऐसा करने से नींबू-मिर्च देखने मात्र से ही नींबू का खट्टापन और मिर्च तीखापन बुरी नजर वाले व्यक्ति की एकाग्रता को भंग कर देता है। जिससे वह अधिक समय तक घर या दुकान को नहीं देख पाता है।
कार्य में सफलता दिलाने वाला उपाय
अगर आपको कड़ी मेहनत के बाद भी किसी महत्वपूर्ण कार्य में सफलता नहीं मिल पा रही है तो किसी हनुमान मंदिर जाएं और यह उपाय करें। उपाय के अनुसार अपने साथ एक नींबू और 4 लौंग लेकर जाएं। इसके बाद मंदिर में हनुमानजी के सामने नींबू के ऊपर चारों लौंग लगा दें। फिर हनुमान चालीसा का पाठ करें या हनुमानजी के मंत्रों का जप करें।
मंत्र जप के बाद हनुमानजी से सफलता दिलवाने की प्रार्थना करें और वह नींबू अपने साथ रखकर कार्य करें। मेहनत के साथ ही कार्य में सफलता मिलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
व्यापार में सफलता दिलाने वाला उपाय
यदि किसी व्यक्ति का व्यापार ठीक से नहीं चल रहा हो तो उसे शनिवार के दिन नींबू का एक उपाय करना चाहिए। उपाय के अनुसार एक नींबू को दुकान की चारों दीवारों पर स्पर्श कराएं। इसके बाद नींबू को चार टुकड़ों में अच्छे से काट लें। अब दुकान से बाहर जा्कर चारों में दिशाओं में नींबू के एक-एक टुकड़े को फेंक दें। इससे दुकान की निगेटिव एनर्जी नष्ट हो जाएगी।
नींबू के पेड़ का महत्व
जिस घर में नींबू का पेड़ होता है वहां किसी भ प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा सक्रीय नहीं हो पाती है। नींबू के वृक्ष के आसपास का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहता है। इसके साथ वास्तु के अनुसार नींबू का पेड़ घर के कई वास्तु दोष भी दूर करता है।
बुरी नजर उतारने का उपाय
यदि किसी बच्चे को या बड़े इंसान को बुरी नजर लग जाए तो घर का कोई अन्य व्यक्ति पीडि़त व्यक्ति के ऊपर से सिर से पैर तक सात बार नींबू वार लें। इसके बाद इस नींबू के चार टुकड़े करके किसी सुनसान स्थान या किसी तिराहे पर फेंक आए। ध्यान रखें नींबू के टुकड़े फेंकने के बाद पीछे न देखें।
जब रोड पर दिख जाए नींबू-मिर्च तो क्या करें
कभी-कभी रास्ते में रोड पर नींबू-मिर्च पड़ी रहती है या किसी चौराहे या तिराहे पर कोई नींबू या नींबू के टुकड़े पड़े रहते हैं तो ध्यान रखें उन आपका पैर नहीं लगाना चाहिए। हो सकता है कि ऐसे नींबू का उपयोग किसी प्रकार के टोटके के लिए किया गया हो। इसका आपके ऊपर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249













हनुमान मंत्र








मनुष्य शारीरिक, मानसिक और बाहरी (भू‍त-प्रेत) नजर इत्यादि बीमारियों से परेशान रहता है। शारीरिक बीमारी के लिए डॉक्टर या वैद्य के पास जाकर मनुष्य ठ‍ीक हो जाता है। मानसिक बीमारी का सरलत‍म उपाय हो जाता है। परंतु मनुष्य जब भूत-प्रेत अथवा नजर, हाय या किसी दुष्ट आत्मा के जाल में फंस जाता है तब वह परेशान हो जाता है।
इसके ‍इलाज के लिए स्वयं एवं परिवार वाले हर जगह जाते हैं- जैसे तांत्रिक, मांत्रिक, जानकार के पास। परंतु मरीज ठीक नहीं होता है। मरीज की हालत बिगड़ने लगती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मरीज शारीरिक एवं मानसिक दोनों ब‍ीमारी से ग्रस्त है।
ऐसे में पवन पुत्र हनुमान जी की आराधना करें। मरीज अवश्‍य ही ठीक हो जाएगा। यहां हम आपको श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा) दे रहे हैं। जो इक्कीस दिन में सिद्ध हो जाता है। इसे सिद्ध करके दूसरों की सहायता करें और उनकी प्रेत-डाकिनी, नजर आदि सब ठीक करें।
श्री हनुमान मंत्र (जंजीरा)
ॐ हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान,
हाथ में लड्‍डू मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान,
अंजनी‍ का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ
नौ खंड का भू‍त, जाग जाग हड़मान (हनुमान)
हुंकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, ई घट
पिंड की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुंवर हड़मान (हनुमान) करें।
इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। हनुमान मंदिर में जाकर साधक अगरबत्ती जलाएं। इक्कीसवें दिन उसी मंदिर में एक नारियल व लाल कपड़े की एक ध्वजा चढ़ाएं। जप के बीच होने वाले अलौकिक चमत्कारों का अनुभव करके घबराना नहीं चाहिए। यह मंत्र भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, नजर, टपकार व शरीर की रक्षा के लिए अत्यंत सफल है।
चेतावनी : हनुमान जी की कोई भी साधना अत्यंत सावधानी और सतर्कता से करना चाहिए। यह साधना अगर पलट कर आ जाए तो साधक पर ही भारी पड़ सकती है। अत: शुद्धता, पवित्रता और एकाग्रता का विशेष ध्यान रखा जाए।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
महालक्ष्मी की कृपा तुरंत प्राप्त करने के लिए
रावण सहिंता के ये उपाय चमका देंगे आपकी किस्मत
को





कम लोग जानते हैं। रावण
सभी शास्त्रों का जानकार और श्रेष्ठ विद्वान था।
रावण ने भी ज्योतिष और तंत्र शास्त्र
की रचना की है। दशानन ने ऐसे कई
उपाय बताए हैं जिनसे
किसी भी व्यक्ति की किस्मत
रातोंरात बदल सकती है।
यहां जानिए रावण संहिता के अनुसार कुछ ऐसे तांत्रिक उपाय
जिनसे
किसी भी व्यक्ति की किस्मत
चमक सकती है...
महाज्ञानी रावण कई चीजों में पारंगत
था। ज्योतिष शास्त्र में भी उसे महारत हासिल
थी। तंत्र शास्त्र का भी वह
महाज्ञाता था। इसी वजह से
जो भी दशानन के संपर्क में आता था वह
सहसा ही उससे मोहित हो जाता था।
बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि रावण का प्रभाव
उसकी तांत्रिक साधना के बल पर था। रावण कई ऐसे
उपाय भी करता था जिससे जो भी सामान्य
इंसान उसे देखता था वह आकर्षित हो जाता था।
रावण संहिता में कुछ ऐसे ही खास प्रकार के तांत्रिक
तिलक की चर्चा की गई है।
जो भी व्यक्ति यह तिलक लगाता है सहज
ही लोग उसकी तरफ खिंचे चले आते
हैं। यहां जानिए कि कौन-कौन से हैं वह तांत्रिक तिलक......
1. धन प्राप्ति का उपाय: किसी भी शुभ
मुहूर्त में या किसी शुभ दिन में सुबह
जल्दी उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर
किसी पवित्र नदी या जलाशय के किनारे
जाएं। किसी शांत एवं एकांत स्थान पर वट वृक्ष के
नीचे चमड़े का आसन बिछाएं। आसन पर बैठकर धन
प्राप्ति मंत्र का जप करें।
धन प्राप्ति का मंत्र: ऊँ
ह्रीं श्रीं क्लीं नम: ध्व:
ध्व: स्वाहा।
इस मंत्र का जप आपको 21 दिनों तक करना चाहिए। मंत्र जप
के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। 21 दिनों में
अधिक से अधिक संख्या में मंत्र जप करें।
जैसे ही यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा आपको अचानक
धन प्राप्ति अवश्य कराएगा।
2.यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार
रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय
करना चाहिए।
यह उपाय 40 दिनों तक किया जाना चाहिए। इसे अपने घर पर
ही किया जा सकता है। उपाय के अनुसार धन
प्राप्ति मंत्र का जप करना है। प्रतिदिन 108 बार।
मंत्र: ऊँ
सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं,
श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।
इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने पर कुछ
ही दिनों महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त
हो जाएगी और आपके धन में आ
रही रुकावटें दूर होने लगेंगी।
3. यदि आप दसों दिशाओं से यानी चारों तरफ से
पैसा प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें। यह उपाय
दीपावली के दिन किया जाना चाहिए।
दीपावली की रात में विधि-
विधान से महालक्ष्मी का पूजन करें। पूजन के
सो जाएं और सुबह जल्दी उठें। नींद से
जागने के बाद पलंग से उतरे नहीं बल्कि यहां दिए
गए मंत्र का जप 108 बार करें।
मंत्र: ऊँ नमो भगवती पद्म पदमावी ऊँ
ह्रीं ऊँ ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय उत्तराय आष पूरय
सर्वजन वश्य कुरु कुरु स्वाहा।
शय्या पर मंत्र जप करने के बाद दसों दिशाओं में दस-दस बार
फूंक मारें। इस उपाय से साधक को चारों तरफ से पैसा प्राप्त
होता है
4.सफेद आंकड़े को छाया में सुखा लें। इसके बाद कपिला गाय
यानी सफेद गाय के दूध में मिलाकर इसे
पीस लें और इसका तिलक लगाएं। ऐसा करने पर
व्यक्ति का समाज में वर्चस्व हो जाता है।
5.यदि आपको ऐसा लगता है कि किसी स्थान पर धन
गढ़ा हुआ है और आप वह धन प्राप्त करना चाहते हैं
तो यह उपाय करें।
गड़ा धन प्राप्त करने के लिए यहां दिए गए मंत्र का जप दस
हजार बार करना होगा।
मंत्र: ऊँ नमो विघ्नविनाशाय निधि दर्शन कुरु कुरु स्वाहा।
गड़े हुए धन के दर्शन करने के लिए विधि इस प्रकार है।
किसी शुभ दिवस में यहां दिए गए मंत्र का जप
हजारों की संख्या करें। मंत्र सिद्धि हो जाने के बाद
जिस स्थान पर धन गड़ा हुआ है वहां धतुरे के
बीज, हलाहल, सफेद घुघुंची, गंधक,
मैनसिल, उल्लू की विष्ठा, शिरीष वृक्ष
का पंचांग बराबर मात्रा में लें और सरसों के तेल में पका लें। इसके
बाद इस सामग्री से गड़े धन
की शंका वाले स्थान पर धूप-दीप ध्यान
करें। यहां दिए गए मंत्र का जप हजारों की संख्या में
करें।
ऐसा करने पर उस स्थान से सभी प्रकार
की नकारात्मक शक्तियों का साया हट जाएगा। भूत-
प्रेत का भय समाप्त हो जाएगा। साधक को भूमि में गड़ा हुआ धन
दिखाई देने लगेगा।
ध्यान रखें तांत्रिक उपाय करते समय किसी विशेषज्ञ
ज्योतिषी का परामर्श अवश्य लें।
6.शास्त्रों के अनुसार दूर्वा घास
चमत्कारी होती है। इसका प्रयोग कई
प्रकार के उपायों में भी किया जाता है। यदि कोई
व्यक्ति सफेद दूर्वा को कपिला गाय यानी सफेद गाय के
दूध के साथ पीस लें और इसका तिलक लगाएं तो वह
किसी भी काम में असफल
नहीं होता है।
7.महालक्ष्मी की कृपा तुरंत प्राप्त
करने के लिए यह तांत्रिक उपाय करें।
किसी शुभ मुहूर्त जैसे
दीपावली, अक्षय तृतीया,
होली आदि की रात यह उपाय
किया जाना चाहिए।
दीपावली की रात में यह
उपाय श्रेष्ठ फल देता है। इस उपाय के अनुसार
आपको दीपावली की रात
कुमकुम या अष्टगंध से थाली पर यहां दिया गया मंत्र
लिखें।
मंत्र: ऊँ
ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी,
महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ
ह्रीं नम:।
इस मंत्र का जप भी करना चाहिए।
किसी साफ एवं स्वच्छ आसन पर बैठकर रुद्राक्ष
की माला या कमल गट्टे की माला के साथ
मंत्र जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम
108 होनी चाहिए। अधिक से अधिक इस मंत्र
की आपकी श्रद्धानुसार बढ़ा सकते हैं।
इस उपाय से आपके घर में
महालक्ष्मी की कृपा बरसने
लगेगी।
8.अपामार्ग के बीज को बकरी के दूध में
मिलाकर पीस लें, लेप बना लें। इस लेप को लगाने से
व्यक्ति का समाज में आकर्षण काफी बढ़ जाता है।
सभी लोग इनके कहे को मानते हैं।
9.यदि आप देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की कृपा से
अकूत धन संपत्ति चाहते हैं तो यह उपाय करें।
उपाय के अनुसार आपको यहां दिए जा रहे मंत्र का जप
तीन माह तक करना है। प्रतिदिन मंत्र का जप
केवल 108 बार करें।
मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवाणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य
समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।
मंत्र जप करते समय अपने पास
धनलक्ष्मी कौड़ी रखें। जब
तीन माह हो जाएं तो यह
कौड़ी अपनी तिजोरी में
या जहां आप पैसा रखते हैं वहां रखें। इस उपाय से
जीवनभर
आपको पैसों की कमी नहीं होगी।
10.यदि आप घर या समाज या ऑफिस में लोगों को आकर्षित
करना चाहते हैं तो बिल्वपत्र तथा बिजौरा नींबू लेकर
उसे बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें।
इसके बाद इससे तिलक लगाएं। ऐसा करने पर
व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249


आइये जाने भविष्य कथन की विभिन्न पद्धतियां के बारें में-----






आप सभी जानते हें की वर्तमान में भविष्य कथन की अनेक पद्धतियां हैं। भविष्य जानने की उत्सुकता हम सभी के मन में रहती है.अपनी इस उत्सुकता को शांत करने के लिए हम ज्योतिष की विभिन्न पद्धतियों का सहारा लेते हैं.भारत सहित विश्व के अन्य देशों में भविष्य कथन के लिये पद्धतियां हैं....जिनमें से मुख्य रूप से निम्न है-------
1. ज्योतिष विज्ञान (शास्त्र) अर्थात् जन्मकुंडली या पत्री द्वारा भविष्य कथन: इस जगत की उत्पत्ति का आधार ‘‘वेद’ हैं। वस्तुतः ज्योतिष सबसे अलग एवं अद्वितीय ज्ञान पद्ध ति है। जिसमें संबंधित जातक/ जातिका के जन्म दिनांक, जन्म समय एवं जन्म स्थान के अनुरूप तत्कालिक ग्रह स्थिति तथा ग्रहों की दशा अंतर्दशा व गोचर के आधार पर फल कथन किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के मुख्यतः 2 अंग हैं। (1) गणित, (2) फलित/होरा
2. सामुद्रिक शास्त्र अर्थात् हस्त रेखा शास्त्र द्वारा भविष्य कथन- हस्त रेखा द्वारा व्यक्ति के भविष्य कथन की यह पद्धति अत्यंत प्रमाणिक एवं वैज्ञानिक है। मनुष्य (बालक) जब जन्म लेता है तो उसके हाथ में केवल कुछ ही रेखा अर्थात तीन रेखायें, मुख्यतः जीवन (आयु) रेखा, मस्तिष्क रेखा तथा हृदय रेखा होती है। किसी-किसी के हाथ में चैथी रेखा भाग्य रेखा के रूप में होती है। ये तीनों या चारों रेखायें हल्की, बारीक एव महीन होती हैं तथा पूर्ण या अपूर्ण दोनों ही तरह की होती है। व्यक्ति (बालक) जैसे-जैसे कर्म करता है, उम्र के हिसाब से ये रेखायें गहरी व मोटी होती जाती हैं। कुछ रेखायें समय बीतने पर अर्थात् बच्चे के बड़े होने पर कार्यों के अनुसार परिवर्तित होती है अर्थात बनती भी है और बिगड़ती भी हैं। मनुष्य के जन्म के समय उसकी जन्मकुंडली (पत्री) में जैसे ग्रह (शुभ या अशुभ) स्थित होते हैं, व्यक्ति के विचार व मानसिकता भी ठीक वैसी ही होती हैं तथा व्यक्ति के विचार जैसे होंगे, ठीक वैसे ही कर्म भी होंगे तथा कर्मों के अनुसार ही हस्त रेखाओं में परिवर्तन अर्थात् रेखाओं का बनना एवं बिगड़ना चलता रहता है। ज्योतिष (कुंडली) एवं सामुद्रिक (हस्तरेखा) शास्त्र एक दूसरे के पूरक हैं। परंतु हस्त रेखा शास्त्र, ज्योतिष पर आधारित विज्ञान है।
हस्त रेखा व्यक्ति के अतीत, वर्तमान और भविष्य जानने की एक प्राचीन विज्ञान है। नारद, वाल्मीकि, गर्ग, भृगु, पराशर, कश्यप, अत्री, बृहस्पति, प्रहलाद, कात्यायन,वराहमिहिरआदि ऋषि मुनियों ने इस पर बहुत काम किया है। इसके बारे में स्कंध पुराण, भविष्य पुराण, बाल्मीकि रामायण, महाभारत, हस्तसंजीवनी आदि ग्रंथो में वर्णन है। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले समुद्र नामक ऋषि ने इसका व्यापक प्रचार प्रसार किया इसीलिए इसे सामुद्रिक शास्त्र के नाम से भी जाना जाने लगा। हजारों वर्ष पूर्व हस्तरेखा विज्ञान भारत से ग्रीस, यूनान,मिस्र,फ्रांस, सीरिया आदि देशों में पंहुचा ।
हस्त रेखा किसी भी व्यक्ति के चरित्र को समझने के लिए सर्वोतम विधि है। हाथ या हस्तरेखा व्यक्ति की मानसिकता का दर्पण है। विभिन्न प्रकार के हाथ, हाथों कीआकृतियाँ,हथेलीयां हाथ के रंग,ग्रहों की स्थिति, नख , विशेषचिन्ह, विभिन्न लकीरे मिलकर भिन्न-भिन्न योग बनाती है,जिनका अलग-अलग फल होताहै, इन्ही सब को देख परख कर व्यक्ति का चरित्र चित्रण और भविष्य कथन किया जाता है। हस्तरेखा द्वारा किसी व्यक्ति विशेष का व्यक्तित्व एवं रोगों का फल कथन करना बहुत ही आसान हो जाता है।
हस्तरेखा विश्लेषण : हाथ का आकार/आकृति---
बहुत छोटा हाथ – विद्वान्
छोटा हाथ – भावुक
सामान्य हाथ – सदगुणी
बड़ा हाथ – व्यवहार कुशल
बहुत बड़ा हाथ – परिश्रमी
त्वचा का रंग:----
बहुत पीला – रक्ताल्पता
पीला – रुग्ण स्वभाव
गुलाबी – हंसमुख स्वभाव
लाल – रक्त की अधिकता
बहुत लाल – हिंसक
अतिरिक्त चिकनी त्वचा – गठिया
शुष्क त्वचा – बुखार
नरम त्वचा – कमजोर जिगर
मुद्रिका:---
प्रत्येक हथेली में नौ क्षेत्र महत्वपूर्ण है:---
बृहस्पति का पर्वत – आध्यात्मिकता
शनि का पर्वत – गंभीरता
सूर्य का पर्वत – प्रतिष्ठा
बुध का पर्वत – वाणिज्य
मंगल ग्रह उंचा पर्वत – जीवन शक्ति
चंद्रमा का पर्वत – कल्पना
शुक्र का पर्वत – प्रेम
मंगल ग्रह निम्न पर्वत – क्रोध
अन्य छोटी बड़ी लकीरों के साथ मुख्यतः सात मुख्य लकीरे हथेली में पाई जाती हैं।
जीवनरेखा – व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य, बीमारी इस रेखासे जाना जाता है।
मस्तिष्क रेखा – व्यक्ति की बौद्धिकता का अध्ययन इससे किया जाता है।
हृदयरेखा – भावनात्मक पक्ष इससे देखा जाता है।
भाग्यरेखा – व्यक्ति के भाग्य, लाभ, हानि के बारे में इस रेखा से जाना जाता है।
सूर्यरेखा – सफलता, पद, प्रतिष्ठा के बारे में इस रेखा से जाना जाता है।
स्वास्थ्यरेखा – इससे स्वास्थ्य एवं व्यापार दोनों के बारे में जाना जाता है।
विवाहरेखा- वैवाहिक जीवन के बारे में इस रेखा से जाना जाता है।
3. अंक ज्योतिष द्वारा भविष्य कथन: अंक ज्योतिष में अंकों का विशेष महत्व होता है। ये अंक मूल रूप में 1 से 9 तक होते हैं जो सौरमंडल के 9 ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
जैसे-1-सूर्य, 2-चंद्र, 3-गुरु, 4- राहु, 5 बुध, 6-शुक्र, 7, केतु, 8 शनि, 9 - मंगल। प्रत्येक अंक, ग्रह से संबंधित होने से अपना विशेष प्रभाव देता हैं। इस तरह से यह विज्ञान भी ज्योतिष आधारित ही है। अंक ज्योतिष द्वारा भविष्य-कथन में 3 तरह के अंक का विशेष महत्व है- (1) मूलांक (2) नामांक (3) भाग्यांक।
(1) जातक की जन्मतारीख ही उसका मूलांक होती है। मूलांक सदैव एक अंक में ही होता है। यदि किसी की जन्मतारीख 30 है तो इसे मूलांक में बदलने के लिये एक अंक = 3$0 =3 में बदलते हैं। तब इस जन्मतारीख का मूलांक 3 होता है। अतः संसार के सभी जातकों का मूलांक इन्हीं 9 अंकों में से कोई एक होता है।
(2) भाग्यांक: किसी भी जातक का भाग्यांक ज्ञात करने के लिये जातक की जन्मतारीख के सभी अंकों का योग कर, योगफल (एक अंक) में ज्ञात करते हैं। वही भाग्यांक कहलाता है। मूलांक एवं भाग्यांक सदैव जन्मतिथि के आधार पर निकाले जाते हैं।
(3) नामांक: जातक का नामांक ज्ञात करने के लिये नाम के अंगे्रजी अक्षरों को आधार माना जाता है। प्रत्येक अंग्रेजी अक्षर के लिए एक अंक निश्चित होता है और नाम के इन्हीं अंकों का योगकर जातक के नामांक का निर्धारण किया जाता है। चूंकि अंकों में भी शत्रुता एवं मित्रता होती है अतः किसी जातक का मूलांक, भाग्यांक एवं नामांक, उसके नाम से मेल न खाता हो तो वह नाम उस जातक के लिये भाग्यशाली नहीं होता है। अतः भाग्योदय या भाग्यवृद्धि के लिये व्यक्ति को अपना नाम, नामांक, मूलांक व भाग्यांक के आधार पर ही रखना चाहिये। नाम पहले से ही रखा हो तो उसमंे कुछ परिवर्तन कर अर्थात् अक्षरो को जोड़कर या तोड़कर नाम को भाग्यशाली बना सकते हैं। इस पद्धति की सहायता से व्यक्तिगत नाम के अलावा जातक व्यवसायिक क्षेत्रों में भी मनपसंद नाम रखकर जीवन में तरक्की कर सकता है। भविष्य-कथन की इस पद्धति द्वारा हम कम श्रम, कम समय एवं कम खर्च में ही अधिक उपयोगी एवं सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
4. हिंदू वास्तुशास्त्र एवं चीनी ज्योतिष (वास्तु शास्त्र) अर्थात् फेंगशुई द्वारा भविष्य कथन: कहते हैं कि चीनी ज्योतिष फेंग शुई भी हिंदू वास्तु शास्त्र की देन है। जो प्रकृति के पांचों तत्व अर्थात अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश के संतुलन पर आधारित है। ये ही पांचों तत्व चीनी ज्योतिष का भी आधार है। इसके अलावा चीनी ज्योतिष में 12 वर्षों का एक चक्र होता है। इस मतानुसार जातक का एक सांकेतिक चिन्ह होता है। इसी चिन्ह को आधार मानकर घर के उन हिस्सों का पता लगाया जाता है जिनका प्रभाव जातक सहित परिवार के किसी भी सदस्य पर रहता है। उनके संतुलन का उपाय करके हम लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
5. टैरो कार्ड पद्धति द्वारा भविष्य कथन: टैरो पद्धति में 78 कार्डों का डेक होता है। ये कार्ड व्यक्ति के भविष्य कथन के रहस्य को उजागर कर सकते हैं। यह पद्धति भी ज्योतिष (ग्रहों, राशियां आदि) पर आधारित है। कार्डों को खोलने पर यदि मेजर/ प्रधान कार्ड अधिक आते हैं तो यह स्थिति बहुत ही शुभ, अच्छी मानी जाती है। इस पद्धति द्वारा एक समय में केवल एक ही प्रश्न का उत्तर सही मिल सकता है। अतः एक समय में एक ही प्रश्न करना ज्यादा शुभ रहता है।
6. ताश के पत्तों द्वारा भविष्य कथन: यह एक रहस्यमयी पद्ध ति है। इसमें ताश के 52 पत्तों की एक गड्डी होती है तथा इनमें चारों रंग- 1. हुकुम (काला), 2. पान लाल, 3. ईंट (लाल), 4. चिड़ी के पत्ते (काले होते हैं। इसमें प्रत्येक वर्ग में 13-13 पत्ते होते हैं। इन चारो रंगों के अर्थ अलग-अलग होते हैं। 13 पत्तों के प्रत्येक समूह में इक्का, बादशाह, बेगम, गुलाम तथा 2 से 10 तक 9 पत्ते अर्थात 13 पत्ते होते हैं। ये सभी पत्ते कुछ रहस्यात्मक संदेश देते हैं। इस गड्डी को तीन बार फेंटकर उन्हें तीन बराबर समूहों में बांटकर तीन पत्तों के समूह द्व ारा भविष्य-कथन किया जाता है जो किसी भी प्रश्न से संबंधित हो सकता है।
7. लाल किताब द्वारा भविष्य कथन ः यह माना जाता है कि यह पद्धति इस्लाम की देन है। इस पद्धति का महत्व या उपयोगिता, इसके उपायों के सरल होने के कारण है। इसके उपाय बड़े कारगर एवं प्रभावशाली भी हैं। इस पद्धति में भावों को ‘खानों’ का नाम दिया जाता है तथा 1 से 12 तक के खाना नंबर लिखे जाते हैं। इनमे राशियों का कोई महत्व नहीं होता है। लग्न चक्र बनाकर राशि के अंकों को मिटाकर उनकी जगह लग्न से प्रारंभ करते हुये एक से बारह तक के खाना नंबर लिखे जाते हैं। जिससे यह पता चलता है कि कौन सा-ग्रह कौन से खाने में हैं। फिर खानों के हिसाब से ग्रहों की स्थिति के अनुसार फलादेश किया जाता है। इस पद्धति में अशुभ ग्रहों की भांति एवं शुभ ग्रहों के शुभत्व में वृद्धि के लिये जो भी ‘‘उपाय’’ करते हैं उन्हें ‘‘टोटके’’ कहा जाता है। ये उपाय लगातार 43 दिनों तक करने होते हैं। सरल एवं सस्ते होने के कारण इन टोटको (उपायो) का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। लाल किताब की इस पद्धति में ‘‘वर्षकुंडली’’ बनाने का विशेष महत्व होता है। परंतु इसकी बनाने की प्रक्रिया अलग है। इसमें पिछले वर्ष के अनुसार ग्रहों को एक खाने से दूसरे खाने में दर्शाया जाता है। वर्ष कुंडली के शुभाशुभ ग्रह, वर्ष विशेष में असर डालते हैं। इस पद्धति में टोटकों के साथ उत्तम चरित्र, सत्यता, सात्विक आहार तथा शुद्धता पर अधिक बल दिया जाता है।
ज्योतिष को वेद (ज्ञान) की तीसरी आंख कहते हैं, उसका महत्व आज भी बरकरार है। वर्तमान समय में भी उसके कमोवेश अवशेष विद्यमान हैं। इस सदी के महान वैज्ञानिक न्यूटन ने अपनी स्वयं की कुण्डली लाल किताब के आधार पर स्वयं निर्मित की थी। न्यूटन को अहसास हो गया था कि हस्तरेखा से निर्मित कुण्डली मनुष्य के कारनामों की पोल पलक झपकते ही खोलने में सक्षम है। जगत की सारी प्राचीन सभ्यताओं में ज्योतिष एवं खगोल शास्त्र की परम्परा रही है। एवं इस ज्ञान का आदान-प्रदान भी होता रहा है। मानव सभ्यता के इतिहास में दो समानान्तर धारायें अविरल चलती रही हैं। प्रथम धारा थी विशुद्ध ग्रहों की गति पर आधारित घटनाओं की जो गणित ज्योतिष की तुलना में फलित ज्योतिष कहलाती है। कालान्तर में गणित ज्योतिष की तुलना में फलित ज्योतिष अर्थात लाल किताब खूब फैली व 12वीं सदी के बाद ज्योतिष के सिद्धांत की मात्र टीकायें लिखी जाने लगीं जबकि गणित ज्योतिष किताबों में सिमट कर रह गयी। फलित ज्योतिष के कई रुप हो गये हैं। जैसे- हस्त रेखा शास्त्र, मुखाकृति विज्ञान, हस्ताक्षर विज्ञान, प्रश्न कुंडली विज्ञान, अंक शास्त्र, होरा शास्त्र आदि न जाने कितनी विधायें पनपी व लोकप्रिय रहीं। कालक्रम में ध्यान देने वाली बात यह है कि आजकल लाल किताब भी प्रचलन में आ गयी है। पुरातन काल में दुर्लभ साहित्यों एवं ज्योतिषियों की भविष्य कथन की प्रक्रिया उलझी हुई व पहेलीनुमा भाषाओं में होती थीं, जैसा कि लाल किताब पर दृष्टि डालने पर प्रतीत होता है। उलझी हुई भविष्यवाणियां होने पर भी वक्त आने पर उनके अर्थ स्वतः स्पष्ट हो जाते थे। जगत की पुरातन सभ्यताओं में कालक्रम के अनुसार मंदिरों में पुजारी एवं पुजारिनें, भविष्य अध्ययन व कथन लाल किताब के ही अनुसार किया करते थे। सन् 1942 में हिटलर ने अपने निजी ज्योतिषी एवं आध्यात्मिक सलाहकार (श्री क्राफ्ट ) से पूछा था जर्मनी की किस्मत में युद्ध का धुआं कब-तक बदा है। क्राफ्ट ने कहा था कि मई 1945 तक' 'एवं मेरा भविष्य?', क्राफ्ट ने उत्तर दिया- 'सूरज की अग्नि जैसा प्रखर व बंकर जैसा सुरक्षित।' इतिहास साक्षी है कि 29 अप्रैल 1945 को बर्लिन के एक बंकर में हिटलर ने अपनी प्रेमिका (ईवाव्रान) से विवाह किया एवं अगले ही दिन आत्महत्या करने के पूर्व अपने अनुचरों को आदेश दिया कि ईवा व उसकी लाश को पेट्रोल से जला दें। इसका यह अभिप्राय है कि मनुष्य वर्तमान में जो अच्छे कर्म करता है या बुरे कर्म करता है, उसका प्रभाव उसके पूर्वार्जित अदृष्ट पर अवश्य पड़ता है। ज्योतिष के हिसाब से लौकिक पक्ष में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रह फलाफल में नियामक नहीं हैं, अपितु सूचक हैं। अर्थात ग्रह किसी को सुख -दुःख नहीं देते बल्कि आने वाले सुख-दुःख की सूचना देते हैं। लाल किताब के अनुसार बनी जन्म पत्री में तलाशें कि कौन सा ग्रह कष्ट दे रहा है। उसके अनुसार आप उस ग्रह की शांति का उपाय कर लें। यदि आपको अपनी जन्म-पत्री का ठीक-ठीक पता नहीं है तो भी आप निम्न प्रयोग एक सप्ताह अवश्य करें, करके देखें। यदि आपको आभास होता है कि अमुक दिन आपके लिये विशेष रुप से कष्टकारी सिद्ध होता है तो उस दिन से सम्बंधित ग्रह का टोटका 40 से 43 दिनों तक नित्य करें। यह प्रयोग आपका आर्थिक पक्ष सबल करेगा। लाल किताब के टोटकों में (चलते पानी में बहाना) प्रायः प्रयोग कराया जाता है। इसके पीछे भाव यह है कि आपके सारे कष्ट कोई अज्ञात शक्ति पानी में बहाकर आपसे दूर लिये जा रही है। यूनान में पूर्व सागर तटीय क्षेत्र में एथेंस के पास डेल्फी नामक पर्वतीय अंचल में अपोलो का मन्दिर था जिसके भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं। ईसा पूर्व की चौथी सदी में डेल्फी की पुजारिने विशेष दिनों में लाल किताब के अनुसार भविष्य कथन किया करती थीं, जिन्हें पायथिया कहा जाता है। वे हाथ की रेखाओं के आधार पर निर्मित जन्म कुण्डली से भविष्यवाणी करतीं थीं। उन्हीं दिनों रोम के सम्राट नीरो ने डेल्फी के पायथिया से अपना भविष्य पूछने की कामना की। वह काफी प्रयास के बाद लम्बी यात्रा करके डेल्फी पहुंचा। अपोलो के पवित्र मन्दिर में उसे घुसते ही वहां उपस्थित पायथिया ने चीखते हुये कहा 'जा, भाग जा, माता के हत्यारे, डेल्फी और बचकर रहे। इस अपमान से नीरों आपे से बाहर हो गया। उसने डेल्फी की सारी पुजारिनों को एवं उस पुजारिन का हाथ-पैर काट कर उन्हें जिन्दा ही जमीन में दफनाने का हुक्म दिया एवं उनके अंगरक्षकों ने मन्दिरों को तहस -नहस कर दिया। नीरो ने सोचा कि पुजारिन ने उसकी आयु 73 वर्ष बतायी है परन्तु पुजारिन का आशय कुछ और था। जिसने नीरो की हत्या की थी उसका नाम गलबा था एवं उसका राज्य भी हथिया लिया था। तब उसकी आयु 73 वर्ष की थी उस गलबा ने 73 वर्ष पूर्ण होने के पूर्व ही नीरो की हत्या कर दी। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह सत्य प्रतीत होता है कि दिव्य-दृष्टि से लिखी लाल किताब के पन्ने गूढ़ एवं गहन विधाओं एवं अतीन्द्रिय शक्तियों के स्वामी हैं जो मानव की आत्माओं म झांककर विभिन्न गोपनीय रहस्यों को उजागर करते हैं। लाल किताब के टोटकों में (चलते पानी में बहाना) प्रायः प्रयोग कराया जाता है। इसके पीछे भाव यह है कि आपके सारे कष्ट कोई अज्ञात शक्ति पानी में बहाकर आपसे दूर लिये जा रही है। किंवदंती है कि लंकाधिपति रावण ने सूर्य के सारथी अरुण से इस इल्म का सामुद्रिक ज्ञान संस्कृत में ग्रन्थ के रुप में ग्रहण किया था। रावण की तिलस्मी दुनिया समाप्त होने के पश्चात् यह ग्रन्थ किसी प्रकार 'आद' नामक स्थान पर पहुंच गया जहां इसका अनुवाद अरबी-फारसी में किया गया। कुछ लोग आज भी यह मानते हैं कि पुस्तक फारसी में उपलब्ध है जबकि सच्चाई कुछ और है यह ग्रन्थ उर्दू में अनुवादित होने के पश्चात पाकिस्तान के पुस्तकालय में सुरक्षित है। परन्तु कालवश इस ग्रन्थ अरुण संहिता बनाम लाल किताब का कुछ हिस्सा लुप्त हो चुका है। लाल किताब में कहा गया है 'बीमारी का इलाज दवा है, मगर मौत का इलाज नहीं, दुनियावी हिसाब -किताब है कोई दवा खुदायी नहीं।' इसका तात्पर्य यह है कि लाल किताब कोई जादू नहीं अपितु बचाव एवं रुह (आत्मा )की शान्ति के लिये है मगर दूसरों पर हमला करने के लिये नहीं। अगर भाग्य के राह में कोई ईंट या पत्थर गिरा दे एवं मार्ग का अवरोध करे तो इस विषय की मदद से पत्थर हटाकर उसे प्रवाहमान करने की कोशिश की जा सकती है। लाल किताब के अनुसार सूर्य के देवता विष्णु जी, चन्द्र के देवता शिव जी, बुध के देवता दुर्गा जी, बृहस्पति के देवता ब्रह्मा जी, शुक्र के देवता लक्ष्मी जी, शनि के देवता शिव जी, राहु के देवता सर्प, केतु के देवता गणेश जी हैं। आपको लगता है कि किसी ग्रह के कारण आप भौतिक कष्ट भोग रहे हैं तो आप उस ग्रह से संबंधित देवता की पूजा-अर्चना करें,प्रभु अवश्य सुख-समृद्धि तथा शांति प्रदान करेंगे।
8. प्रश्न शास्त्र द्वारा भविष्य कथन--- इसका महत्व उन लोगों के लिए अधिक होता है जिनके पास या तो जन्मपत्री नहीं है अथवा जन्मतारीख एवं समय का पता नहीं होता है। ऐसे लोगों के प्रश्नों का उत्तर ‘प्रश्न शास्त्र’ पद्धति द्वारा सटीकता से दिया जा सकता है। इसमें प्रश्न पूछने के लिये ‘‘समय’’ का विशेष महत्व है। इसके आधार पर ‘प्रश्न लग्न’ बनाया जाता है तथा विभिन्न विषयों से संबंधित प्रश्नों के उत्तर के रूप में भविष्य कथन किया जा सकता है। इसके लिए मात्र थोड़े समय की ही आवश्यकता होती हैं। इस पद्धति के अंतर्गत ‘‘केरलीय विधि’’ की प्रश्नोत्तरी शामिल है। केपी. प्रश्नोत्तरी पद्धति द्वारा भी भविष्य कथन किया जा सकता है। इसके अलावा श्रीसांई, श्रीहनुमान आदि प्रश्नोत्तरी द्वारा भी भविष्य-कथन किया जा सकता है।
9. रमल शास्त्र द्वारा भविष्य कथन: यह विद्या मूलरूप से भारत की ही देन है क्योंकि ‘‘रमल रहस्य’’ पुस्तक, जिसके रचनाकार- श्री भव्य भंजन शर्मा के अनुसार, माता पार्वती के द्वारा प्रश्न शास्त्र के ज्ञान के बारे में प्रश्न पूछे जाने पर भगवान शिव के मस्तक पर स्थित चंद्र से अमृत की चार बूंदे गिरी, जो क्रमशः प्रकृति के चारो तत्वों- अग्नि, वायु, जल एवं पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन्हीं बिंदुओं के आधार पर रस ‘‘रमल शास्त्र’’ में 16 ‘‘शक्लों’’ के रूपक बने। प्राचीन ज्योतिष शास्त्र की भांति ही इसमें भी 16 शक्लों में प्रथम 12 शक्लें 12 ज्योतिषीय भावों का प्रतिनिधित्व करती है। इसके अलावा 13 से 16 तक शक्लें ‘‘साक्षी’’ भावों को दर्शाती हैं। इस प्रकार ‘‘16 शक्लें’’ रमल शास्त्र का आधार हैं। इस पद्धति द्वारा भी जीवन से संबंधित सभी प्रश्नों का उत्तर दिया जा सकता है।
10. लोशू चक्र द्वारा भविष्य कथन-- इस विद्या का संबंध चीन देश तथा कछुए से हैं। इस विद्या का संबंध भी कहीं न कही भारत देश से ही है। अर्थात् लोशु चक्र की विद्या का मूल तत्व या जनक भगवान श्री हरि का कूर्म रूप है। हिंदुओं की ही भांति चीन मंे भी कछुएं एवं उससे जुड़ी चीजों को शुभ माना जाता है। वे लोग भी यह मानते हैं कि कछुए के कवच में परमात्मा का वास होता है। अतः इसका मिलना शुभ शकुन समझा जाता है। लगभग 4000 वर्ष पूर्व इसिवार वू नामक चीनी राजा एवं उसके मंत्रियों ने कछुए के कवच के ऊपर अंकित बिंदुओं का ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया तथा 33 अंक का एक पूर्ण वर्ग बनाकर उसे ‘‘लोशू चक्र’’ नाम दिया। यह लोशू चक्र इस विशेषता पर टिका था कि इसकी कोई भी रेखा चाहे वह क्षैतिज हो या ऊध्र्वाकार हो, अथवा विकर्णीय हो, उसके तीनों अंकों का योग 15 ही होता था तथा मध्य में अंक 5 था, जिसे चीनी लोग बहुत ही शुभ मानते थे। इस लोशु चक्र में 1 से 9 तक के प्रत्येक अंक के लिये एक स्थान निश्चित होता है। लोशु चक्र द्वारा भविष्य कथन करने के लिये प्रश्नकर्ता की जन्मतिथि महत्वपूर्ण होती है। प्रश्नकर्ता की जन्मतिथि के अंकों को लोशू चक्र्र में उसी स्थान पर रखना होता है। चाहे किसी अंक की पुनरावृत्ति क्यों न हो। 1 से 9 अंक, ज्योतिष के ग्रहों से जुड़े हैं। डाउजिंग से भविष्य कथन: इस पद्धति द्वारा भविष्य का नहीं बल्कि निकट भविष्य का फल कथन किया जा सकता है। इसके लिये विशेष प्रकार से रचित प्रश्नों और कार्डों का उपयोग किया जाता हैं ।
12. नंदी नाड़ी ज्योतिष द्वारा भविष्य कथन: इस शास्त्र की उत्पत्ति के संबंध में यह कहा जा सकता है कि जब माता पार्वती जी मनुष्य के भविष्य कथन को जानने के हठ में आ गयी तो भगवान शिव रात्रिकालीन सुनसान वेला में इसका वृतांत सुना रहे थे तब इनके प्रहरी नंदी ने इसे सुनकर महर्षियों को बता दिया तथा इन्होंने इसे ताड़पत्र पर लिपिबद्ध कर लिया। इसलिये इसे नंदी नाड़ी ज्योतिष कहते हैं।
13. श्री राम शलाका एवं अन्य प्रश्नोत्तरी पद्धतियों द्वारा भविष्य कथन: भारत के ऋषियों, मुनियों द्वारा अपनी दिव्य शक्तियों के बल पर विभिन्न प्रश्नोत्तरी पद्धतियों जैसे - श्री रामशलाका, श्री बत्तीसा यंत्र, नक्षत्र प्रश्नावली, श्री भैरव, श्री गर्भिणी प्रश्नावलियों, श्री साई, श्री हनुमान एवं केरलीय मूक प्रश्नोत्तरियों की खोज की गयी जिनके आधार पर किसी भी व्यक्ति का भविष्य-कथन किया जा सकता है। ये सारी प्रश्नोत्तरी पद्धतियां प्रश्न शास्त्र विद्या के अंतर्गत ही आती हैं।
14. गुप्त विद्या पद्धति (भावी ज्ञान) द्वारा भविष्य कथन: इस पद्धति द्वारा भविष्य कथन करने के लिये नीचे बताया गया ‘‘तीसा यंत्र’’ होता है। इसके द्वारा कुल 38 प्रश्नों का भविष्य कथन किया जाता है। इसके द्वारा प्रश्न करने की विधि यह है कि प्रश्न करने वाला एकाग्रचित मन से अपने इष्ट का स्मरण कर उच्चारण कर सकता है। फिर ऊँ कोष्ठक को छोड़कर अपनी अंगुली चित्रानुसार किसी भी कोष्ठक में रख सकता है। यही कोष्ठक वाली अंगुली के अंकों में अपना भाग्यांक जोड़कर प्राप्त संख्या उस जुड़े प्रश्न का उत्तर होगी।
15. स्वप्न ज्योतिष पद्धति द्वारा भविष्य कथन: हमारे प्राचीन ग्रंथों में इस पद्धति का काफी महत्व है क्योंकि स्वप्न, परमात्मा द्व ारा भविष्य में होने वाली घटनाओं के पूर्व संकेत हैं। स्वप्न का संबंध भी हमारी जन्मपत्री में मौजूद शुभ या अशुभ ग्रहों से होता है। मनुष्य का वर्तमान में जैसा समय चल रहा है, स्वप्न भी ठीक वैसे ही आते हैं। खराब समय अर्थात् नीच, शत्रु राशि के ग्रहों की दशादि में स्वप्न भी डरावने, बुरे, स्वास्थ्य खराब करने वाले तथा अति अशुभ आते हैं तथा अच्छे समय में यानि उच्च, स्वगृही या मित्र ग्रहों की दशा में स्वप्न शुभ और अच्छे आते हैं ।
16. क्रिस्टल बाल द्वारा भविष्य कथन: हिंदी भाषा में इसे ‘‘स्फटिक कहते हैं। यह विधि प्राचीन काल की देन है। क्रिस्टल एक प्राकृतिक ठोस धातु है जिसके चारो ओर एक गोल समतल सतह होती है। इसमें लौह तत्व पाये जाते हैं जिसमें चुंबकीय शक्ति होती है। क्रिस्टल बाल पर एकाग्रचित होकर ध्यान ‘‘केन्द्रित’’ करने से मस्तिष्क में सभी प्रकार की घटनाओं के चित्र स्पष्ट होने लगते हैं। इस आधार पर भूत, वर्तमान व भविष्य के फल-कथन किये जा सकते हैं।
17. शुभाशुभ पद्धति द्वारा भविष्य कथन: लोक जीवन में शुभ एवं अशुभ अनेक मान्यताये जैसे- शकुन, अपशकुन, अंग-स्फुरण, स्वप्न, शंका, अंधविश्वास व वहम आदि

Thursday, July 9, 2015

हम भैरवी साधना करना चाहते है; उपाय बताये






करवाने से होता है; उसी प्रकार तंत्र और भैरवी मार्ग की साधनायें भी बताने का विषय नहीं है।
भैरवी-साधना के 9 चरण होते है। इनको एक-एक कर करना होता है। पांच सिद्ध करने के बाद साधक वीर कहलाता है, नौ सिद्ध करने के बाद दिव्य। ‘वीर’ को ही अलौकिक शक्तियाँ और ज्ञान पारपत होता है।
इसमें सबसे पहली साधना, जो सामान्य क्रियात्मक प्रयोग होते है, संस्कारों को नष्ट करने की होती है। मनुष्य अपने ही बनाये हुए नियमों से पाशबद्ध होकर उस पशु की तरह विवश हो गया है, जो बंधन में है।
इन संस्कारों से मुक्ति सबसे कठिन काम है। इनमें उत्तीर्ण होने के बाद ही भैरवी चक्र की दीक्षा दी जाती है। मुझे स्वयं भी 10 वर्ष पहले इसमें प्रवेश के लिए कठोर परिक्षण से गुजरना पड़ा था। मुझे ज्ञान और बौद्धिक क्षमता के लिए शिव और सरस्वती का वरदान चाहिए था, जो प्राप्त हुआ।
तीसरी समस्या भैरवी की होती है। हृदय से उत्साह के साथ कोई 18 से 30 वर्ष की युवती भैरवी बनकर साधना की पार्टनर बनना चाहे; तभी इस मार्ग की साधनाएं सफल होती है। युवती को ज्ञात होना चाहिए कि यह काम आधारित साधनायें है। दूसरे उसमें अपने पार्टनर से शिव और गुरु से सदाशिव के समान भक्ति और श्रद्धा होना चाहिए।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
भैरवी चक्र साधना में साधक-साधिकाओं के लिए निर्देश








1.किसी भी नारी कि उपेक्षा या अपमान न करें।
2.कन्याओं को देवी का रूप समझकर उनकी पूजा करें।
3.कन्याओं-नारियों की शक्ति पर सहायता एवं रक्षा करें।
4.पेड़ न काटे, न कटवाएं।
5.मदिरापान या मांसाहार केवल साधना हेतु है। इसे व्यसन न बनाये।जो मस्तिष्क और विवेक को नष्ट कर दे; उस मदिरापान से भैरव जी कुपित होकर उसका विनाश कर देते है।
6.भैराविमार्ग की अपनी साधना को गुप्त रखें, किसी को न बताएं।
7.दिन में सामान्य पूजा करें।साधना 9 से 1 बजे तक रात्रि में प्रशस्त हैं।
8.नवमी एवं चतुर्दशी को भैरवी में स्थित देवी की पूजा करें।
9.इस मार्ग के आलोचकों से मत उलझे। इस संसार में भांति-भांति के प्राणी रहते है। सब की प्रवृत्ति एवं एवं सोच अलग-अलग होती है। न तो किसी को इस मार्ग कि ओर प्रेरित करे, न ही विरोध करे।
10.यह प्रयास रखे कि भैरवी सदा प्रसन्न रहे।
11.यदि वह मांसाहारी नहीं है; तो वानस्पतिक गर्म और कामोत्तेजक पदार्थों का सेवन करें और विजया से निर्मित मद का प्रयोग करें।
अन्य जानकारियाँ
11.आसन, वस्त्र लाल होते हैं। एक वस्त्र का प्रयोग करे, जो ढीला हो। कुछ सिले हुए वस्त्र की भी वर्जना करते हैं।
12.पूजा केवल नवमी-चतुर्दशी को होती है। अन्य तिथियों में केवल साधना होती है।
13.साधना के अनेक स्तर है। यहाँ सामान्य स्तर दिया गया है। भैरवी को सामने बैठाकर देवीरुप कल्पना में मंत्र जप करने से मन्त्र सिद्ध होते है।
14.मूलाधार के प्लेट के नीचे से खोपड़ी कि जोड़ तक और सिर के चाँद तक में मुख्य चक्र होते है। साधक-साधिका को इस पर जैतून या चमेली के तेल की मालिश करते रहना चाहिए।
15.इन चक्रों पर नीचे से ऊपर तक होंठ फेरने और चुम्बन लेने से ये शक्तिशाली होते है।
16.एक-दूसरे के आज्ञाचक्र को चूमने से मनासिक शक्ति प्रबल होती है।
17.चषक (पानपात्र) को सम्हाल कर रखें। इनका दिव्य महत्त्व होता है।
18.घट हर बार न्य लें, पूराने को विसर्जित कर दें।
घट के प्रसाद में मध के साथ सुगन्धित पदार्थ और गुलाब –केवड़ा जैसे फूलों को रखने का निर्देश है।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
भैरवी चक्र साधनाओं में मुख्य चक्र की पूजा






सबसे पहले भैरवी का अभिषेक एवं उसका पूजा किया जाता है। इसमें उसे पहले अभिमंत्रित मिट्टी से; फिर पंचामृत से एक-एक करके स्नान करवाया जाता है। किसी किसी गुरु द्वारा पहले मिट्टी, फिर उबटन और इसके बाद पंचामृत का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद भैरवी को देवी के रूप में श्रृंगार करके उससे चक्र के मध्य बैठाकर विधिवत् उस देवी के रूप में पूजा की जाती है, जिसको ईष्ट बनाया है।
इस समय श्रृंगार के बाद चक्र के मध्य देवी रूपा भैरवी होती है। उसके सामने पूजाघट होता है। इसमें मदिरा या मादक शरबत होता है।पूजा विधि विस्तृत है, इसे दूसरे पोस्ट में अलग से दिया जाएगा।
पूजन के बाद प्रसाद अर्पण किया जाता है। ये तामसी पदार्थ होते हैं। पहले इसे पूजित भैरवी ग्रहण करती है; इसके बाद गुरु और तब साधक।किसी-किसी गुरु के समुदाय में भैरवी का जूठा घट में मिला दिया जाता है।
साधक को प्रण लेना पड़ता है कि वह भविष्य में किसी नारी का अपमान नहीं करेगा। पूजन तीन स्तर पर होता है । यही पहली पूजा है। अन्य पूजा साधना क्रम की है।
स्नान का मंत्र
ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं भगवती महामाये अनंग वेग साहसिनी सर्वजन मनोहारिणी सर्ववश शंकरी मोदय –मोदय प्रमोदय-प्रमोदय एह्येह्यागच्छगच्छ कामकला कालिकाये सानिध्यं कुरु-कुरु हूँ हूँ फट फट स्वाहा।
वस्त्रार्पण मंत्र
ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं स्त्रीं स्त्रीं त्रैलोक्याकर्षिणी वस्त्रं गृहण गृहण स्वाहा।
स्नान पूजा मंत्र
आं हूं क्लीं क्लीं सर्व भूत प्रेत पिशाच रक्षसः ग्रस मम जाड्यम च्छेदय स्फ्रें हौं मम शत्रुण दह दह उच्छादय स्तम्भय स्तम्भय विध्वंस्य विध्वंस्य सर्वग्रहभ्य: शान्ति कुरु रक्षा कुरु ऐ ऐ फट ठ: ठ:
श्रृंगार मंत्र
ॐ ह्रीं ॐ क्लूं कामकालिकाये हूं आं भगमालिन्ये ऐ स्त्रीं भगप्रियायै ठ: श्रीं मदनातुरै भैरवं श्रृंगार कुरु कुरु नमः
सिन्दूरार्पण मंत्र
ह्रीं श्रीं क्लीं क्लीं क्रीं क्रीं सिन्दूरार्पण गृहण गृहण कुरु कुरु नमः देवी
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
भैरवी चक्र में शरीर की शुद्धि






स्नान विधि- स्नान तलवों से मस्तक, मस्तक से तलवों ता ‘ॐ भैरवाय नमः’ मंत्र के साथ पहले मिट्टी से; फिर पानी से स्नान करके तेल (सरसों) से; फिर सिद्ध उबटन से, फिर गोबर (गाय), फिर गौमूत्र, फिर पानी से धोकर, दही से फिर दूध से, फिर पानी से करें और भैरवी को करायें।
लाल रंग के सूती-रेशमी साड़ी सेट साधक एवं गुरु लाल चोंगे को वस्त्र के रूप में धारण करें। इसके बाद गहनें, पायल आदि जो देवी को पहनाया जाता है, पहनायें जाते हैं। इसके अभाव में कल्पना करके कि आप गहना पहन रहे हैं लाल कलावा और चुनती का प्रयोग किया जाता है। यह श्रृंगार गुरु के द्वारा मन्त्रों से पूरित होता है। गुरु कि उपस्थिति न हो, तो गुरु के नाम संकल्प करके साधक करता है।
तलवों के पंजों के मध्य, पैरों में पृष्ठभाग से वहीँ, हाथोंकी तलहटा के मध्य एवं हाटों के पृष्ठ पर वहीँ और आज्ञा चकरा पर भैरवी चकरा अंकन किया जाता है।
इसके बाद अंकित भैरवी के चारों ओर जल रहे दीपकों के प्रज्वलित मंडल में भैरवी का प्रवेश कराया जाता है।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
माँ बगलामुखी साधना





यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। उसके मुख का तेज इतना हो जाता है कि उससे आँखें मिलाने में भी व्यक्ति घबराता है। सामनेवाले विरोधियों को शांत करने में इस विद्या का अनेक राजनेता अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं। यदि इस विद्या का सदुपयोग किया जाए तो देशहित होगा।
मंत्र शक्ति का चमत्कार हजारों साल से होता आ रहा है। कोई भी मंत्र आबध या किलित नहीं है यानी बँधे हुए नहीं हैं। सभी मंत्र अपना कार्य करने में सक्षम हैं। मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो वह मंत्र निश्चित रूप से सफलता दिलाने में सक्षम होता है।
हम यहाँ पर सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली, कोर्ट में विजय दिलाने वाली, अपने विरोधियों का मुँह बंद करने वाली माँ बगलामुखी की आराधना का सही प्रस्तुतीकरण दे रहे हैं। हमारे पाठक इसका प्रयोग कर लाभ उठाने में समर्थ होंगे, ऐसी हमारी आशा है।
यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है।
इस साधना में विशेष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है जिसे हम यहाँ पर देना उचित समझते हैं। इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण रूप से शुद्ध होकर (तन, मन, वचन) एक निश्चित समय पर पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले पुष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी) की 108 दानों की माला द्वारा मंत्रों का सही उच्चारण करते हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार मंत्र जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।
आँखों में तेज बढ़ेगा, आपकी ओर कोई निगाह नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँगे। खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-संयम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी आवश्यक है।
ऊँ ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाहा।
हमने उपर्युक्त सभी बारीकियाँ बता दी हैं। अब यहाँ पर हम इसकी संपूर्ण विधि बता रहे हैं। इस छत्तीस अक्षर के मंत्र का विनियोग ऋयादिन्यास, करन्यास, हृदयाविन्यास व मंत्र इस प्रकार है--
विनियोग
अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

आवाहन
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
मंत्र इस प्रकार है-- ऊँ ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ऊँ स्वाहा।
मंत्र जाप लक्ष्य बनाकर किया जाए तो उसका दशांश होम करना चाहिए। जिसमें चने की दाल, तिल एवं शुद्ध घी का प्रयोग होना चाहिए एवं समिधा में आम की सूखी लकड़ी या पीपल की लकड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं। मंत्र जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर के करना चाहिए।
साधनाकाल की सावधानियाँ
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- पीले वस्त्र धारण करें।
- एक समय भोजन करें।
- बाल नहीं कटवाए।
- मंत्र के जप रात्रि के 10 से प्रात: 4 बजे के बीच करें।
- दीपक की बाती को हल्दी या पीले रंग में लपेट कर सुखा लें।
- साधना में छत्तीस अक्षर वाला मंत्र श्रेष्‍ठ फलदायी होता है।
- साधना अकेले में, मंदिर में, हिमालय पर या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
पंचांगुली साधना





गुरु की आज्ञा, गुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः प्रथम गुरु पूजन, और मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिए, यही शिष्य या साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए.
भाइयो बहनों आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ही साधना की सफलता हेतु भी शुभकामनाएं------
ये साधना गुरु द्वारा प्रदत्त है, कई लोगों ने किया, और इसके आश्चर्यजनक परिणाम भी प्राप्त किया, और मेरा भी स्वयं का अनुभूत है, भाइयो बहनों इसमें एक शंका लोगों को रहती है और वो है की यंत्र, तो इसका सलुशन भी है किन्तु इस ‘शुक्ल पक्ष की पंचमी, नवरात्री की पंचमी’ अतः इसका लाभ तो उठाना ही चाहिए, क्योंकि इस साधना का आगाज इस दिन किया तो निश्चित ही आगे आने वाले समय में एक बार में ही परिणाम भी प्रत्यक्ष होंगे.
इस दिन की जाने वाली साधना में कोई सामग्री या विशेस विधान की आवश्यकता नहीं है मात्र पीले वस्त्र, पीला आसन उत्तर दिशा और आदि शक्ति का चित्र, और गुरु चित्र तो अनिवार्य है ही.......
रात १० बजे स्नान करे और उत्तर दिशा की ओर मुह करके बैठ जाएँ, गुरु पूजन गणेश और भैरव पूजन करने के बाद संकल्प लें और पंचान्गुली ध्यान कर, निम्न मन्त्र का ५१ बार जप कर लें....
साधना विधान;
सर्व प्रथम, गुरु मन्त्र जो भी आपका हो या ‘ॐ परम तत्वाय गुरुभ्यो नमः’ की चार माला करें |
‘ह्रीं’( HREEM) बीज का ७ बार जप करे | इससे मन्त्र प्राणमय हो जायेगा |
इसके बाद एंग(AING) बीज का सात बार जप करें-----
ध्यान मन्त्र---
पंचांगुली महादेवी श्री सीमंधर शासने,
अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्ति: श्री त्रिदशेषितु: |
मन्त्र:_
‘ॐ नमो पंचांगुली -पंचांगुली परशरी परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमय दंडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भुतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये शंखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषिणीमध्ये शेखिनी मध्ये गुणीमध्ये गारूणीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषाशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरे बुरो जो कोई करे करावे जड़े जडावे तत चिन्ते चिंतावे तस माथे श्री पंचांगुली देवी तणों वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठं ठं स्वाहा’ |
‘OM NAMO PANCHAANGULI –PANCHAAGULI PARSHARI PARSHARI MATA MAYNGAL VASHIKARNI LOHMAY DANDMARNI CHAUSHATHA KAAM VIHDANI RANMADHYE RAULMADHYE SHATRUMADHYE DEEVANMADHYE BHUTMADHYE PRETMADHYE PISHACHMADHYE JHOTINGMADHYE DAKINIMADHYE SHANKHINIMADHYE YAKSHINIMADHYE SHEKANIMADHYE GUNI MADHYE GARUNI MADHYE VINARIMADHYE DOSHMADHYE DOSHAASHARAN MADHYE DUSHT MADHYE GHOR KASHT MUJH UPARE BURO JO KOI KARE KARAVE JADE JADAVE TAT CHINTE CHINTAVE TAS MATHE SHREE MATA SHREE PANCHAANGULI DEVI TANO VAJRA NIRDHAR PADE OM THAM-THAM THAM SWAHA’|
मन्त्र पूर्ण होने के बाद मन्त्र गुरु को समर्पित करें पांच दिनों तक प्रतिदिन यही क्रम होगा पांच दिनों के बाद, माँ पंचान्गुली देवी का पूर्ण पूजन कर खीर का भोग लगा कर किसी कन्या को भोजन करा देना चाहिए और सफलता की कामना करना चाहिए |
मन्त्र आपके सामने है और अभी समय भी है जो इसे करना चाहें तो १०, बजे,११ बजे, ११: ३०बजे भी आप बैठ सकते हैं, किन्तु करके देखें जरुर, क्योंकि साधना का प्रतिफल तो करने पर ही देख पाएंगे न, अतः साधना करें जरुर.
भाइयो बहनों, जो भी यंत्र के साथ ही साधना करना चाहें तो भी परेशान न हों यंत्र भी आपको मिल जायेगा किन्तु इसके लिए आपको अगले माह की पंचमी का इन्तजार करना पड़ेगा और इसके साथ ही तब यंत्र और चित्र की भी व्यवस्था कर लीजिए, किन्तु तब तक आप इस मन्त्र को प्रतिदिन करके न केवल याद कर लीजिए और अपने प्राणों में समाहित भी, क्योंकि जब मन्त्र की क्रमशः पुनरावृत्ति होती है तो मन्त्र और साधक दोनों ही एक होने की क्रिया प्रारम्भा हो जाती है और मन्त्र प्राणमय होने लगता है और तब सिद्धि की स्तिथि बनने लगती है, तो आप सब तैयार हो जाइये, साधना के महासागर से एक और मोती चुनने हेतु-----
आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
पंचांगुली साधना







गुरु की आज्ञा, गुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः प्रथम गुरु पूजन, और मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिए, यही शिष्य या साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए.
भाइयो बहनों आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ही साधना की सफलता हेतु भी शुभकामनाएं------
ये साधना गुरु द्वारा प्रदत्त है, कई लोगों ने किया, और इसके आश्चर्यजनक परिणाम भी प्राप्त किया, और मेरा भी स्वयं का अनुभूत है, भाइयो बहनों इसमें एक शंका लोगों को रहती है और वो है की यंत्र, तो इसका सलुशन भी है किन्तु इस ‘शुक्ल पक्ष की पंचमी, नवरात्री की पंचमी’ अतः इसका लाभ तो उठाना ही चाहिए, क्योंकि इस साधना का आगाज इस दिन किया तो निश्चित ही आगे आने वाले समय में एक बार में ही परिणाम भी प्रत्यक्ष होंगे.
इस दिन की जाने वाली साधना में कोई सामग्री या विशेस विधान की आवश्यकता नहीं है मात्र पीले वस्त्र, पीला आसन उत्तर दिशा और आदि शक्ति का चित्र, और गुरु चित्र तो अनिवार्य है ही.......
रात १० बजे स्नान करे और उत्तर दिशा की ओर मुह करके बैठ जाएँ, गुरु पूजन गणेश और भैरव पूजन करने के बाद संकल्प लें और पंचान्गुली ध्यान कर, निम्न मन्त्र का ५१ बार जप कर लें....
साधना विधान;
सर्व प्रथम, गुरु मन्त्र जो भी आपका हो या ‘ॐ परम तत्वाय गुरुभ्यो नमः’ की चार माला करें |
‘ह्रीं’( HREEM) बीज का ७ बार जप करे | इससे मन्त्र प्राणमय हो जायेगा |
इसके बाद एंग(AING) बीज का सात बार जप करें-----
ध्यान मन्त्र---
पंचांगुली महादेवी श्री सीमंधर शासने,
अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्ति: श्री त्रिदशेषितु: |
मन्त्र:_
‘ॐ नमो पंचांगुली -पंचांगुली परशरी परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमय दंडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भुतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये शंखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषिणीमध्ये शेखिनी मध्ये गुणीमध्ये गारूणीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषाशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरे बुरो जो कोई करे करावे जड़े जडावे तत चिन्ते चिंतावे तस माथे श्री पंचांगुली देवी तणों वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठं ठं स्वाहा’ |
‘OM NAMO PANCHAANGULI –PANCHAAGULI PARSHARI PARSHARI MATA MAYNGAL VASHIKARNI LOHMAY DANDMARNI CHAUSHATHA KAAM VIHDANI RANMADHYE RAULMADHYE SHATRUMADHYE DEEVANMADHYE BHUTMADHYE PRETMADHYE PISHACHMADHYE JHOTINGMADHYE DAKINIMADHYE SHANKHINIMADHYE YAKSHINIMADHYE SHEKANIMADHYE GUNI MADHYE GARUNI MADHYE VINARIMADHYE DOSHMADHYE DOSHAASHARAN MADHYE DUSHT MADHYE GHOR KASHT MUJH UPARE BURO JO KOI KARE KARAVE JADE JADAVE TAT CHINTE CHINTAVE TAS MATHE SHREE MATA SHREE PANCHAANGULI DEVI TANO VAJRA NIRDHAR PADE OM THAM-THAM THAM SWAHA’|
मन्त्र पूर्ण होने के बाद मन्त्र गुरु को समर्पित करें पांच दिनों तक प्रतिदिन यही क्रम होगा पांच दिनों के बाद, माँ पंचान्गुली देवी का पूर्ण पूजन कर खीर का भोग लगा कर किसी कन्या को भोजन करा देना चाहिए और सफलता की कामना करना चाहिए |
मन्त्र आपके सामने है और अभी समय भी है जो इसे करना चाहें तो १०, बजे,११ बजे, ११: ३०बजे भी आप बैठ सकते हैं, किन्तु करके देखें जरुर, क्योंकि साधना का प्रतिफल तो करने पर ही देख पाएंगे न, अतः साधना करें जरुर.
भाइयो बहनों, जो भी यंत्र के साथ ही साधना करना चाहें तो भी परेशान न हों यंत्र भी आपको मिल जायेगा किन्तु इसके लिए आपको अगले माह की पंचमी का इन्तजार करना पड़ेगा और इसके साथ ही तब यंत्र और चित्र की भी व्यवस्था कर लीजिए, किन्तु तब तक आप इस मन्त्र को प्रतिदिन करके न केवल याद कर लीजिए और अपने प्राणों में समाहित भी, क्योंकि जब मन्त्र की क्रमशः पुनरावृत्ति होती है तो मन्त्र और साधक दोनों ही एक होने की क्रिया प्रारम्भा हो जाती है और मन्त्र प्राणमय होने लगता है और तब सिद्धि की स्तिथि बनने लगती है, तो आप सब तैयार हो जाइये, साधना के महासागर से एक और मोती चुनने हेतु-----
आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249
श्री हनुमान भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन करने हेतु अनुष्ठान







हर व्यक्ति की यही इच्छा रहती है की उसे अपने जीवन में किसी न किसी रूप में ईश्वर के दर्शन हो जाएँ। आज आप सब के लाभार्थ एक अनुपम हनुमान साधना का विवरण कर रहा हूँ। यदि इस अनुष्ठान को पूर्ण विश्वास और श्रद्धा के साथ नियम-पालन करते हुए किया जाये तो हनुमान जी किसी न किसी भेष में आपको दर्शन दे देंगे इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
साधना सामग्री : हनुमान जी की प्राण-प्रतिष्ठित पारद मूर्ति, मूंगे की माला, लकड़ी का बाजोट, गुड-चने का प्रसाद, स्टील या तांबे की थाली, सिन्दूर, धुप, अगरबत्ती, घी का दीपक, लाल वस्त्र (सवा मीटर ), जनेऊ, फल, दक्षिणा।
साधना समय : किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के शनिवार या मंगलवार से आरम्भ करके ११ दिन लगातार
साधना विधि : मंगलवार या शनिवार को सुबह उठकर नहाधोकर लाल रंग के वस्त्र पहने। सर्वप्रथम घर के पूजा-स्थान में रखी हनुमान मूर्ति या चित्र के दर्शन कर उन्हें प्रणाम करें। उठने के बाद आपको मौन धारण करना है किसी से बात नहीं करनी है और पूरे दिन मौन रहना है। अब अपने पूजा स्थान में बैठ जाएँ और सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करके "ॐ गं गणपतये नमः " इस मन्त्र को १०८ बार जाप करके गणेश जी को प्रणाम करें एवं उनसे विनती करें की जो अनुष्ठान आप करने जा रहे हो उसमे कोई विघ्न न आये व उसमे आपको सफलता प्राप्त हो।
इसके पश्चात अपने सामने लकड़ी का बाजोट रख लें। इस बाजोट के ऊपर लाल रंग का कपडा बिछा दें व उससे मोली से बाजोट के चारों तरफ से बाँध दे। एक स्टील या तांबे की थाली लें उससे बाजोट पर रख दें। इसके बाद इस थाली में गुलाब के पुष्प की पंखुड़ियाँ बिछा दें। उस पर श्री हनुमान जी की प्राण-प्रतिष्ठित पारद मूर्ति रख दें। मूर्ति को पहले गंगाजल से उसके बाद पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर का मिश्रण ) से स्नान कराएं। इसके बाद एक दूसरी थाली में सिन्दूर के घोल से ॐ का चिन्ह बनायें और उस पर पुनः लाल पुष्प की पंखुड़ियाँ रख कर पारद हनुमान मूर्ति स्थापित कर दें। इसके बाद मूर्ति के ऊपर हनुमान जी के लाल सिन्दूर के घोल से लेप कर दें। अब घी का दीपक जलाएं, धुप अगरबत्ती जलाएं और हनुमान जी को दिखाएँ।
इसके पश्चात लाल पुष्प अर्पित करें, जनेऊ चढ़ाएं, और गुड-चने के प्रसाद और फल का भोग लगाएं। अब दक्षिणा भी अर्पित करें।
इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर आँखे बंद करकर हनुमान जी का ध्यान करें और इस अनुष्ठान को करने की अपनी मनोकामना या इच्छा को मन ही मन दोहराएं। जल को दाहिनी और जमीन पर छोड़ दें।
अब मूंगे की माला से इस मन्त्र के आपको १५१ जाप करने हैं। मन में हनुमान जी का चिंतन करें।
मन्त्र : ॐ नमो हनुमंताय आवेशय आवेशय स्वाहा । ।
मन्त्र जाप के पश्चात पुनः हनुमान जी को प्रणाम करें व अपनी मनोकामना उनके सामने रखे। बाजोट व समस्त सामग्री को वहीँ रखा रहने दें। प्रसाद उठाकर थोड़ा स्वयं ग्रहण करें एवं बाकि घर के सदस्यों में बाँट दें।
दिनभर आपको मौन धारण करते हुए हनुमान जी का ही ध्यान करना है। व किसी भी प्रकार के बुरे विचारों को अपने मन में न आने दें। दिन में एक बार आपको बिना नमक और हल्दी का भोजन करना है।
ऐसा ११ दिन तक लगातार करना है। ११ दिन के बाद यह अनुष्ठान पूर्ण हो जायेगा और आपको हनुमान जी किसी न किसी रूप में दर्शन देने अवश्य आएंगे।
किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :
मोबाइल नं. : - 09958417249
व्हाट्सप्प न०;- 9958417249

महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि

  ।। महा प्रचंड काल भैरव साधना विधि ।। इस साधना से पूर्व गुरु दिक्षा, शरीर कीलन और आसन जाप अवश्य जपे और किसी भी हालत में जप पूर्ण होने से पह...