नौवी महाविद्या मातंगी
सांसारिक रूप में महाविद्या कमला का आराधना से धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति के बाद किसी भी आदमी को जरूरत होती है, अपने आभामंडल और प्रभाव को बढ़ाने की। इंसान चाहता है कि लोग उसके धन व ऐश्वर्य को समझें और उसे सम्मान दें।
दूसरी ओर आध्यात्मिक क्षेत्र का साधक कमला की साधना से खुद को अंदर से परिपूर्ण करने के बाद प्रकृति को मोहित कर अपने साधना के स्तर को उठाना चाहता है। इसके लिए आवश्यकता पड़ती है नौवीं महाविद्या मातंगी की। इनमें पूरे ब्रह्मांड को मोहित करने की शक्ति है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा था कि सभी महाविद्या में सब कुछ प्रदान करने की शक्ति है लेकिन उनके विशेषज्ञता के खास क्षेत्र हैं।
तंत्र के क्षेत्र में मातंगी की साधना का काफी महत्व है। यह ममता की मूर्ति हैं और सामन्यतया साधकों पर प्रसन्न होने में अधिक देर नहीं लगाती हैं। इनकी प्रसन्नता से ज्ञान वृद्धि, शास्त्राज्ञाता, कवित्व शक्ति एवं संगीत विद्या की भी प्राप्ति संभव है।
यह सम्मोहन और वशीकरण की अधिष्ठात्री हैं। इनके प्रयोग से भंडार की अक्षयवृद्धि होती है। आवश्यकता सिर्फ श्रद्धा का नियमपूर्वक साधना करने की है। मातंगी की साधना के बारे में संक्षिप्त जानकारी नीचे दी जा रही है। विस्तृत जानकारी के लिए अपने आसपास के किसी योग्य व्यक्ति से या मेल से मुझसे जानकारी ली जा सकती है।
मातंगी के कई नाम हैं। इनमें प्रमुख हैं-सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, उच्छिष्टचांडालिनी, उच्छिष्टमातंगी, राजमातंगी, कर्णमातंगी, चंडमातंगी, वश्यमातंगी, मातंगेश्वरी, ज्येष्ठमातंगी, सारिकांबा, रत्नांबा मातंगी एवं वर्ताली मातंगी।
1-अष्टाक्षर मातंगी मंत्र- कामिनी रंजनी स्वाहा
विनियोग— अस्य मंत्रस्य सम्मोहन ऋषिः, निवृत् छंदः, सर्व सम्मोहिनी देवता सम्मोहनार्थे जपे विनियोकगः।
ध्यान--- श्यामंगी वल्लकीं दौर्भ्यां वादयंतीं सुभूषणाम्। चंद्रावतंसां विविधैर्गायनैर्मोहतीं जगत्।
फल व विधि------ विनियोग से ही मंत्र का फल स्पष्ट 20 हजार जप कर मधुयुक्त मधूक पूष्पों से हवन करने पर अभीष्ट की सिद्धि होती है।
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2-दशाक्षर मंत्र------ ऊं ह्री क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।
विनियोग— अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिःर्विराट् छंदः, मातंगी देवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्तिः, क्लीं कीलकं, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः।
अंगन्यास--- ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रैं, ह्रौं, ह्रः से हृदयादि न्यास करें।
फल व विधि------ साधक छह हजार जप नित्य करते हुए 21 दिन प्रयोग करें। फिर दशांस हवन करें। चतुष्पद श्मसान या कलामध्य में मछली, मांस, खीर व गुगल का धूप दे तो कवित्व शक्ति की प्राप्ति होती है। इससे जल, अग्नि एवं वाणी का स्तंभन भी संभव है।
इसकी साधना करने वाला वाद-विवाद में अजेय बन जाता है। उसके घर में स्वयं कुबेर आकर धन देते हैं।
3-लघुश्यामा मातंगी का विंशाक्षर मंत्र--------- ऐं नमः उच्छिष्ट चांडालि मांतगि सर्ववशंकरि स्वाहा।
विधि---
विनियोग व न्यास आदि के साथ देवी की पूजा कर 11, 21, 41 दिन या पूर्णिमा/आमावास्या से पूर्णिमा/आमावास्या तक एक लाख जप पूर्ण करें। मंत्र से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका जप उच्छिष्ट मुंह किया जाना चाहिए। ऐसा किया भी जा सकता है लेकिन विभिन्न ग्रंथों में इसे पवित्र होकर करने का भी विधान है।
अतः साधक सुविधानुसार जप करें। जप पू्र्ण होने के बाद महुए के फूल व लकड़ी के दशांस होम कर तर्पन व मार्जन करें।
फल-------
इसके प्रयोग से डाकिनी, शाकिनी एवं भूत-प्रेत बाधा नहीं पहुंचा सकते हैं। इसकी साधना से प्रसन्न होकर देवी साधक को देवतुल्य बना देती है। उसकी समस्त अभिलाषाएं पूरी होती हैं।
चूंकि मातंगी वशीकरण विद्या की देवी हैं, इसलिए इसके साधक की वह शक्ति भी अद्भुत बढ़ती है। राजा-प्रजा सभी उसके वश में रहते हैं।
4-एकोन विंशाक्षर उच्छिष्ट मातंगी तथा द्वात्रिंशदक्षरों मातंगी मंत्र
मंत्र (एक)--- नमः उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।
मंत्र (दो)---- ऊं ह्रीं ऐं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्टचांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वशंकरि स्वाहा।
विधि-----
विधिपूर्वक दैनिक पूजन के बाद निश्चित (जो साधक जप से पूर्व तय करे) समयावधि (घंटे या दिन) में दस हजार जप कर पुरश्चरण करे। उसके बाद दशांस हवन करे।
फल-----
मधुयुक्त महुए के फूल व लकड़ी से हवन करने पर वशीकरण का प्रयोग सिद्ध होता है। मल्लिका फूल के होम से योग सिद्धि, बेल फूल के हवन से राज्य प्राप्ति, पलास के पत्ते व फूल के हवन में जन वशीकरण, गिलोय के हवन से रोगनाश, थोड़े से नीम के टुकड़ों व चावल के हवन से धन प्राप्ति, नीम के तेल से भीगे नमक से होम करने पर शत्रुनाश, केले के फल के हवन से समस्त कामनाओं की सिद्धि होती है।
खैर की लकड़ी से हवन कर मधु से भीगे नमक के पुतले के दाहिने पैर की ओर हवन की अग्नि में तपाने से शत्रु वश में होता है।
5-सुमुखी मातंगी प्रयोग
इसमें दो मंत्र हैं जिसमें सिर्फ ई की मात्रा का अंतर है पर ऋषि दोनों के अलग-अलग हैं। इसमें फल समान है।
पहला मंत्र---- उच्छिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महापिशाचिनी ह्रीं ठः ठः ठः।
इसके ऋषि अज, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।
विधि----
देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह आठ हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है। साधक को धन की प्राप्ति होती है और उसका आभामंडल बढ़ता है। हवन की विधि नीचे है।
दूसरा मंत्र-----
उच्छिष्ट चांडालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः।
इसके ऋषि भैरव, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।
विधि----
इसकी कई विधियां हैं। एक में एक लाख मंत्र जप का भी विधान वर्णित है। लेकिन मेरा मानना है कि देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह दस हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है और साधक को धन की प्राप्ति होती है तथा उसका आभामंडल बढ़ता है।
हवन विधि------
दही से सिक्त पीली सरसो व चावल से हवन करने पर राजा-मंत्री सभी वश में हो जाते हैं। बिल्ली के मांस से हवन करने पर शस्त्र का वसीकरण होता है। बकरे के मांस के हवन से धन-समृद्धि मिलती है।
खीर के हवन से विद्या प्राप्ति तथा मधु व घी युक्त पान के पत्तों के हवन से महासमृद्धि की प्राप्ति होती है।
कौवे व उल्लू के पंख के हवन से शत्रुओं का विद्वेषण होता है।
चेतावनी -
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।
विशेष -
किसी विशिष्ट समस्या ,तंत्र -मंत्र -किये -कराये -काले जादू -अभिचार ,नकारात्मक ऊर्जा प्रभाव आदि पर परामर्श /समाधान हेतु संपर्क करें
राजगुरु जी
महाविद्या आश्रम
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